رضوی

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ईरानी कैलेंडर के आख़िरी महीने इसफ़ंद के आख़िरी दिन को ईरान मे तेल के राष्ट्रीयकरण के दिन के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन ईरान की संसद से पूरे ईरान में तेल उद्योग के राष्ट्रीय करण का क़ानून पास हुआ और देश की जनता के अधिकारों व हितों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठाया गया। इसके बाद से तेल उद्योग साम्राज्यवादी ताक़तों के चंगुल से आज़ाद हो गया।

यह क़ानून 20 मार्च 1951 को पास हुआ था। उस समय पश्चिमी एशिया में ईरान सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश था जबकि विश्व स्तर पर अमरीका, वेनेज़ोएला और सोवियत संघ के बाद चौथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश था। अमरीका और रूस दोनों की नज़रें ईरान के तेल पर थीं और दरअस्ल ईरान के तेल पर साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच मुक़ाबला था।

इस मुक़ाबले में एक दूसरे को पीछे छोड़ने और अपने अपने हित साधने के लिए यह ताक़तें ईरान के राजनैतिक और आर्थिक मंचों पर हर प्रकार का प्रभाव इस्तेमाल करती थीं। बाहरी ताक़तों की यह कोशिश होती थी कि दरबार में और संसद में उनकी पाठ रहे। इसके लिए तानाशाह को अलग अलग तरीक़ों से दबाव में लाया जाता था।

स्थिति यह हो गई थी कि दरबार से जुड़े लोगों के अनुसार संसद में कि जो एक दिखावटी संस्थान था वही लोग सदस्य बनते थे जिनके नामों पर बाहरी ताक़तों की मुहर लगती थी। यह हालत हो गई थी कि विदेशी दूतावासों में सांसदों और अधिकारों के नामों की सूची तैयार की जाने लगी थी।

ईरान में प्रधानमंत्री मुहम्मद मुसद्दिक़ की सरकार ने तेल उद्योग के राष्ट्रीय करण के क़ानून को अप्रैल 1951 में लागू करने के लिए अपने एजेंडे में शामिल किया तो मुसद्दिक़ सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश शुरू हो गई। अगस्त 1953 में मुसद्दिक़ की सरकार के ख़िलाफ़ अमरीका और ब्रिटेन ने मिलकर बग़ावत करवा दी।

बग़ावत के बाद सरकार गिर गई और ईरान के तेल उद्योग के दरवाज़े एक बार फिर विदेशी कंपनियों के लिए खुल गए। शेल, ब्रिटिश पेट्रोलियम और केलीफ़ोर्निया और टेक्सास की कंपनियों ने ईरान के तेल के कुंओं पर अपना नियंत्रण और भी बढ़ा लिया।

ईरान में 1979 में इस्लामी क्रांति सफल हुई  तो उसके बाद ईरान के तेल संसाधनों पर विदेशी कंपनियों के नियंत्रण से संबंधित समझौते रद्द कर दिए गए। अब तेल के संसाधन खोजने और तेल निकालने और रिफ़ाइन करने क ठेके ईरान की नेशनल आयल कंपनी के हाथ में आ गए।

इस्लामी क्रांति की सफलता और अमरीका के दूतावास पर छात्रों के नियंत्रण के बाद जो जासूसी और साज़िश का केन्द्र बन गया था ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की पाबंदियों का सिलसिला शुरू हो गया। अमरीका को अच्छी तरह पता था कि ईरान की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए तेल उद्योग को निशाना बनाया जाना ज़रूरी है।

पाबंदियां लगाने के पीछे अमरीका का लक्ष्य यह था कि ईरान आर्थिक रूप से बेबस हो जाए वह न तो तेल का उत्पादन कर सके और न तेल की आमदनी उसे हासिल हो। क्योंकि इससे पहले तक ईरान का तेल उद्योग उन उपकरणों पर निर्भर था जो पश्चिमी देशों से इम्पोर्ट किए जाते थे।

मगर व्यवहारिक रूप से यह हुआ कि ईरान तेल और गैस के उद्योग में धीरे धीरे आत्म निर्भर होता गया। दोनों उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले जटिल उपकरण और बड़ी मशीनों भी ईरान के भीतर ही बनाई जाने लगीं। इससे जहां एक तरफ़ तेल व गैस उद्योग में ईरान आत्म निर्भरता की तरफ़ बढ़ा वहीं मशीनों के निर्माण के मैदान में भी उसे अनुभव हासिल होने लगे।

