رضوی
पैग़म्बरे इस्लाम की पांच सिफारिशें
पैग़म्बरे इस्लाम हमेशा लोगों से सिफारिश करते थे कि वे न केवल इंसानों बल्कि अन्य प्राणियों के साथ भी अच्छे व्यवहार, नेक बर्ताव, प्रेम और दया से पेश आयें। पैग़म्बरे इस्लाम से रिवायत है जिसमें आप फरमाते हैं कि मुझे अच्छे अख़लाक़ को शिखर पर पहुंचाने के लिए भेजा गया है।
अब हम अख़लाक़ के संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम की 5 सिफारिशों का उल्लेख करते हैं। ये सिफारिशें व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक विकास में प्रभावी हैं।
झूठ न बोलोः एक आदमी पैग़म्बरे इस्लाम की ख़िदमत में आया और बोला हे पैग़म्बर! मुझे ऐसी चीज़ की शिक्षा दें जिसमें दुनिया व आखेरत की भलाई हो। इस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमायाः झूठ न बोलो
लोगों से नर्मी से पेश आओ और उनसे प्रेम करने वाले बनोः इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं तुममें सबसे अच्छा अखलाक़ जिसका हो, दूसरों से प्रेम करता हो और दूसरे उससे प्रेम करते हों तो ऐसे इंसान अल्लाह के बेहतरीन बंदे हैं।
महिलाओं का सम्मान करोः पैग़म्बरे इस्लाम की सिफ़ारिशों में से एक सिफारिश यह है कि महिलाओं का सम्मान करो और यह वह सिफारिश है जिसका पैग़म्बरे इस्लाम के सदाचरण में कई बार उल्लेख हुआ है। इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि तुममें सबसे बेहतर वह है जो अपने परिवार के लिए सबसे बेहतर है। शरीफ़ और महान इंसान के अलावा कोई महिला का सम्मान नहीं करेगा और तुच्छ व पस्त इंसान के अलावा कोई महिला को गिरी हुई नज़र से नहीं देखेगा।
सगे-संबंधियों से रिश्तेदारी निभाना और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करनाः इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम से रिवायत है कि सगे- संबंधियों के साथ संबंध रखना और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करने से उम्र अधिक होती है।
पशुओं की ताक़त और क्षमता को ध्यान में रखनाः पैग़म्बरे इस्लाम पशुओं व प्राणियों के अधिकारों को ध्यान में रखने की सिफारिश करते हैं।
इन सिफारिशों और पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं को 14 सौ साल पहले बयान किया गया है जो इस बात की सूचक हैं कि इस्लाम ने समस्त प्राणियों के अधिकारों पर ध्यान दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने पशुओं के साथ प्रेम से व्यवहार करने के संबंध में फरमाया है कि जानवर के 6 अधिकार उसके मालिक पर हैं।
जब मालिक अपने जानवर की पीठ से नीचे उतरे तो उसे उसका चारा दे।
जब पानी के पास से गुज़रे तो उसके सामने पानी पेश करे।
- उसे ना-हक़ और बिला वजह न मारे।
- उस पर उसकी ताक़त से अधिक बोझ न लादे।
- उसे उसकी ताक़त से अधिक रास्ता न चलाए।
- ज्यादा देर तक उस पर सवारी न करे।
इमाम हसन मुजतबा अ.स.के जीवन के प्रमुख पहलू सादा जिंदगी,दूसरों का ख्याल और बेमिसाल सखावत
क़ुम मुक़द्दस, क़ुम स्थित इस्लामी विज्ञान और संस्कृति के शोध केंद्र में आयोजित एक बैठक में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली अकबर ज़ाकिरी ने कहा कि इमाम हसन मुजतबा (अ.स.) के जीवन में सादगी, दूसरों की ज़रूरतों का ख्याल रखना और उत्कृष्ट नैतिक व्यवहार साफ़ तौर पर दिखाई देता है।
क़ुम मुक़द्दस में इस्लामी विज्ञान और संस्कृति के शोध केंद्र में आयोजित एक बैठक में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली अकबर ज़ाकिरी ने कहा कि इमाम हसन मुजतबा (अ.स.) के जीवन में सादा जीवनशैली, दूसरों की ज़रूरतों की परवाह और उच्च नैतिक व्यवहार विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि सीरत से आशय मासूमों (अ.स) के व्यावहारिक जीवन और उनके आचरण से है अर्थात वे कार्य जो उन्होंने स्वयं किए, या जिनके उनके सामने होने पर उन्होंने पुष्टि की। उनके अनुसार, ऐतिहासिक प्रमाण यह दर्शाते हैं कि कभी-कभी एक ही अमल (कर्म) भी “सीरत” बन जाता है। यही कारण है कि इमाम हसन (अ.) के जीवन के कई पहलुओं को फिक़्ही मसलों में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
