رضوی

رضوی

भारत; दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के नए शाही इमाम की ताजपोशी

 

भारत की राजधानी दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के नए शाही इमाम की ताजपोशी हो गई है, नए शाही इमाम सैयद शाबान बुखारी हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सय्यद शाबान बुखारी को दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के नए शाही इमाम के रूप मे ताज पहनाया गया है। यह प्रक्रिया शबे बरात के मौके पर की गई। इस अवसर पर जामिया मस्जिद के सहन मे आयोजित एक प्रतिष्ठित बैठक में देश-विदेश की प्रमुख हस्तियों ने हिस्सा लिया।

शाही इमाम का पद संभालने से पहले सय्यद शाबान बुखारी नायब शाही इमाम के कर्तव्यों का पदभार संभाल रहे थे।  उनके पिता सययद अहमद बुखारी ने पहले ही उनके शाही इमाम पद पर आसीन होने की घोषणा कर दी थी और इसके लिए 25 फरवरी (शब-ए-बारात) का दिन तय किया गया था। ताजपोशी के लिए आयोजित सभा मे सय्यद अहमद बुखारी ने अपने बेटे को शाही इमाम का पद सौंपते हुए और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते हुए कहा, ''जामिया मस्जिद दिल्ली की यह परंपरा रही है कि इमाम अपने जीवनकाल मे अपने बेटे को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते है। "

सय्यद अहमद बुखारी ने कहा कि "मै इमामत कार्यालय की लगभग 400 साल पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए विद्वानों, मुफ्तियों, मशाइखों, मुसलमानों और शहर के बुजुर्गों की उपस्थिति में अपने बेटे सययद शाबान बुखारी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर रहा हूं।" अल्लाह सययद शाबान बुखारी को परिवार की परंपरा का संरक्षक बनायें।”

कहा जाता है कि इस मस्जिद के निर्माण के बाद बादशाह शाहजहाँ ने बुखारा (अब उज्बेकिस्तान) के राजा से इमामत के लिए एक धार्मिक विद्वान भेजने को कहा था। बुखारा के राजा ने सय्यद अब्दुल गफूर शाह बुखारी को दिल्ली भेजा, 24 मई 1656 को उन्हें जामा मस्जिद का इमाम नियुक्त किया गया। इसके बाद शाहजहाँ ने उन्हें शाही इमाम की उपाधि दी, जो आज भी प्रचलित है।

1- अल्लाह की याद

क़ुरआन पढ़ने वाला अल्लाह की याद से तिलावत शुरू करता है अर्थात कहता है कि बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम और यही ज़िक्र उसको अल्लाह की तरफ़ आकर्षित करता है।यूँ तो क़ुरआन पढ़ने वाला कभी भी अल्लाह की ओर से अचेत नही रहता । और यह बात उसकी आत्मा के विकास में सहायक बनती है।

2- हक़ के दरवाज़ों का खुलना

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा हैं कि बिस्मिल्लाह पढ़ कर हक़ के दरवाज़ो को खोलो । बस क़ुरआन पढ़ने के लाभों और प्रभावों में से एक यह भी है कि जब क़ुरआन पढ़ने वाला क़ुरआन पढ़ने के लिए बिस्मिल्लाह कहता है तो उसके लिए हक़ के दरवाज़े खुल जाते हैं।

3- गुनाह के दरवाज़ों का बन्द होना

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि आउज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर्रजीम पढ़कर गुनाहों के दरवाज़ों को बंद करो। इस तरह जब इंसान क़ुरआन पढ़ने से पहले आउज़ुबिल्लाह पढ़ता है तो इससे गुनाहों के दरवाज़े बन्द हो जाते हैं।

 

4- क़ुरआन पढ़ने से पहले और बाद में दुआ माँगने का अवसर

क़ुरआन पढ़ने के नियमों में से एक यह है कि क़ुरआन पढ़ने से पहले और बाद में दुआ करनी चाहिए। दुआ के द्वारा इंसान अल्लाह से वार्तालाप करता है। और उससे अपनी आवश्यक्ता की पूर्ती हेतू दुआ माँगता है। और इसका परिणाम यह होता है कि अल्लाह उसकी बात को सुनता है और उसकी आवश्यक्ताओं की पूर्ती करता है। और यह बात इंसान के भौतिक व आध्यात्मिक विकास मे सहायक बनती है।

5- क़ुरआन पढ़ने वाले का ईनाम

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन का वर्णन करते हैं कि जो इंसान क़ुरआन को खोल कर इसकी तिलावत करे और इसको खत्म करे तो अल्लाह की बारगाह में इसकी एक दुआ क़बूल होती है। जी हाँ दुआ का क़बूल होना ही क़ुरआन पढ़ने वाले का इनआम है।

