رضوی

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अमेरिकी अधिकारियों के दावों के बावजूद इस्लामी गणतंत्र ईरान ने बारमबार दावा किया है कि कोई कारण नहीं है कि तेहरान अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप करे क्योंकि अमेरिका में चुनाव इस देश का आंतरिक मामला है।

ट्रंप के चुनावी प्रवक्ता ने ईरान के ख़िलाफ़ दावा किया कि ईरान से संबंधित हैकरों ने जून महीने में एक वरिष्ठ अधिकारी के एकाउंट से अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनावों में घुसपैठ करने की कोशिश की।

ईरानी समाचार पत्र क़ुद्स ने लिखा कि steven chong ने किसी प्रकार के प्रमाण के बिना दावा किया परंतु अमेरिका की फ़ेडरल जांच एजेन्सी एफ़बीआई ने एलान किया है कि अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप के संबंध में डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी कंपेन ने जो दावा किया है उसके बारे में जांच की जा रही है।

इसी संबंध में राष्ट्रसंघ में इस्लामी गणतंत्र ईरान के राजदूत ने अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप पर आधारित डोनाल्ड ट्रंप के दावों को रद्द कर दिया और बल देकर कहा है कि कोई लक्ष्य व कारण नहीं है कि ईरानी सरकार अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति के चुनावों में हस्तक्षेप करे।

इससे पहले अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी की ओर से चलाये जा रहे कंपेन्स की ओर से यह दावा किया गया था कि तेहरान अमेरिका में राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनावों में नकारात्मक प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है। इसी प्रकार ट्रंप के चुनावी आयोग की ओर से ईरान पर हैक करने और कुछ पेपरों की चोरी का आरोप लगाया था।

चुनाव में जीत हासिल करने के लिए ट्रंप का पुराना हथकंडा 

अमेरिकी मामलों के जानकार व विशेषज्ञ अमीर अली अबूल फ़त्ह ने समाचार पत्र क़ुद्स से वार्ता में अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप पर आधारित ट्रंप के चुनावी आयोग के दावे की ओर संकेत करते हुए कहा कि अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव का समय निकट है और इस देश में संचार माध्यमों की सरगर्मियों को ध्यान में रखते हुए ट्रंप की कोशिश है कि वह चुनावी दावं व चाल का प्रयोग करके अमेरिकी समाज को ऐसी तरफ़ ले जाना चाहते हैं कि दुनिया की सतह पर अपने को पेश करने के अलावा बाइडेन सरकार के सुरक्षा तंत्रों विशेषकर अमेरिका की फ़ेडरल पुलिस एफ़बीआई की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगा सकें।

अबूल फ़त्ह कहते हैं कि यह वही चाल है जिसका प्रयोग ट्रंप ने वर्ष 2016 में अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनावों में इस्तेमाल किया था और दावा किया था कि रूस ने अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप किया है। वास्तव में वह इंटरनेश्नल पैमाने पर चर्चित ईरान, रूस और चीन जैसे देशों का नाम लेकर अधिक से अधिक मत हासिल करने की चेष्टा में हैं। ट्रंप के चुनावी आयोग ने पेपरों को हैक करने के संबंध में जो दावा किया है वह ट्रंप का जाना पहचाना दावं है और उसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिये।

उन्होंने कहा कि ट्रंप के चुनावी प्रवक्ता steven chong के दावे के साथ राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने एलान किया है कि यह दावा निराधार आरोप के सिवा कुछ और नहीं है बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में तेहरान के हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है कि वह किसी उम्मीदवार के हित में या उसके ख़िलाफ़ हस्तक्षेप करे। साथ ही ईरानी राजदूत ने अमेरिका की फ़ेडरल पुलिस से मांग की है कि वह तेहरान के हस्तक्षेप पर आधारित सुबूतों को पेश करे ताकि उसका उचित जवाब दिया जा सके। यह ऐसी स्थिति में है जब अभी तक अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप पर आधारित ट्रंप के चुनावी आयोग की ओर की ओर से कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया है।

अमेरिकी मामलों के विशेषज्ञ बल देकर कहते हैं कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के पास दुनिया में साइबर क्षमता व ताक़त है और अमेरिका के सुरक्षा तंत्रों की घोषणा के आधार पर इंटरनेश्नल पैमाने पर ईरान को साइबर शक्ति समझा जाता है। इसी प्रकार अमेरिकी मामलों के विशेषज्ञ कहते हैं कि साइबर क्षेत्र में ईरान के पास ताक़त होने के बावजूद वह अमेरिका में होने वाले चुनाव में किसी प्रकार का हस्तेक्षप नहीं कर रहा है जबकि अमेरिका ने दुनिया के 80 से अधिक स्वतंत्र व स्वाधीन देशों में विद्रोह कराने और वहां की सरकारों को गिराने में परोक्ष और अपरोक्ष भूमिका निभाई है और आज अमेरिका पर विश्व के विभिन्न देशों में होने वाले चुनावों में हस्तक्षेप का भी आरोप है और इस्लामी गणतंत्र ईरान जैसे देशों पर अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप पर आधारित आरोप निराधार आरोप से अधिक कुछ और नहीं है।

शुक्रवार, 23 अगस्त 2024 15:29

सियाहपोस्त गुलाम “जौन”

जौन बिन हुवैइ बिन क़तादा बिन आअवर बिन साअदा बिन औफ़ बिन कअब बिन हवी (1), कर्बला के बूढ़े शहीदों मे से थे। आप अबूज़र ग़फ़्फ़ारी और इमाम हुसैन (अ) के दास थे। आप अबूज़र ग़फ़्फ़ारी के दास होने से पहले फ़ज़्ल बिन अब्बास बिन मुत्तलिब के दास थे लेकिन इमाम अली (अ) ने आपको फज़्ल से 150 दीनार में ख़रीद के अबूज़र को दे दिया ताकि आप अबूज़र की सेवा करें, जब उस्मान ने पैग़म्बर के सहाबी अबूज़र को मदीने से मबज़ा निर्वासित कर दिया तो हज़रत जौन भी आपके साथ रबज़ा चले गए और सन 32 हिजरी में अबूज़र के निधन के बाद आप वापस मदीने आए और इमाम अली (अ) के घर में दोबारा रहने लगे और उसके बाद सदैव इस ख़ानदान के सेवक बन के रहे, पहले इमाम अली (अ) की सेवा की फ़िर इमाम हसन के ग़ुलाम रहे उसके बाद इमाम हुसैन और अंत में इमाम सज्जाद (अ) की दासता का सम्मान आपको नसीब हुआ।

