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ग़ज़्ज़ा में हज़ारों निर्दोष लोग बेरहमी से मारे जा रहे हैं और बच पाने वाले भी भूख और दवा की कमी से दिन-ब-दिन दम तोड़ रहे हैं। शेख अल-अज़हर ने पुनः स्पष्ट किया कि जो भी हथियारों से इज़राइली शासन की सहायता करता है या नरसंहार को बढ़ावा देने वाले झूठे बयान देता है, वह इस अत्याचार में बराबर का भागीदार है।

जामेअ अज़हर मिस्र के प्रमुख अहमद अल-तैय्यब ने ग़ज्ज़ा की विनाशकारी स्थिति पर गहरा चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज मानवता का एक सबसे बड़ा इम्तिहान चल रहा है। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि जो कोई भी हथियारों के ज़रिये इज़राइल का समर्थन करता है या उसके फैसलों को सही ठहराता है, वह इस अपराध में साझेदार है।

शेख अल-अज़हर ने विशेष रूप से ज़ोर दिया कि कब्ज़ाधारक गाज़ा के लोगों को जानबूझकर भूखा रखे हुए हैं, जो रोटी के एक टुकड़े और पानी की बूंद के लिए तरस रहे हैं, साथ ही शरणार्थी ठिकानों और राहत केंद्रों को भी गोलीबारी से निशाना बनाया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि ग़ज़्ज़ा में हजारों निर्दोष लोग बेरहमी से मारे जा रहे हैं और बच पाने वाले भी भूख और दवा की कमी से दिन-ब-दिन दम तोड़ रहे हैं। शेख अल-अज़हर ने पुनः स्पष्ट किया कि जो भी हथियारों से इज़राइली शासन की सहायता करता है या नरसंहार को बढ़ावा देने वाले झूठे बयान देता है, वह इस अत्याचार में बराबर का भागीदार है।

ग़ज़्ज़ा में चल रहे अकाल और भुखमरी की समस्या इस क्षेत्र की पूरी तरह घेराबंदी और मानवीय सहायता के रोके जाने के कारण और भी विकट होती जा रही है। उन्होंने विश्व समुदाय से अपील की है कि वे इस आपदा को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करें और गाजा के लोगों को राहत पहुंचाने का रास्ता खोलें।

हौज़ा ए इल्मिया के प्रख्यात, सक्रिय और विनम्र शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अहमद शबानी ने दुनिया को अलविदा कहा, उनके निधन की खबर ने शैक्षणिक और धार्मिक हलकों में दुःख की लहर दौड़ा गई, जिससे उनके शिष्यों, सहयोगियों और प्रियजनों को गहरा सदमा पहुंचा है।

हौज़ा एलमिया के प्रख्यात, सक्रिय और विनम्र शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अहमद शबानी ने दुनिया से विदा ले ली। उनके निधन की खबर ने शैक्षणिक और धार्मिक हलकों में दुःख की लहर दौड़ा दी, जिससे उनके शिष्यों, सहयोगियों और प्रियजनों को गहरा सदमा पहुंचा है।   

मरहूम की सादगी, परहेज़गारी, अनुशासन और छात्रों के प्रति निस्वार्थ प्रेम उनके जीवन की विशेषता थी उनका पवित्र जीवन वास्तव में एक धार्मिक विद्वान के लिए एक आदर्श उदाहरण था। 

हौज़ा सूत्रों के अनुसार, मरहूम हमेशा छात्रों को नमाज़-ए-शब की ताकीद किया करते थे और खुद भी इस पर अमल करते थे। पढ़ाई के समय वे छात्रों के साथ पुस्तकालय में मौजूद रहते और अपने कथन व आचरण से एक आदर्श प्रस्तुत करते थे। 

उनका पूरा जीवन ज्ञान और कर्म, विनम्रता और ईमानदारी, सच्चाई और पवित्रता की जीती-जागती मिसाल था ऐसे सक्रिय शिक्षक का जाना शैक्षणिक और धार्मिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी इस दुःखद घटना पर मरहूम के परिवारजनों और चाहने वालों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता है। 

