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इथियोपिया के ओरोमिया और अमहरा इलाक़ों में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों के बर्बर हमलों में दर्जनों लोगों की मौत हो गई है।

विपक्षी नेताओं ने समाचा एजेंसी एएफ़पी को मरने वालों की संख्या 50 से अधिक बतायी है, जबकि मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से कहा है कि पिछले दो दिन में 90 से अधिक लोग मारे गए हैं।

ओरोमिया और अमहरा में लोग राजनीतिक सुधारों, न्याय और क़ानून व्यवस्था जैसी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे।

सरकार की ओर से इस प्रकार की क्रूर कार्यवाही से लोगों का ग़ुस्सा और भड़क सकता है।

इन दोनों इलाकों में इथियोपिया के दो सबसे बड़े जन-जातीय समूह रहते हैं।

सूत्रों के अनुसार, पुलिस और सेना के ट्रेनिंग बेस समेत कई जगहों पर बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में रखा गया है और कई लोगों की मौत हिरासत के दौरान हुई है।  

 

स्वीज़रलैंड की मध्यस्थता करने वाली अदालत ने, इस्राईल की तेल कंपनी टीएओ को ईरान को 1.2 अरब डॉलर अदा करने का आदेश दिया है।

इस इस्राईली कंपनी की अपील को, स्वीज़रलैंड की इस अदालत ने ख़ारिज कर दिया है। यह भुगतान 1979 में ईरान में इस्लामी क्रान्ति से पहले इस्राईल को की गयी तेल की आपूर्ति से संबंधित है।

ज़ायोनी अख़बार हआरेत्ज़ के अनुसार, लूज़ान में स्वीज़रलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने इस्राईली कंपनी टीएओ को आदेश दिया कि वह ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी एनआईओसी को भुगतान करे।

स्वीज़रलैंड की अदालत के अनुसार, ईरानी तेल कंपनी एनआईओसी के ख़िलाफ़ पाबंदियां ख़त्म हो गयी हैं, इसलिए अब भुगतान के रास्ते में क़ानूनी तौर पर कोई चीज़ रुकावट नहीं है।

इस इस्राईली कंपनी को इसी प्रकार 2 लाख डॉलर अदालत पर आने वाले ख़र्च के भी अदा करने होंगे।

टीएओ ईरान के अंतिम तानाशाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन काल में ईरानी कंपनी एनआईओसी के साथ लेन-देन करती थी। इस्राइली कंपनी टैंकर जहाज़ का बेड़ा चलाती थी और ईरान के तेल को यूरोपीय ग्राहकों तक पहुंचाती थी।

1979 में ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद, इस इस्राइली कंपनी ने तीसरे पक्ष को बेचे गए तेल का भुगतान करवाने से मना कर दिया था।

इस्लामी गणतंत्र ईरान, इस्राईल को मान्यता नहीं देता। इसलिए ईरान ने तेल की बक़ाया राशि हासिल करने के लिए मध्यस्थता का रास्ता अपनाया।

यह विवादित रक़म लगभग 7 अरब डॉलर है।

2015 में स्वीज़रलैंड की इस अदातल ने इस्राईल को भुगतान करने का आदेश दिया किन्तु तेल अविव शासन ने इस आदेश के ख़िलाफ़ अपील की।

ज्ञात रहे ईरान और गुट पांच धन एक के बीच 2015 में हुए परमाणु समझौते के नतीजे में, ईरानी कंपनियों व हस्तियों के ख़िलाफ़ पाबंदियां हटा ली गयी हैं।  

 

ईरान की गैस निर्यातक राष्ट्रीय कंपनी के प्रबंधक ने सूचना दी है कि समुद्र में पाइप लाइन के ज़रिए भारत को गैस निर्यात की परियोजना के तकनीकी व आर्थिक पहुलओं की समीक्षा हो रही है।

अली रज़ा कामेली ने सोमवार को इस बात का उल्लेख करते हुए कि इस पाइप लाइन के निर्माण में पूंजि निवेश और इसे बिछाने का काम एक भारतीय कंपनी के ज़िम्मे है, कहा कि यह पाइप लाइन 1400 किलोमीटर लंबी होगी और कुछ जगह यह पाइप लाइन 3.5 किलोमीटर की गहराई में बिछी होगी। अब तक दुनिया में इतनी गहराई में पाइप लाइन नहीं बिछायी गयी है।

ईरान की गैस निर्यातक राष्ट्रीय कंपनी के प्रबंधक ने बताया कि भारत ने यूरोप की कई कंपनियों की भागीदारी से इस पाइप लाइन को बिछाने के अध्ययन का काम किया है और बताया है कि यह काम व्यवहारिक हो सकता है।

