رضوی
हज़रत ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की मज़लूमियत
अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की विलायत और मज़लूमियत-ए-हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस्लाम की तारीख़ के वो दो रोशन बाब हैं जिनमें हक़ और बातिल की तमीज़ हमेशा वाज़ेह रही है। मगर सदा अफ़सोस कि इन्हीं दो हक़ीक़तों को उम्मत ने सबसे ज़्यादा फरामोश कर दिया।
अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की विलायत और मज़लूमियत-ए-हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस्लाम की तारीख के वो दो रोशन बाब हैं जिनमें हक़ और बातिल का फर्क़ हमेशा वाज़ेह रहा है। मगर सदा अफ़सोस कि इन्हीं दो हक़ीक़तों को उम्मत ने सबसे ज़्यादा फरामोश कर दिया।
आज हमारी हालत ये है कि अभी ग़दीर नहीं आती कि हम आशूरा के रोज़ों का शुमार शुरू कर देते हैं, मगर ग़दीर जो कि विलायत की ईद है, उसके लिए कोई एहतमाम नहीं। गोया हमें इस ईद की हक़ीक़त का शऊर ही नहीं।
हालाँकि ग़दीर वो दिन है जिसके लिए हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने खुद को और अपने फ़र्ज़ंदों को क़ुर्बान कर दिया। ग़दीर उनके नज़दीक महज़ एक वाक़ेआ नहीं बल्कि ईमान का महवर थी — क्योंकि ये दिन अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की विलायत का एलान था, और यही विलायत दीन की रूह है।
मगर अफ़सोस! उम्मत ने इसी विलायत को भुला दिया और इसी के मुक़ाबिल क़ियाम करने वालों को मुक़द्दस बना दिया।
यही वो मक़ाम है जहां तारीख़ चीख़ चीख़ कर कहती है कि जब दलील खत्म हो जाती है, ज़ुबान गाली देने लगती है।
हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का मसअला महज़ एक तारीखी सानिहा नहीं बल्कि एक फ़िक्री आज़माइश है।
जिस तरह मसअला-ए-ग़दीर में गुफ़्तगू इल्मी बुनियादों पर हो सकती है — दलील के साथ, आयत के साथ, रिवायत के साथ — लेकिन जब बात फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पर ज़ुल्म की आती है, वहां मुख़ालिफ़ के पास कोई दलील बाक़ी नहीं रहती।
क्योंकि अगर वो हक़ीक़त को तस्लीम करे तो अपने अ़क़ीदे की बुनियाद हिल जाती है। इसी बेबसी में वो गाली का सहारा लेता है, और यही फ़ुक़दान-ए-बुरहान की अलामत है।
वो कहता है: "फातिमा (अ) के घर में अमवाल-ए-बैतुलमाल बंद थे!"
ये कितना बड़ा झूठ और कितना बड़ा बहुतान-ए-अज़ीम है। क़ुरआन ने ऐसे ही लोगों के बारे में फ़रमाया: "व बि कुफ़्रिहिम वा क़ौलिहिम अला मर्यम बहुतानन अज़ीमा" और हम भी कहते हैं: "व बि कुफ़्रिहिम वा क़ौलिहिम अला फातिमा बहुतानन अज़ीमा"
ये इल्ज़ाम सिर्फ़ नासिबी लगा सकते हैं। इब्ने तैमिया और उसके पैरोक़ारों ने इसी ज़ुबान में ज़हर उगला, और अब्दुलअज़ीज़ देहलवी जैसे लोगों ने उसे "फ़ज़ीलत" के लिबास में पेश किया।
ये वो लोग हैं जो एक तरफ़ तो आयशा (रज़ि) के नाम के ज़िक्र पर भी ग़ैरत दिखाते हैं, मगर दूसरी तरफ़ नबी (स) की बेटी पर तोहमत लगाने में आर महसूस नहीं करते।
तारीख़ में ये तज़ाद खुल कर सामने आता है।
सयूती नक़्ल करता है कि अगर कोई फ़क़ीह ये कहे कि "औरत की गवाही आधे मर्द के बराबर है, हत्ता कि अगर वो आयशा ही क्यों न हो" — तो उसके नज़दीक ये गुस्ताख़ी है, और ऐसे शख़्स का मुँह तोड़ देना चाहिए। मगर जब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की बात आती है, तो यही लोग उनके घर को "घर-ए-ओबाश" कहने से नहीं झिझकते!