ज़ाकिरी ने कहा कि सामाजिक सीरत में मुसलमानों के साथ संबंध, विरोधियों से व्यवहार और पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन के सिद्धांत शामिल होते हैं।
हज़रत इमाम हसन (अ.स.) एक ऐसे घराने में पले-बढ़े जहाँ दूसरों की भलाई को स्वयं पर प्राथमिकता दी जाती थी हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा (स.ल) की परवरिश इसका एक उज्ज्वल उदाहरण है। एक रिवायत के अनुसार, वे दुआओं में हमेशा पहले दूसरों को याद करती थीं और उसके बाद अपने लिए दुआ करती थीं। यही सोच इमाम हसन (अ.स.) के जीवन की बुनियाद बनी।
उन्होंने बचपन की एक घटना सुनाई कि इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ.स.) ने एक बूढ़े व्यक्ति को गलत वुज़ू करते हुए देखा। सीधा आलोचना करने के बजाय, दोनों ने स्वयं वुज़ू किया और फिर उस बुज़ुर्ग को “क़ाज़ी” (निर्णायक) बनाया ताकि वह खुद फैसला करें। इस तरह, बुज़ुर्ग की इज़्ज़त भी बनी रही और उन्हें सही वुज़ू करने का तरीका भी समझ में आ गया।
इसी तरह, इमाम हसन (अ.स.) ने एक ज़रूरतमंद पड़ोसी को दो हज़ार दिरहम दिए और एक यहूदी पड़ोसी के साथ भी दया और सौम्यता से पेश आए, जिसके परिणामस्वरूप वह इस्लाम की ओर आकर्षित हुआ।
ज़ाकिरी ने आगे कहा कि इमाम हसन (अ.स.) के जीवन में करुणा और उदारता सबसे प्रमुख विशेषताएँ थीं। ये केवल उनके इमामत काल तक सीमित नहीं थीं, बल्कि हज़रत अली (अ.स.) की खिलाफ़त के दौर में भी वे अपना हिस्सा दूसरों को दे दिया करते थे।
उनके अनुसार, इमाम हसन (अ.स.) की उदारता केवल आर्थिक दान ही नहीं थी, बल्कि वह सोच-विचार और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता पर आधारित होती थी, जो आज भी सामाजिक जीवन के लिए एक आदर्श उदाहरण है।
हज़रत इमाम हसन अ.स. का अख्लाक़
एक दिन हज़रत इमाम हसन अ.स. घोड़े पर सवार हो कर कही जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया हज़रत इमाम हसन अ.स चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो हज़रत इमाम हसन अ.स. ने उसे मुस्कुरा कर सलाम किया और अपने अख्लाक के जरिए से उसके इबहाम को दूर किए।
एक दिन हज़रत इमाम हसन अ.स. घोड़े पर सवार हो कर कही जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया हज़रत इमाम हसन अ.स चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो हज़रत इमाम हसन अ.स. ने उसे मुस्कुरा कर सलाम किया और अपने अख्लाक के जरिए से उसके इबहाम को दूर किए।
एक दिन हज़रत इमाम हसन अ.स. घोड़े पर सवार हो कर कही जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया हज़रत इमाम हसन अ.स चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो हज़रत इमाम हसन अ.स. ने उसे मुस्कुरा कर सलाम किया और कहने लगे
ऐ शेख़, मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है, अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं, अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं, अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं, अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है
सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।
यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि “हिल्मुल- हसन” अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।
पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था, हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया“ मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं,और उससे आस लगाये रहता हूं, इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।
इमाम हसन (अ) ने 48 साल से ज़्यादा इस दुनिया में अपनी रौशनी नहीं बिखेरी लेकिन इस छोटी सी अवधि में भी उनका समय भ्रष्टाचारियों से लगातार जंग में ही बीता। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम हसन (अ) ने देखा कि निष्ठावान व वफ़ादार साथी बहुत कम हैं इसलिये मोआविया से जंग का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा इसलिये उन्होने मुआविया द्वारा प्रस्तावित सुलह को अपनी शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया। इस शान्ति संधि का नतीजा यह निकला कि वास्तविक मुसलमानों को ख़्वारिज के हमलों से नजात मिल गयी और जंग में उनकी जानें भी नहीं गईं।
इमाम हसन(अ) के ज़माने के हालात के बारे में आयतुल्लाह ख़ामेनई कहते हैं“ हर क्रान्तिकारी व इंक़ेलाबी के लिये सबसे कठिन समय वह होता है जब सत्य व असत्य आपस में बिल्कुल मिले हुये हों-----(इस हालत को निफ़ाक़ या मित्थ्या कहते हैं) इमाम हसन के ज़माने में निफ़ाक़ की उड़ती धूल हज़रत अली के ज़माने से बहुत ज़्यादा गाढ़ी थी इमाम हसने मुज्तबा (अ) जानते थे कि उन थोड़े से साथियों व सहायकों के साथ अगर मुआविया से जंग के लिये जाते हैं और शहीद हो जाते हैं तो इस्लामी समाज के प्रतिष्ठत लोगों पर छाया हुआ नैतिक भ्रष्टाचार उनके ख़ून (के प्रभाव) को अर्थात उनके लक्ष्य को आगे बढ़ने नहीं देगा। प्रचार, पैसा और मुआविया की कुटिलता, हर चीज़ पर छा जायेगी तथा दो एक साल बीतने के बाद लोग कहने लगेंगे कि इमाम हसन(अ) व्यर्थ में ही मुआविया के विरोध में खड़े हुये। इसलिये उन्होने सभी कठिनाइयां सहन कीं लेकिन ख़ुद को शहादत के मैदान में जाने नहीं दिया,क्योंक् जानते थे कि उनका ख़ून अकारत हो जायेगा।
इस आधार पर इमाम हसन(अ) की एक विशेषता उनका इल्म व बुद्धिमत्ता थी। पैगम्बरे इस्लाम (स) इमाम हसन (अ) की बुद्धिमत्ता के बारे में कहते “ अगर अक़्ल को किसी एक आदमी में साकार होना होता तो वह आदमी अली के बेटे हसन होतें.
पैग़म्बर (स) की वफ़ात; एक ऐसा दुःख जो कभी खत्म नहीं होगा
पैग़म्बर (स) की वफ़ात का दिन हमें याद दिलाता है कि पैग़म्बर (स) का मिशन उनके बाद भी जीवित रहेगा और यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम उनके जीवन, शिक्षाओं और नैतिक सिद्धांतों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।
सफ़र की 28 तारीख़ वह दिन है जब ब्रह्मांड के सबसे महान व्यक्ति, सर्वलोक के रहमत, पैगम्बर (स) की वफ़ात हुई। यह एक ऐसा दुःख है जिसकी तीव्रता और गहराई मुस्लिम उम्माह के दिलों में कभी कम नहीं हुई। उनकी वफ़ात केवल एक व्यक्ति का निधन नहीं था, बल्कि यह मानवता के लिए मार्गदर्शन के एक स्रोत का निधन था, जिसने अज्ञानता, अंधकार और गुमराही के अंधकार को दूर किया और ज्ञान, प्रकाश और सत्य का दीप जलाया।
इस्लाम की पूर्णता और अंतिम संदेश
उनकी वफ़ात से कुछ समय पहले, ग़दीर ख़ुम के युद्धक्षेत्र में "आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को पूर्ण कर दिया" (अल यौमा अकमलतो लकुम दीनाकुम) आयत अवतरित हुई। इस आयत ने स्पष्ट किया कि नबी होने का महान कर्तव्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया था। अल्लाह के रसूल (स) ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक उम्मत को एकता, भाईचारा और धर्मपरायणता की शिक्षा दी। उनका अंतिम उपदेश, जिसे विदाई तीर्थयात्रा के रूप में जाना जाता है, वास्तव में मानवता के लिए एक सार्वभौमिक दिशानिर्देश है।
उम्मत के लिए परीक्षा और परीक्षण
