
رضوی
अफ्रीका में विध्वंसकारी शक्तियों के वर्चस्व का पतन तेज़, फ्रांस के बाद अब आया नंबर अमरीका का
अपने सैनिकों को नाइजेर से वापस बुलाने के लिए अमरीका अब मजबूर हो चुका है।
अमरीकी रक्षामंत्रालय पेंटागन, नाइजेर से अपने सैनिकों की वापसी के लिए मजबूर हो गया है।
पोलिटिको ने शुक्रवार को नाम छिपाने की शर्त पर एक अमरीकी अधिकारी के हवाले से बताय है कि नाइजेर में अमरीकी सैनिकों के बाक़ी रहने की संभावना के पिछले सप्ताह पूरी तरह से समाप्त हो जाने के बाद पेंटागन ने वहां पर मौजूद सभी एक हज़ार अमरीकी सैनिकों को नाइजेर से निकलने का आदेश जारी कर दिया है।
अमरीका ने अप्रैल में एलान किया था कि नाइजेर से अपने सैनिकों की ज़िम्मेदाराना वापसी का वह आग़ाज़ करने जा रहा है। हलांकि इसी बीच अमरीकी अधिकारी, नाइजेर के अधिकारियों से उनके देश में अपने सैनिकों के बाक़ी रहने के बारे में वार्ता में व्यस्त हैं।
इससे पहले तक नाइजेर, इस क्षेत्र में वाशिग्टन के साथ सैन्य सहयोग में अपनी भूमिका निभाने के लिए बाध्य था। इस देश ने यह बात स्वीकार कर ली थी कि नाइजेर में अमरीका की एक बड़ी हवाई छावनी बनाई जाए।
नाइजेर में हालिया राजनीतिक परिवर्तनों के बाद इस देश के नए शासकों ने पश्चिमी उपनिवेशवादियों विशेषकर फ्रांस और अमरीका के साथ अपने सैनिक संबन्धों को जल्द अज़ जल्द तोड़ने का फैसला कर लिया। उनके इस काम का नाइजेर की जनता ने खुलकर समर्थन किया।
हालिया दिनों में चाड भी उन अफ़्रीकी देशों की सूचि में शामिल हो गया जो अपने यहां से अमरीकी सैनिकों की वापसी चाहते हैं। वर्तमान समय में चाड़ में लगभग एक हज़ार अमरीकी सैनिक मौजूद हैं।
इससे पहले फ़्रांसीसी सैनिक नाइजेर, माली और बोर्कीनाफ़ासो से निकलने पर मजबूर हुए थे।
इसी बीच उत्तरी नाइजीरिया के नेताओं के गुट के प्रवक्ता जबरीन इब्रामहीम ने ईरान प्रेस के साथ विशेष बातचीत में नाइजीरिया में सैन्य छावनी बनाने के लिए इस देश की सरकार के साथ अमरीका और फ्रांस की वार्ता पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि माली, नाइजेर और बोर्कीनाफ़ासो में अमरीकी और फ्रांसीसी सैनिकों की उपस्थति के अनुभव ने सिद्ध कर दिया कि इन देशों को अपने यहां मौजूद अमरीकी और फ्रांसीसी सैन्य अड्डों के निरीक्षण की अनुमति नहीं थी। यही काम अब नाइजीरिया के साथ होने जा रहा है।
नाइजीरिया के राष्ट्रपति अपने देश के भीतर फ्रांसीसी और अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति के बारे में वार्ता कर रहे हैं कि जब इससे पहले नाइजेर, माली और बोर्कीनाफासो के लोगों ने विरोध प्रदर्शन करके अपनी नई सरकारों से विदेशी सैनिकों की वापसी पर बल दिया था।
चाड, नाइजेर और उससे पहले माली तथा बोर्कीनाफ़ासो से पश्चिम की वर्चस्ववादी शक्तियों के सैनिकों की वापसी की मांग से ने केवल यह कि अफ़्रीका महाद्वीप में उनका और उनके घटकों का प्रभाव कम होगा बल्कि यह काम भू-राजीतिक संबन्धों में उल्लेखनीय परिवर्तन के अर्थ में है। वास्तव में अफ्रीका में अमरकी और उसके घटक देशों की सैन्य उपस्थति में कमी से पश्चिमी देशों की विदेश नीतियों में कई प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं जिसका परिणाम वाशिग्टन और उसके घटकों की भू-राजीतिक पराजय के रूप में सामने आएगा।
ईरान के सीना सर्जन रोबोट ने अमरीका के सर्जन रोबोट के एकाधिकार को समाप्त करते हुए विश्व बाज़ार में अपनी उपस्थति दर्ज की