6- क़ुरआन ईमान की दृढता का कारण बनता है

क़ुरआने करीम के सूरए तौबा की आयत न. 124 में वर्णन हुआ है कि जब कोई सूरह नाज़िल होता है तो इन में से कुछ लोग यह व्यंग करते हैं कि तुम में से किस के ईमान में वृद्धि हुई है। तो याद रखो कि जो ईमान लाने वाले हैं उनही के ईमान में वृद्धि होती है और वही खुश भी होते हैं।

 

सूरए इनफ़ाल की दूसरी आयत में वर्णन होता है कि अगर उनके सामने क़ुरआन की आयतों की तिलावत की जाये तो उनके ईमान में वृद्धि हो जाये।

7- क़ुरआने करीम शिफ़ा( स्वास्थ्य) प्रदान करता है

क़रआने करीम परोक्ष रोगो के लिए दवा है। इंसान के आत्मीय रोगों का उपचार क़ुरआन के द्वारा ही होता है।जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए फ़ुस्सेलत की आयत न. 44 के अन्तर्गत वर्णन हुआ है कि ऐ रसूल कह दीजिये कि यह किताब ईमान वालों के लिए शिफ़ा और हिदायत है। इससे यह अर्थ निकलता है कि क़ुरआन पढ़ने वाले को सबसे पहले क़ुरआन की शिफ़ा प्राप्त होती है।

8- अल्लाह की रहमत का उतरना

क़ुरआन पढ़ने वाले पर अल्लाह की रहमत की बारिश होती है।

9- अल्लाह की तरफ़ से हिदायत(मार्ग दर्शन)

क़ुरआने करीम हिदायत की किताब है। अल्लाह की तरफ़ से उन्ही लोगों को हिदायत प्राप्त होती है जो मुत्तक़ी हैं और क़ुरआन की ज़्यादा तिलावत करते हैं।

10- बाह्य और आन्तरिक पवित्रता

इंसान क़ुरआन पढ़ते समय उसके नियमों का पालन करता है। यह कार्य उसकी आत्मा के उत्थान और पवित्रता मे सहायक बनता है। जब क़ुरआन पढ़ने वाला क़ुरान पढ़ने से पहले वज़ू या ग़ुस्ल करता है तो इस कार्य से उसके अन्दर एक विशेष प्रकार का तेज पैदा होता है। जो इसकी आन्तरिक पवित्रता मे सहायक बनता है।

11- सेहत

इंसान क़ुरआन पढ़ने से पहले बहुत सी तैय्यारियाँ करता है जैसे मिस्वाक करना,वज़ू या ग़ुस्ल करना पाक साफ़ कपड़े पहनना आदि। और यह सब कार्य वह हैं जिनसे इंसान की सेहत की रक्षा होती है।

12- अहले क़ुरआन होना

क़ुरआने करीम को पढ़ने और इससे लगाव होने की वजह से इंसान पर इसके बहुत से प्रभाव पड़ते है। जिसके फल स्वरूप वह क़ुरआन का अनुसरण करने वाला व्यक्ति बन जाता है। अर्थात उसके अन्दर क़ुरआनी अखलाक़, आस्था और पवित्रता पैदा हो जाती है।दूसरे शब्दों मे कहा जा सकता है कि वह क़ुरआन के रंग रूप में ढल जाता है।

13- विचार शक्ति का विकास

जब इंसान क़ुरआन पढ़ता है और उसके भाव में चिंतन करता है तो इस चिंतन फल स्वरूप उसकी विचार शक्ति की क्षमता बढती है। जिसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता है। विशेष रूप से उसके ज्ञान के क्षेत्र को प्रभावित करता है।

14- आखोँ की इबादत

हज़रत रसूले अकरम स. ने फ़रमाया कि क़ुरआन के शब्दों की तरफ़ देखना भी इबादत है।यह इबादत केवल उन लोगो के भाग्य मे आती है जो क़ुरआन को पढ़ते हैं।

15-संतान का प्रशिक्षण

जब माता पिता हर रोज़ पाबन्दी के साथ घर पर क़ुरआन पढ़ेंते हैं तो उनकी संतान पर इसके बहुत अच्छे प्रभाव पड़ते हैं। इस प्रकार इस कार्य से अप्रत्यक्ष रूप से उनका प्रशिक्षण होता है। जिसके फल स्वरूप वह धीरे धीरे क़ुरआन के भाव से परिचित हो जाते हैं।

16- गुनाहों का कफ़्फ़ारा

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन पढ़ा करो क्यों कि यह गुनाहों का कफ़्फ़ारा है।

17- दोज़ख की ढाल

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन का पढ़ना दोज़ख (नरक) के लिए ढाल है और इसके द्वारा इंसान अल्लाह के अज़ाब से सुरक्षित रहता है। जी हाँ अगर कोई इंसान क़ुरआन को पढ़े और उसकी शिक्षाओं पर क्रियान्वित हो तो उसका रास्ता नरकीय लोगों से अलग हो जाता है।

18- अल्लाह से वार्तालाप

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि अगर तुम में से कोई व्यक्ति यह इच्छा रखता हो कि अल्लाह से बाते करे तो उसे चाहिए कि वह क़ुरआन को पढ़े।

