
رضوی
हम हर खतरे का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं
इस्लामी गणराज्य ईरान के ख़ातमुल अनबिया एयर डिफेंस हेडक्वार्टर के कमांडर ब्रिगेडियर सुबहाही फ़र्द ने 1404 हिजरी शमसी वर्ष की शुरुआत पर अपने संदेश में कहा है कि ईरानी वायु सेना हर प्रकार के हवाई खतरे का सामना करने के लिए एक मज़बूत दीवार की तरह खड़ी है और ईरान को अपनी इस्लामी सीमाओं की रक्षा करने पर गर्व है।
इस्लामी गणराज्य ईरान की सेना के जनसंपर्क विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिगेडियर अली रज़ा सबाहही फ़र्द ने गुरुवार को अपने नौरोज़ संदेश में मुसलमानों के नेता और सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के लिए सम्मानजनक दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की दुआ करते हुए कहा कि हम परमेश्वर से अपने जिहादी सैनिकों की उपासना और बंदगी को स्वीकार करने की दुआ करते हैं।
वह पूरे इस्लामी ईरान में ईमान से भरे दिलों और जागरूक आंखों के साथ देश की सीमाओं और इस्लामी सत्ता की रक्षा की अग्रिम पंक्तियों में मौजूद हैं।
ब्रिगेडियर सबाहही फ़र्द ने अपने नौरोज़ संदेश में कहा कि नए हिजरी शमसी वर्ष और नौरोज़ अलवी के साथ, जब वसंत की सुगंध आत्मा को महका रही है और प्रकृति की ताजगी और आनंद की वापसी की खुशखबरी दे रही है।
तब पवित्र शबे-क़द्र भी हमारे सामने हैं। इन पवित्र क्षणों में दिल आकाश की ओर उड़ान भर रहे हैं, प्रार्थना और विनती में लगे हुए हैं, और ईश्वर की कृपा और क्षमा की याचना कर रहे हैं।
अलक़सम ब्रिगेड ने तेल अवीव पर मिसाइल हमला किया
हमास के सैन्य विंग, शहीद इज़्ज़ अल-दीन अल-क़सम ब्रिगेड ने आज गुरुवार की शाम को अधिकृत क्षेत्रों में स्थित तेल अवीव शहर पर मिसाइल हमला किया।
अलजज़ीरा नेटवर्क के हवाले से हमास के सैन्य विंग शहीद इज़्ज़ अल दीन अलक़सम ब्रिगेड ने आज गुरुवार की शाम को घोषणा की उन्होंने अधिकृत क्षेत्रों में स्थित तेल अवीव शहर को कई मिसाइलों से निशाना बनाया है।
इन ब्रिगेडों ने जोर देकर कहा कि यह ऑपरेशन फिलिस्तीनी नागरिकों के खिलाफ ज़ायोनी अपराधों के जवाब में किया गया है।इस मिसाइल हमले के बाद तेल अवीव और अधिकृत क्षेत्रों के मध्य क्षेत्र में खतरे की घंटी बज उठी, और बेन गुरियन हवाई अड्डे पर उड़ानों को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया।
ज़ायोनी शासन की सेना ने बुधवार की सुबह से युद्धविराम समझौते का उल्लंघन करते हुए गाजा पट्टी पर अपने सैन्य आक्रमण फिर से शुरू कर दिए हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन हमलों के कारण अब तक 710 फिलिस्तीनी नागरिक शहीद हो चुके हैं और 900 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। ज़ायोनी शासन की आक्रामकता को फिर से शुरू करने की वैश्विक स्तर पर निंदा की गई है।
इज़रायल का समर्थन करके अमेरिका मानव विनाश के रास्ते पर चल रहा है
पूर्व संघीय शिक्षा मंत्री और इस्लामिक डेमोक्रेटिक फ्रंट के अध्यक्ष सैयद मुनीर हुसैन गिलानी ने कहा है कि इमाम हसन अमीर-उल-मोमिनीन हजरत अली के परिवार की पहली संतान हैं। कर्बला हमें आजादी का पाठ पढ़ाता है। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर मुस्लिम देशों की चुप्पी खेदजनक है।
पूर्व संघीय शिक्षा मंत्री और इस्लामिक डेमोक्रेटिक फ्रंट के अध्यक्ष सैयद मुनीर हुसैन गिलानी ने कहा है कि इमाम हसन अमीर-उल-मोमिनीन हज़रत अली के परिवार में पहली संतान हैं। कर्बला हमें आजादी का पाठ पढ़ाता है। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर मुस्लिम देशों की चुप्पी खेदजनक है।
उन्होंने कहा कि इजरायल एक ज़ायोनी राज्य है जो फिलिस्तीनी भूमि पर कब्जा कर रहा है। अमेरिका मानव विनाश की राह पर है।
