رضوی
एकता, परहेज़गारी और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद सईदी ने क़ुम अलमुक़द्दसा में जुमे की नमाज़ के खुत्बों में कहा कि रहबर-ए-इंक़ेलाब ने हालिया बयानों में देश में एकता और एकजुटता पर विशेष जोर दिया है, ख़ास तौर पर 12 दिवसीय युद्ध के बाद जब दुश्मन यह समझ रहा था कि ईरान में जनता और शासन के बीच दूरी बढ़ गई है उनके अनुसार, जनता की मज़बूत स्थिरता ने एक बार फिर दुश्मन की यह गलत गणना नाकाम कर दी।
आयतुल्लाह सईदी ने कहा कि अमेरिका और ज़ायोनी अधिकारियों को यह भ्रम हो गया था कि इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने का सबसे अच्छा मौका उन्हें मिल गया है, लेकिन जनता ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
मुलाक़ातों और बातचीत के बारे में फैल रही अफ़वाहों को झूठा बताते हुए उन्होंने कहा कि रहबर-ए-इंक़ेलाब ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अमेरिका इस्लामी गणतंत्र के साथ संपर्क या सहयोग करने के योग्य ही नहीं है।
उन्होंने राष्ट्रपति की समर्थन को आवश्यक बताते हुए कहा कि सरकार भारी ज़िम्मेदारियाँ निभा रही है और शहीद रईसी के अधूरे योजनाओं को पूरा करने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है, इसलिए सभी को उनकी सहायता करनी चाहिए।
फ़ुज़ूलखर्ची के विषय पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह देश के लिए एक गंभीर खतरा है और यदि इससे बचा जाए तो हालात में स्पष्ट सुधार आ सकता है। उन्होंने बताया कि क़ुम में बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं, जो जनता के सहयोग से ही संभव होंगे।
आयतुल्लाह सईदी ने अल्लाह से संबंध, दुआ और गिड़गिड़ाहट की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि बारिश, सुरक्षा और शांति जैसी चीज़ों के लिए अल्लाह से मांगना चाहिए। उन्होंने हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के फ़ज़ाइल का उल्लेख करते हुए कहा कि इन हस्तियों ने मुनाफिक के चेहरों को बेनक़ाब किया और उम्मत को ईमान का सही मापदंड प्रदान किया।
पारिवारिक व्यवस्था के महत्व पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि कुरआन के अनुसार घर वह बुनियादी संस्था है जहाँ मानव की शख्सियत बनती है।शर्म-हया, परहेज़गारी, दीनदारी, आपसी सम्मान और सब्र जैसी विशेषताएँ सबसे पहले घर में ही पनपती हैं।
उन्होंने कहा कि मीडिया और कुछ गैर-ज़िम्मेदार तत्व तलाक़, बे-हयाई और गर्भपात को बढ़ावा देकर समाज को कमजोर करना चाहते हैं, इसलिए माता-पिता को अपनी आने वाली पीढ़ी और मूल्यों की रक्षा के लिए सतर्क रहना होगा।
अंत में उन्होंने आयतुल्लाहिल उज़्मा अराकी की मृत्यु पर दुख व्यक्त किया और शहीद फ़ख़रीज़ादे व मजीद शहरियारी की सेवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की।
रहबर ए मोअज़्ज़म के बयानों ने राष्ट्रीय एतेमाद ए नफ्स को मज़बूत किया है।
हुज्जतुल इस्लाम अली अकबरी ने कहा, रहबर-ए मोअज़्ज़म इंकेलाब के हालिया बयानों ने 12 दिवसीय युद्ध में सफलता की रौशनी में दुश्मन की धमकियों के खिलाफ सामर्थ्य की भावना और राष्ट्रीय आत्म विश्वास को बढ़ाया है।
हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद रज़ा अली अकबरी ने शहर माहनशाह की जुमआ की नमाज़ के खुतबों में रहबर-ए मोअज़्ज़म इंकलाब-ए इस्लामी के मिल्लत-ए ईरान के नाम हालिया खिताब का हवाला देते हुए कहा, इन बयानों ने देश के सामान्य माहौल पर गहरा प्रभाव डाला और 12 दिवसीय युद्ध की जीत की पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय आत्म विश्वास और दुश्मन के खिलाफ सामर्थ्य की भावना को मजबूत किया है।
उन्होंने कहा,रहबर-ए इंकलाब ने बसीज को एक राष्ट्रीय पूंजी और व्यापक आंदोलन बताया जो विभिन्न नस्लों में और मजबूत होनी चाहिए उनके अनुसार बसीज सिर्फ एक संस्था नहीं है बल्कि हर गैरतमंद और ईमान वाला व्यक्ति जो देश की तरक्की के लिए किसी भी मैदान में कोशिश करे, वह असली बासिजी है।
इमाम-ए जुमआ माहन शाह ने कहा,यही जज्बा राष्ट्रीय ताकत में वृद्धि और वैश्विक स्तर पर प्रतिरोध के लिए एक प्रेरणादायक नमूना है।
उन्होंने आगे कहा, अमेरिका और सियोनीस्ट शासन ने आधुनिकतम हथियारों के बावजूद मिल्लत को निज़ाम-ए इस्लाम से अलग नहीं कर सके बल्कि इसके विपरीत राष्ट्रीय एकता और मजबूत हुई और यही मिल्लत-ए ईरान की असली कामयाबी और दुश्मन की यकीनी हार है।
हुज्जतुल इस्लाम अली अकबरी ने कहा,ईरान की तरक्की का रहस्य राष्ट्रीय एकता के संरक्षण, सरकार का समर्थन, फिजूलखर्ची से परहेज और खुदा से आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करने में है।
