
رضوی
इस्तांबोल विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर, ज़ायोनिज़्म ने यहूदी धर्म का शोषण किया है
इस्तांबोल विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर ने कहा: ज़ायोनी, धर्म का शोषण करते हैं उन्होंने यहूदी धर्म को एक हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया है क्योंकि ज़ायोनिज़्म के शुरुआती नेता और संस्थापक अधिकतर नास्तिक, डाइस्ट या एग्नोस्टिसिज़्म हैं और किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते हैं।
दूसरे शब्दों में ज़ायोनिज़्म एक फासीवादी विचारधारा है जिसने यहूदी धर्म का शोषण किया है।
इस्तांबोल में इतिहास के प्रोफेसर और पत्रकार इस्लाम ओज़कान ने हाल ही में ईरानी समाचार एजेंसी इकना से बात करते हुए धर्मों के इतिहास में बैतुल मुक़द्दस और फिलिस्तीन के महत्व का ज़िक्र किया और कहा: कुद्स या बैतुल मुक़द्दस के इतिहास को जानना बहुत महत्वपूर्ण है और इसका एक भाग धर्मों के इतिहास और पवित्र किताबों में ज़िक्र हुआ है।
दो हजार साल पहले के इतिहास का हवाला देकर इस्राईली ख़ुद को फ़िलिस्तीन की ज़मीन का मालिक बताते हैं।
हालांकि कुछ आधुनिक ज़ायोनी, इस तरह के इतिहास को स्वीकार नहीं करते हैं और इस्राईली शासन के जन्म को अपराधों और क़ब्ज़े का परिणाम मानते हैं लेकिन दुर्भाग्य से यही लोग इस्राईल के क़ब्ज़े की बात मानने के बावजूद, दूसरी ओर कहते हैं कि इस्राईली शासन को भी किसी भी दूसरे नाजायज़ बच्चे की तरह जीवन का तो अधिकार है ही, और इस प्रकार वे इस इलाक़े में इस्राईली शासन की उपस्थिति को उचित ठहराते हैं।
उन्होंने कहा:
फ़िलिस्तीन, मुसलमानों और यहूदियों के बीच कोई धार्मिक मुद्दा ही नहीं रह जाता है ताकि हम धर्मों के इतिहास के संदर्भ में इसकी जांच पड़ताल करें। आज फ़िलिस्तीन एक राजनीतिक मुद्दा है और यह एक ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना और ज़मीन को हड़पना है। हालांकि क़ब्ज़ा करने वाले इसे एक धार्मिक मुद्दे के रूप में परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं और फ़िलिस्तीन की धरती को वह वादा की हुई ज़मीन मानते हैं जिसका वादा ईश्वर ने यहूदियों से किया था।
इस सवाल के जवाब में कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे का मानवाधिकार और न्याय के नज़रिए से किस तरह विश्लेषण किया जा सकता है? इस्लाम ओज़कान ने कहा: क़ानूनी नज़रिए से, फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर अन्यायपूर्ण तरीक़े से क़ब्ज़ा कर लिया गया है।
मानवीय न्याय की नज़र से फ़िलिस्तीन के मूल निवासियों ने उस ज़मीन पर रहने का अधिकार खो दिया है और आक्रमणकारियों ने उनकी ज़मीन को अपनी मातृभूमि घोषित कर दिया है और यह मानवीय न्याय के ख़िलाफ़ है।
उन्होंने कहा: अगर हम इस मामले को अधिक मानवीय तरीक़े से देखें तो भी हमें कहना चाहिए कि हमारा दावा यह नहीं है कि बैतुल मुक़द्दस या क़ुद्स मुसलमानों का है बल्कि हम कहते हैं कि येरूशलम (क़ुद्स) फिलिस्तीनियों का है, चाहे वे मुस्लिम हों, यहूदी हों या ईसाई हों। और यही कहना सबसे बेहतर है कि क़ुद्स उन्हीं इंसानों का है।
यदि आज क़ब्ज़ा करने वाले इस हड़पी हुई ज़मीन से निकल जाएं जैसे ऑटोमन काल (उसमानी शासन काल) में हुआ था तो यहूदियों को भी यरूशलेम में रहने का अधिकार होगा और हर धर्म के मानने वाले अपने धर्म के अनुसार इबादत कर सकेंगे और ईसाई लोग भी पूरी स्वतंत्रता के साथ अपनी इबादतें अंजाम दे सकेंगे।
जैसा कि हमास भी फ़िलिस्तीन के बारे में बात करते समय कहता है: "क़ुद्स हमारा है, इसके चर्च, इसकी यहूदी इबादत गाहें और मस्जिदें हमारी हैं।"
क़ुद्स केवल मुसलमानों के लिए आरक्षित या विशेष नहीं है। क़ुद्स फ़िलिस्तीनियों का है, चाहे वे मुस्लिम हों, यहूदी हों या ईसाई हों।