यह तो वास्तविकता है कि तेल और गैस को ईरान की अर्थ व्यवस्था में बहुत बुनियादी पोज़ीशन हासिल है लेकिन ईरान ने इस बीच यह भी किया है कि देश की अर्थ व्यवस्था के स्रोतों में विविधता लाने के लिए भी बड़ी परियोजनाओं पर काम किया है। ईरान इसके लिए प्राइवेट सेक्टर को लगातार सक्रिय करता जा रहा है और उसकी क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोग्राम बनाए और लागू किए जा रहे हैं।

ईरानी सशस्त्र बलों के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ मेजर जनरल मोहम्मद बाक़ेरी ने सोमवार को तेहरान में सीरियाई रक्षा मंत्री अली महमूद अब्बास के साथ मुलाक़ात में कहा कि इस्राईल की आक्रामकता पर लगाम लगाने के लिए दोनों देशों के बीच निरंतर परामर्श की ज़रूरत है।

ग़ज़ा युद्ध में ज़ायोनी सेना के युद्ध अपराधों का ज़िक्र करते हुए मेजर जनरल बाक़ेरी ने कहा कि इस युद्ध में पीड़ित और असहाय फ़िलिस्तीनियों ने युद्ध की शुरुआत से ही ज़ायोनी शासन ख़िलाफ़ प्रतिरोध का एक नया इतिहास रच दिया है।

उन्होंने यह उल्लेख किया कि क़रीब पिछले छह महीनों के दौरान, इस्राईल के अब तक के सबसे भयानक हमलों के ख़िलाफ़ ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध ने प्रतिरोधी मोर्चे की उच्च शक्ति और क्षमता का प्रदर्शन किया है।

इस मुलाक़ात में सीरियाई रक्षा मंत्री का कहना था कि ग़ज़ा स्थित प्रतिरोधी संगठनों द्वारा 7 अक्तूबर को इस्राईल के ख़िलाफ़ किए गए अल-अक़सा स्टॉर्म ऑपरेशन के बाद से वैश्विक समीकरण बदल गए हैं।

सीरियाई रक्षा मंत्री अब्बास ने कहाः प्रतिरोधी मोर्चे के सदस्यों के रूप में ईरान और सीरिया की सशस्त्र सेनाओं ने आपसी संबंधों में एक बड़ी सफलता हासिल की है और सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मज़बूत बनाया जाना चाहिए।

ईरान के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ईसा ज़ारेपूएर का कहना है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान उपग्रह और अंतरिक्ष प्रक्षेपण व्हीकल के निर्माण में दुनिया के शीर्ष 10 देशों में से एक है।

 

ज़ारेपूर ने ईरान के अरबी भाषा के टेलीविज़न चैनल अल-आलम के साथ एक साक्षात्कार में कहाः ईरान के पास अंतरिक्ष में उपग्रह लॉन्च करने और उपग्रहों से डेटा प्राप्त करने के लिए ग्राउंड स्टेशन मौजूद हैं।

 

1979 की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, अंतरिक्ष कार्यक्रम में ईरान की सफलता को एक मील का पत्थर बताते हुए उन्होंने कहाः उदाहरण के लिए हमारे अंतरिक्ष प्रक्षेपण व्हीकल 200 किलोग्राम तक वज़न वाले उपग्रहों को ले जा सकते हैं और उन्हें अंतरिक्ष में स्थापित कर सकते हैं।

 

ईरानी मंत्री का कहना था कि तेहरान अगले 5 वर्षों में अंतरिक्ष में भारी उपग्रह भेजने की भी योजना बना रहा है।

 

ज़ारेपूर ने ईरानी कैलेंडर के नए साल में जो 21 मार्च से शुरू हो रहा है, अंतरिक्ष कार्यक्रम में देश की महत्वपूर्ण प्रगति की ओर इशारा किया और कहाः पहली बार ईरान अपने उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सफल रहा है, जो पृथ्वी से 450 से 2,000 किमी की दूरी पर हैं। ईरानी वैज्ञानिकों और अधिकारियों के प्रयासों से अब ईरानी उपग्रह अंतरिक्ष में हैं।

