
رضوی
इजरायल की उलटी गिनती शुरू हो गई
हौज़ा इल्मिया क़ज़वीन प्रांत के संपादक ने कहा: शहीदों के खून के आशीर्वाद के कारण आज हम न केवल कमजोर हैं बल्कि हम अपने लक्ष्य के एक कदम और करीब हैं। ये गवाहियां दुश्मन की कमजोरी और लाचारी की निशानी हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन इरफ़ानी ने क़ज़वीन प्रांत के छात्रों और विद्वानों के साथ आयोजित एक बैठक में इस्माइल हनिया की शहादत पर बधाई और संवेदना व्यक्त की और कहा: यह मुसलमानों और प्रतिरोध के लिए एक बड़ी क्षति है। वैसे ही हम ईरानियों के लिए जिनके प्रिय अतिथि को उनके देश में दुश्मन ने शहीद कर दिया।
उन्होंने आगे कहा: हाज कासिम सुलेमानी और इस्माइल हनिया जैसे शहीदों के खून ने दुनिया के स्वतंत्र लोगों के बीच एकता और सद्भाव की लहर पैदा की है और अब शहीदों के खून के आशीर्वाद से सत्ता प्रणाली और वैश्विक अहंकार, विशेष रूप से इस्राईल के विनाश की उलटी गिनती शुरू हो गई है।
क़ज़्वीन प्रांत के प्रबंधक ने कहा: सभी ताकतों, मीडिया और मानसिकता को उस दिशा में जाना चाहिए जिससे एक नया अवसर पैदा हुआ है और कुद्स और फिलिस्तीन की स्वतंत्रता का मार्ग तेजी से प्रशस्त हो रहा है और इस्लामी उम्माह के पास अपने बुद्धिमान और दूरदर्शी नेता इस आंदोलन को इमाम के जोहूर की नींव के रूप में वर्णित कर सकते हैं।
उन्होंने कहा: दुनिया के सभी स्वतंत्र लोग इस्राईली अत्याचारों और आतंकवाद पर गंभीर और महान बदला लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अरबईन हुसैन के दौरान रेड क्रिसेंट राहत हेलीकॉप्टर उड़ाने की अनुमति
अरबईन हुसैनी के दौरान इराक़ के आसमान में रेड क्रिसेंट बचाव हेलीकॉप्टरों को उड़ान भरने की अनुमति जारी की हैं।
रेड क्रिसेंट सोसाइटी के सूचना आधार के अनुसार,पीर हुसैन कौलीवंद, हमारे देश की रेड क्रिसेंट सोसाइटी के प्रमुख और अरबईन के केंद्रीय मुख्यालय में राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि ने अरबईन के केंद्रीय मुख्यालय के प्रमुख मीर अहमदी के साथ इराकी आंतरिक मंत्री से मुलाकात की और बात की और अरबईन तीर्थयात्रा की सुविधा और इराक में तीर्थयात्रियों के स्वास्थ्य के लिए नवीनतम व्यवस्था का ख्याल रखा हैं।
अरबईन हुसैनी के दिनों के संबंध में इराकी आंतरिक मंत्री के साथ की गई बैठक में व्यवस्था और मंजूरी के बारे में कौलीवंड ने कहा आज दोपहर से पहले इराकी आंतरिक मंत्री के साथ बैठक में अरबईन हुसैनी के दौरान इराक के आसमान पर रेड क्रिसेंट राहत हेलीकॉप्टरों को ऊपर से उड़ान भरने की अनुमति जारी की गई है।
कौलिवंद ने कहा,इराकी ज़मीन पर रेड क्रिसेंट एम्बुलेंस के प्रवेश की अनुमति और हुसैनी तीर्थयात्रियों को चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक दवा और उपकरणों के प्रवेश की अनुमति आज की बैठक में किए गए अन्य समझौतों में से एक था।
रेड क्रिसेंट सोसाइटी के प्रमुख ने अरबईन हुसैनी के दौरान इराक़ में तीर्थयात्रियों को चिकित्सा और अस्पताल सेवाएं प्रदान करने के लिए रेड क्रिसेंट की स्वयंसेवी चिकित्सा टीमों को भेजने का जिक्र करते हुए कहा चर्चा और समझौतों के अनुसार, इराकी अस्पतालों में ईरानी डॉक्टरों का सहयोग तथा इराक के परिवहन केंद्रों में राहत टीमों को तैनात करना और समन्वय की अनुमति प्राप्त होगई है।
वाक़ेए हुर्रा और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) (6)
