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ईरान-भारत के बीच चाबहार बंदरगाह के संबंध में अहम बैठक
ईरान-भारत ने चाबहार बंदरगाह में पूंजिनिवेश और दोनों देशों के समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के मार्गों की समीक्षा की।
इरना के अनुसार, ईरान के जहाज़रानी व बंदरगाह विभाग के प्रबंधक निदेशक मोहम्मद रास्ताद ने भारत के अपने दो दिवसीय दौरे पर इस देश के जहाज़रानी मंत्रालय के सचिव और मुख्य बंदरगाहों के निदेशकों से बातचीत की।
मोहम्मद रास्ताद और भारतीय बंदरगाहों के निदेशकों के साथ बैठक में दोनों देशों के बीच समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग में विस्तार तथा ईरान की चाबहार बंदरगाह के पहले फ़ेज़ में भारतीय कंपनी आईपीजीएल के साथ हुए समझौते की समीक्षा हुयी।
दोनों पक्षों ने चाबहार बंदरगाह के कन्टेनर टर्मिनल में भारतीय कंपनी द्वारा उपकरणों की ख़रीदारी के मामले को अंतिम रूप देने के बारे में बातचीत की और ईरान, भारत व अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों की उपस्थिति में त्रिपक्षीय चाबहार ट्रान्ज़िट सहमतिपत्र को लागू करने के लिए पहली बैठक के आयोजन पर बल दिया।
चाबहार ओमान सागर के उत्तरी छोर पर स्थित ईरान की अहम बंदरगाह है। यह बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र तक पहुंच और अपनी रणनैतिक स्थिति के मद्देनज़र क्षेत्र के देशों के साथ ईरान के व्यापारिक लेन-देन में विशेष अहमियत रखती है।
ईरान, डरने वाला देश नहीं हैः मुस्लिम अमरीकी धर्मगुरु
मरीका के मुस्लिम धार्मिक नेता और उम्मते इस्लामी आंदोलन के प्रमुख लुईस फ़रा ख़ान ने कहा कि अमरीका कभी भी लोकतांत्रिक देश नहीं रहा बल्कि उसने हमेशा पूंजीपतियों और शक्तिशाली वर्ग का समर्थन किया है।
अमरीका के मुस्लिम धार्मिक नेता लुईस फ़रा ख़ान ने तेहरान विश्वविद्यालय की पोलेटिकल साइंस संकाय में एक गोल मेज़ काफ़्रेंस में कहा कि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के दौर में अमरीका इस समय दुनिया पर अपने वर्चस्व से वंचित होता जा रहा है।
उन्होंने इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाओं को प्राप्त स्वतंत्रता का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान में महिलाओं को यह स्वतंत्रता एक ऐसे समय में मिली हुई है कि जब अमरीका और यूरोप में महिलाओं को पुरुषों के खिलौने और मनोरंजन की वस्तु के रूप में देखा जाता है और उनका शोषण किया जाता है।
लुईस फ़रा ख़ान ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि ईरानी जनता को इस बात का प्रयास जारी रखना चाहिए कि वह दुनिया के बेहतरीन राष्ट्र के रूप में पहुचाने जाते हैं, कहा कि अमरीका केवल धोखा देने के लिए वचन देता है किन्तु उसके जवाब में ईरानी जनता को चाहिए कि वह देश के भीतर और बाहर एकजुट रहें।
अमरीका के उम्मते इस्लामी आंदोलन के नेता लुईस फ़रा ख़ान ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि वाशिंग्टन केवल मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने का प्रयास करता है, कहा कि यमन में कुछ अरब देशों के पाश्विक हमलों पर अमरीका की चुप्पी की वजह, हमलावर अरब देशों को अरबों डॉलर के हथियार बेचने और इस्राईल के साथ इन अरब देशों के संबंधों को अधिक से अधिक बेहतर बनाना है।
