बंदगी की बहार 7

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बंदगी की बहार  7

 रमज़ान, पूरी दुनिया के मुसलमानों के मध्य एकता का एक स्पष्ट प्रतीक है।

 

पुरी दुनिया के मुसलमान चाहे वह जिस देश के हों या जिस जाति से भी संबंध रखते हों, बड़ी ही श्रद्धा के साथ इस महीने का स्वागत करते हैं। क़ुरआने मजीद,पैग़म्बरे इस्लाम को एकता व भाईचारे का आह्वान करने वाला बताता है और उनके शिष्टाचार की सराहना करता है। पैगम्बरे इस्लाम की जीवनी एकता के लिए किये जाने वाले प्रयासों से भरी है। पैगम्बरे इस्लाम ने पलायन या हिजरत के पहले साल ही, अपने साथ पलायन करने वाले मुहाजिरों और मदीना के स्थानीय लोगों अन्सार के मध्य " वधुत्व बंधन " बांधा और उन्हें एक दूसरे का भाई बनाया । यह दोनों लोग, जाति, वंश, वातावरण और आर्थिक स्थिति की दृष्टि से एक दूसरे से बहुत भिन्न थे। इसी लिए  जब मक्का से पैगम्बरे इस्लाम के साथ पलायन करने वाले मदीना नगर पहुंचे और वहां रहने लगे तो यह चिंता होने लगी कि कहीं उनमें आपस में फूट न पड़ जाए इसी लिए पैगम्बरे इस्लाम ने मदीने के स्थानीय लोगों और मक्का तथा अन्य नगरों से मुसलमान होकर मदीना पहुंचने वालों के बीच यह रिश्ता बनाया जिसका उन सब ने अंत तक निर्वाह भी किया। इसके साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने इस काम से यह स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम में एकता का क्या महत्व है।

 

यह एकता रमज़ान के महीने में और अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है और पूरी दुनिया में सारे मुसलमान एक तरह से रोज़ा रखते हैं, एक निर्धारित समय पर शुरु करते और एक निर्धारित समय पर रोज़ा खत्म करते हैं लेकिन इस उपासना में एकता के साथ ही साथ, कुछ ऐसे संस्कार भी जुड़े हैं जो सहरी और इफ्तार पर स्थानीय रंग चढ़ा देते हैं जिस पर नज़र डालने से  रमज़ान में मुसलमानों के मध्य विविधता पूर्ण एकता नज़र आती है। इसी लिए हम कुछ देशों में रमज़ान में मुसलमानों के विशेष संस्कारों पर एक दृष्टि डालेंगे।

पाकिस्तान उन देशों में शामिल है जहां रमज़ान को विशेष महत्व प्राप्त है। पाकिस्तान में मुसलमान 90 प्रतिशत हैं। इस लिए इस देश में रमज़ान, बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। पाकिस्तानी, अन्य इस्लामी देशों की जनता की ही भांति, रमज़ान आने से पहले ही, इस पवित्र महीने के स्वागत की तैयारी कर लेते हैं। रमज़ान से पहले पाकिस्तान में मस्जिदों की साफ सफाई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है। इस देश में चांद समिति है जो रमज़ान के महीने के आरंभ होने और ईद के चांद आदि की घोषणा करती है। पाकिस्तान में रमज़ान का एलान होने के बाद सारे लोग, कुरआने मजीद की तिलावत करते हैं और धार्मिक संस्कारों में व्यस्त हो जाते हैं।

इस्लाम में इफ्तार कराना बहुत पुण्य का काम है इस लिए पूरी दुनिया में मुसलमान रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वालों को इफ्तारी कराते हैं किंतु पाकिस्तान में इस पर विशेष ध्यान दिया जाता है। विशेष रूप से मस्जिद में इफ्तार भेजने की पंरपरा बहुत पुरानी है। पाकिस्तान में मस्जिदों और घरों में इफ्तार कराने के अलावा, सड़क के किनारे भी इफ्तार की व्यवस्था होती है  ताकि राहगीर भी यदि अज़ान हो जाए तो इफ्तार कर सकें।

