رضوی

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मशहूर इतिहासकार ज़हबी ने अपनी किताब लिसानुल मीज़ान की पहली जिल्द पेज न. 268 में अहमद नाम के विषय पर लिखते हुए एक रिवायत पूरी सनद के साथ ज़िक्र करने के बाद कहते हैं कि मोहम्मद इब्ने अहमद हम्माद कूफ़ी जिनका शुमार अहले सुन्नत के बड़े मोहद्दिस में होता है बयान करते हैं कि बिना किसी शक के, उमर ने अपने पैरों से फ़ातिमा स.अ.की शान में ऐसी गुस्ताख़ी की थी कि मोहसिन शहीद हो गए।

आज बहुत से मुसलमान हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की शहादत के बारे में तरह तरह की बातें करते हैं कोई बीमारी का ज़िक्र करता है तो कोई किसी और चीज़ का, इसी बात के चलते हम इस लेख में हज़रत ज़हरा स.अ. की शहादत को अहले सुन्नत के बड़े और ज्ञानी इतिहासकारों जैसे इब्ने क़ुतैबा, मोहम्मद इब्ने अब्दुल करीम शहरिस्तानी, इमाम शम्सुद्दीन ज़हबी, उमर रज़ा कोहाला, अहमद याक़ूबी, अहमद इब्ने यहया बेलाज़री, इब्ने अबिल हदीद, शहाबुद्दीन अहमद जो इब्ने अब्द अंदलुसी बुज़ुर्ग और अपने दौर के सबसे मशहूर और विशेष इतिहासकारों की किताबों से बयान कर रहे हैं।

 पैग़म्बर स.अ. की वफ़ात के बाद उनकी बेटी हज़रत ज़हरा स.अ. पर ढ़हाए जाने वाले बेशुमार और बेहिसाब ज़ुल्म और फिर उन्हीं ज़ुल्म की वजह से आपकी शहादत इस्लामी इतिहास की एक ऐसी हक़ीक़त है जिसका इंकार कर पाना ना मुमकिन है,

इसलिए कि इतिहास गवाह है कि बहुत कोशिशें हुईं और बहुत मेहनत की गई, क़लम ख़रीदे गए और केवल यही नहीं बल्कि इंसाफ़ पसंद इतिहासकारों पर बहुत सारी हक़ीक़तें छिपाने के लिए दबाव भी बनाया गया, लेकिन ज़ुल्म, वह भी इस्मत के घराने की नूरानी ख़ातून पर छिप भी कैसे सकता था, इसीलिए कुछ इंसाफ़ पसंद इतिहासकार और उलमा आगे बढ़े और उन्होंने अपनी किताबों में ज़ुल्म की उस पूरी दास्तान को लिखा जिसे आज भी बहुत से मुसलमान भुलाए बैठे हुए हैं, और इन इतिहासकारों ने कुछ ऐसे हाकिमों की सच्चाई को ज़ाहिर किया जो ख़ुद को पैग़म्बर स.अ. का जानशीन बताते हुए उन्हीं के ख़ानदान पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ रहे थे,

इन इतिहासकारों ने बिना किसी कट्टरता के अहले सुन्नत के इतने अहम और मोतबर स्रोत द्वारा हज़रत ज़हरा पर होने वाले ज़ुल्म जिसके नतीजे में आपकी शहादत हुई उसे नक़्ल किया है जिसका इंकार कर पाना आज की जवान नस्ल और पढ़े लिखे और इंसाफ़ पसंद मुसलमान के लिए मुमकिन नहीं है।

अबू मोहम्मद अब्दुल्लाह इब्ने मुस्लिम इब्ने क़ुतैब दैनवरी जो इब्ने क़ुतैबा के नाम से मशहूर थे और जिनकी वफ़ात 276 हिजरी में हुई थी, उन्होंने अपनी किताब अल-इमामह वस सियासह की पहली जिल्द के पेज न. 12 (तीसरा एडीशन, जिसकी दोनें जिल्दें एक ही किताब में छपी थीं) में अब्दुल्लाह इब्ने अब्दुर्रहमान से नक़्ल करते हुए लिखते हैं कि अबू बक्र ने जिन लोगों ने उनकी बैअत से इंकार किया था और इमाम अली अ.स. की पनाह में चले गए थे उनका पता लगवाया और उमर को उनके पास भेजा, उन सभी लोगों ने घर से बाहर निकलमे से मना कर दिया, फिर उमर ने आग और लकड़ी लाने का हुक्म दिया और इमाम अली अ.स. के घर में पनाह लेने वालों को पुकार कर कहा, उस ज़ात की क़सम जिसके क़ब्ज़े में उमर की जान है, तुम सब घर से बाहर निकल आओ वरना मैं इस घर को घर वालों समेत जला दूंगा, वहीं मौजूद किसी ने उमर की इस बात को सुन कर कहा ऐ अबू हफ़्स, क्या तुम्हें मालूम नहीं इस घर में फ़ातिमा (स.अ.) हैं, उमर ने कहा मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, मैं फिर भी आग लगा दूंगा।

उसी किताब की पहली जिल्द के पेज न. 13 पर रिवायत की सनद के साथ नक़्ल किया है कि, इस हादसे के कुछ दिन बाद उमर ने अबू बक्र से कहा, चलो फ़ातिमा (स.अ.) के पास चलें क्योंकि हमने उन्हें नाराज़ किया किया है,

यह दोनों आपसी मशविरे के बाद शहज़ादी की चौखट पर पहुंचे, लाख कोशिशें कर लीं लेकिन शहज़ादी ने इन लोगों से मुलाक़ात करने से मना कर दिया, फिर मजबूर हो कर इमाम अली अ.स. से कहा (ताकि वह इमाम अली अ.स. के कहने से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. उनसे बात करें, इस बात से यह समझा जा सकता है कि यह दोनों जानते थे कि अगर शहज़ादी नाराज़ रहीं तो आख़ेरत तो बाद में इनकी दुनिया भी बर्बाद है)