हज़रत फातेमा ज़हेरा स.ल; महिलाओं के लिए मार्गदर्शक और जन्नत की औरतों की सरदार है
आयतुल्लाह सय्यद हाफ़िज़ रियाज़ नजफ़ी हौज़ा इल्मिया जामिअतुल मुंतज़िर मॉडल टाउन में संबोधन के दौरान कहा कि पैगंबर की बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा स.अ.दुनिया की सबसे महान महिला हैं, जिनके सम्मान में पैगंबर स्वयं खड़े हो जाते थे।
शिया मदरसा बोर्ड पाकिस्तान के अध्यक्ष आयतुल्लाह सय्यद हाफ़िज़ रियाज़ हुसैन नजफ़ी ने हौज़ा इल्मिया जामिअतुल मुंतज़िर मॉडल टाउन में संबोधन के दौरान कहा कि पैगंबर की बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) दुनिया की सबसे महान महिला हैं, जिनके सम्मान में पैगंबर स्वयं खड़े हो जाते थे।
हज़रत पैगंबर स.ल.व.की वंशावली उन्हीं से आगे बढ़ी, उनके बेटे हसन और हुसैन (अ.स.) को स्वर्ग के युवाओं का सरदार बनाया गया, जबकि फातिमा ज़हरा (स.अ.) स्वयं महिलाओं के लिए मार्गदर्शक और स्वर्ग की महिलाओं की सरदार हैं।
उन्होंने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व.) की बेटियों की संख्या के बारे में शिया और सुन्नी मतभेद पाए जाते हैं, लेकिन मैं कहता हूं कि पैगंबर की जितनी भी बेटियां मानी जाएं, इससे किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि गौरव और महानता का स्रोत कौन है?
किसका उल्लेख हो रहा है? पैगंबर की वंशावली किससे चली है? किसके बेटों को स्वर्ग के युवाओं का सरदार बनाया गया? कौन महिलाओं के लिए मार्गदर्शक है? और कौन स्वर्ग की महिलाओं की सरदार है? इसी तरह पैगंबर की पत्नियां चाहे जितनी भी हों, आपको केवल यह देखना है कि उनमें पवित्र कौन है? महान कौन है?
आयतुल्लाह सय्यद हाफ़िज़ रियाज़ नजफ़ी ने कहा कि पवित्र सूरह कौसर के काबा में लग जाने के बाद जाहिलियत के प्रसिद्ध कवियों की कविताओं को खाना-ए-काबा से हटा दिया गया, क्योंकि कुरान की महानता इतनी है कि उसके सामने कोई चीज टिक नहीं सकती। जाहिलियत के दौर के कवि कहते थे, 'माज़ा कलामुल बशर' यानी यह किसी इंसान का कलाम नहीं है।
उन्होंने कहा कि इस्लाम में महिलाओं और माता-पिता का दर्जा इस तरह बताया गया है कि आज भी जो कुरान के अर्थ पर ध्यान देता है, तो इन बौद्धिक तथ्यों को देखकर वह हैरान हो जाता है और कुरान की प्रभावशीलता के कारण लोग आज तक मुसलमान हो रहे हैं।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की संपत्ति कोई हज़म नहीं कर पाएगा
मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने लखनऊ में जुमआ की नमाज़ के खुत्बे में नमाज़ियों को अल्लाह का डर तक्वा की नसीहत करते हुए कहा कि अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हमें तौफीक दे कि हम हमेशा उससे डरते रहें, उसका खौफ हमारे दिलों में बना रहे, यह एहसास बना रहे कि एक दिन मरकर उसकी बारगाह में जाना है और उसे जवाब देना है।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने लखनऊ में जुमआ की नमाज़ के खुत्बे में नमाज़ियों को अल्लाह का डर तक्वा की नसीहत करते हुए कहा कि अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हमें तौफीक दे कि हम हमेशा उससे डरते रहें, उसका खौफ हमारे दिलों में बना रहे, यह एहसास बना रहे कि एक दिन मरकर उसकी बारगाह में जाना है और उसे जवाब देना है।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने आगे कहा कि लोग सोचते नहीं हैं, दुनिया में इतने उलझ जाते हैं कि उन्हें एहसास नहीं होता कि हमें किसी को जवाब देना है। दूसरों की संपत्ति हड़प लेते हैं, ग़ासिब बन जाते हैं और ग़ासिब बनकर फातिमी अय्याम-ए-अज़ा में जोर-जोर से रोते भी हैं और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के दुश्मनों और उनके हक के ग़ासिबों पर लानत भी करते हैं।
हदीस-ए-कुद्सी लोगों को डराइए कि वह व्यक्ति मेरे घर में दाखिल न हो जिसने ज़ुल्म करते हुए किसी की संपत्ति ग़सब की है। मैं उस पर उस वक्त तक लानत करता रहता हूँ जब तक वह नमाज़ पढ़ता रहता है। यहाँ तक कि वह लौटाई हुई ग़स्बी माल वापस न कर दे। को बयान करते हुए मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने कहा कि कोई भाई का हक़ ग़स्ब किए है तो कोई चाचा का हक़ ग़स्ब किए है तो कोई किसी और का और हद तो यह है कि किसी ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की संपत्ति ग़स्ब कर ली है। और कान पकड़ कर मुँह पीट रहे हैं तो यह तौबा नहीं है। तौबा उस वक्त है जब इंसान ग़स्ब किया हुआ माल वापस कर दे।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने अमीरुलमोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम की फज़ीलत बयान करते हुए कहा कि अगर कोई हकीकी तौबा कर ले तो वह इतना बुलंद होता है कि उसका शुमार शहीदों और सिद्दीकीन में होने लगता है।