जब भी हम फ़िलिस्तीन को आज़ाद करा लेंगे तो वहां सभी धर्म के मानने वाले आसानी से अपनी धार्मिक इबादतों को अंजाम दे सकेंगे, और किसी को भी उनके धर्म, विश्वास और आस्था की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा।
तुर्किए के इस विश्लेषक ने कहा: दूसरे शब्दों में, फ़िलिस्तीन एक ऐसा मुद्दा है और जो भी स्वतंत्रता विचार रखता है और उसमें इंसानियत ज़िंदा है उसको अहमियत देगा।
यहूदी धर्म के बारे में ज़ायोनियों के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा: इस प्रश्न का सबसे अच्छा जवाब जो मैं दे सकता हूं वह यह है कि ज़ायोनी वास्तव में धर्म का शोषण कर रहे हैं। उन्होंने यहूदी धर्म को एक हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया है क्योंकि ज़ायोनिज़्म के शुरुआती नेता और संस्थापक अधिकतर नास्तिक, डाइस्ट या एग्नोस्टिसिज़्म हैं और किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते हैं।
आज, सेक्युलिरिज़्म और धर्मनिरपेक्ष होने के बावजूद, ज़ायोनी लगातार तौरैत से आयतों को दलील के तौर पर पेश करते हैं या तल्मूद का हवाला देते हैं, जिसका अर्थ है ज़ायोनी पाखंडी होते हैं और वे यहूदी धर्म की मान्यताओं का दुरुपयोग कर रहे हें, वे नस्लीय वर्चस्व चाहते हैं।
दूसरे शब्दों में, ज़ायोनी एक फांसीवादी विचारधारा है जिसने यहूदी धर्म का शोषण किया है।
यहूदियों के बारे में पवित्र क़ुरआन के नज़रिए के बारे में इक़ना के सवाल के जवाब में, इस्लाम ओज़कान ने कहा: "क़ुरआन उनकी नस्ल परस्ती के कारण यहूदियों की निंदा नहीं करता है बल्कि उनके धर्म से निकलने और ज़मीन परर भ्रष्टाचार फैलाने का कारण मानता है और इसकी कड़े शब्दों में निंदा भी करता है।
आप के लिए यह जानना भी बहुत दिलचस्प है कि सूरह अल-बक़रा की आयत 47 और 122 में अल्लाह कहता है:
यानी "हे बनी इस्राईल, मेरे उपकारों को याद करो जो मैंने तुम पर किए हैं, और मैंने तुम्हें दुनिया में सबसे बेहतर बनाया है" इस आयत में सर्वशक्तिमान ईश्वर उन उपकारों को याद कराना चाहता है जो उसने बनी इस्राईल को दिए हैं जबकि अन्य आयतों में इनमें से कुछ उपकारों और नेमतों को बयान भी किया गया है और दुनिया भर में बनी इस्राईल और यहूदियों की श्रेष्ठता को दर्शाया गया है लेकिन यह श्रेष्ठता उस समय से संबंधित है जब अहबार और भिक्षुओं ((أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ (तौबा-31) ने धर्म में फेर बदल नहीं किया था और नैतिक नियमों की उपेक्षा नहीं की थी।
क्योंकि क़ुरआन उनके बारे में सूरे अल-बक़रा की आयत संख्या 65 में कहता है: (فَقُلْنَا لَهُمْ کُونُوا قِرَدَةً خَاسِئِینَ) इसीलिए क़ुरआन न तो यहूदियों को उनकी नस्ल की वजह से विशेष बताता है और तारीफ़ करता है और न ही उनकी निंदा करता है बल्कि उनके कार्यों और व्यवहार के कारण उनकी निंदा करता है।
अल जलील और जौलान पर हिज़्बुल्लाह के ज़बरदस्त हमले
मक़बूज़ा फिलिस्तीन के उत्तर में स्थित अल जलील और जौलान हाइट्स पर दक्षिणी लेबनान की सीमा से ज़बरदत्स मिसाइल हमलों की खबर है।
स्थानीय सूत्रों ने बताया कि दक्षिणी लेबनान से किये गए इस व्यापक मिसाइल हमले के बाद मक़बूज़ा फिलिस्तीन के उत्तरी क्षेत्रों में ज़ायोनी सेना की एयर डिफ़ेंस सिस्टम यूनिट्स अलर्ट पर है।
इस बीच, अल जजीरा ने रिपोर्ट देते हुए कहा है कि दक्षिणी लेबनान से उत्तरी मक़बूज़ा फिलिस्तीन के अल जलील क्षेत्र की ओर 60 से अधिक मिसाइल दागे गए।
इससे पहले अरब मीडिया ने भी ब्रेकिंग न्यूज़ में कहा था कि दक्षिणी लेबनान से जौलान में ज़ायोनी शासन के अड्डों पर मिसाइल हमले किये गए हैं।
एक क़ुरआनी रहस्य की समझ, ईरानियों की कामयाबी का राज़ है
पवित्र नगर मशहद में शहीद राष्ट्रपति के अंतिम संस्कार में दसियों लाख ईरानियों की उपस्थिति
