साफ़्ट वार में शायरी की भूमिका

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साफ़्ट वार में शायरी की भूमिका

ईरान, भारत पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के कवियों और साहित्यकारों ने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई से मुलाक़ात की।

इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने समकालीन विषयों और मुद्दों से संबंधित शायरी किए जाने और उसके प्रचार की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि अब अतीत की तुलना में फ़िलिस्तीन, यमन, बहरैन, पवित्र प्रतिरक्षा और शहीदों तथा शैख़ ज़कज़की के समान महान व साहिसी संघर्षकर्ताओं जैसे जीवंत विषयों के बारे में अधिक शेर कहे जा रहे हैं लेकिन खेद की बात है कि इन शेरों को ठीक प्रकार से प्रचारित नहीं किया जाता।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस समय समय लड़ाई बाहरी वर्चस्व को रोकने के लिए है और इस मैदान में इच्छशक्ति का मुक़ाबला हो रहा है और इस मुक़ाबले में एक महत्वपूर्ण माध्यम शायरी भी है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का यह बयान वास्तव में समकालीन विषयों और इतिहास को पेश करने में शेर की प्रभावी भूमिका का चिन्ह है। शेर अपने विशेष प्रवाह द्वारा बड़ी सूक्ष्मता और रोचकता के साथ विषयों की समीक्षा करता है और उसे सुनने वालों के मन मस्तिष्क में उतार देता है।

ईरान में शायरी का इतिहास बहुत पुराना है जबकि हालिया कुछ दशकों में इसका रुख़ समकालीन विषयों की ओर केन्द्रित रहा है। यह एक तथ्य है कि आज साफ़्ट वार जारी है जो हथियारों के बजाए विचारों और इरादों से लड़ी ज़ाती है और इस लड़ाई में शायरी की प्रभावी भूमिका हो सकती है।

इस समय पश्चिमी मीडिया प्रचारिक वातावरण पर छाया हुआ है। फ़िलिस्तीन, यमन बहरैन तथा अन्य क्षेत्रों में इंसान बेदर्दी से मारे जा रहे हैं यहां तक कि अमरीका और यूरोप के भीतर कालों पर खुले आम अत्याचार हो रहा है। शायरी के मध्यम से इन कड़वी सच्चाइयों को बयान किया जा सकता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि संयुक्त समग्र कार्य योजना के संबंध में अमरीका के उल्लंघनों और विश्वासघात को भी शेर के रूप में बयान किया जा सकता है।

 

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