पूर्व संघीय मंत्री ने कहा कि इजरायल का समर्थन करने वाले देश मानवीय और कूटनीतिक मूल्यों का पालन नहीं कर रहे हैं। गाजा की माताएं और बहनें मुस्लिम देशों की ओर देख रही हैं।
उन्होंने ये विचार कारवान हुसैनी द्वारा आयोजित इमाम हसन (अ.स.) के जन्मदिन समारोह और इफ्तार रात्रिभोज में अपने भाषण में व्यक्त किये।
समारोह को संबोधित करते हुए लाहौर चैंबर के अध्यक्ष मियां अबुजर शाद, मियां अंजुम निसार, मंजूर जाफरी और अन्य ने कहा कि देश अपने संसाधनों पर भरोसा करके विकास कर सकता है।
रमज़ान महीने की फ़ज़ीलत पर मासूमीन (अ) की हदीसें
पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: " لَوْ یَعْلَمُ الْعَبْدُ ما فِی رَمَضانِ لَوَدَّ اَنْ یَکُونَ رَمَضانُ السَّنَة लो यअलमुल अब्दो मा फ़ी रमज़ाने लवद्दा अय यकूना रमज़ानुस सनता " यदि कोई व्यक्ति रमजान के महीने की बरकतों और वास्तविकताओं से अवगत होता, तो वह चाहता कि पूरा वर्ष रमजान का महीना हो।
अल्लाह के रसूल (स) ने रमज़ान उल मुबारक के महीने की खूबियों के बारे में बहुत ही खूबसूरत कथन कहे हैं, जिनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया गया है।
पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:
" لَوْ یَعْلَمُ الْعَبْدُ ما فِی رَمَضانِ لَوَدَّ اَنْ یَکُونَ رَمَضانُ السَّنَة लो यअलमुल अब्दो मा फ़ी रमज़ाने लवद्दा अय यकूना रमज़ानुस सनता "
यदि कोई व्यक्ति रमजान के महीने की बरकतों और वास्तविकताओं से अवगत होता, तो वह चाहता कि पूरा वर्ष रमजान का महीना हो।
اِنَّ اَبْوابَ السَّماءِ تُفْتَحُ فی اَوَّلِ لَیْلَةٍ مِنْ شَهْرِ رَمَضانِ وَ لا تُغْلَقُ اِلی آخِرِ لَیْلَةٍ مِنْهُ. इन्ना अब्वाबस समाए तुफ़्तहो फ़ी अव्वले लैलतिम मिन शहरे रमजाने वला तुग़लक़ो ऐला आख़ेरे लैलतिम मिन्हो
स्वर्ग के द्वार रमजान माह की पहली रात को खुल जाते हैं और आखिरी रात तक बंद नहीं होते।
لَوْ عَلِمْتُم مالَکُم فِی رَمَضانِ لَزِدْتُم لِلّه تَبارَکَ و تَعالی شُکْرا. लौ अलिमतुम मालकुम फ़ी रमज़ाने लज़िदतुम लिल्लाहे तबारका व तआला शुक्रन
यदि आप जान लें कि रमज़ान के महीने में आपके लिए क्या लिखा गया है, तो आप सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति अत्यंत आभारी होंगे।
وَ کَّلَ اللّه ُ مَلائِکَةً بِالدُّعاءِ لِلصّائِمین؛ वक्कलल्लाहो मलाएकतन बिद्दुआऐ लिस्साऐमीन
अल्लाह तआला रोज़ा रखने वालों के लिए दुआ करने हेतु स्वर्गदूतों को नियुक्त करता है।
हज़रत अली (उन पर शांति हो) ने फ़रमाया:
صَوْمُ الْقَلْبِ خَیْرٌ مِنْ صِیامِ اللِّسانِ و صِیامُ اللِّسانِ خَیْرٌ مِنْ صِیامِ الْبَطْن. सौमुल क़ल्बे ख़ैरुम मिन सेयामिल लेसाने व सेयामुल लेसाने ख़ैरुम मिन सेयामिल बत्ने
दिल का रोज़ा ज़बान के रोज़े से बेहतर है और ज़बान का रोज़ा पेट के रोज़े से बेहतर है।
صَوْمُ النَّفْسِ عَنْ لَذّاتِ الدُّنیا اَنْفَعُ الصِّیامِ. सौमुन नफ़्से अन लज़्ज़ातिद दुनिया अनफ़्उस सेयामे
नफस का सांसारिक सुखों से दूर रहना सबसे लाभकारी रोज़ो में से एक है।
الصِّیامُ اِجْتِنابُ الْمَحارِمِ کَما یَمْتَنِعُ الرَّجُل مِنَ الطَّعامِ وَالشَّرابِ. अस्सयामो इज्तेनाबुल महारेमे कमा यमतनेउर रजोले मिनत तआमे वश्शराबे
रोज़ा उन चीज़ों से परहेज़ करने का कार्य है जिन्हें अल्लाह ने मना किया है, ठीक उसी तरह जैसे इस महीने के दौरान व्यक्ति खाने-पीने से परहेज़ करता है।
इमाम बाकिर (अ.स.) ने फ़रमाया:
«الصِّیام وَالْحَجُّ تَسْکینُ الْقُلُوبِ؛ अस्सयामो वल हज्ज़ो तस्कीनुल क़ुलूबे
रोज़ा और हज दिलों को शांति देते हैं।
इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) ने फ़रमाया:
غُرَّةُ الشُّهُورِ شَهْرُ رَمَضان و قَلْبُ شَهرِ رَمَضان لَیْلَةُ الْقَدْرِ. ग़ुर्रतुश्शोहूरे शहरो रमज़ाने व क़ल्बो शहरे रमज़ाने लैलतुल कद्रे
