رضوی
क्या पश्चिमी देशों द्वारा फ़िलिस्तीन को मान्यता देना एक वास्तविक क़दम है या दिखावा?
ऑनलाइन पत्रिका "972+" ने कुछ पश्चिमी सरकारों की फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की नीति पर चर्चा की।
ऑनलाइन पत्रिका "972+" ने हाल ही में फ़िलिस्तीनी पत्रकार "अला सलामेह" का एक लेख प्रकाशित किया और लिखा: हालाँकि फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की वैश्विक लहर दुनिया में इज़राइल के बढ़ते अलगाव का संकेत देती है, लेकिन इस राजनीतिक नाटक से धोखा नहीं खाना चाहिए क्योंकि पश्चिमी तट पर इज़राइल के निरंतर कब्जे और गज़ा में उसके साथ-साथ हो रहे नरसंहार को देखते हुए, द्वि-राज्य समाधान का समर्थन करना बेतुका और निरर्थक है। पारस टुडे के अनुसार, 77 वर्षों के बाद द्वि-राज्य योजना एक आक्रामक और सैन्यवादी शासन के अस्तित्व की मुख्य समस्या का कोई समाधान नहीं प्रस्तुत करती है जो दूसरे राष्ट्र पर हावी होना चाहता है। कृपया फ़िलिस्तीनी जीवन के 30 और वर्ष एक ऐसी विभाजन योजना पर बर्बाद न करें जो एक औपनिवेशिक समस्या का औपनिवेशिक समाधान है।
इज़राइल ने बहुत पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह फ़िलिस्तीनी राज्य को कभी स्वीकार नहीं करेगा। जब कोई समाधान न तो न्यायसंगत होता है और न ही संभव, तो वह शांति योजना नहीं, बल्कि निष्क्रियता का एक बहाना बन जाता है जो इज़राइल को अपनी हत्याएँ जारी रखने, अपने विस्तार को तेज़ करने और अपने रंगभेदी शासन को गहरा करने का मौका देता है।
एक सवाल, सचमुच: इस समाधान में फ़िलिस्तीनी कहाँ हैं? हमसे किसने कभी पूछा है कि हम इन समाधानों के बारे में क्या सोचते हैं? जिस तरह संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में हमारी सहमति के बिना विभाजन योजना तैयार की थी, उसी तरह अब हमारे लोगों की राय उन यूरोपीय शक्तियों के लिए कोई मायने नहीं रखती जो द्वि-राज्य योजना को आगे बढ़ा रही हैं।
फ्रांस अपने अहंकार के साथ, इज़राइल को फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की धमकी देता है, लेकिन फ़्रांस ख़ुद इस बात पर अड़ा है कि फ़िलिस्तीनी राज्य का निरस्त्रीकरण किया जाना चाहिए, जबकि वह इज़राइल को हथियार देना जारी रखे हुए है। एक हथियार विक्रेता नरसंहार के पीड़ितों से हथियार डालने के लिए कहने की स्थिति में नहीं है!