पैगम्बर (स) की वफ़ात उम्मत के लिए एक बड़ी परीक्षा थी। इस त्रासदी ने साबित कर दिया कि अब उम्मत को मार्गदर्शन और नेतृत्व के लिए अपनी ज़िम्मेदारियों को समझना होगा। पैगम्बर (स) ने अपनी वफ़ात से पहले जो शिक्षाएँ छोड़ीं और कुरान व अहले-बैत के रूप में जो विरासत छोड़ी, वे आज भी उम्मत के लिए मुक्ति का साधन हैं।
धैर्य और दृढ़ता का संदेश
पैगम्बर (स) की वफ़ात का दुःख हमें सिखाता है कि जीवन बड़े आघातों और परीक्षाओं से भरा है। उस समय, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स), हज़रत अली (अ) और उनके अन्य साथियों का दुःख ईमान और दृढ़ता का एक महान उदाहरण था। इस त्रासदी ने हमें यह भी सिखाया कि दुःख और पीड़ा के साथ-साथ, हमें अल्लाह की इच्छा से संतुष्ट रहना चाहिए और अल्लाह के रसूल (स) द्वारा छोड़े गए मार्ग पर चलते रहना चाहिए।
निष्कर्ष:
पैगम्बर (स) की वफ़ात का दिन हमें याद दिलाता है कि अल्लाह के रसूल (स) का मिशन उनके बाद भी जीवित रहेगा और यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम उनकी जीवनी, शिक्षाओं और नैतिक सिद्धांतों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ। यह दुःख हमें एकजुट करता है और हमें पैग्बर (स) के संदेश को फैलाने के लिए प्रोत्साहित करता है जो मानवता के लिए प्रेम, शांति और दया है।
इमाम हसन की सीरत उम्मत के लिए मशाल ए राह
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. की वफ़ात और सिब्त अकबर इमाम हसन मुजतबाؑ की शहादत के मौके पर पुणे, महाराष्ट्र के मशहूर मौलना और धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम अस्करी इमाम खान से खास बातचीत
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. की वफ़ात और सिब्त अकबर इमाम हसन मुजतबाؑ की शहादत के मौके पर हौज़ा न्यूज ने पुणे, महाराष्ट्र के मशहूर मौलना और धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम अस्करी इमाम खान से खास बातचीत की।
मौलाना अस्करी इमाम खान ने सबसे पहले रसूल अल्लाहؐ के दुखद निधन को याद करते हुए कहा, रहमतों के रसूलؐ का इस जहाँ से जाना इंसानियत के लिए सबसे बड़ा दुखद हादसा है। उनकी शख़्सियत वह केंद्र थी जिसने बिखरे हुए समाज को एकता दी और इंसानियत को सम्मान और शान दी।
उन्होंने आगे कहा कि इसी दौर में इमाम हसन मुजतबाؑ की शहादत भी हुई, जो इस बात का संकेत है कि इस्लाम के असली वारिस और निजात देने वाले हमेशा कुर्बानी और सब्र की राह दिखाते हैं।
इमाम हसनؑ की सीरत के महत्वपूर्ण पहलुओं पर रौशनी डालते हुए मौलाना अस्करी इमाम खान ने कहा,इमाम हसनؑ ने अपनी ज़िंदगी में माफ़ करने की क्षमता, उदारता और उम्मत की भलाई के लिए कुर्बानी को मिसाल बनाया।
जब परिस्थितियों ने सुलह (समझौता) की मांग की तो आपने इस्लाम और मुसलमानों की जानों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी, और जब हक और बातिल का फर्क स्पष्ट करना था तो अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।
उन्होंने कहा कि आज की उम्मत को इमाम हसनؑ की इसी सीरत से सीख लेनी चाहिए।हम देखते हैं कि इमाम हसनؑ की उदारता बेमिसाल थी, उन्होंने अपनी पूरी दौलत ख़ुदा कि राह में निछावर कर दी। इसी तरह उन्होंने सामाजिक न्याय और इंसानी शराफ़त को अपनी राजनीति और चरित्र का बुनियादी आधार बनाया।
मौलाना अस्करी इमाम खान ने मौजूदा दौर की जरूरतों का ज़िक्र करते हुए कहा कि मुस्लिम उम्मत को इमाम हसनؑ की सुलह को कमजोरी नहीं बल्कि एक समझदारी और उम्मत के संरक्षण के लिए बड़ा फ़ैसला समझना चाहिए।
आज की परिस्थिति में भी हमें इमाम हसनؑ के सब्र, समझदारी और उम्मत से मोहब्बत की राह पर चलना चाहिए ताकि हम फूट और नफ़रत की बजाय एकता और भाईचारे को बढ़ावा दे सकें।
अंत में उन्होंने कहा कि पैग़ंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात और इमाम हसनؑ की शहादत का संदेश यही है कि इस्लाम की बका कुर्बानी, स्थिरता और अहलेबैत अ.स के प्रति मोहब्बत में निहित है।