 

 

 

फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक़, पिछले 24 घंटों के दौरान ग़ज़ा में ज़ायोनी सैनिकों ने 81 फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार किया और 116 को ज़ख़्मी कर दिया।

इसके बाद से ग़ज़ा युद्ध में शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 31,726 हो गई है, जबकि 73,792 ज़ख़्मी हैं, वहीं 8,000 लापता हैं, जिनके बारे में माना जा रहा है कि वे मलबे के नीचे दबकर मर गए हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक़, मरने वालों में 70 फ़ीसद बच्चे और महिलाएं हैं।

इसके अलावा, सोमवार को इस्राईली सेना ने तोपों और टैंकों से अल-शिफ़ा अस्पताल पर हमला कर दिया, जहां क़रीब 30,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों ने शरण ले रखी है।

ज़ायोनी सेना ने यह हमला उस वक़्त किया, जब लोग रोज़ा इफ़्तार करने की तैयारी कर रहे थे।

अस्पताल पर इस्राईल के हमले में दर्जनों लोग शहीद हो गए और 80 से ज़्यादा लोगों को ज़ायोनी सैनिक उठाकर लेकर गए।

अक्तूबर में ग़ज़ा पर हमले की शुरूआत के बाद से ही ज़ायोनी सेना अल-शिफ़ा अस्पताल को निशाना बनाती रही है।

आर्मीनिया ने भारत के साथ बड़ी रॉकेट डील की है। इससे आर्मीनिया की आर्मी को 40 से लेकर 70 किमी तक दुश्‍मन के किसी भी ठिकाने को तबाह करने की ताकत मिल जाएगी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार आर्मीनिया की आर्मी भारत से पिनाका का अपडेटेड संस्करण खरीद रही है। इस डील के साथ ही आर्मीनिया ने यह संकेत दे दिया है कि वह रूस के बनाए ग्रैड बीएम 21 स‍िस्‍टम से दूरी बनाने जा रहा है। भारत का पिनाका रॉकेट सिस्‍टम रूसी सिस्‍टम से बहुत आगे है और नवीनतम तकनीक से लैस है।

एक पिनाका रॉकेट सिस्टम में 6 रॉकेट लॉन्चर होते हैं। साथ ही लोडर व्हीकल भी होते हैं जो तेजी से रॉकेट को दोबारा लोड करके हमले के लिए प्रिपेयर कर देते हैं। इसके अलावा एक फायर कंट्रोल सिस्‍टम और मौसम की जानकारी देने वाला रडार भी होता है। इस डील का खुलासा उस समय हुआ, जब एक ताजा वीडियो में पिनाका रॉकेट के फैक्‍टरी में कई पॉड दिखाए दिए। पिनाका को भारत की कई रक्षा कंपनियों ने मिलकर बनाया है।

यूरोएशियन टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक आर्मीनिया ने भारत में बने जेन एंटी ड्रोन सिस्‍टम को खरीदा। भारतीय वायुसेना ने भी साल 2021 में इस एंटी ड्रोन सिस्‍टम को खरीदा था।

अमरीका ने गाजा पट्टी के भीड़भाड़ वाले शहर रफ़ाह पर इस्राईल के संभावित हमले को लेकर अब तक की सबसे कड़ी सार्वजनिक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि इस तरह के ज़मीनी हमले से इस इलाक़े में मानवीय संकट अधिक गहरा जाएगा।

अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहाः हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडन हमास को हराने के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उन्होंने इस्राईली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतनयाहू से कहा है कि रफ़ाह में ज़मीनी हमला एक बड़ी ग़लती होगी।

सुलिवन ने कहाः इस हमले में अधिक निर्दोष लोग मारे जाएंगे, पहले से ही जारी गंभीर मानवीय संकट और बदतर हो जाएगा, ग़ज़ा में अराजकता फैल जाएगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्राईल पहले से भी ज़्यादा अलग-थलग पड़ जाएगा।

ग़ौरतलब है कि 7 अक्तूबर से जारी ग़ज़ा युद्ध में ज़ायोनी सेना 31,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों का क़त्लेआम कर चुकी है।