लेकिन अगर कोई चमत्कार भी हो जाए और इज़राइल अंततः पश्चिमी तट और गज़ा से हट जाए, तो इस नए राज्य में फ़िलिस्तीनियों की सुरक्षा की क्या गारंटी होगी? एक राज्य होने से कब से किसी को इज़राइली आक्रमण और विस्तारवाद से सुरक्षा मिली है? लेबनान और सीरिया, दोनों स्वतंत्र देश हैं जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाएँ हैं, फिर भी वे अपने शहरों पर इज़राइली कब्ज़े और बमबारी देख रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में फ़िलिस्तीनी झंडा बस्तियों के विकास को नहीं रोकेगा, इज़राइल के सैन्य शासन को ख़त्म नहीं करेगा, या उसके क्षेत्रीय युद्धों को समाप्त नहीं करेगा।
अब, इन प्रतीकात्मक संकेतों का विनाशकारी प्रभाव ऐसा है कि इन्हें केवल बेकार कहकर खारिज नहीं किया जा सकता, जैसा कि वे पहले थे; क्योंकि ये योजनाएँ युद्ध अपराध करने वाले शासन के लिए समय खरीदती हैं और एकमात्र महत्वपूर्ण समाधानों की तात्कालिकता को कम करती हैं: नरसंहार को समाप्त करना, अपराधियों का बहिष्कार करना, रंगभेद व्यवस्था को अलग-थलग करना, और समान अधिकारों और वापसी के अधिकार पर ज़ोर देना। फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने का दबाव लोगों को कार्रवाई का भ्रम देता है और वास्तविक समाधानों में देरी करता है, जैसे कि इज़राइल के रंगभेदी शासन का बहिष्कार और अलगाव।
असली समाधान दो-राज्य समाधान नहीं है, बल्कि इज़राइल को एक रंगभेदी शासन के रूप में मान्यता देना है। यह भविष्य की ओर पहला आवश्यक कदम है। इज़राइली शासन को रंगभेदी शासन के रूप में आधिकारिक मान्यता, भले ही कुछ देशों द्वारा, दुनिया में इज़राइल के लिए निरंतर सैन्य और आर्थिक समर्थन को कानूनी और राजनीतिक रूप से अस्थिर बना देगी। यह प्रतिबंधों और राजनयिक संबंधों के विच्छेद का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
अंततः, ज़ायोनीवाद विफल हो गया है; क्योंकि जातीय सफ़ाई और अब नरसंहार का सहारा लेकर, उसने ऐसे अपराध किए हैं जिन्होंने उसे दुनिया में अलग-थलग और घृणास्पद बना दिया है। इसके अलावा, फिलिस्तीनी लोग अपनी ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
हफ्ता ए वहदत और एकता का संदेश
हफ्ता ए वहदत दरअसल उम्मत ए मुस्लिमा के लिए एक बड़ा उपहार है, जिसकी नींव हज़रत रूह अल्लाह मूसवी मशहूर इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने रखी थी। यह हफ्ता हर साल 12 से 17 रबीउल आव्वल तक मनाया जाता है ताकि दुनिया भर के मुसलमान पैग़म्बर अक़रम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स.ल.व. की पैदाइश के इस खुशगवार और बरकत वाले मौक़े पर एक दूसरे के करीब आएं, अपने इख़्तेलाफ़ात को पीछे छोड़ कर क़ुरआन और सुन्नत की असली तालीमात की तरफ़ ध्यान दें।
ईरान के धार्मिक शहर क़ुम अलमुकद्देसा मे रहने वाले भारतीय शोधकर्ता और इस्लामिक स्टड़ीज़ के छात्र हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना हाफिज़ मोहम्मद सय्यद फरज़ान रिज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि के साथ हफ़ता ए वहदत के अवसर पर विशेष बात मे मौलाना ने कहा,हफ्ता ए वहदत दरअसल उम्मत ए मुस्लिमा के लिए एक बड़ा उपहार है, जिसकी नींव हज़रत रूह अल्लाह मूसवी मशहूर इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने रखी थी। हौज़ा न्यूज़ के पत्रकार और मौलाना के बीच हुई बात चीत को प्रशन उत्तर के रूप मे अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत कर रहे है।