सबसे पुण्य महीना रमज़ान का महीना है और रमज़ान के महीने का हृदय शब ए कद्र है।
نِعْمَ الشَّهْرُ رَمَضانُ کانَ یُسَمّی عَلی عَهْدِ رَسُولِ اللّه الْمَرْزُوقُ. नेअमश शहरो रमज़ानो काना योसम्मा अला अहदे रसूलिल्लाहिल मरज़ूक़ो
रमज़ान कितना अद्भुत महीना है. पैगम्बर मुहम्मद (स) के समय में इसे नेमतो का महीना कहा जाता था।
इमाम हादी (अ.स.) ने फ़रमाया:
فَرَضَ اللّه ُ تَعالی الصَّوْمَ لِیَجِدَ الْغَنِیُّ مَسَّ الْجُوع لِیَحْنُو عَلَی الْفَقِیرِ. फ़रजल्लाहो तआलस सौमा लेयजेदल ग़निय्यो मस्सल जूए लेयहनू अलल फ़क़ीरे
अल्लाह तआला ने रोज़े को अनिवार्य बनाया है ताकि अमीर लोग भूख महसूस कर सकें और फिर गरीबों और जरूरतमंदों से प्यार कर सकें।
इत्रे क़ुरआन (12) लोगों से बुरे कर्म छुपाते हैं, लेकिन अल्लाह से नहीं
यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि वे हमेशा अल्लाह की निगरानी में हैं और अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए तैयार रहें। अल्लाह से कोई भी चीज़ छुपाना संभव नहीं है, इसलिए हर काम नेक नीयत से करना चाहिए।
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम
يَسْتَخْفُونَ مِنَ النَّاسِ وَلَا يَسْتَخْفُونَ مِنَ اللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمْ إِذْ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرْضَىٰ مِنَ الْقَوْلِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطًا. यस्तखफ़ूना मेनन नासे वला यसतख़फ़ूना मेनल्लाहे व होवा मअहुम इज़ योबय्येतूना मा ला यरज़ा मेनल कौले व कानल्लाहो बेमा यअमलूना मोहीता (नेसा, 108)
विषय: अल्लाह की हर समय मौजूदगी और इंसानी कर्मों की जवाबदेही
पृष्ठभूमि: यह आयत उन मुसलमानों और मुनाफिकों (पाखंडियों) के लिए नाजिल हुई, जो अपने बुरे कर्म इंसानों से छुपाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अल्लाह से उन्हें नहीं छुपा सकते।
तफ़सीर: इस आयत में "इस्तिख़फा" (छुपाना) का ज़िक्र किया गया है। यह तब होता है जब इंसान किसी के खिलाफ साजिश करे और उसे दूसरों से छुपाने की कोशिश करे। इंसान भले ही दूसरों से अपने काम छुपा ले, लेकिन अल्लाह से कुछ छुपाना असंभव है।
वे रातों को जागकर बुरे इरादे और नापसंद कार्यों की योजनाएँ बनाते हैं। लेकिन अगर कोई गुनाह करने से पहले यह सोचे कि वह उस इंसाफ करने वाले अल्लाह के सामने है, जिसके सामने उसे एक दिन हाज़िर होना है, तो वह कभी गुनाह नहीं करेगा।
महत्वपूर्ण बातें:
इंसानों से छुपाना संभव है, लेकिन अल्लाह से नहीं।
अल्लाह की हर समय मौजूदगी इंसान को गलत कार्यों से बचने की सीख देती है।
अल्लाह हर चीज़ का घेराव किए हुए है, इसलिए कर्मों के इनाम और सज़ा से कोई नहीं बच सकता।
परिणआम:
यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि वे हमेशा अल्लाह की निगरानी में हैं और अपने कर्मों की जवाबदेही के लिए तैयार रहें। अल्लाह से कुछ भी छुपाना मुमकिन नहीं, इसलिए हर कर्म नेक नीयत और खालिस इरादे से करना चाहिए।
सूर ए नेसा की तफसीर
क्यों मारी गयी हज़रत अली पर तलवार
उन्नीस रमज़ान वह शोकमयी तिथि है जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर विष भरी तलवार मारी गयी। हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के परिजनों में अत्यन्त वरिष्ठ व्यक्ति और इस्लामी शासक थे। वही अली जिनकी महानता की चर्चा इस्लामी जगत में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के विद्वानों और इतिहासकारों द्वारा भी की जाती है। वही अली जिनकी सत्यता, अध्यात्म, साहस, वीरता, धैर्य, समाज सेवा एवं न्यायप्रियता आदि की गवाही, मित्र ही नहीं शत्रु भी देते थे। एक स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा था कि ईश्वर की सौगन्ध नग्न शरीर के साथ मुझे कांटों पर लिटाया जाए या फिर ज़ंजीरों से बांध कर धरती पर घसीटा जाए तो मुझे यह उससे अधिक प्रिय होगा कि अल्लाह और पैग़म्बर से प्रलय के दिन ऐसी दशा में मिलूं कि मैंने किसी पर अत्याचार कर रखा हो।
अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे व्यक्ति से जो अत्याचार के ऐसे विरोधी और न्याय के इतने प्रेमी थे कि एक ईसाई विद्वान के कथनानुसार अली अपनी न्याय प्रियता की भेंट चढ़ गये। अब प्रश्न यह उठता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम से इतनी शत्रुता क्यों की गयी? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें हज़रत अली (अ) के समय के इतिहास और सामाजिक स्थितियों को देखना होगा। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चाम के पच्चीस वर्षों में इस्लामी समाज कई वर्गों में बंट चुका था। एक गुट वह था जो बिना सोचे समझे सांसारिक दुःख सुख, कर्तव्य सब कुछ छोड़कर केवल नमाज़ और उपासना को ही वास्तविक इस्लाम समझता था और इस्लाम की वास्तविकता को समझे बिना कट्टरवाद को अपनाए हुए था। आज के समय में उस गुट को यदि देखना चाहें तो पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान के तालेबान गुट में "ख़वारिज" नामी उस रूढ़िवादी गुट की झलक मिलती है। दूसरा गुट वह था जो सोच समझकर असीम छल-कपट के साथ इस्लाम के नाम पर जनता को लूट रहा था, उन पर अत्याचार कर रहा था और स्वयं ऐश्वर्य से परिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था। यह दोनों की गुट हज़रत अली के शासन काल में उनके विरोधी बन गये थे। क्योंकि हज़रत अली को ज्ञान था कि मूर्खतापूर्ण अंधे अनुसरण को इस्लाम कहना, इस्लाम जैसे स्वभाविक धर्म पर अत्याचार है और दूसरी ओर चालबाज़ी करके जनता के अधिकारतं का दमन करने तथा बैतुलमाल अर्थात सार्वजनिक कोष को अपने हितों के लिए लुटाने वाला गुट भी इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत कार्य कर रहा है। इस प्रकार वे ख़वारिज तथा मुआविया जो स्वयं को ख़लीफ़ अर्थात इस्लामी शासक कहलवाता था, दोनों की शत्रुता के निशाने पर आ गये थे। ख़वारिज का गुट उनके जैसे विद्वान और आध्यात्मिक को इस्लाम विरोधी कहने लगा था और मुआविया हज़रत अली के व्यक्तित्व से पूर्णता परिचित होते हुए भी उनके न्याय प्रेम के आधार पर उन्हें अपने हितों के लिए बहुत बड़ा ख़तरा समझता था।इस प्रकार ये दोनों ही गुट उन्हें अपने रास्ते से हटाना चाहते थे कई इतिहासकारों का कहना है कि खवारिज के एक व्यक्ति अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने मुआविया के उकसावे में आकर हज़रत अली पर विष में डूबी हुई तलवार से वार किया था। 19 रमज़ान की रात हज़रत अली (अ) मस्जिद से अपने घर आये। आपकी पुत्री हज़रत ज़ैनब ने रोटी, नमक और एक प्याले में दूध लाकर पिता के सामने रखा ताकि दिन भर के रोज़े के पश्चात कुछ खा सकें। हज़रत अली ने जो ये भोजन देखा तो बेटी से पूछा कि मैं रोटी के साथ एक समय में दो चीज़ें कब खाता हूं। इनमें से एक उठा लो। उन्होंने नमक सामने से उठाना चाहा तो आपने उन्हें रोक दिया और दूध का प्याला ले जाने का आदेश दिया और स्वयं नमक और रोटी से रोज़ा इफ़्तार किया। हज़रत अली द्वारा इस प्रकार का भोजन प्रयोग किए जाने का यह कारण नहीं था कि वे अच्छा भोजन नहीं कर सकते थे बल्कि उस समय समाकज की परिस्थिति ऐसी थी कि अधिकतर लोग कठिनाईपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे और शासन की बागडोर हाथ में होने के बावजूद हज़रत अली का परिवार अपना सब कुछ ग़रीबों में बांटकर स्वयं अत्यन्त कठिन जीवन व्यतीत कर रहा था। हज़रत अली का विश्वास था कि शासक को चाहिए कि जनता के निम्नतम स्तर के लोगों जैसा जीवन व्यतीत करे ताकि जनता में तुच्छता और निराशा की भावना उत्पन्न न हो सके।