 

 

ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद क़ालीबाफ़ ने शहीद ग़ुलाम अली रशीद के परिवार से मुलाक़ात के दौरान इज़राईल शासन के ख़िलाफ़ सफलता में उनकी भूमिका की सराहना की।

ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद क़ालीबाफ़ ने ख़ातमु अलअंबिया हेडक्वार्टर के पूर्व प्रमुख शहीद जनरल ग़ुलाम अली रशीद और उनके बेटे शहीद अब्बास रशीद को श्रद्धांजलि दी और इज़राइल के ख़िलाफ ऐतिहासिक प्रतिक्रिया को अभूतपूर्व बताया। 

विस्तार से बताया गया कि क़ालीबाफ़ ने शहीद जनरल रशीद के घर पर उनके परिवार से मुलाक़ात कर शोक व्यक्त किया और कहा कि जिस तरह से 12 दिन के युद्ध में ज़ायोनी सरकार को जवाब दिया गया, वह उसके इतिहास में एक अनोखा मोड़ है।

इस तरह की हिम्मत और ऊर्जा किसी और देश में नहीं देखी गई। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने साबित किया कि वह यह क्षमता रखता है। इन सभी कार्यवाहियों में शहीद जनरल रशीद की भूमिका प्रमुख और निर्णायक थी। 

क़ालीबाफ़ ने शहीद जनरल रशीद के व्यक्तित्व को अद्वितीय बताया और कहा कि उनकी दूरदर्शिता, रणनीति, रचनात्मकता और साहसी नेतृत्व ने ईरान की सैन्य रणनीति को नई दिशा दी। 

उनके अनुसार, शहीद जनरल रशीद न केवल युद्ध के मैदान के विशेषज्ञ थे, बल्कि बौद्धिक और संचालनात्मक स्तर पर भी एक दुर्लभ रत्न थे। 

उन्होंने शहीद जनरल रशीद और उनके बेटे की शहादत के बाद परिवार के दुःख को गहरा सदमा बताया और दुआ की कि ईश्वर इस सब्र का सर्वोत्तम प्रतिफल प्रदान करे। 

इस अवसर पर उन्होंने इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) की खुफिया शाखा के उप प्रमुख शहीद मेजर जनरल हसन मोहक्किक के घर जाकर उनके परिवार से भी मुलाक़ात की और उन्हें भी श्रद्धांजलि अर्पित की।

 

27 देशों ने ग़ज़्जा पर हमले बंद करने और तुरंत संघर्ष विराम की मांग की है। इन देशों ने ग़ज़्ज़ा के लोगों के साथ एकजुटता जताई है।

ब्रिटेन और 27 अन्य देशों ने ग़ज़्ज़ा में तत्काल युद्धविराम की मांग की है। इन देशों का कहना है कि ग़ज़्ज़ा के नागरिकों की तकलीफें असहनीय हो गई हैं। एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि इज़राइल की मदद पहुंचाने की प्रक्रिया खतरनाक है और वे इसे कड़ी निन्दा करते हैं।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ग़ज़्ज़ा में हमास के नियंत्रण वाली स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि सप्ताहांत में खाना मिलने का इंतजार करते हुए 100 से ज्यादा फिलिस्तीनी इज़रायली फायरिंग में मारे गए और 19 अन्य भोजन की कमी से जान गंवा बैठे।

हालांकि, इज़राइल के विदेश मंत्रालय ने इन देशों के बयान को खारिज किया और कहा कि उनका बयान हकीकत से परे है और हमास को गलत संदेश देता है। इज़राइल ने हमास पर युद्ध विराम और बंदियों की रिहाई पर नए समझौते पर आने के बजाय झूठ फैलाने और मदद की आपूर्ति कमजोर करने का आरोप लगाया है।