इमाम अली अ.स. के कहने के बाद शहज़ादी ने इजाज़त तो दी लेकिन जैसे ही यह लोग शहज़ादी की बारगाह में पहुंचे शहज़ादी ने मुंह मोड़ लिया, और फिर इन दोनों ने सलाम किया लेकिन शहज़ादी ने सलाम का जवाब नहीं दिया, फिर अबू बक्र ने कहा क्या आप इसलिए नाराज़ हैं कि हमने आपकी मीरास और आपके शौहर का हक़ छीन लिया, शहज़ादी ने जवाब दिया कि ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे घर वाले तुम्हारी मीरास पाएं और हम पैग़म्बर स.अ. की मीरास से महरूम रहें? फिर आपने फ़रमाया, अगर मैं पैग़म्बर स.अ. से नक़्ल होने वाली हदीस सुनाऊं तब मान लोगे...., अबू बक्र ने कहा हां, फिर आपने फ़रमाया, तुम दोनों को अल्लाह की क़सम, सच बताना, क्या तुम लोगों ने पैग़म्बर स.अ. से नहीं सुना कि फ़ातिमा (स.अ.) की ख़ुशी मेरी ख़ुशी है, और फ़ातिमा (स.अ.) की नाराज़गी मेरी नाराज़गी है, जिसने फ़ातिमा (स.अ.) को राज़ी कर लिया उसने मुझे राज़ी कर लिया, जिसने फ़ातिमा (स.अ.) को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया?

उमर और अबू बक्र दोनों ने कहा, हां हमने यह हदीस पैग़म्बर (स.अ.) से सुनी है, फिर शहज़ादी ने फ़रमाया, मैं अल्लाह और उसके फ़रिश्तों को गवाह बना कर कहती हूं कि तुम दोनों ने मुझे नाराज़ किया और मैं तुम दोनों से राज़ी नहीं हूं, और जब पैग़म्बर स.अ. से मुलाक़ात करूंगी तुम दोनों की शिकायत करूंगी, यह सुनते ही अबू बक्र ने रोना शुरू कर दिया जबकि शहज़ादी यह कह रही थीं कि अल्लाह की क़सम ऐ अबू बक्र तेरे लिए हर नमाज़ में बद दुआ करूंगी।

मशहूर इतिहासकार ज़हबी ने अपनी किताब लिसानुल मीज़ान की पहली जिल्द पेज न. 268 में अहमद नाम के विषय पर लिखते हुए एक रिवायत पूरी सनद के साथ ज़िक्र करने के बाद कहते हैं कि मोहम्मद इब्ने अहमद हम्माद कूफ़ी (जिनका शुमार अहले सुन्नत के बड़े मोहद्दिस में होता है) बयान करते हैं कि बिना किसी शक के, उमर ने अपने पैरों से फ़ातिमा (स.अ.) की शान में ऐसी गुस्ताख़ी की थी कि मोहसिन शहीद हो गए थे। (अदब की वजह से मुझ में हिम्मत नहीं कि वह शब्द लिखूं जिसका इस्तेमाल किया गया है बाक़ी मतलब तो आप ख़ुद समझ गए होंगे)

उमर रज़ा कोहाला हालिया अहले सुन्नत के उलमा में से हैं, जिन्होंने अपनी किताब आलामुन निसा के पांचवे एडीशन (1404 हिजरी) में उसी रिवायत को सनद के साथ ज़िक्र किया है जिसे इब्ने क़ुतैबा ने भी नक़्ल किया है जिसका ऊपर ज़िक्र किया जा चुका है।

याक़ूबी अपनी इतिहास की किताब जो तारीख़े याक़ूबी के नाम से मशहूर है उसकी दूसरी जिल्द पेज न. 137 (बैरूत एडीशन) में अबू बक्र की हुकूमत के हालात के विषय पर चर्चा करते हुए लिखा है कि जिस समय अबू बक्र ज़िंदगी के आख़िरी समय में बीमार पड़े तो अब्दुर रहमान इब्ने औफ़ देखने के लिए गए और पूछा, ऐ पैग़म्बर (स.अ.) के ख़लीफ़ा कैसी तबीयत है तो उन्होंने जवाब दिया, मुझे पूरी ज़िंदगी में किसी चीज़ का पछतावा नहीं है, लेकिन तीन चीज़ें ऐसी हैं जिन पर अफ़सोस कर रहा हूं कि ऐ काश ऐसा न किया होता...., पूछने पर बताया कि ऐ काश ख़िलाफ़त की मसनद पर न बैठा होता, ऐ काश फ़ातिमा (स.अ.) के घर की तलाशी न हुई होती, ऐ काश फ़ातिमा (स.अ.) के घर में आग न लगाई होती..., चाहे वह मुझसे जंग का ऐलान ही क्यों न कर देतीं।

अहमद इब्ने यहया जो बेलाज़री के नाम से मशहूर हैं और जिनकी वफ़ात 279 हिजरी में हुई है वह अपनी किताब अन्साबुल अशराफ़ (मिस्र एडीशन) की पहली जिल्द के पेज न. 586 पर सक़ीफ़ा के मामले पर बहस करते हुए लिखते हैं कि, अबू बक्र ने इमाम अली अ.स. से बैअत लेने के लिए कुछ लोगों को भेजा, लेकिन इमाम अली अ.स. ने बैअत नहीं की, इसके बाद उमर आग के शोले लेकर इमाम अली अ.स. के घर की तरफ़ गया, दरवाज़े के पीछे हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) मौजूद थीं उन्होंने कहा ऐ उमर क्या तेरा इरादा मेरे घर को आग लगाने का है? उमर ने जवाब दिया, हां, बेलाज़री लिखते हैं कि उमर ने शहज़ादी से यह जुमला कहा कि मैं अपने इस काम को अंजाम देने के लिए उतना ही मज़बूत ईमान और अक़ीदा रखता हूं जितना आपके वालिद अपने लाए हुए दीन पर अक़ीदा और ईमान रखते थे।