इस प्रकार हज़रत अली नमक रोटी से अपनी भूख मिटाकर ईश्वर की उपासना में लग गये। आपकी पुत्री का कथन है कि उस रात्रि मेरे पिता बार-बार उठते, आंगन में जाते और आकाश की ओर देखने लगते। इसी प्रकार एक बेचैनी और व्याकुलता की सी स्थिति में रात्रि बीतने लगी। भोर समय हज़रत अली उठे, वज़ू किया और मस्जिद की ओर जाने के लिए द्वार खोलना चाहते थे कि घर में पली हुई मुरग़ाबियां इस प्रकार रास्ते में आकर खड़ी हो गयीं जैसे आपको बाहर जाने से रोकना चाहती हों। आपने स्नेह के साथ पछियों को रास्ते से हटाया और स्वयं मस्जिद की ओर चले गये। वहां आपने मुंह के बल लेटे हुए इब्ने मुल्जिम कत भी नमाज़ के लिए जगाया। फिर आप स्वयं उपासना में लीन हो गये। इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक स्तंभ के पीछे विष में डूबी तलवार लेकर छिप गया। हज़रत अली ने जब सजदे से सिर उठाया तो उसने तलवार से सिर पर वार कर दिया। तलवार की धार मस्तिष्क तक उतर गयी, मस्जिद की ज़मीन ख़ून से लाल हो गयी और नमाज़ियों ने ईश्वर की राह में अपनी बलि देने के इच्छुक हज़रत अली को कहते सुनाः काबे के रब की सौगन्ध मैं सफल हो गया। और फिर संसार ने देखा कि अली अपने बिछौने पर लेटे हुए हैं। मुख पर पीलाहट है, परिजनों और आपके प्रति निष्ठा रखने वालों के चेहरे दुःख और आंसूओं में डूबे हुए हैं कि इब्ने मुल्जिम को रस्सियों में बांध कर लाया जाता है। आपके चेहरे पर दुःख के लक्षण दिखाई देते हैं आप अपने पुत्र से कहते हैं कि इसके हाथ खुलवा दो और ये प्यासा होगा इसकी प्यास बुझा दो। फिर आपने अपने लिए लाया दूध का प्याला उसको दिला दिया। कुछ क्षणों के पश्चात उससे पूछा क्या मैं तेरा बुरा इमाम था? आपके इस प्रश्न को सुनकर हत्यारे की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे। फिर आपने अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा कि यदि मैं जीवित रह गया तो इसके विषय में स्वयं निर्णय लूंगा और यदि मर गया तो क़ेसास अर्थात बदले में इस पर तलवार का केवल एक ही वार करना क्योंकि इसने मुझपर एक ही वार किया था।हम इस दुखदायी अवसर पर अपने न्यायप्रेमी सभी साथियों की सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि सत्य और न्याय के मार्ग पर निडर होकर चलने में हमारी सहायता कर।
बद्र की लड़ाई और उसके कारण
जंगे बदर 17वीं रमज़ान से 21वीं रमजान तक दूसरी हिजरी मे कुफ़्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के बीच हुई । बद्र मूल रूप से जुहैना जनजाति के एक व्यक्ति का नाम था जिसने मक्का और मदीना के बीच एक कुआँ खोदा था और बाद में इस क्षेत्र और कुएँ दोनों को बद्र कहा जाने लगा, इसलिए युद्ध का नाम भी बद्र के नाम से जाना जाने लगा।
जंगे बदर 17वीं रमज़ान से 21वीं रमजान तक दूसरी हिजरी मे कुफ़्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के बीच हुई । बद्र मूल रूप से जुहैना जनजाति के एक व्यक्ति का नाम था जिसने मक्का और मदीना के बीच एक कुआँ खोदा था और बाद में इस क्षेत्र और कुएँ दोनों को बदर कहा जाने लगा, इसलिए युद्ध का नाम भी बदर के नाम से जाना जाने लगा।
अबू सुफियान 40 लोगों के व्यापारिक कारवां के साथ सीरिया के लिए रवाना हुआ, जिनके पास 50,000 दीनार का सामान था। कारवां सीरिया से मदीना लौट रहा था जब पैगंबर (स) ने साथियों को उनकी संपत्ति जब्त करने और इस तरह दुश्मन की आर्थिक शक्ति को कमजोर करने के लिए अबू सुफियान के नेतृत्व वाले कारवां की ओर बढ़ने का आदेश दिया। अबू सुफियान को तकनीक के बारे में पता चला मुसलमानों ने बड़ी जल्दी से एक दूत को मदद मांगने के लिए मक्का भेजा। अबू सुफियान के आदेश के बाद, दूत ने अपने सवार (ऊंट) के नाक और कान काट दिए और उसका