तो जब तौबा करने वाले को यह मकाम हासिल होता है तो जिसकी पूरी ज़िंदगी में अद्ल (न्याय) हो उसकी क्या अज़ीम फज़ीलत होगी। जो यह कहे कि अगर अली को पूरी कायनात की हुकूमत दे दी जाए और यह मांग की जाए कि चींटी के मुँह से जौ का छोटा सा टुकड़ा ले लिया जाए तो अली हुकूमत को ठुकरा देगा चींटी पर ज़ुल्म नहीं करेगा।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने कहा कि इन फातिमी अय्याम-ए-अज़ा से हमें यह दर्स मिलता है कि अगर किसी ने किसी की संपत्ति ग़स्ब की है, लूटी है तो वापस कर दे, चाहे किसी की मीरास हो या कोई और माल हो। और अगर किसी ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की संपत्ति लूटी है तो याद रखें कि कोई अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की संपत्ति हज़म नहीं कर पाएगा।
फिजूलखर्ची का ज़िक्र करते हुए मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने कहा कि 3 चुल्लू से वुज़ू हो जाता है, नल खोल कर पानी बहाने की ज़रूरत नहीं है। कोई यह न कहे कि हम बिल अदा कर देंगे। एक शरीफ शहरी होने के भी कुछ तकाजे होते हैं।
नज़ाफत का ज़िक्र करते हुए मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने कहा कि इधर-उधर कूड़ा नहीं फेंकना चाहिए और न ही इधर-उधर थूकना चाहिए, यह काम कोई और कौम करे तो करे लेकिन जो सुबह-शाम आयते तत्हीर की तिलावत करती हो उसके लिए बिल्कुल मुनासिब नहीं है।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने आगे कहा कि कुछ लोगों की आदत होती है कि वह जिस शहर में रहते हैं उसी की बुराई करते हैं, जबकि अमीरुलमोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया,बेहतरीन शहर वह है जो तुम्हारा बोझ उठाए हुए है।अगर लखनऊ हमारा बोझ उठाए हुए है तो लखनऊ से बेहतर कोई शहर हमारे लिए नहीं है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम एक शरीफ शहरी बनें।
इमाम बारगाह हुसैनी लखनऊ में मजालिस फातमी का भव्य आयोजन
इमाम बारगाह सरकार ए हुसैनी कश्मीरी मोहल्ला, लखनऊ भारत में फातिमी दिनों के संदर्भ में तीन दिवसीय मजलिसें आयोजित की गईं मौलाना जावेद हैदर ज़ैदी ने मातमी मजलिसों को संबोधित किया शहर भर से बड़ी संख्या में मोमिनीन ने इन मजलिसों में भाग लिया।
इमामबारगाह सरकार-ए हुसैनी कश्मीरी मोहल्ला, लखनऊ भारत में अय्यामे फातिमी के संदर्भ में तीन दिवसीय मजलिसें आयोजित की गईं; मौलाना जावेद हैदर जैदी ने मातमी मजलिसों को संबोधित किया, शहर भर से बड़ी संख्या में मोमिनीन ने इन मजलिसों में भाग लिया।
उन्होंने आयते मोद्दत के विषय पर खिताब करते हुए हज़रत फातिमा जहरा सलामुल्लाह अलैहा का महत्व, उनके चरित्र और इस्लामी इतिहास में उनके स्थान पर प्रकाश डाला।
मौलाना कासिम मूसवी, मौलाना फैसल, मौलाना मिर्ज़ा कैसर और मौलाना वसीउल हसन ने भी संबोधित किया और फातिमी दिनों के संदर्भ में विभिन्न विषयों पर प्रकाश डाला।
मजलिसों का सिलसिला तीन दिनों तक जारी रहा और समापन पर सामूहिक दुआ और तअज़ीयती कलाम अदा किए गए।
प्रबंधन के अनुसार फातिमीया के अवसर पर लखनऊ के विभिन्न क्षेत्रों में हर साल इस प्रकार की मजलिसें आयोजित की जाती हैं।
ग़ज़्ज़ा में भारी बारिश के कारण जीवन बेहाल
ग़ज़्ज़ा पट्टी में भारी बारिश और बाढ़ की वजह से जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बाढ़ का पानी हजारों झोपड़ियों को डुबा चुका है, जिससे स्थानीय परिवार ठंड में खुले आसमान के नीचे जीने के लिए मजबूर हैं।
ग़ज़्ज़ा पट्टी में भारी बारिश और बाढ़ की वजह से जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बाढ़ का पानी हजारों झोपड़ियों को डुबा चुका है, जिससे स्थानीय परिवार ठंड में खुले आसमान के नीचे जीने के लिए मजबूर हैं मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ग़ाज़ा की लगभग 20 लाख आबादी में से बड़ी संख्या अपने घरों से बेघर हो चुकी है। ग़ाज़ा पट्टी सर्दियों के आगमन के साथ ही आतंकित है।
एक झोपड़ी के अंदर, गीली मिट्टी पर रखे फटे पर्दे के पीछे, एक मां अपने बच्चों के कांपते शरीर को समेटती है। हजारों मांओं को बारिश की हर बूंद के साथ अपनी हताशा दिखाई देती है।
झोपड़ी की पुरानी चादर जब ठंडी हवा में कांपती है तो मां का दिल भी उसके साथ थरथराता है। बारिश अंदर टपकती है, कपड़े, बिस्तर, बर्तन और जिंदगी सब भीग जाते हैं। बच्चे जो कभी बारिश में खेलते थे, अब इसकी बूँदें सुनते ही मां की गोद में डरकर छिप जाते हैं।