दुनिया में शक्ति का संतुलन हमेशा विदित में बड़ी शक्तियों के पास और उनके पक्ष में नहीं रहता है बल्कि वह बदलता रहता है और इसके लिए प्रतिरोध ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर ईरानी राष्ट्र ने प्रतिरोध किया और वह कामयाब हो गया। इस्लामी क्रांति में और क्रांति के बाद भी। महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे फ़ुस्सेलत की 30वीं आयत में कहता है
बेशक जिन लोगों ने कहा कि अल्लाह हमारा पालनहार है और उस पर वे डटे रहे, फ़रिश्ते उन पर नाज़िल होते हैं और कहते हैं कि न डरो और न दुःखो हो और तुम्हें वह जन्नत मुबारक हो जिसका तुमसे वादा किया गया है।
यहां हम एक नज़र डालते हैं उस व्याख्या पर जिसे ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता इमाम ख़ामेनेई ने इस आयत के संबंध में किया है और उन्होंने ईरानी समाज को मिसाल के तौर पर बयान किया है।
अल्लाह की इबादत
रोज़मर्रा की घटनाओं के साथ लगातार हमारी ज़िन्दगी ख़त्म हो रही और गुज़र रही है। इस ख़त्म होने और गुज़रने का हिसाब- किताब किया जाना चाहिये। सही संसाधनों से इसका हिसाब- किताब किया जा सकता है वरना इंसान ख़त्म हो जायेगा। संभव है कि इंसान माद्दी और भौतिक दृष्टि से सेहतमंद हो मगर अगर वह हिसाब -किताब के बारे में नहीं सोचेगा तो आध्यात्मिक दृष्टि से वह ख़त्म हो जायेगा। रब्बोनल्लाह यानी महान ईश्वर के मुक़ाबले में बंदगी को स्वीकार करना और उसके सामने नतमस्तक होना। यह बहुत बड़ी चीज़ है मगर काफ़ी नहीं है।
प्रतिरोध
अतः महान ईश्वर कहता है «ثمّ استقاموا»؛ फिर उस पर डटे व बने रहे। यह चीज़ है जो फ़रिश्तों के नाज़िल होने का का कारण बनती है वरना एक समय में सही व ठीक होने पर इंसान पर फ़रिश्ते नाज़िल नहीं होते हैं। कहना आसान व सरल है अमल करना कठिन है। उस अमल को जारी रखना उससे भी कठिन है। कुछ लोग केवल कहते हैं, कुछ लोग इस कही हुई चीज़ को अपने अमल से दिखाते हैं मगर दुनिया की घटनाओं के मुकाबले में, तूफ़ानों के मुकाबले में, मज़ाक़ बनाये जाने के मुक़ाबले में, दूसरों के तानों और कटाक्ष के मुकाबले में और नाइंसाफ़ी की दुश्मनी को वे बर्दाश्त व सहन नहीं कर सकते। अतः वे रुकते नहीं हैं। कुछ इस को भी काफ़ी नहीं समझते हैं कि रुक जायें और पीछे हट जायें।
जो इंसान दुःखी नहीं है
जब इंसान दुःखी नहीं होता है तो उसका कारण यह है कि उसका कुछ हाथ से जाता या नुकसान नहीं होता है। पहली बात तो यह है कि इस रास्ते में सफलतायें बहुत हैं और दूसरी बात यह कि इंसान का कुछ नुकसान भी हो जाता है तो चूंकि वह ईश्वरीय दायित्वों के निर्वाह के मार्ग में होता है इसलिए वह संतुष्ट व आश्वस्त होता है जैसे शहीदों के परिजन जिनके बेटे शहीद हो गये उन्हें दुःख पहुंचा है इसके बावजूद उनके दिल ख़ुश व प्रसन्न हैं।
ईरान में हेलीकाप्टर हादसे में शहीद होने वालों के अंतिम संस्कार की तस्वीर
ईरानी प्रतिरोध और प्रतिरोध का मीठा फ़ल
दुनिया में शक्ति का संतुलन हमेशा विदित में बड़ी शक्तियों के पास और उनके पक्ष में नहीं होता है बल्कि वह बदलता रहता है और इसके लिए प्रतिरोध ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर ईरानी राष्ट्र ने प्रतिरोध किया और वह कामयाब हो गया। इस्लामी क्रांति में और उस जंग में भी जिसे सद्दाम ने अमेरिका के समर्थन से आरंभ किया था और जंग के बाद के कालों में भी। आज भी ईरान डटा हुआ है और प्रतिरोध कर रहा है और कामयाब हो रहा है। यह दबाव, प्रचारिक दबाव, राजनीतिक और आर्थिक दबाव, विश्वासघात और दुश्मनों के माध्यम से देश के भीतर तुच्छ तरीके से घुसपैठ की वजह यह है कि ईरानी राष्ट्र ने पवित्र कुरआन की आयत के अनुसार कहा है कि हमारा पालनहार अल्लाह है और फ़िर उस पर बना और डटा रहा। यह हक़, वैध और तार्कि