हफ्ता-ए-वहदत क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : हफ्ता-ए-वहदत मुस्लिम समुदाय के लिए एक बहुत बड़ा तोहफा है। इसे हर साल 12 से 17 रबीउल-अव्वल के बीच मनाया जाता है इस हफ्ते का मकसद दुनिया भर के मुसलमानों को एक-दूसरे के करीब लाना है ताकि वे पैगंबर मोहम्मद (स) की पैदाइश के इस खुशहाल मौके पर अपने मतभेद भूलकर एकजुट हों।
इस हफ्ते वहदत का असली मकसद क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : इसका असली मकसद है सभी मुसलमान शिया, सुन्नी और बाकी सभी अपने मतभेदों को छोड़कर भाईचारे और मोहब्बत के साथ एक-दूसरे की मदद करें। क्योंकि दुश्मन चाहता है कि हम बंट जाएं, लेकिन अगर हम एक साथ रहें तो वो कभी सफल नहीं हो पाएगा।
इस्लाम में एकता और भाईचारे की अहमियत क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : इस्लाम हमें एकता और भाईचारे की सीख देता है। क़ुरआन ने फरमाया,
وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا (سورۃ آلِ عمران 103)
सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो और आपस में भेदभाव और तफ़रक़ा मत डालो! पैगंबर मोहम्मद (स) ने भी मदीने में उखुव्वत और भाई चारे का संदेश दिया ताकि तमाम मुसलमान एक परिवार की तरह रहें।
हमें इस हफ्ते को कैसे मनाना चाहिए?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : हमें इसे सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बनाना चाहिए। असली मकसद है दिलों को जोड़ना, मतभेद कम करना और मुसलमानों को एक आवाज़ बनाना। अगर हम ऐसा करेंगे तो इस्लाम और मुसलमानों की ताकत बढ़ेगी।
कोई खास बात जो आप साझा करना चाहेंगे?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : हां, इमाम ख़ुमैनी र.ह. ने फरमाया था:
"तुम उस बात पर झगड़ रहे हो कि नमाज़ में हाथ बांधना है या खोलना, जबकि दुश्मन तुम्हारे हाथ काटने में लगा हुआ है।इसका मतलब है कि छोटे-छोटे मतभेदों में उलझ कर हम अपनी असली ताकत, यानी एकता, खो देते हैं।
आख़िरी संदेश क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : इस हफ्ते हम सब वादा करें कि अपने मतभेद भूलकर एक-दूसरे से प्यार और भाईचारा बढ़ाएंगे। अपने भाइयों का सहारा बनेंगे और दुश्मन के खिलाफ एक मजबूत ताकत बनेंगे। यही पैगंबर मोहम्मद (स) का असली संदेश है।
पैग़म्बर मुहम्मद (स) का जीवन और शिक्षाएँ सभी के लिए हैं: मौलाना अबुल कासिम रिज़वी
पैग़म्बर मुहम्मद (स) के जन्म के 1500 वर्ष पूरे होने पर, कादरी हाउस द्वारा विक्टोरिया संसद में एक ऐतिहासिक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न धर्मों के नेताओं और हस्तियों ने भाग लिया और सहिष्णुता और एकता का संदेश दिया।
पैग़म्बर मुहम्मद (स) के जन्म के 1500 वर्ष पूरे होने पर, कादरी हाउस द्वारा विक्टोरिया संसद में एक अद्भुत सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर, प्रसिद्ध नात ख़्वान श्री वकार कादरी साहब ने अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से संचालक का दायित्व निभाया।
इस समारोह के आयोजन का उद्देश्य सर्वधर्म, सर्वधर्म सहिष्णुता और सम्मान के आंदोलन का प्रचार करना था। आयोजकों के अनुसार, इस उद्देश्य के लिए संसद से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती थी।
