رضوی

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आयतुल्लाह कुरबान अली दरी नजफाबादी ने कुरआन के तफ्सीर के दरस में कहा कि कुरआन और अहलेबैत (अ.स.) की शिक्षाएँ व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं का मौलिक समाधान हैं और युवा पीढ़ी की परवरिश केवल कुरआन और अहलेबैत अ.स.की शिक्षाओं से ही संभव है, ताकि वे सांस्कृतिक आक्रमण और बौद्धिक विचलन से सुरक्षित रह सकें।

आयतुल्लाह कुरबान अली दरी नजफाबादी ने कुरआन के तफ्सीर के दरस में कहा कि कुरआन और अहलेबैत अ.स.की शिक्षाएँ व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं का मौलिक समाधान हैं और युवा पीढ़ी की परवरिश केवल कुरआन और अहलेबैत अ.स. की शिक्षाओं से ही संभव है, ताकि वे सांस्कृतिक आक्रमण और बौद्धिक विचलन से सुरक्षित रह सकें।

आयतुल्लाह कुरबान अली दरी नजफाबादी ने आज सुबह कुरआन के तफ्सीर के दरस को संबोधित करते हुए कहा कि कुरआन से लगाव, इस्लामी ज्ञान की गहरी समझ और पैगंबर-ए-इस्लाम स.अ.व.व. और मासूम इमामों (अ.स.) की सीरत की पैरवी इंसान को विभिन्न बौद्धिक और व्यावहारिक चुनौतियों से मुक्ति देने का निश्चित रास्ता है।

उन्होंने कहा कि कुरआन एक पूर्ण मार्गदर्शक घोषणापत्र है जो जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करता है। चाहे व्यक्तिगत इबादतें हों या सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और शैक्षणिक क्षेत्र - हर स्तर पर इसकी शिक्षाएँ इंसान को सही दिशा प्रदान करती हैं।

आयतुल्लाह दरी नजफाबादी ने युवा पीढ़ी की परवरिश को विशेष रूप से आवश्यक बताते हुए कहा कि आज के युवाओं को अध्ययन, आलोचनात्मक सोच और कुरआनी शिक्षाओं पर अमल की सख्त जरूरत है, ताकि वे पश्चिमी वैचारिक आक्रमण, सांस्कृतिक हमलों और गुमराह करने वाले संदेहों से सुरक्षित रहकर कुरआन और अहलेबैत (अ.स.) की रोशनी वाली बुनियादों पर अपनी आधुनिक इस्लामी पहचान बना सकें।

उन्होंने कहा कि अहलेबैत अ.स.की शिक्षाएँ नैतिकता, न्याय, परहेजगारी, सेवा और बौद्धिक एवं व्यावहारिक जेहाद का एक व्यापक तंत्र प्रदान करती हैं, जो व्यक्ति और समाज दोनों के निर्माण में मौलिक भूमिका निभाता है।

इमाम-ए-जुमआ अराक ने इस बात पर भी जोर दिया कि युवाओं और समाज के बीच नैतिकता, जिम्मेदारी और लोक-सेवा की चेतना को कुरआन और अहलेबैत (अ.स.) की सीरत की बुनियाद पर मजबूत किया जाए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन जलाली ने होज़ावी रिसर्च के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा: रिसर्च वह तरीका है जिससे हौज़वी समय और इस्लामिक क्रांति की ज़रूरतों को पूरा करता है। हौज़वीयो को पढ़ाई, मॉडर्न साइंटिफिक इनोवेशन और साइंटिफिक टेक्स्ट को इकट्ठा करके समाज की ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए।

हौज़ा ए इल्मिया इस्फ़हान में रिसर्च मामलों के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहसिन जलाली ने इस्फ़हान में हौज़ा ए इल्मिया साहिब-ए-अम्र मदरसा में हुए एक प्रोग्राम में अपनी स्पीच के दौरान कहा: रिसर्च वह तरीका है जिससे होज़ावी समय और इस्लामिक क्रांति की ज़रूरतों को पूरा करता है।

अपने भाषण की शुरुआत में, उन्होंने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत पर दुख जताया और इन दिनों को फ़ातिमी शिक्षाओं की दुआ और प्रचार के लिए एक खास मौका माना, और कहा: हम सभी को इस इंसान की जानकारी और पवित्र जीवन से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाना चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन जलाली ने एक मदरसे के रिसर्च फील्ड की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और कहा: रिसर्च ही समय की ज़रूरतों और इस्लामी सिस्टम के सवालों का जवाब है। मदरसा पढ़ाई, इनोवेशन और सही साइंटिफिक टेक्स्ट पेश करके समाज की साइंटिफिक और इंटेलेक्चुअल ज़रूरतों को पूरा करता है।

हौज़ा ए इल्मिया इस्फ़हान में रिसर्च मामलों के प्रमुख ने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के सौ साल पूरे होने के मौके पर क्रांति के सुप्रीम लीडर के जारी किए गए मैसेज का ज़िक्र करते हुए कहा: इस मैसेज को हौज़ा ए इल्मिया के इतिहास में एक अहम मोड़ माना जाता है, और इसमें बताई गई मांगें, जैसे कल्चरल न्यायशास्त्र, सामाजिक दर्शन, और इस्लामी सभ्यता का बनना, इन सभी पर बहुत गहरी और बड़ी रिसर्च की ज़रूरत है, और इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर की मांगों को पूरा करना "सेमिनार रिसर्च" पर निर्भर करता है।