सुलिवन के मुताबिक़, बाइडन ने टेलफ़ोन पर बातचीत में नेतनयाहू से कहा है कि वह ख़ुफ़िया और सैन्य अधिकारियों की एक टीम वाशिंगटन भेजें, ताकि उन्हें रफ़ाह पर किसी भी संभावित हमले के बारे में आगाह किया जा सके।

युद्ध के दौरान, इस्राईल ने लोगों से कहा था कि वे उत्तर से दक्षिण की ओर पलायन कर जाएं, जिसके बाद लाखों फ़िलिस्तीनियों ने रफ़ाह में शरण ले रखी है।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन ने कहा है कि मॉस्को यूक्रेन में अपने आक्रमण से पीछे नहीं हटेगा और उसकी यूक्रेन के लंबी दूरी के और सीमा पार हमलों से रक्षा करने के लिए एक बफर जोन बनाने की योजना है।

रूस में हालिया राष्ट्रपति चुनाव में व्लादिमीर पुतीन ने भारी जीत दर्ज की और एक बार फिर रूस के राष्ट्रपति बन गए। राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी कि यदि नाटो ने सक्रियता दिखाई तो तीसरा विश्वयुद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता है।

रूस की सेना ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में प्रगति की है लेकिन प्रगति की यह रफ्तार धीमी रही है और महंगी साबित हुई है। यूक्रेन ने रूस में तेल रिफाइनरी और डिपो को निशाना बनाने के लिए अपने लंबी दूरी के हथियारों का उपयोग किया है। यूक्रेन में स्थित क्रेमलिन के प्रतिद्वंद्वियों के एक समूह ने सीमा पार हमले भी शुरू किए हैं। पुतीन ने रविवार देर रात कहा कि हम जरूरी होने पर यूक्रेनी सरकार द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों पर कुछ सुरक्षित क्षेत्र बनाने पर विचार करेंगे।

रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि इस सुरक्षित क्षेत्र यानी बफर जोन में दुश्मन के पास उपलब्ध विदेशी हथियारों का इस्तेमाल कर घुसना मुश्किल होगा। इससे पहले रूस के केंद्रीय चुनाव अयोग ने सोमवार को कहा था कि देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में पुतीन ने रिकॉर्ड जीत हासिल कर पांचवी बार राष्ट्रपति बने।

पुतीन ने पश्चिमी देशों को यूक्रेन में सैन्य बलों को तैनात करने के खिलाफ एक बार फिर चेतावनी दी। उन्होंने सचेत किया कि रूस और नाटो के बीच एक संभावित संघर्ष से दुनिया तीसरे विश्व युद्ध से मात्र एक कदम पीछे रह जाएगी।

गौरतलब है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों को व्लादिमीर पुतीन की ताजपोशी से लगा झटका लगा है। यूक्रेन को लगातार सैन्य और आर्थिक मदद करने वाले पश्चिमी देशों को लग रहा था कि रूस में पुतीन को लगातार जंग का खामियाजा जनता के गुस्से के रूप में देखना पड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को कुछ दक्षिपंथी हिंदू संगठनों द्वारा तथाकथित श्रीकृष्ण जन्मभूमि बताने के विवाद से संबंधित मस्जिद कमेटी की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है।

मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

इस याचिका में इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने विवाद से जुड़े 15 मामलों का मुक़दमा एक साथ जोड़कर चलाने के लिए कहा था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का कहना था कि यह सभी मुक़दमे एक ही तरह के हैं और इनमें एक ही जैसे सबूतों के आधार पर फ़ैसला किया जाना है। इसलिए कोर्ट का समय बचाने के लिए यह बेहतर होगा कि इन सभी मुक़दमों को एक साथ जोड़कर सुनवाई की जाए।

हालांकि हाई कोर्ट के इस फ़ैसले से नाराज़ मस्जिद कमेटी ने इंसाफ़ के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की यह याचिका ख़ारिज कर दी।

 

जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि चुनौती के तहत आदेश को वापस लेने का एक आवेदन हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है, इसलिए मस्जिद ट्रस्ट को पूर्व के नतीजे से असंतुष्ट होने पर वर्तमान अपील को फिर से शुरु करने की स्वतंत्रता दी गई है।

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّٰهُمَّ أَعِنِّی فِیهِ عَلَی صِیامِهِ وَقِیامِهِ، وَجَنِّبْنِی فِیه مِنْ ھَفَواتِهِ وَآثامِهِ، وَ ارْزُقْنِی فِیهِ ذِکْرَكَ بِدَوامِهِ، بِتَوْفِیقِكَ یَا ھادِیَ الْمُضِلِّینَ.

