رضوی

رضوی

सरदार हुसैन सलामी ने कहा: शहादत एक ईश्वरीय पसंद है और शहीद को ईश्वर द्वारा चुना जाता है और उसके लिए कई गुण होते है।

हौजा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, किरमान/मेजर जनरल हुसैन सलामी ने हरम की रक्षा करने वाले शहीदों के परिवारों के सम्मान में आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा: हम अपने दुश्मनों और उनके नापाक इरादों से अच्छी तरह अवगत है।  हम दुश्मनो को मुसलमानो पर हावी नही होने देंगे।

उन्होंने आगे कहा: शहादत एक ईश्वरीय विकल्प है। शहीद को स्वयं ईश्वर ने चुना है और वह अनगिनत गुणो का कायल है।

मेजर जनरल सलामी ने शहादत की विशेषताएं और नेमते बयान करते हुए कहा, हम दुश्मनो से घिरे देश के वासी है। सभी बुरी ताकते इस्लाम, क्रांति, हमारी इस्लामी व्यवस्था और लोगों की दुश्मन है।

उन्होंने आगे कहा: अमेरिका के नेतृत्व मे सभी झूठी शक्तियां, मानव इतिहास की सबसे बड़ी बुरी शक्ति, उनके सभी सहयोगी, साझेदार और उनके स्व-निर्मित तकफ़ीरी तत्व जो अपने धार्मिक विश्वासो से भटक गए है, इस्लाम के नाम पर अत्याचार कर रहे है। और छोटे-छोटे मासूम बच्चो को मार रहे है।

मेजर जनरल सलामी ने कहा: इन अपराधियो के जघन्य कृत्य एक जैसे है क्योंकि इस्राईली भी नरसंहार करते हैं, तकफ़ीरी भी करते है और यह एक स्पष्ट और निर्विवाद तथ्य है।

 

राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद इब्राहीम रईसी ने कहा है कि चुनाव में लोगों की भागीदारी देश की सुरक्षा को सुनिश्चित बनायेगा और देश की सशस्त्र सेना का मज़बूत पृष्ठपोषक होगा।

आज समूचे ईरान में देश की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी का 12वां और सर्वोच्च नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद का छठा मतदान हो रहा है।

राष्ट्रपति ने वायुसेना के वरिष्ठ कमांडरों से भेंट में सशस्त्र की प्रशंसा की और कहा कि जिस तरह से सशस्त्र सेना की योग्यता, क्षमता और बहादुरी ईरान की शक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा का कारण है उसी तरह विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर चुनावों में लोगों की भागीदारी देश की सुरक्षा का कारण बनेगी।

इसी प्रकार राष्ट्रपति ने मिसाइल, ड्रोन और राडार जैसे सैन्य संसाधनों व उपकरणों के निर्माण में वायु सेना की क्षमता को इस सेना की आत्मनिर्भरता की एक झलक बताया और कहा कि सरकार देश की प्रतिरक्षा ज़रूरतों व संभावनाओं को पूरा करने के लिए हर आवश्यक कदम उठाये

ईरान में संसदीय और विशेषज्ञों की सभा के चुनावों के लिए मतदान जारी है। इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने ईरानी नागरिकों से दोस्तों को ख़ुश करने और दुश्मनों को निराश करने के लिए बड़ी संख्या में मतदान करने का आह्वान किया है।

पूरे ईरान में शुक्रवार को स्थानीय समयानुसार सुबह 8 बजे मतदान शुरू हुआ है। देश में 61 मिलियन से अधिक लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। वोटिंग की शुरूआत में तेहरान में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहाः हम सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आज का दिन ईरानी राष्ट्र के लिए एक ख़ुशी का दिन हो और हमारे प्रिय लोगों और चुनाव संबंधित कार्यों में शामिल लोगों के प्रयासों का वांछित परिणाम निकले और ईरानी राष्ट्र को लाभ पहुंचे।