19- क़ुरआन पढ़ने से दिल ज़िन्दा होते हैं

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन दिलो को ज़िन्दा करता है और बुरे कार्यों से रोकता है।

20- क़ुरआन पढ़ने से दिलों का ज़ंग भी साफ़ हो जाता है।

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि इन दिलों पर इस तरह ज़ंग लग गया है जिस तरह लोहे पर लग जाता है। प्रश्न किया गया कि फिर यह कैसे चमकेगें ? रसूल अकरम स. ने उत्तर दिया कि क़ुरआन पढ़ने से।

21- क़ुरआन पढ़ने से इंसान बुरईयों से दूर रहता है।

अगर इंसान क़ुरआन पढ़कर क़ुरआन के आदेशों का पलन करे तो वह वास्तव में बुराईयों से दूर हो जायेगा।

नोट--- यह लेख डा. मुहम्मह अली रिज़ाई की किताब उन्स बा क़ुरआन से लिया गया है। परन्तु अनुवाद की सुविधा के लिए कुछ स्थानों पर कमी ज़्यादती की गई है।(हिन्दी अनुवादक)

 

हज़रत पैग़म्बर स.अ. फ़रमाते हैं कि शाबान मेरा महीना है अगर इस महीने कोई एक रोज़ा भी रखेगा तो जन्नत उस पर वाजिब हो जाएगी, कुछ हदीसों में शाबान को सारे महीनों का सरदाद भी कहा गया है। (वसाएलुश-शिया, शैख़ हुर्रे आमुली, जिल्द 8, पेज 98)

एक रिवायत में इमाम सादिक़ अ.स. से नक़्ल है कि जिस समय माहे शाबान शुरू होता था मेरे जद इमाम सज्जाद अ.स. अपने असहाब और साथियों को जमा करते और फ़रमाते थे कि ऐ मेरे असहाब!

इस महीने की फज़ीलत को जानते हो? यह माहे शाबान है और पैग़म्बर स.अ. फ़रमाते थे कि शाबान मेरा महीना है इसलिए अल्लाह से क़रीब होने और पैग़म्बर स.अ. की मोहब्बत की ख़ातिर इस महीने में रोज़ा रखो, क़सम उस अल्लाह की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है मैंने अपने वालिद इमाम हुसैन अ.स. और उन्होंने अपने वालिद इमाम अली अ.स. से सुना है कि वह फ़रमाते थे कि जो भी अल्लाह से क़रीब होने और पैग़म्बर स.अ. से मोहब्बत की ख़ातिर रोज़ा रखेगा अल्लाह उससे मोहब्बत करेगा और उसको क़यामत के दिन अपने करम से क़रीब कर देगा और जन्नत उस पर वाजिब कर देगा।

सफ़वान से रिवायत नक़्ल हुई है कि इमाम सादिक़ अ.स. मुझ से फ़रमाते थे कि अपने आस पास रहने वाले लोगों को शाबान में रोज़ा रखने के लिए कहो, मैंने कहा आप पर क़ुर्बान हो जाऊं क्या शाबान के रोज़े की कोई फ़ज़ीलत है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया हां जिस समय पैग़म्बर स.अ. शाबान के चांद को देखते थे तो अपना पैग़ाम पूरे मदीने में इस तरह पहुंचवाते थे कि एक शख़्स हर गली मोहल्ले में ऐलान करता था कि ऐ मदीने वालों मैं अल्लाह की तरफ़ से भेजा गया हूं जान लो शाबान मेरा महीना है अल्लाह उस पर रहमत नाज़िल करे जिसने इस महीने रोज़ा रख कर मेरी मदद की। (बिहारुल अनवार, अल्लामा मजलिसी, जिल्द 94, पेज 56)

इमाम सादिक़ अ.स. से रिवायत नक़्ल हुई है इमाम अली अ.स. ने फ़रमाया जब से मदीने की गलियों में मुनादी की आवाज़ सुनी है तब से शाबान के रोज़े क़ज़ा नहीं किए और इंशा अल्लाह आगे चल कर भी अल्लाह की मदद से मैं कभी रमज़ान के रोज़े क़ज़ा नहीं करूंगा। (अल-मुराक़ेबात, पेज 173)

हदीस में मिलता है कि शाबान और रमज़ान के महीने के रोज़े रखना हक़ीक़त में अल्लाह की बारगाह में तौबा करना है। (अल-काफ़ी, शैख़ कुलैनी, जिल्द 4, पेज 93)

माहे शाबान के बहुत से आमाल नक़्ल हुए हैं, लेकिन रिवायतों में जिस अमल पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया गया है वह तौबा और इस्तेग़फ़ार है, इस महीने रोज़ाना 70 बार इस्तेग़फ़ार करना बाक़ी महीनों के 70 हज़ार बार के इस्तेग़फ़ार के बराबर है, इस महीने सदक़ा देने की भी बहुत फ़ज़ीलत बयान हुई है यहां तक कि हदीस में है माहे शाबान में सदक़ा दो चाहे वह सदक़ा आधा खजूर ही क्यों न हो ताकि अल्लाह जहन्नम की आग को तुम्हारे लिए हराम कर दे। (बिहारुल अनवार, जिल्द 94, पेज 72)

