
رضوی
फिलिस्तीन ईसाइयों के समारोह पर जेयोनिस्ट हमले की निंदा
अल जजीरा न्यूज़ एजेंसी के हवाले ,कल सोमवार, 26 मार्च को फिलीस्तीन चर्चों की सर्वोच्च अथॉरिटी ने एक बयान जारी करके शांतिपूर्ण रैली में भाग लेने वाले ईसाईयों पर ज़ियोनिस्ट द्वारा किए गए हमले की निंदा की।
इस समिति ने इस बयान के साथ कि सभी अंतर्राष्ट्रीय समझौते और कानून धार्मिक और राष्ट्रीय समारोहों के लिए सुरक्षा और समर्थन प्रदान करने पर बल देते हैं कहा, यहूदी शासन अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने का कोई भी मौका छोड़ता नहीं है।
इस वक्तव्य में ईसाईयों के समारोहों और उनके धार्मिक वातावरणों के खिलाफ लगातार हमलों का उल्लेख करते हुऐ आया है: ज़ाइनिस्ट शासन की ये कार्वाइयां नस्लवादी लक्ष्य और फिलिस्तीन में रहने वाले सभी गैर-यहूदियों के खिलाफ हैं।
याद रहे कि कल सोमवार को ज़ियोनिस्ट आतंकियों ने रैली में भाग लेने वालों पर हमला करके उनमें से कुछ को गिरफ्तार कर लिया था।
कांग्रेस ने कपिल सिब्बल से बाबरी मस्जिद केस की पैरवी छोड़ने को कह दियाः रिपोर्ट
बाबरी मस्जिद के बारे में एक नया मोड़ सामने आया है और रिपोर्टों में बताया गया है कि कांग्रेस ने बाबरी मस्जिद को लेकर सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की ओर से केस लड़ रहे वकील कपिल सिब्बल को पार्टी ने निर्देश किया है कि वह यह केस को छोड़ दें।
भारतीय मीडिया में दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस ने कपिल सिब्बल से बाबरी मस्जिद की पैरवी छोड़ने के लिए कहा है। सीएनएन न्यूज -18 ने बताया है कि कांग्रेस के अंदर के लोगों का कहना है कि पार्टी ने सिब्बल से कहा है कि अगर वे खुद को इस केस से दूर कर लेते हैं तो यह उनके लिए राजनीतिक तौर पर एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट दी है कि बाबरी मस्जिद मामले की दो सुनवाई में कपिल सिब्बल शामिल नहीं हुए हैं। इसी बीच ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि सिब्बल द्वारा सुनवाई में शामिल न होने के पीछे कारण कांग्रेस द्वारा सिब्बल से केस को छोड़ने के लिए कहना हो सकता है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफ़रयाब जिलानी ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि कांग्रेस ने कपिल सिब्बल को क्या निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें संवैधानिक मुद्दों पर कपिल सिब्बल की ज़रूरत है। बाबरी मस्जिद मामले की अगली सुनवाई 6 अप्रैल को होगी।
इस्लामाबाद की फैसल मस्जिद में कुरान के 100 पांडुलिपियों का प्रदर्शन
अंतर्राष्ट्रीय कुरआन समाचार एजेंसी यह पांडुलिपियां दो से सात शताब्दियों के बीच की है।
मस्जिद के अधिकारियों ने एलान किया है कि इस पवित्र कुरान को इस्लामी शिलालेख के कामों के साथ सार्वजनिक तौर पर रख़ा जाएग़ा।
वोह लोग़ इस दुर्लभ संस्करणों की रक्षा के लिए विशेष उपाय भी करते हैं।
फैसल मस्जिद दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है, जो पांच हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में बनाई ग़ई है और इसमें 300 हजार नमाज़ियों की जग़ह है।
इस मस्जिद के प्रत्येक मीनार की ऊंचाई 80 मीटर है, जो दक्षिण एशिया की मस्जिदों में सबसे ज्यादा ऊंची मीनार है। आधिकारिक तौर पर मस्जिद का निर्माण 1 9 76 में शुरू हुआ था और 1986 में दस वर्षों के बाद पूरा हुआ
फ़ारसी सीखें-26वां पाठ