उन्होंने कहाः हमारी प्रिय जनता को यह पता होना चाहिए कि आज दुनिया में कई लोगों की नज़रें, ईरान और आप पर हैं। वे देखना चाहते हैं कि आप इस चुनाव में क्या करते हैं और आपके चुनाव का परिणाम क्या होगा। हमारे मित्र और ईरानी राष्ट्र में रुचि रखने वाले लोग, साथ ही हमारा बुरा चाहने वाले भी हमारे देश से संबंधित मुद्दों पर नज़र रखे हुए हैं। इस पर ध्यान दीजिए, दोस्तों को ख़ुश और बुरा चाहने वालों को निराश कीजिए।

गृह मंत्रालय के मतदान केंद्र पर अपना वोट डालने वाले ईरानी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी ने देश में चुनावों को एक राष्ट्रीय उत्सव और एकता का प्रतीक बताया है। उन्होंने कहाः हर एक वोट निर्णायक होता है, क्योंकि देश के सभी क्षेत्रों का भविष्य, लोगों के वोट से निर्धारित होता है। उन्होंने कहाः यह चुनाव एक राष्ट्रीय उत्सव और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है और सभी राजनीतिक समूह आज अपने उम्मीदवारों के साथ ईरानी राष्ट्र के लिए एक गौरवशाली दिन बनाने के लिए आगे आए हैं।

ईरानी राष्ट्रपति रईसी का कहना था कि इस चुनाव में ईरानी राष्ट्र की जीत होगी, और इसमें हार किसी की भी नहीं होगी, चाहे उम्मीदवारों को वोट मिलें या नहीं। क्योंकि उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा किया है, यानी चुनाव में भाग लेना।

15,000 से अधिक संसदीय उम्मीदवारों में से लोग 290 सदस्यों को चुनने के लिए मतदान कर रहे हैं। निर्वाचित सदस्य संसद में चार साल के कार्यकाल के लिए काम करेंगे। इसी के साथ विशेषज्ञों की सभा के 88 सदस्यों के लिए चुनाव हो रहा है। विशेषज्ञों की सभा का कार्यकाल आठ साल के लिए होता है, जो इस्लामी क्रांति के नेता की गतिविधियों की निगरानी और उसकी नियुक्ति का अधिकार रखती है।

 

ईरानी पुलिस के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल सईद मुंतज़िर अल-मेहदी ने कहा है कि चुनाव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए 1 लाख 90 हज़ार पुलिस बलों को तैनात किया गया है।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने आज सुबह स्थानीय समय के अनुसार 8 बजे अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आज सुबह हुसैनिये इमाम ख़ुमैनी में पत्रकारों की उपस्थिति में कहा कि मैं सिफारिश करता हूं कि जितनी जल्दी संभव हो लोग उतनी जल्दी अपने मताधिकार का प्रयोग करें। 

सर्वोच्च नेता ने बल देकर कहा कि मैं दो सिफारिशें करता हूं मेरी पहली सिफारिश लोगों से यह है कि कुरआन ने हमसे कहा है कि فاستبقوا الخیرات नेक काम में प्रतिस्पर्धा करो और दूसरे से आगे जाने की कोशिश करो, मैंने पिछले चुनाव में भी कहा था और आज भी बल देकर कह रहा हूं कि जल्द से जल्द इस अवसर से लाभ उठायें और जितनी जल्दी हो सके अपने मताधिकार का प्रयोग करें।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि मेरी दूसरी सिफारिश यह है कि जिस मतदान केन्द्र पर भी मत दें जिस संख्या में उस मतदान केन्द्र पर मत ज़रूरी हैं उस संख्या में मतदान करें उससे कम मत न दें मिसाल के तौर पर तेहरान में सर्वोच्च नेतृत्त का चयन करने वाली परिषद को 16 प्रतिनिधियों को वोट देने की ज़रूरत है तो 16 मत दें उससे कम नहीं।