ईरान से भारत को गैस के निर्यात की परियोजना के समझौता ज्ञापन पर ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी और भारत की एसएजीई कंपनी के बीच 29 सितंबर 2009 को दस्तख़त हुए थे।  

 

वरिष्ठ नेता ने बल दिया है कि जेसीपीओए से एक बार फिर अमरीकियों के साथ बातचीत का बेनतीजा होना, अमरीकियों की वादा ख़िलाफ़ी और उनकी बातों पर भरोसा न करना साबित हो गया।

सोमवार को देश के विभिन्न प्रांतों के विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों ने आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई से तेहरान में मुलाक़ात की। इस अवसर पर वरिष्ठ नेता ने कहा कि जेसीपीओए ने यह दर्शा दिया कि प्रगति और जनता की स्थिति के बेहतर होने का मार्ग देश के भीतर है न कि वे दुश्मन हैं जो क्षेत्र सहित दुनिया में ईरान के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिशों में रहते हैं।

उन्होंने जेसीपीओए के संबंध में अमरीका के व्यवहार से ईरानी राष्ट्र को हासिल हुए अनुभव पर बल देते हुए कहा, “वे हमसे कहते हैं कि आइये क्षेत्र के मामलों पर आपस में बातचीत करें किन्तु जेसीपीओए के अनुभव से लगता है कि यह एक घातक काम है और किसी भी मामले में अमरीकियों की बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता।”

वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीका की दुश्मनी और हस्तक्षेप सिर्फ़ इस्लामी गणतंत्र ईरान तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहा, “तुर्की की हालिया घटना में भी गंभीर आरोप लग रहे हैं कि विफल सैन्य विद्रोह, अमरीकी सहयोग से हुआ है।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर यह बात साबित होती है तो अमरीका के लिए बहुत बड़ी बदनामी होगी।”

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने क्षेत्र के हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी शासन से सऊदी सरकार के संबंध का सार्वजनिक होना इस्लामी जगत की पीठ में छुरा घोंपने जैसा है जो बहुत बड़ी ग़द्दारी है।  उन्होंने कहा कि इस मामले में भी अमरीका का हाथ है क्योंकि सऊदी सरकार अमरीका के सामने नतमस्तक है।

उन्होंने कहा कि यमन पर सऊदी अरब के अतिक्रमण, घरों, अस्पतालों और स्कूलों पर निरंतर बमबारी तथा बच्चों के जनसंहार जैसी घटनाएं सऊदी सरकार के अन्य अपराध हैं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि खेद की बात है कि जिस वक़्त संयुक्त राष्ट्र संघ ने लंबे समय के बाद इन अपराधों की निंदा करने का इरादा किया तो उसका मुंह पैसों, धमकियों और दबाव के ज़रिए बंद कर दिया गया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी जगत में फूट डालने के लिए तकफ़ीरी गुटों को मज़बूत करने में अमरीका का हाथ होने की ओर इशारा किया और कहा, “वे तकफ़ीरी गुटों से संघर्ष करने के अपने दावों के विपरीत कोई प्रभावी काम नहीं कर रहे हैं बल्कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार, वे इन गुटों की मदद भी करते हैं।”

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने क्षेत्रीय समस्याओं का हल मुसलमान राष्ट्रों व सरकारों के बीच आपसी एकता और अमरीका तथा कुछ यूरोपीय सरकार के साम्राज्यवादी लक्ष्यों के ख़िलाफ़ दृढ़ता पर निर्भर बताया। उन्होंने कहा कि अमरीका की सारी कोशिशों के बावजूद उसके षड्यंत्रों से पर्दा उठ गया है और क्षेत्र में अमरीका, दिन-प्रतिदिन और कमज़ोर होता जा रहा है।  

 

भारत की राजधानी दिल्ली के पास स्थित गुड़गांव के तौरू में एक स्कूल को स्थानीय पंचायत ने अजीबोग़रीब फ़रमान सुनाया है। स्कूल पर ईद का समारोह आयोजित करने के लिए 5.5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है।

भारतीय समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार गुड़गांव के तौरू में पंचायत ने मेवात ज़िले के ग्रीन डेल्स पब्लिक स्कूल के मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों को निकालने का आदेश दिया है। साथ ही पंचायत ने स्कूल को छात्राओं के स्कर्ट की जगह सलवार कमीज़ पहनने का नियम लागू करने को कहा है।

 

समाचार पत्र के मुताबिक़ मेवाड़ जिले के तौरू कस्बे के हिन्दू परिवारों ने स्कूल प्रशासन पर इस्लामी शिक्षाओं को फ़ैलाने और उनके बच्चों पर इसके नियम थोपने का आरोप लगाया था। जिस पर मेवाड़ गांव की पंचायत ने यह फैसला सुनाया है।

 