सीना रोबोट का नाम ईरान के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बू अली सीना के नाम पर रखा गया है।
ईरान ने दुनिया के सबसे अच्छे सर्जन रोबोटों में से एक, "सीना" नामक सर्जन रोबोट बनाया है। इसका अनावरण सन 2015 में तेहरान में आयोजित एनोटेक्स, एक्ज़ीबिशन में किया जा चुका है।
यह रोबोट बनाकर ईरान के इन्जीनियरों ने मेडिकल इन्जीनियरिंग की उस दुनिया में प्रेवश किया जो हाइएस्ट लेवेल की तकनीक का हिस्सा है। ईरानी वैज्ञानिकों द्वारा इस सर्जन रोबोट को बनाने से पहले तक व्यापार जगत में अमरीका का डाविंची सर्जन रोबोट ही मौजूद था।
इस रोबोट का नाम ईरान के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बू अली सीना के नाम पर "सीना" रखा गया है।
सीना रोबोट के क्रियाकलापः
सीना नामक रोबोटिक सर्जरी सिस्टम को सनअती शरीफ यूनिवर्सिटी के बायोमैकेनिक ग्रुप और तेहरान यूनिवर्सिटी के बायोमेडिकल और रोबोटिक टेक्नालोजी अनुसंधान केन्द्र व न्यू मेडिकल टेक्नालाजी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सहयोग से बनाया गया है। इसके दो भाग हैं। एक, रिमोट सर्जरी कंसोल और दूसरे मरीज़ के बेड पर आधारित सर्जन रोबोट।
सर्जिकल कंसोल में एक मानीटर, दो मार्गदर्शक रोबोट और पैरों से नियंत्रित करने वाला पैडल शामिल है। इसके पीछे बैठकर डाक्टर या सर्जन, आपरेशन केन्द्र से भेजी गई तस्वीरों को देखता है। वह सर्जिकल उपकरणों के साथ ही इमैजिंग कैमरे को दूर से नियंत्रित करता है। दूसरी ओर तीन रोबोट, जिनमें दो उपकरण ले जाने वाले और एक, फोटो लेने वाला रोबोट होता है, मरीज़ के बिस्तर के पास तैनात रहता है। उसपर सर्जन के आदेशों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी होती है।
ईरान के सीना सर्जन रोबोट का फोटो
आपरेश के दौरान सर्जन के हाथों की गतिविधियों को दूसरे रोबोट द्वारा हासिल किया जाता है जिसको बाद वाले रोबोट तक भेजा जाता है ताकि आपरेशन को बहुत ही सावधानी से अंजाम दिया जा सके। बीमार के बिस्तर के पीछे चलने वाले रोबोट और सर्जिकल कंसोल में काम करने वाले रोबोट, के बीच संबन्ध या संपर्क को इंटरनेट जैसी तकनीक से किया जाता है। यही वजह है कि इस प्रकार की सर्जरी को, देश के दूरस्थ क्षेत्र या फिर किसी पोत पर भी किया जा सकता है।
विश्व बाज़ार में उपस्थतिः
जवानी और इमामे ज़माना अ.स. का करम
जवानी एक बढ़ता हुआ पौधा है। यह अधिकांश खूबियों, रौनक और नूरानीयत का केंद्र है। मेरे प्यारों ! मैं आपसे अर्ज़ करूं कि यह मोहब्बत और उल्फत दो तरफा है। आपके बुज़ुर्ग और बूढ़े बाप के तौर मेरा दिल आपकी मोहब्बत से भरा हुआ है।
हमारे देश के जवान युद्ध के दौरान और उसके बाद भी अपनी पाकीज़गी को बाक़ी रखने में कामयाब रहे। ऐसा भी नहीं है कि मैं जवानों के बीच गलत मूवमेंट और रुझान को फैलाने की कोशिशों से बेखबर और अनभिज्ञ हूँ , ऐसा बिल्कुल नहीं है ! मैं समझता और जनता हूँ कि क्या हो रहा है। लेकिन इन तहों और गर्दो ग़ुबार के नीचे मुझे शराफत, तक़वा, पाकीज़गी और नूरानीयत की धारा भी नज़र आती है।
