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12 अक्तूबर 2018 को ग़ज़्जा शहर के पूर्वी भाग में ग़ज़्जा पट्टी और अतिग्रहित क्षेत्र की सीमा पर जलते हुए टायरों से निकलते धुएं और इस्राईली फ़ोर्सेज़ द्वारा आंसू गैस के गोले के इस्तेमाल बीच इकट्ठा फ़िलिस्तीनी  

नाकाबंदी से घिरे ग़ज़्ज़ा पट्टी और अतिग्रहित क्षेत्र की सीमा पर फ़िलिस्तीन के इस्राईल द्वारा अतिग्रहण के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान इस्राईली फ़ोर्सेज़ की फ़ायरिंग में कम से कम 7 फ़िलिस्तीनी शहीद और 112 घायल हुए।

ग़ज़्ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि शुक्रवार को इस्राईली फ़ोर्सेज़ की फ़ायरिंग में 6 फ़िलिस्तीनी हताहत हुए। ये फ़िलिस्तीनी अलबुरैज शरणार्थी कैंप के पूरब में शहीद हुए।

ग़ज़्ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ़ अलक़िदरा ने अलबुरैज शरणार्थी कैंप के पूरब में शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों की पहचान अहमद अत्ताविल 27 साल, मोहम्मद इस्माईल 29 साल, अब्दुल्लाह अद्दुग़मा 25 साल, अहमद अबू नईम 17 साल, अफ़ीफ़ी अफ़ीफ़ी 18 साल, तामिर अबू इरमाना 22 साल और मोहम्मद अब्बास 21 साल बतायी।

रिपोर्ट के अनुसार, घायल होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 112 है जिनमें बच्चे और औरतें भी शामिल हैं। इनमें ज़्यादातर झड़प के दौरान गोलियों से घायल हुए।

घायलों में एक लड़की गंभीर रूप से घायल थी जबकि 5 अन्य लोगों की स्थिति चिंताजनक बनी हुयी थी।

 

 

17 वर्ष पूर्व 7 अक्तूबर 2001 को अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था, लेकिन 17 वर्ष बीत जाने के बाद वाशिंगटन और उसके घटकों को न केवल इस देश में कोई सफलता नहीं मिली है, बल्कि वे यह जंग हार गए हैं।

जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान की अधिकांश जनता का मानना है कि अमरीका, उनके देश में यह युद्ध हार गया है, उसी तरह अमरीकी जनता का भी यही मानना है कि उनका देश अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध हार रहा है और अमरीकी सैनिकों को इस देश से निकल जाना चाहिए।

अमरीका ने नाइन इलेवन की घटना के बाद अल-क़ायदा और तालिबान को ख़त्म करने के दावे के साथ अफ़ग़ानिस्तान पर धावा बोल दिया था। इसके अलावा अमरीका का दावा था कि वह चरमपंथ को मिटाकर इश देश में शांति व्यवस्था की स्थापना कर देगा। हालांकि ज़मीनी सच्चाई यह बताती है कि न केवल अमरीका अपने घोषित लक्ष्यों में से एक भी हासिल नहीं कर सका है, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान पहले से भी अधिक अस्थिर हुआ है और आतंकवाद एवं चरमपंथ का विस्तार पहले से भी अधिक हुआ है। इसके अलावा, अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति में इश देश में मादक पदार्थों की पैदावार एवं तस्करी में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अमरीकी सेना कि जिसने अफ़ग़ानिस्तान की जनता को आतंकवाद एवं चरमपंथ से मुक्ति दिलाने के नारे के साथ काबुल पर हमला किया था, आज आतंकवाद के प्रसार एवं अस्थिरता का मुख्य कारण वह ख़ुद है।

अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय एक ग़ैर सरकारी संगठन का कहना है कि इस साल केवल सितम्बर के महीने में अमरीका और नाटो के हवाई हमलों में 100 से अधिक आम नागरिक मारे गए हैं। इस संदर्भ में काबुल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ैसर का कहना है कि अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति हमारे देश में अशांति एवं अस्थिरता का मुख्य कारण है। अमरीका का लक्ष्य शुरू से ही शांति की स्थापना नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य कुछ और है, इसीलिए वह इस देश में स्थिरता नहीं चाहता है।

राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ माइकल ह्यूज़ का मानना है कि अमरीका की नज़र अफ़ग़ानिस्तान के खनिज संसाधनों पर है, जिसके लिए उसे इस देश में बने रहने के लिए कोई न कोई बहाना तो चाहिए होगा।     

 

ईरान की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था के प्रमुख ने कहा है कि अगले छे महीनों के दौरान ईरान में बने तीन उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जाएगें।

मुर्तुज़ा बरारी ने रविवार को तेहरान के अमीर कबीर विश्वविद्यालय में आयोजित उपग्रह सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि उनकी संस्था अनुसंधान के चरण से उत्पादन के चरण में प्रवेश कर रही है और अगले छे महीनों दौरान तीन उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए तैयार है। 

उन्होंने बताया कि प्रक्षेपण के लिए तैयार उपग्रहों के नाम, " दोस्ती"   " पयाम और " नाहीद-1" हैं 

उन्होंने बताया कि इन तीनों उपग्रहों को बनाने का काम तेज़ी से जारी है और ईरान की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था की प्राथमिकता दूर संचार ढांचे को मज़बूत करना है। 

ईरान विश्व के उन 9 देशों में शामिल हैं जिनके पास अंतरिक्ष विज्ञान के पूरे चक्र की तकनीक है।

अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों के नए चरण का हवाले देते हुए कहा है कि बीजिंग और वॉशिंग्टन के बीच भविष्य में युद्ध, तेल पर होगा।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि चीन, जो ईरान के कच्चे तेल के एक चौथाई का ख़रिदार है वह इस समय ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाए गए एकपक्षीय प्रतिबंधों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिरोध का धुरी बन गया है। “पीडब्ल्यूएम ऑयल” इंस्टीट्यूट में तेल के बाज़ार के जानकार “स्टफ़ान बर्नूक” का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए इस बात की संभावना कम ही दिखाई देती है कि बीजिंग, वॉशिंग्टन की मांगों को स्वीकार करेगा।

अमेरिकी समाचार पत्र ने ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों के आरंभ होने और उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उत्पन्न हुई अस्थिरता की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि, ईरान के तेल के सबसे बड़े ख़रीदार देश, तेहरान पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ हैं। लेकिन वित्तीय मामलों में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार को डॉलर की ज़रूरत है और साथ ही यूरोप, तेल के व्यापार में निजी कंपनियों पर निर्भर है और अमेरिका के मुक़ाबले में अपने हितों की सुरक्षा की आवश्यकता के मद्देनज़र यूरोपीय संघ ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों समक्ष भरपूर मुक़ाबला करने की स्थिति में नहीं है।

थिंक टैंक, सेंटर फ़ॉर न्यू अमेरिकन सेक्युरिटी संस्था के विशेषज्ञ पीटर हार्ल, जो बराक ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल में ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने के संबंध में कार्य करते थे और अब भी ट्रम्प सरकार में अमेरिका के सुरक्षा केंद्र के सदस्य हैं, उन्होंने इस संबंध में कहा है कि चीन दूसरे देशों के मुक़ाबले में अमेरिकी प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने में अधिक सक्षम है। हार्ल ने कहा कि चीन के पास बहुत सी छोटी ऑयल रिफ़ाइनरियां हैं जिनके बारे में अमेरिकी सरकार को पता ही नहीं है और दूसरी ओर चीन के पास अपनी राष्ट्रीय मुद्रा युआन से तेल आयात करने का अनुभव भी है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि चीन अपनी बड़ी सरकारी तेल रिफ़ाइनरियों के माध्यम से तेल आयात को कम करने का इच्छुक है।