اے معبود! آج کے دن مجھے روزہ رکھنے اور عبادت کرنے میں مدد کر اور اس میں مجھے بے کار باتوں اور گناہوں سے بچائے رکھ اور اس میں مجھے یہ توفیق دے کہ ہمیشہ تیرے ذکر میں رہوں اے گمراہوں کو ہدایت دینے والے.

ऐ माबूद ! आज के दिन मुझे रोज़ा रखने और इबादत करने में मदद कर और उसमें मुझे बेकार बातों और ग़ुनाहों से बचा रख और उसमें मुझे यह तौफीक दे कि हमेशा तेरे ज़िक्र में रहूं ए ग़ुमराहओं को हिदायत देने वाले,

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम

सोमवार, 18 मार्च 2024 18:20

बंदगी की बहार 7

 रमज़ान, पूरी दुनिया के मुसलमानों के मध्य एकता का एक स्पष्ट प्रतीक है।

 

पुरी दुनिया के मुसलमान चाहे वह जिस देश के हों या जिस जाति से भी संबंध रखते हों, बड़ी ही श्रद्धा के साथ इस महीने का स्वागत करते हैं। क़ुरआने मजीद,पैग़म्बरे इस्लाम को एकता व भाईचारे का आह्वान करने वाला बताता है और उनके शिष्टाचार की सराहना करता है। पैगम्बरे इस्लाम की जीवनी एकता के लिए किये जाने वाले प्रयासों से भरी है। पैगम्बरे इस्लाम ने पलायन या हिजरत के पहले साल ही, अपने साथ पलायन करने वाले मुहाजिरों और मदीना के स्थानीय लोगों अन्सार के मध्य " वधुत्व बंधन " बांधा और उन्हें एक दूसरे का भाई बनाया । यह दोनों लोग, जाति, वंश, वातावरण और आर्थिक स्थिति की दृष्टि से एक दूसरे से बहुत भिन्न थे। इसी लिए  जब मक्का से पैगम्बरे इस्लाम के साथ पलायन करने वाले मदीना नगर पहुंचे और वहां रहने लगे तो यह चिंता होने लगी कि कहीं उनमें आपस में फूट न पड़ जाए इसी लिए पैगम्बरे इस्लाम ने मदीने के स्थानीय लोगों और मक्का तथा अन्य नगरों से मुसलमान होकर मदीना पहुंचने वालों के बीच यह रिश्ता बनाया जिसका उन सब ने अंत तक निर्वाह भी किया। इसके साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने इस काम से यह स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम में एकता का क्या महत्व है।

 

यह एकता रमज़ान के महीने में और अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है और पूरी दुनिया में सारे मुसलमान एक तरह से रोज़ा रखते हैं, एक निर्धारित समय पर शुरु करते और एक निर्धारित समय पर रोज़ा खत्म करते हैं लेकिन इस उपासना में एकता के साथ ही साथ, कुछ ऐसे संस्कार भी जुड़े हैं जो सहरी और इफ्तार पर स्थानीय रंग चढ़ा देते हैं जिस पर नज़र डालने से  रमज़ान में मुसलमानों के मध्य विविधता पूर्ण एकता नज़र आती है। इसी लिए हम कुछ देशों में रमज़ान में मुसलमानों के विशेष संस्कारों पर एक दृष्टि डालेंगे।

पाकिस्तान उन देशों में शामिल है जहां रमज़ान को विशेष महत्व प्राप्त है। पाकिस्तान में मुसलमान 90 प्रतिशत हैं। इस लिए इस देश में रमज़ान, बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। पाकिस्तानी, अन्य इस्लामी देशों की जनता की ही भांति, रमज़ान आने से पहले ही, इस पवित्र महीने के स्वागत की तैयारी कर लेते हैं। रमज़ान से पहले पाकिस्तान में मस्जिदों की साफ सफाई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है। इस देश में चांद समिति है जो रमज़ान के महीने के आरंभ होने और ईद के चांद आदि की घोषणा करती है। पाकिस्तान में रमज़ान का एलान होने के बाद सारे लोग, कुरआने मजीद की तिलावत करते हैं और धार्मिक संस्कारों में व्यस्त हो जाते हैं।