ये वही दलील से महरूम ज़ेहन हैं जो तकद्दुस के मयार अपनी मरज़ी से बदल लेते हैं।
यही लोग कहते हैं: "यारान-ए-पैग़म्बर पर कोई तनक़ीद नहीं कर सकता, चाहे वो एक लमह के लिए ही रसूल (स) के क़रीब रहा हो।" मगर जब इन्हीं के हाथों नबी (स) की बेटी पर ज़ुल्म होता है, तो सब ख़ामोश रहते हैं।
अब्दुल्लाह बिन मुबारक, जो ताबेईन में से हैं, से पूछा गया:
"उमर बिन अब्दुलअज़ीज़ बेहतर हैं या मुआविया?"
उसने कहा: "तुमने बेअदबी की! मुआविया के घोड़े की नाक में जो ग़ुबार गया, वो सौ उमर बिन अब्दुलअज़ीज़ से बेहतर है!"
देखिए कैसा अंधा तअस्सुब है — एक ऐसा शख़्स जो फत्ह-ए-मक्का के बाद मजबूरन मुसलमान हुआ, उसके घोड़े का ग़ुबार भी मुक़द्दस ठहरता है, मगर फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा, जो नबी (स) की रूह का हिस्सा हैं, उनके घर को "महल-ए-फ़साद" कहा जाता है!
क्या ये ईमान है? या बातिल के दिफ़ा का जुनून?
हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का क़ियाम महज़ एक एहतिजाज नहीं था, बल्कि विलायत की बाक़ा का एलान था। उन्होंने दुनिया को बताया कि हक़ ख़ामोश नहीं रह सकता। उनका गरिया, उनकी फ़रियाद, उनका ख़ुत्बा — सब विलायत की सदा थे। और यही सदा थी जिससे बातिल लरज़ उठा। जब दलील उनके पास न रही, तो उन्होंने फातिमा (स) की आवाज़ को ख़ामोश करने की कोशिश की। मगर आज चौदह सदियाँ बाद भी ज़हरा (अ) की सदा-ए-हक़ ज़िंदा है, और उनके क़ियाम ने बातिल का चेहरा हमेशा के लिए बेनकाब कर दिया।
सलाम हो उस हस्ती पर, जिसने दलील-ए-हक़ बनकर बातिल की तमाम दलीलों को बातिल कर दिया। सलाम हो फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पर — महवर-ए-विलायत, मज़लूमा-ए-तारीख़, और सदा-ए-अबदी-ए-हक़।
लेखकः मौलाना सय्यद मंज़ूर अली नक़वी
फ़ातेमी समाज दीनदार और ज़िम्मेदार समाज हैः हुज्जतुल इस्लाम अबुल क़ासिम रिज़वी
शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के सदर और इमाम जुमा मेलबर्न हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने मलाइशिया की मार्कज़ी व कदीम तरीन इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसों से खिताब करते हुए कहा कि जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत दुनिया की तमाम खवातीन के लिए बेहतरीन नमूना-ए-अमल है।
मलाइशिया की ऐतिहासिक इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसें जारी हैं, जिनमें हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी, सदर शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया और इमाम जुमा मेलबर्न "फातिमा की जिंदगी: दुनिया की तमाम महिलाओं के लिए नमूना-ए-अमल" के शीर्षक से संबोधित कर रहे हैं।
मौलाना अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने अपने भाषण में ज़ोर देते हुए कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत पर बातचीत करना काफी नहीं है, बल्कि हमें उनकी तालीमात पर अमल करके अपनी दुनिया को जन्नत बनाना चाहिए।"
उन्होंने अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि "आज रिश्तों का एहतराम खत्म हो रहा है, तलाकें आम हो गई हैं, हुक़ूक़ पामाल किए जा रहे हैं, फिर भी हम खुद को फातिमी समाज कहते हैं।"
मौलाना ने वज़ाहत की कि "फातिमी समाज वही है जो दीन्दार और जिम्मेदार हो, जहां किसी का हक न पामाल हो। हम फदक की बात करते हैं मगर अपनी बहनों और बेटियों को उनके हकूक़ नहीं देते, ये रवैया फातिमी तर्ज़-ए-जिंदगी के खिलाफ है।"
उन्होंने आखिर में कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पहली शहीदा-ए-राह-ए-विलायत हैं, जिन्होंने अपने अमल और इस्तेक़ामत के ज़रिए मुनाफिक़ों को बेनकाब किया और विलायत के दिफ़ा की लाजवाल मिसाल क़ायम की।"
ईरानी संसद सभापति का पाकिस्तान दौरा