एक अन्य टीकाकार माइकल हेरिसून का मानना है कि चीन द्वारा अमेरिका के मुक़ाबले में उठाए जा रहे क़दमों का मुख्य उद्देश्य अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर लगाए गए अधिक करों का जवाब देना है। उन्होंने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का धैर्य, सऊदी अरब के तेल के उत्पादन में वृद्धि से जुड़ा हुआ है। हेरिसून का कहना है कि ट्रम्प के लिए तेल उत्पादन में वृद्धि, ईरानी तेल के ख़रीदारों पर और अधिक दबाव डालने के बराबर है लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति को इस बारे में कोई जल्दबाज़ी नहीं है।

अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने अपनी रिपोर्ट के अंत में लिखा है कि ईरान और चीन के सामने ट्रम्प द्वारा उठाए जा रहे कड़े क़दमों का एक ख़ास उद्देश्य है जिस तक ट्रम्प पहुंचना चाहते हैं, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ईरान के ख़िलाफ़ की जा रही सभी कार्यवाहियां तेहरान पर किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं डाल सकती हैं।  

 

इराक़ के अलफ़तह गठबंधन की प्रतिनिधि इंतेसा अलमूसवी ने अमेरिका और इस्राईल को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इराक़े प्रतिरोध मार्चे हश्दुश्शाबी के ठिकानों पर किसी भी तरह की कार्यवाही की गई तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़ अत्याचारी ज़ायोनी शासन के युद्ध मंत्री लेबरमैन ने कुछ दिनों पहले धमकी दी थी कि, इराक़ में प्रतिरोध मोर्चे के ठिकानों पर हमले किए जा सकते हैं। इराक़ के अलफ़तह गठबंधन की प्रतिनिधि इंतेसार अलमूसवी ने एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि, अमेरिका और इस्राईल एक बार फिर इराक़ को उस आतंकवाद की आग में झोकना चाहते हैं जिस आतंकवाद को देश की सेना और स्वयंसेवी बल हश्दुश्शाबी के जवानों ने पराजित किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और इस्राईल लगातार इस संबंध में प्रयास कर रहे हैं कि कैसे वह इराक़ में दाइश को जीवित कर सकें ताकि वे अपने खोए हुए उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें।

इंतेसार अलमूसवी ने कहा कि अमेरिका और इस्राईल यह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर उन्होंने एक बार फिर युद्ध आरंभ किया तो उसको समाप्त करना उनके हाथ में नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2017 में इराक़ में तकफ़ीरी आतंकवादियों के मारे जाने और उनके गुटों के तबाह हो जाने के बाद इस देश की विभिन्न पार्टियां, हस्तियां, जनता और मीडिया, इराक़ से विदेशी सेना विशेषकर अमेरिकी सेना के वापस लौट जाने की मांग कर रहे हैं।

 

भारतीय संचार माध्यमों ने ईरान से नई दिल्ली द्वारा तेल की ख़रीद में वृद्धि की बात कही है।

एक मश्हूर भारतीय टीवी चैनेल के अनुसार अमरीका के तेल आयात करने वाली भारतीय कंपनियों ने अपने आयात की मात्रा घटाते हुए ईरान से तेल आयात बढ़ा दिया है।  इस रिपोर्ट के आधार पर अमरीका की ओर से भारत को निर्यात किये जाने वाले तेल में सितंबर में 84 हज़ार बैरेल तेल प्रतिदिन का ह्रास हुआ है।  इस प्रकार जून और जूलाई में अमरीका की ओर से भारत के लिए तेल निर्यात में कमी हुई है।

रिपोर्ट के आधार पर 2017 के आरंभिक पांच महीनों में भारत की ओर से ईरान से कच्चे तेल का आयात 9 मिलयन टन था जो सन 2018 में 13 मिलयन टन पहुंच गया है।

ज्ञात रहे कि अमरीका की ओर से परमाणु समझौते से एकपक्षीय रूप में निकल जाने के बाद 8 मई 2018 को यह एलान किया गया था कि 4 नवंबर 2018 से ईरान से तेल, गैस और पैट्रोकैमिकल के निर्यात को ज़ीरो तक पहुंचा देंगे।