उन्होंने सुप्रीम लीडर के पढ़ाई के शौक की ओर भी इशारा किया और कहा: हाल के 12 दिन के युद्ध के दौरान भी, उनकी पढ़ाई नहीं रुकी। यही उनकी लीडरशिप और गाइडेंस का आधार है। उन्होंने सलाह दी कि उपदेशक और छात्र, खासकर फ़ातिमी दिनों जैसे मौकों पर, सिस्टमैटिक पढ़ाई करें ताकि सही फ़ातिमी शिक्षाएँ समाज तक पहुँच सकें।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने इंडोनेशिया में अपने वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दौरे के कार्यक्रमों के दौरान इंडोनेशिया में जामिअतुल मुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि के साथ, दक्षिण सौलावेसी प्रांत के शहर मकास्सर में स्थित अलहिक्मा संस्थान का दौरा किया।

जामिअतुल मुस्तफा अलआलमिया के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने इंडोनेशिया अपने वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दौरे के कार्यक्रमों के दौरान, इंडोनेशिया में जामिअतुल मुस्तफा अल-आलमिया के प्रतिनिधि के साथ, दक्षिण सुलावेसी प्रांत के शहर मकास्सर में स्थित अल-हिकमा संस्थान का दौरा किया।

रिपोर्ट के अनुसार, इस अवसर पर अलहिक्मा संस्थान के निदेशक श्री जुलियादी, कई जिम्मेदार अधिकारी और केंद्र के छात्र भी मौजूद थे। दोनों नेताओं ने अल-हिकमा संस्थान की वैज्ञानिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ जामिअतुल मुस्तफा अल-आलमिया के साथ संभावित साझा सहयोग के क्षेत्रों पर आपसी चर्चा की।

जनाब जुलियादी ने जामिअतुल मुस्तफा अल-आलमिया के संरक्षक का स्वागत करते हुए अल-हिकमा संस्थान की स्थापना की प्रक्रिया, शैक्षिक लक्ष्यों और शोध गतिविधियों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की और इंडोनेशिया की युवा पीढ़ी में धार्मिक शिक्षा के प्रसार और इस्लामी ज्ञान के प्रचार के महत्व को व्यक्त किया।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने इस संस्थान के विभिन्न हिस्सों का दौरा करने के दौरान की जा रही वैज्ञानिक और सांस्कृतिक कोशिशों पर संतोष व्यक्त किया, इस केंद्र की गतिविधियों को क्षेत्र में इस्लामी ज्ञान के प्रसार का एक सफल उदाहरण बताते हुए जामिअतुल मुस्तफा द्वारा इस तरह के वैज्ञानिक केंद्रों के समर्थन पर भी जोर दिया।

इस्लामिक क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सय्यद अली खामेनेई ने बसीज सप्ताह के मौके पर देश को संबोधित करते हुए, बसीज जैसी संस्था को हर देश के लिए काम का और गाइड बताया और कहा कि ईरान जैसा देश, जो दुनिया भर के गुंडों और बुरे लोगों के सामने मज़बूती से खड़ा है, उसे दूसरे सभी देशों से ज़्यादा बसीज की ज़रूरत है।

27 नवम्बर 2025 की रात को ईरानी क़ौम से टेलीविजन पर अपने ख़ेताब में, जो बसीज सप्ताह के मौक़े पर किया गया, बसीज जैसे आंदोलन को हर मुल्क के लिए फ़ायदेमंद और मुश्किलों को हल करने वाला बताया और कहा, ईरान जैसे मुल्क को दूसरे मुल्कों की तुलना में बसीज की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय बदमाशों और गुंडों के मुक़ाबले में सीना तानकर खड़ा है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने वर्चस्ववादियों के लालच से भरे हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ कौंमों के रेज़िस्टेंस को ज़रूरी बताते हुए कहा, ईरान में रेज़िस्टेंस के जिस तत्व की बुनियाद रखी गयी और वह इतना विकसित हुआ कि आज वह पश्चिमी देशों सहित पूरी दुनिया यहां तक कि अमरीका में फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा पट्टी के सपोर्ट में होने वाले नारों में देखा जा सकता है।