मंत्रियों, सांसदों, राजदूतों, विभिन्न संप्रदायों के मुस्लिम विद्वानों और हिंदू, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्मों के नेताओं ने न केवल कार्यक्रम में भाग लिया, बल्कि पवित्र पैगंबर (स) को श्रद्धांजलि भी अर्पित की। इस अवसर पर सहिष्णुता, भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया।
अंत में, शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष और मेलबर्न में जुमे की नमाज़ के इमाम, हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन मौलाना सय्यद अबुल कासिम रिज़वी ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत इन शब्दों से की: "आज से ठीक पंद्रह सौ साल पहले, एक अनाथ ने दुनिया बदल दी। उसने एक ऐसी व्यवस्था दी जिसकी आवश्यकता हर युग और हर समाज को क़यामत तक है। उसने शांति, समानता, न्याय और उच्च नैतिकता का संदेश दिया।"
मौलाना सय्यद अबुल कासिम रिज़वी ने कहा कि आज जब दुनिया अत्याचार, भ्रष्टाचार और अनैतिकता की चपेट में है, ऐसे कार्यक्रमों की ज़रूरत और भी बढ़ गई है। हमें पैगम्बर मुहम्मद (स) के जीवन और शिक्षाओं का प्रसार करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ये शिक्षाएँ सिर्फ़ इंसानों या दुनिया के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए हैं।
उन्होंने कहा कि आज सभी धर्मों के नेताओं की भागीदारी ने यह साबित कर दिया है कि हम सब एक हैं और पैगम्बर मुहम्मद (स) का सार सभी के लिए है। ऐसे आयोजन नफ़रत को खत्म करने और प्रेम को बढ़ावा देने का ज़रिया बनेंगे।
अपने संबोधन के अंत में, मौलाना ने कहा: "अंधकार बढ़ रहा है, हमारा काम प्रकाश को बढ़ाना है। जब दुनिया में लोग फूट डालने और बांटने का काम कर रहे हैं, तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम लोगों को जोड़ने का काम करें, और यह प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए।"
हलाल रोज़ी बच्चों को हक़ पज़ीर बनाती हैः
हरम ए हज़रत फातेमा मासूमा स.ल. में ख़िताब करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सययद अली रज़ा तराशीयून ने कहा कि हराम माल का दाख़िल होना ज़िंदगी को तबाही में मुब्तिला कर देता है, जबकि हलाल रोज़ी न सिर्फ़ इंसान की ज़िंदगी में बरकत डालती है बल्कि औलाद को भी हक़ क़बूल करने वाला बनाती है।
हरम ए हज़रत फातेमा मासूमा स.ल. में ख़िताब करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद अली रज़ा तराशीयून ने कहा, कि हराम माल का दाख़िल होना ज़िंदगी को तबाही में मुब्तिला कर देता है, जबकि हलाल रोज़ी न सिर्फ़ इंसान की ज़िंदगी में बरकत डालती है बल्कि औलाद को भी हक़ कबूल करने वाला बनाती है।
उन्होंने कहा कि इस्लाम ने बार-बार अहले ख़ाना की तरबीयत पर जोर दिया है और कुछ बुनियादी अंसूर इंसान की ज़िंदगी को या तो कामयाब बनाते हैं या नाकाम। इन अंसूरों में ख़ुदा से तआल्लुक, झूठ से परहेज़, हलाल रोज़ी और अन्य दीनी मामले शामिल हैं।
ख़तीब हरम हज़रत मासूमा (स) ने नमाज़ की अहमियत बयान करते हुए कहा कि घरों में नमाज़ की बे-तवज्जुही ज़िंदगियों को मुश्किलात से दो चार कर देती है। उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हेरा सलाम अल्लाहु अलैहा का फ़रमान नक़ल किया कि बे नमाज़ी फ़रद दुनिया में नौ मसीबतों और मौत के वक़्त छ बड़ी बलाओं में मुब्तिला होता हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद अली रज़ा तराशीयून ने आगे कहा कि माजाज़ी दुनिया और सोशल मीडिया के मंफ़ी असरात तेज़ी से ख़ानदानी निज़ाम को कमज़ोर कर रहे हैं। उनके कौल सोशल मीडिया की फितरत सर्द है और जितना हम सोशल मीडिया को ज़िंदगी से दूर रखेंगें, मियां बीवी के ताल्लुकात उतने मज़बूत होंगे।