 

ज़ायोनी शासन ने अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन से लगी ग़ज़्ज़ा पट्टी की सीमा को बंद सैन्य क्षेत्र घोषित कर दिया है।

इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार ज़ायोनी शासन की आंतरिक सुरक्षा और गुप्तचर संस्थाओं की ओर से स्थिति का जाएज़ा लिए जाने के बाद इस्राईली सेना ने अपने एक बयान में कहा कि अगले कुछ दिनों में ग़ज़्ज़ा पट्टी के सीमावर्ती क्षेत्रों में और अधिक सैनिकों को तैनात किया जाएगा।

इस्राईली सेना का कहना है कि इस्राईल में घुसपैठ के प्रयासों को विफल बनाने के लिए ठोस कार्यवाहियों का क्रम जारी रहेगा।

ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास पर आरोप लगाते हुए ग़ज़्ज़ा के भीतर और बाहर होने वाली घटनाओं का आरोप हमास पर लगाया है।

 30 मार्च से शुरू हुई वापसी मार्च के नाम से फ़िलिस्तीनियों की शांतिपूर्ण रैली में अब तक ज़ायोनी सैनिकों की फ़ायरिंग में 195 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जबकि 21 हज़ार 600 से अधिक घायल हुए हैं। यह रैली हर शुक्रवार को ग़ज़्ज़ा और इस्राईल की सीमा पर निकाली जाती है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान समेत अधिकतर देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने ज़ायोनियों के इन अपराधों की निंदा की है। 30 मार्च 1976 को ज़ायोनी शासन द्वारा फ़िलिस्तीनियों की ज़मीनों को ज़ब्त करने की वर्षगांठ के अवसर पर हर साल रैलियां निकाली जाती हैं। इस साल फ़िलिस्तीनियों ने इस रैली को वापसी मार्च का नाम दिया है और कहा है कि जब उनकी ज़मीनें वापस नहीं दी जातीं वे हर सप्ताह शुक्रवार को रैली निकालते रहेंगे।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने तेहरान के आज़ादी स्टेडियम में स्वयं सेवी बलों के एक लाख से अधिक लोगों के भव्य समूह को संबोधित किया।

वरिष्ठ नेता ने तेहरान के आज़ादी स्टेडियम में स्वयं सेवी बल बसीज के एक लाख से अधिक कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की शक्ति केवल एक नारा नहीं बल्कि एक वास्तविकता है और दुनिया का हर न्यायप्रिय व्यक्ति, ईरानी राष्ट्र की महानता को स्वीकार करता है जबकि दुश्मन ईरान की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में प्रगति से बहुत अधिक परेशान हैं। 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान ने आठ वर्षीय थोपे गये युद्ध में बड़ी शक्तियों को विफलता और पराजय का स्वाद चखाया। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि इस बड़ी बैठक बहुत ही संवेदनशील हालत में आयोजित हुई है। क्षेत्र और दुनिया के हालात बहुत ही संवेदनशील है विशेषकर हमारे ईरानी राष्ट्र के लिए स्थिति बहुत ही संवेदनशील है।