उनका कहना था कि अमरीका और इस्राईल को आज सबसे अधिक भय इस्लामी गणतंत्र ईरान से है क्योंकि वह जानते हैं कि यदि ईरान के विरुद्ध युद्ध छिड़ा तो ईरान पीछे हटने वाला नहीं है।
ईरान लगातार शक्तिशाली हो रहा है जबकि अमरीका पतन की ओर उन्मुख हैः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि विशेषज्ञों का मानना है कि अमरीका अब पतन की ओर अग्रसर है जबकि प्रेरणा, कार्य की भावना और अपने प्रिय युवाओं के प्रयास से ईरानी राष्ट्र का भविष्य पहले से अधिक उज्वल है।
ईरान के हज़ारों छात्रों ने शनिवार को तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से भेंट की। इन छात्रों ने विश्व वर्चस्ववाद के विरुद्ध राष्ट्रीय संघर्ष दिवस से एक दिन पहले वरिष्ठ नेता से भेंट की है।
इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने पिछले 40 वर्षों के दौरान ईरान के विरुद्ध अमरीकी षडयंत्रों की विफलता की ओर संकेत करते हुए कहा कि छात्रों के हाथों, जासूसी का अडडा बने अमरीकी दूतावास का परिवेष्टन, वास्तव में अमरीका के मुंह पर ईरानी राष्ट्र का तमाचा था। उन्होंने कहा कि संसार के बहुत से विशेषज्ञों, समाजशासत्रियों एवं राजनेताओं का मानना है कि अमरीका की "साफ्ट पाॅवर" कमज़ोर होती जा रही है। वरिष्ठ नेता का कहना था कि दूसरे देशों पर अपनी मर्ज़ी थोपने की अमरीकी नीति लगभग निष्कृय हो चुकी है। उन्होंने कहा कि अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति के सत्ता संभालने के साथ ही इसमें बहुत गिरावट आई है। अब तो स्थिति यह हो गई है कि संसार के बहुत से देश और राष्ट्र, खुलकर अमरीकी फैसलों का विरोध करने लगे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अमरीका की निरंतर कम होती शक्ति की ओर क्षेत्रीय देशों का ध्यान केन्द्रित करवाते हुए कहा कि वे लोेग जो अमरीका के समर्थन से फ़िलिस्तीन के मामले को हमेशा के लिए समाप्त करवाना चाहते हैं उनको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अमरीका अपने ही क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है जबकि क्षेत्रीय राष्ट्र और उनकी वास्तविकताएं बाक़ी रहेंगी।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले चार दशकों से ईरान के विरुद्ध अमरीकी प्रतिबंधों का मुख्य लक्ष्य, ईरान को हर हिसाब से नुक़सान पहुंचाना और उसके विकास को बाधित करना रहा है। उन्होंने कहा कि ईरान के विरुद्ध आर्थिक युद्ध में भी अमरीका को पराजय का ही मुंह देखना पड़ा है क्योंकि अमरीका की इच्छा के विरुद्ध ईरान, बहुत तेज़ी से स्वावलंबन की ओर बढ़ा है। वर्तमान समय में ईरान के हज़ारों युवा देश के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस प्रश्न के उत्तर में कि,अमरीका के विरुद्ध ईरानी राष्ट्र का प्रतिरोध कबतक जारी रहेगा, कहा कि जब अमरीका अपनी वर्चस्ववादी नीति को छोड़ देगा तो संसार के अन्य देशों की भांति उसके साथ भी सहयोग किया जा सकता है किंतु एेसा होना संभव दिखाई नहीं देता। इसका कारण यह है कि वर्चस्व की प्रवृत्ति ही ज़ोर-ज़बरदस्ती और दूसरों पर धौंस जमाने पर आधारित होती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल देकर कहा कि वर्तमान समय में इस्लामी गणतंत्र ईरान ही एेसा देश है जिसके फैसलों में अमरीका की लेशमात्र इच्छा शामिल नहीं होती। वरिष्ठ नेता का कहना था कि यह वास्तव में अमरीका की पराजय के अर्थ में है।
इमाम हुसैन के चेहलुम के अवसर पर “मिलयन मार्च” न केवल ज़रूरी बल्कि वाजिब है!
सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ मुफ़्ती ने कहा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर निकलने वाला मिलयन मार्च न केवल “मुस्तहब” है बल्कि अधिक संभव है कि “वाजिब” हो।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के अवसर पर निकलने वाले मार्च के बारे में कहते हैं कि “यह मिलयन मार्च, एकता और आध्यात्मिकता के लिए अमूल्य है और न केवल सुन्नी मुसलमानों के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा बेहतरीन कार्य है जिसमें भाग लेना संभव है कि सभी मुसलमानों के लिए वाजिब हो और हर वर्ष इस महारैली में सुन्नी मुसलमानों की बढ़ती संख्या प्रशंसनीय है।”
तसनीम समाचार एजेंसी से बातचीत करते हुए सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर ने कहा कि गत वर्ष उन्हें भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था कि वह इस भव्य चेहुलम मार्च का हिस्सा बनें और अब दिल यही करता है कि ऐसी एकता और आध्यात्मिकता की महारैली का हर वर्ष भाग बनें। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और अन्य इमामों एवं पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों का दर्शन करने के संबंध में इस्लाम की मुख्य पुस्तकों में बहुत अधिक बल दिया गया है। मुफ़्ती रज़्ज़ाक़ ने कहा कि, यह सभी जानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों से मोहब्बत करना हर मुसलमान पर वाजिब अर्थात अनिवार्य है।
वरिष्ठ मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर ने कहा कि सुन्नी मुसलमानों के लगभग सभी बड़े धर्मगुरुओं और मुफ़्तियों ने इमाम हुसैन (अ) की ज़यारत अर्थात दर्शन करने को मुस्तहब बताया है। उन्होंने कहा कि ऐसे भी बहुत से सुन्नी धर्मगुरू थे और हैं जिन्होंने इमाम हुसैन (अ) की ज़यारत को वाजिब अर्थात अनिवार्य बताया है। उन्होंने कहा कि हमें चाहिए कि ऐसे आध्यात्मिक समारोह से लाभ उठाएं और इस मिलयन मार्च का भाग बनें। मुफ़्ती रज़्ज़ाक़ ने कहा कि यह एक अच्छा अवसर है कि जब हम दुश्मनों की साज़िशों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए हम यह दिखा सकते हैं कि शिया और सुन्नी दोनों भाई हैं। उन्होंने कहा कि आज मुसलमानों के दुश्मनों की नज़र पवित्र नगर करबला की ओर जाने वाले इस भव्य मिलयन मार्च की तरफ़ है और यह देखकर उनके होश उड़े हुए हैं कि कैसे इस मार्च में शिया-सुन्नी मुसलमान हाथ में हाथ दिए आगे बढ़ रहे हैं।
वर्चस्ववादी व्यवस्था ईरान की जो छवि दुनिया के सामने पेश कर रही है वह उसके बिल्कुल ही विपरीत हैः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उन देशों के साथ वैज्ञानिक संपर्क बनाने को आवश्यक बताया है जिन्होंने बहुत तेज़ी से प्रगति की है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार को तेहरान में मेधावी और प्रतिभाशाली छात्रों से भेंट की। उन्होंने पूरे देश में हज़ारों की संख्या में मेधावी छात्रों की उपस्थिति को ईरान के आशाजनक भविष्य का परिचायक बताया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि वर्तमान समय में ईरान की छवि को नकारात्मक ढंग से बिगाड़कर प्रस्तुत करना शत्रुओं की कार्यसूचि में सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि वर्चस्ववादी व्यवस्था ईरान की जो छवि दुनिया के सामने पेश कर रही है वह वास्तव में उसके बिल्कुल ही विपरीत है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने देश के लिए अच्छे एवं उपयोगी कार्यक्रमों के निर्माण में मेधावी युवाओं की भूमिका का उल्लेख करते हुए ईरान की वैज्ञानिक प्रगति, परस्पर सहयोग, श्रम बल के सही उपयोग और राष्ट्रीय पहचान को बहुत आवश्यक बताया।आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने देश की वैज्ञानिक प्रगति में ईरान के प्रतिभाशाली एवं मेधावी लोगों के प्रभाव की ओर संकेत करते हुए कहा कि यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से प्रगति करते हैं तो फिर शत्रु की धमकियां हमेशा नहीं रहेंगी बल्कि वे कम होती जाएंगी।