ग़ज़्ज़ा की गलियाँ, जो कभी बारिश के बाद मिट्टी की खुशबू से महकती थीं, अब केवल कीचड़ से भरे रास्ते हैं, जिन पर कदम रखना भी कठिन है। झोपड़ियों के बाहर हर ओर गंदगी, पानी, मलबा और ठंड का बेरहम मिश्रण है। सर्दी ने जैसे घोषणा कर दी हो कि युद्ध के घाव अभी भर नहीं पाए हैं, बल्कि एक नया दर्द उन पर नमक छिड़कने को तैयार है।
ग़ज़्ज़ा के बेघर बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों के लिए बारिश की पहली बूंद एक नए घेरे की शुरुआत होती है। रातें सबसे डरावनी होती हैं। कीचड़ में धंसी झोपड़ी में बैठे परिवार अपनी टिमटिमाती मोमबत्ती बुझने से पहले ही डर के साये में सोचते हैं कि अगर बारिश तेज़ हो गई तो क्या झोपड़ी उनका साथ दे पाएगी? क्या पानी अंदर घुसकर बच्चों के पैरों तक पहुँच जाएगा? क्या यह रात भी जागकर बितानी होगी?
यह सिर्फ मौसम नहीं है, यह एक युद्ध है। एक ऐसा युद्ध जिसमें दुश्मन की जगह हवा लेती है, बारिश लेती है, ठंडी रात लेती है। और झोपड़ी एक ऐसे मोर्चे पर खड़ी है जहाँ वह केवल हार का सामना कर सकती
क़ुम अल मुकद्दस में 48वीं कौमी और अंतरराष्ट्रीय मआरिफ क़ुरआन व नहजुल बलाग़ा व सहीफ़ा ए सज्जादिया प्रतियोगिताओं का जल्द आरंभ
क़ुरआन व नहजुल बलाग़ा व सहीफ़ा ए सज्जादिया के 48वीं कौमी व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं इस वर्ष भी पवित्र शहर क़ुम में आयोजित की जा रही हैं, जिनमें ईरान सहित दुनिया भर से प्रतिभागी, विशेष रूप से जामिआतुल मुस्तफा अलआलमिया के अंतर्राष्ट्रीय छात्र और छात्राएं भाग लेंगे।
पवित्र क़ुरान, नहजुल बलाग़ा के और सहीफ़ा-ए-सज्जादिया की 48वीं राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं इस वर्ष भी पवित्र शहर क़ुम में आयोजित की जा रही हैं, जिनमें ईरान सहित दुनिया भर से प्रतिभागी, विशेष रूप से जामिआतुल मुस्तफा अल-आलमिया के अंतर्राष्ट्रीय छात्र और छात्राएं भाग लेंगे।
इस वर्ष की प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय चरण के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं भी शामिल हैं, जो विद्वान और क़ुरानिक हलकों के ध्यान का केंद्र बनी हुई हैं।
उद्घाटन समारोह सोमवार, 1 दिसंबर 2025 को सुबह 9 से 12 बजे तक आयोजित किया जाएगा, जबकि बहनों और भाइयों की प्रतियोगिताएं 2 से 6 दिसंबर 2025 तक दोपहर 2:30 बजे से रात 9 बजे तक जारी रहेंगी। समापन समारोह रविवार, 7 दिसंबर 2025 को सुबह 9 से 12 बजे तक आयोजित किया जाएगा।
यह कार्यक्रम पवित्र शहर क़ुम, बुलवारे 15 ख़ुरदाद, इमामजादेह सैय्यद अली अलैहिस्सलाम कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित किया जाएगा, जहाँ देश और विदेश से आने वाले प्रतिष्ठित क़ारी, हाफ़िज़ और विशेषज्ञों की भागीदारी की उम्मीद है।
सुन्नी सोर्स मे महदीवाद
सुन्नी रिवायतों की किताबों के रिव्यू से पता चलता है कि इन सोर्स में भी महदीवाद के बारे में अक्सर ज़िक्र होता है। सुन्नी सोर्स में बिखरी हुई (पराकंदा) कई रिवायतों के अलावा, सुन्नी विद्वानों द्वारा हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) को समर्पित हदीस की किताबों का कलेक्शन और संकलन उनकी नज़र में "महदीवाद" के बुलंद मक़ाम की ओर इशारा है।
महदीवाद पर आधारित "आदर्श समाज की ओर" शीर्षक नामक सिलसिलेवार बहसें पेश की जाती हैं, जिनका मकसद इमाम ज़माना (अ) से जुड़ी शिक्षाओ को फैलाना है।
सुन्नी सोर्स में महदीवाद
"महदीवाद" में विश्वास और हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) का ज़ोहूर - कुछ लोगों की सोच के विपरीत - सिर्फ़ शियो तक ही सीमित नहीं है; बल्कि, इसे इस्लामी मान्यताओं का एक अहम हिस्सा माना जाता है जो इस्लाम के पवित्र पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की खुशखबरी के आधार पर सभी इस्लामी पंथों और मकातिब ए फ़िक्र में बनी है।
इस्लामी मान्यताओं के क्षेत्र में, शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिसे इतनी अहमियत दी गई हो।
हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से जुड़ी हदीसों का ज़िक्र कई मशहूर सुन्नी किताबों में भी किया गया है। इनमें से ज़्यादातर किताबों में हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) की खासियतों और ज़िंदगी, उनके ज़ोहूर की निशानियों, ज़ोहूर की जगह और बैअत, उनके साथियों की संख्या और दूसरे विषयों पर बात की गई है।
इतिहास में मुसलमानों में यह बात मशहूर है कि आखिर में अहले-बैत (अलैहेमुस्सलाम) से एक आदमी आएगा और इंसाफ़ लाएगा। मुसलमान उसका पीछा करेंगे और वह इस्लामी देशों पर राज करेगा। उसका नाम “महदी” है। (अब्दुर-रहमान इब्न खलदुन, मुकद्दमा अल-अब्र, पेज 245)
हालांकि, कुछ लोगों ने "महदीवाद" के उसूल को मानने से मना कर दिया है और कमज़ोर वजहों से इसे नकारा है और इसे शिया सोच के तौर पर पेश किया है!