मुस्तनद तवारीख़ में है कि करबला के बेगुनाह क़त्ल ने इस्लाम में एक तहलका डाल दिया। ख़ुसूसन ईरान में एक कौमी जोश पैदा कर दिया जिसने बाद में बनी अब्बास को बनी उमय्या के ग़ारत करने में बड़ी मद्द दी चुंकि यज़ीद तारेकुस्सलात और शराबी था और बेटी बहन से निकाह करता और कुत्तों से खेलता था, उसकी मुलहिदाना हरकतों और इमाम हुसैन (अ.स.) के शहीद करने से मदीने में इस क़द्र जोश फैला कि 62 हिजरी में अहले मदीना ने यज़ीद की मोअत्तली का ऐलान कर दिया और अब्दुल्लाह बिन हनज़ला को अपना सरदार बना कर यजी़द के गर्वनर उस्मान बिन मोहम्मद बिन अबी सुफ़ियान को मदीने से निकाल दिया। सियोती तारीख़ अल ख़ुलफ़ा में लिखता है कि ग़सील उल मलायका (हनज़ला) कहते हैं कि हम ने उस वक़्त तक यज़ीद की खि़लाफ़त से इन्कार नहीं किया जब तक हमें यह यक़ीन नहीं हो गया कि आसमान से पत्थर बरस पड़ेंगे। ग़ज़ब है कि लोग मां बहनों और बेटियांे से निकाह करें, ऐलानियां शराब पियें और नमाज़ छोड़ बैठें।
यज़ीद ने मुस्लिम बिन अक़बा को जो ख़ूं रेज़ी की कसरत के सबब (मुसरिफ़) के नाम से मशहूर है फ़ौजे कसीर दे कर अहले मदीना की सरकोबी को रवाना किया। अहले मदीना ने बाब अल तैबा के क़रीब मक़ामे ‘‘ हुर्रा ’’ पर शामियों का मुक़ाबला किया। घमासान का रन पड़ा, मुसलमानों की तादाद शामियों से बहुत कम थी इस के बावजूद उन्होंने दादे मरदानगी दी मगर आखि़र शिकस्त खाई। मदीने के चीदा चीदा बहादुर रसूल अल्लाह (स. अ.) के बड़े बड़े सहाबी, अन्सार व महाजिर इस हंगामे आफ़त में शहीद हुए। शामी घरों में घुस गये। मज़ारात को उनकी ज़ीनत और आराईश की ख़ातिर मिसमार कर दिया। हज़ारों औरतों से बदकारी की। हज़ारों बाकरा लड़कियों का बकारत (बलात्कार) कर डाला। शहर को लूट लिया। तीन दिन क़त्ले आम कराया दस हज़ार से ज़्यादा बाशिन्दगाने मदीना जिन में सात सौ महाजिर और अन्सार और इतने ही हामेलान व हाफ़ेज़ाने क़ुरआन व उलेमा व सुलोहा मोहद्दिस थे इस वाक़िये में मक़्तूल हुए। हज़ारों लड़के लड़कियां गु़लाम बनाई गईं और बाक़ी लोगों से बशर्ते क़ुबूले ग़ुलामी यज़ीद की बैयत ली गई। मस्जिदे नबवी और हज़रत के हरमे मोहतरम में घोड़े बंधवाये गए। यहां तक कि लीद का अम्बार लग गए। यह वाक़िया जो तारीख़े इस्लाम में वाक़ेए हर्रा के नाम से मशहूर है 27 ज़िलहिज 63 हिजरी को हुआ था। इस वाक़िये पर मौलवी अमीर अली लिखते हैं कि कुफ़्र व बुत परस्ती ने फिर ग़लबा पाया। एक फ़िरंगी मोवरिख़ लिखता है कि कुफ्ऱ का दोबारा जन्म लेना इस्लाम के लिये सख़्त ख़ौफ़ नाक और तबाही बख़्श साबित हुआ। बक़ीया तमाम मदीने को यज़ीद का ग़ुलाम बनाया गया। जिसने इन्कार किया उसका सर उतार लिया। इस रूसवाई से सिर्फ़ दो आदमी बचे ‘‘ अली बिन हुसैन (अ.स.) और अली बिन अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ’’ इन से यज़ीद की बैयत भी नहीं ली गई। मदारिस शिफ़ाख़ाने और दीगर रेफ़ाहे आम की इमारतें जो ख़ुल्फ़ा के ज़माने में बनाई गईं थीं बन्द कर दी गईं या मिस्मार कर दी गईं और अरब फिर एक वीराना बन गया। इसके चन्द मुद्दत बाद अली बिन हुसैन (अ.स.) के पोते जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने अपने जद्दे माजिद अली ए मुर्तुज़ा (अ.स.) का मक़तब फिर मदीना में जारी किया मगर यह सहरा में सिर्फ़ एक ही सच्चा नख़लिस्तान था इसके चारों तरफ़ जु़ल्मत व ज़लालत छाई हुई थी। मदीना फिर कभी न संभला। बनी उमय्या के अहद में मदीना ऐसी उजडी़ बस्ती हो गया कि जब मन्सूरे अब्बासी ज़्यारत को मदीने में आया तो उसे एक रहनुमा की ज़रूरत पड़ी। हवास को वह मकानात बताए जहां इब्तेदाई ज़माने के बुर्ज़ुगाने इस्लाम रहा करते थे। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 36, तारीख़े अबुल फ़िदा जिल्द 1 सफ़ा 191, तारीख़ फ़ख़्री सफ़ा 86, तारीख़े कामिल जिल्द 4 सफ़ा 49, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 132)