इस्लामी गणतंत्र ईरान की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष डॉक्टर बाक़िर क़ालीबाफ़ इन दिनों पाकिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर हैं।
पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष अयाज़ सादिक़ ने ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ से मुलाकात के दौरान ईरान की मिसाइल रक्षा प्रणाली और सैन्य क्षमताओं की सराहना करते हुए कहा कि ईरान ने 'आयरन डोम' की कहानी का अंत कर दिया है, और युद्ध के अंतिम दिन ईरान ने जो कुछ किया, वह इज़राइल के लिए विनाशकारी साबित हुआ।
एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ आधिकारिक यात्रा पर पाकिस्तान में हैं।
ईरानी संसद के अध्यक्ष की इस यात्रा में पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा और सीनेट के अध्यक्षों और सदस्यों, प्रधानमंत्री मोहम्मद शहबाज शरीफ़ सहित उच्च-स्तरीय राजनीतिक नेताओं के साथ बातचीत शामिल है।
प्रतिनिधिमंडल में फ़दाहुसैन मालिकी, मोहम्मद नूर दहानी, रहमदल बामरी, मेहरदाद गूदरज़वंद और फ़ज़लुल्लाह रंजबर भी मोहम्मद बाक़ेर क़ालीबाफ़ के साथ हैं।
सूडान के मजलूम लोग आज मुस्लिम उम्मत के सामूहिक समर्थन के मुंतज़िर हैं
एमडब्ल्यूएम कराची डिवीजन के अध्यक्ष मौलाना सादिक जाफरी ने सूडान में जारी गृहयुद्ध, मानवीय त्रासदी और मजलूम लोगों पर हो रहे भीषण अत्याचारों पर गहरी चिंता और अफसोस जताया है। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से सूडान के विभिन्न शहरों, विशेष रूप से दारफुर और अल-फाशिर में सैन्य गुटों के बीच जारी खूनी संघर्षों ने पूरे देश को तबाही के कगार पर पहुँचा दिया है।
मौलाना सादिक जाफरी ने कहा कि हज़ारों निर्दोष नागरिक, महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं या विस्थापित हुए हैं; लाखों लोग भूख, प्यास और बिना चिकित्सा सुविधाओं के शिविरों में जीवन बिताने को मजबूर हैं। अस्पताल,इबादत स्थल और आवासीय क्षेत्र निशाना बनाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यह स्थिति स्पष्ट रूप से मानवाधिकारों, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और इस्लामी मूल्यों की स्पष्ट उल्लंघन है।
मौलाना सादिक जाफरी ने कहा कि मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन वैश्विक संस्थाओं, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, ओआईसी, अफ्रीकी यूनियन और मानवाधिकार संगठनों से मांग करती है कि वे तुरंत युद्धविराम के लिए दबाव डालें और मानवीय आधार पर सहायता के रास्ते खोलें।
उनका कहना था कि निर्दोष नागरिकों के नरसंहार और युद्ध अपराधों की पारदर्शी जांच की जाए, प्रभावित क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में शांति मिशन तैनात किया जाए, ताकि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, वैश्विक विवेक को जगाया जाए, ताकि दुनिया सूडान के मजलूम लोगों के साथ खड़ी हो, न कि चुप दर्शक बनी रहे।
उन्होंने कहा कि मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन इस बात पर विश्वास रखती है कि दुनिया के किसी भी क्षेत्र में अत्याचार और आक्रामकता के खिलाफ आवाज उठाना ईमान की मांग है, सूडान के मजलूम लोग आज मुस्लिम उम्मा की सामूहिक समर्थन के मुंतज़िर हैं।
हम हर स्तर पर उनकी आवाज बनने और मानवीय सहानुभूति के आधार पर मदद और एकजुटता जारी रखने के संकल्प को दोहराते हैं। हम सूडान के मजलूम लोगों के साथ हैं, इंशाअल्लाह जुल्म के महल एक दिन जरूर लरजेंगे और न्याय की सुबह जरूर होगी।
गूगल का इज़राइल पक्षपात उजागर / ग़ज़्ज़ा के युद्ध अपराधों की वीडियो हटा दी गईं
अमेरिकी दबाव के तहत गूगल ने इज़राइली युद्ध अपराधों से संबंधित 700 से अधिक वीडियो इंटरनेट से हटा दीं, जिनमें पत्रकार शिरीन अबू अक़िला की हत्या की वीडियो भी शामिल थीं।