बात है। अपने देश के मामलों को उसने अपने हाथ में ले लिया और दुश्मनों को बाहर निकाल दिया और अल्लाह के आदेश और धर्म पर भरोसा किया और बुलंद आवाज़ से एलान कर दिया है और उस पर मज़बूती से डटा हुआ है। आज ईरानियों के इसी प्रतिरोध की वजह से अमेरिका की शक्ति, रोब, धौंस, और दबदबा दुनिया के दूसरे राष्ट्रों की नज़रों से गिर गया है और उनमें साहस पैदा हो गया है। नतीजा यह हुआ है कि महान ईश्वर अपनी रहमत और बरकत नाज़िल कर रहा है जैसाकि हम देख रहे हैं कि ईरानी जवानों के दिलों में दुश्मन का भय व डर नहीं है।
अल्लाह ने निश्चित रूप से वादा किया है कि «انّ الّذین قالوا ربّنا اللَّه ثمّ استقاموا تتنزّل علیهم الملائکة الّا تخافوا و لاتحزنوا»؛
अल्लाह की राह में प्रतिरोध का नतीजा यह है कि महान ईश्वर एक इंसान और एक समाज से भय और ग़म को खत्म कर देता है और कामयाबियां उसे नसीब करता है। यह अल्लाह की राह है। अल्लाह की राह का मतलब केवल इबादत करना और ख़ज़ाने में बैठना नहीं है। अल्लाह की राह यानी मानव समाज को कल्याण व मुक्ति तक पहुंचाना। ईरानी राष्ट्र ने इस रास्ते का चयन किया है यानी न्याय का रास्ता, इंसाफ़ का रास्ता, अल्लाह की इबादत का रास्ता, इंसानों की बराबरी का रास्ता, इंसानों का एक दूसरे से भाईचारे का रास्ता, अच्छे अख़लाक़ का रास्ता, मानवीय फ़ज़ीलत का रास्ता और इस रास्ते में उनके आग्रह भी किया है और इस रास्ते की कठिनाइयों का भी मुकाबला किया है और वह उससे नहीं डरा है। निश्चितरूप से महान ईश्वर प्रतिरोध का मीठा फ़ल उसे देगा।
दूसरों के अंदर न ऐब तलाश करो न दूसरों का मज़ाक़ उड़ाओ
प्रसिद्ध ईरानी शायर मौलवी अपने शेरों और पैग़म्बरे इस्लाम की हदीस को बयान करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग दूसरों की कमियों व ऐबों से पर्दा उठाते और दूसरों से बयान करते हैं परंतु अपनी कमियों और ऐबों के संबंध में अंधे होते हैं।
महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे हुजरात की 11वीं आयत यानी पवित्र क़ुरआन के 49वें सूरे में कहता है हे ईमान लाने वालों! एक गुट दूसरे गुट का मज़ाक़ न उड़ायें शायद जिस गुट का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है वह मज़ाक़ उड़ाने वाले गुट से बेहतर हो और महिलाओं को दूसरी महिलाओं का मज़ाक़ नहीं उड़ाना चाहिये। शायद जिनका मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है वह मज़ाक़ उड़ानी वाली महिलाओं से बेहतर हों और एक दूसरे के ऐब और कमी की तलाश में मत रहो और एक दूसरे को बुरे नामों से मत बुलाओ यह बुरी बात है कि ईमान के बाद एक दूसरे को बुरे नामों व उपाधियों से बुलाओ जो इस बुरी चीज़ पर ध्यान नहीं देता है वह ज़ालिम व अत्याचारी है।
इंसानों और समाजों में रहने वाले कुछ लोगों की एक बुरी आदत यह है कि कुछ लोग एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ाते हैं चाहे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का या एक जाति दूसरी जाति का। इस प्रकार के लोग आमतौर से अपने ऐब व कमी पर ध्यान नहीं देते हैं और दूसरों की कमियों को देखते हैं।
जानबूझकर या अनजाने में अपनी कमियों को छिपाते और दूसरे की कमियों को बयान व उजागर करते हैं या शायद दूसरे के बारे में एसी चीज़ कहते हैं जो मूलतः कमी नहीं होती है और उसे वे अपमानजक अंदाज़ में बयान करते हैं। इस आधार पर महान ईश्वर इंसानों की प्रशिक्षा और जीवन को शांतिपूर्ण बनाने के उद्देश्य से आदेश देता है कि कभी भी न तो एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ायें और न ही एक दूसरे को गिरी हुई नज़र से देखें विशेषकर इसलिए कि शायद दूसरा बेहतर हो।