उन्होंने इस ओर संकेत किया कि विगत में ईरान आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से पिछड़ गया था। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पहलवी काल में विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में ईरान का योगदान मात्र शून्य दश्मलव एक प्रतिशत था जबकि ईरान की जनसंख्या विश्व की लगभग एक प्रतिशत थी। उनका कहना था कि वर्तमान समय में विज्ञान के क्षेत्र में ईरान का योगदान दो प्रतिशत हो चुका है। वरिष्ठ नेता का कहना था कि हमें इसे पर्याप्त नहीं समझना चाहिए। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि विगत में वैज्ञानिक या अन्य क्षेत्रों में ईरान के पिछड़ेपन का मूल कारण अयोग्य तथा दूसरों पर निरभर शासकों की उपस्थिति थी जो राष्ट्र के सामने घमण्ड करते और जनता की बिल्कुल भी चिंता नहीं करते थे।
जीत सत्य की होती है और ईरानी राष्ट्र पाबंदियों व साज़िशों के ख़िलाफ़ कामयाब होगाः आयतुल्लाह इमामी काशानी
जुमे के इमाम ने कहा है कि ईरानी राष्ट्र हर प्रकार की पाबंदियों व साज़िशों के ख़िलाफ़ विजयी होगा।
तेहरान के अस्थायी जुमे के इमाम आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने नमाज़ के विशेष भाषण में कहा कि ईरानी राष्ट्र विश्व साम्राज्य व इस्लाम के दुश्मनों की ओर से लगने वाली सभी पाबंदियों व साज़िशों के ख़िलाफ़ कामयाब होगा।
उन्होंने शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में इस बात का उल्लेख करते हुए कि इस्लामी देशों में मुश्किलों को हल करने का अपार सामर्थ्य मौजूद है, कहा कि आगामी सफलता ईरानी राष्ट्र की है, महान ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ दुश्मन के सपने कभी पूरे नहीं होंगे और वह ईरान पर वर्चस्व जमाने की अपनी इच्छा क़ब्र में लेकर जाएंगे।
आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने ईरान में असंतोष व आर्थिक समस्या पैदा करने के लिए अमरीका की साज़िश की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमरीका का लक्ष्य राष्ट्र और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के बीच अविश्वास पैदा करना है, लेकिन ईरानी राष्ट्र इन साज़िशों के ख़िलाफ़ समझदारी से डटा हुआ है जिससे दुश्मन नाकाम होकर रहेगा।
देश में कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान नहीं हो, वरिष्ठ नेता
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहा है कि देश में किसी तरह की कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका कोई समाधान नहीं हो।
बुधवार की रात ईरान के राष्ट्रपति, संसद सभापति और न्यायपालिका प्रमुख के साथ मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने कहा, देश की मौजूदा आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए और लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए असाधारण प्रयासों की ज़रूरत है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि बैंकिंग, रोज़गार, मंहगाई और लिक्विडिटी जैसी आर्थिक समस्याओं के लिए गंभीर एवं महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए जाने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा, देश की वर्तमान परिस्थितियों के कारण, विद्वानों को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास है और वे अपने अनुभवों को अधिकारियों तक पहुंचा रहे हैं।
अमरीकी एकपक्षीय प्रतिबंधों एवं आंतरिक आर्थिक समस्याओं का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा, इन दोनों समस्याओं के समाधान के लिए तार्किक क़दम उठाए जाने चाहिएं, ताकि जनता की समस्याओं का समाधान निकले और दुश्मन को निराशा हाथ लगे।
ईरान-भारत के बीच चाबहार बंदरगाह के संबंध में अहम बैठक
ईरान-भारत ने चाबहार बंदरगाह में पूंजिनिवेश और दोनों देशों के समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के मार्गों की समीक्षा की।
इरना के अनुसार, ईरान के जहाज़रानी व बंदरगाह विभाग के प्रबंधक निदेशक मोहम्मद रास्ताद ने भारत के अपने दो दिवसीय दौरे पर इस देश के जहाज़रानी मंत्रालय के सचिव और मुख्य बंदरगाहों के निदेशकों से बातचीत की।
मोहम्मद रास्ताद और भारतीय बंदरगाहों के निदेशकों के साथ बैठक में दोनों देशों के बीच समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग में विस्तार तथा ईरान की चाबहार बंदरगाह के पहले फ़ेज़ में भारतीय कंपनी आईपीजीएल के साथ हुए समझौते की समीक्षा हुयी।
दोनों पक्षों ने चाबहार बंदरगाह के कन्टेनर टर्मिनल में भारतीय कंपनी द्वारा उपकरणों की ख़रीदारी के मामले को अंतिम रूप देने के बारे में बातचीत की और ईरान, भारत व अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों की उपस्थिति में त्रिपक्षीय चाबहार ट्रान्ज़िट सहमतिपत्र को लागू करने के लिए पहली बैठक के आयोजन पर बल दिया।
