رضوی
न्यूयॉर्क में विशाल यहूदी प्रदर्शन: नेतन्याहू हमारे प्रतिनिधि नहीं हैं
संयुक्त राज्य अमेरिका में सैकड़ों रूढ़िवादी यहूदियों ने इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी सरकार को "यहूदियों का दुश्मन नंबर एक" कहने के लिए न्यूयॉर्क की सड़कों पर प्रदर्शन किया।
संयुक्त राज्य अमेरिका में सैकड़ों रूढ़िवादी यहूदियों ने इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी सरकार को "यहूदियों का दुश्मन नंबर एक" कहने के लिए न्यूयॉर्क की सड़कों पर प्रदर्शन किया।
यह विरोध प्रदर्शन बुधवार रात मैनहट्टन में इज़राइली वाणिज्य दूतावास के सामने हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने बैनर पकड़े हुए थे जिन पर लिखा था: "नेतन्याहू और बेन-गवर्नर यहूदियों के दुश्मन हैं" और "ज़ायोनी विरोधी होना यहूदी विरोधी नहीं है।" प्रदर्शनकारियों ने "नेतन्याहू पर शर्म करो" और "आप हमारे प्रतिनिधि नहीं हैं" जैसे नारे भी लगाए।
यह प्रदर्शन "इज़राइल अगेंस्ट यहूदियों" नामक वेबसाइट द्वारा आयोजित किया गया था। प्रदर्शनकारियों को स्कूल बसों द्वारा ले जाया गया और यह मार्च वाणिज्य दूतावास से शुरू होकर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर समाप्त हुआ।
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म "यहूदी आवाज़" के अनुसार, यह मार्च नेतन्याहू द्वारा अगले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेने की घोषणा के विरोध में आयोजित किया गया था। न्यूयॉर्क पुलिस विभाग ने अनुमान लगाया है कि इसमें भाग लेने वालों की संख्या "कई सौ" थी और कहा कि यह हाल के वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका में यहूदियों का सबसे बड़ा ज़ायोनी-विरोधी जमावड़ा था।
यहूदी धार्मिक समूह, विशेष रूप से "नेचर कार्टा", दशकों से ज़ायोनीवाद का विरोध करते रहे हैं। उनका तर्क है कि इज़राइल की स्थापना धार्मिक शिक्षाओं के विपरीत है। हाल के महीनों में, गाजा में चल रहे युद्ध और नेतन्याहू सरकार की नीतियों की अंतर्राष्ट्रीय आलोचना के बाद, ब्रुकलिन, शिकागो और लॉस एंजिल्स सहित विभिन्न अमेरिकी शहरों में यहूदी विरोध प्रदर्शनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
प्रदर्शनकारियों ने घोषणा की कि जैसे ही नेतन्याहू न्यूयॉर्क पहुँचेंगे, शहर भर में और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएँगे।
दुश्मन का असली निशाना ईरानी समाज की पवित्रता है
तेहरान के इमामे जुमआ, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने जुमआ के खुत्बे में कहा,इस्लाम के दुश्मनों का असली मकसद ईरानी क़ौम की पवित्र और शालीन जीवनशैली को बर्बाद करना है।
के अस्थायी इमाम ए जुमआ, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने जुमा के खुतबे में कहा कि इस्लाम के दुश्मनों का असली मकसद ईरानी क़ौम की पवित्र और शालीन जीवनशैली को बर्बाद करना है।
उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति ने दुनिया को यह पैग़ाम दिया है कि इफ्फ़त व पाकदामनी सिर्फ़ एक व्यक्तिगत गुण नहीं है, बल्कि यह सामाजिक व्यवस्था की बुनियाद है। यही वजह है कि साम्राज्यवादी ताक़तें (इसतकबारी कुव्वतें) पूरी शक्ति से इस पर हमला करने में लगी हैं।