दूसरे का मज़ाक़ उड़ाना बुरा भला कहने से बदतर है। क्योंकि जब एक इंसान दूसरे को बुरा भला कहता है तो वह केवल उन सिफ़तों व विशेषताओं को बयान करता है जो अवांछित व अच्छी नहीं होती हैं मगर जब इंसान किसी का मज़ाक़ उड़ाता है तो उसके पूरे वुजूद व अस्तित्व को खिलौना बना देता है।
महान ईश्वर कहता है कि एक दूसरे की टोह में मत रहो। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है भाग्यशाली व ख़ुशनसीब वह इंसान है जिसकी कमियां उसे दूसरों की टोह में रहने से रोकती हैं।
प्रसिद्ध ईरानी शायर मौलवी अपने शेरों और पैग़म्बरे इस्लाम की हदीस को बयान करते हुए कहते हैं
कुछ लोग दूसरों की कमियों व ऐबों से पर्दा हटाते और दूसरों से बयान करते हैं परंतु अपनी कमियों और ऐबों के संबंध में अंधे होते हैं।
एक अन्य ईरानी शायर नेज़ामी भी इस संबंध में सिफ़ारिश करते हैं कि जितना हो सके दूसरों में अच्छाइयां ढ़ूंढ़ो ताकि अच्छाई हासिल हो और महान ईश्वर इस आयत में आदेश देता है कि एक दूसरे का न तो बुरा नाम रखो और न एक दूसरे को बुरे नाम से बुलाओ। क्योंकि यह कितना बुरा है कि अल्लाह का बंदा कहने या होने के बाद उसे बुरे नाम से पुकारा जाये।
आयत के अंत में महान ईश्वर अपनी रहमत व दया की ओर संकेत करता और कहता है कि हे ईमान वालों यह काम न करो और अगर यह ग़लती कर दिये तो अल्लाह ने अब तुम्हें इस काम की बुराई से अवगत कर दिया, तो तौबा करो वरना ज़ालिमों से हो जाओगे और ज़ुल्म व अत्याचार वह गुनाह है कि अगर उस पर आग्रह करोगे तो इंसान को ईमान के ज़ेवर से निर्वस्त्र कर देगा और कहा जा सकता है कि ज़ुल्म वही कुफ्र है। पवित्र कुरआन के सूरे बक़रा की आयत नंबर 254 में महान ईश्वर कहता है कि काफ़िर वही ज़ालिम हैं।
आज लोगों के मध्य जो जोक और चुटकुले प्रचलित हैं उनमें अधिकांश में एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ाया गया होता है। इन चुटकुलों में देशी और विदेशी विभिन्न क़ौमों का मज़ाक़ उड़ाया गया होता है। विशेषकर जब किसी व्यक्ति या क़ौम को उस सिफ़त या बात से जोड़ा जाये जो अच्छी न हो और उसमें वह बात या सिफ़त पायी भी न जाती हो। यह अच्छी बात नहीं है। इस प्रकार के कार्यों से महान ईश्वर ने मना किया है। यद्यपि इस प्रकार के जोक और चुटकुले कुछ क्षणों के लिए लोगों की ख़ुशी का कारण बनते हैं परंतु साथ ही बहुत अधिक द्वेष, दुश्मनी और कीने का कारण भी बनते हैं।
इस बात को जानना और समझना चाहिये कि अगर महान ईश्वर किसी व्यक्ति या क़ौम को उसकी ग़लती की वजह से मलामत व भर्त्सना करता है तो किसी का मज़ाक नहीं उड़ा रहा है बल्कि दूसरों को सीख देने के लिए एसा कह रहा है ताकि लोग इस कमी व एब से दूर हो जायें।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्र फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए स्नातक समारोह से बाहर चले गए
फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए हार्वर्ड के छात्र स्नातक समारोह से बाहर चले गए।
विदेशी मीडिया के मुताबिक, प्रशासन ने फ़िलिस्तीनियों के विरोध में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विरोध शिविर स्थापित करने वाले 13 छात्रों को स्नातक समारोह में भाग लेने से रोक दिया।
आइवी लीग स्कूल के छात्र स्नातक समारोह के दौरान खड़े हुए और "फ्री फ़िलिस्तीन" के नारे लगाए। दूसरी ओर, जर्मनी में पुलिस हिंसा और गिरफ़्तारियों के बावजूद फ़िलिस्तीन के पक्ष में छात्रों का विरोध प्रदर्शन नहीं रुका और बड़ी संख्या में छात्र सड़कों पर उतरे और फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता व्यक्त की।
शहीद इब्राहिम रायसी और ईरानी विदेश मंत्री पाकिस्तान के सच्चे दोस्त थे: पाकिस्तानी सेना प्रमुख
सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर और ईरानी सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के प्रमुख के बीच टेलीफोन पर बातचीत हुई जिसमें जनरल असीम मुनीर ने 19 मई के हेलीकॉप्टर दुर्घटना पर गहरा दुख और अफसोस व्यक्त किया।