सुन्नी रिवायतों की किताबों के रिव्यू से पता चलता है कि इन सोर्स में भी महदीवाद के बारे में अक्सर ज़िक्र होता है। सुन्नी सोर्स में बिखरी हुई (पराकंदा) कई रिवायतों के अलावा, सुन्नी विद्वानों द्वारा हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) को समर्पित हदीस की किताबों का कलेक्शन और संकलन उनकी नज़र में "महदीवाद" के बुलंद मक़ाम की ओर इशारा है।
महदीवाद पर चर्चा करने वाली सुन्नी किताबों को दो कैटेगरी में बांटा जा सकता है:
- आम किताबें:
इन किताबों में, "महदीवाद" के विषय का - कई दूसरे मामलों की तरह - अनुपात में ज़िक्र किया गया है। बताए गए टॉपिक में हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) के बारे में दासताने हैं, जो पवित्र पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) के परिवार से और हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) और हज़रत फातिमा (सला मुल्ला अलैहा) के बच्चों से थे, हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) की खासियतें, उनकी ज़िंदगी और किरदार, उनके दिखने और राज करने का तरीका, और... .
लेकिन कुछ किताबें जिनमें हज़रत महदी (अलैहिस्सालम) से जुड़ी ज़्यादातर दास्ताने बताई गई हैं, वे हैं:
अल-मुसन्नफ़ अब्दुल रज़्ज़ाक
यह किताब अबू बक्र अब्दुल रज़्ज़ाक बिन हम्माम सनानी (मृत्यु 211 हिजरी) की रचना है। इस किताब में, उन्होंने "बाब अल महदी" नाम का एक चैप्टर खोला और उसमें दस से ज़्यादा हदीसें बयान की। इस चैप्टर के बाद, उन्होंने "इशतेरात अल-साआ'" शीर्षक के तहत कुछ और टॉपिक बताए। यह सुन्नियों की पहली किताब है जिसमें हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से जुड़ी हदीसों को सिस्टमैटिक तरीके से इकट्ठा किया गया है।
किताब अल-फ़ित्न
हाफ़िज़ अबू अब्दुल्लाह नईम बिन हम्माद अल-मुरोज़ी (मृत्यु 229 हिजरी) ने किताब अल-फ़ित्न में हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) और उनके ज़माने की खूबियों, खासियतों और घटनाओं के बारे में कई हदीसें बयान की हैं। लेखक ने आख़ेरुज़ ज़मान की मुश्किलों से जुड़े टॉपिक के लिए अलग-अलग शीर्षक वाले दस सेक्शन बनाए हैं। पहले चार सेक्शन हदीसों में बताई गई घटनाओं और मुश्किलों के बारे में हैं। हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से जुड़ी ज़्यादातर हदीसें सेक्शन पाँच और उसके बाद के सेक्शन में हैं।
अल-मुसन्नफ़ फ़िल अहादीस वल आसार
हाफ़िज़ अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन अबी शयबा अल-कूफ़ी (मृत्यु 235 हिजरी), जो ऊपर बताई गई किताब के लेखक हैं, ने चैप्टर 37 में “मुक़दमे” नाम का एक सेक्शन शामिल किया है। इस सेक्शन में, उन्होंने हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से जुड़ी हदीसों और उनसे जुड़े टॉपिक का ज़िक्र किया है। इनमें से कुछ हदीसों में हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) का नाम लिया गया है। इन हदीसों में बताए गए टॉपिक में, हम हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से संबंधित और मोरल क्वालिटी, उनकी हुकूमत का समय और उनकी उम्र, उनके ज़ोहूर से पहले के हालात, उनके ज़ोहूर की निशानी और उनके ज़ोहूर के समय की खासियतें बता सकते हैं।
मुसनद अहमद
अहमद इब्न हनबल अबू अब्दुल्लाह अल-शयबानी (मृत्यु 241 हिजरी) सुन्नियों के चार लीडरों में से एक हैं। अपनी किताब मुसनद में, उन्होंने हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) के बारे में कई और अनगिनत हदीसों का ज़िक्र किया है। इन हदीसों को किताब अल बयान फ़िल अख़बार साहिब अल-ज़मान के अपेंडिक्स के तौर पर और हदीस अल-महदी मिन मुसनद अहमद इब्न हनबल नाम के कलेक्शन में पब्लिश किया गया है।
शुरुआती हदीस किताबों में, मुसनद अहमद ने इस विषय पर सबसे ज़्यादा हदीसों का ज़िक्र किया है।
सुनन इब्न माजा