बेलाज़री उसी किताब के पेज न. 587 में इब्ने अब्बास से रिवायत नक़्ल करते हैं कि जिस समय इमाम अली अ.स. ने बैअत करने से इंकार कर दिया, अबू बक्र ने उमर को हुक्म दिया कि जा कर अली (अ.स.) को घसीटते हुए मेरे पास लाओ...., उमर पहुंचा और फिर इमाम अली अ.स. से कुछ बातचीत हुई, फिर इमाम अली अ.स. ने एक जुमला उमर से कहा कि ख़ुदा की क़सम तुमको अबू बक्र के बाद कल हुकूमत की लालच यहां तक ख़ींच कर लाई है।

इब्ने अबिल हदीद मोतज़ली ने अपनी शरह की बीसवीं जिल्द पेज 16 और 17 में लिखते हैं कि जो लोग यह कहते हैं कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के घर पर हमला कर के बैअत का सवाल इसलिए किया गया ताकि मुसलमानों में मतभेद और फूट न पैदा हो और इस्लाम का निज़ाम महफ़ूज़ रहे, क्योंकि अगर बैअत न ली जाती तो मुसलमान दीन से पलट जाते....., इब्ने अबिल हदीद कहते हैं कि उन लोगों को यह बात क्यों समझ में नहीं आती कि जंगे जमल में भी तो हज़रत आएशा मुसलमानों के हाकिम को ख़िलाफ़ जंग करने क्यों आईं थीं..... ?? लेकिन उसके बाद भी इमाम अली अ.स. ने हुक्म दिया कि उनको पूरे सम्मान के साथ घर वापस पहुंचाओ....।

तो अब यहां मेरा सारे मुसलमानों से सवाल है कि अगर इस्लाम और दीन की हिफ़ाज़त के चलते और मुसलमानों में फूट न पड़ने को दलील बनाते हुए किसी पर जलता दरवाज़ा ढ़केलना सही हो सकता है उसके घर में आग लगाना सही हो सकता है, उस घर में रहने वाली एक ख़ातून को जलते दरवाज़े और दीवार के बीच में दबाया जा सकता है, उसके बाज़ू पर तलवार के ग़िलाफ़ से वार किया जा सकता है, वग़ैरगह वग़ैरह तो क्या यही काम उम्मत को आपसी मतभेद और आपसी फूट से बचाने और उनको दीने इस्लाम से वापस पिछले दीन पर पलटने से रोकने के लिए जंगे जमल में हज़रत आएशा के साथ मुसलमानों के ख़लीफ़ा नहीं कर सकते थे?

लेकिन मुसलमानों इतिहास पढ़ो तो इस नतीजे पर पहुंचोगे कि मुसलमानों के ख़लीफ़ा की शान होती क्या है... दो किरदार आपके सामने हैं, दोनों में मुसलमानों ही किताबों के हिसाब से मुसलमानों के ख़लीफ़ा और दूसरी तरफ़ उनकी बैअत न करने वाले लोग, एक तरफ़ पैग़म्बर स.अ. की बेटी और एक तरफ़ पैग़म्बर स.अ. की बीवी, लेकिन फ़र्क़ देखिए मुसलमानों के पहले ख़लीफ़ा ने दूसरे ख़लीफ़ा के साथ मिल कर पैग़म्बर स.अ. की बेटी के घर में आग लगाई, पैग़म्बर स.अ. की बेटी को ज़ख़्मी किया, पैग़म्बर स.अ. के नवासे को दुनिया में आने से पहले ही शहीद कर दिया, पैग़म्बर स.अ. की बेटी की आंखों के सामने उनके शौहर को खींच कर और घसीट कर ले जाया गया..... और दूसरी तरफ़ पूरी कोशिश की गई कि पैग़म्बर स.अ. की बीवी मुसलमानों के ख़लीफ़ा की बैअत न करने के बावजूद जंग में न आएं लेकिन वह आईं, लेकिन उसके बावजूद चौथे ख़लीफ़ा ने उन्हें पूरे सम्मान के साथ घर वापस भेजवाया.....

कोई भी अक़्लमंद और इंसाफ़ पसंद इंसान इस बात को क़ुबूल नहीं करेगा कि किसी की भी नामूस के साथ ऐसा सुलूक किया जाए..... लेकिन उसके बावजूद पैग़म्बर स.अ. की बेटी के साथ वह हुआ जिसे बयान करते हुए ज़ुबान लरज़ती है और जिसे लिखते हुए हाथ कांपते हैं।

शहाबुद्दीन अहमद जो इब्ने अब्दे रब अंदलुसी के नाम से मशहूर हैं अपनी किताब अल अक़्दुल फ़रीद की चौथी जिल्द के पेज न. 260 पर लिखते हैं कि जिस समय अबू बक्र ने उमर को यह कर बैअत के लिए भेजा कि अगर वह लोग बाहर न आए तो उनसे जंग करना उस समय इमाम अली अ.स., अब्बास और ज़ुबैर सभी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के घर में मौजूद थे, उमर हाथ में आग ले कर हज़रत ज़हरा स.अ. के घर की तरफ़ बढ़ा, दरवाज़े पर हज़रत ज़हरा मौजूद थीं, शहज़ादी ने कहा ऐ ख़त्ताब के बेटे, मेरा घर जलाने आए हो? उमर ने कहा अगर अबू बक्र की बैअत नहीं की तो आग लगा दूंगा।

अहले सुन्नत के इतने बड़े बड़े आलिमों और इतिहासकारों की इस चर्चा के बाद अब सब के लिए बिल्कुल साफ़ हो गया होगा कि शहज़ादी के घर में आग किसने लगाई