कर्बला में उपस्थिति

सन साठ हिजरी में जब इमाम हुसैन ने मदीने से मक्के की तरफ़ अपनी यात्रा आरम्भ की तो जौन भी आपके साथ साथ मक्के आ गए और फिर आपने अपने आक़ा इमाम हुसैन के साथ मक्के से कर्बला तक का सफ़र किया और शत्रुओं के साथ जंग में अपने ख़ून की अंतिम बूंद तक अपने इमाम की सुरक्षा की।(2)

बहुत से इतिहासकारों और रेजाल के ज्ञाताओं ने अपनी पुस्कों में हज़रत जौन के बारे में इस प्रकार लिखा हैः

चूँकि यह दास हथियारों का अच्छा जानकार और हथियार एवं युद्ध अस्त्रों को बनाने में माहिर था इसलिये, आशूरा की रात को इमाम हुसैन (अ) के विशेष ख़ैमे में केवल यह जौन ही थे जो इमाम के पास थे और तलवारों को सही कर रहे थे और उनकी धार तेज़ कर रहे थे। (3)

इमाम सज्जाद (अ) से मिलता है किः जौन मेरे पिता के ख़ैमे में तलवारों पर धार रख रहे थे और मेरे पिता यह शेर पढ़ रहे थेः

یا دهر اف لک من خلیل، کم لک بالاشراق و الاصیل...

हे ज़माने वाय हो तुझ पर कि हर सुबह और शाम मेरे एक दोस्त को मुझसे छीन लेता है.... (4)

जंग की अनुमति मांगना

आशूर के दिन जौन ने ज़ोहर की नमाज़ इमाम के साथ पढ़ी लेकिन उसके बाद जब इस बूढ़े ग़ुलाम ने मौला के साथियों को एक के बाद एक मैदान में जाकर अपनी जान क़ुरबान करते देखा तो एक बार यह बूढ़ा दास अपनी कमर को थामे हुए इमाम हुसैन (अ) के पास आता है और आपने युद्ध की अनुमति मांगता है।

इमाम ने फ़रमायाः یا جون، انت فی اذن منی، فانما تبعتنا طلبا للعافیة فلا تبتل بطریقتنا

 

हे जौर तुम तो हमसे आराम और सुकून के लिये मिले थे और हमारे अनुयायी हुए थे तो अपने आप को हमारी मुसीबत में न डालो।

जब जौन ने यह सुना तो अपने आप को इमाम के पैरों पर गिरा दिया और कहाः मैं सुकून के दिनों में आपकी क्षत्रछाया में आराम के साथ था, यह कहां का इंसाफ़ है कि अब जब आपकी मुसीबतों के दिन आरम्भ हुए हैं मैं आपको अकेला छोड़ दूँ और यहां से चला जाऊँ,

लेकिन इसके  बाद भी इमाम हुसैन (अ) ने जौन को मैदान में जाने की आज्ञा नहीं दी तो जौन ने एक जुम्ला कहाः हे मेरे आक़ा यह सही है कि मेरे बदन के ख़ून से बदबू आती है, मेरा स्थान छोटा है, मेरा रंग काला है लेकिन क्या आप मुझे स्वर्ग में जाने से रोक देंगे? मेरे लिये दुआ कीजिये... ख़ुदा की क़सम मैं आपसे अलग नहीं होऊँगा यहां तक की अपने काले ख़ून को आपके ख़ून से लिया दूँ।

हज़रत जौन का सिंहनाद

उसके बाद जौन को मैदान में जाने की अनुमति मिलती है आप मैदान में आते हैं और इस प्रकार सिंहनाद करते हैः

 کَیْفَ یَریَ الْفجَّارُ ضَرْبَ الأَسْوَدِ • بِالْمُشْرِفِی الْقاطِعِ الْمُهَنَّدِ

 

بِالسَّیْفِ صَلْتاً عَنْ بَنی مُحَمَّدٍ • أَذُبُّ عَنْهُمْ بِاللِّسانِ وَالْیَدِ  (5)

أَرْجُو بِذاکَ الْفَوْزَ عِنْدَ الْمَوْرِدِمِنَ الالهِ الْواحِدِ الْمُوَحَّدِ (6)

कैसा देखते हैं पापी हिन्दुस्तानी तलवार की मार को एक काले ग़ुलाम के हाथों

में अपने हाथ और ज़बान से पैग़म्बर (स) के बेटों की सुरक्षा करूँगा

ईश्वर के नज़दीक एकमात्र शिफ़ाअत करने वाले से शिफ़ाअत की आशा लगाये हूँ।

शहादत

इतिहासकारों के कथानुसार आपने 25 यजीदियों (7) और मक़तले अबी मख़निफ़ के अनुसार आपने 70 यज़ीदियों को नर्क भेजा और कुछ को घायल कर दिया, लेकिन चूँकि जौन भी तीन दिन से भूखे प्यासे थे और ऊपर से उनकी आयु भी अधिक हो चुकी थी इसलिये थकन आप पर हावी होने लगी और इसी बीच एक मलऊन ने आप पर तलवार से हमला कर दिया तलवार आपके सर पर लगी और आप घोड़े से नीचे गिर पड़े अपने आक़ा को आवाज़ दी, इमाम हुसैन दौड़ते हुए जौन के पास पहुँचे और जौन के सर को अपने ज़ानू पर रख लिया और इमाम को याद आया कि जौन के किस प्रकार अपने काले रंग और बदबू का ख़्याल था एक बार हुसैन ने आसमान की तरफ़ हाथों को प्रार्थना के लिये उठाया और फ़रमायाः