उन्होंने अपनी स्पीच के दौरान क्षेत्र के विषयों की ओर इशारा किया और कहा कि  इस बात में शक नहीं कि 12 दिन की जंग में ईरानी क़ौम ने अमरीका को भी और ज़ायोनी शासन को शिकस्त दी। उन्होंने दुष्टता की लेकिन उन्हें जवाब में थप्पड़ खाने को मिला और उन्हें ख़ाली हाथ लौटना पड़ा, वे अपने किसी भी लक्ष्य को हासिल न कर सके, यह उनके लिए वास्तव में शिकस्त दी।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईरान से जंग के लिए ज़ायोनी शासन की 20 साल की योजनाबंदी पर आधारित बयानों की ओर इशारा किया और कहा, उन्होंने ऐसी जंग की योजना बनायी थी कि जिसमें वे अवाम को उकसाकर, सिस्टम के ख़िलाफ़ जंग के लिए सामने लाएं लेकिन मामला बिलकुल उलट गया और इस तरह उनकी योजना नाकाम हुयी कि जो लोग सिस्टम से दूरी बनाए हुए थे वे भी इस्लामी व्यवस्था के साथ हो गए और इस तरह मुल्क में अवामी सतह पर एकता वजूद में आयी।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि हमें भी नुक़सान हुआ और हमने अपने प्यारों को खोया, जंग का स्वभाव यही है। लेकिन इस्लामी गणराज्य ने दिखा दिया कि वह इरादे और ताक़त का केन्द्र है और शोर शराबे की परवाह किए बिना वह पूरी दृढ़ता से डट सकता और फ़ैसला ले सकता है। साथ ही हमें पहुंचने वाले नुक़सान की तुलना में दुश्मन को बहुत भारी नुक़सान पहुंचा।

उन्होंने 12 दिन की जंग में अमरीका को होने वाले भारी नुक़सान की ओर इशारा किया और कहा, इस जंग में अमरीका को भारी नुक़सान पहुंचा क्योंकि वह हमले और डिफ़ेंस में अपने सबसे विकसित आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर के भी अपने लक्ष्य यानी क़ौम को धोखा देने और उन्हें अपने साथ करने में नाकाम रहा बल्कि राष्ट्रीय एकता और बढ़ी और अमरीका नाकाम हुआ।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ग़ज़ा पट्टी की त्रासदी में, जो क्षेत्र के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से है, ज़ायोनी शासन की बेइंतेहा रुस्वाई और बदनामी की ओर इशारा करते हुए कहा कि  इस मामले में अमरीका ने ज़ायोनी शासन का साथ दिया जिसकी वजह से वह बहुत ही बदनाम और बेआबरु हुआ क्योंकि दुनिया के अवाम जानते हैं कि ज़ायोनी शासन अमरीका की मदद के बिना ऐसी त्रासदी को जन्म देने की ताक़त नहीं रखता।

उन्होंने इस वक़्त दुनिया में सबसे ज़्यादा घृणित इंसान ज़ायोनी शासन के प्रधान मंत्री और दुनिया पर छाया हुआ सबसे घृणित संगठन और गैंग ज़ायोनी शासन को बताया और कहा, चूंकि अमरीका उनके साथ है, इसलिए ज़ायोनियों से घृणा अमरीका में भी पहुंच गयी है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दुनिया के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में अमरीका के हस्तक्षेप को उसके ज़्यादा से ज़्यादा अलग थलग पड़ने के तत्वों में गिनवाया और कहा, जिस क्षेत्र में अमरीका ने हस्तक्षेप किया, वहाँ जंग छिड़ी, नस्ली सफ़ाया हुआ और तबाही फैल गयी।

अपराधी ज़ायोनी गैंग का सपोर्ट करने के मामले में अमरीका की अपने दोस्तों से भी ग़द्दारी और दुनिया में तेल और भूमिगत स्रोतों के लिए जंग छेड़ने की उसकी कोशिश की ओर इशारा किया, कि जिसका दायरा अब लैटिन अमरीका तक पहुंच गया है, किया और कहा कि ऐसी सरकार से इस्लामी गणराज्य कभी भी संपर्क और सहयोग नहीं करेगा।

उन्होंने युक्रेन जंग को जो बहुत ख़र्चीली और बेनतीजा भी है, अमरीका के हस्तक्षेपों के नमूनों में गिनवाया और कहा, अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति जो कह रहे थे कि तीन दिन में इस जंग को ख़त्म करा देंगे, क़रीब एक साल बाद भी, इस वक़्त उस मुल्क पर 28 अनुच्छेदों पर आधारित योजना थोपने के चक्कर में हैं जिसे उन्होंने ख़ुद जंग में ढकेला है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने लेबनान पर ज़ायोनी शासन के हमले, सीरिया पर उसकी चढ़ाई और वेस्ट बैंक में उसके अपराधों और गज़ा पट्टी की त्रासदीपूर्ण स्थिति को दुष्ट ज़ायोनी शासन के अपराधों और जंग को अमरीका की ओर से खुले समर्थन व सपोर्ट का एक और परिणाम बताया।

उन्होंने ईरान की तरफ़ से अमरीका को पैग़ाम भेजे जाने के बारे में कुछ अफ़वाहें गढ़े जाने की ओर इशारा करते हुए कहा, ऐसी अफ़वाहें गढ़ते हैं कि ईरान सरकार ने फ़ुलां मुल्क के ज़रिए अमरीका को पैग़ाम भेजा है जो पूरी तरह झूठ है और ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने बयान के दूसरे भाग में, बसीज क्या है, इस बात की व्याख्या में कहा, बसीज अपने संगठानत्मक स्वरूप में आईआरजीसी का एक भाग है जिसकी दुश्मन के मुक़ाबले में दृढ़ता की और अवाम के संबंध में सेवक की छवि है।