पिछले 21 महीनों से हमास के साथ जारी युद्ध में ग़ज़्ज़ा में इज़राइल की नीतियों की निंदा करने वाले कई अंतरराष्ट्रीय बयानों के विपरीत, यह घोषणा सच्चाई के लिए सराही जा रही है।

इस बयान पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, न्यूजीलैंड और स्विट्ज़रलैंड सहित 27 देशों के विदेश मंत्री शामिल हैं।

 

गज़्ज़ा पट्टी में इसराइली और मिस्री सख्त घेराबंदी के कारण एक गम्भीर मानवीय संकट पैदा हो गया है, जिसका सबसे बड़ा पहलू व्यापक भूख और खाद्य सामग्री की भारी कमी है।

हाल के दिनों में ग़ज़्ज़ा के हालात की दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं, जो इस क्षेत्र में अकाल, भूखमरी और कुपोषण के संकट को दर्शाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और सहायता संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़्ज़ा पट्टी जिसमें लगभग 20 लाख लोग रहते हैं, को रोजाना लगभग 600 ट्रकों की खाद्य सामग्री की जरूरत होती है। लेकिन हक़ीक़त में केवल 50 से 100 ट्रक ही अनियमित और बहुत कम मात्रा में वहां पहुंचते हैं। इस घेराबंदी के कारण फसलों, सामान और जरूरी चीजों का आवागमन इसराइल के कब्जे वाले इलाकों और मिस्र की सीमाओं से बहुत सीमित हो गया है, जिसके चलते कई परिवार कई दिनों तक भोजन नहीं पा रहे हैं और भूख की मुश्किल स्थिति में हैं।

खाद्य पदार्थ, ईंधन और पानी की भारी कमी ने हालात को बेहद कठिन बना दिया है। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि बच्चे और आम जनता बहुत ज्यादा भूखे हैं, कई मौतें भी भूख के कारण हो रही हैं। यूनिसेफ और अनरवा ने चेतावनी दी है कि कुपोषण की स्थिति अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है और अस्पताल भरे हुए हैं जहां भूखे मरीजों के लिए दवाइयां और बेड की कमी है। सामान और लोगों की कम आमदनी के कारण काले बाज़ार ने जन्म लिया है, जिससे बहुत से गरीब लोग खाद्य सामग्री खरीद पाने में असमर्थ हो गए हैं।

इस मानवीय संकट में, कार्यकर्ताओं ने तीन मुख्य कदमों पर ज़ोर दिया है:

  1. भरोसेमंद संस्थाओं जैसे "ईरान हमदिल" को वित्तीय सहायता देना ताकि आवश्यक वस्तुएं भेजने और ट्रकों की संख्या बढ़ाने में मदद मिल सके।
  2. ग़ज़्ज़ा के लोगों की मुसीबत दूर होने की फरियाद में दुआ और रोज़ा रख कर माअनवी सहायता देना।
  3. मीडिया और जन जागरूकता के ज़रिए इस संकट को भुलाए जाने से रोकना और पश्चिमी देशों और इज़राइल पर घेराबंदी खत्म करने के लिए दबाव बनाना।

साथ ही, अन्य इस्लामी देशों द्वारा शांति के जहाज़ भेजकर घेराबंदी तोड़ने की बात की गई है, लेकिन ईरान युद्ध की स्थिति के कारण ऐसा नहीं कर सकता। इस क्षेत्र के दूसरे देश इस काम में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।

अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी बताया गया है ताकि बार-बार दर्दनाक तस्वीरें देखने से उत्पन्न चिंता और डिप्रेशन से बचा जा सके। दुआ और उम्मीद के साथ-साथ व्यावहारिक मदद में बने रहना जरूरी है।

यह भी याद दिलाया गया है कि यमन के संकट से गुजरते हुए अनुभव से सीख लेकर इस तरह की मुसीबतों को पार किया जा सकता है।