इमामे जुमआ ने स्पष्ट किया कि दुश्मनों ने खासतौर पर सोशल मीडिया और सॉफ्ट वॉर के ज़रिये युवाओं, विशेषकर लड़कियों को निशाना बनाया है। दुर्भाग्य से कुछ संस्थाओं की लापरवाही और कमज़ोरी ने इस साज़िश को और मज़बूती दी है।
हालाँकि, उन्होंने कहा कि ईरानी जनता की बहुसंख्यक आबादी अब भी हिजाब, पवित्रता और नैतिकता की समर्थक है, और इन्हीं महिलाओं ने हाल के घटनाक्रम में अपनी बहादुरी से दुश्मन के मंसूबों पर गहरी चोट दी है।
हुज्जतुल इस्लाम अली अकबरी ने ज़ोर देकर कहा कि हर संस्था और हर ज़िम्मेदार व्यक्ति की यह ड्यूटी है कि वह सामाजिक पवित्रता की रक्षा करे, विशेषकर शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में इसकी अहमियत कहीं अधिक हो जाती है। उन्होंने स्वीकार किया कि अगर कहीं बेहिजाबी या कम हिजाबी देखने को मिल रही है, तो उसकी एक वजह हमारी रणनीतिक ग़लतियाँ भी हैं, जिन्हें ठीक करने की ज़रूरत है।
उन्होंने टेलीविज़न, रेडियो, कलाकारों और लेखकों को संबोधित करते हुए कहा कि यह मैदान खाली नहीं छोड़ा जा सकता। मीडिया और सांस्कृतिक रूप से सक्रिय ताक़तों को पूरी शक्ति से सामने आना होगा, ताकि यह खतरा, जो कि एक गंभीर चुनौती बन चुका है, एक नए अवसर में बदला जा सके।
अंत में उन्होंने कहा कि दुश्मन खुलेआम अश्लीलता और अनैतिकता का झंडा लेकर सामने आया है, इसलिए सुरक्षा और क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी, ताकि इन संगठित केंद्रों और भ्रष्टाचार फैलाने वाले तत्वों को जड़ से ख़त्म किया जा सके।
उनके अनुसार, ईरानी राष्ट्र, ईश्वर की कृपा और अपने आत्म-सम्मान, ईमान तथा युवाओं की काबिलियत के भरोसे, पहले से ज़्यादा मजबूती के साथ आगे बढ़ेगा।
ज़ायोनी दुश्मन नरसंहार के सभी प्रकार के हथियारों का उपयोग कर रहा है
यमन के अंसारूलल्लाह के नेता ने अपने साप्ताहिक संबोधन में जोर देकर कहा कि ज़ायोनी दुश्मन यूरोपीय और अमेरिकी बम और अरब ईंधन सहित नरसंहार की सभी रणनीति का उपयोग कर रहा है।
अल-मसीरा: यमनी अंसारूल्लाह आंदोलन के प्रमुख, सय्यद अब्दुल मलिक बदर अल-दीन अल-हौसी ने अपने साप्ताहिक संबोधन में कहा कि ज़ायोनी दुश्मन पूरी दुनिया के सामने गाजा पट्टी में "सदी के अपराध" को जारी रखे हुए है। उन्होंने कहा कि ग़ज़्ज़ा में नरसंहार के दृश्य बहुत ही भयावह और हृदय विदारक हैं, जो हर उस व्यक्ति को झकझोर देते हैं जिनके दिलों में मानवता का एक टुकड़ा भी बचा है। अब्दुल मलिक अल-हौथी ने इजरायल पर अमेरिकी, ब्रिटिश और जर्मन बमों के साथ-साथ अरब ईंधन और तेल की मदद से फिलिस्तीनी लोगों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि ज़ायोनी दुश्मन इस्लामी दुनिया की कमज़ोरी और निष्क्रियता का फ़ायदा उठा रहा है, जबकि इज़राइल द्वारा उत्पन्न ख़तरे केवल फ़िलिस्तीन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरी मुस्लिम उम्माह के लिए हैं।
अंसारुल्लाह नेता ने कहा: "फ़िलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार इतना ज़्यादा है कि इसकी ज़िम्मेदारी सभी मुसलमानों और पूरी दुनिया पर है। अगर मुसलमान अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ते हैं, तो वे इस दुनिया या आख़िरत में इन परिणामों से बच नहीं पाएँगे।"