पाकिस्तानी सेना (आईएसपीआर) के जनसंपर्क विभाग के अनुसार, सेनाध्यक्ष ने टेलीफोन पर बातचीत में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी और ईरानी विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहियन की शहादत पर शोक व्यक्त किया और शुभकामनाएं व्यक्त कीं शोक संतप्त परिवारों को क्या किया
ईरानी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ, मेजर जनरल मोहम्मद बकेरी के साथ बातचीत में, सैयद असीम मुनीर ने कहा कि शहीद राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी और ईरानी विदेश मंत्री पाकिस्तान के सच्चे दोस्त थे, रैंक शहीदों के इनाम के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने स्पष्ट किया कि ईरान के साथ पाकिस्तान के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाईचारे के संबंध हैं, पाकिस्तान और ईरान की सेनाएं हर मौके पर एक साथ खड़ी हैं।
ईरान के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल बाकेरी ने दुख की इस घड़ी में उनका साथ देने के लिए पाकिस्तान के सेना प्रमुख को धन्यवाद दिया.
ग़ज़ा पर बर्बर बमबारी में कई फ़िलिस्तीनी शहीद और घायल हुए
ज़ायोनी सैनिकों ने ग़ज़ा पर क्रूर बमबारी की है, जिसमें कई फ़िलिस्तीनी मारे गए और घायल हुए हैं।
फ़िलिस्तीन की शिहाब न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ज़ायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने पूर्वी रफ़ा के ख़ुर्बा अल-अदस इलाके में एक आवासीय घर पर हमला किया, जिसमें छह लोग शहीद हो गए.
इसी तरह, ज़ायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने गाजा पट्टी के यात लाहिया में एक आवासीय घर पर बमबारी की।
उधर, मीडिया सूत्रों ने शनिवार रात दक्षिण लेबनान के कुछ इलाकों में बमबारी की खबर दी है.
अल-मनार टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने कब्जे वाली फ़िलिस्तीनी सीमा के पास स्थित ऐता लाशाब और अल-खय्याम कॉलोनियों को निशाना बनाया।
इससे पहले ज़ायोनी सरकार ने दक्षिणी लेबनान की आइट्रोन कॉलोनी में हिज़्बुल्लाह की एक सैन्य इमारत पर हमले का दावा किया था।
उधर, हिजबुल्लाह लेबनान ने दक्षिण लेबनान की तब्नैन कॉलोनी में अपने एक मुजाहिद हुसैन नबियाह फवाज के शहीद होने की खबर दी है।
ग़ज़ा की जनता के लिए इटली के लोगों का भरपूर समर्थन
फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के लिए इटली का समर्थन, इतालवी सरकार के क़र्ज़ के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की चेतावनी, फ़िलिस्तीन का समर्थन करने की वजह से फ़्रांस की एक मस्जिद के इमाम को नौकरी से निकालना, फ़्रांस की एक अदालत में तीन सीरियाई अधिकारियों को आजीवन कारावास की सज़ा और एक ईरानी कवि की कविताओं के अनुवाद का प्रकाशन, पिछले कुछ घंटों में इन दो यूरोपीय देशों की कुछ चुनिंदा ख़बरों में रहा है।
फ़िलिस्तीनी जनता के लिए इटली का समर्थन
ईरान की यंग जर्नलिस्ट्स क्लब की समाचार एजेंसी के अनुसार, इटली के पूर्व सांसद "स्टेफ़ानो अपुज़ो" ने "ग़ज़ा में नरसंहार बंद करो" और अपनी बालकनी में फ़िलिस्तीनी झंडा लगाकर मज़लूम फ़िलिस्तीनी जनता के लिए अपने समर्थन का एलान किया।
इटली की एक अभिनेत्री "यास्मीन ट्रिंका" ने फ्रांस में 77वें कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में अपने कॉलर पर फ़िलिस्तीनी झंडे वाला ब्रोच पहनकर फ़िलिस्तीनी जनता से अपने समर्थन और एकजुटता का एलान किया।
वेटिकन में शहीद रईसी को श्रद्धांजलि