उन्होंने इसी तरह इस संबंध में कहा कि बसीज का सिलसिला बहुत व्यापक है जो पूरे मुल्क में और हर ग़ैरतमंद, संघर्षशील, जोश और उम्मीद से भरे शख़्स और गिरोह में मौजूद है और जिसकी झलक आर्थिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक, यूनिवर्सिटी के स्तर पर, उत्पादन, काम और दूसरे क्षेत्रों में नज़र आती है।

उन्होंने बसीज के जोश व ख़रोश और ज़िंदादिली को दुनिया के ज़ालिमों के मुक़ाबले में क़ौमों के रेज़िस्टेंस के बढ़ने का आधार बताया और कहा कि दुनिया के पीड़ित रेज़िस्टेंस के बढ़ने से सपोर्ट और ताक़त का एहसास कर रहे हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपने बयान के अंत में बसीज के संबंध में सरकारी तंत्रों के सभी अधिकारियों को बल देकर कहा कि एक बसीजी की तरह अपने फ़रीज़े पर ईमान, जोश और ग़ैरतमंदी के साथ अमल कीजिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अंत में क़ौम को ख़ेताब करते हुए कुछ अहम सिफ़ारिशें की जिसमें सबसे पहले राष्ट्रीय एकता की रक्षा और उसे मज़बूत बनाना था।

उन्होंने ईरानी क़ौम को राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने और मज़बूत करने पर बल देते हुए कहा, वर्गों और राजनैतिक धड़ों में मतभेद मौजूद है, लेकिन अहम बात यह है कि दुश्मन के मुक़ाबले में 12 दिवसीय जंग की तरह एकजुट रहें कि यह एकजुटता राष्ट्रीय ताक़त के लिए बहुत अहम तत्व है।

अल्लामा नाईनी की याद में एक इंटरनेशनल कांग्रेस अलवी पवित्र दरगाह पर हुई, जिसमें विद्वान और जाने-माने लोग मौजूद थे, और इस जाने-माने विद्वान की रचनाओं का 40 वॉल्यूम का कलेक्शन लॉन्च किया गया।

मोहक़्क़िक़ और अल्लामा मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन नाईनी की याद में इंटरनेशनल कांफ़्रेस गुरुवार, 27 नवम्बर 2025 को आस्तान मुकद़्दस अलावी पर आयोजित हुई।रिपोर्ट के अनुसार: यह कांफ़्रेस आस्ताने मुक़द्दस अलवी, हुसैनी और हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के मैनेजमेंट के सहयोग से मिर्ज़ा नाईनी के प्रयासो का सम्मान करने के मकसद से हुई।

इस समारोह में हौज़ा ए इल्मिया क़ुम और के विद्वान और जाने-माने लोग, मराज ए एज़ाम के प्रतिनिधि, हौज़ा ए इल्मिया नजफ़ अशरफ़ और कर्बला ए मौअल्ला के विद्वानों, जानकारों, यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसरों, एक्सपर्ट्स, स्टूडेंट्स और प्रोफ़ेसरों के एक ग्रुप के साथ-साथ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से दरगाहों के ट्रस्टी और प्रतिनिधि शामिल हुए।

इस कांफ़ेंस के पहले स्पीकर अस्ताना ए अलवी के जनरल ट्रस्टी सय्यद ईसा अल-खुरसान ने इस दरगाह की ओर से स्वागतीय मैसेज दिया। मरहूम आयतुल्लाहिल उज़्मा नाईनी के पोते शेख़ जाफ़र नाईनी ने नाईनी परिवार की ओर से, इराक में इस कांग्रेस को आयोजित करने में आयतुल्लाहिल उज़्मा सिस्तानी की कीमती देखभाल और गाइडेंस के लिए आपकी प्रशंसा की, और अलवी और हुसैनी  दरगाहों के अधिकारियों और इस ज़रूरी साइंटिफिक इवेंट में शामिल होने के लिए मौजूद सभी लोगों को धन्यवाद भी दिया।

सय्यद मुनीर अल-ख़ब्बाज़ ने मिर्ज़ा नाईनी की इल्मी शख्सियत के बारे में तीन बातों : उनकी फ़िक़्ही और उसूली मीरास, मरहूम आयतुल्लाह ख़ूई और शेख हुसैन हिल्ली जैसे उनके महान छात्रो के बीच उसूली मुद्दों में अंतर, और मिर्ज़ा के इज्तिहाद के उसूलों के बीच उनके लेसन और पर्सनल राइटिंग में अंतर, खासकर उस किताब में जो उन्होंने संदिग्ध कपड़ों के बारे में लिखी थी पर ज़ोर दिया।

फिर अत्बा ए हुसैनी से जुड़े इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) साइंटिफिक कॉम्प्लेक्स के डायरेक्टर सय्यद अब्बास अल-हुसैनी ने अपने भाषण मे मरहूम अल्लामा नाईनी को एक "कॉम्प्रिहेंसिव इनसाइक्लोपीडिया" कहते हुए उनकी इंटेलिजेंस, लिटरेरी मास्टरी, फिलोसोफिकल गहराई, थियोलॉजिकल स्कोप और उस समय के डेवलपमेंट की सटीक जानकारी को याद किया।