वाक़ेए हुर्रा और आपकी क़याम गाह
तवारीख़ से मालूम होता है कि आपकी एक छोटी सी जगह ‘‘मुन्बा’’ नामी थी जहां खेती बाड़ी का काम होता था। वाक़ेए हुर्रा के मौक़े पर शहरे मदीना से निकल कर अपने गाँव चले गये थे। (तारीख़े कामिल जिल्द 4 सफ़ा 45) यह वही जगह है, जहाँ हज़रत अली (अ.स.) ख़लीफ़ा उस्मान के अहद में क़याम पज़ीर थे। (अक़दे फ़रीद जिल्द 2 सफ़ा 216)
ख़ानदानी दुश्मन मरवान के साथ आपकी करम गुस्तरी
वाक़ेए हुर्रा के मौक़े पर जब मरवान ने अपनी और अपने अहलो अयाल की तबाही और बरबादी का यक़ीन कर लिया तो अब्दुल्लाह इब्ने उमर के पास जा कर कहने लगा कि हमारी मुहाफ़ज़त करो। हुकूमत की नज़र मेरी तरफ़ से भी फिरी हुई है मैं जान और औरतों की बेहुरमती से डरता हूँ। उन्होंने साफ़ इन्कार कर दिया। उस वह इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के पास आया और उसने अपनी और अपने बच्चों की तबाही व बरबादी का हवाला दे कर हिफ़ाज़त की दरख़्वास्त की हज़रत ने यह ख़्याल किए बग़ैर कि यह ख़ानदानी हमारा दुश्मन है और इसने वाक़ेए करबला के सिलसिले में पूरी दुश्मनी का मुज़ाहेरा किया है। आपने फ़रमाया बेहतर है कि अपने बच्चों को मेेरे पास बमुक़ाम मुनबा भेज दो, जहां पर मेेरे बच्चे रहेंगे तुम्हारे भी रहेंगे। चुनान्चे वह अपने बाल बच्चों को जिन में हज़रत उसमान की बेटी आयशा भी थी आपके पास पहुँचा गया और आपने सब की मुकम्मल हिफ़ाज़त फ़रमाई। (तारीख़े कामिल जिल्द 4 सफ़ा 45)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और मुस्लिम बिन अक़बा
अल्लामा मसूदी लिखते हैं कि मदीने के इन हंगामी हालात में एक दिन मुस्लिम बिन अक़बा ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को बुला भेजा। अभी वह पहुँचे न थे कि उसने अपने पास के बैठने वालों से आपकी ख़ानदानी बुराई शुरू की और न जाने क्या क्या कह डाला लेकिन अल्लाह रे आपका रोब व जलाल कि ज्यों ही आप उसके पास पहुँचे वह ब सरो क़द ताज़ीम के लिये खड़ा हो गया। बात चीत के बाद जब आप तशरीफ़ ले गये तो किसी ने मुस्लिम से कहा कि तूने इतनी शानदार ताज़ीम क्यो कि उसने जवाब दिया, मैं क़सदन व इरादतन ऐसा नहीं किया बल्कि उनके रोब व जलाल की वजह से मजबूरन ऐसा किया है।
(मरूजुल ज़हब मसउदी बर हाशिया तारीख़े कामिल जिल्द 6 सफ़ा 106)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से बैअत का सवाल न करने की वजह
मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि वाक़ेए हर्रा में मदीने का कोई शख़्स ऐसा न था जो यज़ीद की बैअत न करे और क़त्ल होने से बच जाए लेकिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बैअत न करने के बावजूद महफ़ूज़ रहे, बल्कि उसे यूं कहा जाए कि आप से बैअत तलब ही नहीं की गई। अल्लामा जलालउद्दीन हुसैनी मिसरी अपनी किताब ‘‘ अल हुसैन ’’ में लिखते हैं कि यज़ीद का हुक्म था कि सब से बैअत लेना। अली इब्नुल हुसैन को (अ.स.) को न छेड़ना वरना वह भी सवाले बैअत पर हुसैनी किरदार पेश करेंगे और एक नया हंगामा खड़ा हो जायेगा।
दुश्मने अज़ली हसीन बिन नमीर के साथ आपकी करम नवाज़ी
मदीने को तबाह बरबाद करने के बाद मुस्लिम बिन अक़बह इब्तिदाए 64 हिजरी में मदीने से मक्का को रवाना हो गया। इत्तेफ़ाक़न राह में बीमार हो कर वह गुमराह, राहिए जहन्नम हो गया मरते वक़्त उस ने हसीन बिन नमीर को अपना जा नशीन मुक़र्रर कर दिया। उसने वहां पहुँच कर ख़ाना ए काबा पर संग बारी की और उस में आग लगा दी, उसके बाद मुकम्मिल मुहासरा कर के अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर को क़त्ल करना चाहा। इस मुहासरे को चालीस दिन गुज़रे थे कि यज़ीद पलीद वासिले जहन्नम हो गया। उसके मरने की ख़बर से इब्ने ज़ुबैर ने ग़लबा हासिल कर लिया और यह वहां से भाग कर मदीना जा पहुँचा।