गाज़ा पर हमलों के ज़रिए हमास का खत्म होना संभव नहीं
एक यहूदी सेना के अधिकारी ने कहा कि हमास को खत्म करना और गाज़ा पर पूरी तरह कब्जा करने के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के योजना को लागू करना असंभव है।
एक यहूदी सेना के अधिकारी ने कहा कि हमास को खत्म करना और गाज़ा पर पूरी तरह कब्जा करने के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के योजना को लागू करना असंभव है।
नेतन्याहू सरकार द्वारा गाज़ा पर पूरी तरह कब्जा करने और फिलिस्तीनियों को जबरन बेदखल करने की योजना सामने आने के बाद इसे लागू करने का ऐलान किया गया है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञ इस योजना को अमल में लाना मुश्किल बता रहे हैं।
अमेरिकी मीडिया संस्था ने एक इजरायली सैनिक के हवाले से बताया है कि गाजा में जारी युद्ध के बावजूद हमास को खत्म करने का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाज़ा में तैनात एक इजरायली सैनिक ने स्वीकार किया कि वे इस बात से बेहद हैरान हैं कि अभी भी इस युद्ध के अंत की बात हो रही है, जबकि इसका अंत बहुत पहले होना चाहिए था। गाज़ा पर कब्जा करना दरअसल इजरायली कैदियों के लिए मौत की सजा के समान होगा, क्योंकि हमास को खत्म करना संभव नहीं है।
पहले भी इजरायल के पूर्व सेना प्रमुख ने माना है कि सभी इजरायली रिजर्व सैनिक दोबारा सेवा के लिए तैयार नहीं होंगे और गाजा से संबंधित वर्तमान रणनीति दोषपूर्ण और गैर-तार्किक है।दूसरी ओर, इजरायली अखबार हा-आर्ट्ज़ ने खुलासा किया है कि गाजा पर कब्जे की योजना वार्ता प्रक्रिया को रोकने में कामयाब नहीं होगी।
पैग़म्बर अकरम (स) मानवता के मार्गदर्शन का केंद्र
अल्लामा सैयद साजिद नक़वी ने कहा: पवित्र पैगंबर (स) की वफ़ात और इमाम हसन (अ) की शहादत मुस्लिम उम्माह के लिए एक बड़ी त्रासदी है। इमाम हसन (अ) ने अपने दादा अमजद के उदाहरण का अनुसरण करते हुए मुसलमानों को शांति और सुरक्षा का पाठ पढ़ाया और इस्लाम की रक्षा की।
कायदे मिल्लत जाफ़रिया पाकिस्तान के अल्लामा सैयद साजिद अली नक़वी ने हज़रत ख़ातम अल-मुर्सलीन (स) की पुण्यतिथि और पवित्र पैग़म्बर (स) के नवासे हज़रत इमाम हसन (अ) की शहादत की वर्षगांठ के अवसर पर अपने संदेश में कहा: ख़तम अल-नबीन, रहमत अल-लिल-आलमीन, सरवर अल-कैनात (स) मानवता के मार्गदर्शन का केंद्र और धुरी हैं, और पवित्र कुरान के साथ, पवित्र पैगंबर (स) की सुन्नत और सीरा के रूप में मुस्लिम उम्मा के लिए एक ऐसा खजाना है, जो उनकी मृत्यु के सदियों बाद भी मानवता की दुनिया का पूरी तरह से मार्गदर्शन कर रहा है और मानवता को जीवन जीने का तरीका और हर क्षेत्र में प्रगति का मार्ग सिखा रहा है।
उन्होंने आगे कहा: यदि विशेष रूप से मुस्लिम उम्मत और सामान्य रूप से मानवता की दुनिया पैगंबर मुहम्मद (स) की सुन्नत और सीरत का पालन करे, तो धरती से सभी समस्याओं का उन्मूलन हो सकता है।
अल्लामा सैयद साजिद नक़वी ने कहा: पैगंबर मुहम्मद के निधन के बाद, पवित्र अहले बैत (अ) ने उम्मत के उद्धार के लिए उसके सभी मामलों में मार्गदर्शन किया। अहले बैत (अ) ने अपने कार्यों और चरित्र के माध्यम से मानवता की दुनिया की व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा: पैगंबर मुहम्मद के पोते, इमाम हसन मुज्तबा (अ), अपने दादा, अल्लाह के रसूल, अमाीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (अ) के पिता की तरह, उच्च नैतिकता और गुणों का एक संयोजन थे। उनमें उदारता सहित उच्च नैतिक गुण थे, जिसके कारण उन्हें महान अहलुल बैत की उपाधि दी गई, लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति, दयालुता, धैर्य और सहनशीलता, क्षमा और क्षमाशीलता, जिसे उनके शत्रु भी स्वीकार करते थे, इन सभी गुणों का एक आदर्श उदाहरण थे।