मुहम्मद इब्न यज़ीद अबू अब्दुल्लाह अल-कज़विनी (मृत्यु 275हिजरी) एक मशहूर और काबिल सुन्नी विद्वान और परंपरावादी थे, और उनकी सुनन कुतुब ए सहाए सित्ता में शामिल है। इस कलेक्शन की किताब अल-फ़ितन में, उन्होंनेहज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) की हदीसों के बयान के लिए एक सेक्शन बनाया है, जिसका शीर्षक है “बाब ख़ुरूज अल महदी”
सुनन अबू दाऊद
यह किताब भी सुन्नियों की कुतुब ए सहाए सित्ता में से एक है, और इसे सुलेमान इब्न अल-अशअस अबू दाऊद अल-सजिस्तानी (मृत्यु 275 हिजरी) ने लिखा था। उन्होंने इस कलेक्शन में “किताब अल महदी” नाम के एक सेक्शन का अलग से ज़िक्र किया है।
सुनन अबू दाऊद की हदीसें सुन्नियों के बीच महदी धर्म के खास सोर्स में से एक हैं।
अल-जामेअ अल-सहीह
यह किताब सुन्नियों की सहा ए सित्ता में से एक है, जिसे मुहम्मद इब्न ईसा अबू ईसा तिर्मिज़ी सलमी (मृत्यु 279 हिजरी) ने इकट्ठा किया था। हालांकि इस हदीसी कलेक्शन में हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से जुड़ी हदीसों की संख्या बहुत कम है, लेकिन उनके अच्छे ट्रांसमिशन चेन की वजह से, इन ज़रूरी और ध्यान देने लायक हदीसों में हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) के बारे में पूरी जानकारी है।
अल-मुस्तद्रक अलस सहीहैन
मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह अबू अब्दुल्लाह अल-हाकिम निशाबुरी (मृत्यु 405 हिजरी) ने हज़रत महदी (अलेहिस्सलाम) से जुड़ी हदीसों का ज़िक्र अल-फ़ित्न वा अल-मुलाहिम किताब के एक खास चैप्टर में और कुछ दूसरे हिस्सों में बिखरे हुए रूप में किया है। इन हदीसों में, उन्होंने हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से जुड़े कुछ विषय पर बात की है - जिसमें खानदान, शारीरिक खासियतें, उनके होने से पहले के हालात, उनके होने का तरीका और कई दूसरे मुद्दे शामिल हैं।
कंज़ुल उम्माल फी सुनन अल अक़्वाल वल अफ़्आल
अलाउद्दीन अली अल-मुत्तकी बिन हेसामुद्दीन अल-हिंदी (मृत्यु 975 हिजरी) अपनी किताब कंज़ुल उम्माल के लिए बहुत मशहूर हैं। यह हदीसी कलेक्शन सुन्नियों के सबसे मशहूर हदीसी कलेक्शन में से एक है। लेखक, जिनकी हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) पर अल-बुरहान फ़ी अलामात महदी आखेरुज़ ज़मान नाम की एक अलग किताब है, ने कंज़ुल उम्माल की हदीस कलेक्शन में “खुरुज अल-महदी” नाम का एक चैप्टर खोला है, जिसमें बिखरी हुई कहानियों के अलावा, उन्होंने अलग-अलग सोर्स से दर्जनों हदीसें कोट की हैं।
- खास किताबें:
शिया विद्वानों की तरह, सुन्नी विद्वानो ने भी अलग-अलग किताबों में इमाम महदी (अलैहिस्साम) की रिवायतो के होने पर इक्तेफ़ा नहीं किया हैं, बल्कि उन्होंने खास तौर पर हज़रत महदी (अलेहिस्सलाम) पर कई किताबें लिखी हैं। इनमें से कुछ मूल्यवान किताबे इस प्रकार हैं:
अरबऊन हीदस (चालीस हदीसे)
अबू नईम इस्फ़हानी (मृत्यु 420 हिजरी), एक मशहूर सुन्नी विद्वान, ने कई रचनाएँ लिखी हैं। चालीस हदीसों की किताब अब उपलब्ध नहीं है, और अर्बाली ने इसे अपनी किताब कश्फ़ अल-ग़ुम्मा फ़ि मारफ़ते अल-आइम्मा में शामिल किया है। हदीसों का ज़िक्र करने से पहले, उन्होंने कहा: “मैंने अबू नईम इस्फ़हानी द्वारा महदी (अलैहिस्सलाम) के बारे में इकट्ठा की गई चालीस हदीसों को पूरी तरह से शामिल किया है, जैसा कि उन्होंने उनका ज़िक्र किया था।
अल-बयान फ़ी अख़बार साहिब अल-ज़मान अलैहिस्सलाम
अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद गंजी अल-शाफ़ेई (मृत्यु 658 हिजरी) ने इस किताब में महदी और उनकी खूबियों और विशेषताओं से जुड़ी हदीसों को एक खास क्रम में और जुड़े हुए चैप्टर में शामिल किया है। अपनी किताब के परिचय में, उन्होंने माना है कि इस किताब में, उन्होंने सिर्फ़ सुन्नियों द्वारा सुनाई गई हदीसों का ज़िक्र किया है और शिया हदीसों का ज़िक्र करने से परहेज़ किया है।