अमेरिकी टेक कंपनी गूगल पर आरोप लगाया गया है कि उसने फिलिस्तीन के खिलाफ इज़राइली युद्ध अपराधों की दस्तावेजी वीडियो इंटरनेट से हटा दी हैं।
मीडिया स्रोतों के अनुसार, मिडिल ईस्ट स्पेक्टेटर ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार के दबाव पर गूगल ने अक्टूबर की शुरुआत से अब तक 700 से अधिक वीडियो हटाई हैं, जिनमें इज़राइली सेना के अपराधों को स्पष्ट रूप से दिखाया गया था।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इन हटाई गई वीडियो में अलजजीरा की प्रसिद्ध फिलिस्तीनी मूल की अमेरिकी पत्रकार शिरीन अबू अक़िला की हत्या की फुटेज भी शामिल है। अमेरिकी जांच एजेंसियां इस बात को मानती हैं कि उन्हें इज़राइली सेना ने जानबूझकर निशाना बनाया था।
गूगल ने इज़राइली प्रचार को बढ़ावा देने के लिए 45 मिलियन डॉलर का समझौता भी किया, जिसके तहत गाजा में अकाल के इनकार और ईरान के खिलाफ युद्ध प्रचार से संबंधित विज्ञापनों को प्रमोट किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, गूगल के आंतरिक ईमेल्स से यह बात भी सामने आई है कि कंपनी ने बार-बार इस बात से इनकार किया कि इज़राइली विज्ञापन उनकी नीतियों का उल्लंघन करते हैं, हालांकि इन विज्ञापनों में गाजा की मानवीय तबाही को झुठलाया जा रहा था।
रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि यह कदम अमेरिकी टेक कंपनियों की ओर से इज़राइल की लगातार समर्थन और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ जारी अत्याचारों पर पर्दा डालने की एक और कोशिश है।
ग़ज़्जा पर इज़राईली आक्रमण जारी, कई घरों को किया नष्ट
इज़राईली सेना ने गाज़ा के पूर्वी क्षेत्रों पर लगातार हमले करते हुए कई फिलिस्तीनी घरों को तबाह कर दिया, जबकि खान यूनिस और अन-नसीरात भी भारी गोलाबारी की चपेट में आए।
इजरायली कब्जे वाली सेना ने गाजा पट्टी पर हवाई और तोपखाने से हमले जारी रखते हुए पूर्वी गाजा में फिलिस्तीनी नागरिकों के घरों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है।
समाचार एजेंसी शहाब के अनुसार, कब्जाधारी इजरायली तोपखाने ने पिछली रात और आज सुबह पूर्वी खान यूनिस के इलाकों को निशाना बनाया, जबकि इन हमलों के साथ-साथ हवाई बमबारी भी की गई।
जायोनी सैन्य इकाइयों ने पूर्वी गाजा शहर में फिलिस्तीनी घरों को विस्फोटों से उड़ा दिया और तबाही फैलाई, जबकि जायोनी लड़ाकू वाहनों ने अन-नुसेरात के मध्य इलाके की ओर भी फायरिंग की।
इसी तरह, गाजा शहर के अत-तुफ़ाह इलाके के पूर्वी हिस्से में भी कब्जाधारी इजरायली सेना ने कई फिलिस्तीनी घरों को गिरा दिया, जिससे नागरिकों में भारी डर और दहशत फैल गई है।
हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत
ईरान के ख़ुरासान रज़वी प्रांत में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद अहमद अल्मुलहुदा ने कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत, इस्तिकबार के मुक़ाबले में मोमिनाना मज़ाहमत का वाज़ेह और अमली नमूना है, और उम्मत-ए-इस्लामी को अपनी मज़ाहिती हिकमत-ए-अमली इसी मंतिक-ए-जिहाद से अख़ज़ करनी चाहिए।
आयतुल्लाह सय्यद अहमद अल्मुलहुदा ने मशहद-ए-मुक़द्दस में वाक़े जामिया उलूम-ए-इस्लामी रज़वी में अय्याम-ए-फातिमिया की अवसर पर आयोजित मजलिस-ए-अज़ा में ख़िताब करते हुए कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की ज़ात तमाम कमालात व फज़ायल का मज़हर है। रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वा आलेहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर तमाम नेकियों को एक शख्सियत में समो दिया जाए तो वो फातिमा (सलामुल्लाह अलैहा) होंगी।