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार ईरान में हेलीकाप्टर दुर्घटना और इस दुर्घटना की वजह से ईरानी राष्ट्रपति और उनके साथियों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए वेटिकन में ईरानी दूतावास के अल-मेहदी इस्लामी सेंटर में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
इटली में आयोजित इस कार्यक्रम में ईरान के राजदूत मुहम्मद रज़ा सबूरी ने कहा: ईरान के स्वर्गीय राष्ट्रपति सैयद रईसी और विदेशमंत्री "हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान, राष्ट्रपति पद और विदेश नीति के कार्यकारी प्रबंधक के रूप में, सर्वोच्च नेता के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए सम्मान, दूरदर्शिता, मसलेहत और समझबूझ के सिद्धांतों पर चलते रहे इस्लामी, जेहादी और राष्ट्रीय संप्रभुता को मज़बूती प्रदान करते हुए क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्लामी गणतंत्र ईरान की पोज़ीशन में सुधार करने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग विकसित करने में सक्षम रहे।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इटली सरकार के कर्ज़ पर चेतावनी दी
तस्नीम समाचार एजेंसी के मुताबिक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इटली सरकार के क़र्ज़ को लेकर चेतावनी दी है।
इस बयान में इस देश की सरकार के कर्ज़ों से निपटने के लिए त्वरित और निर्णायक वित्तीय सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि 2024 में इटली का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 140 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा।
फ़िलिस्तीन का समर्थन करने पर फ़्रांस में एक मस्जिद के इमाम को निकाल दिया गया
इक़ना समाचार एजेन्सी के अनुसार, फ्रांसीसी अधिकारियों ने इस्राईल का समर्थन करने के लिए बोर्डो शहर की अल-फ़ारूक़ मस्जिद के इमाम अब्दुलर्रहमान रिज़वान को निकाल दिया है।
इमामे जुमा पर लगाए गए आरोपों में फ़िलिस्तीनी जनता का समर्थन करना और तथाकथित इस्राईल विरोधी कार्यवाहियों में शामिल होना है।
फ्रांस की एक अदालत से तीन सीरियाई अधिकारियों को उम्रक़ैद की सज़ा
एएफ़पी के मुताबिक, पेरिस की एक अदालत ने शुक्रवार को तीन सीरियाई अधिकारियों को उम्रक़ैद की सजा सुनाई।
इस अदालत ने सीरियाई बास पार्टी के राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग के पूर्व प्रमुख अली ममलूक, वायु सेना खुफिया कार्यालय के पूर्व प्रमुख जमील हसन और वायु सेना के वरिष्ठ ख़ुफ़िया अधिकारी अब्दुल सलाम महमूद पर युद्ध अपराध का आरोप लगाया है।
क्षेत्र में आतंकवादी गुटों और उपद्रवियों का मुक़ाबला करने में सीरियाई सेना की सफलताओं के बाद पेरिस और उसके पश्चिमी घटकों ने दमिश्क़ पर दबाव बढ़ाने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं।
फ़्रांस में "मोहम्मद शम्स लैंगरूदी" की कविताओं का प्रकाशन
इस्ना के अनुसार, समकालीन ईरानी कवि "मोहम्मद शम्स लंगरूदी" की कविताओं के दीवान का फ्रांसीसी अनुवाद फ्रांस में प्रकाशित हुआ था।
इस दीवान में आया है: "शम्स लंगरूदी" समकालीन ईरानी साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में हैं।
उनका जन्म कैस्पियन सागर के किनारे स्थित एक शहर में हुआ था और वर्तमान समय में वे तेहरान में रहते हैं। अब तक उनकी कविताओं और शेरों के 22 दीवान, दो उपन्यास और कई शोध पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
ईरान के राष्ट्रपति की याद में शोक सभा व कैंडल मार्च का आयोजन
उत्तर प्रदेश के जिला बहराइच में ईरान के राष्ट्रपति आयतुल्लाह सय्यद इब्राहीम रईसी और उनके साथियों की शहादत पर मौलाना सैयद शमशी राज़ा साहब क़िबला के नेतृत्व में मजलिस आयोजित की गई और मजलिस के बाद कैंडल मार्च भी निकाला गया।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , उत्तर प्रदेश, 25 मई 2024 को मस्जिद ए इमामिया अकबरपुरा, बहराइच में ईरान में हेलिकॉप्टर क्रैश में शहीद हुए अयातुल्लाह इब्राहिम रईसी (र) विदेश मंत्री अमीर अबदुल्लाहियान व उनके साथ शहीद हुए दीगर साथियों की याद में शोक सभा (ताज़ियती जलसा) व मजलिस ए अज़ा का आयोजन किया गया जिसे मौलाना सैयद शमशी राज़ा साहब क़िबला ने ख़िताब किया