हे ईश्वर उनके चेहरो को सफ़ेद कर दे औऱ उसकी बू को ख़ुशबू में बदल दे और उनके अच्छों के साथ महशूर कर और उसके और मोहम्मद व आले मोहम्मद के बीच दूर न पैदा कर।

इमाम बाक़िर (अ) से रिवायत है किः आशूर के बाद लोग शहीदों की लाशों को जब दफ़नाने के लिये आये तो दस दिन के बाद जौन की लाश उनको मिली और उस समय भी आप से मृगमद की ख़ुशबू आ रही थी। (8)

ज़ियारत

इमामे ज़माना (अ) से मंसूब जियारते नाहिया में हज़रत जौन को इस प्रकार याद किया गया है और समय का इमाम हुसैन पर अपनी जान निछावर कर देने वाले दास पर इन शब्दों में ज़ियारत पढ़ रहा हैः

السَّلامُ عَلی جُونِ بْنِ حَرِیّ مَوْلی ابی ذَرِ الْغَفّارِیِّ (9)

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  1. तंक़ीहुल मक़ाल, जिल्द 1 पेज 238
  2. रेजाले शेख़ तूसी, पेज 99
  3. तारीख़े तबरी, जिल्द 5, पेज 420
  4. फ़रहंगे आशूरा
  5. मनाक़िब इबने शहर आशोब, जिल्द 3, पेज 252
  6. बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 23
  7. मक़तलुल हुसैन (अ) मक़रम, पेज 252
  8. नफ़सुल महमूम, पेज 264
  9. बिहारुल अनवार जिल्द 45. पेज 71

तौहीद का अक़ीदा सिर्फ़ मुसलमानों के ज़हन व फ़िक्र पर असर अंदाज़ नही होता बल्कि यह अक़ीदा उसके तमाम हालात शरायत और पहलुओं पर असर डालता है। ख़ुदा कौन है? कैसा है? और उसकी मारेफ़त व शिनाख्त एक मुसलमान की फ़रदी और इज्तेमाई और ज़िन्दगी में उसके मौक़िफ़ इख़्तेयार करने पर क्या असर डालती है? इन तमाम अक़ायद का असर और नक़्श मुसलमान की ज़िन्दगी में मुशाहेदा किया जा सकता है।

हर इंसान पर लाज़िम है कि उस ख़ुदा पर अक़ीदा रखे जो सच्चा है और सच बोलता है अपने दावों की मुख़ालेफ़त नही करता है जिसकी इताअत फ़र्ज़ है और जिसकी नाराज़गी जहन्नमी होने का मुजिब बनती है। हर हाल में इंसान के लिये हाज़िर व नाज़िर है, इंसान का छोटे से छोटा काम भी उसे इल्म व बसीरत से पोशीदा नही है... यह सब अक़ायद जब यक़ीन के साथ जलवा गर होते हैं तो एक इंसान की ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा मुवस्सिर उन्सुर बन जाते हैं। तौहीद की मतलब सिर्फ़ एक नज़रिया और तसव्वुर नही है बल्कि अमली मैदान में इताअत में तौहीद और इबादत में तौहीद भी उसी के जलवे और आसार शुमार होते हैं। इमाम हुसैन (अ) पहले ही से अपने शहादत का इल्म रखते थे और उसके ज़ुज़ियात तक को जानते थे। पैग़म्बर (स) ने भी शहादते हुसैन (अ) की पेशिनगोई की थी लेकिन इस इल्म और पेशिनगोई ने इमाम के इंके़लाबी क़दम में कोई मामूली सा असर भी नही डाला और मैदाने जेहाद व शहादत में क़दम रखने से आपको क़दमों में ज़रा भी सुस्ती और शक व तरदीद ईजाद नही किया बल्कि उसकी वजह से इमाम के शौक़े शहादत में इज़ाफ़ा हुआ, इमाम (अ) उसी ईमान और एतेक़ाद के साथ करबला आये और जिहाद किया और आशिक़ाना अंदाज़ में ख़ुदा के दीदार के लिये आगे बढ़े जैसा कि इमाम से मशहूर अशआर में आया है:

ترکت الخلق طرا فی ھواک و ایتمت العیال لکی اراک

कई मौक़े पर आपके असहाब और रिश्तेदारों ने ख़ैर ख़्वाही और दिलसोज़ी के जज़्बे के तहत आपको करबला और कूफ़े जाने से रोका और कूफ़ियों की बेवफ़ाई और आपके वालिद और बरादर की मजलूमीयत और तंहाई को याद दिलाया। अगरचे यह सब चीज़ें अपनी जगह एक मामूली इंसान के दिल शक व तरदीद ईजाद करने के लिये काफ़ी हैं लेकिन इमाम हुसैन (अ) रौशन अक़ीदा, मोहकम ईमान और अपने अक़दाम व इंतेख़ाब के ख़ुदाई होने के यक़ीन की वजह से नाउम्मीदी और शक पैदा करने वाले अवामिल के मुक़ाबले में खड़े हुए और कज़ाए इलाही और मशीयते परवरदिगार को हर चीज़ पर मुक़द्दम समझते थे, जब इब्ने अब्बास ने आप से दरख़्वास्त की कि इरा़क जाने के बजाए किसी दूसरी जगह जायें और बनी उमय्या से टक्कर न लें तो इमाम हुसैन (अ) ने बनी उमय्या के मक़ासिद और इरादों की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाया انی ماض فی امر رسول اللہ صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم و حیث امرنا و انا الیہ راجعون