उन्होंने इन हदीसों (सत्तर हदीसों) की पूरी लिस्ट को 25 चैप्टर में बांटा है और हज़रत महदी (अलैहिस्सालम) से जुड़ी कुछ डिटेल्स का भी ज़िक्र किया है।
यह ध्यान देने वाली बात है कि, ज़्यादातर सुन्नी विद्वानों द्वारा हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) के जन्म से इनकार करने के बावजूद, उन्होंने आखिरी अध्याय का शीर्षक इस तरह है: “फिद दलालते अला जवाज़ बकाइल महदी हय्यन।” इसके मुताबिक, उन्होंने न सिर्फ़ हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) के जन्म को माना है, बल्कि उनकी लंबे जीवन के बारे में किसी भी तरह की छूट को भी मना कर दिया है।
इक़्दुद दुरर फ़ी अख़बारिल मुंतज़र
यह किताब यूसुफ इब्न याह्या इब्न अली इब्न अब्दुल अज़ीज़ अल-मुक़द्देसी अल शाफेई (मृत्यु 658 हिजरी) ने लिखी थी। अल-दुर्र का कॉन्ट्रैक्ट अपनी पूरी जानकारी और दायरे के मामले में अपनी तरह का अनोखा है और बाद की किताबों के लिए एक ज़रूरी सोर्स रहा है। किताब के परिचय में, लेखक इसे लिखने का मोटिवेशन इस तरह बताता है: “समय का करप्शन, लोगों की परेशानियां और मुश्किलें, अपनी हालत सुधारने की उनकी निराशा, और उनके बीच मनमुटाव का होना कयामत के दिन तक नहीं रहेगा, और इन परेशानियों का खत्म होना महदी के आने और जाने से होगा... कुछ लोग इस बात को आम तौर पर नकारते हैं, और कुछ दूसरे मानते हैं कि जीसस के अलावा कोई महदी नहीं है।” लेखक इन दोनों विचारों को विस्तार से खारिज करता है, और पर्याप्त सबूतों के साथ इसे अस्वीकार्य मानता है, और किताब को संकलित करने के लिए, वह हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) से संबंधित हदीसों को उद्धृत करता है, उनके प्रसारण की श्रृंखलाओं का उल्लेख किए बिना, और उनके मुख्य स्रोतों को बताता है। ज़्यादातर हदीसों में, वह इस पर टिप्पणी करने से बचता है कि हदीस कमजोर है या प्रामाणिक है और केवल इसका उल्लेख करता है।
एक महत्वपूर्ण परिचय के बाद, लेखक ने महदीवाद की चर्चाओं को बारह अध्यायों में व्यवस्थित किया है।
अल उर्फ़ुल वर्दी फ़िल अखबर अल महदी अलैहिस्सलाम
जलालुल्दीन अब्द अल-रहमान इब्न अबी बक्र अल-सुयुती (मृत्यु 911 हिजरी) ने इस किताब में इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) की हदीसों को एक विस्तृत रूप में एकत्र किया है। यह किताब अल-रसाइल अल-अशर नामक ग्रंथों का एक संग्रह भी है और इसे अल-हवी अल-फतवा नामक एक बड़े संग्रह में प्रकाशित किया गया है।
इस किताब की शुरुआत में, वे लिखते हैं: “यह एक ऐसा हिस्सा है जिसमें मैंने महदी के बारे में बताई गई हदीसों और कामों को इकट्ठा किया है, और मैंने उन चालीस हदीसों को संक्षेप में बताया है जिनका ज़िक्र हाफ़िज़ अबू नईम ने किया है, और मैंने उनमें वो चीज़ें जोड़ी हैं जिनका ज़िक्र उन्होंने नहीं किया, और मैंने इसे (क) के तौर पर कोड किया है।
अल बुरहान फ़ी अलामात महदी आख़ेरुज़ ज़मान
यह किताब महदी अलैहिस्सलाम के बारे में डिटेल में लिखी गई हदीस की किताबों में से एक है, जिसमें 270 से ज़्यादा हदीसें हैं और इसे अलाउद्दीन अली इब्न हेसामुद्दीन ने लिखा था, जिन्हें मुत्तकी अल-हिंदी (मृत्यु 975 हिजरी) के नाम से जाना जाता है।
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान
हज़रत फ़ातिमा वो बेटी हैं जिनका पैग़म्बर (स) ने सम्मान किया: मौलाना सय्यद तहज़ीबुल हसन
हमेशा की तरह इस साल भी, 23, 24 और 25 नवंबर को रात 8 बजे जाफ़रिया मस्जिद, रांची, इंडिया में तीन दिन मजलिस रखी गई, जिसमें सोज़खानी जनाब सैयद अत्ता इमाम रिज़वी ने की, जबकि अलग-अलग कवियों ने मुहम्मद (स) के परिवार को श्रद्धांजलि दी।
हमेशा की तरह इस साल भी, 23, 24 और 25 नवंबर को रात 8 बजे जाफ़रिया मस्जिद, रांची, इंडिया में तीन दिन मजलिस रखी गई, जिसमें सोज़खानी जनाब सय्यद अत्ता इमाम रिज़वी ने की, जबकि अलग-अलग कवियों ने मुहम्मद (स) के परिवार को श्रद्धांजलि दी।