माहे शाबान में एक और अहम अमल जैसाकि पहले भी ज़िक्र हुआ है रोज़ा है, इमाम सादिक़ अ.स. से किसी ने माहे रजब के रोज़े के बारे में पूछा तो आपने फ़रमाया शाबान के रोज़े से क्यों ग़ाफ़िल हो? आपसे सवाल किया गया कि माहे शाबान में एक रोज़े का कितना सवाब है? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम एक रोज़े का सवाब जन्नत है। (अल-ख़ेसाल, शैख़ तूसी, जिल्द 2, पेज 605)

फिर सवाल किया कि इस महीने सबसे बेहतर अमल क्या है? आपने फ़रमाया सदक़ा देना और इस्तेग़फ़ार करना, जिसने इस महीने सदक़ा दिया अल्लाह उसकी तरबियत की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेता है। (अल-ख़ेसाल, शैख़ तूसी, जिल्द 2, पेज 605)

माहे शाबान की जुमेरात को रोज़ा रखने का सबसे ज़्यादा सवाब बयान किया गया है, रिवायत में है कि माहे शाबान की हर जुमेरात में आसमानों को सजाया जाता है फिर फ़रिश्ते अल्लाह से कहते हैं कि ख़ुदाया आज के दिन रोज़ा रखने वालों को बख़्श दे और उनकी दुआ क़ुबूल भी होती है। (वसाएलुश-शिया, जिल्द 10, पेज 493)

इसी तरह पैग़म्बर स.अ. की हदीस है कि जिसने माहे शाबान में जुमेरात और सोमवार को रोज़ा रखा अल्लाह उसकी 20 दुनयावी और 20 आख़ेरत की दुआओं को क़ुबूल करता है। (अल-एक़बाल, पेज 685)

इस महीने में हज़रत मोहम्मद स.अ. और उनकी आल अ.स. पर सलवात की बहुत ताकीद की गई है इसी तरह मुस्तहब नमाज़ों पर भी ज़ोर दिया गया है जिसको मफ़ातीहुल जेनान में इस महीने के आमाल में पढ़ा जा सकता है।

संक्षेप में इतना समझ लीजिए कि इस महीने में नमाज़, रोज़ा, ज़कात, अम्र बिल मारूफ़, नहि अन मुन्कर, सदक़ा, ग़रीबों और फ़क़ीरों की मदद, वालेदैन के साथ नेकी, पड़ोसियों का ख़्याल और रिश्तेदारों के साथ अच्छे बर्ताव की बहुत ज़्यादा ताकीद की गई है।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने अमेरिकी वायु सेना के एक सैनिक के आत्मदाह और मौत के लिए बाइडेन प्रशासन को ज़िम्मेदार ठहराया है।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी अपराधों और फ़िलिस्तीनियों के चल रहे नरसंहार के विरोध में एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी द्वारा आत्मदाह की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि अमेरिकी वायु सेना के जवान की आत्मदाह और मौत का ज़िम्मेदार, बाइडेन प्रशासन है।

फ़िलिस्तीन की सामा समाचार एजेंसी के अनुसार, फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने घोषणा की है कि आत्मदाह की यह घटना, जो बुशनल की मृत्यु में समाप्त हुई, नरसंहार में फ़िलिस्तीनी जनता की भागीदारी पर अमेरिकी जनता का रुख नहीं है और यह जनता की बढ़ती नाराज़गी का चिन्ह है। फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने मारे गए अमेरिकी सैनिक बुशनेल के परिवार और दोस्तों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की, उनके आत्मदाह के कार्य को मानवीय मूल्यों की रक्षा और उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों के समर्थन के रूप में बयान किया।

 

लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन ने कहा है कि ज़ायोनी शासन के हमलों के जवाब में जो हथियार अब तक प्रयोग किए गए हैं वह हमारी रक्षा शक्ति का बहुत छोटा भाग है और हम ज़ायोनी शासन के हमलों पर अंकुश लगाने के लिए अपने जवाबी हमलों का दायरा बढ़ाएंगे।

हिज़्बुल्लाह ने कहा कि इस्राईल का मुक़बला लेबनान और ग़ज़ा दोनों के हितों को सामने रखते हुए किया जा रहा है।

हिज़्बुल्लाह के डिप्टी सेक्रेट्री जनरल शैख़ नईस क़ासिम ने कहा कि इस्राईली हमले का दायरा बढ़ेगा तो हमारे जवाबी हमलों का दायरा भी बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि दक्षिणी लेबनान में इस्राईली हमलों में तबाही हो रही है लेकिन जवाबी हमलों में हम भी इस्राईली प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर रहे हैं।