और यूँ आपने रसूलल्लाह (स) के फ़रमूदात की पैरवी और ख़ुदा के जवारे रहमत की तरफ़ बाज़गश्त की जानिब अपने मुसम्मम इरादे का इज़हार किया, इस लिये कि आपने रास्ते की हक्क़ानियत का यक़ीन, दुश्मन के बातिल होने का यक़ीन, क़यामत व हिसाब के बरहक़ होने का यक़ीन, मौत के हतमी और ख़ुदा से मुलाक़ात का यक़ीन, इन तमाम चीज़ों के सिलसिले में इमाम और आपके असहाब के दिलों में आला दर्जे का यक़ीन था और यही यक़ीन उनको पायदारी, अमल की क़ैफ़ियत और राहे के इंतेख़ाब में साबित क़दमी की रहनुमाई करता था।

 

कलेम ए इसतिरजा (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहे राजेऊन) किसी इंसान के मरने या शहीद होने के मौक़े पर कहने के अलावा इमाम हुसैन (अ) मंतिक़ में कायनात की एक बुलंद हिकमत को याद दिलाने वाला है और वह हिकमत यह है कि कायनात का आग़ाज़ व अँजाम सब ख़ुदा की तरफ़ से है। आपने करबला पहुचने तक बारहा इस कलेमे को दोहराया ताकि यह अक़ीदा इरादों और अमल में सम्त व जहत देने का सबब बने।

 

आपने मक़ामे सालबिया पर मुस्लिम और हानी की खबरे शहादत सुनने के बाद मुकर्रर इन कलेमात को दोहराया और फिर उसी मक़ाम पर ख़्वाब देखा कि एक सवार यह कह रहा है कि यह कारवान तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और मौत भी तेज़ी के साथ उनकी तरफ़ बढ़ रही है, जब आप बेदार हुए तो ख़्वाब का माजरा अली अकबर को सुनाया तो उन्होने आप से पूछा वालिदे गिरामी क्या हम लोग हक़ पर नही हैं? आपने जवाब दिया क़सम उस ख़ुदा की जिसकी तरफ़ सबकी बाज़गश्त है हाँ हम हक़ पर हैं फिर अली अकबर ने कहा: तब इस हालत में मौत से क्या डरना है? आपने भी अपने बेटे के हक़ में दुआ की। (1)

 

तूले सफ़र में ख़ुदा की तरफ़ बाज़गश्त के अक़ीदे को बार बार बयान करने का मक़सद यह था कि अपने हमराह असहाब और अहले ख़ाना को एक बड़ी क़ुरबानी व फ़िदाकारी के लिये तैयार करें, इस लिये कि पाक व रौशन अक़ायद के बग़ैर एक मुजाहिद हक़ के देफ़ाअ में आख़िर तक साबित क़दम और पायदार नही रह सकता है।

करबला वालों को अपनी राह और अपने हदफ़ की भी शिनाख़्त थी और इस बात का भी यक़ीन था कि इस मरहले में जिहाद व शहादत उनका वज़ीफ़ा है और यही इस्लाम के नफ़अ में है उनको ख़ुदा और आख़िरत का भी यक़ीन था और यही यक़ीन उनको एक ऐसे मैदान की तरफ़ ले जा रहा था जहाँ उनको जान देनी थी और क़ुरबान होना था जब बिन अब्दुल्लाह दूसरी मरतबा मैदाने करबला की तरफ़ निकले तो अपने रज्ज़ में अपना तआरुफ़ कराया कि मैं ख़ुदा पर ईमान लाने वाला और उस पर यक़ीन रखने वाला हूँ। (2)

मदद और नुसरत में तौहीद और फक़त ख़ुदा पर ऐतेमाद करना, अक़ीदे के अमल पर तासीर का एक नमूना है और इमाम (अ) की तंहा तकियागाह ज़ाते किर्दगार थी न लोगों के ख़ुतूत, न उनकी हिमायत का ऐलान और न उनकी तरफ़ आपके हक़ में दिये जाने वाले नारे, जब सिपाहे हुर ने आपके काफ़ले का रास्ता रोका तो आपने एक ख़ुतबे के ज़िम्न में अपने क़याम, यज़ीद की बैअत से इंकार, कूफ़ियों के ख़ुतूत का ज़िक्र किया और आख़िर में गिला करते हुए फ़रमाया मेरी तकिया गाह ख़ुदा है वह मुझे तुम लोगों से बेनियाज़ करता है। सयुग़निल्लाहो अनकुम (3) आगे चलते हुए जब अब्दुल्लाह मशरिकी से मुलाक़ात की और उसने कूफ़े के हालात बयान करते हुए फ़रमाया कि लोग आपके ख़िलाफ़ जंग करने के लिये जमा हुए हैं तो आपने जवाब में फ़रमाया: हसबियलल्लाहो व नेअमल वकील (4)

आशूर की सुबह जब सिपाहे यज़ीद ने इमाम (अ) के ख़ैमों की तरफ़ हमला शुरु किया तो उस वक़्त भी आप के हाथ आसमान की तरफ़ बुलंद थे और ख़ुदा से मुनाजात करते हुए फ़रमा रहे थे: ख़ुदाया, हर सख़्ती और मुश्किल में मेरी उम्मीद, मेरी तकिया गाह तू ही है, ख़ुदाया, जो भी हादेसा मेरे साथ पेश आता है उसमें मेरा सहारा तू ही होता है। ख़ुदाया, कितनी सख़्तियों और मुश्किलात में तेरी दरगाह की तरफ़ रुजू किया और तेरी तरफ़ हाथ बुलंद किये तो तूने उन मुश्किलात को दूर किया। (5)

इमाम (अ) की यह हालत और यह जज़्बा आपके क़यामत और नुसरते इलाही पर दिली ऐतेक़ाद का ज़ाहिरी जलवा है और साथ ही दुआ व तलब में तौहीद के मफ़हूम को समझाता है।

