इस्लाम में औरत को एक माँ, बेटी, बहन और पत्नी के रूप में विशेष दर्जा दिया गया है। कुरआन और हदीस में महिलाओं के अधिकार, सम्मान और सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है,इस्लाम औरत को सम्मान की नज़र से देखता है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,इस्लाम में औरत को एक माँ, बेटी, बहन और पत्नी के रूप में विशेष दर्जा दिया गया है। कुरआन और हदीस में महिलाओं के अधिकार, सम्मान और सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है,इस्लाम औरत को सम्मान की नज़र से देखता है।
इस्लाम चाहता है कि औरत में इतनी इज़्ज़त और शान रहे कि उसे इस बात की तनिक भी परवाह न हो कि कोई मर्द उसे देख रहा है या नहीं। यानी औरत में आत्म-सम्मान ऐसा हो कि उसे इस बात की परवाह नहीं होनी चाहिए कि कोई मर्द उसे देख रहा है या नहीं देख रहा है।
यह स्थिति कहाँ और यह बात कहाँ कि औरत अपना लेबास, अपना श्रंगार, अपनी चाल और अपने बातचीत के अंदाज़ को किस तरह का अपनाए कि लोग उसे देखें?ग़ौर कीजिए इन दोनों बातों में कितना अंतर है!