खून बहा दिया, उसकी कमीज फाड़ दी और लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक अजीब पोशाक पहनकर मक्का में प्रवेश किया और चिल्लाया: कारवां को बचाओ , बचाओ, बचाओ, मुहम्मद और उनके अनुयायियों ने कारवां पर हमला करने की योजना बनाई है। इस घोषणा के साथ, अबू जहल 950 योद्धाओं, 700 ऊंटों और 100 घोड़ों के साथ बद्र के लिए रवाना हो गया। दूसरी ओर, अबू सुफियान ने खुद को बचाने के लिए अपना रास्ता बदल लिया और मुसलमानों से खुद को बचाकर मक्का पहुँचने में कामयाब रहा। अल्लाह के रसूल (स) 313 आदमियों के साथ बद्र के स्थान पर पहुँचे और दुश्मन से आमने-सामने मिले। उसी समय, रसूल अल्लाह (स) ने अपने साथियों से परामर्श किया, और साथी दो समूहों में विभाजित हो गए। एक समूह ने अबू सुफ़ियान का अनुसरण करना पसंद किया, जबकि दूसरे समूह ने अबू जहल की सेना से लड़ना पसंद किया। निर्णय अभी नहीं हुआ था। इस बीच, मुसलमानों को दुश्मन की संख्या, साधन, उपकरण और तैयारियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। असहमति पहले से अधिक तीव्र हो गई अल्लाह के रसूल ने दूसरी राय को प्राथमिकता दी और दुश्मन से लड़ने के लिए तैयार होने का आदेश दिया। इस्लाम की सेना और कुफ़्फ़ार की सेना एक दूसरे के सामने खड़ी थी। शत्रु मुसलमानों की कम संख्या देखकर आश्चर्यचकित रह गया। इधर कुछ मुसलमान काफ़िरों की संख्या और उनके युद्ध उपकरणों को देखकर कांपने लगे। इस भयानक स्थिति को देखकर, अल्लाह के रसूल (स) ने अपने साथियों को अनदेखी खबर से अवगत कराया और कहा: "सर्वशक्तिमान ने मुझे सूचित किया है कि हम इन दो समूहों में से एक, अबू सुफियान का व्यापार कारवां या अबू जहल की सेना, निश्चित रूप से उनमें से एक पर विजयी होंगे, और भगवान अपने वादे में सच्चे हैं।अल्लाह की कसम! ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी आंखों से उन जगहों को देख रहा हूं जहां अबू जहल और कुरैश के कुछ अन्य प्रसिद्ध लोग मारे गए थे। अपने साथियों के डर और आतंक को देखकर, रसूल अल्लाह ने कहा, "चिंता मत करो यद्यपि हम संख्या में कम हैं, फिर भी स्वर्गदूतों का एक बड़ा समूह हमारी सहायता के लिए तैयार है » बद्र का मैदान रेत की नरमता के कारण युद्ध के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं था, लेकिन भगवान की मदद से, इस दौरान भारी बारिश हुई रात और सुबह रेगिस्तान युद्ध के लिए तैयार था।अल्लाह के रसूल (स) ने पहले दुश्मन की ओर शांति का हाथ बढ़ाया, लेकिन अबू जहल ने इसे अस्वीकार कर दिया और युद्ध की घोषणा कर दी। काफ़िर, उतबा, शैबा और वलीद, जबकि मुसलमानों की ओर से तीन अंसार मैदान में घुस आए। उन्होंने अंसार के सैनिकों को लौटाते हुए कहा कि हम अपने साथी कुरैश लोगों से लड़ेंगे। अल्लाह के रसूल ने अपने परिवार से तीन लोगों, उबैदा बिन हारिस, हज़रत हमज़ा और हज़रत अली (अ) को बुलाया और उन्हें युद्ध के मैदान में भेजा। उन्होंने अपना काम पूरा किया और ऊबैदा की सहायता के लिए आए। उत्बा का एक पैर कट गया और वह भी उसके एक वार से मर गया और इस तरह हज़रत अली (अ) ने तीन योद्धाओं को मार डाला। अमीर अल-मोमिनीन (अ) ने अपने शासनकाल के दौरान मुआविया को एक पत्र लिखते हुए इस घटना का इन शब्दों में उल्लेख किया: (मैं वही अबू अल-हसन हूं जिसने आपके दादा उतबा, चाचा शैबा, चाचा वलीद और भाई हंजला को मौत के घाट उतारा था)
इन तीन लोगों की हत्या के बाद, अबू जहल ने एक सामान्य हमले का आदेश दिया और यह नारा लगाया: इन्ना लाना अल-उज्जा वल उज्जा लकुम, फिर मुसलमानों ने नारा लगाया: अल्लाहो मौलाना वा मौलाया लकुम।
अल्लाह के रसूल (अ) अबू जहल की हत्या की प्रतीक्षा कर रहे थे, जैसे ही उन्हें उनकी मृत्यु की खबर मिली, उन्होंने कहा: हे अल्लाह! आपने अपना वादा पूरा किया है.