पाकिस्तान में रमज़ान के अवसर पर इफ्तारी और सहरी के  लिए विशेष प्रकार के पकवानों का बहुत चलन है। रमज़ान के पवित्र महीने में कुल्चा और नाहारी से सहरी और भांति भांति के पकवानों से इफ्तारी का चलन है। इफ्तार में पकौड़ियों और चने से बने पकवान ज़्यादा नज़र आते हैं। हलीम  तो रमज़ान का बेहद खास पकवान है।  पाकिस्तान में रमज़ान से अधिक ईद के स्वागत की तैयारी होती है और वास्तव में बीस रमज़ान के बाद से ईद तक के दिन , पाकिस्तानियों के लिए बेहद अहम होते हैं क्योंकि इस दौरान वह जहां शबे क़द्र में उपासनाएं करते हैं वहीं ईद के लिए विशेष प्रकार की तैयारियां भी करते हैं। ईद आने से पहले बाज़ारों में भीड़ बढ़ जाती हैं और लोग कपड़े खरीदते हैं और लड़कियां और महिलाएं मेहंदी लगाती हैं। ईद के दिन नमाज़ के बाद सब लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और छोटों को ईदी दी जाती है और मेहमानों का सत्कार, सेवइयों से किया जाता है।

भारत भी उन देशों में शामिल है जहां मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं । भारत को विविधतापूर्ण संस्कृति वाला देश कहा जाता है और वास्तव में भी ऐसा ही है। भारत में हिन्दु बहुसंख्यक हैं किंतु लगभग 15 प्रतिशत मुसलमान भी काफी बड़ी संख्या हो जाते हैं। भारत हमेशा सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध रहा है और सभी धर्मों के लोग एक दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करते हैं। भारत वासियों में सहिष्णुता की मज़बूती ही है जो बहुत से गुट, आपसी बैर पैदा करने की लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक नाकाम रहे हैं।

भारत में वैसे भी रोज़ा, कोई नयी चीज़ नहीं है और भारत के बहुसंख्यक हिन्दु भी उपवास से भली भांति परिचित हैं और उपवास, एक धार्मिक संस्कार है। भारत में शाबान के अंत से ही रोज़ा रखने का क्रम आरंभ हो जाता है और पाकिस्तान की ही भांति बहुत पहले से रमज़ान के स्वागत की तैयारी आरंभ हो जाती है और चूंकि भारत और पाकिस्तान की संस्कृति एक है इस लिए वहां पर धार्मिक संस्कार भी एक दूसरे से मिलते जुलते हैं और दोनों देशों में लगभग एक ही तरह से रमज़ान का स्वागत होता है, सहरी और इफ्तार होती है तथा ईद मनायी जाती है।

भारत में रमज़ान के अवसर पर छोटे बड़े शहरों में कुरआने मजीद की क्लासें होती हैं जिनमें छोटे और बड़े शामिल होते हैं और एक महीने तक कुरआन पढ़ते और उसकी शिक्षा हासिल करते हैं। इसके साथ ही रमज़ान के महीने में मस्जिदों में इस्लामी नियमों के वर्णन की सभा का भी आयोजन होता है और मुसलमान बाहुल्य इलाक़ों में रात भर रेस्टोरेंट खुल रहते हैं और लोगों की भीड़ लगी रहती है। भारत में भी इफ्तार के अवसर पर पाकिस्तान की भांति खिचड़ा, हलीम, पकौड़े और दही वड़ा आदि जैसी पकवानों का रिवाज है। भारतीय मुसलमान भी ईद के दिन नमाज़ पढ़ने के बाद एक दूसरे से मिलते हैं, छोटों को ईदी देते हैं और मेहमानों को सेवइयां खिलाते हैं।