वह सब लोग जिनका सरोकार और वास्ता जवानों और नौजवानों से है, या मेरे जवानों आप खुद जो किसी इस्लामी संस्था और तालीम और तरबियत के काम में लगे हुए हैं कोशिश करें कि आपका तरीक़ा और काम करने के अंदाज़, प्रेमपूर्वक, बुद्धिमता से भरा, ख़ुलूस , पाकीज़गी और परोपकारी हो। तुम में से प्रत्येक इस्लाम का सिपाही है। आप सब इस्लाम के सिपाही हैं। अपनी हिफाज़त करें, आत्मनिर्माण करें, अपने विकास का ध्यान रखें। यूनिवर्सिटी हो या हौज़ए इल्मिया, दाखिले के लिए तैयार हो जाएं ताकि बाद में देश और समाज में अपनी चमक बिखेर सकें।
मुझे इस में ज़रा भी संदेह नहीं है कि आप में से बहुत से जवान हैं जिन पर इमामे ज़माना अ.स. की ख़ास नज़र है। मुझे इस बात में ज़रा भी शक नही है कि आपके पाको पाकीज़ा दिल इमाम की निगाहों के केंद्र में हैं।
सभी युद्धविराम योजनाओं की विफलता के लिए ज़ायोनी प्रधान मंत्री ज़िम्मेदार हैं: हमास नेता
फ़िलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन (हमास) के राजनीतिक कार्यालय के उप प्रमुख ने घोषणा की कि ज़ायोनी शासन के प्रधान मंत्री के विरोध के कारण गाजा में युद्धविराम और कैदियों की अदला-बदली की सभी प्रस्तावित योजनाएँ असफल और निरर्थक रही हैं।
आईआरएनए रिपोर्ट के अनुसार, हमास के राजनीतिक कार्यालय "खलील अल-हिया" के उप प्रमुख ने कहा है कि हमास युद्धविराम और कैदियों की अदला-बदली के लिए एक वास्तविक समझौते की तलाश में है, लेकिन प्रधान मंत्री ज़ायोनी सरकार, बेंजामिन नेतन्याहू याहू अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए युद्ध जारी रखने की कोशिश कर रही है।
खलील अल-हया ने कहा कि गाजा के दक्षिण में राफा शहर पर ज़ायोनी सरकार के जमीनी हमले के कारण युद्धविराम और कैदियों की अदला-बदली के लिए बातचीत में कोई प्रगति नहीं हुई है।
हमास आंदोलन ने कतर और मिस्र द्वारा कैदियों की अदला-बदली और ज़ायोनी सरकार के साथ युद्धविराम की स्थापना के संबंध में प्रस्तुत प्रस्ताव पर अपनी सहमति की घोषणा की है।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय दलों द्वारा हमास के कदम को स्वीकार किए जाने के बावजूद, नेतन्याहू ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया, यह दावा करते हुए कि यह तेल अवीव की मांगों से बहुत दूर था और सैनिकों को गाजा पट्टी के दक्षिण में एक शहर राफा में प्रवेश करने की अनुमति देकर ही दबाव बनाया जा सकता था हमास पर दबाव डाला और आंदोलन को तेल अवीव की शर्तों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।
ब्रिटिश मीडिया की ज़िम्मेदारी बताते एक यहूदी प्रोफ़ेसर
ज़बनेर का कहना है कि सभी ब्रिटिश मीडिया इस्राईली लॉबी के प्रभाव में हैं। वे इस्राईल के अप्रमाणित व अपुष्ट दावों को साझा करके जो कि निरा झूठ है, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ नफ़रत की आग भड़काते हैं।
बातचीत का दूसरा भाग
प्रोफ़ेसर हैम ब्रेशीथ-ज़बनेर, एक प्रसिद्ध इस्राईली यहूदी शिक्षाविद हैं और उनका संबंध तथाकथित होलोकॉस्ट से बचे से है। वह एक लेखक, फ़िल्म अध्ययन शोधकर्ता और फिल्म निर्माता होने के साथ इस्राईली सेना के पूर्व सैनिक भी हैं। हालिया दशकों में, ब्रेशीथ-ज़बनेर फ़िलिस्तीनियों के साथ इस्राईल के बर्ताव के मुखर आलोचक बन गए हैं। उनके विचार में, ब्रिटिश मीडिया भयावह रूप से इस्लामोफ़ोबिक, एम्पेरियलिस्ट और अंधा है।
यहां हम फ़िलिस्तीनी नरसंहार के लिए ब्रिटिश और इस्राईली मीडिया की पृष्ठभूमि के बारे में (the new arab) पत्रिका से सलवा अमोर (Salwa Amor) के सवालों के जवाब पर एक नज़र डालते हैं।
नफ़रत की आग भड़काने में इस्राईली मीडिया कितना कारगर रहा है?