जाफ़रिया क़ौम के नेता ने कहा: पवित्र पैगंबर (स) के जीवन को व्यवहार में देखने और पैगंबर (स) की सुन्नत की व्याख्या और व्याख्या करने के लिए, इमाम हसन (स) के जीवन का अध्ययन और अवलोकन करना आवश्यक है क्योंकि पवित्र पैगंबर (स), हज़रत अली (अ) और सैयदा फ़ातिमा ज़हरा (स) ने हज़रत इमाम हसन (अ) को इस तरह प्रशिक्षित किया कि हज़रत इमाम हसन (अ) हर स्तर, हर क्षेत्र, हर मोड़ और हर राह पर एक पैगंबर की तरह दिखाई दिए।
उन्होंने कहा: अल्लाह के रसूल (स) ने अपनी हदीसों में हज़रत इमाम हसन (अ) की गरिमा, स्थिति और पद का उल्लेख किया था। इमाम (अ) ने अपने दादा अमजद के जीवन का अनुसरण करते हुए शांति का मार्ग अपनाकर यह सिद्ध कर दिया कि पैगंबर (स) के अहल-उल-बैत इस्लाम धर्म की रक्षा का कर्तव्य निभाना जानते हैं।
अल्लामा साजिद नक़वी ने कहा: वर्तमान रोमांचक युग और गंभीर परिस्थितियों में, हमें अपने आपसी मतभेदों को दूर करके सैकड़ों समानताओं को ध्यान में रखना चाहिए, पैगंबर मुहम्मद (स) और उनके परिवार के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए और शांति, प्रेम, सहिष्णुता, सहनशीलता और धैर्य का मार्ग अपनाना चाहिए। हमें ज्ञान और धैर्य, बुद्धि और जागरूकता, विवेक और सहिष्णुता, भाईचारे और एकता के मार्ग पर चलकर सर्वशक्तिमान ईश्वर और अंतिम नबियों की प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए। केवल इसी स्थिति में सांसारिक और परलोक मुक्ति संभव है।
पैग़म्बर (स) के जीवन में मानवाधिकार / 1400 वर्षों के मानव-हितैषी सिद्धांत और अधिकार
इस्लामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर साइंसेज एंड कल्चर के एक सदस्य ने कहा: जिसे आज युद्धों में मानवीय अधिकार कहा जाता है, उसका न केवल 1400 वर्ष पूर्व, पैग़म्बर (स) के जीवन में वर्णन किया गया था, बल्कि उसे लागू भी किया गया था और उसके क्रियान्वयन की गारंटी भी थी।
ईरान के पवित्र शहर क़ुम स्थित इस्लामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर साइंसेज एंड कल्चर में आयोजित "द पैगम्बर ऑफ़ मर्सी" सत्र श्रृंखला में अपने भाषण के दौरान, हौज़ा और विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की उपस्थिति में "पैगम्बर के जीवन में मानवीय अधिकार" विषय पर, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हमीद रज़ा मुताहरी ने कहा: आज जिस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, वह है पवित्र पैग़म्बर (स) के जीवन में मानवीय अधिकार, क्योंकि दया के पैगंबर के रूप में, वह न केवल अपने अनुयायियों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए करुणा और दया के प्रतीक थे, और उनके आदेश और जीवन इस तथ्य के स्पष्ट प्रमाण हैं।
उन्होंने आगे कहा: जिस समाज में पवित्र पैग़म्बर (स) को भेजा गया था, वह हिंसा, आदिवासी पूर्वाग्रहों और अज्ञानता से भरा था; एक ऐसा वातावरण जिसमें हिंसा मुख्य विशेषता थी। ऐसी परिस्थितियों में, दया के दूत इस समाज को अज्ञानता के अंधकार से विवेक के प्रकाश की ओर, उत्पीड़न और हिंसा से करुणा की ओर, और भेदभाव से न्याय की ओर ले जाने के लिए अवतरित हुए और इस अज्ञानी और हिंसक समाज को अन्य राष्ट्रों और सभ्यताओं के लिए एक आदर्श बनाने में सफल रहे।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन मुताहरी ने मानवाधिकारों और मानवीय अधिकारों के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा: मानवाधिकार सामान्यतः सभी परिस्थितियों में मनुष्यों के अधिकारों की चर्चा करते हैं, लेकिन मानवीय अधिकार उन मनुष्यों के अधिकारों पर केंद्रित होते हैं जो युद्ध की स्थितियों में शामिल नहीं हैं। अर्थात्, युद्ध में गैर-सैन्य व्यक्तियों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। आज, यह मुद्दा विभिन्न सम्मेलनों और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में संहिताबद्ध है, लेकिन दुर्भाग्य से, गारंटी के अभाव में, इनका अक्सर उल्लंघन होता है।