सर्वोच्च नेता ने कहा कि ईरानी लोगों को जान लेना चाहिये कि आज दुनिया के बहुत से लोगों की नज़रें ईरान और आप पर लगी हैं और वे यह जानना व देखना चाहते हैं कि आप चुनावों में क्या करते हैं और आपके चुनाव का नतीजा क्या होता है। उन्होंने कहा कि हमारे दोस्तों और ईरानी राष्ट्र से प्रेम करने वालों और इसी प्रकार ईरानी राष्ट्र का बुरा चाहने वाले सबकी नज़रें ईरान पर लगी हुईं हैं इस बात पर ध्यान दीजिये। दोस्तों को प्रसन्न व खुशहाल कीजिये और बुरा चाहने वालों को निराश। इसी प्रकार इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने मतदान में भाग लेने में असमंजस का शिकार लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मेरी आखिरी बात यह है कि नेक काम में इस्तेखारा करने की कोई ज़रूरत नहीं है।

अल्लाह ने इंसान को दूसरी बहुत सी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत अता की है लेकिन वह अपनी हक़ीक़त को ख़ुद उसी समय पहचान सकता है जब वह अपने अंदर पाई जाने वाली शराफ़त को समझ ले और अपने आपको पस्ती, ज़िल्लत और नफ़्सानी ख़्वाहिशों से दूर समझे।

इरशाह होता है कि, बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी और हमने उनको ज़गलों और समुद्र पर हाकिम क़रार दिया और हमने उनको अपनी बहुत सारी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत दी। (सूरए बनी इस्राईल, आयत 70)

इंसान का बातिन अच्छे अख़लाक़ का मालिक होता है और वह अपनी उसी बातिन की ताक़त से हर नेक और बद को पहचान लेता है।

अल्लाह का इरशाद है कि, और क़सम है इंसान के नफ़्स की और उसके संयम की कि उसको (अल्लाह ने) अच्छी और बुरी चीज़ों की पहचान दी। (सूरए शम्स, आयत 7 से 9)

इंसान के दिल के सुकून का केवल इलाज अल्लाह की याद और उसका ज़िक्र है, उसकी ख़्वाहिशें बे इंतेहा हैं लेकिन ख़्वाहिशों के पूरा हो जाने के बाद वह उन चीज़ों से दूरी बना लेता है, लेकिन अगर वही ख़्वाहिशें अल्लाह की ज़ात से मिला देने वाली हों तो उसे उस समय तक चैन नहीं मिलता जब तक वह अल्लाह की ज़ात तक न पहुंच जाए।

इरशाह होता है कि, बेशक अल्लाह के ज़िक्र से ही दिलों को चैन मिलता है। (सूरए रअद, आयत 28)

या अल्लाह फ़रमाता है कि, ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुंचने में बहुत तकलीफ़ बर्दाश्त करता है और आख़िरकार तुम्हें उससे मिलना है। (सूरए इंशेक़ाक़, आयत 6)

ज़मीन के सारी नेमतें इंसान के लिए पैदा की गई हैं।

इरशाद होता है कि, वही है जिसने जो कुछ ज़मीन में है तुम्हारे लिए पैदा किया है। (सूरए बक़रह, आयत 29)

या इरशाद होता है कि, और अपनी तरफ़ से तुम्हारे कंट्रोल में दे दिया है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है उसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो फ़िक्र करते हैं। (सूरए जासिया, आयत 13)

 अल्लाह ने इंसान को केवल इस लिए पैदा किया है कि वह दुनिया में केवल अपने अल्लाह की इबादत करे और उसके अहकाम की पाबंदी करे, उसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के अम्र की इताअत करना है।

इरशाद होता है कि, और हमने इंसान को नहीं पैदा किया मगर केवल इसलिए कि वह मेरी इबादत करें। (सूरए हश्र, आयत 19)