मदीने के दौरान क़याम में इस मलऊन ने एक दिन ब वक़्ते शब चन्द सवारों को ले कर फ़ौज के ग़िज़ाई सामान की फ़राहमी के लिये एक गाँव की राह पकड़ी। रास्ते में उसकी मुलाक़ात हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से हो गई, आपके हमराह कुछ ऊटँ थे जिन पर ग़िज़ाई सामान लदा हुआ था। उसने आप से वह ग़ल्ला ख़रीदना चाहा, आपने फ़रमाया कि अगर तुझे ज़रूरत है तो यूं ही ले ले हम इसे फ़रोख़्त नहीं कर सकते (क्यों कि मैं इसे फ़ुक़राए मदीना के लाया हूँ) उसने पूछा की आपका नाम क्या है? आपने फ़रमाया ‘‘ अली इब्नुल हुसैन ’’ कहते हैं। फिर आपने उससे नाम दरयाफ़्त किया तो उसने कहा मैं हसीन बिन नमीर हूँ। अल्लाह रे आपकी करम नवाज़ी, आपने यह जानने के बावजूद कि यह मेरे बाप के क़ातिलों में से है उसे सारा ग़ल्ला दे दिया (और फ़ुक़रा के लिये दूसरा बन्दो बस्त फ़रमाया) उसने जब आपकी यह करम गुस्तरी देखी और अच्छी तरह पहचान भी लिया तो कहने लगा कि यज़ीद का इन्तेक़ाल हो चुका है आपसे ज़्यादा मुस्तहक़े खि़लाफ़त कोई नहीं। आप मेरे साथ तशरीफ़ ले चलें मैं आपको तख़्ते खि़लाफ़त पर बैठा दूंगा। आप ने फ़रमाया कि मैं ख़ुदा वन्दे आलम से अहद कर चुका हूँ कि ज़ाहिरी खि़लाफ़त क़बूल न करूंगा। यह फ़रमा कर आप अपने दौलत सरा को तशरीफ़ ले गये। (तरीख़े तबरी फ़ारसी सफ़ा 644)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और फ़ुक़राऐ मदीना की किफ़ालत
अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़ुक़राए मदीना के 100 घरों की किफ़ालत फ़रमाते थे और सारा सामान उन के घर पहुँचाया करते थे। उनमे बहुत ज़्यादा ऐसे घराने थे जिनमें आप यह भी मालम न होने देते थे कि यह सामान ख़ुरदोनोश रात को कौन दे जाता है। आपका उसूल यह था कि बोरियाँ पुश्त पर लाद कर घरों में रोटी और आटा वग़ैरा पहुँचाते थे और यह सिलसिला ता बहयात जारी रहा। बाज़ मोअज़्ज़ेज़ीन का कहना है कि हमने अहले मदीना को यह कहते सुना है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की ज़िन्दगी तक हम ख़ुफ़िया ग़िज़ाई रसद से महरूम नहीं हुए। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 265, नुरूल अबसार सफ़ा 126)
आंदोलनों के कशकोल में कर्बला की ख़ैरात
यह तथ्य दिन की तरह स्पष्ट है कि कर्बला के बाद इस दुनिया में, जहां भी सही आंदोलन का जन्म होता है, कर्बला की दानशीलता उसकी चेतना में होती है, क्योंकि यह त्रासदी मानवता की धड़कन में धड़कती है।
यह तथ्य दिन की तरह स्पष्ट है कि कर्बला के बाद इस दुनिया में जहां भी नेक आंदोलन का जन्म हुआ है, उसकी चेतना में कर्बला की दानशीलता है, क्योंकि यह त्रासदी मानवता की धड़कन के साथ धड़क रही है।
यदि किसी स्वतंत्रता सेनानी की कलम और भाषा जुल्म के खिलाफ निडर होकर बोलती या लिखती है, तो उसके साहस की ताकत नीनवे की देन है, पैगंबर की जोरदार जवानी की शहादत एक प्रकाशस्तंभ नहीं होती।
कोई भी ग़ाज़ी और मुजाहिद मैदान में ख़ुशी से नहीं चल पाता अगर कर्बला के शशमाहे ने तब्सुम का ख़ैरात उतार कर उम्मत की मांग में न डाल दिया होता।
एक बहादुर आदमी को मौत की शेरनी का एहसास नहीं होता अगर शांति के राजकुमार, गर्म नीनवे पर शांति के उत्तराधिकारी, ने तकलम का सार बिखेर दिया होता और मौत को मार डाला होता। मेरे लिए मौत शहद से भी मीठी है, अफ़सोस की बात है कि यह नारा पूरी दुनिया के उर्दू वर्ग के शियाओं की ज़बान से आया है, हुसैन ज़िनबाद बद यज़ीद मर्दा बद इसकी गूंज एशियाई देशों से लेकर बड़े-बड़े शहरों तक सुनाई दे रही है। कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं जिनके कारण आँख रंगों में अंतर नहीं कर पाती और नाक में सूंघने की क्षमता नहीं रह जाती। भगवान करे कि जाकिर इस बीमारी से जल्दी ठीक हो जाएँ प्रसिद्धि की लालसा इस लोक और परलोक में सबको नष्ट कर देगी। समर्थकों को अपनी कलम नहीं उठानी चाहिए।