इस प्रकार, ग़ज़्ज़ा की भयावह स्थिति को देखते हुए, लोगों की मदद के लिए दिल से साथ देना और मिल-जुलकर आर्थिक, आध्यात्मिक और मीडिया के ज़रिए सहायक कदम उठाना सबसे प्रभावी रास्ता माना जाता है। ये कदम फंसे हुए लोगों की मदद करने और उनके तकलीफों को कम करने में बहुत अहम हैं।

 

ईरानी खिलाड़ियों ने एशियाई स्केटिंग चैंपियनशिप में एक रजत पदक और एक कांस्य पदक जीता।

एशियाई चैंपियनशिप के पहले दिन की प्रतियोगिताएं इनलाइन फ्री स्टाइल स्केटिंग की स्पीड स्लालोम श्रेणी में युवाओं और वयस्कों के वर्ग में पुरुषों और महिलाओं की स्पर्धाओं के साथ जारी रहीं।

बुधवार को महिलाओं के वयस्क वर्ग में ईरानी खिलाड़ी तराना अहमदी, जो विश्व स्केटिंग खेलों की स्वर्ण पदक विजेता हैं, ने प्रारंभिक और नॉकआउट दोनों चरणों में शानदार प्रदर्शन किया और सभी खिलाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए फाइनल में प्रवेश किया।

 

इस ईरानी एथलीट ने फाइनल मुकाबले में रजत पदक हासिल किया।

 वहीं पुरुषों के वर्ग में रज़ा लसानी ने तीसरे स्थान के मुकाबले में ताइवान के एक मजबूत खिलाड़ी से मुकाबला किया और उसे हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया।

 

ईरानी राष्ट्रपति ने कहा कि ज़ायोनी सरकार की किसी भी सैन्य कार्रवाई का मुक़ाबला किया जाएगा ईरान युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अपने बचाव के लिए पूरी तरह तैयार है।

ईरानी राष्ट्रपति डॉ. मसूद पिज़ेश्कियान ने कहा है कि अगर इज़राइल ने कोई सैन्य गलती दोहराई तो ईरान कड़ा जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है। 

राष्ट्रपति पिज़ेश्कियान ने अलजज़ीरा टीवी को दिए इंटरव्यू में कहा,हम हर तरह की आक्रामकता का जवाब देने को तैयार हैं हमारी सेना इज़राइल के अंदर गहराई तक जाकर हमला करने को तैयार है।

इज़राइल ने हमें नुकसान पहुँचाया है, और हमने पूरी ताकत से जवाब दिया, लेकिन वे अपने नुकसान को छिपाता हैं इज़राइल ईरान को विभाजित, अस्थिर या खत्म करने में नाकाम रहा है।

युद्ध नहीं, मगर पूरी तैयारी:हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन युद्धविराम की गारंटी पर भरोसा नहीं करते हम पूरी शक्ति से अपनी रक्षा के लिए तैयार हैं।इज़राइल हमारी मिसाइलों की सफलता पर चुप है, लेकिन उनकी युद्ध रोकने की गुहार सब कुछ बयांन करती है।

ईरान न कभी झुका है न झुकेगा। हम कूटनीति और संवाद में विश्वास करते हैं।क्षेत्र के देशों ने पहले कभी ईरान को ऐसा समर्थन नहीं दिया। 

हम परमाणु हथियारों के खिलाफ हैं यह हमारा राजनीतिक, धार्मिक, मानवीय और रणनीतिक सिद्धांत है।यूरेनियम संवर्धन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत जारी रहेगा।आगे की बातचीत दोनों पक्षों के हितों पर आधारित होनी चाहिए हम धमकियों से नहीं डरेंगे।

 

ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसूद पिज़ेश्कियान ने क़ुम अलमुक़द्दसा में आयतुल्लाहिल उज़्मा मकारिम शिराजी से उनके कार्यालय में मुलाकात की।

आयतुल्लाहिल उज़्मा मकारिम शिराज़ी ने बुधवार शाम, 23 जुलाई 2025 को डॉ. मसूद पिज़ेश्कियान, राष्ट्रपति इस्लामी गणतंत्र ईरान से मुलाकात में वर्तमान देशीय स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा,आपका चेहरा दिखाता है कि अल्हम्दुलिल्लाह आप प्रसन्न हैं।

