
رضوی
इमामे ज़माना (अ) की ग़ैबत में हमारी जिम्मेदारियां।
ग़ैबते कुबरा के ज़माने में उम्मत का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की पहचान हासिल करना है और यह इतना महत्वपूर्ण है कि पैग़म्बर स. ने फ़रमायाः
من مات ولم یعرف امام زمانہ مات میتة جاہلیة
जो इंसान इस हालत में मरे कि उसे अपने ज़माने के इमाम की पहचान न हो वह जाहेलियत (कुफ़्र) की मौत मरता है।
असलिए उम्मत की ज़िम्मेदारी है कि इमाम अलैहिस्सलाम की सही पहचान के लिए संघर्ष करे ख़ास कर उन दुआओं को ज़्यादा पढ़ा जाए जो इस काम में मददगार साबित हों जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रामाया है
اللھم عرفنی نفسک فانک ان لم تعرفنی نفسک لم اعرف نبیک اللھم عرفنی نبیک فانک ان لم تعرفنی نبیک لم اعرف حجتک اللھم عرفنی حجتک فانک ان لم تعرفنی حجتک ضللت عن دینی۔
हे मेरे अल्लाहः मुझे अपनी सही पहचान प्रदान कर क्योंकि अगर तू मुझे अपनी ही सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरे नबी की पहचान हासिल नहीं कर सकता हूं। हे मेरे अल्लाह मुझे अपने नबी की पहचान प्रदान कर क्योंकि यदि तू मुझे अपने नबी की सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरी हुज्जत (इमाम) को नहीं पहचान सकता। हे मेर अल्लाह मुझे अपनी हुज्जत की सही पहचान करा दे क्योंकि यदि मुझे अपनी हुज्जत की पहचान नहीं करे तो अपने दीन से भटक जाऊँगा।
عن الی عبداللہ علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل من یوت الحکمہ فقد اوتی خیرا کثیرا فقال طاعة اللہ و معرفة الامام
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस आयत के संबंध में जिसको हिकमत दी गई उसे बहुत ज्यादा ख़ैर (नेकी) दिया गया इस हिकमत से मुराद अल्लाह की पैरवी और इमाम की सही पहचान है। (उसूले काफी)
इताअत और पैरवी
कुरान और हदीस के अनुसार इमाम अलैहिस्सलाम की इताअत को बिना किसी क़ैद व शर्त के वाजिब किया गया है लेकिन ग़ैबते कुबरा के जमाने में यह जिम्मेदारी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
عن الی جعفر علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل واٰتمنا ھم ملکا عظیما قال الطاعة المفروضة۔
इस आयत और हमने उनको मुल्के अजीम दिया के संबंध में इमाम मोहम्मद बाकर अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि इससे मुराद हमारी वह पैरवी है जो लोगों पर वाजिब की गई है।
ज़ुहूर की दुआ
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर में जल्दी की बहुत ज्यादा दुआएं मांगे क्योंकि खुद इमाम ज़माना ने फरमाया हैः
اکثر و الدعاءبتعجیل الفرج فان ذلک فرجکم
मेरे ज़ुहूर में जल्दी के लिए बहुत ज्यादा दुआ करो क्योंकि तुम्हारे मुश्किलों का हल इसी में है इसके अलावा दुआ ए फर्ज पढ़ने की भी बहुत ज़्यादै ताकीद की गई है जो अक्सर दुआओं की किताबों में दर्ज है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِیمِ
اِلهى عَظُمَ الْبَلاَّءُ وَبَرِحَ الْخَفاَّءُ وَانْكَشَفَ الْغِطاَّءُ وَانْقَطَعَ الرَّجاَّءُ
وَضاقَتِ الاْرْضُ وَمُنِعَتِ السَّماَّءُ واَنْتَ الْمُسْتَعانُ وَاِلَيْكَ
الْمُشْتَكى وَعَلَيْكَ الْمُعَوَّلُ فِى الشِّدَّةِ وَالرَّخاَّءِ اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى
مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ اُولِى الاْمْرِ الَّذينَ فَرَضْتَ عَلَيْنا طاعَتَهُمْ
وَعَرَّفْتَنا بِذلِكَ مَنْزِلَتَهُمْ فَفَرِّجْ عَنا بِحَقِّهِمْ فَرَجاً عاجِلا قَريباً كَلَمْحِ
الْبَصَرِ اَوْ هُوَ اَقْرَبُ يا مُحَمَّدُ يا عَلِىُّ يا عَلِىُّ يا مُحَمَّدُ اِكْفِيانى
فَاِنَّكُما كافِيانِ وَانْصُرانى فَاِنَّكُما ناصِرانِ يا مَوْلانا يا صاحِبَ
الزَّمانِ الْغَوْثَ الْغَوْثَ الْغَوْثَ اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى السّاعَةَ
السّاعَةَ السّاعَةَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ يا اَرْحَمَ الرّاحِمينَ بِحَقِّ
مُحَمَّدٍ وَآلِهِ الطّاهِرينَ
इंतेज़ार
इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़हूर का इंतजार सबसे अच्छी इबादत है इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि हमारा क़ाएम महदी है उनके गायब होने के दौरान उनका इंतजार करना वाजिब है और उसका सवाब इमाम ने यूं बयान किया है कि जो इंसान हमारे महदी का इंतेज़ार करेगा वह उस इंसान की तरह है जो अल्लाह की राह में अपने खून में लथपथ होता है बस यह इंतजार इस तरह होना चाहिए कि किसी भी पल लापरवाही ना हो इमाम सादिक़ अ.स फरमाते हैं
وانتظرو الفرج صباحاً و مساء
तुम लोग सुबह व शाम ज़हूर का इंतजार करो।
ज़ियारत की तमन्ना
अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के शियों की इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की ग़ैबत में एक बड़ी जिम्मेदारी आप की जियारत की तमन्ना और उसके शौक का इज़हार करना भी है। हर वक्त दिल में उनके दीदार की तड़प रहनी चाहिए अपने आका से बात करने के लिए हर जुमे की सुबह दुआए नुदबा पढ़े जिस में बार-बार यह आया है कि हम तेरे बंदे तेरे उस बली की जियारत के मुश्ताक़ हैं कि जो तेरे व तेरे रसूल की याद ताजा करता है।
इमाम ज़माना की सलामती के लिए दुआ
एक सच्चे मोमिन और शिया की जिम्मेदारी यह है कि वह अपनी दुआओं में अपने मार्गदर्शक और आका की सलामती का इच्छुक रहे खास तौर से इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के लिए बहुत ज्यादा दुआ मांगे। और लगातार यह दुआ पढ़े
اللھم کن لولیک الحجة ابن الحسن علیہ السلام صلواتک علیہ و علی آبائہ فی ھذة الساعة و فی کل ساعة ولیا و حافظا و قائدا و ناصرا و دلیلا و عینا حتی تسکنہ ارضک طوعا و تمتعہ فیھا طویلا۔
इमाम ज़माना की सलामती के लिए सदका देना
एक और पसंदीदा काम जिसकी हमारे इमामों ने बहुत ज्यादा ताकीद की है वह यह है कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती की नियत से सदक़ा दिया जाए सदक़ा अपने आप में एक पसंदीदा काम है और इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के नियत से उसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अल्लाह के नजदीक इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के लिए माल खर्च करने से ज्यादा पसंदीदा कोई और काम नहीं है जो मोमिन अपने माल से एक दिरहम इमाम अलैहिसलाम के लिए खर्च करेगा अल्लाह ताला जन्नत में ओहद के पहाड़ के बराबर उसे उसका बदला देगा। (उसूले काफी)
इमाम अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारियों की पैरवी
ग़ैबत के जमाने में कोई इंसान इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का खास उत्तराधिकारी नहीं है बल्कि फ़ुक़हा ही हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के आम प्रतिनिधि हैं इसलिए उनकी पैरवी वाजिब है जिसे फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र) में तक़लीद कहा जाता है खुद इमामे ज़माना फरमाते हैं हमारी ग़ैबत में पेश आने वाले हालात और समस्याओं के सिलसिले में हमारी हदीसों को बयान करने वाले उलमा से संपर्क करो इसलिए कि वह हमारी तरफ से तुम पर हुज्जत हैं और हम अल्लाह की तरफ से उन पर हुज्जत हैं।
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लेने की मनाही
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम हमारे आख़री नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम के नाम पर है लेकिन हदीसों में हज़रत का नाम पुकारने से मना किया गया है बल्कि आपकी जो उपाधियां हैं उनमें से किसी उपाधि द्वारा आपको पुकारे जैसे हुज्जत, महदी-ए-मुंतज़र आर इमाम ग़ाएब या कोई दूसरी उपाध्यि।
सम्मान में खड़े होना
जब इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाए और आपको क़ाएम के उपाधि से पुकारा जाए तो सम्मान के लिए खड़े होना मासूम इमामों की सुन्नत है क्योंकि जब देबिल ख़ुज़ाई ने आठवें इमाम अलैहिस्सलाम की सेवा में अपना कसीदा पेश किया था तो जैसे ही आखरी इमाम अलैहिस्सलाम का नाम आया तो इमाम सम्मान में खड़े हो गए थे।
इमामे हसन असकरी(अ)
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम का नाम हसन व आपकी मुख्य उपाधि अस्करी है।
जन्म व जन्म स्थान
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 232 हिजरी क़मरी मे रबि उल आखिर मास की आठवी (8) तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
माता पिता
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत सलील थी। जिनका नाम कुछ इतिहास कारों ने सोसन व हुदैस भी लिखा है।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम अस्करी की शहादत सन् 260 हिजरी क़मरी मे रबी उल अव्वल मास की आठवी(8) तिथि को हुई।अब्बासी खलीफ़ा मोतामिद अब्बासी ने आपको विष खिलवाया जो आपकी शहादत का कारण बना।
समाधि
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम की समाधि बग़दाद के समीप सामर्रा नामक स्थान पर है। जहाँ पर लाखो श्राद्धालु आपकी समाधि के दर्शन कर आप पर सलाम पढ़ते हैं।
इमामे असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत- 2
उस समय अब्बासी शासक मोतमिद के हाथ में सत्ता थी। वह सोचता या कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपने मार्ग से हटाकर वह उनकी याद को भी लोगों के मन से मिटा देगा और वे सदैव के लिए भुला दिए जाएंगे किन्तु जिस दीपक को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों ने जलाया हो वह कभी बुझ नहीं सकता बल्कि वह मानवता का सदैव मार्गदर्शन करता रहे गा।
जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैं: मेरे परिजन नूह की नौका की भांति हैं जिसने उनके दामन में पनाह ली वह मुक्ति पाएगा और जो उनसे दूर होगा वह डूब जाएगा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर ईश्वर का सलाम हो हम इस बात के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने मानवता के मार्गदर्शन के लिए इस महान हस्ती को संसार में भेजा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की पहचान और उनके समक्ष विनम्रता के बारे में कहते हैं: जिसे अपने धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की अधिक पहचान हो और वह उसके लिए अधिक प्रयास करे, ईश्वर के निकट उसका स्थान बहुत ऊंचा होगा। जो अपने धार्मिक बंधुओं से विनम्रता से मिले तो ईश्वर के निकट उसकी गणना सत्यवादियों व सत्य के अनुयाइयों में होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत अर्थात ईश्वरीय आदेशानुसार जनता के मार्गदर्शन का काल, अब्बासी शासन श्रृंखला का सर्वाधिक हिंसाग्रस्त काल था। अब्बासी शासकों की अयोग्यता और दरबरियों में आपस में अंतरकलह, जनता में असंतोषत और निरंतर विद्रोह, दिगभ्रमित विचारों का प्रसार, उस काल की राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल के कारणों में थे। शासक, जनता का शोषण कर रहे थे और वंचितों व बेसहारा लोगों की संपत्ति बलपूर्वक हथि रहे थे। वे जनता के पैसों से भव्य महलों का निर्माण करते थे और जनता की निर्धनता व समस्याओं की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे।
अब्बासी शासक अपने अत्याचारी शासन को चलाने के लिए किसी भी अपराध की ओर से संकोच नहीं करते थे और समाज के सभी वर्गों के साथ उनका व्यवहार कठोर था। उस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को और अधिक घुटन भरे वातावरण का सामना था। क्योंकि ये हस्तियां अत्याचार व भ्रष्टाचार के समक्ष मौन धारण नहीं करती थीं बल्कि उनके विरुद्ध आवाज़ उठाती थीं।
अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी और उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को मदीना नगर से जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का केन्द्र था, तत्कालीन अब्बासी शासन की राजधानी सामर्रा नगर पलायन के लिए विवश किया। सामर्रा नगर में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासन के अधिकारियों के नियंत्रण में थे। उन्हें सप्ताह में कुछ दिन अब्बासी शासन के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। अब्बासी शासक, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर विभिन्न शैलियों से दबाव डालते थे क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह कथन सब को याद था कि विश्व को उत्याचार से मुक्ति दिलाने वाला उन्हीं का पौत्र होगा। वह मानवता को मुक्ति दिलाने वाले वही मोक्षदाता हैं जिन के प्रकट होने से संसार से अत्याचार जड़ से समाप्त हो जाएगा। ऐसे किसी शिशु के जन्म की कल्पना, अत्याचारी अब्बासी शासकों को अत्यधिक भयभीत करने वाली थी।
अब्बासी शासकों के व्यापक स्तर पर प्रयासों के बावजूद इस शिशु के जन्म लेने का ईश्वर का इरादा व्यावहारिक हुआ और इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के जन्म के पश्चात, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कठिन भविष्य का सामना करने के लिए समाज को तैयार करने का बीड़ा उइया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उचित अवसरों पर ग़ैबत अर्थात इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के लोगों की दृष्टि से ओझल रहने के काल की विशेषताओं तथा संसार के भावी नेतृत्व में अपने सुपुत्र की प्रभावी भूमिका का उल्लेख करते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बल दिया करते थे कि उनके सुपुत्र के हातों पूरे विश्व में न्याय व शांति स्थापित होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जिसकी भी दृष्टि उन पर पड़ती वह ठहर कर उन्हें देखने लगता और बरबस उनकी प्रशंसा करता था।
अब्बासी शासन की इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से शत्रुता के बावजूद इस शासन का एक मंत्री इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व का उल्लेख इन शब्दों में करता है। मैंने सामर्रा में हसन बिन अली के जैसा किसी को न पाया। गरिमा, सुचरित्र और उदारता में कोई उनके जैसे नहीं मिला।
हालांकि वह युवा हैं किन्तु बनी हाशिम उन्हें अपने वृद्धों पर वरीयता देते हैं। वह इतने महान हैं कि मित्र और शत्रु दोनों ही प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते।