 इंसान अल्लाह की इबादत और उसकी याद के बिना नहीं रह सकता, अगर वह अल्लाह को भूल जाए तो अपने आप को भी भूल जाता है और वह नहीं जानता कि वह कौन है और किस लिए है और क्या करे क्या न करे कहां जाए कहां न जाए उसे कुछ समझ नहीं आता।

इरशाद होता है कि, बेशक तुम उन लोगों में से हो जो अल्लाह को भूल गए, और फिर अल्लाह ने उनके लिए उनकी जानें भुला दीं। (सूरए हश्र, आयत 19)

इंसान जैसे ही दुनिया से जाता है और उसकी रूह के चेहरे से जिस्म का पर्दा जो कि रूह के चेहरे का भी पर्दा है उठ जाता है तो उस समय उस पर ऐसी बहुत सी हक़ीक़तें ज़ाहिर होती हैं जो उसके लिए इस दुनिया में छिपी रहती हैं।

अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने तुझसे पर्दा हटा दिया, तेरी नज़र आज तेज़ है। (सूरए क़ाफ़, आयत 22)

 इंसान दुनिया में हमेशा भौतिक (माद्दी) मामलों के हल के लिए ही कोशिशें नहीं करता और उसको केवल भौतिक ज़रूरतें ही हाथ पैर मारने पर मजबूर नहीं करतीं, बल्कि कभी कभी वह किसी बुलंद मक़सद को हासिल करने के लिए भी कोशिशें करता है और मुमकिन है कि उस अमल से उसके दिमाग़ में केवल अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने के और कोई मक़सद न हो।

इरशाद होता है कि, ऐ नफ़्से मुतमइन्ना तू अपने रब की तरफ़ लौट जा, तू उससे राज़ी वह तुझ से राज़ी। (सूरए फ़ज्र, आयत 27-28)

इसी तरह एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, अल्लाह ने ईमान वाले मर्दों और औरतों से बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बहती हैं जिनमें वह हमेशा रहेंगे और आलीशान मकानों का भी वादा किया है, लेकिन अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करना उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है। (सूरए तौबा, आयत 73)

ऊपर बयान की गई बातों से यह नतीजा सामने आता है कि इंसान वह मौजूद है जो पैदा तो एक कमज़ोर चीज़ से होता है लेकिन वह धीरे धीरे कमाल की तरफ़ क़दम बढ़ाता है और अल्लाह की ओर से ज़मीन पर ख़लीफ़ा होने की फ़ज़लीत को हासिल कर लेता है, और उसको सुकून केवल तभी हासिल होता है जब वह अल्लाह का ज़िक्र करता है और उसकी याद में ज़िंदगी गुज़ारता है, वह अल्लाह की याद में ख़ुद को फ़ना कर दे उसके बाद वह ख़ुद ही अपनी इल्मी और अमली प्रतिभाओं और क्षमताओं को महसूस करेगा।

इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते।

इस्लामी दुनिया में इंसान की एक अजीब दास्तान सामने आती है, इस्लामी तालीमात की रौशनी में इंसान केवल एक चलने फिरने और बोलने बात करने वाली मख़लूक़ नहीं है बल्कि क़ुर्आन की निगाह में इंसान की हक़ीक़त इससे कहीं ज़्यादा अहम है जिसे कुछ जुमलों में नहीं समेटा जा सकता, क़ुर्आन में इंसान की ख़ूबियों को भी बयान किया है और उसके बुरे किरदार को भी पेश किया है।

क़ुर्आन ने ख़ूबसूरत और बेहतरीन अंदाज़ से तारीफ़ भी की है और उसकी बुराईयों का ज़िक्र किया है, जहां इस इंसान को फ़रिश्तों से बेहतर पेश किया गया है वहीं इसके जानवरों से भी बदतर किरदार का भी ज़िक्र किया है, क़ुर्आन की निगाह में इंसान के पास वह ताक़त है जिससे वह पूरी दुनिया पर कंट्रोल हासिल कर सकता है और फ़रिश्तों से काम भी ले सकता है लेकिन उसके साथ साथ अगर नीचे गिरने पर आ जाए तो असफ़लुस साफ़ेलीन में भी गिर सकता है।