कर्बला हमारी बौद्धिक पूंजी तो है ही, हर विचारक की धुरी और केंद्र भी है।
बिना पानी और वनस्पति के इस घाटी ने सदियों को लम्हों की उंगलियां पकड़ कर जीना सिखाया है, यहां के मुजाहिदों ने अपनी जिंदगी की किताब के आखिरी पन्ने पर लिखे मौत शब्द को ताकत और धैर्य से कुरेदा है, और जिंदगी का यह सबक आंखों में बसा है आज हर क्रांतिकारी के सामने है
यदि आज फ़िलिस्तीन के युवा धैर्य की भूमि पर बिना किसी डर या खतरे के सत्य के मार्ग पर खड़े हैं, तो निश्चिंत रहें कि यह पाठ ख़ैबर के भगोड़ों की पीढ़ियों द्वारा नहीं सिखाया गया है पानी-पानी हैं, जिन्होंने घर की चेतना को इस तरह भर दिया।
ज़ुल्म और ज़बरदस्ती की नींद हराम होने लगी, हर ज़माने का ज़ालिम सल्तनत के महल में एक कैदी की घंटी सुनता है और बेचैन हो जाता है, फिर वह कर्बला के लक्ष्यों को पलटने के लिए अपने तलवे चाटने वाले नौकर और खतीब खरीद लेता है कर्बला की चेतना पर इसका असर न दिखे, इसके लिए दौलत की दहलीज को खोल दिया जाता है, कर्बला को चंद कर्मकांडों के बंधन में बांधकर उससे फैलने वाले ज्ञान, जागरूकता, आंदोलन और क्रांति की रोशनी को कैद करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। एक नेक इंसान से, सिवाय इसके कि शैतान और इबलीस ने उसके शिकार को धोखे में डाल दिया और उसे समय का बेटा बना दिया, कर्बला विश्वास की गर्मी है जो क्रूरता और अत्याचारियों से नफरत इस भूमि का पहला सबक है जो नहीं कर सकती बिना भूले बक्सों में सजाएँ।
पारा चिनार
दुश्मन जानता है कि शिया राष्ट्र की महत्वाकांक्षाओं को मिटाना संभव नहीं है, उनकी एकता और प्रेम को तोड़ा नहीं जा सकता है, इसलिए वह हर तरह के अत्याचारों के पहाड़ तोड़ रहा है, लेकिन हिंदुओं की पीढ़ियां भूल जाती हैं कि हमजा का बेटा ही परिपक्व है यह लीवर का मालिक है
आले सुफियान यह भूल जाते हैं कि आले इमरान की पीढ़ियाँ बलिदान और शहादत में कभी पीछे नहीं रहीं।
सुफियान और हिंदा की पीढ़ियां अपने पूर्वजों के चरित्र पर प्रकाश डालेंगी।
हमने एक एम्बुलेंस की तस्वीर देखी, शव पारा चनार के पीड़ितों के शव थे और उसके चारों ओर पत्थर बिखरे हुए थे, हमें एक और दृश्य याद आया जब पैगंबर (PBUH) के पोते को पास में दफनाने के लिए लाया गया था पैगंबर (PBUH) की कब्र पर एक शापित महिला ने रास्ता रोक दिया और पैगंबर के बेटे के अंतिम संस्कार में गोली मार दी गई। भगवान का शुक्र है कि उसने इस क्रूर शापित महिला को मां नहीं बनाया, लेकिन फिर भी, उसके पारंपरिक कार्यों को देखने के बाद वंशजों को यह समझना चाहिए कि पेड़ों का अपना प्रभाव होता होगा आइए देखें, शायद यही कारण है कि वे कहते हैं कि बबूल के पेड़ पर गुलाब के फूल नहीं खिलते।
अगर हम पेड़ों से पेड़ों की सादृश्यता स्वीकार करें तो सुफियान और हिंदा की पीढ़ी से वही उम्मीद की जा सकती है जो पारा चिनार में हो रही है, जिसे भूमि विवाद कहा जाता है, अंतरात्मा की लड़ाई के बजाय तथाकथित नरसंहार। मुस्लिम कहे जाने वाले शियाओं की लड़ाई एक ज़मीनी विवाद है, जबकि ये धरती की आड़ में धर्म और ज़मीर की लड़ाई है, इसमें जीत निश्चित तौर पर धर्म और ज़मीर की होगी, क्योंकि लड़ने वाले लोग हैं हुसैन स्वभाव और दूसरी ओर यज़ीदी स्वभाव, और इमाम हुसैन (अ.स.) ने पहले दिन घोषणा की कि "मेरी तरह, तुम्हारी तरह, मैं मेरी तरह तुम्हारे प्रति निष्ठा नहीं रख सकता। का अपमान करना मेरी बुद्धि से परे है।" बौद्धिक गधों से यजीदियत, सभी यजीद की पीढ़ी से हैं, जिनके खिलाफ खड़ा होना हर हुसैन विचारधारा वाले व्यक्ति की जिम्मेदारी है, लेकिन अफसोस की बात है कि इस सार्वभौमिक संदेश में भी लोग अब हमारे सलाम को नहीं समझते हैं ग़ाज़ियों और मुजाहिदों और पारा चिनार के शहीदों के लिए उनके जुनून, उनके साहस, उनके मजबूत इरादे और उनके हैं