इस्राईली मीडिया ग़ज़ा की जनता को अमानवीय प्राणियों के रूप में पेश करता है। वे फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा नहीं दिखाते और उन्हें इंसान के रूप में नहीं देखते। वे ग़ज़ा में होने वाले अपराधों को स्पष्ट रूप से नज़रअंदाज करते हैं। वे अपने सैनिकों के काले कारनामों को साहस और वीरता के रूप में पेश करते हैं। इस्राईली सेना को वास्तव में युद्ध के शिकार के रूप में दिखाया जाता है। मीडिया, इमारतों और सैनिकों पर बमबारी को गर्व से दिखाता है। वे यह नहीं दिखाते कि ये इस्राईली सैनिक फ़िलिस्तीनियों के साथ क्या कर रहे हैं।
आप एक ओर हमास की निंदा करने और दूसरी ओर इस्राईली नरसंहार की निंदा न करने की ज़िद के बारे में ब्रिटिश मीडिया की स्थिति को कैसे समझते हैं?
मुझे लगता है कि ब्रिटिश मीडिया मीडिया भयावह रूप से इस्लामोफ़ोबिक, एम्पेरियलिस्ट और अंधा है। सभी अंग्रेज़ी मीडिया इस्राईली लॉबी के प्रभाव में हैं। वे इस्राईल के अप्रमाणित दावों को साझा करके जो कि निरा झूठ हैं, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नफ़रत भड़काते हैं। झूठ जैसे, "शिशुओं का सिर काटना, सामूहिक बलात्कार और लोगों को जिंदा जला दिया जाना वग़ैरह... यह सूची बहुत लंबी है। जब उनका झूठ उजागर होता है, तो ब्रिटिश मीडिया उन्हें अनदेखा कर देता है या उन्हें पूरी तरह से किनारे लगा देता है। हमास को कभी भी इस्राईल के झूठ का जवाब देने की अनुमति नहीं दी गई और ग़ज़ा में एक भी विदेशी पत्रकार के बिना, अंग्रेज़ी मीडिया यरूशलेम और तेल अवीव से इस्राईल के झूठ फैला रहा था। ब्रिटिश मीडिया ने नरसंहार को इस्राईल के अपनी रक्षा के अधिकार के रूप में दिखाया। ब्रिटिश सरकार 1917 की तरह ज़ायोनी कार्ड खेल रही है। ब्रिटिश साम्राज्य एक और अपराध को अंजाम दे रहा है। ब्रिटिश सरकार का मानना है कि इस हक़ीक़त के बावजूद कि युद्ध अपराध करने वाले शासन को हथियार बेचना अवैध है, उन्हें और अधिक हथियार बेचती है।
इस्राईल के इस दावे से आप क्या समझते हैं कि उसकी कार्यवाही आत्मरक्षा है?