उन्होंने आगे कहा कि इज़राइली आक्रमण केवल फ़िलिस्तीनी लोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह अल-अक्सा मस्जिद की पवित्रता का उल्लंघन करने और यरुशलम को पूरी तरह से यहूदी बनाने के अपने प्रयासों को तेज़ कर रहा है।
अल-हौसी ने खुलासा किया कि इज़राइली सेनाएँ अल-अक्सा मस्जिद पर रोज़ाना हमला कर रही हैं, और इस हफ़्ते इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबियो भी अल-अक्सा मस्जिद के अपमान में शामिल थे।
छात्र भविष्य के नेता हैं और इमाम अस्र (अ) की सेना के अग्रदूत
भारत मे सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अब्दुल मजीद हकीम इलाur ने क़ुम मे हौज़ा ए इल्मिया शहीद सालिस का विशेष दौरा कर छात्रों को संबोधित किया।
भारत मे सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अब्दुल मजीद हकीम इलाur ने क़ुम मे हौज़ा ए इल्मिया शहीद सालिस का विशेष दौरा कर छात्रों को संबोधित किया। सत्र की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावस से हुई। प्रतिष्ठित छात्र, वजाहत ने अपनी मनमोहक आवाज़ में कुरान की तिलावत करने का सम्मान प्राप्त हुआ।
इस सभा में, सय्यद हमज़ा ज़ैदी ने पवित्र पैग़म्बर (स) की प्रशंसा में भावपूर्ण कविताएँ प्रस्तुत कीं, जबकि मदरसा शहीद सालिस (र) के सरूद समूह ने इमाम ज़मान (अज़्ज़.) की शान में सुंदर और भावुक शब्द प्रस्तुत किए, जिससे सभा और भी ज्ञानवर्धक हो गई।
बाद में, मदरसे के प्रधानाचार्य, हुज्जत-उल-इस्लाम वा मुस्लेमीन जोयबारी ने सभा को संबोधित किया और मदरसा शहीद सालिस (र) की शैक्षणिक, धार्मिक और शैक्षिक सेवाओं पर प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि अपनी स्थापना के बाद से, इस मदरसे ने शिक्षा और प्रशिक्षण, नैतिकता और चरित्र, तथा धार्मिक जागरूकता के क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया है, जहाँ भारत के विभिन्न शहरों से आने वाले छात्र अपनी शैक्षणिक प्यास बुझाते हैं और खुद को भविष्य के प्रचारक और धर्म के सेवक के रूप में तैयार करते हैं।
समारोह के दौरान, छात्रों और संकाय सदस्यों ने भारत मे सर्वोच्च नेता पूर्व प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हाजी महदी महदवीपुर की ईमानदारी, समर्पण, पितृतुल्य करुणा और करुणामय मार्गदर्शन को सराहा गया। सभी ने उनकी सेवाओं को इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में गिना और अल्लाह से उनके उत्तम स्वास्थ्य, सुरक्षा और अधिक सफलता की कामना की। साथ ही, भारत मे सर्वोच्च नेता के वर्तमान प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन हकीम इलाही की उपस्थिति पर हार्दिक आभार और प्रसन्नता व्यक्त की गई।
अपने समापन भाषण में, डॉ. हकीम इलाही ने छात्रों को बहुमूल्य और व्यावहारिक निर्देश दिए।
उन्होंने कहा, "हे प्यारे विद्यार्थियों! आप दुनिया के आठ अरब तिहत्तर करोड़ लोगों में से चुने हुए लोग हैं, जिन्हें अल्लाह तआला ने अपनी विशेष कृपा से इस्लाम धर्म की सेवा के लिए चुना है। यह एक महान ईश्वरीय आशीर्वाद है, इसकी कद्र करो और अपनी हर साँस ईश्वर, धर्म और इमाम-ए-अस्र (अ) की प्रसन्नता के लिए समर्पित करो।"