इस आर्टिकल में इंसान की उन तारीफ़ का ज़िक्र किया जा रहा है जिसे क़ुर्आन मे अलग अलग आयतों में अलग अलग अंदाज़ से इंसानी वैल्यूज़ के तौर पर ज़िक्र किया है।

 इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते। (सूरए बक़रह, आयत 30)

एक दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है, और उसी अल्लाह ने तुम (इंसानों) को ज़मीन पर अपना नायब बनाया है ताकि तुम्हें दी हुई पूंजी से तुम्हारा इम्तेहान लिया जाए। (सूरए अनआम, आयत 165)

इंसान की इल्मी प्रतिभा और क्षमता दूसरी सारी उसकी पैदा की हुई मख़लूक़ से ज़्यादा है।

इरशाद होता है कि, और अल्लाह ने आदम को सब चीज़ों के नाम सिखाए (उन्हें सारी हक़ीक़तों का इल्म दे दिया) फिर फ़रिश्तों से कहा, मुझे उनके नाम बताओ, वह बोले हम सिर्फ़ उतना इल्म रखते हैं जितना तूने सिखाया है, फिर अल्लाह ने हज़रत आदम से फ़रमाया, ऐ आदम तुम इनको उन चीज़ों के नाम सिखा दो, फिर आदम ने सब चीज़ों के नाम सिखा दिए, तो अल्लाह ने फ़रमाया, क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आसमानों और ज़मीन की छिपी चीज़ों को अच्छी तरह जानता हूं जिसे तुम ज़ाहिर करते हो और छिपाते हो। (सूरए बक़रह, आयत 31 से 33)

इंसान की फ़ितरत ख़ुदा की मारेफ़त है और वह अपनी फ़ितरत की गहराईयों में अल्लाह की मारेफ़त रखता है और उसके वुजूद को पहचानता है, इंसान के दिमाग़ में पैदा होने वाली शंकाएं और शक और उसके बातिल विचार उसका अपनी फ़ितरत से हट जाने की वजह से है।

इरशाद होता है कि, अभी आदम के बेटे अपने वालेदैन की सुल्ब में ही थे कि अल्लाह ने उनसे अपने वुजूद के बारे में गवाही ली और उन लोगों ने गवाही दी। (सूरए आराफ़, आयत 172)

या एक दूसरी जगह फ़रमाया, तो अपना चेहरा दीन की तरफ़ रख दो, वही जो ख़ुदाई फ़ितरत है और उसने सारे लोगों को उसी फ़ितरत पर पैदा किया है। (सूरए रूम, आयत 43)

इंसान में पेड़ पौधों, पत्थरों और जानवरों में पाए जाने वाले तत्वों के अलावा एक आसमानी और मानवी तत्व भी मौजूद हैं यानी इंसान जिस्म और रूह से मिल कर बना है।

इरशाद होता है कि, उसने जो चीज़ बनाई वह बेहतरीन बनाई, इंसान की पैदाइश मिट्टी से शुरू की फिर उसकी औलाद को हक़ीर और पस्त पानी से पैदा किया फिर उसे सजाया और उसमें अपनी रूह फ़ूंकी। (सूरए सजदा, आयत 7 से 9)

इंसान की पैदाइश कोई हादसा नहीं है बल्कि उसकी पैदाइश यक़ीनी थी और वह अल्लाह का चुना हुआ है।

इरशाद होता है कि, अल्लाह ने आदम को चुना फिर उनकी तरफ़ ख़ास ध्यान दिया और उनकी हिदायत की। (सूरए ताहा, आयत 122)

इंसान आज़ाद और आज़ाद शख़्सियत का मालिक है, वह अल्लाह का अमानतदार और उस अमानत को दूसरों तक पहुंचाने का ज़िम्मेदार है।