पिछले कार्यक्रम में हमने रेशम मार्ग के बारे में बातचीत की थी। आज के कार्यक्रम में मोहम्मद और सईद ईरान के मार्गों के बारे में अपनी बातचीत जारी रखेंगे। इस कार्यक्रम में हम आपको एक प्राचीन मार्ग जाद्दए शाही अथवा राज्य मार्ग से परिचित करवायेंगे। इस मार्ग का निर्माण हख़ामनी वंश के राजाओं कुरोश और दारयुश के शासनकाल में लगभग 2500 वर्ष पूर्व किया गया। हख़ामनी वंश शासनकाल में ईरानियों ने प्रशासन एवं नगरीय विकास में काफ़ी प्रगति कर ली थी। उपलब्ध मानचित्रों के अनुसार ईरानी भूभाग अपने इतिहास में उस समय सबसे विस्तृत था। ईरान के विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंच के लिए मार्गों का निर्माण एवं डाक सेवा की स्थापना इरानियों के महत्वपूर्ण कार्यों में से थे। उस समय राजधानी से दूर दराज़ क्षेत्रों तक प्रशासनिक पत्राचार बहुत ही कम समय में संभव था और इस कार्य को तीव्रगति घोड़ों एवं संदेशवाहकों द्वारा अंजाम दिया जाता था। मार्गों पर ऐसे विश्राम गृह थे जहां तरो ताज़ा घोड़े उपलब्ध होते थे तथा डाक कर्मचारी सेवा के लिए उपस्थित होते थे। पत्र एक संदेशवाहक से दूसरे संदेशवाहक के हाथों तथा एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव होकर बहुत ही कम समय में पहुंच जाते थे। यही कारण है कि ईरान में यात्रा के लिए एवं डाक भेजने हेतु सुरक्षित एवं उचित मार्ग तथा संगठित प्रशासनिक व्यवस्था मौजूद थी। मोहम्मद और सईद इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं। आरंभ में इस कार्यक्रम के शब्दों पर ध्यान दीजिए।
(अनुवाद करें और दो बार दोहराएं)
درمورد बारे में
حکومت शासन
هخامنشیان हख़ामनी वंश
وضعیت स्थिति
آن زمان उस समय
تو اطلاع داری आपको जानते हैं
من می دانم मैं जानता हूं
سال वर्ष
آنها حکومت می کردند वे शासन करते थे
کوروش कुरोश
معروف ترین अति प्रसिद्ध
پادشاه राजा
دوره काल
زمان समय
پُست डाक
شیوه शैली
امروزی वर्तमान
آن رایج بوده است प्रचलित था
چگونه कैसे
تو می دانی आप जानते हैं
بزرگتر बड़ा
امروز आज
آن بوده است वह रहा है
ارسال भेजना
نامه पत्र
بسته पैकिट
شبکه پستی डाक सेवा
آنها ایجاد کرده بودند उन्होंने स्थापित किया था
مهمتر - مهمترین महत्वपूर्ण अति महत्वपूर्ण
اداری कार्यलाय
حکومتی प्रशासनिक
راه मार्ग
راهها मार्गों
ایمن सुरक्षित
مناسب उचित
آن لازم بود वह आवश्यक था
تازه ताज़ा
من فهمیدم मैं समझ गया
چه چیزی क्या चीज़
تو صحبت می کنی आप बात कर रहे हैं
تو می خواهی صحبت کنی आप बात करना चाहते हैं
تو حرف بزنی आप बात करें
باستانی प्राचीन
آن نام دارد उसका नाम था
جاده मार्ग
جاده شاهی राज्य मार्ग
مخصوص विशेष
پادشاهان राजाओं
شاید शायद
دلیل तर्क
آنها می گفتند वे कहते थे
فرمان आदेश
آن ساخته شده است उसका निर्माण किया गया है
طول लम्बा
جاده मार्ग
کیلومتر किलो मीटर
آن بوده است वह रहा है
چقدر कितना
طولانی लम्बाई
البته यद्पि
آن تعجب ندارد उसमें आश्चर्य नहीं है
بسیار بزرگ बहुत बड़ा
بندر बंदरगाह
یونان यूनान
شهر नगर
سارد सारद
آن متصل می کرده است . वह जोड़ता था
अब मोहम्मद और सईद के पास चलते हैं और उनकी बातचीत सुनते हैं। कृपया ध्यान से सुनिए।
(अनुवाद करें और दो बार दोहराएं)
سعید - آیا تو درمورد حکومت هخامنشیان و وضعیت ایران در آن زمان ، اطلاعی داری
सईद-क्या तुम्हें हख़ामुनी वंश और उस काल के बारे में जानकारी है
محمد - بله ، می دانم که هخامنشیان دو هزار و پانصد سال پیش بر ایران حکومت می کردند
मोहम्मद- हां, मैं मुझे मालूम है कि 2500 पूर्व हख़ामुनी ईरान पर शासन करते थे
سعید - کوروش ، معروفترین پادشاه آن دوره است، در زمان او ، پُست به شیوه امروزی رایج بوده است
सईद- उस काल का सबसे प्रसिद्ध राजा कुरोश है, उसके काल में डाक की वर्तमान व्यवस्था थी
محمد – چگونه
मोहम्मद- कैसे
سعید - می دانی که ایران در زمان هخامنشیان بسیار بزرگتر از ایران امروز بوده است
सईद- तुम तो जानते हो कि हख़ामुनी वंश काल में ईरान वर्तमान ईरान से बहुत बड़ा था
محمد - پس برای ارسال نامه ها و بسته ها ، شبکه پستی ایجاد کرده بودند
मोहम्मद- इस लिए पत्र और पैकेट भेजने हेतु डाक सेवा की व्यवस्था थी
سعید - بله ، مهمتر از همه ، نامه های اداری و حکومتی بود ، برای ارسال نامه ها ، راههای ایمن و مناسب ، لازم بود
सईद- हां, सहसे महत्वपूर्ण यह है कि वह सरकारी एवं प्रशासनिक पत्र थे, पत्रों को भेजने के लिए सुरक्षित एवं उचिन मार्ग थे