उन्होंने आगे कहा, "याद रखो! तुम सिर्फ़ एक विद्यार्थी नहीं, बल्कि एक भावी नेता, उपदेशक और धर्म के सच्चे सिपाही हो। तुम्हारी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ ज्ञान प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अपने चरित्र, धर्मपरायणता, धैर्य और सेवा के माध्यम से इमाम-ए-अस्र (अ) के सच्चे सिपाही बनने तक है। इमाम की जीत सिर्फ़ शब्दों या प्रार्थनाओं से नहीं, बल्कि कर्म, सेवा और ईमानदारी से होती है। इमाम-ए-अस्र (अ) हम सब पर नज़र रख रहे हैं और तुम विद्यार्थी उनकी सेना के अग्रदूत हो। इस ज़िम्मेदारी को हमेशा अपने दिलों में ज़िंदा रखो।"
मदरसा शहीद सालिस के भविष्य के प्रति अपनी दृढ़ता और संकल्प व्यक्त करते हुए, हुज्जतुल इस्लाम हकीम इलाही ने कहा, "जिस प्रकार हुज्जतुल इस्लाम अकाए महदवीपुर ने मदरसा शहीद सालिस की सेवा में अपना बहुमूल्य प्रयास समर्पित किया है, उसी प्रकार मैं भी इस शैक्षिक और प्रशिक्षण केंद्र की सेवा में अपनी पूरी ऊर्जा लगाऊँगा। यह मदरसा केवल एक विद्यालय नहीं, बल्कि आस्था और अंतर्दृष्टि का एक गढ़ है, जहाँ से भविष्य के सुधारक, उपदेशक और नेता तैयार होंगे।"
भारत मे सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि ने अपने दौरे के दौरान मदरसे के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया, जिसमें छात्रावास, कक्षाएँ और प्रशिक्षण क्षेत्र शामिल थे।
उन्होंने छात्रों की स्थिति, उनके शैक्षिक और नैतिक वातावरण और उनके दैनिक जीवन का बारीकी से अवलोकन किया और मदरसे के अधिकारियों के साथ विस्तृत चर्चा भी की।
यह ज्ञानवर्धक और आध्यात्मिक समागम अत्यंत आध्यात्मिक वातावरण में संपन्न हुआ। अंत में, यह प्रार्थना की गई कि अल्लाह हौज़ा ए इल्मिया शहीद सालिस के छात्रों को धर्म का सर्वश्रेष्ठ सेवक बनाए, उनके दिलों में अहले बैत (अ) के प्रति प्रेम और इमाम अस्र (अ) के प्रति समर्थन की भावना को जीवित रखे, और उन्हें दृढ़ता और सफलता प्रदान करे।
गज़्जा को इज़राईली सैनिकों के लिए नरक बना देंगे।अल क़ेसाम ब्रिगेड
हमास की सैन्य शाखा, अलक़ेसाम ब्रिगेड ने चेतावनी दी है कि अगर आक्रामकता बढ़ाई गई तो गाज़ा सियोनिस्ट सैनिकों के लिए नरक बन जाएगा।
हमास के अलक़ेसाम ब्रिगेड ने इज़राइल के संभावित हमले और वहां मौजूद सैनिकों की स्थिति पर महत्वपूर्ण बयान जारी किया है।
बयान में कहा गया है कि गाज़ा सियोनिस्ट सेना के लिए आसान लक्ष्य नहीं होगा। हम डरने वाले नहीं हैं और तैयार हैं कि आपके सैनिकों को नरक में भेज दें।
अल-क़ेसाम ब्रिगेड ने साफ़ किया कि शहादत चाहने वाले युवाओं की पूरी सेना तैयार है और गाजा सियोनिस्ट सेना के लिए कब्रगाह बन जाएगा।
बयान में यह भी कहा गया कि इज़राइल एक लंबी और महंगी युद्ध में प्रवेश कर रहा है, जिसमें सैनिकों की मौतें और बंदियों की संख्या बढ़ेगी।
अलक़ेसाम ब्रिगेड ने बताया कि लड़ाकों को बख्तरबंद वाहनों में बम लगाने की ट्रेनिंग दी गई है, और बुलडोज़र भी महत्वपूर्ण निशाने होंगे, जिससे और भी बंदी हमास के कब्जे में आएंगे।
