मां की क़द्र करनी चाहिए, मां के बारे में इस्लाम क्या कहता है?

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मां की क़द्र करनी चाहिए, मां के बारे में इस्लाम क्या कहता है?

सभी ईश्वरीय धर्मों में मां का सम्माननीय और उच्च स्थान है और हर कोई उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखता है और उनकी महानता के साथ जोड़कर की उन्हें याद करता है। इस्लाम धर्म में भी इस विषय पर बहुत अधिक बल दिया गया है।

सारे ईश्वरीय दूतों ने मां का सम्मान करने की सलाह देते हुए सबसे पहले मां के सामने झुककर उसका सम्मान किया और मां के लिए ईश्वर से दया और क्षमा की भीख मांगी।

ईश्वरीय दूत हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने माता-पिता के लिए दुआ करते हैं और ईश्वर से उन्हें माफ़ करने के लिए गिड़गिड़ाते हैं।एक स्थान पर दुआ करते हुए कहा: "ईश्वर मुझे, मेरे मां बाप और सारे मोमिनों को हिसाब किताब के दिन माफ़ कर दे।

हज़रत मूसा और स्वर्ग में उनका साथी

अल्लाह के नबी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के धर्म में भी मां का स्थान बहुत बड़ा था। जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की कि हे अल्लाह तू मुझे जन्नत में मेरे साथ रहने वाले व्यक्ति को दिखा दे ताकि मैं उसे पहचान सकूं।

अल्लाह ने उनसे कहा, ऐ मूसा, अमुक मोहल्ले में, फ़लां दुकान पर जाओ, जो व्यक्ति वहां काम कर रहा होगा, वही स्वर्ग में तुम्हारा साथी होगा।

इस युवक के बारे में जांच पड़ताल करने के बाद हजरत मूसा को एहसास हुआ कि वह अपनी लकवाग्रस्त मां के सभी काम करता है और उसकी मां हमेशा उसके लिए दुआ करती है कि अल्लाह उसके बेटे को स्वर्ग में हज़रत मूसा बिन इमरान का साथी बना दे।

मां के बारे में ईसा मसीह का नज़रिया

हज़रत ईसा मसीह के धर्म में मां की पोज़ीशन ऐसी है कि वह अपनी ज़िदगी के शुरुआती दौर में ही ईश्वर का आभार व्यक्त करते और इस बात को याद दिलाते हैं, ईश्वर का इस बात पर आभार व्यक्त करते हैं कि उसने उन्हें अपनी मां के प्रति उदार बनाया क्योंकि वह जानता है कि मां से दयालुता ही सर्वोच्च और सबसे अहम है, हज़रत ईसा मसीह फ़रमाते हैं कि उसने मुझे मेरी मां के प्रति दयालु बनाया है, अत्याचारी और क्रूर नहीं बनाया।

मां के क़दमों के नीचे जन्नत

हालांकि सभी ईश्वरीय धर्म मां को अहम और मूल्यवान स्थान देते हैं और उसका सम्मान करते हैं जबकि इस्लाम धर्म ने इस मुद्दे पर अन्य मतों की तुलना में अधिक ध्यान दिया है और मां को अधिक महानता प्रदान की है।

पवित्र क़ुरआन में ईश्वर ने मां का उल्लेख, महानता और महिमा के साथ किया है और एक प्रकार से उसके रुतबे की प्रशंसा की है।

सर्वशक्तिमान ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे लुक़मान और अहक़ाफ़ में, माता-पिता के प्रति दयालुता की सिफारिश करने के बाद, मां द्वारा उठाई गयी कठिनाइयों और उसके ज़रिए बर्दाश्त की गयी की पीड़ाओं को बयान करता है।

हदीसों और पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नतों में मां के अधिकारों का पालन और उसकी पवित्रता और ऊंचे स्थान को बेहतरीन तरीक़े से बयान किय गया है।

मां के स्थान को समझाते हुए पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं कि मां के क़दमों के नीचे जन्नत है।

यह हदीस इशारा करती है कि मां की सहमति के बिना कोई स्वर्ग में नहीं जा सकता और न ही ईश्वर की कोई अनुकंपा पा सकता है।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सिफ़ारिश

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैकहिस्सलाम मां के अधिकार और उसकी महानता और गरिमा के बारे में कहते हैं: तुम्हारे ऊपर मां का यह हक़ है कि तुम जानो कि तुम्हारी मां ने तुम्हें ऐसे उठाया जैसे कोई दूसरा उठा नहीं सकता था, उसने तुम्हें अपने दिल के उस फल में से दिया जो कोई दूसरे को नहीं देता, उसने तुम्हें अपने सभी अंगों और शरीर से गले लगाया, ख़ुद तो भूखी रही लेकिन उसने तुम्हें भूखा नहीं रहने दिया, तुम्हें ढांके रखा और सूरज की धूप से तुम्हें बचाया जबकि ख़ुद धूप में रही, तुम्हारे लिए उसने नींद छोड़ दी और तुमको सर्दी और गर्मी से बचाया, इन सारी सेवाओं के मुक़ाबले में, तुम कैसे और किस तरह से उसका आभार व्यक्त करो लेकिन अल्लाह की मदद और उसकी कृपा दृष्टि से।

अधिकारों को समझाने की दिशा में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिसस्लाम का यह बयान, मां के पद की महानता और उसके ऊंचे स्थान को दर्शाता है।

यह बात स्वाभाविक है कि एक बच्चे के प्रति यह सारा प्यार और स्नेह और एक बच्चे को पालने के लिए बहुत सारी कठिनाइयों को सहन करना, इस बात की मांग करता है कि बच्चे इस बड़े हक़ को अदा करने का पूरा प्रयास करें। यही कारण है कि सर्व शक्तिमान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में इरशाद फ़रमाता है कि अपने माता-पिता से उफ़ तक न कहो। अगर तुमने अपनी मां का दिल दुखाया और उसे परेशान किया तो ख़ुद को आक़ समझे (यानी औलाद के हक़ से वंचित समझे, ईश्वर के क्रोध का सामना करना पड़ेगा क्योंकि मां के क्रोध के साथ ही ईश्वर का क्रोध होता है।

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पौत्रों का यह आचरण रहा है कि उन्होंने हमेशा अपनी माताओं का सम्मान किया और हमेशा ही उसके ऊच्च स्थान के सामने नतमस्तक रहे।

धार्मिक दृष्टि से भी मां का स्थान, एक उच्च स्थान है जिसका उल्लेख कुरआन की आयतों में ईश्वर की आज्ञा मानने और उसकी इबादत के रूप में किया गया है।

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