उन्होंने इन कानूनों की तुलना पैगंबर मुहम्मद (स) की जीवनी से की और कहा: जब हम आज के कानूनों की तुलना पैग़म्बर मुहम्मद (स) की जीवनी से करते हैं, तो हम देखते हैं कि मानवीय कानून के सिद्धांत न केवल पैगंबर मुहम्मद (स) द्वारा 1400 साल पहले बताए और संहिताबद्ध किए गए थे, बल्कि उन्हें व्यवहार में भी लागू किया गया था और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनकी गारंटी भी थी। पैगम्बर मुहम्मद (स) ने कभी किसी को इन सिद्धांतों से विचलित होने या निहत्थे लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी।
उन्होंने कहा: पैगम्बर मुहम्मद (स) ने अपने पवित्र जीवन में बार-बार आदेश दिया कि महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, बीमारों की हत्या न की जाए, यहाँ तक कि पेड़ों और खेतों को भी नुकसान न पहुँचाया जाए। यह सब इस बात का संकेत है कि वह न केवल विजय की तलाश में थे, बल्कि सबसे कठिन परिस्थितियों में, यानी युद्ध के मैदान में भी, मानवीय नैतिकता की स्थापना करना चाहते थे।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलिमीन मुतहरी ने कहा: अगर पश्चिम और आज के अंतर्राष्ट्रीय संगठन सचमुच मानवीय अधिकार चाहते हैं, तो उन्हें पैगम्बर मुहम्मद (स) के जीवन को एक संपूर्ण आदर्श मानना चाहिए। एक ऐसा आदर्श जो मौजूदा क़ानूनों जैसी गारंटियों से रहित न हो, बल्कि जिसमें न्याय, नैतिकता और आध्यात्मिकता, सभी एक साथ मौजूद हों।
गाज़ा युद्ध के विरोध में;इज़राईली सेना के कई अधिकारियों को बर्खास्त किया गया
इज़राईल सेना ने गाज़ा युद्ध के विरोध में विरोध और युद्धविराम की अपील पर हस्ताक्षर करने के कारण कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया।
इजरायली सेना ने अपने 15 अधिकारियों को तब बर्खास्त कर दिया जब उन्होंने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए जिसमें गाज़ा पर युद्ध समाप्त करने और कैदियों की रिहाई की मांग की गई ।
हिब्रू अखबार येदियोत अहरोनोत ने रिपोर्ट दी है कि जायोनी सेना ने यह बर्खास्तगी तब की जब संबंधित अधिकारियों ने अपने हस्ताक्षर वापस लेने से इनकार कर दिया।
अखबार ने आगे लिखा कि इजरायली सेना ने इन अधिकारियों पर दबाव डाला कि वे याचिका से पीछे हट जाएं, लेकिन इनकार करने के बाद उन्हें तुरंत सैन्य सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
येदियोत अहरोनोत के अनुसार, इनमें से कुछ अधिकारियों को ईरान पर संभावित हमले में भाग लेना था, लेकिन बर्खास्तगी के कारण उन्हें रिजर्व फोर्स में भी शामिल नहीं किया गया।
बर्खास्त किए गए अधिकारियों ने इजरायली सुप्रीम कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई है और मांग की है कि उन्हें फिर से सैन्य सेवा में बहाल किया जाए।
मुसलमानों में एकता और अंतरधार्मिक सहयोग समय की आवश्यकता है
भारत में वली ए फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्दुल मजीद हकीम ईलाही ने एक बयान में उम्माते मुस्लिमा से एकता, एकजुटता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने की अपील करते हुए कहा कि आंतरिक मतभेद न केवल राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गौरव को कमजोर करता हैं बल्कि दुश्मनों को हस्तक्षेप का मौका भी प्रदान करता हैं।