उन्होंने वाज़िह किया कि सोशल मीडिया इंसान को कंट्रोल न करे बल्कि इंसान को मीडिया पर क़ाबू पाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि घरानों में काग़ज़ी किताबों के मुतालिए को ज़्यादा अहमियत दी जाए क्योंकि मोबाइल और सोशल मीडिया से हासिल होने वाला मुतालिया पायदाद असरात नहीं रखता।
यूरोप की मिसाल देते हुए उन्होंने बताया कि कई मुल्कों ने हालिया बरसों में अपने स्कूलों को दुबारा "गैर स्मार्ट" बना दिया है क्योंकि स्मार्ट औज़ार इंसानी fitrat से हमआहंग नहीं और नुक़सानदेह साबित हुए हैं।
उन्होंने मियां बीवी के बाहमी अहद-व-वफ़ा को ख़ानदान के इस्तिहकाम की बुनियाद करार दिया और कहा कि शादी का मकसद ऐसा रिश्ता है जिसे सिर्फ़ मौत अलग कर सके।
झूठ की मज़ममत करते हुए उन्होंने इमाम सादिक अलैहि सलाम का फ़रमान याद दिलाया कि तमाम बुराइयाँ एक घर में जमा हैं और उसका दरवाज़ा झूठ है। इसी तरह अमीरुल मुमिनीन अलैहि सलाम का क़ौल नक़ल किया कि नजात और कामयाबी सच्चाई में है।
अपनी गुफ्तगू के इख़्तिताम पर उन्होंने कहा कि उलमा-ए-कराम ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि इंसान को खाने वाले हर लम्हे में एहतियात बरतनी चाहिए क्योंकि हराम लम्हा इंसान की ज़िंदगी पर तलवार के वार से ज़्यादा असर डालता है, जबकि हलाल लुकमा औलाद को हक़ शनास और हक़ पज़ीर बनाती है।
पैग़म्बर (स) का व्यक्तित्व गरिमा, सुरक्षा, भलाई और आशीर्वाद का स्रोत है
फ़ातिमिया एजुकेशनल कॉम्प्लेक्स, मुज़फ़्फ़राबाद में पैग़म्बर (स) के जन्म के अवसर पर आयोजित समारोह में बड़ी संख्या में छात्राओं और महिलाओं ने भाग लिया। वक्ताओं ने अपने संबोधन में पैग़म्बर (स) के जीवन के व्यावहारिक पहलुओं पर प्रकाश डाला और उन्हें मानवता के लिए दया और मार्गदर्शन का स्रोत बताया।
ख़ातम-उन-नबियीन हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पवित्र जन्म के अवसर पर मुज़फ़्फ़राबाद के फ़ातिमा एजुकेशनल कॉम्प्लेक्स में एक शानदार और प्रेरणादायक सभा आयोजित की गई, जिसमें शहर भर से बड़ी संख्या में छात्राओं के साथ-साथ महिलाओं ने भी भाग लिया।
समारोह की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद नातिया कलाम के माध्यम से पैग़म्बर (स) के प्रति समर्पण और प्रेम का इज़हार किया गया। छात्रों ने नाटकों और झांकियों के माध्यम से पैग़म्बर (स) के काल के प्रसंगों को खूबसूरती से प्रस्तुत किया, जबकि तोशी ख्वानी ने समागम को और भी आध्यात्मिक रंग दिया।
इस अवसर पर, जामिया सानिया ज़हरा की प्रधानाचार्या सुश्री सैयदा रख्शंदा काज़मी और फ़ातिमा एजुकेशनल कॉम्प्लेक्स की प्रधानाचार्या सुश्री सैयदा फ़िदा मुख्तार नक़वी ने अपने विचार रखे और पैग़म्बर (स) के जीवन के व्यावहारिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। सुश्री सैयदा फ़िज़्ज़ा मुख्तार नक़वी ने हज़रत अली (अ) के कथन के आलोक में समझाया कि अल्लाह के रसूल (स) का सार सर्वोच्च और सर्वोत्तम स्रोत है, जो गरिमा, शांति और भलाई का केंद्र है। पैगम्बर (स) की कृपा से नेक दिल अल्लाह की ओर मुड़े, दुश्मनी और बदले की आग बुझी, भाईचारा स्थापित हुआ और सही-गलत का अंतर स्पष्ट हुआ। पैग़म्बर (स) ने कमज़ोरों को सम्मान दिया और अहंकारी और घमंडी लोगों का अहंकार तोड़ा। पैग़म्बर (स) का हर शब्द और मौन सत्य को व्यक्त करता है।