बंदियों की वर्तमान स्थिति के बारे में अलक़ेसाम ने चेतावनी दी कि गाज़ा के विभिन्न इलाकों में इज़राइली बंधक फैले हुए हैं, और जब तक नेतन्याहू उन्हें मारने का फैसला नहीं करता, हम उनकी जान की परवाह नहीं करेंगे। इस ऑपरेशन की शुरुआत और फैलाव का मतलब है कि कोई भी बंदी, जिंदा या मृत, वापस नहीं आएगा और उनका अंत 'रान आराद' जैसा होगा।
इस संघर्ष के दौर में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है।शेख़ अल कतान
जमीयत क़ौलना व अमल" संगठन के अध्यक्ष और लेबनान के सुन्नी धार्मिक विद्वान ने एक समारोह के दौरान संघर्ष की पीढ़ियों के निर्माण में धर्मपरायण महिलाओं की भूमिका के महत्व पर ज़ोर दिया।
जमीयत क़ौलना व अमल" संगठन के अध्यक्ष और लेबनान के सुन्नी धार्मिक विद्वान ने ब्रालियास, लेबनान में इस संगठन की महिला समिति द्वारा आयोजित एक समारोह के दौरान धर्मपरायण महिलाओं की भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि हमें ऐसी धर्मपरायण महिलाएँ चाहिए जो हमारे लिए शेख अहमद यासीन, अब्दुलअज़ीज़ रनतीसी और फिलिस्तीन, ग़ाज़ा, लेबनान, यमन और अन्य जगहों के सभी शहीद नेताओं जैसे आदर्श प्रस्तुत कर सकें।
शेख़ अल कतान ने दुश्मन को इस उम्मत की जनता के खिलाफ प्रणालीगत का जिम्मेदार ठहराया और दोहा में उन आवासीय अपार्टमेंटों पर हुए बम धमाकों का उल्लेख किया, जिन्हें विरोध के नेताओं की उपस्थिति के बहाने निशाना बनाया गया था। उन्होंने कहा कि यह हमला किसी भी अरब देश में दोहराया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि यह दुश्मन मानवता में विश्वास नहीं करता और उसका तजावज़ लेबनान, यमन, फिलिस्तीन और ग़ाज़ा पर जारी है; इसलिए, हमें वास्तविक अरब और इस्लामी एकता की ज़रूरत है।
लेबनान के सुन्नी धर्मगुरु ने दुश्मन के खिलाफ अरब और इस्लामी देशों के बीच एकता और सहमति की मांग की है।
आयतुल्लाह आराफी का हौज़ा ए इल्मिया के उस्तादो को शोक संदेश
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने अपने एक संदेश में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम मुसवी के पिता के निधन पर दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने अपने एक संदेश में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम मुसवी के पिता के निधन पर दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।
शोक संदेश इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम मुसवी आपके पिता के निधन की खबर सुनकर बहुत दुख हुआ इस दुखद समय में हम आपके परिवार के प्रति दुआ करते हैं और हम आपके दु:ख में बराबर के भागीदारी है
मैं अल्लाह ताला से दुआ करता हूं कि परिवार वालों को सब्र आता करें और मरहूम की मग़फिरत करें और उन्हें जवारे अहलेबैत अ.स. में जगह करार दें।
अली रज़ा आराफी
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख
इमाम हसन अ.स. की सुल्ह अमन का मुहं बोलता सबूत
युद्ध और विवाद से घिरे वर्तमान युग में शहज़ादा ए सुल्ह हज़रत इमाम हसन अ.स.की शिक्षाएं पूरी दुनिया के लिए शांति और अमन की गारंटी हैं।
हसन इब्ने अली इब्न अबी तालिब 3-50 हिजरी शियो के दूसरे इमाम हैं, जिन्हें इमाम हसन मुज्तबा (अ) के नाम से जाना जाता है। उनकी इमामत दस वर्ष (40-50 हिजरी) तक चली। वह लगभग 7 महीने तक खलीफा के पद पर रहे। सुन्नी आपको अंतिम सही मार्गदर्शित खलीफा मानते हैं।