दीनी तालीमात का असली हदफ़ भी लोगों को ख़ुदा से नज़दीक करता है चुँनाचे यह मतलब शोहदा ए करबला के ज़ियारत नामों में ख़ास कर ज़ियारते इमाम हुसैन (अ) में भी बयान हुआ है। अगर ज़ियारत के आदाब को देखा जाये तो उनका फ़लसफ़ा भी ख़ुदा का तक़र्रुब ही है जो कि ऐने तौहीद है इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत में ख़ुदा से मुताख़ब हो के हम यूँ कहते हैं कि ख़ुदाया, कोई इंसान किसी मख़लूक़ की नेमतों और हदाया से बहरामद होने के लिये आमादा होता है और वसायल तलाश करता है लेकिन ख़ुदाया, मेरी आमादगी और मेरा सफ़र तेरे लिये और तेरे वली की ज़ियारत के लिये हैं और इस ज़ियारत के ज़रिये तेरी क़ुरबत चाहता हूँ और ईनाम व हदिये की उम्मीद सिर्फ़ तुझ से रखता हूँ। (6)

और इसी ज़ियारत के आख़िर में ज़ियारत पढ़ने वाला कहता है ख़ुदाया, सिर्फ़ तू ही मेरा मक़सूदे सफ़र है और सिर्फ़ जो कुछ तेरे पास है उसको चाहता हूँ। ''फ़ इलैका फ़क़दतो व मा इनदका अरदतो''

यह सब चीज़े शिया अक़ायद के तौहीदी पहलू का पता देने वाली हैं जिनकी बेना पर मासूमीन (अ) के रौज़ों और अवलिया ए ख़ुदा की ज़ियारत को ख़ुदा और ख़ालिस तौहीद तक पहुचने के लिये एक वसीला और रास्ता क़रार दिया गया है और हुक्मे ख़ुदा की बेना पर उन की याद मनाने की ताकीद है।

हवालाजात:

(1) बिहारुल अनवार जिल्द 44 पेज 367

(2) बिहारुल अनवार जिल्द 45 पेज 17, मनाक़िब जिल्द 4 पेज 101

(3) मौसूअ ए कलेमाते इमाम हुसैन (अ) पेज 377

(4) मौसूअ ए कलेमाते इमाम हुसैन (अ) पेज 378

(5) बिहारुल अनवार जिल्द 45 पेज 4

(6) तहज़ीबुल अहकाम शेख़ तूसी जिल्द 6 पेज 62

यह आयत प्रत्येक आस्तिक के लिए एक उदाहरण है कि वह आसपास के परिदृश्यों में अल्लाह के संकेतों को देखे और उन पर विचार करे। जिसने ब्रह्मांड और व्यवस्था को बनाया, जिसने इसे मेरे दिल में रखा, भगवान आपकी महानता को पहचानें और आस्तिक के अस्तित्व को मजबूत करें।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ لَآيَاتٍ لِأُولِي الْأَلْبَابِ इन्यना फ़ी ख़ल्क़िस समावाते वल अर्ज़े वखतिलाफ़िल लैले वन्नहारे लेआयातिन ऊलिल अलबाब (आले-इमरान 190)

अनुवाद: वास्तव में, आकाशों और धरती की रचना में, और रात और दिन के आने और जाने में, समझ वालों के लिए निशानियाँ हैं।

विषय:

अल्लाह की शक्ति और महानता के लक्षण

पृष्ठभूमि:

यह आयत लोगों को अल्लाह की शक्ति की ओर आकर्षित करती है। सूरह अल-इमरान एक मदनी सूरह है और इसमें विश्वासियों को विश्वास की गहराई और विश्वास की ताकत सिखाई जाती है। इस आयत में, अल्लाह ताला अपने रचित ब्रह्मांड के संकेतों की ओर इशारा कर रहा है और बुद्धिमानों को उन पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि वे अल्लाह की महानता और उसकी रचनात्मकता को पहचान सकें।

तफसीर:

इस आयत में अल्लाह तआला ने अपने प्राणियों की निशानियों का जिक्र किया है जो इंसान को विचार करने के लिए आमंत्रित करती हैं। आकाश और पृथ्वी का निर्माण, और रात और दिन का क्रम स्पष्ट प्रमाण है कि इस ब्रह्मांड का एक निर्माता है जो सर्वशक्तिमान है।

बुद्धिमान पुरुष (ओवली अल-अलबाब) उन लोगों को संदर्भित करते हैं जो इन संकेतों पर ध्यान देते हैं और उनके माध्यम से अल्लाह का ज्ञान प्राप्त करते हैं। समय का रात और दिन के अलग-अलग घंटों में विभाजन और पृथ्वी और आकाश का निर्माण एक प्रणाली द्वारा संचालित होता है, जो एक महान ज्ञान और योजना का संकेत देता है।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

इस्राईलियों का मानना है कि निरंतर युद्ध में अपने बचाव के लिए हर हथकंडा अपनाया जा सकता है, चाहे वह अमानवीय ही क्यों न हो।

इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के बलात्कार की भयानक घटना के नैतिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण करके आप ज़ायोनियों के वैचारिक आयामों और शैक्षिक प्रणाली की हक़ीक़त को भी समझ सकते हैं। इसलिए इस अपराध की समीक्षा का विशेष महत्व है। पार्सटुडे इस नोट में इस मुद्दे पर संक्षिप्त नज़र डालने की कोशिश की गई है।

इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की जारी होने वाली वीडियो फ़ुटेज पर दुनिया भर में कड़ी प्रतिक्रिया जताई गई। हालांकि इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया, लेकिन हैरत की बात यह है कि इस्राईली समाज का एक वर्ग इसके बचाव में आगे आया।

फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की वीडियो वायरल होने के बाद, जब दस इस्राईली सैनिकों को गिरफ़्तार किया गया, तो कट्टर दक्षिणपंथी ज़ायोनी उनके बचाव में निकल पड़े और उन्होंने उग्र प्रदर्शन भी किया।

ज़ायोनी सुरक्षा मंत्री इतामर बेन गोयर ने इस संदर्भ में कहाः सुरक्षा के लिए सामूहिक बलात्कार सही है।