इस्लाम में इफ्तार कराना बहुत पुण्य का काम है इस लिए पूरी दुनिया में मुसलमान रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वालों को इफ्तारी कराते हैं किंतु पाकिस्तान में इस पर विशेष ध्यान दिया जाता है। विशेष रूप से मस्जिद में इफ्तार भेजने की पंरपरा बहुत पुरानी है। पाकिस्तान में मस्जिदों और घरों में इफ्तार कराने के अलावा, सड़क के किनारे भी इफ्तार की व्यवस्था होती है  ताकि राहगीर भी यदि अज़ान हो जाए तो इफ्तार कर सकें।

पाकिस्तान में रमज़ान के अवसर पर इफ्तारी और सहरी के  लिए विशेष प्रकार के पकवानों का बहुत चलन है। रमज़ान के पवित्र महीने में कुल्चा और नाहारी से सहरी और भांति भांति के पकवानों से इफ्तारी का चलन है। इफ्तार में पकौड़ियों और चने से बने पकवान ज़्यादा नज़र आते हैं। हलीम  तो रमज़ान का बेहद खास पकवान है।  पाकिस्तान में रमज़ान से अधिक ईद के स्वागत की तैयारी होती है और वास्तव में बीस रमज़ान के बाद से ईद तक के दिन , पाकिस्तानियों के लिए बेहद अहम होते हैं क्योंकि इस दौरान वह जहां शबे क़द्र में उपासनाएं करते हैं वहीं ईद के लिए विशेष प्रकार की तैयारियां भी करते हैं। ईद आने से पहले बाज़ारों में भीड़ बढ़ जाती हैं और लोग कपड़े खरीदते हैं और लड़कियां और महिलाएं मेहंदी लगाती हैं। ईद के दिन नमाज़ के बाद सब लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और छोटों को ईदी दी जाती है और मेहमानों का सत्कार, सेवइयों से किया जाता है।

भारत भी उन देशों में शामिल है जहां मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं । भारत को विविधतापूर्ण संस्कृति वाला देश कहा जाता है और वास्तव में भी ऐसा ही है। भारत में हिन्दु बहुसंख्यक हैं किंतु लगभग 15 प्रतिशत मुसलमान भी काफी बड़ी संख्या हो जाते हैं। भारत हमेशा सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध रहा है और सभी धर्मों के लोग एक दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करते हैं। भारत वासियों में सहिष्णुता की मज़बूती ही है जो बहुत से गुट, आपसी बैर पैदा करने की लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक नाकाम रहे हैं।

भारत में वैसे भी रोज़ा, कोई नयी चीज़ नहीं है और भारत के बहुसंख्यक हिन्दु भी उपवास से भली भांति परिचित हैं और उपवास, एक धार्मिक संस्कार है। भारत में शाबान के अंत से ही रोज़ा रखने का क्रम आरंभ हो जाता है और पाकिस्तान की ही भांति बहुत पहले से रमज़ान के स्वागत की तैयारी आरंभ हो जाती है और चूंकि भारत और पाकिस्तान की संस्कृति एक है इस लिए वहां पर धार्मिक संस्कार भी एक दूसरे से मिलते जुलते हैं और दोनों देशों में लगभग एक ही तरह से रमज़ान का स्वागत होता है, सहरी और इफ्तार होती है तथा ईद मनायी जाती है।

भारत में रमज़ान के अवसर पर छोटे बड़े शहरों में कुरआने मजीद की क्लासें होती हैं जिनमें छोटे और बड़े शामिल होते हैं और एक महीने तक कुरआन पढ़ते और उसकी शिक्षा हासिल करते हैं। इसके साथ ही रमज़ान के महीने में मस्जिदों में इस्लामी नियमों के वर्णन की सभा का भी आयोजन होता है और मुसलमान बाहुल्य इलाक़ों में रात भर रेस्टोरेंट खुल रहते हैं और लोगों की भीड़ लगी रहती है। भारत में भी इफ्तार के अवसर पर पाकिस्तान की भांति खिचड़ा, हलीम, पकौड़े और दही वड़ा आदि जैसी पकवानों का रिवाज है। भारतीय मुसलमान भी ईद के दिन नमाज़ पढ़ने के बाद एक दूसरे से मिलते हैं, छोटों को ईदी देते हैं और मेहमानों को सेवइयां खिलाते हैं।