क़ुम अल-मुक़द्देसा के इमाम जुमआ ने अपने जुमा की नमाज के खुत्बे में हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के व्यक्तित्व को महिलाओं और युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श बताया, उन्होंने कहा कि उनका जीवन इबादत, शुद्धता और बलिदान का एक आदर्श उदाहरण है।

क़ुम अल-मुक़द्देसा के इमाम जुमआ ने अपने जुमा की नमाज के खुत्बे में हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के व्यक्तित्व को महिलाओं और युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श बताया, उन्होंने कहा कि उनका जीवन इबादत, शुद्धता और बलिदान का एक आदर्श उदाहरण है।

उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रही जंग की ओर इशारा करते हुए कहा, ईरान सरकार को सोशल मीडिया को लेकर उचित कानून बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर इस वक्त एक बड़ी जंग चल रही है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह पहले इसे एक सिस्टम के तहत लाए और फिर सुधारात्मक कदम उठाए।

उन्होंने अमेरिका की नीतियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पश्चिमी शक्तियां दुनिया को प्रभुत्वशाली और अधीन में बांटती हैं, लेकिन ईरान को किसी की गुलामी स्वीकार नहीं है। उन्होंने हिजबुल्लाह के नेता शहीद हसन नसरुल्लाह का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी शहादत के बावजूद प्रतिरोध की प्रक्रिया तेज हो गई है।

आयतुल्लाह बुशहरी ने सरकार से अगले साल का बजट बिना घाटे के तैयार करने और सार्वजनिक मुद्दों, विशेषकर मुद्रास्फीति और अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने को कहा।

उन्होंने मआद (प्रलय के दिन) पर विश्वास के महत्व को समझाया और कहा कि यह विश्वास व्यक्ति को जिम्मेदारी का एहसास कराता है और उसे बेहतर जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है।

उन्होंने महिलाओं की सेवाओं की सराहना करते हुए कहा कि लेबनान की मदद के लिए चलाए गए आंदोलन और प्रतिरोध में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जो सामाजिक समरसता का सबसे अच्छा उदाहरण है।

 

 

 

 

 

हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सदीकी ने वली ए फकीह को इमाम ज़माना अ.ज. के सबसे निकटतम व्यक्ति बताया जो सामाजिक भटकाव को समाप्त करते हैं। इस्लामी क्रांति के नेता, इमाम ख़ामेनेई, अल्लाह की ओर से उम्मत के लिए एक महान खजाना हैं, जिनकी सेहत और लंबी उम्र के लिए दुआएं करनी चाहिए।

एक रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन काज़िम सदीकी ने तेहरान में नमाज़-ए-जुमा के खुतबे में वली-ए-फकीह को इमाम ज़माना अ.ज. के सबसे निकटतम व्यक्ति बताया, जो सामाजिक भटकावों का अंत करते हैं।

उन्होंने इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई, को अल्लाह की ओर से उम्मत के लिए एक महान खजाना बताया और उनकी सेहत व लंबी उम्र के लिए दुआ करने की अपील की हैं।

हुज्जतुल इस्लाम सदीकी ने इस्लामी क्रांति को 'फातिमी क्रांति' करार देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य इस्लाम को किताबों से निकालकर वास्तविक जीवन में लागू करना था उन्होंने शहीदों की कुर्बानियों को इस्लामी मूल्यों के पुनर्जागरण के लिए महत्वपूर्ण बताया।

जुमा के खुतबे के दौरान उन्होंने प्रतिरोध के मोर्चे को इस्लाम और कुफ्र की जंग का अग्रिम मोर्चा बताया और कहा कि वर्तमान युद्ध धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य, तथा शराफत और शरारत के बीच है, न कि केवल इज़राइल और लेबनान या ग़ाज़ा के बीच।

तेहरान के अस्थायी इमामे जुमा ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. के व्यक्तित्व का उल्लेख करते हुए उन्हें विलायत की रक्षक और त्याग एवं बलिदान का प्रतीक बताया उनके अनुसार, हज़रत फ़ातिमा स. ने अपनी जान और अपने बेटे की कुर्बानी देकर विलायत की रक्षा की।

रहबर-ए-इंक़लाब इस्लामी ने हज़रत ज़हरा स.ल. की ज़िंदगी को अनुपम बताया और कहा कि इमाम ख़ुमैनी रह.ने फरमाया कि अगर हज़रत फ़ातिमा स. पुरुष होतीं, तो वह इमाम बनतीं।

उन्होंने अमेरिका को लूटपाट प्रभुत्व और विद्रोह का केंद्र बताते हुए कहा कि उसके राजनीतिक तंत्र में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स में कोई अंतर नहीं है। अमेरिकी इज़राइल समर्थक नीतियों की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति की कैबिनेट ईरान के दुश्मनों से भरी हुई है।

खतीब-ए-जुमा ने इस्लामी देशों के नेताओं द्वारा फिलिस्तीन का समर्थन न करने पर अफसोस व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि दो-राज्य समाधान इज़राइल के अवैध कब्जे को स्वीकार करने के समान है और दुआ की कि अल्लाह मजलूम फिलिस्तीनियों और लेबनानियों के खून का बदला ले।

उन्होंने तक़वा को नेकियों की स्वीकार्यता की बुनियाद बताया और महिलाओं से पवित्रता और हिजाब को अपनाए रखने की सलाह दी।

 

 

 

 

 

पाकिस्तान के जमात-ए-इस्लामी (जेआई) के महासचिव हमीद सूफी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जमात-ए-इस्लामी देश की सबसे बड़ी इस्लामी राजनीतिक पार्टी है। पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में कुछ अज्ञात लोगों ने हमीद सूफी की गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने बताया कि घटना उस समय हुई जब हमीद सूफी नमाज अदा करके मस्जिद से बाहर आ रहे थे।