21 रमज़ान 40 हिजरी को इमाम अली (अ) की शहादत के बाद, उन्होंने इमामत और खिलाफत का पद संभाला और उसी दिन 40,000 से अधिक लोगों ने उनके प्रति निष्ठा की शपथ ली।
मुआविया ने उसकी खिलाफत स्वीकार नहीं की और सीरिया से एक सेना लेकर इराक की ओर कूच कर दिया। इमाम हसन (अ) ने उबैदुल्लाह इब्न अब्बास के नेतृत्व में एक सेना मुआविया की ओर भेजी और स्वयं एक समूह के साथ सबात की ओर रवाना हुए। मुआविया ने इमाम हसन के सैनिकों के बीच तरह-तरह की अफ़वाहें फैलाकर शांति का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास किया।
इन मुसीबतों को देखते हुए इमाम हसन (अ.स.) ने समय और परिस्थितियों की मांग को देखते हुए मुआविया के साथ शांति स्थापित करने का निर्णय लिया, लेकिन इस शर्त पर कि मुआविया कुरान और सुन्नत का पालन करेगा, अपने बाद किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं करेगा और सभी लोगों, विशेष रूप से अली (अ) के शियाओं को शांति से रहने का अवसर प्रदान करेगा। लेकिन बाद में मुआविया ने उपरोक्त किसी भी शर्त का पालन नहीं किया...
शांति संधि के बाद, वह 41 हिजरी में मदीना लौट आये और अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वहीं रहे। मदीना में, उन्होंने सामाजिक और शैक्षणिक दोनों ही दृष्टियों से उच्च पद और प्रतिष्ठा प्राप्त की, साथ ही वे एक अकादमिक अधिकारी भी थे।
जब मुआविया ने अपने बेटे यजीद से युवराज के रूप में निष्ठा प्राप्त करने का इरादा किया, तो उसने इमाम हसन की पत्नी जादा को सौ दीनार भेजे, ताकि वह इमाम को जहर देकर उन्हें शहीद कर दे। ऐसा कहा जाता है कि जहर दिए जाने के 40 दिन बाद उनकी शहादत हुई थी।
यहां उस प्रश्न का उत्तर दिया गया है जो हमारे अपने लोगों और अन्य लोगों द्वारा पूछा जाता है: यदि इमाम हसन (अ) ने सुल्ह न की होती तो क्या होता?
यदि इमाम हसन (अ) ने सुल्ह नहीं की होती, तो मुआविया इब्न अबी सुफ़यान ने इसका इस्तेमाल अपनी सशस्त्र सेना के साथ कूफ़ा में प्रवेश करने के लिए किया होता, और दावा किया होता कि ये वे लोग थे जिन्होंने उस्मान को मारा था, और उन्होंने वहां की सरकारी, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को नष्ट कर दिया होता, और लोगों, विशेष रूप से अली के शियाओं का नरसंहार किया होता...
यदि शांति और सुरक्षा की योजना नहीं बनाई गई थी, तो शिया को उसमान को मारने के बहाने सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा, और जो रिवायते अभी भी सुन्नीयो की सही और मुस्नदो में मौजूद हैं, जो कि अमीर (अ) के फ़ज़ाइल के बारे में हैं और यह नहीं है कि वे इस व्यवहार के लिए हैं। इस सुल्ह को इस व्यक्ति की गर्दन के आसपास नहीं रखा गया था, आज हमारे पास नाहजुल बलागा में एक भी उपदेश नहीं होते।
अगर यह सुल्ह न होती तो आज हमारे हाथ में सहीह, सुन्नन और मुसनद की एक भी रिवायत नहीं होती। अगर यह सुल्ह न होती तो हमारे हाथ में इस्लाम और शिया धर्म के सूक्ष्म सिद्धांत और मूल्य नहीं होते। अगर हमारे पास अली (अ) की जीवनी, पवित्र पैगंबर (स) की सही जीवनी और शिक्षाएं, कुरान की हमारी सही व्याख्या आदि हैं, तो यह शांति का परिणाम है...