वंचितों और बेसहारों पर इमाम की कृपादृष्टि उनके लिए आशा की किरण थी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा से लाभान्वित होने वाला एक व्यक्ति कहता है: मेरी और मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी थी कि लोगों की दान दक्षिणा से बड़ी मुश्किल से जीवन व्यतीत हो रहा था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से भेंट करना बहुत कठिन था क्योंकि अब्बासी शासन ने उन पर बहुत रोकटोक लगा रखी थी। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की उदारता विख्यात थी। वे समस्याओं में घिरे लोगों की सहायता के लिए जाने जाते थे। इसलिए मुझे आशा थी कि वे मेरी आर्थिक समस्या का निदान करेंगे। मार्ग में पिता ने मुझसे कहा कि यदि इमाम पॉच सौ दिरहम दे दें तो मेरी बहुत सी समस्याओं का निदान हो जाएगा। मैं भी मन ही मन सोच रहा था कि यदि इमाम मुझे तीन सौ दिरहम दे दें तो में जबल नगर जाकर अपना नया जीवन आरंभ करुंगा। हम लोग इमाम के घर में प्रविष्ट हुए और एक कमरे में प्रतीक्ष करने लगे। उनके एक संबंधी, कमरे में आए और पॉंच सौ और तीन सौ दिरहम की दो थेलियां पिता को और मुझे दे दीं। में आश्चर्य में पड़ गया, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मैं और पिता आश्चर्य की स्थिति में थे कि इमाम के दूत ने मुझसे कहा: इमाम ने तुम्हें जबल नगर जाने से रोका है बल्कि जीवन यापन के लिए सूरा नगर का सुझाव दिया है। ईश्वर का आभार व्यक्त करते हुए बहुत प्रसन्न हो कर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर से निकला मैं इमाम के सुझाव के अनुसार सूरा नगर गया और इमाम की सहायता से वहॉ अच्छा जीवन व्यतीत करने लगा। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम के महान पौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा दृष्टि का फल था।
उस समय लोगों के विचारों पर संकीर्णता छाई हुई थी और धर्म में नई नई बातें शामिल की जा रही थीं, ऐसी स्थिति में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने धर्म के वास्तविक रुप को लोगों के सामने स्पष्ट किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम के अन्य परिजनों की भांति ज्ञान का अथाह सागर था। लोगों की ज़बान पर इमाम अलैहिस्सलाम के ज्ञान की चर्चा रहती थी। वे सत्य के मार्ग की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते थे। शास्त्रार्थों में इमाम ऐसे प्रभावी र्तक देते थे कि तत्कालीन अरब दार्शनिक याक़ूब बिन इस्हाक़ कन्दी ने इमाम से शास्त्रर्थ के पश्चात उस किताब को जला दिया जिसमें उसने कुछ धार्मिक बातों की आलोचना की थी। उस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को लोगों तक अपना दृष्टिकोण पहुंचाने में भी कठिनाइयों का सामना था। इसलिए इमाम अनेक शैलियों तथा अपने विश्वस्नीय प्रतिनिधियों के माध्यम से जनसंपर्क बनाते थे और सुदूर क्षेत्रों के मुसल्मानों की स्थिति से अवगत होते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ईश्वर की इतनी उपासना करते थे कि बहुत से पथभ्रष्ट उनकी उपासना को देखकर सत्य के मार्ग पर आ जाते थे। ऐसे ही लोगों में सालेह बिन वसीक़ नामक जेलर भी था। जिस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल ले जाया गया उस समय सालेह बिन वसीक़ जेलर था। वह इमाम के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसकी गणना उस समय के महाउपासकों व धर्मनिष्ठों में होने लगी। वह कहता है:जैसे ही में इमाम को देखता हूं, मेरे भीतर ऐसा परिवर्तन होने लगता है कि मैं स्वंय पर नियंत्रण नहीं रख पाता और ईश्वर की उपासना करने लगता हूं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं: मिथ्या, व्यक्ति को झूठ , बेइमानी, वचन तोड़ने और छल कपट की ओर ले जाती है और सत्य के मार्ग से दूर कर देती है। मिथ्याचारी व्यक्ति भरोसे के योग्य नहीं है। जान लो कि मिथ्या को समझने के लिए पैनी दृष्टि और बहुत चेतना की आवश्यक्ता होती है।
एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं: तुम्हारा जीवन बहुत सीमित और इसके दिन निर्धारित है और मृत्यु अचानक आ पहुंचती है। जो सदकर्म करता है उससे लाभानिवत होता है और जो बुराई करता उसके परिणाम में उसे पछतावा होता है तुम्हें धर्म को समझने, शिष्टाचार अपनाने, और सदकर्म की अनुशंसा करता हूं।
हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत -1
इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।
शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति
इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं.
इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।
इल्मी कोशिशें
हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।
शियों का आपसी संपर्क
इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।
ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला
वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।
क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।
ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम
इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।
शियों की माली मदद
आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।
इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।
बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना
इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे,
चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें,
इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।
इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल
हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है,
और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे,
जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।
इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त
हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।
इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।
इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना
अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं,
इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं,
जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।
हज़रत इमाम हसन अस्करी अ.स. के बाद सामने आने वाले कई फ़िर्क़े उनकी संक्षिप्त परिचय
इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।
अब्बासी बादशाह अपनी ज़ुल्म और अत्याचार वाले स्वभाव के चलते दिन प्रतिदिन अपनी लोकप्रियता को खो रहे थे, लेकिन हमारे मासूम इमाम अ.स. अपने पाक किरदार और नेक सीरत के चलते लोगों के दिलों में उतरते जा रहे थे और उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी,
अब्बासी बादशाह सामाजिक तौर पर कमज़ोर होते जा रहे थे और हमारे इमाम अ.स. सामाजिक तौर पर मज़बूत हो रहे थे, और ऐसा होते हुए अपनी आंखों से देखना अब्बासी बादशाहों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, वह हमेशा से इमामों पर ज़ुल्म करते आए थे यहां तक कि इमाम असकरी अ.स. का घर अब्बासी हुकूमत की कड़ी निगरानी में था,
इमाम अ.स. के चाहने वाले और आपके शिया इमाम अ.स. से खुलेआम ना ही मुलाक़ात कर सकते थे और ना ही बातचीत, बनी अब्बास ने अपनी पूरी कोशिश और ताक़त केवल इसी में झोंक रखी थी कि जैसे ही इमाम हसन असकरी अ.स. के यहां बेटे की विलादत हुई वह उसे तुरंत जान से मार डालेंगे,
ज़ाहिर सी बात है ऐसे घुटन के माहौल और ऐसे परिस्तिथि और बनी अब्बास की ऐसा साज़िश के चलते इमाम हसन असकरी अ.स. के लिए सावधानी बरतना और तक़य्या के रास्ते को चुनना ज़रूरी हो गया था ताकि अपनी, अपने बेटे, अल्लाह के दीन और साथ ही अपने शियों की जान बचा सकें, यही वजह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में दूसरे सारे इमामों से ज़्यादा सावधानी बरती जा रही थी और तक़य्या पर अमल हो रहा था और इमाम अ.स. भी बहुत संभल कर क़दम उठा रहे थे और लगभग सारे कामों को छिप कर अंजाम दे रहे थे सारी बातों और ख़बरों को छिपा कर रख रहे थे जिनमें से एक ख़बर इमाम महदी अ.स. की विलादत की ख़बर थी।
नए फ़िर्क़ों के सामने आने की वजह
इमाम ज़माना अ.स. की जान की हिफ़ाज़त के लिए उनकी विलादत की ख़बर को छिपाने के कराण कुछ शिया इमाम हसन असकरी अ.स. और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत में शक करने लगे (क्योंकि शिया अक़ीदे के मुताबिक़ इमाम हसन असकरी अ.स. का बेटा होना ज़रूरी है ताकि वह उनके बाद इमाम बन सके और अगर इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं हुआ तो ख़ुद उनकी इमामत में भी शक होने लगा) लोगों को इस हद तक शक हुआ कि इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।
एक तरफ़ इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर को उनकी जान की हिफ़ाज़त की वजह से छिपाना और दूसरी तरफ़ जाफ़र का इमामत का दावा यह दोनों बातें उस दौर के शियों के लिए काफ़ी परेशानी की वजह बनी, इन सारी परेशानियों के साथ साथ दूसरे फ़िक्री और अक़ीदती फ़िर्क़े वालों ने शिया फ़िर्क़े पर जम के आरोप लगाए
और जो कुछ उनसे हो सका उन लोगों ने कहा, मोतज़ेलह, अहले हदीस, ज़ैदिया और ख़ास कर बनी अब्बास ने शिया फ़िर्क़े पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हक़ीक़त तो यह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद शियों में जो शक का दौर रहा है वह उससे पहले कभी नहीं देखा गया,
लेकिन जैसे ही शियों को भरोसेमंद स्रोत से इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर मिली वह संतुष्ट हो गए और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत को स्वीकार भी किया और उनकी पैरवी को अपने ऊपर बाक़ी इमामों की तरह वाजिब समझा, और बाक़ी के सारे फ़िर्क़े जो इस दौर में सामने आए थे वह सब कुछ ही समय में नाबूद हो गए,
आज उन फ़िर्क़ों का कोई भी पैरवी करने वाला मौजूद नहीं है बस केवल किताबों में एक ऐतिहासिक दास्तान बन कर रह गए हैं, यहां तक कि शैख़ मुफ़ीद र.ह. के ज़माने तक भी यह लोग बाक़ी न रह सके, जैसाकि शैख़ मुफ़ीद र.ह. ने इन फ़िर्क़ों के बारे में लिखा है कि, इस साल (373 हिजरी) और हमारे दौर में इन फ़िर्क़ों में से कोई भी बाक़ी नहीं बचा, सब नाबूद हो चुके हैं।
इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद जो फ़िर्क़े सामने आए वह इस प्रकार हैं.....
इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे जाफ़र की इमामत पर अक़ीदा
जिन लोगों ने जाफ़र का इमाम माना वह चार गिरोह में बंटे हुए थे....
पहला- कुछ लोगों का कहना था कि जाफ़र, इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई इमाम हैं लेकिन इस वजह से नहीं कि इमाम हसन असकरी अ.स. ने अपने भाई के लिए वसीयत की हो बल्कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसलिए हम मजबूर हैं कि उनके भाई जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानें।
दूसरा- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि जाफ़र ही इमाम हैं क्योंकि इमाम हसन असकरी अ.स. ने वसीयत की है और जाफ़र को अपनी जानशीन क़रार दिया है, यह फ़िर्क़ा भी पहले फ़िर्क़े की तरह जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानता है।
तीसरा- कुछ का मानना यह था कि जाफ़र इमाम हैं, और उनको यह इमामत अपने वालिद से मीरास में मिली है न कि उनके भाई से, और इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत बातिल थी क्योंकि उन्हें कोई बेटा ही नहीं था जबकि उनको बेटा होना ज़रूरी था ताकि इमामत का सिलसिला आगे बढ़ सके, उनका कहना था कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसीलिए इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद इमाम हसन असकरी अ.स. इमाम नहीं हो सकते साथ ही इमाम अली नक़ी अ.स. के दूसरे बेटे मोहम्मद भी इमाम नहीं हो सकते क्योंकि वह इमाम अली नक़ी अ.स. की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, इसलिए हम मजबूर हैं कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद जाफ़र को इमाम मानें।
चौथा- कुछ लोग इस बात पर अड़े थे कि जाफ़र को उनके भाई मोहम्मद से इमामत मिली है, इन लोगों का कहना था कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे अबू जाफ़र मोहम्मद इब्ने अली जो कि अपने वालिद की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, वह अपने वालिद की वसीयत के मुताबिक़ इमाम थे, और चूंकि मोहम्मद अपनी वफ़ात के समय किसी की तलाश में थे ताकि अपनी जानशीनी और इमामत की ज़िम्मेदारी उसके हवाले कर सकें इसलिए आख़िर में नफ़ीस नाम के ग़ुलाम के हवाले अपनी किताबें और दूसरी चीज़ें कर दीं और उससे वसीयत की कि जब भी उनके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की शहादत का समय क़रीब आए तो इन सब चीज़ों को जाफ़र के हवाले कर देना, यह गिरोह इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत को नहीं मानता था, इन लोगों का कहना था इमाम असकरी अ.स. के वालिद ने उन्हें अपना जानशीन नहीं बनाया था इसलिए मोहम्मद इब्ने अली ग्यारहवें इमाम हैं और उसके बाद जाफ़र इमाम होंगे।
इमाम हसन असकरी अ.स. के एक और बेटे की इमामत पर अक़ीदा
यह फ़िर्क़ा भी 4 गिरोह में बंटा हुआ था.
पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा था जिसका अली नाम रखा और इमामत के बारे में उसी से वसीयत की, इसलिए अली इब्ने हसन बारहवें इमाम हैं।
दूसरा- कुछ लोगों का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के 8 महीने बाद एक बेटा पैदा हुआ और वही बारहवां इमाम है।
तीसरा- एक गिरोह का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा है जो अल्लाह के हुक्म से अभी पैदा नहीं हुआ है, वह अभी मां के पेट में है और अल्लाह के हुक्म से पैदा होगा।
चौथा- कुछ लोगों का मानना है कि इमाम असकरी अ.स. के बाद उनका बेटा मोहम्मद इमाम था लेकिन वह इमाम असकरी अ.स. की ज़िंदगी में ही मर गया, अब बाद में ज़िंदा हो कर वापस आएगा और इंक़ेलाब लाएगा।
इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत के बाक़ी रहने पर अक़ीदा
इस अक़ीदे वाले लोग भी 2 गिरोह में बंटे हुए हैं।
पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. ज़िंदा हैं और महदी, मुंतज़र और क़ायम हैं, क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं है इसलिए इमाम वही हैं, और ज़मीन भी अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली नहीं रह सकती, इस गिरोह का कहना है कि अगर इमाम की शहादत या उनके इंतेक़ाल के समय उनका कोई बेटा नहीं है तो वह ख़ुद ही महदी-ए-क़ायम है और हमें उसके ज़िंदा रहने पर अक़ीदा रखना होगा और शियों को उसके इंतेज़ार में अपनी आंखें बिछाए रहना चाहिए ताकि वह वापस हमारे सामने आ जाएं, क्योंकि जिस इमाम का बेटा न हो और उसका कोई जानशीन न हो तो उसे मुर्दा नहीं समझा जा सकता, हमें कहना ही पड़ेगा कि वह ग़ैबत में हैं।
दूसरा- इन लोगों का मानना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. इस दुनिया से चले गए थे फिर वापस ज़िंदा हुए और फिर से अपनी ज़िंदगी जीना शुरू कर दी, वह महदी और क़ायम हैं, क्योंकि हदीस में है कि क़ायम वही है जो मौत के बाद फिर से ज़िंदा हो जाए और उसका कोई बेटा भी न हो।
इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई मोहम्मद इब्ने अली की इमामत पर अक़ीदा
इस गिरोह का कहना है कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद उनके बेटे मोहम्मद इमाम हैं, क्योंकि दो भाईयों जाफ़र और हसन की इमामत सही नहीं है (इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. को छोड़ कर) जाफ़र की इमामत इसलिए सही नहीं है क्योंकि उसका किरदार इमामत की शान के मुताबिक़ नहीं है और वह आदिल नहीं था, और हसन इब्ने अली को कोई बेटा नहीं था इसलिए वह भी इमाम नहीं हो सकते।
शक की हालत में हैं
कुछ शिया का कहना था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद इमामत का मामला हमारे लिए साफ़ नहीं है, हमें नहीं मालूम कि जाफ़र इमाम हैं या दूसरे बेटे, हमें नहीं मालूम इमामत, इमाम हसन असकरी अ.स. की नस्ल से हैं या उनके भाईयों की, अब हमारे लिए मामला साफ़ नहीं है इसलिए हम बिना किसी को इमाम माने इम मामले में विचार कर रहे हैं।
ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है
इस गिरोह का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद अब कोई इमाम नहीं है, और ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है, उनका अक़ीदा यह था कि ज़मीन का अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली होने में कोई परेशानी नहीं है क्योंकि हज़रत ईसा अ.स. और पैग़म्बर स.अ. के बीच काफ़ी फ़ासला था।
गाजा पर इजरायली हमले में संयुक्त राष्ट्र के छह राहतकर्मी मारे गए
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि फिलिस्तीनियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के नाम से जाना जाता है,छह कर्मचारी गाज़ा में इज़रायली हवाई हमलों में मारे गए।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि फिलिस्तीनियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी, जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के नाम से जाना जाता है, के छह कर्मचारी गाजा में इजरायली हवाई हमलों में मारे गए।
गुटेरेस ने एक्स पर कहा कि इजरायली हवाई हमलों ने बुधवार को लगभग 12,000 लोगों के लिए स्कूल बने आश्रय स्थल पर हमला किया और मारे गए लोगों में यूएनआरडब्ल्यूए के छह कर्मचारी भी शामिल थे।
उन्होंने कहा,गाजा में जो हो रहा है वह अस्वीकार्य है अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के इन नाटकीय उल्लंघनों को अब रोकने की जरूरत है।