उन्होंने ज़ोर दिया: मिर्ज़ा नाईनी की पर्सनैलिटी को फिर से ज़िंदा करना कोई रस्मी काम नहीं है, बल्कि एक ऐसे स्कॉलर के प्रति वफ़ादारी है जिसने इस फील्ड के इंटेलेक्चुअल मूवमेंट और इस्लामिक दुनिया की सोशल अवेयरनेस में भूमिका निभाई है। उन्होंने मिर्ज़ा नाईनी की विरासत पर तीन रिसर्च टाइटल तैयार करने में इस कॉम्प्लेक्स के साइंटिफिक पार्टिसिपेशन की भी घोषणा की, जिन्हें एनसाइक्लोपीडिया में पब्लिश किया गया है।

आयतुल्लाह अलीरज़ा आराफ़ी: मिर्ज़ा नाईनी, इस्लामी दुनिया के क्रांतिकारी फ़क़ीह

इस कांफ़्रेंस का एक हिस्सा ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह आराफ़ी के भाषण के लिए था। उन्होंने शुरू में मिर्ज़ा नाईनी को “आज के ज़माने के सबसे महान साइंटिफिक और पॉलिटिकल लोगों में से एक” बताया और उनकी पर्सनैलिटी की खासियतों को तीन एरिया में समझाया:

  1. साइंटिफिक और इंटेलेक्चुअल जीनियस

इंटेलेक्चुअल और पॉलिटिकल डेवलपमेंट से निपटने में मिर्ज़ा नाईनी की शानदार इंटेलिजेंस और सटीक एनालिसिस का ज़िक्र करते हुए, आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा: नाईनी ने फ़िक़्ह, उसूल, कलाम, कुरान, हदीस और पॉलिटिकल सोच में अपनी महारत के साथ, एक पूरी और अनोखी पर्सनैलिटी बनाई और अपने बुनियादी इनोवेशन से इस इल्म में एक नया स्थान बनाया। उनके मुताबिक, मिर्ज़ा “इज्तिहाद की ओरिजिनैलिटी” और “नए डेवलपमेंट की समझ” के बीच एक सफल लिंक बनाने में सफ़ल रहे।

  1. सामाजिक और राजनीतिक भूमिका

तंबाकू आंदोलन, ईरानी संवैधानिक आंदोलन और 1920 की इराकी क्रांति में मिर्ज़ा की सक्रिय मौजूदगी का ज़िक्र करते हुए, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नाईनी हौज़ा ए इल्मिया में राजनीतिक जागरूकता लाने वालों में से एक थे और उन्होंने उपनिवेशवाद और पिछड़ेपन के खिलाफ़ ज्ञान देने वाले और असरदार रुख़ अपनाए। आयतुल्लाह आराफ़ी ने संवैधानिक अनुभव और इमाम खुमैनी के आंदोलन पर इसके असर की फिर से अध्ययन करने के महत्व पर भी ज़ोर दिया।

  1. नैतिक और आध्यात्मिक पहलू

अपने भाषण के आखिरी हिस्से में, आयतुल्लाह आराफ़ी ने मोहक़्क़िक़ नाईनी की ज़िंदगी के नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर बात की और कहा: "आज, पहले से कहीं ज़्यादा, हमें ऐसे विद्वानों की ज़रूरत है; ऐसे विद्वान जो अपने ज्ञान, नैतिकता और आध्यात्मिकता से समाज को रास्ता दिखाते हैं।"

अल्लामा नाईनी के कामों के कलेक्शन का अनावरण

इस समारोह के आखिर में, मोहक़्क़िक़ नाईनी के 40-वॉल्यूम वाले साइंटिफिक इनसाइक्लोपीडिया का अनावरण किया गया, जो हौज़ा ए इल्मिया क़ुम और इमाम हुसैन (अ) साइंटिफिक कॉम्प्लेक्स की दो साल की कोशिश का नतीजा है।

ध्यान देने वाली बात है: अल्लामा मिर्ज़ा नैनी की इंटरनेशनल कांग्रेस का पहला चरण 23 अक्टूबर 2025 को कुम अल मुकद्देसा में हुआ था। इसमें इस्लामिक क्रांति के सुप्रीम लीडर का मैसेज और आयतुल्लाहिल उज़्मा जाफ़र सुबहानी का भाषण था। साथ ही, मदरसा इमाम काज़िम (अलैहिस्सलाम) में विद्वानों, प्रोफेसरों और हौज़ा ए इल्मिया के स्टूडेंट्स का एक ग्रुप भी मौजूद था। इसके बाद यह 25 अक्टूबर 2025 को मशहद में जारी रही। इस कांग्रेस का आखिरी चरण भी इराक में होगा, जिसका पहला सेशन गुरूवार को नजफ़ अशरफ़ में और आखिरी सेशन29 नवम्बर 2025 को कर्बला में होगा।

आयतुल्लाह सैयद अहमद खातमी ने कहा,अमेरिका बातचीत का इच्छुक नहीं है बल्कि ईरान को झुकाना चाहता है। 47 साल से हम मर्ग बा अमेरिका अमेरिका मुर्दाबाद कहते आ रहे हैं और जब तक अमेरिका की शैतानीयत जारी है, यह नारा जनता की जुबान से मिटने वाला नहीं है।