यह कहना सही है कि इमाम हसन मुजतबा (अ) ने मुआविया जैसी अज्ञात जाति के साथ शांति स्थापित करके इस्लामी मूल्यों और परंपराओं की रक्षा की और शिया धर्म को नया जीवन दिया। आज हमारे पास जो कुछ भी है वह इमाम हसन के धैर्य और दृढ़ता और उनकी शांति का परिणाम है।
यह सभी बातें इमाम हसन की शांति के रहस्यों में से एक हैं। हमें इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए कि हुसैनी आंदोलन, जो चौदह सौ वर्षों से उत्पीड़ित दुनिया के लिए एक सबक है, अल्लाह के रसूल हज़रत इमाम हसन मुज्तबा (अ) के कबीले की बुद्धिमत्ता का परिणाम है।
अगर उनकी बुद्धिमत्ता और ज्ञान न होता, तो शायद इमाम हुसैन (अ) की महान क्रांति मानवता की दुनिया के लिए कभी प्रकाश की किरण नहीं बन पाती... दुर्भाग्य से दुश्मन और दोस्त दोनों ही इन रहस्यों और मौज-मस्ती को समझने में असमर्थ रहे और शांति के बाद, शांति और सुरक्षा के राजकुमार, जन्नत के युवाओं के सरदार, अल्लाह के रसूल, अली और बतूल के कबीले से नाराज़ हो गए, यहाँ तक कि कुछ लोगों ने उन्हें "ईमान वालों को अपमानित करने वाला" (ईमान वालों को अपमानित करने वाला) तक कह दिया, जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
युद्ध और विवाद से घिरे वर्तमान युग में शांति के राजकुमार हजरत इमाम हसन की शिक्षाएं पूरी दुनिया के लिए शांति और अमन की गारंटी हैं।
मौलाना तकी अब्बास रिज़वी, कोलकाता
हज़रत मासूमा स.अ.हज़रत ज़हेरा स.अ. की यादगार
हरम ए मुत्तहर हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हरम के ख़तीब ने कहा कि औलिया ए ख़ुदा अल्लाह के नेक और करीब लोग हैं हज़रत मासूमा स.अ. के हरम को हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ.की यादगार समझते थे और यहाँ आकर तवस्सुल किया करते थे।
हरम के खतीब हज़रत मासूमा स.ल.के हुज्जतुल वल इस्लाम हामिद काशानी ने अपने संबोधन में कहा,इस्लाम के आरंभ से अब तक हज़रत ख़दीजा (स.ल.) हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा (स.ल.)और हज़रत उम्मे सल्मा (स.ल.) जैसी महान महिलाओं ने हमेशा रसूल अक़रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अहल-ए-बैत अलैहिमुस्सलाम के साथ रहकर दीन-ए-ख़ुदा की नसरत की और इस्लामी इतिहास उनकी बहादुर और समर्पित कोशिशों का नतीज़ा है।
उन्होंने हज़रत उम्मे सल्मा स.ल.की ज़िन्दगी से उदाहरण देते हुए बताया कि इस नेक महिला ने उस दौर के शासकों की लालच और रिश्वत को ठुकराया और अपने ईमान को कभी बेचने को तैयार नहीं हुईं, भले ही इस वजह से उनका वज़ीफ़ा एक साल तक बैतुल मॉल से बंद कर दिया गया उन्होंने कठिनाइयों के बावजूद हक़ पर डटे रहकर यह साबित किया कि एक मोमना औरत समाज में रोशनी फैला सकती है।
हुज़्ज़तुल इस्लाम काशानी ने आगे कहा,हज़रत उम्मे सल्मा ने अपनी सच्चाई और ख़ुलूस से आयत-ए-तत्हीर कुरआन की वह आयत जो अहल-ए-बैत की पवित्रता की तस्दीक करती है की व्याख्या की और गवाही दी कि नबी अक़रम (स.ल.) के खास अहल ए बैत केवल पंजतंन-ए-आल-ए-अबा हैं। उनके इस कार्य के कारण नबी की दूसरी पत्नियों में से कोई भी इस ख़ासियत का दावा नहीं कर सकीं।