जमात-ए-इस्लामी (जेआई) के महासचिव हमीद सूफी पर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बाजौर में गोलियों से हमला किया गया।  पुलिस ने बताया कि इनायत कला बाजार के पास कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने उन पर गोलियां चलाईं। हमीद सूफी नमाज के बाद मस्जिद से बाहर आ रहे थे, तभी मोटरसाइकिल सवार दो लोगों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं।  इस घटना की जिम्मेदारी दाएश समूह ने ली है।

 

 

इराकी प्रतिरोधी आंदोलन अहद अल्लाह के प्रमुख ने कहा कि अपराधी अमेरिका की अगुवाई में दुश्मनों का लक्ष्य केवल ग़ाज़ा, लेबनान और सीरिया नहीं है बल्कि यह देश दुश्मन के उद्देश्यों का एक हिस्सा हैं और दुश्मनों का असली लक्ष्य इस्लामी गणराज्य ईरान है।

एक रिपोर्ट के अनुसार , इराकी प्रतिरोधी आंदोलन अहद अल्लाह के प्रमुख हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम अलहैदरी ने धार्मिक मदरसों के तहत क़ुम की जामे मस्जिद में शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह की याद में आयोजित मजलिस-ए-अज़ा में कहा कि शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह वली-ए-फ़क़ीह के पूर्णत अनुयायी थे।

वली ए फक़ीह के प्रति निष्ठा, इस महान शहीद के जीवन की विशेषता थी। सैयद हसन नसरुल्लाह, प्रतिरोध आंदोलन के नेता चुने जाने से पहले वली-ए-फ़क़ीह के एक महान सिपाही प्रेमी और निष्ठावान कार्यकर्ता थे।

 

उन्होंने यह बताते हुए कि आज प्रतिरोध का मुद्दा, इस्लामी शासन की एक महत्वपूर्ण चर्चा है आगे कहा कि अपराधी अमेरिका की अगुवाई में दुश्मनों का लक्ष्य केवल ग़ाज़ा, लेबनान और सीरिया नहीं है बल्कि ये देश दुश्मनों के लक्ष्यों का एक हिस्सा हैं और दुश्मनों का असली लक्ष्य इस्लामी गणराज्य ईरान और वली-ए-फक़ीह है।

हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम अलहैदरी ने कहा कि आज जिहाद-ए-तबयीन सत्य की व्याख्या के लिए संघर्ष सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है।

इराकी आंदोलन अहद अल्लाह के प्रमुख ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे सांस्कृतिक, सैन्य और सामाजिक में विशेष रूप से दुश्मनों की साज़िशों को विफल करने के प्रयासों की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाह-ए-उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई सहित अन्य विशेषज्ञों ने बार बार इस्लामी ईरान के खिलाफ चल रही साज़िशों की ओर संकेत किया है और दुश्मन की साज़िशों को नाकाम बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।

हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम अलहैदरी ने कहा कि वली ए फक़ीह के प्रति निष्ठा केवल एक नारा नहीं है बल्कि इसे व्यावहारिक जीवन में साबित करना होगा। आज क्रांति के नेता के आदेश अर्थात "जिहाद-ए-तबयीन" पर अमल करना सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है।

उन्होंने आगे कहा कि शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह हर शब ए आशूरा और रोज़-ए-आशूरा पूरी बहादुरी के साथ क्रांति के नेता के प्रति अपनी निष्ठा की पुष्टि करते थे जबकि बैरूत का माहौल क़ुम और तेहरान जैसा स्वतंत्र नहीं है।

 

 

 

 

 

ईरान के मिशगिन शहर के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम बा वक़ार ने कहा है कि महिलाओं की स्थिति और पद को परिभाषित करने में इस्लाम की शुद्ध संस्कृति और पश्चिम की गुमराह सभ्यता के बीच पूर्ण अंतर है, जहां महिला को इस्लाम में आदर्श रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं, जबकि पश्चिमी विचारधारा महिलाओं को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत करती है।

ईरान के मिशगिन के इमाम जुम्मा हुज्जतुल इस्लाम बा वक़ार ने अपने जुमे के खुत्बे में इस्लामी और पश्चिमी सभ्यताओं में महिलाओं की स्थिति के बीच अंतर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस्लाम की विचारधारा में महिला को एक आदर्श व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि पश्चिम में महिला को एक व्यावसायिक वस्तु के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के शहादत दिवस पर संवेदना व्यक्त की और उनके व्यक्तित्व को "पैगंबर और विलायत का प्रतीक" और "इस्लामी शिक्षा का सर्वोच्च उदाहरण" बताया। हुज्जतुल-इस्लाम बा वक़ार ने जोर देकर कहा कि हमें अपने जीवन में फ़ातेमी और अलवी जीवन शैली को अपनाना चाहिए और हजरत ज़हरा (स) की दुआओ में निहित संदेश को समझना चाहिए।

पुस्तक एवं वाचन सप्ताह के अवसर पर पुस्तक पढ़ने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि देश में पुस्तक पढ़ने का चलन कम हो रहा है और लोग सोशल मीडिया पर अधिक समय बिता रहे हैं। उन्होंने पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने और परिवार में पढ़ने की आदत विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

हुज्जतुल इस्लाम बा वक़ार ने अरब में इस्लामिक सम्मेलन में दो-राज्य समाधान प्रस्ताव की आलोचना की और कहा कि फिलिस्तीनी लोगों के नरसंहार पर अरब देशों की चुप्पी दुखद है। उन्होंने कहा कि प्रतिरोध मोर्चा ज़ायोनी सरकार के साथ साजिश को कभी सफल नहीं होने देगा।