बद्र की लड़ाई काफ़िरों की करारी हार और मुसलमानों की जीत के साथ समाप्त हुई। इस लड़ाई में अबू जहल सहित काफिरों के प्रसिद्ध कमांडर उपयोगी थे। काफिरों की सेना ने 70 लोगों को मार डाला और इतने ही लोगों को पकड़ लिया गया, जबकि 14 मुसलमान शहीद हो गए, जिनमें 6 मुहाजिर और 8 अंसार शामिल थे। 150 ऊँट, 10 घोड़े और अन्य युद्ध उपकरण मुसलमानों के हाथ लग गये।
इस युद्ध में काफ़िरों ने हज़रत अली (अ) को लाल मौत का नाम दिया क्योंकि उनके महान योद्धा उनके (अ) के हाथों नरक में चले गये। उन सभी के नाम इतिहास की किताबों में हैं।
एक शंका और उसका उत्तर:
आज के इस्लाम के दुश्मनों ने खुदा के पैगम्बर और मुसलमानों पर संदेह जताया है और कहा है कि मुसलमानों ने बिना किसी जानकारी के विरोधियों के कारवां को लूटने की योजना बनाई और इसे लूटपाट माना जाता है।
यदि हम पूर्वाग्रह का चश्मा उतारकर तथ्यों को जानने का प्रयास करें तो यह स्पष्ट है कि ईश्वर के पैगंबर ने निम्नलिखित कारणों से अबू सुफियान के व्यापारिक कारवां की ओर रुख किया:
पहला: जब मुसलमान मक्का से पलायन कर मदीना चले गए, तो उनकी सारी संपत्ति और सामान पर कुरैश ने कब्जा कर लिया। न्यायशास्त्र के अनुसार, मुसलमानों को अपनी हड़पी हुई संपत्ति के लिए अबू सुफियान के कारवां को मुआवजा देने का अधिकार है, यानी अपनी संपत्ति के नुकसान की भरपाई करने के लिए, हालांकि अबू सुफियान के वाणिज्यिक कारवां में संपत्ति का मूल्य मुसलमानों के हड़पे हुए घर और संपत्ति के बराबर है। .अशर तो अशर भी नहीं बन पाया.
दूसरा: अविश्वासी कुरैश ने मक्का के जीवन में मुसलमानों पर अत्याचार किया और जितनी क्रूरता वे कर सकते थे, की।
तीसरा: मुसलमानों के प्रवास के बाद, काफिर कुरैश ने मदीना पर हमला करने और ईश्वर के दूत और विश्वासियों को नष्ट करने की योजना बनाना शुरू कर दिया था। कारवां की ओर बढ़ गए।
लेखक: मोहम्मद हुसैन चमनाबादी
हम दुश्मन के साथ लंबे समय तक समुद्री युद्ध के लिए तैयार हैं
यमन के रक्षा मंत्री ने गाजा पट्टी का समर्थन जारी रखने के लिए देश के सशस्त्र बलों की पूरी तैयारी पर जोर देते हुए कहा कि अमेरिका के यमन पर हमले ने वाशिंगटन द्वारा सियोनिस्ट अपराधों के समर्थन को दुनिया के सामने साबित कर दिया है, और हम नाकाबंदी का जवाब नाकाबंदी से और हमले का जवाब हमले से देंगे।
यमन के आधिकारिक अधिकारियों द्वारा अमेरिका के बर्बर हमलों की प्रतिक्रिया में यमन के रक्षा मंत्री मोहम्मद नासिर अलअतफी ने कहा कि देश के सशस्त्र बल चुनौतियों के स्तर के अनुसार दुश्मन के साथ टकराव को बढ़ाने और किसी भी आपात स्थिति में कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं।
मोहम्मद अलअतफी ने कल रात अपने बयान में कहा,यमन के सशस्त्र बल गाजा में हमारे भाइयों का समर्थन करने और अस्थायी सियोनिस्ट शासन के जहाजों के खिलाफ समुद्री नाकाबंदी के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
उन्होंने कहा,अनसारुल्लाह आंदोलन के नेता सैयद अब्दुलमलिक अलहौसी द्वारा गाजा की नाकाबंदी तोड़ने के लिए दुश्मन को दी गई समय सीमा समाप्त होने के बाद यमन के सशस्त्र बलों ने अपने मिशन को पूरा करने के लिए सभी स्तरों पर आवश्यक सैन्य कार्रवाई और प्रक्रियाएं की हैं। साथ ही यमन की खुफिया एजेंसी सियोनिस्ट जहाजों की नौवहन गतिविधियों पर नजर रख रही है और हमने सियोनिस्टों की स्थिति के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त की है।