ईमान और इकान पर हमारा सलाम, भगवान उन्हें हर मोर्चे पर धैर्य और साहस प्रदान करें और क्रूर हत्यारों को अविश्वास के बिंदु पर लाएँ।
पारा चनार के शहीदों के लिए सूरह फातिहा की दरख्वास्त की जाती है।
लेखक: मौलाना गुलज़ार जाफरी
शहीद इस्माइल हानिया का ख़ून उम्मते मुस्लिमा पर कर्ज़ हैं। डॉ अब्दुल ग़फूर रशीद
मरकाज़ी जमीयत अलहदीस पाकिस्तान के डिप्टी और इस्लामिक आइडियोलॉजिकल काउंसिल के सदस्य ने कहा कि फिलिस्तीनी स्वतंत्रता आंदोलन पहले से अधिक तीव्रता और ताकत के साथ जारी रहेगा और इज़राइल को अपनी नाकामी का सामना करना पड़ेगा ।
एक रिपोर्ट के अनुसार,मरकाज़ी जमीयत अलहदीस पाकिस्तान के डिप्टी और इस्लामिक आइडियोलॉजिकल काउंसिल के सदस्य डॉ अब्दुल ग़फूर रशीद ने कहां, कि जो त्रासदी हुई उसमें हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनियेह की शहादत हुई है तेहरान में यह एक बड़ी त्रासदी है, इसके कारण उम्मते मुस्लिमा शोक और चिंता की स्थिति में है।
उन्होंने कहा कि हमें यकीन है कि फिलिस्तीनी स्वतंत्रता आंदोलन पहले से अधिक तीव्रता और ताकत के साथ जारी रहेगा और फिलिस्तीनी स्वतंत्रता आंदोलन पहले से अधिक तीव्रता और ताकत के साथ जारी रहेगा और इज़राइल को अपनी नाकामी का सामना करना पड़ेगा।
मस्जिदे अक़्सा समेत कई देशों में इस्माइल हनिया की नमाज़े जनाज़ा
फिलिस्तीनियों ने, विशेष रूप से ग़ज़्ज़ा पट्टी और शरणार्थी शिविरों में, फिलिस्तीनी लोगों ने हमास आंदोलन के दिवंगत नेता को बड़े दुख के साथ याद किया और उनकी अनुपस्थिति में उनके लिए नमाज़े जनाज़ा अदा की।
मस्जिदे अक़्सा के खतीबों और इमामों ने फिलिस्तीनियों की राष्ट्रीय एकता का समर्थन करने, उनके प्रतिरोध को मजबूत करने के साथ-साथ ग़ज़्ज़ा पट्टी में सक्रिय सामाजिक भागीदारी और सभी अवसरों पर लोगों के दुःख में उनके साथ उनकी सहानुभूति और सहयोग को याद करते हुए शहीद को खिराजे अक़ीदत पेश किया।
ईरान और क़तर के साथ साथ पाकिस्तान समेत अन्य इस्लामी और अरब देशों में, शहीद हनिया की ग़ायबाना नमाज़े जनाज़ा अदा की गई, और खतीबों और उलमा ने शहीदों, मुख्लिसों और ईमानदार लोगों के गुणों और अल्लाह की नजर में जिहाद की फ़ज़ीलतें बयान की।
पाकिस्तान, जजों के काफिले पर आतंकी हमला, दो पुलिस वालों की मौत
उत्त्तर पश्चिम पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकवादियों ने शुक्रवार को ड्यूटी करके घर लौट रहे न्यायाधीशों के एक काफिले पर घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में उनकी सुरक्षा में तैनात दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। पुलिस ने जानकारी दी कि सभी तीन न्यायाधीश सुरक्षित हैं।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि आतंकवादियों की ओर से घात लगाकर किये गये सशस्त्र हमले में न्यायाधीशों की रक्षा करते समय ड्यूटी के दौरान दो पुलिसकर्मी मारे गए, जबकि दो अन्य घायल हो गए। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के डेरा इस्माइल खान में टैंक जिले की अदालतों में ड्यूटी के बाद न्यायाधीशों का काफिला जब उनके घरों की ओर जा रहा था तो कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी लेकिन इसके बावजूद सशस्त्र आतंकवादियों ने घात लगाकर हमला कर दिया।