उन्होंने अमेरिकी चुनाव और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों की आलोचना की और कहा कि दोनों अमेरिकी पार्टियां विश्व युद्ध के लिए जिम्मेदार हैं और उनके हाथ लाखों निर्दोष लोगों के खून से रंगे हैं।

अंत में, उन्होंने प्रतिरोध मोर्चे को दिए गए समर्थन के लिए ईरान के लोगों को धन्यवाद दिया और इसे इस्लामी भाईचारे का सबसे अच्छा उदाहरण बताया।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने ख़ोज़ा शिया जामा मस्जिद पालागली मुंबई में नमाज़ ए जुमआ का खुतबा देते हुए अय्याम ए फातेमियह की मुनासिबत से ताज़ियत पेश की और कहा कि अय्याम ए फातेमियह तालीमात-ए-अहल-ए-बैत और ख़ास तौर पर फातिमा स.ल की तालीमात पर अमल करने का बेहतरीन मौका है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार ने ख़ोज़ा शिया जामा मस्जिद पालागली मुंबई में नमाज़-ए-जुम्मा का खुतबा देते हुए अय्याम ए फातेमियह की मुनासिबत से ताज़ियत पेश की और कहा कि अय्याम ए फातेमियह तालीमात-ए-अहल-ए-बैत और ख़ास तौर पर फातिमा (अ.स.) की तालीमात पर अमल करने का बेहतरीन मौका है।

मौलाना ने नमाज़ियों को तकवा-ए-इलाही की नसीहत देते हुए कहा कि अमीर-ए-काइनात अली अलैहिस्सलाम की यही सिफारिश और वसीयत है कि तकवा अपनाओ, यक़ीनन दुनिया और आख़िरत की कामयाबी तकवा अपनाने में है। तकवा अपनाने के लिए कोई ख़ास वक्त या समय नहीं बताया गया है, इंसान को हमेशा तकवा अपनाने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन जब ख़ास दिन आते हैं, ख़ास तारीखें आती हैं, तो उस समय ज्यादा मौका मिलता है कि इंसान अपने आप को संवारें, बनाएँ। अय्याम ए फातेमियह सबसे बेहतरीन मौका है कि हम तालीमात-ए-अहल-ए-बैत विशेष रूप से सैयदा आलमियान (अ.स.) की तालीमात पर अमल कर के अपने आप को मुत्तकी और परहेज़गार बनाएं।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने खुतबा-ए-फदक की अहमियत को बयान करते हुए कहा कि अय्याम ए फातेमियह में ख़ास तौर पर शहज़ादी के पैग़ाम को पढ़ें, सुनें, उस पर गौर-ओ-फिक्र करें और उस पर अमल करें। एक बेहतरीन पैग़ाम उनका खुतबा-ए-फदक है, जिसमें आपने विभिन्न मुद्दों को बयान किया है।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार ने कहा कि अइम्मा-ए-मासूमीन अलैहिस्सलाम की हदीसों में यह बयान किया गया है कि अगर इंसान को दुनिया और आख़िरत दोनों की कामयाबी चाहिए, तो उस पर ज़रूरी है कि वह कुछ बातों का ख़्याल रखे। इन में से एक अहम बात यह है कि तुम्हारी नजात के लिए यह काफ़ी है कि तुम जन्नत में ही जाओगे अगर इस पर अमल करोगे तो कभी भी जहन्नम में नहीं जाओगे। इसमें से एक चीज़ का नाम है अल्लाह की माअरिफत (जानकारी)। जिस ने अल्लाह की माअरिफत हासिल की उसकी इबादत की उसे पहचाना, वह कामयाब हुआ।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने खुतबा-ए-फदक के फकरे "मैं ख़ुदा की नेमतों पर उसकी हम्द करती हूं और उसके इल्हाम पर शुक्र करती हूं, उसकी बेहिसाब नेमतों पर उसकी हम्द-ओ-तन्हा बजा लाती हूं, जो नेमतें हैं जिनकी कोई इंतिहा नहीं और जिनकी तलाफ़ी और तदारुक नहीं किया जा सकता को बयान करते हुए हम्द, मदीह और शुक्र की वज़ाहत की।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रज़वी ने खुतबा-ए-फदक के फकरे "मैं गवाह देती हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और उसका कोई शरीक नहीं। क़लिमे-ए-तौहीद वह क़लिमा है जिसे इखलास की तौहील की गई है" को बयान करते हुए कहा कि तौहीद हमारे अमल की क़बूलियत की शर्त है, तौहीद हमारे लिए दारोमदार है और इसी तौहीद का दरस इस खुतबे में दिया जा रहा है।

लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हमारे अमल में इखलास पाया जाए। यहाँ पर सिर्फ़ तौहीद ज़बान से इक़रार करने की चीज़ नहीं है, क्योंकि तौहीद को ख़ुदा ने  किला क़रार दिया है, जिसे इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने हदीस-ए-सिल्सिलतुल ज़हब में बयान किया है। शहज़ादी ने इस खुतबे में जो तौहीद का दरस दिया है, वह सिर्फ़ तौहीद-ए-नज़री नहीं, बल्कि तौहीद-ए-अमली भी है।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने दुश्मन-शिनासी पर ज़ोर देते हुए खुतबा-ए-फदक की रोशनी में शैतानी हतकंडों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि शैतान दिलों में कीना पैदा करता है, याद-ए-ख़ुदा से ग़ाफ़िल करता है, इंसान के गुनाहों का बहाना पेश करता है, झूठा वादा करता है, घमंड और तकब्बुर का वादा करता है, अरमानों और ख्वाहिशों में इज़ाफा करता है, आपस में इख़तलाफ़ और झगड़े करवाता है।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने दूसरे खुतबे में तकवा-ए-इलाही और तालीमात-ए-इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के हसूल और अमल की नसीहत देते हुए फरमाया कि चुनाव का दौर है, दीन ने हमें सियासत से दूर रहने का हुक्म नहीं दिया है, यह और बात है कि अगर बातिल सियासत हो, इस्लाह नहीं कर सकते तो हमें एहतियात करना चाहिए, लेकिन जहां पर खुद मुल्क का दावा यह है कि चुनाव हमारे मुल्क को तरक्की देता है तो यहाँ हमारी ज़िम्मेदारी है कि सबसे पहला फ़र्ज़ हम सबका यह है कि चुनाव में हिस्सा लें, वोट डालें, यह आपका काम इबादत के तौर पर गिना जाएगा, नतीजा ख़ुदा के हाथ में है, लेकिन सबसे पहली ज़िम्मेदारी यह है कि हम इस चुनाव में हिस्सा लें, वोट डालें।