मारोह के दौरान, चतुर्थ वर्ष के छात्रों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए, जबकि "शिक्षक दिवस" के अवसर पर सभी शिक्षकों को पुरस्कार प्रदान किए गए।
जम्मू में मिलाद-उन-नबी समारोह
शिया फेडरेशन जम्मू प्रांत के अध्यक्ष और अंजुमन हुसैनी के सहयोग से ईद मिलाद-उन-नबी के अवसर पर बथुंडी में एक हर्षोल्लासपूर्ण जुलूस निकाला गया, जिसमें प्रतिभागियों ने मुस्लिम एकता के नारे लगाए और पैग़म्बर (स) की शिक्षाओं के साथ-साथ फिलिस्तीन के उत्पीड़ित लोगों के साथ एकजुटता का संदेश दिया।
ईद मिलाद-उन-नबी के अवसर पर बथुंडी-जम्मू में एक हर्षोल्लासपूर्ण जुलूस निकाला गया। शिया फेडरेशन के अध्यक्ष अल्हाजी आशिक हुसैन खान और अंजुमन हुसैनी बथुंडी, मुसल हॉस्टल कारगिल कॉलोनी के सहयोग से।
जुलूस जामिया मस्जिद हज़रत इमाम रज़ा (स) बथुंडी से शुरू हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। यह निर्धारित मार्गों से होता हुआ मक्का की केंद्रीय मस्जिद पहुँचा, जहाँ मस्जिद प्रशासन और वहाँ मौजूद लोगों ने प्रतिभागियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।
जुलूस के दौरान, प्रतिभागियों ने मुस्लिम एकता के नारे लगाए और पैग़म्बर मुहम्मद (स) के जीवन से जुड़ी शिक्षाओं का प्रसार किया, साथ ही फिलिस्तीन के उत्पीड़ित लोगों के साथ एकजुटता और मुस्लिम उम्माह के भीतर एकता का संदेश दिया।
इस अवसर पर, प्रतिभागियों ने इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह खामेनेई, शहीद कासिम सुलेमानी और प्रतिरोध के सैयद हसन नसरल्लाह की तस्वीरें भी लहराईं।
फ़िलिस्तीन: आत्मघाती हमला, ज़ायोनी बस पर गोलीबारी में 20 लोग मारे गए और घायल हुए
अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तरी हिस्से में एक आत्मघाती अभियान के दौरान, ज़ायोनी प्रवासियों को ले जा रही एक बस पर गोलीबारी की गई, जिसमें कम से कम 20 लोग मारे गए और घायल हुए।
अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तरी हिस्से में एक आत्मघाती अभियान के दौरान, ज़ायोनी प्रवासियों को ले जा रही एक बस पर गोलीबारी की गई, जिसमें कम से कम 20 लोग मारे गए और घायल हुए।
हिब्रू सूत्रों के अनुसार, यह घटना रामोत शहर में हुई, जहाँ दो युवक बस में चढ़े और अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में, इज़राइली सेना और पुलिस ने दोनों हमलावरों को मार गिराया। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, एक आत्मघाती हमलावर ने पहले सुरक्षा अधिकारी होने का नाटक किया और तलाशी के बहाने यात्रियों का ध्यान भटकाया, और फिर अचानक गोलीबारी शुरू कर दी।
शुरुआत में 15 लोगों के घायल होने की सूचना मिली थी, जिनमें से 6 की हालत गंभीर थी, लेकिन बाद में कुछ इज़राइली सूत्रों ने पुष्टि की कि कम से कम 4 इज़राइली मारे गए हैं और घायलों की संख्या 20 तक पहुँच गई है।
घटना के बाद, इज़राइल के आंतरिक सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्वेर तुरंत घटनास्थल पर पहुँचे। इज़राइली सहायता संगठन "रेड स्टार डेविड" ने घोषणा की कि कई घायल सड़क पर बेहोश पड़े थे और उन्हें मौके पर ही चिकित्सा सहायता दी जा रही थी।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि एक यहूदी छात्र, जिसे एक साल पहले हथियार रखने की अनुमति दी गई थी, ने भी लड़ाकों पर गोलीबारी की।