वरिष्ठ नेता का कहना था कि संवेदनशीलता इस दृष्टि से है कि एक ओर अमरीकी राजनेताओं और साम्राज्यवादियों की चीख़ पुकार तथा दूसरी ओर विभिन्न क्षेत्रों और मैदानों में मोमिन युवाओं का शक्ति प्रदर्शन, एक ओर देश की आर्थिक समस्याएं और जनता की वित्तीय परेशानियां और दूसरी ओर देश के बुद्धिजीवी वर्ग के इन हालात से संवेदनशील होने के कारण वैचारिक व व्यवहारिक प्रयास करने पर उन्हें विवश कर दिया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि आज मेरे भाषण का संक्षेप यह है कि पहले ईरान की महानता है, दूसरे इस्लामी गणतंत्र ईरान की शक्ति और तीसरा ईरानी राष्ट्र का अजेय होना है। उनका कहना था कि यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है, यह केवल कोई नारा नहीं है, यह कोई खोखला या बेकारा का दावा नहीं है जो कुछ लोग करते हैं। यह वह वास्तविकताएं हैं कि ईरानी राष्ट्र के दुश्मन कामना करते हैं कि हमें इसके बारे में पता न चले या इससे निश्चेत रहें किन्तु यह बात सबसे स्पष्ट है जिसका कोई इन्कार कर सकता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि मैंने ईरान की महानता और वैभवता की बात कही है तो यह केवल वर्तमान समय में नहीं बल्कि ईरान की महानता एक ऐतिहासिक बात है।  उन्होंने कहा कि हमारे प्यारों ने विज्ञान, दर्शनशास्त्र, राजनीति, कला और ह्यूमनीटीज़ के क्षेत्र में राष्ट्रीय ध्वज लहराया, दुनिया के राष्ट्रों और मुस्लिम देशों के बीच राष्ट्र का सिर ऊंचा दिया, यह चीज़ हमारे काल से और इतिहास से जुड़ी हुई है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई  ने इस्लामी लोकतंत्र की शक्ति के बारे में कहा कि ईरान की शक्ति यही है कि उसने देश को अमरीका और ब्रिटेन के वर्चस्व से निकाल दिया, उस वर्चस्व से निकाल दिया जो 19वीं शताब्दी के आरंभ से शुरु हुआ था और देश के समस्त मामलों पर निर्दयी विदेशी छाए हुए थे। इस्लामी गणतंत्र की यही शक्ति है कि उसने देश को अत्याचारी वर्चस्व से मुक्ति दिला दी।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि सबसे पहले इस्लाम है, अमरीका, इस्लाम से तमाचा खा चुका है और उसे इस्लाम से द्वेष और ईर्ष्या है। अमरीका, इस्लामी क्रांति से मुंह की खा चुका है, देश के समस्त मामले उन्हीं के हाथों में थे, देश के स्रोत उन्हीं के पास थे, देश की पूंजी उनकी मर्ज़ी से इधर उधर होती थी, देश की सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक नीतियां उन्हीं के हिसाब से तैयार होती थीं, उनके हाथ काट दिए गये, यह काम इस्लाम ने किया।

 

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार की रात बताया कि 28वें वापसी मार्च के दौरान ग़ज़्ज़ा की सीमा पर इस्राईली फ़ायरिंग में 3 फ़िलिस्तीनी शहीद और 376 घायल हो गये।

इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि घायलों में 10 महिलाएं और 30 बच्चे भी शामिल हैं।

प्रेस टीवी  की रिपोर्ट के अनुसार फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ़ क़दरा ने बताया कि इस्राईली फ़ायरिंग में 12 वर्षीय फ़ारस हफ़ीज़ और 24 वर्षीय महमूद करम घटना स्थल पर ही दम तोड़ गये जबकि एक अन्य युवा ने रास्ते में दम तोड़ दिया।

उनका कहना था कि फ़िलिस्तीनियों की ओर से इस्राईल के विरुद्ध हो रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान इस्राईली सैनिकों की फ़ायरिंग में 376 से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं। 

अशरफ़ क़दरा ने बताया कि शुक्रवार की रात फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन करते हुए टायर जलाए और इस्राईली सैनिकों पर पथराव किया किन्तु इस्राईली सैनिकों ने जवाब में निहत्थे फ़िलिस्तीनियों पर आंसू गैस के गोले दाग़े और गोलियां बरसा दीं।   

उनका कहना था कि आंसू गैस से प्रथावित 192 फ़िलिस्तीनियों को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है। उनका कहना था कि इस्राईली सैनिकों की फ़ायरिंग से 126 फ़िलिस्तीनी घायल हुए जिनमें से 7 की हालत चिंताजनक है।

अशरफ़ क़दरा का कहना था कि इस्राईली सैनिकों ने फ़िलिस्तीनी एंबुलेंस पर सीधे आंसू गैस से हमला किया किन्तु कोई जानी नुक़सान नहीं हुआ।