उन्होंने इस्राइल और अमेरिका द्वारा ईरान के खिलाफ चलाई जा रही मनोवैज्ञानिक युद्ध का जिक्र करते हुए कहा,दुश्मन यह सोच रहा था कि ईरान पर हमला करके वह शायद अफरा तफरी और अशांति फैला देगा लेकिन अल्लाह के फजल से न केवल ऐसा नहीं हुआ, बल्कि अल्हम्दुलिल्लाह जनता का एकता पहले से भी अधिक मजबूत हो गया। 

मरजय-ए-तकलीद ने अपनी बातचीत के एक अन्य भाग में जनता की आर्थिक समस्याओं की ओर इशारा करते हुए कहा,जनता को तीन बड़ी समस्याओं का सामना है, पहली समस्या मुद्रास्फीति, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों में, दूसरी समस्या आवास की और तीसरी समस्या युवाओं के लिए रोजगार की है इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास किए जाने चाहिए और इनशाअल्लाह आप सफल होंगे। 

उन्होंने सामाजिक समस्याओं के समाधान में दानशील संस्थाओं और जन सहयोग के महत्व पर भी जोर दिया और कहा,भलाई करने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और हम भी इन प्रयासों का समर्थन करते हैं ताकि इनशाअल्लाह हम सभी अपने-अपने हिस्से के अनुसार जनता की समस्याओं को कम और हल कर सकें।

 

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने हाल ही में इज़राइल और ईरान के बीच होने वाले युद्ध को तेहरान स्थित एविन जेल पर ज़ायोनी शासन की सेना के हमले को अंतरराष्ट्रीय कानून का गंभीर उल्लंघन बताया है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान में पिछले जून के अंत में 12-दिवसीय युद्ध के दौरान तेहरान की एविन जेल पर इज़राइली हवाई हमलों की जांच की मांग करते हुए इसे युद्ध अपराध का उदाहरण बताया।

 आईआरएनए के हवाले से पार्सटुडे की मंगलवार की रिपोर्ट के अनुसार एमनेस्टी के बयान में कहा गया है कि इज़राइली सेना के जानबूझकर किए गए हवाई हमले अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का गंभीर उल्लंघन हैं और इनकी युद्ध अपराध के रूप में जांच की जानी चाहिए। इज़राइली सेना ने एविन जेल पर हवाई हमले किए, जिसके परिणामस्वरूप दर्जनों नागरिक मारे गए और घायल हुए, साथ ही जेल को भारी क्षति पहुंची।

 एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपने बयान में घोषणा की कि उसके निष्कर्ष वीडियो तस्वीरों, उपग्रह चित्रों और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों पर आधारित हैं।

 बयान में कहा गया है कि ऐसा कोई विश्वसनीय संकेत या सबूत नहीं मिला है जो यह दर्शाता हो कि एविन जेल एक सैन्य लक्ष्य थी।

 23 जून को इज़राइली शासन ने एविन जेल पर हमला कर उस पर बमबारी की थी। इज़राइली प्रक्षेपास्त्रों ने, जिनके बारे में दावा किया गया था कि वे सैन्य और सुरक्षा लक्ष्यों को निशाना बना रहे थे, इस हमले में दर्जनों नागरिकों की जान भी ले ली।

 

कुछ पत्रकारों और मीडिया कार्यकर्ताओं ने एक विस्तृत रिपोर्ट में न्यूयॉर्क टाइम्स के इज़राइल के प्रति संरचनात्मक पक्षपात और उसके कुछ पत्रकारों के ज़ायोनी लॉबी के साथ वित्तीय व व्यक्तिगत संबंधों को छिपाने की बात उजागर की है।

इस ग्रुप ने न्यूयॉर्क टाइम्स को ग़ज़ा में नरसंहार का सहयोगी और इज़राइल के अपराधों को सही ठहराने का एक औज़ार क़रार दिया है।