محمد - تازه فهمیدم درباره چه چیزی می خواهی صحبت کنی ، می خواهی درباره راههای ایران حرف بزنی
अब मैं समझा कि तुम किस बारे में बात करना चाहते हो, तुम ईरान के मार्गों के बारे में बात करना चाहते हो
سعید - بله ، مهمترین و معروفترین راه باستانی ایران ، جاده شاهی نام دارد
सईद- हां, सबसे महत्पूर्म एवं सबसे प्रसिद्ध प्राचीन ईरान के मार्ग का नाम शाही मार्ग है
محمد - آیا این جاده مخصوص پادشاهان هخامنشی بوده است
मोहम्मद- क्या यह मार्ग हख़ामनी राजाओं के लिए विशेष था
سعید - نه ، شاید به این دلیل به آن جاده شاهی می گفتند که این جاده به فرمان کوروش و در زمان حکومت وی ساخته شده است ، طول این جاده 2400 کیلومتر بوده است
सईद- नहीं, हो सकता है इस लिए उसे शाही मार्ग कहते हों कि वह कुरोश के शासनकाल में और उसके आदेशानुसार बनाया गया था
محمد - این راه چقدر طولانی بوده ! البته تعجبی ندارد ، چون ایران در آن زمان بسیار بزرگ بوده است
मोहम्मद- यह मार्ग कितना लम्बा था, यद्यपि आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि ईरान उस समय बहुत बड़ा था
سعید - بله ، این راه ، یکی از بندرهای یونان را به شهر " سارد " در ایران متصل می کرده است
सईद- हां, यह मार्ग यूनान की एक बंदरगाह को ईरान के सारद नगर से जोड़ता था
जिस प्रकार मोहम्मद और सईद ने अपनी बातचीत में संकेत किया कि एक नगर से दूसरे नगर की यात्रा एवं पत्रों के भेजने के लिए उचित मार्गों की आवश्यकता थी। उस समय अपने शासन क्षेत्र की स्थिति की जानकारी के लिए कुरोश ने ईरान में बहुत से मार्गों के निर्माण का आदेश दिया। इन मार्गों पर अनेक डाकिया घर बने हुए थे कि जहां सदैव ताज़ा दम घोड़े तैयार रहते थे। इस कारण विश्व में ईरानियों को डाक व्यवस्था का प्रथम संस्थापक कहा जा सकता है। उस समय ईरान के विकास के लिए अधिक प्रयास किये गये। यूनान के प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोडोटस ने ईरानी मार्गों और विश्रामगृहों में उपलब्ध सुविधाओं एवं व्यवस्था की बहुत प्रशंसा की है। हेरोडोटस एवं दूसरे एतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ईरान की राजधानी और दूसरे नगरों को जोड़ने वाले अनेक मार्ग थे इसी प्रकार छोटे और बड़े नगरों के बीच भी सड़कें थीं। शाही मार्ग अधिक संख्या वाले नगरों से गुज़रता था। कुछ मार्ग समुद्र से जाकर मिलते थे तथा लोग नावों द्वारा दूसरे क्षेत्रों तक आ जा सकते थे। अधिकांश सड़कें पत्थर की बनी हुई थीं। अनेक मार्गों और विस्तृत प्रशासनिक एवं डाक व्यवस्था के होने से पता चलता है कि प्राचीन काल से ही ईरान की जनता प्रशासनिक नियमों एवं सिद्दांतों से परिचित थी।
इमाम हादी (अ) की शहादत की बरसी
पाक व पवित्र है वह ईश्वर, जिसकी प्रशंसा इंसान उस तरह नहीं कर सकता जिस तरह उसकी प्रशंसा करने का हक़ है।
नहीं की जा सकती और जिसके समान कोई चीज़ नहीं है, इसलिए कि उसके जैसा कोई नहीं है और वह सुनने और देखने वाला है। ईश्वर ने जितना वर्णन स्वयं के बारे में किया है, उसके अलावा उसका कोई वर्णन नहीं किया जा सकता। उसने वजूद एवं अस्तित्व को रूप प्रदान किया, लेकिन उसका कोई रूप नहीं है। उसने स्थान की रचना की, लेकिन उसका अपना कोई स्थान नहीं है और वह इस सीमितता से परे है। वह एक है और उसका कोई साथी नहीं है। उसके नाम और गुण पवित्र एवं पाक हैं।
आज पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पोते इमाम अली नक़ी (अ) की शहादत की बरसी है। इमामत ईश्वर का वरदान है। ईश्वर यह वरदान केवल उन लोगों को प्रदान करता है, जिनका विवेक एकेश्वरवाद पर विश्वास के साथ गूंथा हुआ होता है और उनके दामन पर किसी तरह की बुराई का कोई धब्बा नहीं होता है। यही कारण है कि ईश्वर के दूतों के रूप में धरती पर इमामों की ज़िम्मेदारी केवल धार्मिक नियमों एवं क़ुरान की व्याख्या करना नहीं है, बल्कि उनकी ज़िम्मेदारी का दायरा बहुत विस्तृत है और उसमें समस्त इंसानों का मार्गदर्शन शामिल है। वे उस सूर्य की भांति हैं, जिसकी धूप सब पर एक समान पड़ती है, अब अगर कुछ लोग उसकी धूप से लाभ उठाने के बजाए अपने और उसके बीच कोई रुकावट उत्पन्न कर लेंगे तो नुक़सान उन्हीं का होगा और वे ख़ुद ही मार्गदर्शन के केन्द्र से दूर हो जायेंगे। इमाम अपने उपदेशों और मार्गदर्शन से, जीवन के सूखे पौधे को हरा भरा करते हैं।