अफगानिस्तान में 99 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस लिए रमज़ान का इस देश में महत्व ही अलग होता है। अफगानिस्तान के लोग, रमज़ान का चांद देखने के बाद प्राचीन परंपरा के अनुसार आग जलाते हैं और उपासना आरंभ कर देते है। आग इस लिए जलाते हैं ताकि सब लोगों को रमज़ान के आगमन का पता चल सके, रमज़ान के सम्मान में अफगानिस्तान में रमज़ान के पहले दिन सरकारी अवकाश रहता है और इसी प्रकार पूरे महीने सरकारी कार्यालय में काम का समय तीन घंटे कम कर दिया जाता है। अफगानिस्तान में लोग, इस महीने, गरीबों की दिल खोल कर मदद करते हैं। अफगानिस्तान में भी इफ्तारी बेहद रंग बिरंगी होती है और चटनी भी भारत व पाकिस्तान की ही तरह खूब इस्तेमाल होती है।

अफगानिस्तान में रमज़ान के महीने में टीवी और रेडियो पर रमज़ान के विशेष कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं और विशेषकर धार्मिक कार्यक्रम और धर्मगुरुओं के भाषण प्रसारित किये जाते हैं जिन्हें अफगानी जनता बेहद पसन्द भी करती है। अफगानिस्तान के बामियान के लोग, ईद से एक रात पहले मुर्दों की ईद मनाते हैं और उस रात, अपने परिवारों के मृत लोगों के लिए हलवा और रोटी पकायी जाती है और निर्धनों में बांटा जाता है। रमज़ान के अंतिम दिनों में इस देश में भी बाज़ार, खरीदारों से भरे होते हैं। और लोग खूब खरीदारी करते हैं और फिर एक साथ ईद की नमाज़ पढ़ते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं। अफगानिस्तान में ईद, सब से बड़ा त्योहार है।

बांग्लादेश में भी 16 करोड़ की जनंसख्या है जिनमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस देश में भी रमज़ान को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है और देश में ढाई लाख से अधिक मस्जिदों में रमज़ान के साथ ही विशेष प्रकार की रौनक़ छा जाती है। इस देश में भी भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ही भांति , रमज़ान के महीने में कुरआने मजीद की तिलावत के साथ ही विशेष प्रकार कीउपासना की जाती है तथा मस्जिदों में उपदेश और धर्मगुरुओं के भाषण होते हैं जिनमें सब लोग भाग लेते हैं। कहते हैं कि ढाका का रमज़ान अलग ही महत्व रखता है और रमज़ान में इफ्तारी के बाज़ार बेहद दर्शनीय होते हैं जहां तरह तरह के पकवान हर देखने वाले को कुछ देर ठहरने पर मजबूर कर देते हैं।

बांग्लादेश में भी इफ्तारी कराने का बहुत रिवाज है और इसके लिए खास तौर पर निर्धन लोगों को ज़रूर याद रखा जाता है। सब से अधिक इफ्तारी, मस्जिदों में करायी जाती है और लोग बढ़ चढ़ कर मस्जिदों में इफ्तारी में भाग लेते हैं इस  लिए यदि किसी गरीब के पास इफ्तार की व्यवस्था न हो तो भी वह बड़ी आसानी से मस्जिद में जाकर बड़े ही सम्मान के साथ इफ्तारी करता है और इफ्तारी के समय सब लोग एक साथ बैठ कर खाते पीते हैं और धनी व निर्धन सब एक साथ  खाते पीते हैं। बांग्लादेश में भी ईद, सब से बड़ा त्योहार माना जाता है और लोग लंबी छुट्टियां पर जाते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं । इस देश में भी ईद की नमाज़ के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और एक दूसरे के घरों में जाकर ईद की बधाई देते हैं। इस देश में भी भारत और पाकिस्तान की भांति, सेवइयां, ईद का विशेष पकवान है।

 

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