आख़िर में मौलाना सैयद रूह ज़फ़र रज़वी ने आलमी मंजर-नामे की तरफ इशारा करते हुए आलम-ए-इस्लाम की मुश्किलात को बयान किया और फरमाया कि हमें दुनिया के हालात से ग़ाफ़िल नहीं होना चाहिए।

 

 

 

 

 

ईरान के मध्य प्रांत के हौज़ा इल्मिया के शिक्षक ने कहा कि अय्याम अज़ा ए फ़ातमिया (स) अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं, विशेष रूप से हज़रत ज़हरा (स) की शिक्षाओं का प्रचार करने का सबसे अच्छा अवसर है।

"अराक ईरान में प्रचारकों की आज की शिक्षाओं के बारे में जागरूकता" शीर्षक वाली बैठक हौज़ा के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम अब्दुल्लाही की उपस्थिति में आयोजित की गई, जिसमें छात्रों और शिक्षकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

हुज्जतुल-इस्लाम अब्दुल्लाही ने यौम-ए-उल-हुसरा के नाम की ओर इशारा किया और कहा कि पुनरुत्थान के दिन उन लोगों को गहरा अफसोस होगा जिन्होंने अहले-बैत (अ) के संबंध में अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कीं।

यह कहते हुए कि अय्याम फ़ातिमा (स) अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं, विशेष रूप से हज़रत ज़हरा (स) की शिक्षाओं का प्रचार करने का सबसे अच्छा अवसर है, उन्होंने कहा कि हमारी पहली ज़िम्मेदारी, हज़रत ज़हरा (स) हैं। ) अल्लाह के बारे में उनका ज्ञान चार तरीकों से प्राप्त किया जाता है और इसे दूसरों तक पहुंचाया जा सकता है।

अराक प्रातं के हौज़ा इल्मिया के शिक्षक ने कहा कि पहला ज्ञान कुरान की आयतों और अहले-बैत (अ) से संबंधित आयतों पर विचार करने से प्राप्त होता है, इन आयतों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हज़रत ज़हरा (स) की महिमा का बयान किया गया है।

उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के दूसरे तरीके को विश्वसनीय रिवायतो को बताया और कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा के ज्ञान का तीसरा तरीका उनसे संबंधित शोध है और चौथा तरीका स्वयं छात्रों के इतिहास से शोध है।

हुज्जतुल-इस्लाम अब्दुल्लाही ने कहा कि हमारी दूसरी जिम्मेदारी अहले-बैत (अ) से प्यार करना है, उनके नाम पर अपने बच्चों का नाम रखना, अहले-बैत और फातिमा (स) की सभाओं में भाग लेना है।

हौज़ा के शिक्षक अब्दुल्लाही ने अहले-बैत (अ) के समर्थन और आज्ञाकारिता के उदाहरणों का वर्णन करते हुए कहा कि हमारी तीसरी जिम्मेदारी अहले-बैत (अ) का पालन करना है और आखिरी जिम्मेदारी है उनका समर्थन करना है।

 

 

 

 

 

शुक्रवार, 15 नवम्बर 2024 14:37

हज़रत मोहसिन की शहादत

शिया और सुन्नी स्रोतों में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि हज़रत मोहसिन इमाम अली (अ.) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की संतान थे जो दूसरे ख़लीफ़ा उमर या क़ुनफ़ुज़ द्वारा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) को दरवाज़े और दीवार की बीच दबा दिए जाने के कारण शहीद हो गए थे। (1) यहां पर इस नुक्ते पर ध्यान देना आवश्यक है कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) के घर का घेराव और उन पर हमला चाहे जिसके द्वारा भी किया गया हो लेकिन इस कार्य के करने वालों का उस समय की सत्ता से संबंध अवश्य था।

हम आपके सामने नमूने के तौर पर शिया और सुन्नी पुस्तकों से कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ पेश कर रहे हैं ताकि पढ़ने वालों को इस घटनाक्रम और इसमें लिप्त लोगों के बारे में फैसला करने में आसानी हो सके।

शिया स्रोत

आगे जो भी रिवायतें बयान की जाएंगी उनसे पता चलता है कि हज़रत मोहसिन फ़ातेमा ज़हरा (स.) की औलाद थे जिनके शहीद कर दिया गया था।

  1. अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः अगर तुम्हारे सिक़्त (पेट में मर जाने वाले) होने वाले बच्चे तुम को क़यामत में देखें जब कि तुमने उनका कोई नाम न रखा हो तो सिक़्त हुआ बच्चा अपने पिता से कहेगाः मेरा कोई नाम क्यों नहीं रखा जब कि पैग़म्बर (स.) ने मोहसिन का नाम पैदा होने से पहले ही रख दिया था। (2)
  2. पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमायाः ... फ़ातेमा ज़हरा (स) को मारा जाएगा जब कि वह गर्भवती होगी, इस मार से उसका बेटा पेट में मर जाएगा और वह ख़ुद भी उसी मार के कारण इन दुनिया से चली जाएंगी। (3)
  3. स्वर्गीय तबरेसी कहते हैः अबूबक्र ने क़ुनफ़ुज़ को आदेश दिया कि फ़ातेमा को मारो, इस आदेश के साथ ही शोर शराबा बढ़ गया और उन (फ़ातेमा) को अली से दूर कर दिया गया और क़ुनफ़ुज़ सामने आया उसने पूरी संगदिली और बर्बरता के साथ पैग़म्बर की बेटी को दरवाज़े और दीवार के बीच पीस दिया, उसका यह कार्य इतना तेज़ था कि उनका पहलू टूट गया और उनका बच्चा पेट में ही सिक़्त हो गया। (4)