भारत में वली ए फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्दुल मजीद हकीम ईलाही ने एक बयान में उम्माते मुस्लिमा से एकता, एकजुटता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने की अपील करते हुए कहा कि आंतरिक मतभेद न केवल राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गौरव को कमजोर करता हैं बल्कि दुश्मनों को हस्तक्षेप का मौका भी प्रदान करता हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और महान देश में मुसलमानों को इस्लामी एकता और अंतरधार्मिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए ताकि न केवल इस्लामी राष्ट्र बल्कि पूरा देश विकास और समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ सके।
पूरा बयान इस प्रकार है:
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيْمِ
وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا
(आले इमरान 103) और सभीमिलकर अल्लाह की रस्सी (कुरआन) को मजबूती से थाम लो और तुम में फूट न पड़ने दो)
आज मुस्लिम उम्मा, विशेष रूप से दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में और खासकर महान, विविध और बहुसांस्कृतिक देश भारत में, पहले से कहीं अधिक एकता, एकजुटता और सामंजस्य की आवश्यकता है।
आंतरिक मतभेद और धार्मिक विभाजन न केवल उम्मा की प्रतिष्ठा और गौरव को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि इस्लाम के दुश्मनों को हस्तक्षेप और प्रभुत्व प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करता हैं।
कुरआन करीम ने बहुत स्पष्ट रूप से आदेश दिया है और सभी मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो और तुम में फूट न पड़ने दो।
इन प्रकाशमय शिक्षाओं के प्रकाश में सभी मुसलमानों का कर्तव्य है कि वे केवल धार्मिक सिद्धांतों और समानताओं में ही नहीं बल्कि एक-दूसरे की पवित्र वस्तुओं का सम्मान करने में भी एकजुटता अपनाएं, और ऐसे हर कथन और कार्य से परहेज करें जो विभिन्न मतों और संप्रदायों के अनुयायियों की भावनाओं को आहत करे। आपसी विश्वासों और धार्मिक परंपराओं के सम्मान पर आधारित दृष्टिकोण ही वास्तविक विश्वास और स्थायी एकता की नींव है।
इस्लाम ने हमें अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ भी सकारात्मक संवाद और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का आह्वान किया है। कुरआन मजीद की आयत है:
"لَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ لَمْ يُقَاتِلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَلَمْ يُخْرِجُوكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ أَنْ تَبَرُّوهُمْ وَتُقْسِطُوا إِلَيْهِمْ"
इस आधार पर मुसलमानों का दायित्व है कि वे विकास, सुधार और शांति के क्षेत्र में अपने गैर-मुस्लिम भाइयों और बहनों के साथ सहयोग करें ताकि ऐसा समाज बने जिसमें सभी निवासी शांति, सुरक्षा और आपसी सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकें।
भारतीय मुसलमान, जो ज्ञान, सभ्यता और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के शानदार इतिहास के धनी हैं, हमेशा से इस धरती की पहचान और सभ्यता के निर्माण में मूलभूत भूमिका निभाते रहे हैं। आज भी वह इस्लामी एकता और अंतरधार्मिक सहयोग को मजबूत करके देश के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
मैं, भारत में वली ए फकीह के प्रतिनिधि के रूप में, सभी विद्वानों, बुद्धिजीवियों, वक्ताओं, शिक्षकों, शोधकर्ताओं, हौज़ा और विश्वविद्यालय के छात्रों, और विशेष रूप से राष्ट्र के युवाओं को आमंत्रित करता हूं कि वे संवाद और सहयोग, एकजुटता और विश्वास, और मुस्लिम राष्ट्र की गरिमा और भारत देश के विकास के लिए कंधे से कंधा मिलाकर चलें।
आशा है कि कुरआन करीम की शिक्षाओं और पैगंबर-ए-मकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के पवित्र जीवन चरित्र के सहारे, मुस्लिम उम्मा पूरी दुनिया में एकता, सम्मान और साझा विकास के मार्ग पर मजबूती से आगे बढ़ेगी।
अब्दुल मजीद हकीम इलाही प्रतिनिधि,वली-ए-फकीह, भारत