इस ऑपरेशन के बाद, इज़राइली सेना और पुलिस ने उत्तरी अधिकृत फ़िलिस्तीन और यरुशलम के सभी प्रवेश और निकास द्वार बंद कर दिए और घोषणा की कि भविष्य में भी कड़े सुरक्षा उपाय जारी रहेंगे।
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब अधिकृत क्षेत्रों में स्थिति लगातार तनावपूर्ण होती जा रही है और इज़राइली संस्थानों ने पहले ही चेतावनी दी है कि इस तरह के और भी ऑपरेशन हो सकते हैं।
बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में गज़्जा के समर्थन में बड़ा जनप्रदर्शन,
बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में फिलिस्तीन के समर्थन में एक बड़ा जनप्रदर्शन हुआ, जिसमें कई हज़ार लोगों ने भाग लिया और इजरायल के बहिष्कार तथा गाजा में नरसंहार को समाप्त करने की मांग की।
बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में हजारों नागरिकों ने गाज़ा के पक्ष में जोरदार विरोध मार्च निकाला। प्रदर्शनकारियों ने इजरायल के बहिष्कार की अपील की और फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता व्यक्त की।
पुलिस के अनुसार लगभग 70 हज़ार लोगों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया, हालांकि आयोजकों ने संख्या 120 हजार बताई। प्रतिभागियों ने लाल बैनर और प्ले कार्ड उठा रखे थे, जिन पर गाजा में जारी नरसंहार को समाप्त करने और आम नागरिकों की सुरक्षा की मांगें लिखी थीं।
प्रदर्शनकारियों और आयोजकों ने सरकारों, संस्थाओं और कंपनियों पर जोर दिया कि वे इजरायल के साथ हर तरह की साझेदारी समाप्त करें और फिलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ ठोस कदम उठाएं।
प्रदर्शन में शामिल एक नागरिक ने कहा कि लोग कभी बर्लिन की दीवार के गिरने का सपना देखते थे, और मेरा सपना एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र है ताकि फिलिस्तीनी भी सामान्य राष्ट्रों की तरह जीवन व्यतीत कर सकें।
फिलिस्तीनी-बेल्जियन संघ के प्रवक्ता ने कहा कि अब तक वैश्विक समुदाय की ओर से किए गए उपाय गाजा में जारी नरसंहार को रोकने के लिए अपर्याप्त हैं।
भारत में विनाशकारी बाढ़: सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधि ने जनता और सरकार के प्रति संवेदना व्यक्त की
भारत में सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सैय्यद अली ख़ामेनेई के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने हाल के दिनों में भारत के विभिन्न राज्यों में आई विनाशकारी बाढ़ पर शोक संदेश जारी किया है। उन्होंने प्रभावित परिवारों, घायलों और समस्त भारतीय जनता के प्रति गहरा दुःख और सच्ची सहानुभूति व्यक्त की है।
भारत में सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनेई के प्रतिनिधि, हुज्जतु इस्लाम अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने हाल के दिनों में भारत के विभिन्न राज्यों में आई विनाशकारी बाढ़ पर शोक संदेश जारी किया है। उन्होंने प्रभावित परिवारों, घायलों और समस्त भारतीय जनता के प्रति गहरा दुःख और सच्ची सहानुभूति व्यक्त की है।
शोक संदेश का मूल पाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लहिर्रहमानिर्राहीम