दूसरी ओर स्कूल की मैनेजर हेमा शर्मा ने बताया है कि पंचायत के फ़रमान के बाद स्कूल की अकेली मुस्लिम धर्म की शिक्षिका नौकरी छोड़कर दिल्ली में रहने पर मजबूर हुई हैं। उन्होंने कहा कि हमारे स्कूल में सभी धर्म के बच्चे एक साथ पढ़ते और खेलते हैं। हम उन्हें सभी धर्मों के बारे में बताते हैं और उनका सम्मान करना सिखाते हैं।

 

इस मामले पर पंचायत के सदस्य टेक चंद सैनी ने आरोप लगाया कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को मुसलमान बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि बच्चों को क़ुरान की आयतें पढ़ने के लिए कहा जाता है। टेक चंद सैनी ने कहा कि स्कूल हिन्दू बच्चों के साथ बहुत बड़ी साज़िश रच रहा है।

 

संयुक्त राष्ट्रसंघ और फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने बैतुल मुक़द्दस के पूर्व में ग़ैर कानूनी ढंग से 800 मकानों को बनाने हेतु इस्राईल की योजना की भर्त्सना की है।

प्रेस टीवी की रिपोर्ट के अनुसार मध्यपूर्व में तथाकथित शांतिप्रक्रिया के मामलों में संयुक्त राष्ट्रसंघ के विशेष दूत  निकोलाए मलादनोफ़ Nickolay Mladenov ने ग़ैर कानूनी कालोनियों में विस्तार हेतु जायोनी शासन की कार्यवाही की भर्त्सना की। उन्होंने एक विज्ञप्ति जारी करके 770 मकान बनाने हेतु इस्राईली अधिकारियों के हालिया निर्णय की भर्त्सना की और उसे गैर कानूनी बताया।

 

इसी बीच फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा समिति के महासचिव साएब उरैक़ात ने घोषणा की है कि तेलअवीव का यह निर्णय इस्राईल द्वारा ग़ैर क़ानूनी ढंग से जायोनी कालोनियों के निर्माण को रोकवाने में विश्व समुदाय की विफलता का सूचक है।

 

ज्ञात रहे कि इस्राईल द्वारा जायोनी कालोनियों के निर्माण को शांति प्रक्रिया की दिशा में मुख्य रुकावट समझा जा रहा है।

 

900 लोग. भारत में इस्लाम में परिवर्तित

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी खबर "सन्डे स्टंडर्ड" के हवाले से, अली कोया, तर्बियह केंद्र निदेशक ने कहा: 2015 में 300 लोग सुब्हा केंद्र में और 600 लोग तर्बियह केंद्र में इस्लाम में परिवर्तित हुऐ हैं।

उन्होंने कहा कि ऐ मुसल्मानों की बातचीत, आय और खर्च के सभी विवरण केरल पुलिस विभाग और आवास विभाग को दे दिऐ गऐ हैं।

उन्हों ने कहा कि इन ऐ मुसल्मानों और वह लोग जो केरल में दइश में शामिल हुऐ हैं के बीच कोई संबंध मौजूद नहीं है।

ओमनी चांडी केरल के मुख्यमंत्री ने भी कहा: कि राज्य में 2667 महिलाऐं 2006 के बाद से इस्लाम में परिवर्तित हुई है।

केरल में 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी (लगभग एक तिहाई) है। शिया आबादी लगभग एक मिल्युन है।

कोचिन कालेकत सहित केरल के कुछ महत्वपूर्ण शहरों में, संख्या और मुसलमानों की भूमिका अहम है और malapouram जैसे क्षेत्रों में मुसलमानों की पूर्ण बहुमत है और कहा जाता है कि इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 95 प्रतिशत से अधिक है।

ऐक मस्जिद के इमाम के अनुसार केरल राज्य में मस्जिदों की संख्या 11 हजार पर पहुंच गई हैं।

 

फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध जायोनी शासन की युद्धोन्मादी नीतियां जारी हैं और इसी परिप्रेक्ष्य में उसने ग़ज़्ज़ा पट्टी के परिवेष्टन को और कड़ा कर दिया है।

इस्राईल ने ग़ज़्ज़ा पट्टी के परिवेष्टन को इस तरह से कड़ा कर दिया है कि उसने व्यापार करने के एक तिहाई लाइसेन्स को रद्द कर दिया है। इस्राईल के आंतरिक सुरक्षा संगठन शाबाक ने धीरे- धीरे पिछले महीनों में व्यापार करने वाले सैकड़ों फिलिस्तीनी व्यापारियों के लाइसेन्स को रद्द कर दिया है।