यमन के इस सैन्य अधिकारी ने कहा,भविष्य के ऑपरेशनों में सियोनिस्ट शासन के जहाजों के साथ एक व्यापक समुद्री युद्ध की आवश्यकताओं के अनुसार व्यवहार किया जाएगा यमनी बल सियोनिस्ट शासन और उसके सभी समर्थकों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौतों यहां तक कि युद्धविराम समझौतों का पालन करने के लिए मजबूर करेंगे।
विश्वास और कड़ी मेहनत ही समस्याओं का समाधान है
हौज़ा इल्मिया किरमान की शिक्षिका फ़हीमा मुत्तक़ीफ़र ने हज़रत मरियम (अ) की घटना के प्रकाश में कहा कि विश्वास और व्यक्तिगत प्रयास जीवन की समस्याओं में सफलता की कुंजी हैं।
किरमान के सिरजान शहर में नर्जिसिया सेमिनरी में महिलाओं और महिला छात्राओं की उपस्थिति में कुरान पाठ और व्याख्या बैठक का सोलहवां सत्र आयोजित किया गया, जिसमें फ़हीमा मुताक़िफ़ार ने सूरह मरियम की आयत 22 से 25 की व्याख्या बताई।
उन्होंने मरियम और ईसा के जन्म को अल्लाह की असीम शक्ति और अपने नेक बन्दों के लिए उसकी विशेष मदद का प्रकटीकरण बताया।
सुश्री मुत्तकीफ़र ने कहा कि हज़रत मरियम अपनी पवित्रता और धर्मपरायणता के कारण अल्लाह की विशेष दया की पात्र थीं और हज़रत ईसा का बिना पिता के चमत्कारी जन्म ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है जो असंभव को संभव बना सकता है।
उन्होंने मरियम के अकेलेपन, सामाजिक दबाव और शारीरिक कठिनाई की ओर इशारा करते हुए कहा कि ईश्वर पर उनके विश्वास के कारण चमत्कार हुए, जैसे कि पानी का झरना बहना और सूखे पेड़ पर फल लगना।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह घटना हमें सिखाती है कि कठिनाई के समय में विश्वास और व्यक्तिगत प्रयास ही समाधान की कुंजी हैं।
मुत्तक़ीफ़र ने स्वस्थ आहार के महत्व के बारे में भी बात की और कहा कि अल्लाह ने हज़रत मरियम के लिए जन्म देने के बाद खाने के लिए खजूर का चयन किया, जो मानव स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार और प्राकृतिक आशीर्वाद के महत्व पर प्रकाश डालता है।
उन्होंने आगे कहा कि यद्यपि हज़रत मरियम कोई पैगम्बर नहीं थीं, फिर भी उनकी पवित्रता और धर्मपरायणता ने उन्हें ईश्वरीय कृपा का पात्र बना दिया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि अल्लाह की दया उन लोगों पर छा जाती है जो धर्मपरायणता का आचरण करते हैं और धर्म के मार्ग पर चलते हैं।
रोज़ा रूहानी तबीयत का एक हम ज़रिया है जो नफ्स को काबू में रखता है
शाहगंज जौनपुर नगर के कोरवालिया सेन्ट थामस रोड मास्जिद चादबीबी के इमाम ने लोगो को बताया की रमजान इस्लाम का पावित्र माहिना है जिसमे रोजा रखा जाता है लेकिन उपवास सिर्फ इस्लाम तक सिमित नही है यह सभी धर्मो मे होता है हिन्दू,ईसाई,व सिख धर्म मे भी उपवास की परम्परा है।
शाहगंज जौनपुर/नगर के कोरवालिया सेन्ट थामस रोड मास्जिद चादबीबी के इमाम ने लोगो को बताया की रमजान इस्लाम का पावित्र माहिना है जिसमे रोजा रखा जाता है लेकिन उपवास सिर्फ इस्लाम तक सिमित नही है यह सभी धर्मो मे होता है हिन्दू,ईसाई,व सिख धर्म मे भी उपवास की परम्परा है जैन धर्म मे भी उपवास रखा जाता है।
जो आत्म संयम अल्लाह के नजदीक होना और आत्मा शुध्दि का माध्यम है बाल्कि रोजा समाज मे समानता की भावना भी पैदा करता है अमीर और गरीब दोनो एक साथ भूखा प्यासा रहते है तो यह सहानुभूति और एक जुटता को बढावा देता है।
रोजे के दौरान गरीब की मदद करना व इफ्तार कराना इस्लाम की एक महत्वपुर्ण परम्परा है रोजा आत्म शुध्दि का एक साधन है इन्सान अपनी आत्मा को संसारिक लालसा से मुक्त करके अल्लाह की ओर आधिक झुकाव महसूस करता है नमाज मे इन्सान दुआ के जारिये गुनाहो की माफी मागता है मौलाना सैय्यद आबिद ने मुल्क मे अमन चैन के लिये दुआ कराई।