इमाम अली इब्ने मोहम्मद हादी और नक़ी के नाम से मशहूर हैं। वे 25 रजब और एक दूसरे कथन के मुताबिक़, 25 जमादिल आख़र को इराक़ के सामर्रा शहर में शहीद हुए। अपने पिता की शहादत बाद, केवल 8 साल 5 महीने की उम्र में अपने महान पिता की ही भांति उन्होंने इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 33 वर्ष तक लोगों का मार्गदर्शन किया। इमाम अली नक़ी (अ) से तत्कालीन दक्ष विद्वानों ने विभिन्न विषयों जैसे कि धर्मशास्त्र, दर्शन एवं इतिहास से संबंधित प्रश्न पूछे, इमाम ने समस्त प्रश्नों के उत्तर इतने सटीक एवं स्पष्ट दिए कि उन्होंने दांतों तले उंगली दबा ली और इमाम की इमामत को स्वीकार किया।
इमाम हादी (अ) की इमामत के दौरान, 6 अब्बासी शासकों ने शासन किया। इन अब्बासी शासकों का व्यवहार, इमाम के साथ विभिन्न रहा। कुछ ने इमाम के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार अपनाया तो कुछ ने संतुलित। हालांकि वे सभी इमाम के हक़ को छीनने और उनके अधिकारों का हनन करने में एक समान थे।
अब्बासी शासकों में से मुतवक्किल सबसे अधिक पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से दुश्मनी रखता था और उन पर अत्याचार करता था। यहां तक कि उसने आदेश दिया कि शिया मुसलमानों के इमामों विशेषकर इमाम हुसैन (अ) की पवित्र क़ब्रों को ध्वस्त कर दिया जाए। उसके आदेश का पालन करते हुए उसके अधिकारियों ने कर्बला में इमाम हुसैन के पवित्र मज़ार को ध्वस्त कर दिया और उस स्थान पर खेती शुरू कर दी।
मुतवक्किल मदीने में इमाम हादी (अ) की उपस्थिति से भयभीत था, उसे डर था कि कहीं इमाम राजनीतिक गतिविधियां शुरू न कर दें। उसने इसीलिए एक साज़िश रची और इमाम को देश निकाला दे दिया और मदीने से सामर्रा भेज दिया। सामर्रा में इमाम हादी (अ) को क़ैद कर दिया गया। सामर्रा शहर अब्बासी शासकों की सैन्य छावनी थी और कुछ शासकों ने इसे अपनी राजधानी भी बनाया। इसीलिए इमाम को इस शहर भेजा गया, ताकि इमाम की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जा सके। इमाम हादी को असकरी भी कहते हैं, इसलिए कि वे अपने बेटे इमाम हसन असकरी की भांति सामर्रा की सैन्य छावनी में नज़र बंद रहे। किताबों में इन दो इमामों को असकरिएन के नाम से याद किया गया है।
एक इमाम मासूम की विशिष्टता यह है कि वह ज्ञान, पवित्रता और नैतिक गुणों से सुसज्जित होता है और समस्त गुणों में अपने समय के समस्त इंसानों से सर्वश्रेष्ठ होता है। यह समस्त विशिष्टताएं इमाम हादी (अ) में पाई जाती थीं। उत्कृष्टता तक पहुंचने के लिए सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का होना ज़रूरी है। इमाम अली नक़ी (अ) का मानना था कि इंसानियत के उत्कृष्ट उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए लोगों को ज्ञान हासिल करना चाहिए, इसलिए कि ज्ञान के बिना कोई भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता। वे फ़रमाते हैं, विद्वान एवं विद्यार्थी विकास में भागीदार होते हैं।
इमाम हादी (अ) विद्वानों का अधिक सम्मान करते थे और उन्हें प्रकाश एवं ज्ञान का स्रोत बताते थे। इमाम (अ) फ़रमाते थे, ईश्वर जिस प्रकार से मोमिन को ग़ैर मोमिन पर प्राथमिकता देता है, वैसे ही ज्ञानी मोमिन को अज्ञानी मोमिन पर विशिष्टता प्रदान करता है। ईश्वर ज्ञानी मोमिनों को उच्च स्थान प्रदान करता है।