उससे यह भी चाहा गया है कि वह अपनी मेहनत और कोशिशों से ज़मीन को आबाद करे और सआदत और बदबख़्ती के रास्तों में से एक को अपनी मर्ज़ी से चुन ले।

इरशाद होता है कि, हमने आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों के सामने अपनी अमानत पेश की (उसकी ज़िम्मेदारी) किसी ने क़ुबूल नहीं की और (सब) डर गए हालांकि इंसान ने इस (ज़िम्मेदारी) को उठा लिया, बेशक यह बड़ा ज़ालिम और नादान है। (सूरए अहज़ाब, आयत 72)

या एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने इंसान को मिले जुले नुत्फ़े से पैदा किया ताकि उसका इम्तेहान लें फिर हमने उसको सुनने वाला और देखने वाला बनाया फिर हमने उसको रास्ता दिखाया अब वह शुक्र करने वाला है या नाशुक्री करने वाला है, या वह हमारे दिखाए हुए रास्ते पर चलेगा और सआदत तक पहुंच जाएगा या नेमत का कुफ़रान करेगा और गुमराह हो जाएगा। (सूरए दहर, आयत 2-3)

हमारा विश्वास है कि सारे ईश्वरीय दूत  विशेषकर  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने किसी भी “नस्ली” या “क़ौमी” या जातीय उच्चता को क़बूल नही किया। इन की नज़र में दुनिया के तमाम इँसान बराबर थे चाहे वह किसी भी ज़बान,नस्ल या क़ौम से ताल्लुक़ रखते हों।

क़ुरआन तमाम इंसानों को संबोधित करते हुए कहता है कि

يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ‌ وَأُنثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَ‌فُوا  إِنَّ أَكْرَ‌مَكُمْ عِندَ اللَّـهِ أَتْقَاكُمْ

“या अय्युहा अन्नासु इन्ना ख़लक़ना कुम मिन ज़करिन व उनसा व जअलना कुम शुउबन व क़बाइला लितअरफ़ू इन्ना अकरमा कुम इन्दा अल्लाहि अतक़ा कुम (सूरए हुजरात आयत 13)

यानी ऐ इँसानों हम ने तुम को एक मर्द और औरत से पैदा किया फिर हम ने तुम को क़बीलों में बाँट दिया ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो (लेकिन यह बरतरी और उच्चता का आधार नही है) तुम में अल्लाह के नज़दीक वह मोहतरम है जो तक़वे में ज़्यादा है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स)की एक बहुत मशहूर हदीस है जो आप ने हज के दौरान  मिना की धरती पर ऊँट पर सवार हो कर लोगों की तरफ़ रुख़ कर के इरशाद फ़रमाई थीः

يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ رَبَّكُمْ وَاحِدٌ , وَإِنَّ أَبَاكُمْ وَاحِدٌ , أَلا لا فَضْلَ لِعَرَبِيٍّ عَلَى أَعْجَمِيٍّ ، وَلا لِعَجَمِيٍّ عَلَى عَرَبِيٍّ , وَلا أَسْوَدَ عَلَى أَحْمَرَ , وَلا أَحْمَرَ عَلَى أَسْوَدَ إِلا بِتَقْوَى اللَّهِ , أَلا هَلْ بَلَّغْتُ ؟ " , قَالُوا : بَلَّغَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ : " فَلْيُبَلِّغِ الشَّاهِدُ الْغَائِبَ

“या अय्युहा अन्नासि अला इन्ना रब्बा कुम वाहिदिन व इन्ना अबा कुम वाहिदिन अला ला फ़ज़ला लिअर्बियिन अला अजमियिन ,व ला लिअजमियिन अला अर्बियिन ,व ला लिअसवदिन अला अहमरिन ,व ला लिअहमरिन अला असवदिन ,इल्ला बित्तक़वा ,अला हल बल्लग़तु ? क़ालू नअम ! क़ाला लियुबल्लिग़ अश्शाहिदु अलग़ाइबा ”