चाबहार ओमान सागर के उत्तरी छोर पर स्थित ईरान की अहम बंदरगाह है। यह बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र तक पहुंच और अपनी रणनैतिक स्थिति के मद्देनज़र क्षेत्र के देशों के साथ ईरान के व्यापारिक लेन-देन में विशेष अहमियत रखती है।
ईरान-भारत के बीच 2017 में व्यापारिक लेन-देन 13 अरब 70 करोड़ डॉलर का था।
इस्राईली सैनिकों की फ़ायरिंग में 7 फ़िलिस्तीनी शहीद, 100 से ज़्यादा घायल
12 अक्तूबर 2018 को ग़ज़्जा शहर के पूर्वी भाग में ग़ज़्जा पट्टी और अतिग्रहित क्षेत्र की सीमा पर जलते हुए टायरों से निकलते धुएं और इस्राईली फ़ोर्सेज़ द्वारा आंसू गैस के गोले के इस्तेमाल बीच इकट्ठा फ़िलिस्तीनी
नाकाबंदी से घिरे ग़ज़्ज़ा पट्टी और अतिग्रहित क्षेत्र की सीमा पर फ़िलिस्तीन के इस्राईल द्वारा अतिग्रहण के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान इस्राईली फ़ोर्सेज़ की फ़ायरिंग में कम से कम 7 फ़िलिस्तीनी शहीद और 112 घायल हुए।
ग़ज़्ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि शुक्रवार को इस्राईली फ़ोर्सेज़ की फ़ायरिंग में 6 फ़िलिस्तीनी हताहत हुए। ये फ़िलिस्तीनी अलबुरैज शरणार्थी कैंप के पूरब में शहीद हुए।
ग़ज़्ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ़ अलक़िदरा ने अलबुरैज शरणार्थी कैंप के पूरब में शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों की पहचान अहमद अत्ताविल 27 साल, मोहम्मद इस्माईल 29 साल, अब्दुल्लाह अद्दुग़मा 25 साल, अहमद अबू नईम 17 साल, अफ़ीफ़ी अफ़ीफ़ी 18 साल, तामिर अबू इरमाना 22 साल और मोहम्मद अब्बास 21 साल बतायी।
रिपोर्ट के अनुसार, घायल होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 112 है जिनमें बच्चे और औरतें भी शामिल हैं। इनमें ज़्यादातर झड़प के दौरान गोलियों से घायल हुए।
घायलों में एक लड़की गंभीर रूप से घायल थी जबकि 5 अन्य लोगों की स्थिति चिंताजनक बनी हुयी थी।
अमरीका, अफ़ानिस्तान में युद्ध हार गया है
17 वर्ष पूर्व 7 अक्तूबर 2001 को अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था, लेकिन 17 वर्ष बीत जाने के बाद वाशिंगटन और उसके घटकों को न केवल इस देश में कोई सफलता नहीं मिली है, बल्कि वे यह जंग हार गए हैं।
जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान की अधिकांश जनता का मानना है कि अमरीका, उनके देश में यह युद्ध हार गया है, उसी तरह अमरीकी जनता का भी यही मानना है कि उनका देश अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध हार रहा है और अमरीकी सैनिकों को इस देश से निकल जाना चाहिए।
अमरीका ने नाइन इलेवन की घटना के बाद अल-क़ायदा और तालिबान को ख़त्म करने के दावे के साथ अफ़ग़ानिस्तान पर धावा बोल दिया था। इसके अलावा अमरीका का दावा था कि वह चरमपंथ को मिटाकर इश देश में शांति व्यवस्था की स्थापना कर देगा। हालांकि ज़मीनी सच्चाई यह बताती है कि न केवल अमरीका अपने घोषित लक्ष्यों में से एक भी हासिल नहीं कर सका है, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान पहले से भी अधिक अस्थिर हुआ है और आतंकवाद एवं चरमपंथ का विस्तार पहले से भी अधिक हुआ है। इसके अलावा, अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति में इश देश में मादक पदार्थों की पैदावार एवं तस्करी में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अमरीकी सेना कि जिसने अफ़ग़ानिस्तान की जनता को आतंकवाद एवं चरमपंथ से मुक्ति दिलाने के नारे के साथ काबुल पर हमला किया था, आज आतंकवाद के प्रसार एवं अस्थिरता का मुख्य कारण वह ख़ुद है।
अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय एक ग़ैर सरकारी संगठन का कहना है कि इस साल केवल सितम्बर के महीने में अमरीका और नाटो के हवाई हमलों में 100 से अधिक आम नागरिक मारे गए हैं। इस संदर्भ में काबुल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ैसर का कहना है कि अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति हमारे देश में अशांति एवं अस्थिरता का मुख्य कारण है। अमरीका का लक्ष्य शुरू से ही शांति की स्थापना नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य कुछ और है, इसीलिए वह इस देश में स्थिरता नहीं चाहता है।
राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ माइकल ह्यूज़ का मानना है कि अमरीका की नज़र अफ़ग़ानिस्तान के खनिज संसाधनों पर है, जिसके लिए उसे इस देश में बने रहने के लिए कोई न कोई बहाना तो चाहिए होगा।