हमें यह जानना चाहिए कि युद्ध 7 अक्टूबर को शुरू नहीं हुआ। इसकी शुरुआत 125 साल से भी पहले हुई थी। इसका हमेशा का लक्ष्य, फ़िलिस्तीन पर कब्ज़ा करना रहा है। ज़ायोनिज़्म के संस्थापक थियोडोर हर्ज़ल ने फ़िलिस्तीन को निर्जन करने की अपनी योजना के तहत 1890 के दशक में नरसंहार के नज़रिए की बुनियाद डाली और तभी यह नज़रिया शुरुआत हुआ।1948 में, नज़रिया यह था कि एक फ़िलिस्तीनी गांव के लोगों को मार डाला जाए या वे ख़ुद ही डर के मारे दूसरे गांवों की ओर फ़रार कर जाए। आज ग़ज़ा में जो हो रहा है वह फिलिस्तीन को फिलिस्तीनियों से खाली करने की हर्ज़ल की योजना का ही विकसित रूप है। हालांकि, हम और जनता, सिर्फ़ तमाशा देख रहे हैं और यद्यपि मुमकिन है कि वे हमें अहमियत न दें लेकिन हम भविष्य में उन पर मुक़द्दमा चलाने के लिए सबूत इकट्ठा करने और उनके युद्ध अपराधों की गवाही देकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वैसा ही जैसा कुछ नाज़ियों के साथ हुआ था।
फिलिस्तीन को यूएन का पूर्ण सदस्य बनाने का भारत ने किया समर्थन, ज़ायोनी शासन भड़का
फिलिस्तीन को स्नायुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बनाने के लिए दिए गए प्रस्ताव का भारत ने समर्थन किया है। 193 सदस्यीय महासभा ने शुक्रवार को एक आपातकालीन विशेष सत्र के लिए बैठक की। इस दौरान अरब देशों की ओर से फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पेश किया गया और 'संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्यों का प्रवेश' के लिए प्रस्ताव रखा गया जिसका भारत ने स्वागत करते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया।
प्रस्ताव के पक्ष में 143 मत पड़े। जबकि नौ ने विरोध में वोट किए। वहीं, 25 ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया। वोट डाले जाने के बाद यूएनजीए हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
प्रस्ताव में कहा गया है कि फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र में सदस्य बनने के योग्य है और उसे संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद-4 के अनुसार शामिल किया जाना चाहिए।
वहीँ फिलिस्तीन के लिए उमड़ते वैश्विक समर्थन और यूएन का पूर्ण सदस्य बनाने के प्रस्ताव से मक़बूज़ा फिलिस्तीन का ज़ायोनी शासन भड़क उठा है। फिलिस्तीन में पिछले सात महीने में ही 35 हज़ार से अधिक लोगों की हत्या कर चुके ज़ायोनी शासन ने इस प्रस्ताव की निंदा करते हुए आरोप लगाया कि यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र को आधुनिक समय के नाजियों के लिए खोलता है।
फ़ारसी, उर्दू पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए नूर माइक्रोफिल्म सेंटर और जामिया हमदर्द के बीच समझौता
फ़ारसी और उर्दू पांडुलिपियों की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर और जामिया हमदर्द के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, नई दिल्ली, फ़ारसी और उर्दू पांडुलिपियों की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर और जामिया हमदर्द के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।
एमओयू पर इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर (ईरान कल्चर हाउस), नई दिल्ली के निदेशक डॉ. मेहदी ख्वाजा पीरी और जामिया हमदर्द के कुलपति प्रो. (डॉ.) एम. अफ़्शार आलम की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।
गौरतलब है कि सदियों से एक समान और प्रभावी सभ्यता और संस्कृति वाले देश ईरान और भारत की सरकारों के साथ ही गैर-सरकारी संगठनों की ओर से भी दोनों देशों के बीच अक्सर सभ्य और सांस्कृतिक मामलों से संबंधित गतिविधियों का आयोजन किया जाता रहता है। कुछ इसी तरह इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर और जामिया हमदर्द ने बड़ा कदम उठाते हुए फारसी और उर्दू पांडुलिपियों की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
