शहीदों के परिवार और पहली बार मतदान करने वाले आज मिले वरिष्ठ नेता से

Rate this item
(0 votes)
शहीदों के परिवार और पहली बार मतदान करने वाले आज मिले वरिष्ठ नेता से

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा में पश्चिम के हाथों जातीय सफ़ाया इतना शर्मनाक हो गया है कि अमरीकी फ़ौजी अफ़सर आत्मदाह कर लेता है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा।इसी संदर्भ में  शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।

इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा।  इसी संदर्भ में  शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।

इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पहली बार वोट डालने वाले हज़ारों नौजवानों और कुछ शहीदों के घरवालों से बुधवार 28 फ़रवरी को तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने संबोधन में, चुनावों में क़ौम की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला तत्व बताया।  उन्होंने सबसे उचित उम्मीदवार की विशेषताएं बयान करते हुए कहा कि अवाम की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलों को दूर करने और देश की तरक़्क़ी का रास्ता समतल होता है।  इस हिसाब से चुनाव, देश का सिस्टम सही चलाने वाले स्तंभों में से एक है।

इस्लामी क्रांति के नेता ने क्रांति से पहले ईरान के चुनावों के दिखावे के होने पर आधारित पहलवी शासन के कुछ अधिकारियों के लिखित बयानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जैसा कि उन्होंने इस बात को माना है कि चुनावों से पहले ही शाही दरबार में, यहाँ तक कि कभी-कभी कुछ विदेशी दूतावासों में कामयाब उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर दी जाती थी और बैलेट बॉक्सों से वही लिस्ट बाहर आती थी।

उन्होंने फ़्रांस और पूर्व सोवियत संघ जैसे बड़ी क्रांतियों के बाद तानाशाही गुटों के शासन की ओर इशारा करते हुए कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने जनता पर भरपूर भरोसा करके और बैलेट बाक्सों को महत्व देकर क्रांति की सफलता के बाद क़रीब 50 दिनों के भीतर इस बात के लिए रेफ़्रेंडम कराया कि अवाम को किस तरह का शासन चाहिए ताकि राष्ट्र, देश और क्रांति के अस्ली मालिक, सभी मसलों के बारे में फ़ैसला करे।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने उन घटिया दुश्मनों की ओर इशारा करते हुए जो ईरान और शुक्रवार के चुनावों पर नज़रें गड़ाए हुए हैं, कहा कि अमरीका, यूरोप के अधिकतर राजनेता, घटिया ज़ायोनी शासन और बड़े-बड़े पूंजिपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियां, जो विभिन्न कारणों से पूरे ध्यान से ईरान के मसलों पर नज़र रखती हैं, हर चीज़ से ज़्यादा चुनावों में ईरानी जनता की भागीदारी और ईरानी जनता की शक्ति से डरती हैं।

उन्होंने कहा कि दुश्मनों ने देखा कि इसी निर्णायक जनता की ताक़त ने अमरीका और ब्रिटेन द्वारा समर्थित निरंकुश शाही शासन को जड़ से उखाड़ फेंका और थोपे गए युद्ध में सद्दाम को, उसके सभी पूर्वी व पश्चिमी तथा क्षेत्रीय समर्थकों के बावजूद, अपमानित किया और धूल चटा दी।  इसी वजह से चुनाव, देश की राष्ट्रीय शक्ति को दुनिया के सामने पेश करने का प्रतीक हैं।

इस्लामी क्रांति के नेता ने चुनावों में जनता भी भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति के प्रदर्शन और राष्ट्रीय शक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी बताया।  उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के बिना कोई भी चीज़ बाक़ी नहीं रहेगी और अगर दुश्मन ने राष्ट्रीय ताक़त के संबंध में ईरानियों में ज़रा भी कमजोरी देखी तो विभिन्न आयामों से वह राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल देगा।

उन्होंने भरपूर भागीदारी से मज़बूत चुनाव का एक अहम नतीजा, मज़बूत लोगों का चयन और मज़बूत संसद का गठन और इसके नतीजे में मुश्किलों का अंत और मुल्क की तरक़्क़ी को बताया और चुनावों के दूसरे नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चुनावों के दौरान राजनैतिक समझ में तरक़्क़ी और जवानों में समीक्षा करने की क्षमता में वृद्धि, बहुत क़ीमती चीज़ है क्योंकि इससे दुश्मन, उसके तरीक़ों और उसके हथकंडों की पहचान होगी जिसके नतीजे में इन चीज़ों से निपटने की राहों की पहचान होगी और दुश्मनों के षडयंत्रों को विफल बनाया जा सकेगा।

इस्लामी क्रांति के नेता ने अपने संबोधन के आख़िरी हिस्से में एक बार फिर ग़ज़ा के मसले को इस्लामी दुनिया का बुनियादी मसला बताते हुए कहा कि ग़ज़ा के मसले ने इस्लामी दुनिया को पहचनवा दिया और सभी को पता चल गया कि इस्लाम और धर्म का तत्व, मज़बूती, दृढ़ता और ज़ायोनियों की इतनी ज़्यादा बमबारी और जुर्म के मुक़ाबले में घुटने ने टेकने की बुनियाद है।

उन्होंने आगे कहा कि इस मसले ने पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता का असली चेहरा भी दुनिया के सामने पेश कर दिया।  इससे पता चल गया कि इस कलचर में पले हुए राजनेता, ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए को मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं। कुछ ज़बानी बातों के बावजूद वे व्यवहारिक तौर पर यूएन सेक्युरिटी काउंसिल के प्रस्तावों को वीटो करके जुर्म को रुकवाने में रुकावट डाल रहे हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के जुर्म का विरोध करते हुए अमरीकी सेना के एक अफ़सर की आत्मदाह की घटना को अमरीका और पश्चिम की भ्रष्ट व अत्याचारी संस्कृति को अमानवीय नीतियों की रुसवाई के चरम की एक निशानी बताया।  आपने कहा कि इस व्यक्ति तक नें इस संस्कृति के घिनौने रूप को महसूस कर लिया, जो ख़ुद भी पश्चिमी कलचर में पला था।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उम्मीद जताई कि अल्लाह, इस्लाम, मुसलमानों, फ़िलिस्तीन और ख़ास तौर पर ग़ज़ा की पूरी तरह मदद करेगा।

 

Read 95 times