इसके इलावा शहर के दीगर दानिश्वर हज़रात ने भी इस सभा को संबोधित किया जिसमे श्री सग़ीर आबिद रिज़वी, श्री शफ़ात अली, श्री मोहम्मद शफ़ीक़ बाग़बान, श्री हसन अब्बास, श्री अली जाँबाज़, श्री मज़हर सईद व श्री नौशाद अली ने शोहादा की ज़िन्दगी पर रोशनी डाली और उनको याद किया इस सभा का संचालन श्री फ़ौक बहराइची ने किया।
इस दुर्घटना पर २१ मई को भारत में १ दिवसइये शोक दिवस मनाया गया जिसके बाद भारत के महामहिम उप राष्ट्रपति श्री जगदीप धनगड़ जी ने ईरान की यात्रा करके शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस जलसे के बाद कैंडल मार्च भी निकाला गया जिसे शहर के प्रसिद्ध सुमय्या मॉल के सामने समाप्त किया गया हम इस दुख की घड़ी में अपने दोस्त मुल्क ईरान के साथ खड़े है।
आंदोलन के समर्थन में ईरान की रणनीति लोगों के बदलाव से प्रभावित नहीं होगी
ईरान के अंतरिम राष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर ने फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध और अविभाज्य अधिकार के समर्थन को ईरान के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री की प्राथमिकताओं में से एक बताया और स्पष्ट किया कि विशेष रूप से इस्लामी गणतंत्र ईरान की मूल रणनीति फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों का व्यावहारिक समर्थन, ईरानी सरकार है। अधिकारियों के परिवर्तन से यह प्रभावित नहीं होगा।
फिलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद मूवमेंट के महासचिव ज़ियाद नखला ने ईरान के अंतरिम राष्ट्रपति के साथ टेलीफोन पर बातचीत में शहीद राष्ट्रपति और विदेश मंत्री की शहादत पर ईरान की सरकार और लोगों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की। मोहम्मद मोखबर, शनिवार की शाम।
उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि इस नुकसान की गंभीरता के बावजूद, इस्लामी गणतंत्र ईरान सक्षम नेताओं, अधिकारियों और क्रांतिकारी विचारों वाले ईरानी लोगों के आशीर्वाद से इन कठिनाइयों पर काबू पा लेगा।
फिलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव ने कहा कि शहीद रायसी और शहीद अमीर अब्दुल्लाहियां हमेशा ईरानी राष्ट्र के हितों की रक्षा और प्रतिरोध आंदोलन का समर्थन करने में लगे हुए थे।
ज़ियाद नखला ने मोहम्मद मोखबर के नेतृत्व कौशल की प्रशंसा की और उन्हें एक शक्तिशाली व्यक्तित्व बताया जो वर्तमान स्थिति में ईरान के शहीद राष्ट्रपति की बहुमूल्य भूमिका की कमी को पूरा करने में सक्षम है।
मोहम्मद मोखबर ने ईरान की सरकार और लोगों के साथ फिलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव की सहानुभूति की सराहना की, फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध और अपरिहार्य अधिकार के लिए अपना गंभीर समर्थन जारी रखने का दृढ़ संकल्प व्यक्त किया और स्पष्ट किया कि आंदोलन का मूल प्रतिरोध, विशेष रूप से फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों का समर्थन करने में ईरान के इस्लामी गणराज्य की रणनीति, लोगों के परिवर्तन से प्रभावित नहीं होगी।
अंतरिम राष्ट्रपति ने प्रतिरोध की रणनीति को ज़ायोनी शासन के अपराधों और आक्रामकता से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका बताया और कहा कि ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस प्रतिरोध आंदोलन के परिणामों में से एक है जिसने अमेरिका और ज़ायोनी शासन के आधिपत्य को तोड़ दिया।