खतीब ने हज़रत उम्मे सल्मा (स.ल.) की इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ.स) से मोहब्बत की ओर इशारा करते हुए कहा,वह ऐसी नानी थीं जिनके घर में रसूल की बेटी (स.ल.) के बच्चे चैन से रहते थे। यह दो तरफ़ा मोहब्बत इस महान महिला के लिए एक बड़ी फज़ीलत थी।
उन्होंने बात को हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.ल.) की तरफ मोड़ते हुए कहा, इमामों की संतान सभी समान नहीं थीं, कुछ ने तो इमाम रज़ा (अ.स.) की भी तौहीन की, लेकिन हज़रत मासूमा (स.ल.) ने अपने भाई की नसरत करके उस मुकाम तक पहुंची कि कई इमामे मासूमीन (अ.ल.) ने उनकी ज़ियारत के फ़ज़ाइल के बारे में हदीसें बयान कीं।
हुज़्ज़तुल इस्लाम काशानी ने क़ुम में हज़रत मासूमा (स.ल.) की मौजूदगी के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा, हालांकि क़ुम पहले भी एक धार्मिक शहर था, लेकिन जब हज़रत मासूमा (स.ल.) यहाँ दफन हुईं तो यह ज़मीन हरम-ए-आहल-ए-बैत" और इल्म का केंद्र बन गई। इसी समय से हौज़ा इल्मिया क़ुम की स्थापना हुई, और आज यहाँ से अहल-ए-बैत के उलूम दुनिया के कोनों तक पहुँच रहे हैं। जिस तरह पहले नजफ अशरफ शीअत का केंद्र था, आज क़ुम इल्मी तौर पर शीअत का केंद्र है।
सऊदी अरब में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और उनके प्रतिनिधिमंडल का भव्य स्वागत
दोहा में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और सऊदी क्राउन प्रिंस की बैठक में यह तय हुआ था कि दोनों की जल्द ही पुनः मुलाकात होगी लेकिन हाल ही में सऊदी अरब के दौरे के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का स्वागत सऊदी शाही वायुसेना द्वारा अद्वितीय अंदाज़ में किया गया।
दोहा में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और सऊदी क्राउन प्रिंस की बैठक में यह तय हुआ था कि दोनों की जल्द ही पुनः मुलाकात होगी लेकिन हाल ही में सऊदी अरब के दौरे के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का स्वागत सऊदी शाही वायुसेना द्वारा अद्वितीय अंदाज़ में किया गया।पाकिस्तान उन कुछ देशों में शामिल है जिन्हें सऊदी अरब इस कदर सम्मान और प्रतिष्ठा देता है।
हौजा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, दोहा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और सऊदी क्राउन प्रिंस की बैठक में यह तय हुआ था कि दोनों की जल्द ही पुनः मुलाकात होगी।
लेकिन हाल ही में सऊदी अरब के दौरे के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का स्वागत सऊदी शाही वायुसेना द्वारा अद्वितीय अंदाज़ में किया गया। पाकिस्तान उन कुछ देशों में से है जिन्हें सऊदी अरब इतनी बड़ी सम्मान और आदर प्रदान करता है।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच ऐतिहासिक और भाईचारे के अटूट रिश्ते आपसी भरोसे और इस्लामी भाईचारे पर आधारित हैं।