क़ुम मे 5 रबी अल-अव्वल तक ज़ायरीन की ख़िदमत की जाएगी
क़ुम प्रांत सार्वजनिक और चैरिटी समिति के अधिकारी ने कहा: क़ोम प्रांत का सार्वजनिक मुख्यालय 5 सफ़र से 5 रबी अल-अव्वल तक अरबईन के दौरान ज़ायरीन की सेवा में व्यस्त रहेगा।
क़ुम प्रांत की सार्वजनिक और चैरिटी समिति के अधिकारी मेहदी घोरबानी करम ने क़ोम में अरबईन की सेवा के लिए ज़ायरीन के मुकिब के बारे में बात करते हुए कहा: ज़ायरीन को इसके लिए इमाम हुसैन की सेवा करनी चाहिए। इस अवामी कमेटी की नींव रखी गई, जो पिछले 8 वर्षों से लगातार आगंतुकों की सेवा कर रही है।
उन्होंने कहा: इस सेवा के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं एक महीने पहले ही शुरू हो चुकी हैं, इस सार्वजनिक समिति में 108 छोटे और बड़े संगठन हैं जो एक साथ तीर्थयात्रियों की सेवा करेंगे।
उन्होंने कहा: क़ुम प्रांत का सार्वजनिक मुख्यालय 5 सफ़र से 5 रबी अल-अव्वल तक ज़ायरीन की सेवा में व्यस्त रहेगा। बाद वाला अभी भी क़ोम में मौजूद है, इसलिए इस वर्ष सेवा की यह श्रृंखला 5 रबीउल अव्वल तक जारी रहेगी।
क़ुरबानी करम ने कहा: पिछले साल हमने पूरे क़ोम शहर में विभिन्न स्थानों पर ज़ायरीन की सेवा की, ताकि जहां भी ज़ायरीन हों, हम उनकी सेवा करते रहें, ताकि किसी भी जायर को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।
उन्होंने कहा: ईरानी ज़ायरीन इन मुकिबो में 24 घंटे और गैर-ईरानी ज़ायरीन 3 दिनों तक रह सकते हैं।
ईरान में इस्माईल हनिया की शहादत के बाद बदला लेने के लाल परचम फ़हराये जाने पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
ज़ायोनी सरकार द्वारा इस्माईल हनिया को शहीद किये जाने के बाद ईरान के पवित्र नगर क़ुम में स्थित जमकरान की मस्जिद पर लाल परचम लगाकर उस पर "یالثارات الحسین" लिख दिया गया है।
ईरान में लाल परचम फ़हराये जाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रतिक्रियायें जताई जा रही हैं। पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी समाचार पत्र The Washington Examiner ने इस संबंध में लिखा कि ईरान ने बदला लेने के लिए लाल परचम को लहरा दिया है और कहा है कि वह हमास के नेता की हत्या का बदला लेगा। इस अमेरिकी समाचार पत्र ने इशारा किया है कि यह परचम बहुत कम फ़हराया जाता है और एक बार उसे जनरल क़ासिम सुलैमानी की हत्या के बाद फ़हराया गया था।
फ्रांस का एक समाचार पत्र लोमोन्ड है जो यूरोप में एक विश्वसनीय समाचार पत्र है। इस समाचार पत्र ने भी लिखा है कि बुधवार को जमकरान की मस्जिद पर प्रतिशोध लेने के प्रतीक के रूप में लाल परचम को लहरा दिया गया और यह कार्य तेहरान में हमास के नेता इस्माईल हनिया की हत्या के बाद किया गया है। इस समाचार पत्र ने लिखा है कि इस हत्या की निस्बत इस्राईल की ओर दी जा रही है। यह परचम इसी प्रकार वर्ष 2020 में जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत के बाद फ़हराया गया था।
न्यू अरब संचार माध्यम ने भी इस संबंध में लिखा है कि हमास के नेता इस्माईल हनिया की हत्या के बाद ईरान ने लाल परचरम को प्रतिशोध के चिन्ह के रूप में फ़हरा दिया है चूंकि आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस्राईल पर हमले का आदेश जारी कर दिया है।