हमें अत्यंत दुःख और पीड़ा के साथ यह समाचार प्राप्त हुआ है कि पंजाब, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और दिल्ली सहित भारत के विभिन्न राज्यों में भीषण और विनाशकारी बाढ़ आई है, जिसके परिणामस्वरूप इस देश के कई सम्मानित नागरिकों की मृत्यु हुई है और वे घायल हुए हैं तथा घरों, गाँवों, खेतों और बुनियादी ढाँचे को भारी नुकसान पहुँचा है। इस दुखद घटना ने हृदय को अत्यंत दुःख पहुँचाया है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई (द ज) की ओर से, मैं इस दुखद त्रासदी से प्रभावित परिवारों, घायलों और भारत के सम्मानित लोगों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना और सच्ची सहानुभूति व्यक्त करता हूँ।
ईरान इस्लामी गणराज्य का राष्ट्र और सरकार इन कठिन दिनों में अपने भारतीय भाइयों और बहनों के साथ खड़ी है और पीड़ितों की पीड़ा को कम करने और राहत प्रदान करने के लिए हर संभव सहयोग और सहायता प्रदान करने के लिए तत्पर है। हम प्रार्थना करते हैं कि यह संकट शीघ्र समाप्त हो और प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य जीवन और शांति बहाल हो।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई (द ज), इस त्रासदी की परिस्थितियों को व्यक्तिगत रूप से सहानुभूति और चिंता के साथ देख रहे हैं और भारत की महान जनता के दुःख और पीड़ा को ईमानदारी से साझा करते हैं।
मैं अल्लाह तआला से दुआ करता हूँ कि वह मृतकों पर अपनी दया और क्षमा प्रदान करें, घायलों को शीघ्र स्वस्थ करें, और जीवित बचे लोगों को धैर्य, दृढ़ता और मन की शांति प्रदान करें।
वस सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बराकातोह
अब्दुल मजीद हकीम इलाही
जब तक जिस्म में जान बाक़ी है, प्रतिरोध का हथियार कोई नहीं छीन सकता
हिज़्बुल्लाह के प्रतिनिधि अली अम्मार ने कहा कि प्रतिरोध का हथियार सिर्फ़ हमारी जान लेकर ही छीना जा सकता है।
लेबनान की पार्लियामेंट में हिज़्बुल्लाह के सदस्य अली अम्मार ने साफ़ तौर पर कहा है कि प्रतिरोध का हथियार बिल्कुल जायज़ और क़ानूनी है, क्योंकि आज भी इस्राइली क़ब्ज़ा और जुल्म जारी है।
उन्होंने मिनार टीवी को इंटरव्यू देते हुए कहा कि जो लोग हिज़्बुल्लाह के हथियार को ग़ैर-क़ानूनी बताने की कोशिश कर रहे हैं, वो खुद संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और लेबनान के संविधान के अनुसार किसी क़ानूनी हैसियत के हक़दार नहीं हैं।
अली अम्मार ने कहा कि अब तक प्रतिरोध ने लेबनानी हुकूमत को यह मौका दिया है कि वह ज़ायोनी हमला रोके, लेबनान की ज़मीन को आज़ाद कराए और क़ैदियों को छुड़ाए। लेकिन अफ़सोस कि हुकूमत के कुछ लोग जानबूझकर सेना और प्रतिरोध के बीच टकराव पैदा करना चाहते हैं, जो देश के अंदरूनी अमन के लिए ख़तरा है।उनके मुताबिक, यह एक ख़याली पुलाव है और ऐसा कोई टकराव कभी नहीं होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि हिज़्बुल्लाह देश की सुरक्षा के लिए बनाई जाने वाली किसी भी रणनीति पर बातचीत करने को तैयार है, लेकिन दुख की बात है कि कुछ लोग विदेशी ताक़तों के दबाव में आकर झुक गए हैं।
अली अम्मार ने चेतावनी दी कि हिज़्बुल्लाह किसी को भी लेबनान को गृहयुद्ध की तरफ़ नहीं ले जाने देगी, और जो ऐसा सोचता है, वो खुद तबाह हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि प्रतिरोध के पास इस्राइल की किसी भी तरह की जंग या हमला रोकने के लिए ज़रूरी हथियार, जनशक्ति और ताक़त मौजूद है।ग़ौरतलब है कि पिछले शुक्रवार, लेबनानी सरकार ने सेना की उस पेशकश को मंज़ूरी दी, जिसमें हिज़्बुल्लाह को ग़ैर-मुसल्लह करने की बात की गई थी।
तीन घंटे तक चलने वाली इस बैठक में हिज़्बुल्लाह और अमल मूवमेंट के मंत्रियों ने इस एजेंडे पर एतराज़ जताते हुए बैठक से वॉकआउट कर दिया।