यानी ऐ लोगो जान लो कि तुम्हारा ख़ुदा एक है और तुम्हारे माँ बाप भी एक हैं,ना अर्बों को अजमियों पर बरतरी हासिल है न अजमियों को अर्बों पर, गोरों को कालों पर बरतरी है और न कालों को गोरों पर अगर किसी को किसी पर बरतरी है तो वह तक़वे के एतबार से है।

फिर आप ने सवाल किया कि क्या मैं ने अल्लाह के हुक्म को पहुँचा दिया है? सब ने कहा कि जी हाँ आप ने अल्लाह के हुक्म को पहुँचा दिया है। फिर आप ने फ़रमाया कि जो लोग यहाँ पर मौजूद है वह इस बात को उन लोगों तक भी पहुँचा दें जो यहाँ पर मौजूद नही है।

 

 

फ़िलिसतीन के हमास आंदोलन के पोलित ब्योरो चीफ़ इस्माईल हनीया ने ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करने के लिए फ़िलिस्तीनियों की तैयारी का उल्लेख करते हुए संघर्ष विराम के बारे में फ़िलिस्तीनी संगठनों की शर्तें बयान कर दीं।

इस्माईल हनीया ने कहा कि हम ज़ायोनी शासन के साथ बातचीत में नर्मी दिखा रहे हैं लेकिन इस्राईल से लंबी जंग के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी शासन क़त्ले आम, लोगों को विस्थापित करने, यातनाएं देने और भुखमरी में झोंकने जैसे भयानक अपराध कर रहा है मगर यह भी हक़ीक़त है कि कई महीने से यह क़ाबिज़ शासन फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के मुक़ाबले में बेबस होकर रह गया है। उसका बस केवल बच्चों, महिलाओं और आम नागरिकों पर चलता है। उसे लगता है कि मस्जिदुल अक़सा की घेराबंदी करके और ज़ायोनी सेटलर्ज़ को खुली छूट देकर तूफ़ान अलक़सा आप्रेशन से इस्राईल पर पड़ने वाली मार का असर कम कर सकता है।

हमास के नेता ने ग़ज़ा पट्टी के ज़मीनी हालात को मद्देनज़र रखते हुए दो महत्वपूर्ण बिंदु पेश किए। एक तो उन्होंने यह बात दो टूक शब्दों में कही कि फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करते रहने की क्षमता मौजूद है और तूफ़ान अलअक़सा आप्रेशन से यह हक़ीक़त पहले ही उजागर हो गई।

दूसरा पहले यह है कि हमास और फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास बड़ी संख्या में इस्राईली क़ैदी मौजूद हैं और वे इस्राईल से बातचीत में मज़बूत पोज़ीशिन में हैं।

हालिया हफ़्तों में अपनी कमज़ोरी खुल जाने के बाद ज़ायोनी शासन इस कोशिश में है कि संघर्ष विराम की बातचीत के नाम पर किसी तरह इस्राईल के भीतर जारी संकट पर पर्दा डाले। ज़ायोनी शासन के अधिकारियों को हालिया दिनों इस्राईली क़ैदियों के परिवारों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। नतीजे में ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू और अन्य मंत्रियों के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गए हैं। क़ैदियों के परिवारों का कहना है कि प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य सब झूठे हैं।

हमास को इस्राईल की आंतरिक स्थिति की भी पूरी ख़बर है और उसे फ़िलिस्तीनी संगठनों की क्षमताओं की भी पूरी जानकारी है। हमास की शर्त है कि फ़िलिस्तीनी नागरिकों, महिलाओं और बच्चों पर इस्राईल हमला बंद करे और ज़ायोनी सैनिक ग़ज़ा पट्टी से पूरी तरह बाहर निकल जाएं।