इस्राईल के वित्त मंत्री स्मोत्रिच ने भी इस घटना की निंदा करने के बजाए, इस वीडियो के प्रकाशन होने पर ग़ुस्सा उतारा और वीडियो प्रकाशित करने वाले की शनाख़्त के लिए जांच की मांग की।

इस सोच को इस्राईली समाज के हाशिए के कुछ दक्षिणपंथियों तक सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि इससे इस्राईली समाज में नैतिक व्यवस्था का पता चलता है। ज़ायोनी शासन ने दशकों से समाज में व्यवस्थित तरीक़े से फ़िलिस्तीनियों को जानवरों की तरह पेश किया है। यह सब इसलिए किया गया ताकि फ़िलिस्तीनियों को इंसानी दर्जे से गिराकर, उनके साथ हर तरह का सुलूक किया जा सके।

दूसरे शब्दों में फ़िलिस्तीनियों को इंसानों की तरह दिखने वाले जानवर बनाकर पेश किया गया है। बिल्कुल उसी तरह जैसा कि उपनिवेशवाद विरोधी दार्शनिक फ्रांसिस फ़ैनन ने इस उपनिवेशवादी प्रक्रिया का वर्णन किया है।

इस तरह, इस्राईली समाज में फ़िलिस्तीनियों को नैतिक रूप से कमज़ोर और व्यर्थ जीव के तौर पर देखा जाता है। परिणामस्वरूप उनके खिलाफ़ हिंसा और आक्रामकता को न केवल अनैतिक नहीं माना जाता है, बल्कि कुछ मामलों में नैतिक कार्यवाही के रूप में उचित ठहराया जाता है। इन अत्याचारों को अंजाम देने वाले इस्राईली सैनिक, अपनी नैतिक श्रेष्ठता और दूसरे पक्ष की अमानवीयता में विश्वास के कारण, अपराध बोध या किसी तरह का कोई दोष महसूस नहीं करते हैं। इसके अलावा, उन्हें समाज के एक बड़े वर्गों का समर्थन भी प्राप्त है।

दूसरी ओर, इस्राईली मीडिया युद्ध क्षेत्रों से फ़िलिस्तीनी नागरिकों को निकालने का आदेश जैसे हिटलरी फ़रमानों को इस्राईली सेना की नैतिकता के प्रमाण के रूप में पेश करती है। हालांकि वास्तविकता यह है कि इन नागरिकों को एक छोटे से क्षेत्र में सीमित करके वहां उन्हें निशाना बनाया जाता है।

इसके अलावा, नस्लवादी दृष्टिकोण से यह विश्वास कि इस्राईल को मध्यपूर्व की बर्बरता के ख़िलाफ़ पश्चिमी सभ्यता के प्रतिनिधि के रूप में लड़ना चाहिए, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनियों की बर्बरता के लिए एक और औचित्य प्रदान करता है।

 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह ज़ायोनी शासन दुनिया पर एक बदनुमा धब्बा है और यह मानवता के लिए नैतिक पतन के अलावा कुछ नहीं है। जो समाज सामूहिक बलात्कार जैसे भयानक कृत्यों को उचित ठहरा सकता है, उसके पतन की कोई सीमा नहीं हो सकती। नस्लीय श्रेष्ठता में दृढ़ विश्वास से लैस नैतिक पतन से अधिक ख़तरनाक कुछ भी नहीं है।

ईरान की फ्रीस्टाइल कुश्ती के नौजवानों की टीम ने विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया।

ईरानी नौजवानों की फ्रीस्टाइल कुश्ती की टीम ने तीन स्वर्ण और तीन कांस्य पदक प्राप्त करके विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार जार्डन की राजधानी अम्मान में 19 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक फ्रीस्टाइल कुश्ती का मुक़ाबला हुआ था।

अम्मान में आयोजित प्रतिस्पर्धा में ईरानी टीम ने 140 अंक प्राप्त करके विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया जबकि उज़्बेकिस्तान 113 अंक हासिल करके दूसरे स्थान पर और 105 अंक हासिल करके आज़रबाईजान गणराज्य तीसरे स्थान पर रहा।

ईरान की फ्रीस्टाइल कुश्ती की टीम ने इससे पहले वाले मुक़ाबले में भी चैंपियन का ख़िताब जीता था।

 

एक अमेरिकी थिंकटैंक ने कहा है कि ईरानी ड्रोनों की लोकप्रियता यूक्रेन और इस्राईल से बहुत आगे जा चुकी है और यह लोकप्रियता कम से कम दो महाद्वीपों में देखी गयी है।

"डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" ने अपनी हालिया रिपोर्ट में लिखा है कि दुनिया में ईरानी ड्रोनों का स्वागत किया जा रहा है जबकि बाइडेन सरकार इस्राईल के ख़िलाफ़ ईरान के प्रक्षेपास्त्रिक और ड्रोन हमलों और इसी प्रकार छद्मयुद्ध को रोकने या उसे सीमित करने का प्रयास कर रही है और इस बात को याद रखना चाहिये कि मध्यपूर्व इस समय ईरानी हथियारों से भर गया है।

पार्सटुडे ने समाचार एजेन्सी इर्ना के हवाले से बताया है कि "डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" ने लेबनान में कुछ ईरानी हथियारों के होने की ओर संकेत किया और कहा कि कुछ समय पहले यमन के अंसारुल्लाह संगठन ने तेलअवीव पर जो ड्रोन हमला किया था और उसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी वह इतिहास में इतना दूर तक मार करने वाला पहला ड्रोन हमला और वह ड्रोन ईरान निर्मित था और 2 हज़ार 600 किलोमीटर की दूरी तय करके वह तेलअवीव पहुंचा था।

 

"डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" के विश्लेषण के अनुसार यह केवल चिंता का एक विषय नहीं है बल्कि इस्लामी गणतंत्र ईरान इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न स्थिति से लाभ उठा रहा है और सैनिक संसाधनों और रक्षा उपकरणों का महत्वपूर्ण निर्यातक बनना चाहता है। अमेरिकी थिंकटैंक की रिपोर्ट के अनुसार एक चीज़ जो ईरानी हथियारों की मांग व डिमांड का कारण बनी है वह यह है कि ईरानी हथियार अधिक मंहगे नहीं होते हैं जैसे ड्रोन। उसका एक उदाहरण ईरान का "शाहिद– 136" नामक ड्रोन है जिसने यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी जंग में महत्पूर्ण भूमिका निभाई है इस प्रकार से कि जंग के आरंभिक दो साल में मॉस्को ने इस प्रकार के 4 हज़ार 600 ड्रोनों को उड़ाया और यही ड्रोन था जो कुछ समय पहले तेलअवीव पहुंचा था।

इसी प्रकार "डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" की रिपोर्ट में आया है कि ईरानी ड्रोन यूक्रेन और तेलअवीव से बहुत आगे जा चुके हैं और कम से कम उन्हें दो महाद्वीपों में देखा जा चुका है और यह विषय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईरानी हथियारों से लाभ उठाये जाने के महत्व का सूचक है। तेहरान स्थानीय ड्रोनों के उत्पादन में वेनेज़ुएला की मदद कर रहा है और लैटिन अमेरिका की सशस्त्र सेनाएं ड्रोन 100 ANSU और ड्रोन 200 ANSU का इस्तेमाल कर रही हैं जबकि यह दोनों ड्रोन ईरान के मुहाजिर- 2 और शाहिद- 171 ड्रोनों से बहुत मिलते- जुलते हैं।

 

 इथोपिया की सेना भी ईरान के मुहाजिर-6 ड्रोन से लाभ उठा रही है। सूडान के गृहयुद्ध में भी इसी ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। सूडान की सशस्त्र सेना हमलावरों की प्रगति को रोकने और इसी प्रकार कुछ क्षेत्रों को वापस लेने के लिए इसी ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है। इस आधार पर यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ईरान और आर्मीनिया के मध्य 500 मिलियन डॉलर के हथियारों के समझौते में ड्रोन विमानों का भी स्थान हो।

इस अमेरिकी थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार तेहरान का इरादा है कि 2028 तक अंतरराष्ट्रीय मंडियों में तुर्किये के स्थान को ले ले और इस आधार पर साढ़े 6 अरब डॉलर मूल्य के एक चौथाई बाज़ार को अपने लिए विशेष कर ले। अमेरिकी थिंकटैंक के विशेषज्ञ अपनी रिपोर्ट के एक अन्य भाग में कहते हैं कि रक्षा प्रदर्शनियों में प्रतिरक्षा के क्षेत्र में ईरानी उत्पादों की सक्रिय उपस्थिति ईरान की क्षमताओं से दुनिया को परिचित कराने का एक बेहतरीन अवसर है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान ने वर्ष 2024 में मलेशिया, क़तर और इराक़ में होने वाली प्रदर्शनी में अपने रक्षा उत्पादों का स्टॉल लगाया था और सऊदी अरब में होने वाली प्रदर्शनी में एक गुट को भेजा है। मॉस्को और बेल्ग्रेड में भी आयोजित होनी वाली दूसरी प्रदर्शनियां थीं जहां ईरान ने अपने रक्षा उत्पादों को रखा था।

 

इसी प्रकार अमेरिकी थिंकटैंक की रिपोर्ट में आया है कि ईरान को अमेरिका और यूरोप के प्रतिबंधों के अलावा इस संबंध में किसी प्रकार की अंतरराष्ट्रीय सीमा का कोई सामना नहीं है और मिसाइलों के परीक्षण के संबंध में सुरक्षा परिषद की ओर से जो सीमायें व प्रतिबंध ईरान पर थे वे समाप्त हो चुके हैं।

स्टेम सेल के क्षेत्र में सक्रिय एक जर्मन वैज्ञानिक और प्रयोगशाला भ्रूण के क्षेत्र में सक्रिय एक युवा ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक को संयुक्त रूप से ईरान के रोयान इंटरनेशनल रिसर्च फ़ेस्टिवल में डॉ. काज़ेमी पुरस्कार के छठे संस्करण का विजेता घोषित किया गया है।

दिवंगत ईरानी वैज्ञानिक डॉ. सईद काज़ेमी आश्तियानी रोयान रिसर्च इंस्टीट्यूट के संस्थापक थे। रोयान इंटरनेशनल ईरान फ़ेस्टिवल अवार्ड, उनके प्रयासों का सम्मान करने और उनकी यादों को जीवित रखने के लिए हर साल जैविक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति या शोध करने वाले वैज्ञानिक को प्रदान किया जाता है।

स्टेम सेल के क्षेत्र में सक्रिय जर्मन वैज्ञानिक थॉमस ब्राउन, और प्रयोगशाला भ्रूण के क्षेत्र में सक्रिय युवा ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक निकोलस रिवरोन को रोयान काज़ेमी पुरस्कार का विजेता घोषि किया गया है।

2010 से डॉ. काज़ेमी पुरस्कार, अमेरिका, जर्मनी, हॉलैंड और इटली के 5 प्रमुख शोधकर्ताओं को दिया जा चुका है।

पहली बार यह पुरस्कार 2010 में जीन विनियमन, स्टेम सेल बायोलॉजी और स्टेम सेल थेरेपी के विकासात्मक जीव विज्ञान के क्षेत्र में सबसे रचनात्मक वैज्ञानिकों में से एक, अमेरिका के प्रोफ़ेसर रुडोल्फ़ साएनिश को दिया गया था।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहगीलूये व बुवैर अहमद प्रांत के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए राष्ट्रीय कान्फ़्रेंस की आयोजक कमेटी के सदस्यों से मुलाक़ात की।