इस्लाम के अनुसार, इंसान हर समय और हर स्थान पर ईश्वर के सामने उपस्थित होता है, लेकिन ईश्वर ने अपने बंदों को ख़ुद से अधिक निकट करने और उनकी सुख सविधा के लिए समय और स्थान का निर्धारण कर दिया है। इमाम हादी (अ) पवित्र स्थलों के महत्व को बयान करते हुए फ़रमाते हैं, ईश्वर के निकट कुछ स्थान पवित्र हैं, जहां वह दुआ को स्वीकार करता है। इसलिए जो कोई भी वहां दुआ करता है वह उसे स्वीकार कर लेता है, ऐसे ही स्थानों में से एक इमाम हुसैन (अ) का पवित्र रौज़ा है।
ईरान में नव वर्ष या नौरोज़, ऐसे पवित्र स्थलों की ज़ियारत का बेहतरीत अवसर होता है। ईश्वरीय प्रतिनिधियों के अनुसार, ख़ुशी और मनोरंजन, इंसान की प्रवृत्ति में शामिल है और यह उसका जन्म सिद्ध अधिकार है, जिससे उसके मन को ताज़गी प्राप्त होती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हमेशा ख़ुश रहते थे और इसके महत्व पर बल देते थे। उनके परिजन भी आत्मा की शुद्धि एवं ख़ुशहाली के लिए ख़ुश रहने पर बल देते थे। वे इसके लिए लोगों का मार्गदर्शन करते थे, जिससे मोमिनों के दिलों में ईश्वर की मोहब्बत की कलियां खिल जाती थीं।
इमाम हादी (अ) जब भी सुनते थे कि किसी शख़्स ने अपने किसी परिजन के साथ भलाई की है या किसी मोमिन को प्रसन्न किया है या अपने किसी भाई की किसी समस्या का समाधान किया है, तो बहुत प्रसन्न होते थे और अपनी इस प्रसन्नता से अपने अनुयाइयों को अवगत कराते थे, ताकि वे भी इसका अनुसरण करें। इसहाक़ जल्लाब का कहना है कि बक़रईद के अवसर पर आठ ज़िलहिज्जा को मैंने इमाम हादी (अ) के लिए एक बड़ी संख्या में भेड़ें ख़रीदीं, उन्होंने इन भेड़ों को अपने रिश्तेदारों में बांट दिया।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि खिला हुआ चेहरा, मीठी और सच्ची बात, सुन्दरता, उत्कृष्टता एवं सम्मान मासूम इमामों की लोकप्रियता के कारण थे और इससे लोगों के दिलों में उनका सम्मान था। इमाम हादी (अ) की विशिष्टताओं के बारे में इब्ने शहर आशोब लिखते हैं, ख़ुश अख़लाक़ी के दृष्टिगत, इमाम हादी (अ) सर्वश्रेष्ठ थे, सबसे सच्चे थे, निकट से देखने में बहुत ही सुन्दर और दूर से देखने में संपूर्ण थे। जब वे ख़ामोश रहते थे तो उनका जलाल देखने योग्य होता था और जब बात करते थे तो उनकी महानता उजागर होती थी।
इमाम हादी (अ) के समय में, परिस्थितियां बहुत जटिल थीं, जिसके कारण राजनीतिक गतिविधियों के लिए काफ़ी सीमितताएं थीं, लेकिन हज़रत ने कोई अवसर हाथ से जाने नहीं दिया और अपनी राजनीतिक गतिविधियां भी जारी रखीं। उनका मानना था कि दृष्टिकोण, कर्मों एवं कार्यक्रमों की शुद्धता के लिए एक आईना है। इस दौरान शिया मुसलमानों के दसवें इमाम ने ऐसे विद्वानों की प्रशिक्षण की जिनका नाम इतिहास में दर्ज है। शेख़ तूसी ने इमाम (अ) के शिष्यों और साथियों की संख्या 190 बताई है।
आख़िरकार, अब्बासी शासक मोतिज़ ने इमाम अली नक़ी (अ) के पवित्र वजूद को इससे ज़्यादा सहन नहीं किया और उन्हें ज़हर देकर शहीद कर दिया। धार्मिक ग्रंथों में शहादत को बेहतरीन मौत क़रार दिया गया है। यह वह मौत है जिसे ईश्वर के लिए पूरे विवेक के साथ गले लगाया जाता है। अधिकांश ईश्वरीय दूतों को यह गर्व हासिल रहा है और उन्होंने शहीद होकर मुर्दा समाज में नई रूह फूंकी है।
इमाम हादी (अ) भी अन्य इमामों की भांति, शहीद हुए। उन्हें उनके ही घर में उनके उपास्ना स्थल में दफ़्ना दिया गया। हर साल करोड़ों मुसलमान सामर्रा में उनके भव्य रौज़े की ज़ियारत करने जाते हैं। हम इमाम (अ) के इस सुन्दर कथन के साथ अपनी बात ख़त्म करते हैं, शिष्टाचार, बेहतरीन नेकी और भलाई है।
नया वर्ष 'ईरानी उत्पाद के समर्थन का साल'
ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने नए हिजरी शम्सी साल की शुरुआत पर अपने एक संदेश में देशवासियों विशेष रूप से शहीदों के परिवारों, युद्ध के घायलों, तथा देश की वैज्ञानिक प्रगति के इंजन का काम करने वाले और आशाओं के स्रोत युवाओं को बधाई दी।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने सहर्ष व मधुर नौरोज़ तथा भलाई और बरकतों से संतृप्त साल की कामना करते हुए नए वर्ष को ईरानी उत्पाद के समर्थन का साल घोषित किया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने बीते हिजरी शम्सी साल 1396 के उतार चढ़ाव और कटु व मधुर घटनाओं का मूल्यांकन करते हुए इसे ईरानी राष्ट्र की उपस्थिति, शक्ति और महानता के प्रकटीकरण का साल बताया। उन्होंने कहा कि इस साल के शुरू में देश के 40 मिलियन से अधिक लोगों ने राष्ट्रपति व काउंसिल चुनावों में बहुत शानदार, महान और आंखों को चकाचौंध कर देने वाली उपस्थिति दर्ज कराई तथा उपस्थिति क़ुद्स दिवस के जुलूसों, 30 दिसम्बर की रैलियों और सबसे बढ़कर 11 फ़रवरी के जुलूसों में जारी रही।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस साल के अंतिम महीनों में अंशाति फैलाने की दुशमनों की विफल योजनाओं और कोशिशों का हवाला देते हुए उपद्रव की घटनाओं के ख़िलाफ़ आज जन की रैलियों को सभी मैदानों में ईरान की महान, दूरदर्शितापूर्ण, विवेकपूर्ण तथा कामों के लिए तैयार रहने वाली जनता की स्थायी उपस्थिति का परिचायक बताया। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरानी राष्ट्र यहां तक कि वह लोग जिनकी आड़ में शत्रुओं ने उपद्रव फैलाने की कोशिश की उपद्रव फैलाने वालों के ख़िलाफ़ डट गए और इस घटना से ईरानी राष्ट्र की महानता को और भी स्पष्ट कर दिया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का कहना था कि बीते साल में इस्लामी गणतंत्र ईरान की एक और बड़ी उपलब्धि यह थी कि उसने क्षेत्रीय ख़तरों को अवसरों में बदल दिया। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय ख़तरों का एक लक्ष्य ईरान पर वार करना था लेकिन इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था ने इन ख़तरों से देश को नुक़सान भी नहीं पहुंचने दिया बल्कि उन्हें अवसरों में बदल दिया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने बीते साले के नारे अर्थात प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था पैदावार व रोज़गार को व्यवहारिक बनाने के लिए की जाने वाली कोशिशों को भी इस साल की सार्थक और सकारात्मक घटनाओं में शुमार करते हुए कहा कि पैदावार और रोज़गार के लिए बड़े अच्छे काम अंजाम दिए गए और साल के नारे पर किसी हद तक हमल हुआ अलबत्ता अभी बहुत से काम बाक़ी हैं जिन्हें पूरा करने तक इस नारे पर काम जारी रखना चाहिए।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने नए साल में जनता और अधिकारियों के प्रयासों की दिशा और ख़ाका निर्धारित करते हुए कहा कि साल के लिए नारों के संदर्भ में मैं आम तौर पर देश के अधिकारियों को संबोधित करता रहा हूं लेकिन इस साल मैं अधिकारियों समेत पूरे राष्ट्र को संबोधित कर रहा हूं, सब को चाहिए कि भरपूर मेहनत और काम करें।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि घरेलू उत्पादन रफ़तार पकड़ ले तो आम जन की जीवनयापन की बहुत सी समस्याएं जैसे रोज़गार और निवेश की समस्याएं हल हो जाएंगी तथा सामाजिक विसंगतियों में भी कमी आएगी, इसी लिए मैंने नए साल का नाम और नारा ईरानी उत्पाद का समर्थन निर्धारित किया है।
ईरान की इस्लामी क्रान्ति ने क्षेत्र के राष्ट्रों को उनकी पहिचान का आभास कराया
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुहम्मद हसन अबू तुराबी फ़र्द ने कहा कि ईरान की क्षेत्रीय शक्ति इस्लाम की शक्ति तथा क़ुरआन की शिक्षाओं से प्राप्त की गई है और इस शक्ति ने फ़िलिस्तीन, यमन, सीरिया, लेबनान तथा इराक़ के राष्ट्रों को भी उनकी पहिचान का आभास कराया है।
हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुहम्मद हसन अबू तुराबी फ़र्द ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि ईरानी राष्ट्र की राजनैतिक स्वाधीनता एक मूल्यवान ख़ज़ाना है, अमरीका के राष्ट्रपति कहते हैं कि ईरान की क्षेत्रीय शक्ति अमरीका के लिए चिंता का विषय है, जबकि यह शक्ति इस्लाम तथा क़ुरआन की शिक्षाओं से प्राप्त की गई है और इसने क्षेत्र के राष्ट्रों तथा प्रतिरोध को पहिचान प्रदान की है।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि ईरान की प्रतिष्ठा इस देश के न्यायप्रेमी और संस्कारी नेताओं की देन है, इस्लामी क्रान्ति ने जो कुछ प्राप्त किया है वह अपने नेता और जनता से प्राप्त किया है तथा इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की पूरी शक्ति इन्हीं दो मूल्यवान रत्नों से मिली ह।
हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुहम्मद हसन अबू तुराबी फ़र्द कहा कि आज अमरीका के विस्तारवादी मोर्चे के मुक़ाबले में जो क्षेत्र और दुनिया के स्तर पर ग़ैर क़ानूनों लक्ष्यों के लिए प्रयासरत है, इस्लामी प्रतिरोधक मोर्चा नेता और जनता के मज़बूत संबंधों की वहज से डटा हुआ है।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने नए हिजरी शम्सी साल 1397 को ईरानी उत्पाद के समर्थन का साल घोषित किया है, उन्होंने ईरानी उत्पाद का समर्थन किए जाने पर ज़ोर देते हुए कहा कि ईरानी उत्पाद उत्तम क्वालिटी के साथ और कम ख़र्च पर तैयार होना चाहिए।
इस क्षेत्र में अमरीकी की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी , वरिष्ठ फ़ोटो
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि चालीस वर्ष बीत जाने के बाद आज ईरान की इस्लामी क्रांति न केवल यह कि बूढ़ी नहीं हुई बल्कि यह उसके यौवन का काल है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बुधवार को पवित्र नगर मशहद में पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रोज़े पर श्रद्धालुओं के मध्य अपने एक भाषण में ईरान की इस्लामी क्रांति के मूल सिद्धान्तों, स्वाधीनता, आज़ादी , प्रजातंत्र, आत्मविश्वास, न्याय और सब से महत्वपूर्ण इस्लामी शिक्षाओं के पालन पर बल दिया और कहा कि यह सारे सिद्धान्त और नारे पूरी ताज़गी के साथ सुरक्षित हैं।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान पर 200 वर्षों तक विदेशियों का वर्चस्व था इस लिए देश की जनता की सब से बड़ी इच्छा, स्वाधीनता थी और आज हम यह कह सकते हैं कि आज दुनिया के किसी राष्ट्र के पास, ईरानी राष्ट्र की तरह स्वाधीनता नहीं है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान के बारे में विश्व बैंक की ओर से जारी किये गये कुछ आंकड़े पेश करते हुए, ईरान में क्रांति की सफलता के बाद होने वाली प्रगति का उल्लेख किया और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में देश में किये गये कामों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने बेहद दबाव के बावजूद सामाजिक न्याय स्थापना के क्षेत्र में बड़े काम किये हैं और अच्छी तरक़्क़ी है लेकिन हमें जिस की आशा है वह वर्तमान स्थिति से अधिक है।
वरिष्ठ नेता ने ईरानी नववर्ष के नारे " ईरानी उत्पाद का समर्थन " का उल्लेख करते हुए इस नारे के विभिन्न आयामों को स्पष्ट किया।
वरिष्ठ नेता ने क्षेत्रीय परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए कहा कि पिछले वर्ष इस्लामी गणतंत्र ईरान ने ईरानी राष्ट्र की ताक़त की पताका क्षेत्र में लहरायी और तकफीरी आतंकवाद की कमर तोड़ने में मुख्य भूमिका निभाई ।
नौरोज़ के अवसर पर वरिष्ठ नेता का पूरा संदेश पढ़ने के लिए क्लिक करेंः नौरोज़ के अवसर पर इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का संबोधन, नए साल का नारा 'ईरानी उत्पाद का समर्थन'
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान इलाक़े में अमरीकी साज़िशों को नाकाम बनाने में सफल रहा है जो दाशइ को अस्तित्व में लाकर ज़ायोनी शासन से लोगों का ध्यान हटाना और इलाक़े के लोगों को एक दूसरे से भिड़ाने का प्रयास कर रहा था।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि हम ने इलाक़े की जो भी मदद की है वह तार्किक कारणों और सूझ बूझ पर आधारित थी और किसी भी रूप में भावनात्मक नहीं थी, हमें कामयाबी मिली लेकिन हमारा इरादा किसी भी देश में दखल देने का नहीं था, हम जहां भी गये उस देश की सरकार की इच्छा के अनुसार गये।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस क्षेत्र में अमरीका की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी और हमारे उद्देश्य ज़रूर पूरे होंगे।