दूसरी ओर जेबालिया कैंप में स्थानीय पत्रकार मुहम्मद हज़मीन के सिर पर आंसू गैस का गोला लगा जिसके परिणाम में वह भीषण रूप से घायल हो गये। 

ज्ञात रहे कि 30 मार्च से शुरू हुई वापसी मार्च के नाम से फ़िलिस्तीनियों की शांतिपूर्ण रैली में अब तक ज़ायोनी सैनिकों की फ़ायरिंग में 195 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जबकि 21 हज़ार 600 से अधिक घायल हुए हैं। यह रैली हर शुक्रवार को ग़ज़्ज़ा और इस्राईल की सीमा पर निकाली जाती है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान समेत अधिकतर देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने ज़ायोनियों के इन अपराधों की निंदा की है। 30 मार्च 1976 को ज़ायोनी शासन द्वारा फ़िलिस्तीनियों की ज़मीनों को ज़ब्त करने की वर्षगांठ के अवसर पर हर साल रैलियां निकाली जाती हैं। इस साल फ़िलिस्तीनियों ने इस रैली को वापसी मार्च का नाम दिया है और कहा है कि जब उनकी ज़मीनें वापस नहीं दी जातीं वे हर सप्ताह शुक्रवार को रैली निकालते रहेंगे।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सोमवार को हज समिति के सदस्यों से मुलाक़ात में इस्लामी क्रांति के हज के राजनैतिक संदेशों को इस्लामी जगत तक पहुंचाने पर बल दिया।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ईश्वर की ओर से हज की अनिवार्य उपासन के लिए मुसलमानों को एक विशेष समय व स्थान पर एकत्रित होने के आदेश को, मुसलमानों के आपसी संपर्क व सहयोग और इस्लामी समुदाय की शक्ति के प्रदर्शन जैसे अहम राजनैतिक संदेशों व आयामों का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि हज के आध्यात्मिक आयामों के अलावा जो काफ़ी अहम हैं, इन वास्तविकताओं और इस्लामी लक्ष्यों को भी स्पष्ट रूप से पेश किया जाना चाहिए और इसके लिए कार्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि हज में इस्लामी समुदाय के लोगों के आपसी संपर्क, हाजियों तक इस्लामी क्रांति के संदेशों को पहुंचाना और उनकी शंकाओं को दूर करना, अन्य इस्लामी देशों के साथ इस्लामी गणतंत्र ईरान के संबंधों की मज़बूती का मार्ग प्रशस्त करना और सभी इस्लामी मतों का भाईचारे और शांतिपूर्ण ढंग से साथ रहना, हज के अहम राजनैतिक संदेशों में शामिल है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हज को इस्लामी क्रांति के लिए सम्मान का कारण बनना चाहिए इस लिए हज के राजनैतिक आयामों को भुलाया नहीं जाना चाहिए। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी क्रांति के बाद के हज और उससे पहले के हज तथा इस्लाम की मूल शिक्षाओं से अनभिज्ञ देशों के हज में बहुत अंतर है। उन्होंने सऊदी सरकार की ओर से ईरानी हाजियों के दुआए कुमैल के कार्यक्रम के आयोजन में डाली जाने वाली बाधाओं की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि इन बाधाओं और रुकावटों से गुज़रने की कोशिश की जानी चाहिए। उन्होंने इसी तरह हज के विकास के बहाने हज़रत मुहम्मद, हज़रत अली और इस्लाम के आरंभिक काल के मुजाहिदों की यादगारों को मिटाए जाने की कड़ी आलोचना की और कहा कि अन्य देश अपने एेतिहासिक अवशेषों की भरपूर तरह से रक्षा करते हैं और कभी कभी तो अपने इतिहास को समृद्ध दिखाने के लिए इस प्रकार के अवशेष गढ़ भी लेते हैं लेकिन सऊदी अरब में इसके विपरीत हो रहा है और मक्के व मदीने के अनेक इस्लामी अवशेषों को ध्वस्त कर दिया गया है।