हिज़्बुल्लाह के अधिकारी ने चेतावनी दी कि अगर इस्राईल ने आम नागरिकों को निशाना बनाया तो हम उन उसूलों को नज़रअंदाज़ कर देंगे जो हमने अपने लिए बना रखे हैं और जिन पर हम अमल करते हैं।

ज़ायोनी सेना का कहना है कि उसने दक्षिणी लेबनान में हिज़्बुल्लाह के ठिकानों को निशाना बनाया है। इस्राईली सेना के बयान में कहा गया है कि इस्राईली युद्धक विमानों ने एताशाब इलाक़े में हिज़्बुल्लाह के सैनिक प्रतिष्ठान को निशाना बनाया है।

इस्लामी गणराज्य ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने कहा कि ईरान पुरज़ोर तरीक़े से यह मांग करता है कि परमाणु हथियारों को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए जो मानवता और पूरी धरती के लिए गंभीर ख़तरा हैं।

जेनेवा में परमाणु निरस्त्रीकरण की बैठक के अवसर पर विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान का कहना था कि एनपीटी की साख और उसका महत्व तभी है जब उसे पूरी तरह लागू किया जाए और उसके हर अनुच्छेद पर अमल किया जाए।

उन्होंने कहा कि ईरान ने साबित किया है कि वह हमेशा इस कोशिश में रहा है कि दुनिया देश परमाणु हथियारों को ख़त्म करने के लिए सहमत हों।

विदेश मंत्री ने कहा कि ईरान ने पहली बार 1974 में यह मांग उठाई कि पश्चिमी एशिया के इलाक़े को परमाणु हथियारों से सुरक्षित रखा जाए मगर अमरीका और उसके घटक आज भी इस इलाक़े में परमाणु हथियारों के प्रसार की जड़ा यानी इस्राईल की सक्रिय रूप से मदद कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि ज़ायोनी शासन केवल फ़िलिस्तीनियों और इलाक़े के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत गंभीर ख़तरा है।

अमीर अब्दुल्लाहियान ने कहा कि विश्व समुदाय को चाहिए कि इस ख़तरे को गंभीरता से ले और उसका मुक़ाबला करने के लिए ठोस निर्णय करे।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन के नरसंहार के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की निष्क्रियता और चुप्पी इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी है।

ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने जिनेवा में बैठकों का सिलसिला जारी रखते हुए मंत्री स्तर पर एक बैठक में भाग लिया और फ़िलिस्तीन और ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के अपराधों की निरंतरता और युद्ध क्षेत्र के विस्तार को निश्चित रूप से विश्व शांति के लिए ख़तरा क़रार दिया।

विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने कहा कि ज़ायोनी शासन इस छोटे से क्षेत्र में पांच महीने से नरसंहार कर रहा है और इस दौरान ग़ज़्ज़ा के 30 हजार लोग मारे गए हैं जिनमें से 70 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं हैं।

उनका कहना था कि और ये आंकड़े मानव इतिहास में बच्चों की हत्या के सबसे भयानक आंकड़े हैं।

ईरान के विदेशमंत्री ने कहा कि अतिग्रहित क्षेत्रों में संकट को हल करने का तरीक़ ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़्ज़ा और पश्चिमी जॉर्डन में चल रहे नरसंहार को तुरंत रोकना है।

उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान हमेशा से अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों और आत्मनिर्णय के अधिकार के आधार पर फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को अवैध क़ब्ज़े से बचाने की कोशिश करता रहेगा।

हज़रत इमाम मेंहदी अ.स. के जन्मदिन के अवसर पर ईरान सहित कई देशों में बड़ी उत्साह के साथ खुशियां मनाई जा रही हैं।

हज़रत इमाम मेहदी अ.स.धरती पर ईश्वर के अंतिम दूत पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद स.ल.व. के अंतिम उत्तराधिकारी हैं उनके शुभ जन्म दिवस को पूरे ईरान में बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा हैं इस अवसर पर लोग एक दूसरे को बधाइयां दे रहे हैं जगह जगह पर स्टाल लगाए गए हैं जहां से लोगों को मिठाइयां, चाय, शरबत और अन्य प्रकार की खाने की चीज़ें बांटी जा रही हैं।

मानवता के मोक्षदाता हज़रत इमाम मेहदी अ.स. का जन्म 15 शाबान सन 255 हिजरी क़मरी को शुक्रवार के दिन, सुबह के समय, इराक के सामर्रा शहर में हुआ था। हज़रत इमाम मेहदी (अ) के पिता का नाम इमाम हसन अस्करी और माता का नाम नरजिस ख़ातून है। जब आपका जन्म हुआ तो उस समय का शासक, मोतमिद अब्बासी था।

वर्तमान समय में  इमाम मेहदी (अ) लोगों की नज़रों से ओझल हैं ईश्वर के आदेश पर वे एक दिन प्रकट होेकर पूरी दुनिया में शांति, सुरक्षा और न्याय स्थापित करेंगे।