तेहरान के इमामे जुमा ने कहा है कि दुश्मन इस्लामी व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने की साज़िश रच रहा है
तेहरान के इमामे जुमा ने जुमे की नमाज़ के ख़ुतबों में कहा है कि दुश्मन, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से इस्लामी व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने की साज़िश रच रहा है।
आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी का कहना था कि इस्लामी व्यवस्था के दुश्मन, न्यायपालिका, संसद और सुरक्षा बलों को नुक़सान पहुंचाना चाहता है, इसलिए पूरे राष्ट्र को चाहिए कि मिलकर इस साज़िश का मुक़ाबला करे।
आयतुल्लाह काशाना ने कहा, आध्यात्मिकता में शांति व ईश्वर की इबादत शामिल है और यह ईश्वर की महत्वपूर्ण अनुकंपा है।
उन्होंने कहा कि अधिकारियों को चाहिए कि वे लोगों की आर्थिक समस्याओं का समाधान निकालें।
ईरान के एक वरिष्ठ धर्मगुरु, ग़ुलाम रज़ा मिसबाही मुक़द्दम ने जुमे की नमाज़ से पहले अपने भाषण में कहा, कुछ क्षेत्रीय देश हर वर्ष विश्व की बड़ी शक्तियों से अरबों डॉलर के हथियार ख़रीदते हैं, इसके बावजूद, ईरानी सेना और आईआरजीसी ने रक्षा क्षेत्र में असामान्य प्रगति की है और विश्व की बड़ी शक्तियों को हैरान कर दिया है।
अमरीकी व ज़ायोनी धावे के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र की दृढ़ता का राज़ वरिष्ठ नेता की नज़र में ...
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने ईश्वर पर आस्था और उससे डर को अमरीकी और ज़ायोनी धावे से मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र की दृढ़ता का राज़ बताया।
गुरुवार को इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली असेंब्ली के अध्यक्ष व सदस्यों ने तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई से मुलाक़ात की जिसमें वरिष्ठ नेता ने अमरीका और ज़ायोनीवाद के सांस्कृतिक, राजनैतिक, वित्तीय, सैन्य व सुरक्षा की दृष्टि से बड़े मोर्चे से निपटने में ईरान की दृढ़ता का स्रोत ईरानी जनता व जवान नस्ल में ईश्वर पर आस्था और उसका डर बताया।
उन्होंने सत्य के मोर्चे के प्रति ईश्वर के साथ को निश्चित वादा और इसी वादे को सत्य के मोर्चे के लिए ख़ुशी की वजह बताते हुए बल दिया कि ईश्वर के इस निश्चित वादे के पूरा होने की शर्त यह है कि धर्मगुरु, व्यवस्था के अधिकारी और शिक्षा व प्रचार तंत्र ईश्वर पर आस्था रखने वाले समाज के प्रशिक्षण के अपने कर्तव्य को निभाए और वह ख़ुद भी ईश्वर पर आस्था को अपने व्यवहार से साबित करे, मेहनत करे, दृढ़ता दिखाए और रईसाना ज़िन्दगी से दूरे रहे।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने दुश्मन के चौतरफ़ा धावे के मद्देनज़र ईरान के सामने राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व सुरक्षा की नज़र से संघर्ष को सख़्त बताते हुए कहा कि एकेश्वरवाद, सामाजिक न्याय, अत्याचार से संघर्ष, पीड़ितों का समर्थन सहित इस्लामी व्यवस्था की आकांक्षाएं और इस्लामी गणतंत्र के वजूद के कारण धर्म के दुश्मन धावा बोलते हैं और ऐसा पूरे इतिहास में हमेशा से होता आया है कि सत्य के मोर्चे के मुक़ाबले में असत्य का मोर्चा होता है और पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में भी इसका वर्णन है।
वरिष्ठ नेता ने सत्य-असत्य के बीच निरंतर मुक़ाबले में सत्य की जीत के ईश्वर के निश्चित वादे का उल्लेख करते हुए कहा कि इस वादे के पूरा होने के लिए शर्त यह है कि ईश्वर पर आस्था रखने वाले सच्ची नियत, धैर्य, जागरुकता, साहस और दृढ़ता का परिचय दें कि इन शर्तों के पालन से इस वादे का पूरा होना अटल ईश्वरीय परंपरा है।