 हमास के नेताओं ने अन्य फ़िलिस्तीनी संगठनों से संघर्ष विराम के मुख्य बिंदुओं के बारे में बातचीत शुरू कर दी है। हमास इसके साथ ही दूसरे देशों के अधिकारियों से ही बातचीत कर रहा है। फ़िलिस्तीनी संगठनों ने हालात को देखते हुए साफ़ कर दिया है कि जब तक पूरी तरह स्थायी संघर्ष विराम नहीं हो जाता, ग़ज़ा पट्टी से इस्राईली सेनाएं बाहर नहीं निकल जातीं, ग़ज़ा की नाकाबंदी समाप्त नहीं कर दी जाती तब तक इस्राईली क़ैदियों को हरगिज़ रिहा नहीं किया जाएगा।

अतीत के अनेक उदाहरण हैं जो बताते हैं कि ज़ायोनी शासन न तो किसी प्रतिबद्धता पर अमल करता है और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून मानने को तैयार है। यही वजह है कि हमास दूसरे फ़िलिस्तीनी संगठन ज़ायोनी शासन से अप्रत्यक्ष बातचीत में इस बात की गैरेंटी हासिल करना चाहता हैं कि ज़ायोनी शासन पर दबाव डाला जाएगा किवह अपनी प्रतिबद्धताओं पर अमल करे। 

 

ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमलों की शुरुआत के लगभग पांच महीने बाद, यूनिसेफ़ ने घोषणा की है कि क्षेत्र में दस लाख से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं।

यूनिसेफ़ ने एक बयान में कहा कि ग़ज़्ज़ा के 95 प्रतिशत परिवारों में बुज़ुर्ग हैं जो अपने बच्चों को खिलाने के लिए कम खाते हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ की इस सहायक कंपनी ने अपने बयान में कहा है कि गाजा में खाद्य पदार्थों की निरंतर डिलीवरी की बहुत जरूरत है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष रिपोर्टर माइकल फ़ख़्री ने भी गार्डियन से बो करते हुए कहा कि इस्राईल जानबूझकर फ़िलिस्तीनियों को भूखा मार रहा है। उनका कहना था कि भोजन तक पहुंच को रोकना एक युद्ध अपराध है और नरसंहार है।

उन्होंने इंटरव्यू में कहा कि ग़ज़्ज़ा में मानवीय सहायता रोकने या छोटी मछली पकड़ने वाली नौकाओं, ग्रीनहाउस गैसों और बगीचों को नष्ट करने का, सिवाय लोगों को भोजन से वंचित करने के कोई कारण नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र के इस अधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जानबूझकर लोगों को भोजन से वंचित करना एक अपराध है और इस्राईल ने साबित कर दिया है कि वह सभी फ़िलिस्तीनियों या उनके एक बड़े हिस्से को सिर्फ़ इसलिए ख़त्म करना चाहता है क्योंकि वे फ़िलिस्तीनी हैं।

ईरान के पारस-1 उपग्रह का सफलता से अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया गया।

रूस के सायोज़ लांचर से ईरान के पारस-1 उपग्रह को सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया।

पारस-1 उपग्रह को गुरूवार 29 फरवरी 2024 को सुबह लांच किया गया।  ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये का कहना था कि ईरान के भीतर माहदश्त और क़िश्म में दो एसे स्टेशन हैं जो पारस-1 उपग्रह के डेटाज़ को एकत्रित करेंगे।

ख़याम के बाद पारस-1 एसा दूसरा ईरानी उपग्रह है जिसको रूसी प्रक्षेपण केन्द्र से भेजा गया है।  पिछले दो वर्षों के दौरान अंतरिक्ष में ईरान की ओर से 12 उपग्रह भेजे जा चुके हैं जिनमें पारस-1 बारहवां उपग्रह है।अन्य उपग्रहों की तुलना में ईरान के पारस-1 उपग्रह में अधिक उन्नत प्रणालियां पाई जाती है जिनको ईरानी विशेषज्ञों ने बनाया है।

इसकी विशेषताओं के बारे में ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये ने बताया कि पारस-1 उपग्रह वास्तव में अनुसंधानिक उपग्रह है जो कई प्रकार के काम करने में सक्षम है।