जायोनी शासन ने इसी प्रकार ग़ज़्ज़ा पट्टी में वस्तुओं के आयात- निर्यात को बहुत सीमित कर दिया है और यह विषय ग़ज़्ज़ा पट्टी की आर्थिक स्थिति के और विषम होने का कारण बना है। इसी प्रकार ग़ज़्ज़ा पट्टी के परिवेष्टन के कड़ा करने से इस पट्टी में वस्तुओं का आयात करने वाले व्यापारिकों भारी क्षति पहुंची है।

वर्ष 2007 से ग़ज़्ज़ा पट्टी का परिवेष्टन जारी है और व्यवहारिक रूप से इस पट्टी के 15 लाख लोगों को आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी का सामना है और परिवेष्टन के और अधिक कड़ा कर दिये जाने से इस क्षेत्र में मानवीय संकट उत्पन्न होने की चिंता में वृद्धि हो गयी है।

ग़ज़्ज़ा पट्टी के परिवेष्टन के जारी रहने और इस्राईल द्वारा बारम्बार इस पट्टी पर हमले जैसे कार्यों से इस क्षेत्र में विषम मानवीय संकट उत्पन्न हो गया है।

उल्लेखनीय है कि जायोनी शासन ने पिछले लगभग एक दशक से ग़ज़्ज़ा पट्टी का परिवेष्टन कड़ा कर रखा है और ईंधन तथा आवश्यक वस्तुओं को इस क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं दे रहा है जिससे यह क्षेत्र मानव त्रासदी के मुहाने पर पहुंच चुका है।

यद्यपि जायोनी शासन फिलिस्तीनी जनता के साहसिक प्रतिरोध के कारण वर्ष 2005 में ग़ज़्ज़ा पट्टी से पीछे हट गया परंतु व्यवहारिक रूप से उसने अपनी विफलता को छिपाने और फिलिस्तीनियों को अपनी मांगों के समक्ष झुका देने के लिए इस क्षेत्र में अपनी मानवता विरोधी कार्यवाहियों को यथावत जारी रखे हुए है।  

 

भारत ने इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित 35 अन्य देशों के नागरिकों के लिए इलैक्ट्रॉनिक वीज़ा जारी करने का फ़ैसला किया है।

इस प्रकार भारत की ओर से जिन देशों के नागरिकों के लिए इलैक्ट्रॉनिक वीज़ा जारी करने की सुविधा मुहैया की गयी है, उनकी संख्या बढ़कर 186 हो गई है।

भारतीय पर्यटन मंत्रालय के अनुसार, इस साल जनवरी से जून के बीच 480 सैलानियों ने इलैक्ट्रॉनिक वीज़े के साथ भारत का भ्रमण किया और यह संख्या, पिछले साल की तुलना में अधिक है।

भारतीय पर्यटन मंत्रालय के अनुसार, ज़्यादातर इलैक्ट्रॉनिक वीज़े अमरीका, ब्रिटेन, चीन, फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया के सैलानियों के लिए जारी किए गए।

भारत की ओर से इलैक्ट्रॉनिक वीज़े की सुविधा उपलब्ध होने से संबंधित देशों के नागरिकों को भारतीय दूतावास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती बल्कि इंटरनेट सेवा से वीज़ा जारी किया जाता है।

इलैक्ट्रॉनिक वीज़े में भारत में ठहरने की अवधि सिर्फ़ एक महीना है और व्यक्ति साल में दो बार भारत का इलैक्ट्रॉनिक वीज़ा इस्तेमाल कर सकता है।

 

अमरीकी पत्रिका वाशिंग्टन फ़्री-बेकन ने लिखा कि अमरीका ने 86 लाख डाॅलर के मूल्य के भारी पानी ईरान से ख़रीदने की पुष्टि की है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, वाशिंगटन फ़्री-बेकन ने मंगलवार की अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अमरीकी और ईरानी अधिकरियों ने सोमवार को पुष्टि की है कि अमरकी ने ईरान से 86 लाख डाॅलर मूल्य के भारी पानी ख़रीदा है और यह एसी कार्यवाही है जिसपर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने परमाणु समझौते पर ईरान को बाक़ी रखने पर कटिबद्ध रहने के लिए सहमति जताई थी।

अमरीका के ऊर्जा मंत्रालय के एक अधिकारी ने वाशिंग्टन फ़्री-बेकन, इस ख़रीदारी की पुष्टि की है।

उन्होंने कहा कि वह इस बारे में प्रकाशित रिपोर्ट की पुष्टि करने को तैयार हैं कि ऊर्जा मंत्रालय के आइज़ोटोप कार्यक्रम ने ईरान से 32 टन भारी पानी ख़रीदने का कार्यक्रम पूरा कर लिया है। ईरान के उप विदेश अब्बास इराक़ची ने सोमवार की रात बताया था कि अमरीका और ईरान के बीच 32 टन भारी पानी की ख़रीदारी संपन्न हो गयी है।