समाचार एजेंसी ने फिलिस्तीनी सूत्रों के हवाले से बताया कि बुधवार को मध्य गाजा पट्टी में विस्थापित लोगों को शरण देने वाले संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित स्कूल पर इजरायली हवाई हमले में कम से कम 18 फिलिस्तीनी मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
सूत्रों ने कहा कि एक इजरायली युद्धक विमान ने अलनुसीरत शरणार्थी शिविर में कम से कम एक मिसाइल दागी हमास द्वारा संचालित गाजा सरकार के मीडिया कार्यालय ने कहा कि पीड़ितों में सहायता कर्मी भी शामिल हैं।
ज़ायोनी सेना ने फिर बनाया स्कूल को निशाना, 34 की मौत
ज़ायोनी सेना ने एक बार फिर ग़ज़्ज़ा में आम लोगों को निशाना बनाते हुए एक स्कूल पर बमबारी की। प्राप्त जानकारी के अनुसार ज़ायोनी सेना ने बुधवार को ग़ज़्ज़ा में यूएन के उस स्कूल पर एयर स्ट्राइक की जहां पर विस्थापित लोग ठहरे हुए थे। अवैध राष्ट्र इस्राईल के इस बर्बर हमले में 34 लोगों की मौत हुई, जिसमें दो बच्चे भी शामिल हैं।
फिलिस्तीन में पिछले 11 महीने से जनसंहार कर रहे इस्राईल ने ग़ज़्ज़ा में एक स्कूल पर एयरस्ट्राइक की, इस एयर स्ट्राइक में 34 लोगों की मौत हो गई, जिसमें 19 महिलाएं और दो बच्चे भी शामिल थे। इस एयर स्ट्राइक में यूएन के एक स्कूल पर हमला हुआ, स्कूल में फिलहाल विस्थापित लोग ठहरे हुए थे. हमले में 18 लोग घायल हुए।
नेतन्याहू और गैलेंट के लिए जल्दी ही गिरफ्तारी वारंट जारी करेगा इंटरनेशनल कोर्ट
हिब्रू मीडिया ने इंटरनेशनल कोर्ट की कार्रवाई के अंतर्गत अनुमान लगाते हुए कहा है कि हेग कोर्ट जल्द ही नेतन्याहू और गैलेंट के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी करेगा। इस रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी शासन के चैनल 12 टीवी ने घोषणा की कि ज़ायोनी हलकों के अनुमान से संकेत मिलता है कि हेग में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय जल्द ही इस शासन के प्रधानमंत्री नेतन्याहू और युद्ध मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है। इन अनुमानों में कहा गया है कि ग़ज़्ज़ा में जो कुछ चल रहा है उन मामलों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
वहीँ इस मामले पर गंभीरता दिखते हुए ज़ायोनी शासन के प्रमुख नेतन्याहू और तथाकथित न्यायमंत्री ने हेग कोर्ट के फैसले को रोकने के लिए कैबिनेट के कानूनी सलाहकार से आपराधिक जांच शुरू करने के लिए कहा है।
शिमला मस्जिद विवाद, मुस्लिम पक्ष मस्जिद हटाने को तैयार
शिमला की संजौली मस्जिद को लेकर कल हुए विवाद के बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से बड़ा फैसला लिया गया है। जहां मुस्लिम धर्मगुरु ने कहा कि आपसी प्रेम बनाए रखने के लिए हमने फैसला लिया है कि जो अवैध हिस्सा है उसे हटा दिया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश के शिमला के संजौली में स्थित मस्जिद को लेकर हिंदू संगठनों की ओर से मस्जिद के निर्माण को लेकर आंदोलन किया गया, जिसके बाद मुस्लिम धर्मगुरु की ओर से एक बयान सामने आया है। उनका कहना है कि आपसी प्रेम बनाए रखने के लिए हमने फैसला लिया है कि जो अवैध हिस्सा है उसे हटा दिया जाए, अगर हमें इजाजत मिलती है तो उसे हम खुद ही हटा देंगे।
ईरान इराक के बीच 14 समझौतों पर हस्ताक्षर
ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पीजिश्कियान ने अपनी इराक यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में हुए 14 समझौता पर हस्ताक्षर किए। उनका यह दौरा पश्चिमी देशों के जटिल होते प्रतिबंधों के बीच हुआ है।
ईरानी नेता ने कहा कि तेहरान इराक के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है, दोनों नेताओं ने एक जैसे मुद्दों पर साथ आने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि आतंकवादियों को प्रभावी ढंग से रोकने और क्षेत्र को अस्थिर करने वाली साजिशों का मुकाबला करने के लिए दोनों देशों के बीच सुरक्षा समझौतों को लागू किया जाएगा। उन्होंने दोहराया कि ईरान एक मजबूत, स्थिर और सुरक्षित इराक चाहता है जहां भाईचारा और शांति कायम रहे।
फिलिस्तीन विवाद के मुद्दे पर बोलते हुए ईरानी राष्ट्रपति ने कहा कि ग़ज़्ज़ा युद्ध ने मानवाधिकारों के बारे में पश्चिमी दावों के पाखंड को उजागर किया है। साथ ही कहा ग़ज़्ज़ा में अमेरिकी हथियारों को इस्तेमाल कर फिलिस्तीनी नागरिकों का नरसंहार हो रहा है।