मीडिया कर्मियों के इस गठबंधन के बयान में कहा गया है कि इस अखबार के कई पत्रकारों, संपादकों और वरिष्ठ अधिकारियों का इज़राइल समर्थक लॉबी के साथ गहरा संबंध है।

ग़ज़ा युद्ध विरोधी लेखक" ग्रुप के बयान में कहा गया: "न्यूयॉर्क टाइम्स ग़ज़ा पट्टी में नरसंहार का साथी है, जो अमेरिकी साम्राज्यवाद का मुखपत्र बनकर विदेश नीति पर विशेष वर्ग की सहमति को आकार देता है।"

अन्य मुख्यधारा मीडिया की तरह, न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी ग़ज़ा युद्ध की अपनी कवरेज के लिए भारी आलोचना झेली है। कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विश्लेषकों ने इस मीडिया पर इज़राइल के युद्ध अपराधों का रास्ता साफ करने का आरोप लगाया है।

इन लेखकों और मीडिया कार्यकर्ताओं के दस्तावेज़ बताते हैं कि न्यूयॉर्क टाइम्स की खबरों की पक्षपातपूर्ण कवरेज को इसके वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों के इज़राइल सरकार या सेना के साथ वित्तीय, भौतिक और विचारधारात्मक संबंधों से समझा जा सकता है।

इस मामले में विचारधारात्मक और भौतिक संबंधों के अन्य स्तरों, जैसे इज़राइल समर्थक थिंक टैंक्स और लॉबी ग्रुप्स के साथ जुड़ाव, का भी ज़िक्र किया गया है।

साथ ही, यह भी आरोप लगाया गया है कि न्यूयॉर्क टाइम्स के समाचार संपादकों ने पत्रकारों को "उत्तेजक" शब्दों जैसे "नरसंहार", "जातीय सफाया" और "मक़बूज़ा क्षेत्र" का उपयोग न करने का निर्देश दिया है, यहाँ तक कि "फिलिस्तीन" नाम लेने से भी मना किया है।

"ग़ज़ा युद्ध विरोधी लेखक" ग्रुप ने कहा कि उनके नतीजे यह ज़ाहिर करते हैं कि "कैसे टाइम्स द्वारा प्रशंसित आचार संहिता एक जातिवादी दोहरे मानदंड में बदल गई है।"

"ग़ज़ा युद्ध विरोधी लेखक" ग्रुप, जिसमें लेखक और कलाकार शामिल हैं, का गठन इज़राइली शासन द्वारा 7 अक्टूबर 2023 के हमलों के बाद ग़ज़ा पट्टी पर बमबारी शुरू करने के हफ्तों बाद हुआ था। इस ग्रुप ने न्यूयॉर्क टाइम्स की इमारत के बाहर और कभी-कभी मैनहट्टन में उसके लॉबी में विरोध प्रदर्शन किया है।

ग़ज़ा में युद्ध अपराधों में न्यूयॉर्क टाइम्स के शामिल होने की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने इस अखबार को "न्यूयॉर्क युद्ध अपराध टाइम्स" कहकर संबोधित किया है।

इज़राइल के ग़ज़ा युद्ध में 59,000 फिलिस्तीनियों की मौत हुई है, एक ऐसा युद्ध जिसे कई देशों, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार ग्रुप्स और विशेषज्ञों ने नरसंहार की संज्ञा दी है।

"ग़ज़ा युद्ध विरोधी लेखक" ग्रुप का कहना है कि न्यूयॉर्क टाइम्स और इज़राइल के बीच गहरे संबंध इस अखबार की खबरों में पक्षपातपूर्ण रुख की वजह हैं।

इस ग्रुप ने न्यूयॉर्क टाइम्स की वेबसाइट पर पत्रकारों के इज़राइल के साथ व्यक्तिगत या पारिवारिक संबंधों को छिपाने को पत्रकारिता के पेशेवर नैतिक सिद्धांतों की स्पष्ट  अनदेखी क़रार दिया है।