आपके प्रकट हो जाने के बाद पूरी दुनिया में कहीं भी न कोई अत्याचार नहीं होगा, किसी के साथ किसी प्रकार का अन्याय और भेदभाव नहीं होगा।  उस काल में पूरी दुनिया में चारों ओर न्याय और शांति स्थापित होगी।

हज़रत इमाम मेहदी अ.स.के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हौज़ा न्यूज़ की पूरी टीम की ओर से सबको ढेरों बधाई पेश करते हैं।

रिवयतो मे इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर होने के विभिन्न निशानीयो का वर्णन किया गया है, जिन्हें ज़ोहूर होने की निशानीयो के रूप में जाना जाता है। यह लेख इन लक्षणों का विस्तार से वर्णन करेगा।

इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर के सामान्य संकेत:

जिन लक्षणों में सामान्य लक्षण होते हैं, यानी वे किसी विशिष्ट रूप में, किसी विशिष्ट समय पर और विशिष्ट लोगों में प्रकट नहीं होते हैं, उन्हें "सामान्य लक्षण" कहा जाता है। जैसे कि वे हदीसे और रिवायतें जो आख़िरी ज़माने के लोगों के हालात और इस दौर में हुए विचलनों के बारे में बताती हैं, जो असल में इमाम का ज़ोहूर होने की निशानियाँ हैं।

इब्न अब्बास का कहना है कि मैराज की रात को पैगंबर (स) पर ये शब्द नाज़िल हुए कि वह हज़रत अली (स) को आदेश दे और उन्हें अपने बाद के इमामों के बारे में सूचित करे। जो उनके बच्चों मे से हैं; इनमें से आखिरी  इमाम है साथ ही उनके पीछे ईसा बिन मरियम नमाज़ पढ़ेंगे। वह धरती को न्याय से भर देगा जैसे वह अन्याय से भरी होगी... । (इस्बात अल हिदाया, खंड 7, पेज 390)

इमाम अली (अ) ने दज्जाल के संकेतों और उनकी उपस्थिति और इमाम अल-ज़माना (अ) के जोहूर के बारे में "सासा  बिन सुहान" के सवाल का जवाब दिया और कहा: दज्जाल की उपस्थिति का संकेत यह है कि लोग नमाज पढ़ना बंद कर देंगे विश्वासों को धोखा देगा; झूठ वैध माना जायेगा। रिश्वत लेना आम बात होगी; मजबूत इमारतें बनाएंगे और दुनिया को धर्म से बेचेंगे; एक दूसरे से बातचीत करेंगे; हत्या और खून-खराबा सामान्य माना जाएगा. (बिहार अल-अनवर, खंड 52, पृष्ठ 193)

इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जोहूर के विशेष लक्षण:

अभिव्यक्ति के कुछ लक्षण विशिष्ट लोगों में विशिष्ट तरीकों से और विशिष्ट संकेतों के साथ क्रिस्टलीकृत होते हैं। उदाहरण के लिए, कई हदीसों में यह उल्लेख किया गया है कि इमाम ज़मान (अ) का विषम वर्षों और विषम दिनों में जो़हूर होगा। दज्जाल और सुफ़ियान नाम के लोगों का उदय और यमानी और सैय्यद ख़ुरासानी जैसे धर्मात्मा लोगों का कयाम विशेष लक्षण माने जाते हैं। हदीसों में उनके नाम और रीति-रिवाजों के साथ-साथ उनकी विशेष विशेषताओं का भी उल्लेख किया गया है।

इमाम बाकिर (अ) ने कहा: खुरासान से काले झंडे निकलेंगे और कूफ़ा की ओर बढ़ेंगे। इसलिए, जब महदी जोहूर करेंगे तो वह उन्हें निष्ठा की प्रतिज्ञा करने के लिए आमंत्रित करेंगे।

साथ ही, इमाम बाक़िर (अ) ने कहा: हमारे महदी के लिए दो संकेत हैं जो अल्लाह द्वारा आकाश और पृथ्वी के निर्माण के बाद से नहीं देखे गए हैं: एक रमज़ान की पहली रात को चंद्रमा का ग्रहण है और दूसरा उस महीने के मध्य में होने वाला सूर्य ग्रहण है जब से परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की रचना की है, तब से ऐसा कुछ नहीं हुआ है। (मुंतखब अल-आसार, पेज 444)

इमाम महदी (अ) के ज़ोहुर की हत्मी निशानी:

वे संकेत जो इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर होने से पहले निश्चित रूप से घटित होगी। जिसके घटित होने पर कोई शर्त नहीं रखी गई है। जो कोई इन चिन्हों के प्रकट होने से पहले प्रकट होने का दावा करेगा वह झूठा होगा।