अफगानिस्तान में 99 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस लिए रमज़ान का इस देश में महत्व ही अलग होता है। अफगानिस्तान के लोग, रमज़ान का चांद देखने के बाद प्राचीन परंपरा के अनुसार आग जलाते हैं और उपासना आरंभ कर देते है। आग इस लिए जलाते हैं ताकि सब लोगों को रमज़ान के आगमन का पता चल सके, रमज़ान के सम्मान में अफगानिस्तान में रमज़ान के पहले दिन सरकारी अवकाश रहता है और इसी प्रकार पूरे महीने सरकारी कार्यालय में काम का समय तीन घंटे कम कर दिया जाता है। अफगानिस्तान में लोग, इस महीने, गरीबों की दिल खोल कर मदद करते हैं। अफगानिस्तान में भी इफ्तारी बेहद रंग बिरंगी होती है और चटनी भी भारत व पाकिस्तान की ही तरह खूब इस्तेमाल होती है।

अफगानिस्तान में रमज़ान के महीने में टीवी और रेडियो पर रमज़ान के विशेष कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं और विशेषकर धार्मिक कार्यक्रम और धर्मगुरुओं के भाषण प्रसारित किये जाते हैं जिन्हें अफगानी जनता बेहद पसन्द भी करती है। अफगानिस्तान के बामियान के लोग, ईद से एक रात पहले मुर्दों की ईद मनाते हैं और उस रात, अपने परिवारों के मृत लोगों के लिए हलवा और रोटी पकायी जाती है और निर्धनों में बांटा जाता है। रमज़ान के अंतिम दिनों में इस देश में भी बाज़ार, खरीदारों से भरे होते हैं। और लोग खूब खरीदारी करते हैं और फिर एक साथ ईद की नमाज़ पढ़ते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं। अफगानिस्तान में ईद, सब से बड़ा त्योहार है।

बांग्लादेश में भी 16 करोड़ की जनंसख्या है जिनमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस देश में भी रमज़ान को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है और देश में ढाई लाख से अधिक मस्जिदों में रमज़ान के साथ ही विशेष प्रकार की रौनक़ छा जाती है। इस देश में भी भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ही भांति , रमज़ान के महीने में कुरआने मजीद की तिलावत के साथ ही विशेष प्रकार कीउपासना की जाती है तथा मस्जिदों में उपदेश और धर्मगुरुओं के भाषण होते हैं जिनमें सब लोग भाग लेते हैं। कहते हैं कि ढाका का रमज़ान अलग ही महत्व रखता है और रमज़ान में इफ्तारी के बाज़ार बेहद दर्शनीय होते हैं जहां तरह तरह के पकवान हर देखने वाले को कुछ देर ठहरने पर मजबूर कर देते हैं।

बांग्लादेश में भी इफ्तारी कराने का बहुत रिवाज है और इसके लिए खास तौर पर निर्धन लोगों को ज़रूर याद रखा जाता है। सब से अधिक इफ्तारी, मस्जिदों में करायी जाती है और लोग बढ़ चढ़ कर मस्जिदों में इफ्तारी में भाग लेते हैं इस  लिए यदि किसी गरीब के पास इफ्तार की व्यवस्था न हो तो भी वह बड़ी आसानी से मस्जिद में जाकर बड़े ही सम्मान के साथ इफ्तारी करता है और इफ्तारी के समय सब लोग एक साथ बैठ कर खाते पीते हैं और धनी व निर्धन सब एक साथ  खाते पीते हैं। बांग्लादेश में भी ईद, सब से बड़ा त्योहार माना जाता है और लोग लंबी छुट्टियां पर जाते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं । इस देश में भी ईद की नमाज़ के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और एक दूसरे के घरों में जाकर ईद की बधाई देते हैं। इस देश में भी भारत और पाकिस्तान की भांति, सेवइयां, ईद का विशेष पकवान है।