मिस्री समाचार पत्र"egypt independent " ने भी इस बारे में लिखा है कि इस्माईल हनिया की हत्या के बाद ईरान में लाल परचम लगाये जाने का क्या संदेश है? इस समाचार पत्र ने आगे लिखा कि ईरान ने यह परचम उस कड़े युद्ध की एक चेतावनी के रूप में लहराया है जो होने वाला है। इस समाचार पत्र ने लिखा है कि शिया मज़हब में लाल परचम उस ख़ून का प्रतीक होता है जो नाहक़ बहाया गया है और उसका मतलब प्रतिशोध लेना है। प्राचीन ईरान में लाल परचम उस घर के दरवाज़े पर लगाया जाता था जब किसी का नाहक़ ख़ून बहाया जाता था और जब तक प्रतिशोध नहीं ले लिया जाता था तब तक उसे उतारा नहीं जाता था।
एक भारतीय समाचार पत्र कश्मीरी ऑब ज़रवर ने इस ओर संकेत किया था कि ईरान ने प्रतिशोध का लाल परचम लहरा दिया है। हमास के नेता इस्माईल हनिया की हत्या के बाद ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कड़े जवाब का वादा किया है जिसके बाद प्रतिशोध का यह परचम क़ुम की बड़ी मस्जिद पर लहराया गया है। आख़िरी बार यह परचम उस समय लगाया था जब ईरान ने इस्राईल पर ड्रोन और मिसाइल से हमला किया था।
अंग्रेज़ी भाषा के एक भारतीय संचार माध्यम WION ने भी अपनी ब्रेकिन्ग न्यूज़ में इस प्रकार कहा कि ईरान ने मस्जिदे जमकरान पर लाल ध्वज को लहरा दिया है और कहा है कि इस्माईल हनिया के ख़ून का बदला लेगा।
बांग्लादेश के समाचार पत्र स्टार बिज़नेस ने भी इस संबंध में लिखा है कि ईरान ने बदला लेने का परचम लहरा दिया है ताकि इस बात का एलान कर सके कि वह जंग के लिए तैयार है।
ब्रितानी समाचार पत्र क्लोराडो पोल्टिक ने भी इस संबंध में लिखा है कि ईरान ने प्रतिशोध का चरचम लहरा दिया है और वचन दिया है कि वह हमास के नेता का बदला लेगा। इसी प्रकार इस परचम के लहराये जाने पर ज़ायोनी एकाउंट Mossad Commentary ने भी ट्वीट किया जिसने लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित किया।
Globe Eye News ने भी इस परचम को प्रतिशोध का प्रतीक बताया है।
यह परिवर्तन ऐसी हालत में सामने आ रहे हैं जब ज़ायोनी सरकार प्रतिरोध मोर्चे के दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों की हत्या के बाद प्रतिरोधक मोर्चे और घटकों के हमलों के भय से पूरी तरह रेड अलर्ट की स्थिति में है।.
इस्राईल में रह रहे भारतीयो के लिए एडवाइज़री जारी, 8 अगस्त तक सभी उड़ानें रद्द
भारतीय दूतावास ने पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव के बीच शुक्रवार को अवैध राष्ट्र इस्राईल में रह रहे सभी भारतीय नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की। दूतावास ने कहा कि नागरिक सतर्क रहने के साथ स्थानीय प्रशासन की ओर से सुझाए गए सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करें।
ज़ायोनी शासन के हमले में एक के बाद एक दो हमास नेताओं और हिज़्बुल्लाह के एक कमांडर के मारे जाने के बाद पश्चिम एशिया में नए सिरे से बढ़े तनाव के मद्देनजर भारतीय दूतावास ने यह परामर्श जारी किया।
अवैध राष्ट्र की इस कायरतापूर्ण और अनैतिक हरकत के बाद उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई है। हनीया की शहादत से इलाके में तनाव खतरनाक स्तर पर पहुंचने की आशंका है। भारतीय दूतावास ने अपनी एडवाइज़री में कहा है कि कृपया सावधानी बरतें, देश के भीतर आवश्यक यात्रा से बचें और सुरक्षा आश्रयों के करीब रहें। दूतावास स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है और अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज़ायोनी अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क में है।
दूतावास के सभी सोशल मीडिया मंच पर पोस्ट करके अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगु और कन्नड़ में जारी किये गए परामर्श में ईमेल पते के साथ टेलीफोन नंबर +972-547520711 और +972-543278392 जैसे संपर्क विवरण भी दिए गए हैं, जिस पर 24 घंटे मदद उपलब्ध रहेगी।