इमाम सज्जाद (अ) ने फ़रमाया: क़ुम की उपस्थिति ईश्वर की ओर से निश्चित है और सुफ़ानी की उपस्थिति भी ईश्वर की ओर से निश्चित है और सुफ़ानी के बिना कोई क़ाइम नहीं है। इसी तरह, इमाम सादिक (अ) ने फ़रमाया: यमानी की स्थापना ज़हूर के अंतिम संकेतों में से एक है। (बिहार अल-अनवर, खंड 52, पृष्ठ 82)

उपरोक्त रिवायतो के अनुसार, सूफ़ियानी का उदय, यमानी की स्थापना, सेहा आसमानी, पश्चिम से सूर्य का उदय और नफ़्स ज़किया की हत्या इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर की हत्मी निशानीयो मे से हैं।

इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ोहूर के निकट घटित होने वाली निशानियाँ:

कुछ हदीसों में यह उल्लेख किया गया है कि इमाम ज़मान (अ) के ज़ोहूर होने के वर्ष में कुछ संकेत दिखाई देंगे। अर्थात्, जोहूर होने से पहले और हज़रत महदी (अ) के जोहुर के अवसर पर, ये संकेत एक के बाद एक दिखाई देंगे, जिसके दौरान इमाम अल-ज़माना (अ) जोहूर करेंगे।

इमाम सादिक (अ) ने फ़रमाया: तीन लोगों का उदय: ख़ुरासानी, सुफ़ानी और यमनी, एक वर्ष, एक महीने और एक दिन में होगा, और उस दौरान कोई भी सच्चाई का आह्वान नहीं करेगा। (ग़ैबत नोमानी की पुस्तक, पृष्ठ 252)

इमाम बाकिर (अ) ने फ़रमायाः  महदी (अ) के ज़ोहूर और नफ़्स ज़कियाह की हत्या के बीच पंद्रह रातों से अधिक समय नहीं है।

इन रिवायतो के अनुसार, इमाम महदी (अ) के जाहिर होने के निकट होने वाले संकेतों में खोरासानी, सुफ़ानी और यमनी की स्थापना और नफ़्स ज़किया की हत्या शामिल है।

इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर के प्राकृतिक और सांसारिक संकेत:

महदी (अ) के ज़ोहूर के अधिकांश लक्षण प्राकृतिक और सांसारिक संकेत हैं और उनमें से प्रत्येक हज़रत महदी (अ) के ज़ोहूर और पुनरुत्थान की शुद्धता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इमाम अली (अ) ने फ़रमाया: मेरे परिवार का एक व्यक्ति पवित्र भूमि में रहेगा, जिसकी खबर सुफ़ानी तक पहुंच जाएगी। वह उससे लड़ने और उन्हें हराने के लिए अपने सैनिकों की एक सेना भेजेगा, फिर सुफ़ानी खुद और उसके साथी उससे लड़ने के लिए जाएंगे और जब वे बैदा की भूमि से गुजरेंगे तो धरती उन्हें निगल जाएगी। एक व्यक्ति  के अलावा कोई नहीं बचेगा और वह एक व्यक्ति इस घटना की खबर दूसरों तक पहुंचाएगा।

ज़मीनी और कुदरती निशानियों में सूफियान का बायदा (खुसूफ बैदा) में भूमिगत हो जाना, यमनी, ख़ुरासानी, सूफियान और दज्जाल का उभरना, नफ़्स ज़किया की हत्या, ख़ूनी युद्ध आदि की निशानियाँ शामिल हैं।

इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर के स्वर्गीय संकेत:

इमाम ज़माना (अ) के ज़ोहूर के महत्व को देखते हुए, सांसारिक और प्राकृतिक संकेतों के अलावा, इमाम (अ) के ज़ोहूर के समय कुछ स्वर्गीय संकेत भी दिखाई देंगे ताकि लोग अपने स्वर्गीय नेता और रक्षक को बेहतर ढंग से पहचान सकें। और उनके मिशन और लक्ष्यों और उद्देश्यों को साकार करने में उनका समर्थन करें।

स्वर्गीय पुकार:

इमाम सादिक (अ) ने फ़रमाया: जब भी कोई उपदेशक आकाश से कहता है कि सच्चाई मुहम्मद (अ) के परिवार के साथ है, तो हर कोई इमाम महदी (अ) के जोहूर का उल्लेख करेगा । और हर कोई उनकी दोस्ती और प्यार पर मोहित होगा, उनके अलावा किसी को याद नहीं किया जाएगा।

सूर्यग्रहण:

इमाम सादिक (अ) ने फ़रमाया: महदी (अ) के ज़ोहूर के संकेतों में से एक रमज़ान के पवित्र महीने की 13 या 14 तारीख को सूर्य ग्रहण है।

इन हदीसों के अनुसार, इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर के स्वर्गीय संकेतों में स्वर्गीय पुकार और रमज़ान में सूर्य का ग्रहण शामिल हैं।

अंतिम बात:

अधिकांश शोधकर्ताओं और मुज्तहिदीन के अनुसार, जिस जमाने में हम रह रहे हैं वह इमाम महदी (अ) का ज़माना है। अब तक, ज़ोहूर के सामान्य लक्षण लगभग पूरी तरह से घटित हो चुके हैं, जबकि कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि इस समय, इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर के विशेष लक्षण भी घटित हो रहे हैं या जल्द ही घटित होंगे। अहले-बैत (अ) के सभी प्रेमियों और इमाम महदी (अ) की प्रतीक्षा करने वालों को अपने कार्यों के माध्यम से यह साबित करना चाहिए कि वे समाज में असली प्रतीक्षारत इमाम महदी (अ) हैं। हम अल्लाह ताला से दुआ करते हैं कि वह हमें इमाम महदी (अ) के सच्चे अनुयायियों और समर्थकों में से घोषित करे।

हज़रत इमाम ज़माना अ.स. के बारे में रिवायत हैं बयानउल कंजी में अली बिन जोशब से रिवायत की है अली बिन जोशब बयान करता है अली इब्ने अबी तालिब फ़रमाते हैं कि मैने रसूलल्लाह स. से सवाल किया कि क्या आले मुहम्मद के महदी हम में से हैं या हमारे अलावा हैं?

हज़रत ने फ़रमाया ऐसा नही है, बल्कि ख़ुदावन्दे आलम हम अहले बैत के सबब दीन इस्लाम को इख़्तेताम तक पहुँचायेगा जिस तरह उसने हमारे ही नबी स.ल. के ज़रिये उसको कामयाब बनाया है और हमारे ही ज़रिये लोग फ़ितने से महफ़ूज़ रहेगें। जिस तरह वह शिर्क से महफ़ूज़ रहे और हमारी ही मुहब्बत के सबब अदावत के बाद उनके दिलों में मेल मुहब्बत और भाईचारगी पैदा कर देगा। जिस तरह वह शिर्क की अदावत के बाद एक दूसरे के भाई क़रार पाये।

मुन्तख़ब कन्ज़ुल उम्माल:रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: अगर दुनिया में सिर्फ़ एक रोज़ बाक़ी रह जायेगा तो ख़ुदा वंदे आलम उस रोज़ को इतना तूलानी कर देगा कि मेरे अहले बैत से एक शख़्स क़ुस्तुन्तुन्या और दैलम के पहाड़ों का हाकिम क़रार पायेगा।

हाफ़िज़ अलक़न्दुज़ी अलहनफ़ी अबू सईद ख़िदरी से बतौरे मरफ़ूअ रिवायत करते हैं, हुज़ूर (स.) में फ़रमाया: महदी हम अहले बैत में से हैं और बलंद सर का हामिल है।  वह  ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह भर देगा, जिस तरह वह पहले ज़ुल्म व जौर से भरी होगी।

अलफ़ुसूलुल मुहिम्मा अल्लामा मालिकी बिन सबाग़ में अबू दाऊद और तिरमीज़ी अपनी सुनन में अब्दुल्लाह बिन मसऊद से (बतौरे मरफ़ूअ) रिवायत करते हैं कि अब्दुल्लाह बिन मसऊद बयान करते हैं कि रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: अगर दुनिया से एक रोज़ भी बाक़ी रह जायेगा तो ख़ुदावन्दे आलम उस रोज़ को इतना तूलानी कर देगा कि मेरे अहले बैत से एक शख़्स ज़ाहिर होगा, जिसका नाम मेरे नाम पर होगा। जो ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से इस तरह से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भर चुकी होगी।

अलकंजी (शाफ़ेई) अबूसईद ख़िदरी से रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह अ.स. ने फ़रमाया: आख़री ज़माने में फ़ितनों का ज़हूर होगा जिसके दरमियान महदी अ.स.नामी एक शख़्स ज़ाहिर होगा जिसकी अता व बख़्शिश मुबारक होगी।

यनाबी उल मवद्दत में इब्ने अब्बास से रिवायत की गई है कि  इब्ने अब्बास बयान करते हैं कि रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया:  इस दीन की कामयाबी अली (अ.) से हुई। अली (अ.) की शहादत के बाद दीन में फ़साद बरपा होगा, जिसकी इस्लाह फ़क़त महदी अ.स.के ज़रिये होगी।

यनाबी उल मवद्दत में अली इब्ने अबी तालिब से रिवायत की गई है कि हज़रत ने फ़रमाया: दुनिया ख़त्म न होगी यहा तक कि मेरी उम्मत से एक शख़्स हुसैन अ.स. के फ़रज़न्द से ज़ाहिर होगा और ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर से भर चुकी होगी।

एक रिवायत में दैलम के पहाड़ से मुराद वह मक़ाम है जहाँ पर रसूलल्लाह स.स.व.के ज़माने में यहूदीयों का मर्कज़ था और कुस्तुन्तुनया नसारा का मर्कज़ था और बमुल्के जबलुद दैलम व कुस्तुन्तुनया से इमाम मेहदी अ.स. का तमाम दुनिया और दीगर मज़ाहिब पर कामयाबी मुराद है।