 इस मुलाक़ात में उन्होंने अपने ख़ेताब के दौरान मुख़्तलिफ़ मैदानों में ईरानी क़ौम को पीछे हटने पर मजबूर करने के लिए ख़ौफ़ पैदा करने और मनोवैज्ञानिक जंग शुरू करने के दुश्मनों के हथकंडें की ओर इशारा करते हुए, अपनी क्षमताओं की पहचान और दुश्मनों की क्षमता बढ़ा चढ़ाकर पेश करने से परहेज़ को, इस हथकंडे से निपटने का रास्ता बताया।

उन्होंने कहा कि शहीदों ने इस मनोवैज्ञानिक जंग के मुक़ाबले में अपने बलिदान और संघर्ष का प्रदर्शन किया और इस हथकंडे को नाकाम बना दिया।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का कहना था कि श्रद्धांजलि पेश करने के प्रोग्रामों में भी इस हक़ीक़त को नुमायां करना और इसे ज़िंदा रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ईरान और ईरान की अज़ीज़ क़ौम के ख़िलाफ़ मनोवैज्ञानिक जंग का एक तत्व, दुश्मनों की क्षमताओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश करना है और इंक़ेलाब की कामयाबी के वक़्त से ही उन्होंने मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से हमारी क़ौम को यह समझाने की कोशिश की कि उसे अमरीका, ब्रिटेन और ज़ायोनियों से डरना चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का बड़ा कारनामा क़ौम के दिल से डर को बाहर निकालना और उसमें आत्मविश्वास पैदा करना था। उन्होंने कहा कि हमारी क़ौम ने महसूस किया कि वह अपनी ताक़त पर भरोसा करके बड़े बड़े काम कर सकती है और दुश्मन इतना ताक़तवर नहीं है जितना वह ख़ुद को ज़ाहिर करता है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने फ़ौजी मैदान में मनोवैज्ञानिक जंग का लक्ष्य दुश्मन में ख़ौफ़ पैदा करना और उसे पीछे हटने पर मजबूर करना बताया और कहा कि क़ुरआन मजीद के लफ़्ज़ों में किसी भी मैदान में, चाहे वह फ़ौजी मैदान हो या राजनैतिक, प्रचारिक या आर्थिक मैदान हो, स्ट्रैटेजी के बिना पीछे हटना, अल्लाह के क्रोध का सबब बनता है।

उन्होंने कमज़ोरी और अलग थलग पड़ जाने की भावना और दुश्मन की इच्छा के सामने घुटने टेक देने को राजनीति के मैदान में दुश्मन की क्षमताओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने का नतीजा बताया और कहा कि आज छोटी बड़ी क़ौमों वाली जो भी सरकारें साम्राज्यवादियों के सामने घुटने टेके हुए हैं, अगर अपनी क़ौमों और अपनी सलाहियतों पर भरोसा करें और दुश्मन की सलाहियतों को समझ जाएं तो वो दुशमन की मांगें मानने से इंकार कर सकती हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि सांस्कृतिक मैदान में भी दुश्मन की ताक़त को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने का नतीजा पिछड़ेपन का एहसास, दुश्मन की संस्कृति पर रीझना और अपनी संस्कृति को हीन भावना से देखना बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की संवेदनहीनता का नतीजा, सामने वाले पक्ष की जीवन शैली को मानना यहाँ तक कि विदेशी लफ़्ज़ों और शब्दावलियों को इस्तेमाल करना है।

उन्होंने शहीदों और मुजाहिदों को दुश्मन की मनोवैज्ञानिक जंग के मुक़ाबले में डट जाने वाले लोगों में बताया और कहा कि ऐसे जवानों की क़द्रदानी होनी चाहिए जो किसी भी तरह के ख़ौफ़ के एहसास और दूसरों की बातों से प्रभावित हुए बिना मनोवैज्ञानिक जंग के ख़िलाफ़ डट गए। उन्होंने कहा कि यह हक़ीक़त कला उत्पादों और श्रद्धांजलि पेश करने के प्रोग्रामों में प्रतिबिंबित होनी चाहिए और इसे ज़िंदा रखा जाना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शहीदों और पाकीज़ा डिफ़ेंस के बारे में किताब और फ़िल्म जैसे आर्ट और कलचर प्रोडक्ट्स तैयार किए जाने पर बल देते हुए इस कान्फ़्रेंस के प्रबंधकों की क़द्रदानी की और कहा कि एक क़ौम के जवानों की शहादत और बलिदान, मुल्क की तरक़्क़ी का एक बड़ा सहारा है जिसकी रक्षा की जानी चाहिए और ऐसा न हो कि इसमें फेर बदल हो जाए और इसे भुला दिया जाए।

अरबईने हुसैनी के लिए जा रहें पाकिस्तानी ज़ायरीन की एक बस ईरान के शहर यज़्द के पास एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गई जिसके परिणामस्वरूप कई ज़ायरीन की मौत हो गई इस मौके पर आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।

अरबईने हुसैनी के लिए जा रहें पाकिस्तानी ज़ायरीन की एक बस ईरान के शहर यज़्द के पास एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गई जिसके परिणामस्वरूप कई ज़ायरीन की मौत हो गई इस मौके पर आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।

शोक संदेश इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन।

अहले अलबैत अ.स.के अरबईन हुसैनी में भाग लेने जा रहे पाकिस्तान तीर्थयात्रियों की बस की दिल दहला देने वाली दुर्घटना की खबर सुनकर मुझे गहरा दुख हुआ है।

यह जायरीन अरबईन हुसैनी में भाग लेने के लिए लंबी दूरी की यात्रा कर रहे थे वह निर्दोषों, विशेष रूप से हज़रत इमाम हुसैन अ.स. और उनके साथीयों का चेहलूम मामने जा रहे थे कि शहीद हो गए यह इमाम के मेहमान हैं इनका दरजा बहुत बुल्ंद हैं।

इस दुखत घडी में हौज़ा ए इल्मिया और मैं अपनी तरफ से मरहूमीन के लिए दुआ करता हु अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि अल्लाह तआला मरहूमीन की मगफिरत करें और परिवार वालों को सब्र अता करें।

आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी

प्रमुख हौज़ा ए इल्मिया