उल्लेखनीय है कि जामिया हमदर्द दिल्ली की लाइब्रेरी में बड़ी संख्या में ऐतिहासिक और वैज्ञानिक कलाकृतियाँ हैं। इस विषय में इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर, ईरान कल्चर हाउस में आयोजित कार्यक्रम में जामिया हमदर्द ने इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर के साथ फ़ारसी और उर्दू पांडुलिपियों ( जो भारत और ईरान के बीच साझा विरासत हैं ) की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।कार्यक्रम में ईरान के राजदूत डॉ. ईरज इलाही, जामिया हमदर्द के कुलपति प्रो. (डॉ.) एम. अफ़्शार आलम, ईरान के कल्चरल काउंसलर डॉ. फरीदुद्दीन, जामिया हमदर्द के रजिस्ट्रार डॉ. एमए सिकंदर, फारसी अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. कहरमन सुलेमानी , जामिया हमदर्द के परीक्षा नियंत्रक एस.एस. अख्तर, प्रोफेसर रईसुद्दीन लाइब्रेरियन जामिया हमदर्द, डॉ. रियाजुद्दीन डिप्टी लाइब्रेरियन , नुजहत अयूब सहायक लाइब्रेरियन , डॉ. मसूद रजा सहायक लाइब्रेरियन और तौहीद आलम जनसंपर्क अधिकारी जामिया हमदर्द एवं अन्य गणमाण्य वियक्ति उपस्थित थे।
जामिया हमदर्द की लाइब्रेरी में मौजूद प्राचीन उर्दू और फारसी पांडुलिपियां दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते की ओर इशारा करती हैं। इस मौके पर इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर के निदेशक डॉ. मेहदी ख्वाजा पीरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ईरान और भारत सदियों से साझा और प्रभावी सभ्यता और संस्कृति वाले देश रहे हैं और जामिया हमदर्द इसका साक्षी है जहां दोनों देशों के कई महत्वपूर्ण साझा ऐतिहासिक कलाकृतियां मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि इस समझौते से इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर के माध्यम से लाखों अमूल्य ऐतिहासिक और विद्वत पांडुलिपियों को नया जीवन मिलेगा जिस से ईरान और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध अधिक मजबूत होंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वागत योग्य कदम माना जाएगा। इसी प्रकार, ये सभी कलाकृतियाँ विद्वानों, बुद्धिजीवियों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति मानी जाएंगी।
दुनिया को पेरिस ओलंपिक से ज़ायोनी शासन का बहिष्कार करना चाहिए: ईरानी सांसद
एक ईरानी संसद सदस्य का कहना है कि दुनिया के सभी देशों को भेदभाव और अन्याय छोड़कर ज़ायोनी शासन से गंभीरता से निपटना चाहिए।
माहेर न्यूज़ रिपोर्टर से बात करते हुए, ईरान के इस्लामी गणराज्य की संसद मजलिस शूरा-ए-इस्लामी के सदस्य और अरक प्रांत के लोगों के प्रतिनिधि मोहम्मद हसन आसिफारी ने ज़ायोनी पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता पर बल दिया। सरकार को पेरिस ओलिंपिक में भाग लेने से रोकें।
उन्होंने कहा: यूक्रेन पर रूसी हमलों के बाद, हमने देखा कि रूस और बेलारूस को सभी विश्व प्रतियोगिताओं और चैंपियनशिप में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था, और दूसरी ओर, रूस और बेलारूस में कोई खेल प्रतियोगिता आयोजित नहीं की गई थी।
उन्होंने जोर दिया: जिस तरह पिछले वर्षों में विभिन्न कारणों से रूस, बेलारूस और कुछ अन्य देशों को ओलंपिक खेलों में भाग लेने से रोका गया था, उसी तरह पिछले महीनों में ज़ायोनी सरकार द्वारा फिलिस्तीन पर किए गए बर्बर हमलों पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए 2024 पेरिस ओलंपिक खेलों में भाग लेना।
ईरान की संसद मजलिस शूरा-ए-इस्लामी में अरक प्रांत के जन प्रतिनिधि और संसद सदस्य ने कहा:
यदि दुनिया वास्तव में ज़ायोनी शासन द्वारा गाजा के उत्पीड़ित लोगों के उत्पीड़न से तंग आ चुकी है, तो उसे व्यवहार में ज़ायोनी शासन के खिलाफ उठना चाहिए, और पेरिस ओलंपिक खेल उन्हें ऐसा करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया को ज़ायोनी सरकार के प्रतिनिधियों और खिलाड़ियों को खेलों में भाग लेने से रोकने के लिए आगे आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि दुनिया के आज़ाद लोगों को यह दिखाना चाहिए कि वे ज़ायोनी शासन के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा: दुनिया के सभी देशों को संगठित होना चाहिए और आयोजकों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति से ज़ायोनी शासन पर प्रतिबंध लगाने और इस शासन के खिलाड़ियों को ओलंपिक में न भेजने की मांग करनी चाहिए।
ईरानी सांसद असिफ़ारी ने कहा: दुनिया के सभी देशों को भेदभाव और अन्याय छोड़कर ज़ायोनी सरकार से गंभीरता से निपटने का आह्वान करना चाहिए और ऐसा करने का एक उचित तरीका यह है कि ज़ायोनी सरकार का बहिष्कार करने का प्रयास किया जाए। ओलंपिक खेल करना होगा
इराक के लोगों के एक प्रतिनिधि और इस्लामी गणतंत्र ईरान की संसद में संसद सदस्य, मजलिस शूरा ने जोर दिया: यदि वास्तव में ऐसा होता है और ज़ायोनी शासन को 2024 पेरिस ओलंपिक खेलों में भाग लेने से रोका जाता है, तो राष्ट्रों को दुनिया, अंतरराष्ट्रीय संगठन और संस्थाएं आशान्वित रहेंगी, इस मुद्दे पर आम सहमति बननी चाहिए और संबंधित अधिकारियों और नीति निर्माताओं को इस मुद्दे पर दोहरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए।
उन्होंने कहा: ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले सभी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम देशों को इन खेलों में ज़ायोनी सरकार के प्रतिनिधियों और खिलाड़ियों के प्रवेश को रोकने की कोशिश करनी चाहिए।
अफ़ग़ानिस्तान में बाढ़ का क़हर, 50 से अधिक की मौत
अफ़ग़ानिस्तान में बारी बारिश के बाद आई बाढ़ में कम से कम 50 लोगों की मौत हो गयी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अफगानिस्तान के बगलान प्रांत में बारिश के बाद अचानक आई बाढ़ में कम से कम 50 लोगों की मौत हो गई। तालिबान के एक अधिकारी ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बाढ़ का असर राजधानी काबुल पर भी पड़ा है।
बगलान में प्राकृतिक आपदा प्रबंधन के प्रांतीय निदेशक हिदायतुल्लाह हमदर्द ने बताया कि बाढ़ से घरों और संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि बाढ़ आने के बाद से अनेक लोग लापता हैं इससे मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है।
प्राकृतिक आपदा प्रबंधन मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि बाढ़ का असर राजधानी काबुल पर भी पड़ा है। उन्होंने बताया कि बचाव टीम ज़रूरतमंदों तक भोजन और अन्य सहायता भी पहुंचा रही हैं।
बता दें कि पिछले महीने भी देश में भारी बारिश और बाढ़ से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 70 लोगों की मौत हो गई थी तथा लगभग 2000 घर, 3 मस्जिदें और 4स्कूल क्षतिग्रस्त हो गए थे।
चीन ने 18 महीने बाद भारत में अपना दूत तैनात किया
भारत और चीन के बीच काल रहे मनमुटाव के बीच लगभग 18 महीने बाद चीन के राजदूत भारत पहुँच गए हैं। भारत में चीन के राजदूत का पद करीब 18 महीने से खाली था, जो चार दशकों में सबसे लंबा अंतराल है। अब चीन के नए राजदूत शू फेइहोंग दिल्ली पहुंच गए हैं।
शू ने कहा कि चीन एक-दूसरे की चिंताओं को “समझने” और बातचीत के माध्यम से "विशिष्ट मुद्दों" का पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए भारत के साथ काम करने को तैयार है।
इससे पहले राजदूत के तौर पर अपना कार्यभार संभालने के लिए भारत रवाना होने से पहले फेइहोंग ने ‘पीटीआई-भाषा’ और चीन के ‘सीजीटीएन-टीवी’ के साथ बातचीत में चीन के इस रुख को दोहराया था कि उसका ट्रेड सरप्लस हासिल करने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा था, ‘‘भारत के व्यापार घाटे के पीछे कई कारक हैं। चीन, भारत की चिंता को समझता है। हमारा कभी भी ट्रेड सरप्लस हासिल रखने का इरादा नहीं रहा है।’’