सुन्नी स्रोत

  1. इब्राहीम बिन सय्यार नेज़ाम मअतज़ेली ने बहुत सी किताबों में फ़ातेमा ज़हरा (स) के घर पर लोगों के आने के बाद की घटनाओं के बारे में लिखा है। वह कहता हैः अबूबक्र के लिए बैअत लिए जाने के दिन उमर ने फ़ातेमा ज़हरा (स.) के पेट पर मारा जिसकी वजह से उनका बेटा जिसका नाम उन्होंने मोहसिन रखा था सिक्त हो गया। (5)
  2. अहमद बिन मोहम्मद जो इब्ने अभी दारम के नाम से प्रसिद्ध हैं और जिनको मोहद्दिस कूफ़ी कहा जाता है (357 निधन) जिनके बारे में मोहम्मद बिन अहमद बिन हम्माद कूफ़ी कहते हैं: “वह अपने पूरे जीवनकाल में केवल सही रास्ते पर चले” कहते हैं: मेरे सामने यह ख़बर दी गई किः उमर ने फ़ातेमा को लात मारी और उनका बेटा मोहसिन उनके पेट में सिक़्त हो गया। (6)
  3. इब्ने सअद अपनी पुस्तक तबक़ात और बलाज़री अनसाबुल अशराफ़ में लिखते हैं: वह संताने जिनकी माँ पैग़म्बर की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) हैं उनके नाम यह हैं: हसन, हुसैन मोहसिन, ज़ैनब कुबरा, उम्मे कुलसूम। और मोहसिन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) के घर पर हमले वाली घटना में सिक़्त हो गए।

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  1. अलमग़ाज़ी, इब्ने अभी शैबा जिल्द 8, पेज 572
शुक्रवार, 15 नवम्बर 2024 14:36

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का मरसिया

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा पर दुखों के पहाड़ कब से टूटना आरम्भ हुए इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि जैसे ही पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संसार से अपनी आखें मूंदी, मुसीबतें आना आरम्भ हो गईं, और इन मुसीबतों का सिलसिला एक के बाद एक बढ़ता ही चला गया।

इतिहासकारों ने लिखा है कि पैग़म्बर की शहादत के बाद तीन दिन तक उनका जनाज़ा रखा रहा और मुसलमान सक़ीफ़ा नबी साएदा में अबूबक्र की ख़िलाफ़त में व्यस्त रहे, और यह केवल अली और उनके कुछ साथी ही थे जिन्होंने पैग़म्बर को दफ़्न किया।

आपके दफ़्न के बाद कुछ लोग हज़रते ज़हरा के पास आए और आपके सामने पैग़म्बर की वफ़ात पर शोक व्यक्त किया तो आपने फ़रमायाः कैसे तुम्हारे दिलों ने यह गवारा किया कि उनके पवित्र शरीर को दफ़्न कर दो? जब्कि वह नबी रहमत और لولاك لما خلقت الافلاك के मिस्दाक़ थे।

लोगों ने कहाः हे पैग़म्बर की बेटी हमें भी दुख हैं लेकिन ईश्वर की मर्ज़ी के आगे किसकी चलती है, यही वह समय था कि जब फ़ातेमा ने चीख़ मारी और पैग़म्बर की क़ब्र पर आईं और उसकी मिट्टी को उठाकर अपनी आँखों पर मली और आप बेताबी के साथ रोती जाती थी और आपकी क़ब्र के पास आपने इस प्रकार मरसिया पढ़ा।

قل للمغيّب تحت اثواب الثري

ان كنت تسمع صرختي و ندائيا

صبت علي مصائب لو انها

صبت علي الايام صرن لياليا

قد كنت ذات حميً بظلّ محمد

لا اخش من ضيم و كان حماليا

فاليوم اخضع للذليل و اتّقي

ضيمي و ادفع ظالمي بردائيا

فاذا بكت قمريّة في ليلها

شجنا علي غصن بكيت صباحيا

فلاجعلنّ الحزن بعدك مونسي

ولا جعلن الدمع فيك و شاحيا

अनुवादः जिसने अहमद (स) की पवित्र क़ब्र की ख़ुश्बू को सूंघा हैं उसको इत्र सूंघने की आवश्यकता नहीं है, मुझ पर वह मसाएब ढाए गए कि अगर दिनों पर पड़ते तो वह रात की तरह अंधेरे हो जाते, कह दो उससे जो मिट्टी के कपड़ों के नीचे छिप गया है, अगर होते तो मेरी फ़रियाद और नाले को सुनते, मैं मोहम्मद (स) के साये में समर्थित थी, और आपके परचम के नीचे मुझे किसी भी ज़ुल्म का डर नहीं था, लेकिन आज मैं तुच्छ लोगों से पामाल हो गई और मैं डरती हूं उस अत्याचार से जो मुझपर हो रहे हैं, और मैं अपनी चादर से ख़ुद की सुरक्षा कर रही हूं, और जिस प्रकार अंधेरी रात में चांद शाखाओं पर रोता है मैं भी ग़म के साथ सुबह और शाम रोती हूं, हे पिता आपके बाद मेरा हमदम मेरा ग़म है, यानी ग़म और दुखों को मैं आपके बाद आपना हमदम बना लिया है, और आपकी जुदाई में आसुओं को मैंने अपने गले की माला बना लिया है।