मजलिस ए ख़बरगान के सदस्य आयतुल्लाह खातमी ने मसलाए इमाम ख़ुमैनी (रह) पाकदश्त में हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शब-ए-शहादत (शहादत की रात) की मजलिस-ए-अज़ा को संबोधित करते हुए कहा, अगर आज की रात को "शब-ए-अशुराए फातिमा" कहा जाए तो मुबालगा नहीं होगा।

उन्होंने कहा,यह अमीरुलमोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी की सख़्त रातों में से एक है। जंगों में सख़्त रातें आई हैं, शब-ए-लैलतुल-हरीर में पूरी रात जंग की, लेकिन कोई रात भी इस रात की तरह सख़्त नहीं थी। नहजुल बलाग़ा के ख़ुतबा नंबर 202 में फ़रमाते हैं कि "मेरा गम सदियों तक रहने वाला है और मेरी रातें बिना नींद की हैं।

आयतुल्लाह खातमी ने हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के मकाम (दर्जे) का ज़िक्र करते हुए कहा, इमाम ख़ुमैनी (रह) ने फ़रमाया था कि अगर हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा मर्द होतीं तो नबी होतीं। इमाम ज़माना अजलल्लाहु तआला फरजहुश शरीफ भी फ़रमाते हैं कि मैं दुख़्तर-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम की इक्तिदा करता हूं। इसका मतलब यह है कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हर ज़माने के लिए कामिल और मुतलक नमूना हैं।

उन्होंने आयत "इन्ना आतैनाकल कौसर" के तहत कहा,हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा "शहीद-ए-विलायत" हैं। फख़्र-ए-राज़ी ने ख़ैर-ए-कसीर" (बहुत अच्छाई) को हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की औलाद की कसरत से ताबीर किया है।

इसके बावजूद कि बहुत से औलाद-ए-फातिमा सलामुल्लाह अलैहा को शहीद किया गया, आज भी दुनिया औलाद-ए-फातिमा सलामुल्लाह अलैहा से भरी हुई है। लेकिन कौसर का मफ़हूम (अर्थ) इससे बहुत बुलंद है, यह सिर्फ औलाद की तादाद नहीं बल्कि हज़रत सिद्दीक़ा ताहिरा सलामुल्लाह अलैहा की अठारह साल की बरकत वाली ज़िंदगी और उनके बाकी रहने वाले दुरूस (सबक) का मजमूआ है।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के रहबर आयतुल्लािल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामेनेई के भारत में प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉक्टर अब्दुल मजीद हकीम इलाही का झारखंड की धरती रांची में जोरदार स्वागत किया गया। यह उनका झारखंड का पहला दौरा है।

ईरान की इस्लामी क्रांति के रहबर आयतुल्लािल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामेनेई के भारत में प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉक्टर अब्दुल मजीद हकीम इलाही का झारखंड की धरती रांची में जोरदार स्वागत किया गया। यह उनका झारखंड का पहला दौरा है।

वह झारखंड वक्फ बोर्ड के सदस्य और मस्जिद जाफरिया रांची के इमाम और खतीब हज़रत मौलाना सैय्यद तहज़ीबुल हसन रिज़वी के निमंत्रण पर उनकी साहबज़ादी की शादी में शिरकत और निकाह पढ़ाने के लिए रांची पहुंचे हैं।

इस मौके पर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉक्टर अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने कहा कि भारत और ईरान के रिश्ते बहुत पुराने और मजबूत हैं। ईरान के सूफियों ने भारतीय उपमहाद्वीप में आकर मोहब्बत, भाईचारे और इंसानियत की खुशबू फैलाने में अहम भूमिका निभाई है। आज ज़रूरत है कि भारत में एकता और भाईचारे को मजबूत किया जाए।

उनका स्वागत करने वालों में मौलाना सैय्यद तहज़ीबुल हसन रज़वी, मौलाना ज़ियाउल हदी इस्लाही, डॉक्टर यासीन कासमी, मौलाना शरीफ अहसन मज़हरी, मौलाना रज़वानुल्लाह कासमी, मोहम्मद करीम खान, सैय्यद शाहरुख हसन रज़वी, मौलाना दिलशाद खान, मौलाना इमाम हैदर जैद, मौलाना काजिम रिज़ा बनारस, मौलाना इलियास कोलकाता, मौलाना शजर अब्बास गुजरात, मौलाना तहज़ीबुल हसन राम नगर बनारस, मास्टर हैदर, हाशिम अली, हसन अब्बास, कासिम अली, एस.एम. खुरशीद, सैय्यद समर अली, फ़राज़ अहमद, हबीब हैदर, हसन इमाम, सैय्यद अब्बास हसन, अमीर गोपालपुरी समेत अंजुमन जाफरिया और मिल्लत जाफरिया के कई लोग शामिल थे, जिन्होंने वली फकीह के प्रतिनिधि का गर्मजोशी से स्वागत किया।

 

फातिमा ज़हरा (स) के लिए सालाना तीन दिन का ग्यारहवां शोक समारोह अमलो इंडिया में संपन्न हुआ; मजलिसो को संबोधित करते हुए, उलेमा ने पवित्र पैग़म्बर (स) के पवित्र जीवन के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली।