तीन दिन के मजलिसो को संबोधित करते हुए मौलाना हाजी सय्यद तहज़ीबुल हसन ने हज़रत ज़हरा (स) के जीवन पर रोशनी डालते हुए कहा कि हज़रत ज़हरा का जीवन पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए एक आदर्श है। फातिमा वह बेटी हैं जिनका पैग़म्बर ने सम्मान किया, और उम्मत के लिए यह अनिवार्य है कि वह उनका सम्मान करे जिनका पैग़म्बर सम्मान करते हैं, और पैग़म्बर ने कहा: फातिमा की खुशी मेरी खुशी है; मेरी खुशी अल्लाह की खुशी है। अब यह सभी मुसलमानों का कर्तव्य है कि वे हज़रत ज़हरा (स) को केवल एक पैग़म्बर की बेटी न समझें, बल्कि एक ऐसी महिला के रूप में समझें जो कभी गलती नहीं कर सकती। आज, पैगंबर की बेटी का उल्लेख इतना व्यापक होने की आवश्यकता है कि समाज में फैली नास्तिकता समाप्त हो और मुसलमानों के घर हज़रत ज़हरा (स) के चरित्र से रोशन हों। हर युग में, सच्चे लोगों पर अत्याचार हुआ है, लेकिन झूठे हारे हैं और सच्चे जीत गए हैं। धरती पर मुहम्मद (स) के परिवार से ज़्यादा सच्चा परिवार कोई नहीं है।
मजलिसो मे महदी इमाम साहब ने ज़ोर दिया कि समय को हज़रत फातिमा की याद से सीखना चाहिए।
यह प्रोग्राम सय्यद मेहदी इमाम सय्यद ज़फरुल हसन, अल्हाज सय्यद अज़हर हुसैन के बेटे ने आयोजित किया था।
यह मजलिसे अंजुमन-ए-जाफरिया रजिस्टर्ड रांची की देखरेख में आयोजित की गई थी।
इस मौके पर, अंजुमन-ए-जाफरिया के अध्यक्ष निहाल हुसैन, सय्यद अशरफ हुसैन रिजवी, सेक्रेटरी जनाब सय्यद अली हसन फातमी और अंजुमन-ए-जाफरिया रांची के सदस्य मौजूद थे।
हज़रत फातिमा ज़हरा (स) की महानता उनकी बेमिसाल निजी शान की वजह से है
अय्याम ए फ़ातमिया के मौके पर हुए तीन दिवसीय मजालिस में, मौलाना तकी रज़ा आबिदी ने हज़रत फातिमा ज़हरा (स) की खूबियों, किरदार और विलायत के ओहदे पर रोशनी डाली और उनकी शख्सियत को उम्माह के लिए एक हमेशा रहने वाला गाइड बताया।
शहज़ादी फातिमा ज़हरा (स) की शहादत के मौके पर तीन दिन का एक बड़ा शोक सेशन हुआ। यह हैदराबाद में मजलिस-ए-उलेमा हिंद के ऑफिस में हुआ। यह रूहानी और दिमागी जमावड़ा तंज़ीम-ए-जाफरी ने ऑर्गनाइज़ किया था, जिसमें देश के जाने-माने धार्मिक जानकार मौलाना सैयद तकी रज़ा आबिदी ने जमावड़े को संबोधित किया। अपने भाषण में मौलाना ने हज़रत ज़हरा (स) के पवित्र स्वभाव पर रोशनी डालते हुए अल्लामा इक़बाल के इस विचार का ज़िक्र किया कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) तीन रिश्तों में मरियम (स) से ज़्यादा प्यारी हैं। उन्होंने इस बात को और साफ़ करते हुए कहा कि शरिया की सोच में यह सवाल ज़रूरी है कि हज़रत ज़हरा (स) की महानता उनके रिश्तों की वजह से है या उनके निजी रुतबे की वजह से।
मौलाना तक़ी रज़ा आबिदी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर हज़रत ज़हरा (स) का रिश्ता रसूल-ए-अल्लाह (स) हज़रत अली (अ) या हसनैन (अ) से न भी होता, तो भी उनकी शख्सियत की महानता का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। उनकी पहचान को सिर्फ़ रिश्तों के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत महानता के तौर पर भी देखा जाना चाहिए।
हज़रत ज़हरा (स) को विलायत की रक्षक बताते हुए उन्होंने कहा कि बीबी ने न सिर्फ़ हालात के आगे घुटने नहीं टेके, बल्कि विलायत की रक्षा के लिए अपनी जान और बच्चों की कुर्बानी भी दे दी। मौलाना ने ऐतिहासिक कहावत "ख्लो अबा अल-हसन" का ज़िक्र करते हुए कहा कि हज़रत ज़हरा (स) ने सबसे मुश्किल हालात में इमाम अली (अ) की जान बचाई, और यह काम सिर्फ़ वही इंसान कर सकता है जो समझदार हो, फ़र्ज़ का जानकार हो और धर्म के दर्द से वाकिफ़ हो।
मजलिस के आखिर में, हिस्सा लेने वालों ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की महानता को उनकी ज़िंदगी, ज़ुल्म और वफ़ादारी के बारे में सोचकर श्रद्धांजलि दी। हिस्सा लेने वालों ने दुख जताया और दोहराया कि हज़रत ज़हरा (स) की मेहरबानी आज की पीढ़ियों तक जारी है, वही कौसर, वही फ़ातिमा ज़हरा (स)।