उन्होंने कहा कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा न सिर्फ़ फज़ीलत का मज़हर हैं बल्कि तमाम मोमिनीन ख़ुसूसन मुहिब्बान-ए-अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के लिए तर्बियत और रहनुमाई का सरचश्मा हैं।
आयतुल्लाह अल्मुलहुदा ने वाज़ेह किया कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की जिद्दोजहद का मकसद सिर्फ़ फदक का मुतालिबा नहीं था बल्कि उनका अस्ल हद्फ़ नज़ाम-ए-इमामत को तहरीफ़ से बचाना और क़ियादत को वही के रास्ते पर बाक़ी रखना था। उनके मुताबिक अगर फातिमी क़ियाम का मुहर्रिक सिर्फ़ मादी मफ़ाद होता तो वो ख़ुत्बा-ए-फदक और जानिसाराना मुक़ावमत क़ाबिल-ए-फ़हम न होती।
उन्होंने मज़ीद कहा कि फदक अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के लिए एक समाजी और ख़ैराती हैसियत रखता था लेकिन सैय्यदा की जिद्दोजहद का महवर दिफ़ा-ए-विलायत था। उनके नज़दीक इमामत दरअसल वही के तसल्सुल का नज़ाम है, और उम्मत की क़ियादत को अपनी क़ानूनी हैसियत हमेशा इसी वही के रास्ते से हासिल होती है।
आयतुल्लाह अल्मुलहुदा ने आखिर में कहा कि हज़रत फातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने अमली तौर पर इस्तेक़ामत दिखाई, अपने मौक़िफ पर डटी रहीं और आख़िरकार शहादत तक सब्र व ससबात का मज़हर किया। यही सिद्दीका ताहिरा की सीरत है जो उम्मत को हर ताग़ूती क़ुव्वत के मुक़ाबले में जिहाद व मज़ाहमत का दरस देती है।
अल्लामा तबातबाईः आज तक मैने कभी अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए दुआ नही की
आयतुल्लाह हसनजादे अमोली (र) ने अल्लामा तबातबाई की असाधारण नैतिक ऊंचाई का वर्णन किया और कहा कि उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए दुआ नहीं की।
आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमोली (र) अपनी किताब हज़ार व यक नुक़्ता में अल्लामा तबातबाई (र) के एक वाकये का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं: "मैंने इमामत के विषय पर एक रिसाला लिखा और उसे अपने उस्ताद अल्लामा तबातबाई की खिदमत में पेश किया। वो कुछ अरसे तक उस रिसाले को अपने पास रखे रहे और पूरा अध्ययन किया।"
आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमिली मजीद लिखते हैं: "इस रिसाले में मैंने अपने लिए एक दुआ लिखी थी: 'ख़ुदाया! मुझे ख़िताब-ए-मुहम्मदी (स.) के फहम की सआदत अता फ़रमा।'
जब अल्लामा तबातबाई ने रिसाला वापस किया तो फ़रमाया: 'आका! जब से मैंने खुद को पहचाना है, मैंने कभी अपनी ज़ात के लिए दुआ नहीं की, मेरी तमाम दुआएं हमेशा उम्मत के लिए आम रही हैं।'"
आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमोली के अनुसार, यह अख़लाक़ी नसीहत उनके दिल पर गहरा असर छोड़ गई और उनके लिए एक अज़ीम दर्स-ए-अख़लाक़ बन गई।
स्रोत: हज़ार व यक नुक़्ता, भाग 2, पेज 621, अज़ आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमेली (र)
विलायत-ए-फक़ीह किसी एक गिरोह से नहीं जुड़ी है बल्कि पूरी इंसानियत के सुधार का स्रोत है
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन रफीई ने कहा: विलायत-ए-फक़ीह किसी एक गिरोह से नहीं जुड़ी है बल्कि पूरी इंसानियत के लिए भलाई और सुधार का स्रोत है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम सुप्रीम लीडर की हिदायतों के अनुयायी रहें और उनके रास्ते के सच्चे सिपाही बनें।
हौज़ा इल्मिया में तबलीगी व सांकृतिक मामलों के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन रफीई ने मदरसा मासूमिया क़ुम में आयोजित तुलेबा और हौज़ा इल्मिया के फारिग़-उत्तहसील छात्रो से खिताब करते हुए कहा: आज हम एक अज़ीम तहज़ीबी जंग के मरहले में हैं, जिसकी एक जानिब मग़रिबी तहज़ीब खड़ी है और दूसरी जानिब इस्लामी तहज़ीब। दोनों तहज़ीबें अपने तईं एक-दूसरे के मुकाबले में मआना रखती हैं।
उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की अज़मत और रूहानी मरकज़ियत की तरफ़ इशारा करते हुए कहा: इमाम ज़माना अजलल्लाहु तआला फरजहुश्शरीफ़ फर्माते हैं: "ली फी बिन्ति रसूलिल्लाह उस्वतुन हसना" यानी "हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा मेरे लिए उस्वा-ए-हसना हैं"। मालूम हुआ कि दुनिया की अस्ल महवरियत सय्यदा सलामुल्लाह अलैहा की है क्योंकि उनकी रज़ामंदी अल्लाह की रज़ामंदी और उनका ग़ज़ब खुदा के ग़ज़ब के बराबर है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रफीई ने सुप्रीम लीडर की सेहत व तुल-उम्र के लिए दुआ करते हुए कहा: विलायत-ए-फ़क़ीह किसी एक गिरोह से मुताल्लिक़ नहीं, बल्कि पूरी बशरीयत के लिए भलाई व सलाई का सरचश्मा है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम रहबर मुअज़्ज़म की हिदायतों के पैरवी रहें और उनके रास्ते के हकीकी सिपाही बनें।
उन्होंने कहा: हकीकत यह है कि हम अब भी जंग में हैं। जंग का लफ़्ज़ शऊरी ज़िम्मेदारियों के साथ आता है। जब जंग की बात होती है तो यह भी तय करना ज़रूरी होता है कि दुश्मन किस मैदान को निशाना बना रहा है और हमारा दिफाई व फिक्री सफ़ बंदी का निजाम क्या है? लिहाज़ा उसके लिए हमें हर वक्त तैयार रहना चाहिए।
दीन की तबलीग़ के लिए आधुनिक टैक्नालॉजी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) का उयोग आवश्यक है
हमारे मौजूदा काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हमारे जीवनशैली, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं के क्षेत्र में ऐसे बेहतरीन सहायक बनाना है जो इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित हों और हमारे लक्षित लोगों को सही दिशा में मार्गदर्शन करें, क्योंकि पारंपरिक तरीके से संदेश देने का तरीका धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।
नूर इस्लामिक कंप्यूटर रिसर्च सेंटर के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन बहरामी ने कहा कि आधुनिक तकनीक, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने धार्मिक प्रचार के तरीकों में बुनियादी बदलाव ला दिया है। उन्होंने बताया कि आज लोग अपने सवालों के जवाब सीधे डिजिटल माध्यमों और चैट बॉट्स से प्राप्त करते हैं और अक्सर उन्हीं जवाबों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में हौज़ा ए इल्मिया की जिम्मेदारी है कि वह इस माहौल को समझे और इस क्षेत्र में प्रभावी मौजूदगी बनाए।
संरक्षक ने यह भी कहा कि नए दौर के धर्म प्रचारक को डिजिटल टूल्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से लैस होना चाहिए ताकि वह मजबूत और ठोस तरीके से अपना संदेश पहुंचा सके, बशर्ते उसे अपने श्रोताओं की भाषा, सोच और मानसिकता की समझ हो।
उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिक युग में धार्मिक प्रचार के लिए आधुनिक तकनीक विशेषकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग अनिवार्य है क्योंकि अब ज्ञान का बड़ा हिस्सा पारंपरिक संस्थानों से नहीं बल्कि डिजिटल प्लेटफार्मों से आ रहा है। इसलिए, यह जरूरी है कि धर्म प्रचारक उन जगहों पर मौजूद हों जहां आज का श्रोता रहता, सोचता और जानकारी प्राप्त करता है। इसी संदर्भ में, इस्लामी आधारों पर स्मार्ट धार्मिक सहायक विकसित करना आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि इस दिशा में कार्य आरंभ हो चुका है। पहले से एक हदीस चैट बूट सक्रिय है जो सवालों के जवाब में धार्मिक परंपराओं की रोशनी में मदद करता है, और हाल ही में एक कुरआनी चैट बूट भी लॉन्च किया गया है जो कुरआन की व्याख्या और ज्ञान के अनुसार मार्गदर्शन करता है।
नूर इस्लामिक कंप्यूटर रिसर्च सेंटर का विजन है कि जल्द ही यह एक समग्र इस्लामी ज्ञान का श्रेष्ठ सहायक बनकर उभरे।