अय्याम ए फ़ातमिया के मौके पर, हाशमी ग्रुप अमलो मुबारकपुर, आज़मगढ़ ज़िला (उत्तर प्रदेश) ने रविवार, सोमवार, मंगलवार, 23, 24, 25 नवंबर, 2025 को रात 8:00 बजे अज़ाखाना अबू तालिब, महमूदपुर मोहल्ला अमलो, मुबारकपुर, आज़मगढ़ ज़िला (उत्तर प्रदेश) में फ़ातिमा ज़हरा (उन पर शांति हो) के लिए सालाना तीन दिन का ग्यारहवां सालाना मजलिसे आयोजित की। इसमें विद्वानों ने फ़ातिमा ज़हरा (स) के जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर रोशनी डाली और उन पर आई दर्दनाक तकलीफ़ों के बारे में विस्तार से बताया।

पहले मजलिस में बोलते हुए, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद सज्जाद हुसैन रिज़वी (भीखपुर, बिहार) ने कहा कि अपने मासूम और चुने हुए बंदों की ज़िंदगी और किरदारों में, जिन्हें अल्लाह ने इंसानों के लिए एक मिसाल बताया है, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का नाम सबसे खास है। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा की कुछ खूबियाँ और नेकियाँ इतनी ऊँची हैं कि बड़े-बड़े पैगंबर भी उन तक नहीं पहुँच पाए।

दूसरी मजलिस में बोलते हुए, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद उरूज-उल-हसन मीसम लखनऊ ने कहा कि फ़ातिमा ज़हरा (स) की ज़ात “लैलतुल-क़द्र” का एक उदाहरण है। कुरान में, “लैलतुल-कद्र” (क़द्र की रात) का मतलब फातिमा ज़हरा (स) की ज़ात से है। जैसे “लैलतुल कद्र” का एहसास हर किसी के बस की बात नहीं है, वैसे ही लोग फातिमा ज़हरा (स) के बारे में जानकारी हासिल करने में काबिल नहीं हैं।

हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद मुहम्मद हसनैन बाक़री, ने तीसरी और आख़िरी मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि एक मुसलमान का ईमान तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक वह फातिमा (स) को नबूवत का हिस्सा न समझे। पैग़म्बर (स) के अहले बैत (अ) असल में सिर्फ़ वही लोग हैं जो फातिमा ज़हरा के रिश्तेदार हैं। अल्लाह ने फातिमा ज़हरा के ज़रिए अहले बैत (अ) को इंट्रोड्यूस किया है। फातिमा, बान की नेक पिता, उनके बेटे, उनके पति नबी की अहलुल बैत हैं जिनकी पवित्रता की गारंटी कुरान देता है और जिन पर अल्लाह और उनके फ़रिश्ते दुआएं और शांति भेजते हैं।

फ़िनिशा की नमाज़ इफ़्तिख़ार हुसैन और उनके साथियों ने पढ़ाई, जबकि नमाज़ इरफ़ान रज़ा ने पढ़ाई। इस तरह, फातिमा ज़हरा (स) के लिए सालाना तीन दिन के शोक समारोह का ग्यारहवां दौर अच्छे से खत्म हुआ।

इस मौके पर, हसन इस्लामिक रिसर्च सेंटर अमलावी के उपदेशक, संस्थापक और संरक्षक मौलाना इब्न हसन अमलावी, इमामिया मदरसा अमलावी के प्रिंसिपल मौलाना शमीम हैदर नसेरी मारूफ़, मौलाना मुहम्मद आज़म कोमी, मौलाना रज़ा हुसैन नजफ़ी और बड़ी संख्या में मानने वाले शामिल हुए।

 मदरसा बिंतुल हुदा हरियाणा, भारत द्वारा आयोजित तीन दिवसीय आध्यात्मिक और धन्य फातिमा दिवस विभिन्न स्थानों पर बहुत ही सम्मानजनक, प्रतिष्ठित और संगठित तरीके से आयोजित किए गए; बड़ी संख्या में भाग लेने वाले विश्वासियों ने श्रद्धा और सम्मान के साथ सैय्यदा कोनिन हज़रत फातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत और फ़जाइल की याद को ताज़ा किया।

मदरसा बिंतुल हुदा हरियाणा, भारत द्वारा आयोजित तीन दिवसीय आध्यात्मिक और अय्याम ए फ़ातमिया विभिन्न स्थानों पर बहुत ही सम्मानजनक, और संगठित तरीके से आयोजित किए गए; बड़ी संख्या में  महिलाओं ने भाग लिया सय्यदा कायनात हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत, फ़ायदों और शहादत की याद को श्रद्धा और सम्मान के साथ ताज़ा किया।

मदरसा बिन्तुल हुदा, हरियाणा, भारत में तीन दिवसीय फ़ातिमा जलसे आयोजित: केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि सय्यदा कायनात (सला मुल्ला अलैहा) के फ़ायदों को समझने के लिए एक पवित्र हृदय और एक जागृत आत्मा भी ज़रूरी है, वक्ताओं ने कहा

मजलिसो की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई।

फ़ातिमी जलसों को सय्यदा ख़ानाशिन फ़ातिमा, सय्यदा सानिया बतूल, सय्यदा किसा बतूल और सय्यदा अफ़रीदा बतूल सहित अन्य ने संबोधित किया।

वक्ताओं ने कहा कि सय्यदा कायनात (सला मुल्ला अलैहा) के फ़ायदों को समझने के लिए केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि एक पवित्र हृदय और एक जागृत आत्मा भी ज़रूरी है; फातिमा (सला मुल्ला अलैहा) वह वास्तविकता है जिसके ज्ञान से व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है।

उस्तादों ने कहा कि हज़रत फातिमा (स) को जानना नबी के दिल तक पहुँचने का नाम है; जो फातिमा (स) के जितना करीब होगा, वह धर्म की सच्चाई के उतना ही करीब होगा।”

उन्होंने आगे कहा कि सैय्यदा (स) के दुख की गूंज कर्बला की हर धड़कन में सुनाई देती है; फातिमा (स) के ज़ुल्म को समझे बिना कर्बला की भावना तक पहुँचना मुमकिन नहीं है।

प्रचारकों ने कहा कि सैय्यदा का वफ़ादारी का बचाव यह संदेश है कि धर्म का ज़िंदा रहना उस वफ़ादारी में है जो फातिमा (स) के दामन में फली-फूली।

वक्ताओं ने कहा कि आज के दौर में फातिमा के दिन हमें सय्यदा की शिक्षाओं की रोशनी में अपने किरदार, सोच और सामाजिक ज़िम्मेदारियों को फिर से परखने की सीख देते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि सय्यदा की शहादत का दुखद पहलू इतिहास की वह चुप्पी है जिसने सच्चाई के चेहरे को धुंधला करने की कोशिश की, लेकिन आज भी वफ़ादारी के लोग इस चुप्पी के ख़िलाफ़ सच्चाई की आवाज़ उठाते हैं।

इमाम बाड़ा सिब्तैनाबाद में आयतुल्लाह सैय्यद अली ख़ामेनेई-ए-दिल्ली के ऑफ़िस में दो दिन मजलिसो का आयोजन हुआ; मौलाना सैयद कल्बे जवाद नक़वी ने इसके दूसरी मजलिस को संबोधित किया।

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत के मौके पर, मौलाना सय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने इमाम बाड़ा सब्तैनाबाद, हज़रतगंज, लखनऊ, इंडिया में आयतुल्लाह सैय्यद अली हुसैनी ख़ामेनेई-ए-दिल्ली के ऑफ़िस में हुए दो दिन की मजलिसो के आखिरी मजलिस को संबोधित किया और कौसर के मतलब पर रोशनी डाली।

उन्होंने कहा कि इमामियाह और आम विद्वानों ने ‘कौसर’ के छत्तीस मतलब बताए हैं, लेकिन चार मतलब ऐसे हैं जिन्हें लगभग सभी तफ़सीर करने वालों ने समझाया है: एक यह कि कौसर का मतलब है ‘कौसर का तालाब’। दूसरा है ‘नबूवत का मिशन’। तीसरा है कुरान का ज्ञान और चौथा है पैगंबर की कौम। हालांकि, अहले सुन्नत के एक तफ़सीर करने वाले, अल्लामा अबू बक्र इब्न अय्याश ने इसका जवाब दिया और कहा कि इन सभी मतलबों को गलत तरीके से समझाया गया है, क्योंकि कौसर का मतलब है वह खानदान जो हज़रत फ़ातिमा (स) से आया है; उन्होंने कौसर की पवित्र सूरह से इस दावे का सबूत भी समझाया; उन्होंने लिखा है कि अल्लाह ने पैगंबर (स) से कहा कि वे उस नेमत के लिए शुक्रगुज़ार होकर नमाज़ और कुर्बानी करें जो हमने उन्हें ‘कौसर’ के रूप में दी है। इसका मतलब है कि यह नेमत पहले पैगंबर के पास नहीं थी और अब मिल गई है। तफ़सीर करने वाले इसका मतलब यह बताते हैं कि सभी चीजें पहले से ही पैगंबर के पास थीं, इसलिए उनका मतलब नहीं निकाला जा सकता, बल्कि कौसर का मतलब है हज़रत फातिमा (स) और उनका पवित्र परिवार।

मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने आम विद्वानों की बातों और बयानों की रोशनी में समझाया कि अगर कौसर का मतलब हज़रत फातिमा (स) और उनका पवित्र परिवार नहीं है, तो इस सूरह की आखिरी आयत में ‘अब्तर’ किसे कहा गया है? पवित्र कुरान ने उन्हीं लोगों को ‘अब्तर’ कहा है जो पैग़म्बर का अपमान करते थे, इसलिए यह कहना सही है कि कौसर का मतलब पवित्र और नेक इमाम (स) और उनके परिवार से है, नहीं तो इस सूरह की आखिरी आयत बेमतलब लगेगी।

उन्होंने कहा कि रास्ते सफलता की गारंटी नहीं हैं, बल्कि लीडर के पीछे चलने से सफलता मिलती है, इसलिए मुसलमानों के लिए पैग़म्बर (स) के अहले-बैत का पालन करना ज़रूरी है, उनके बिना सफलता मुमकिन नहीं है।