इमाम महदी (अ) के ज़ुहूर के वक़्त का पोशिदा होने का राज़

Rate this item
(0 votes)
इमाम महदी (अ) के ज़ुहूर के वक़्त का पोशिदा होने का राज़

बिना किसी शक के, सार्थक इंतजार जो कि सक्रियता और जीवन में ऊर्जा का एक बहुत महत्वपूर्ण कारण है, केवल तब ही संभव होगा जब इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के ज़ुहूर का समय छुपा रहेगा।

अल्लाह तआला के इरादे के अनुसार हमारे लिए इमाम महदी के ज़ुहूर का समय पोशिदा रखा गया है। और निस्संदेह, इसके पीछे कई गहरी और महत्वपूर्ण हिकमतें हैं, जिनमें से कुछ हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं:

उम्मीद का तसलसुल

जब इमाम महदी (अ) के ज़ुहूर का समय छुपा होता है, तो हर युग के इंतजार करने वालों के दिलों में आशा की रोशनी बनी रहती है। इसी लगातार और स्थायी आशा के कारण वे ग़ैबात के कठिन दौर की परेशानियों और दबावों का सामना कर पाते हैं। सच कहें तो अगर पिछले सदियों के शिया लोगों को बताया जाता कि तुम्हारे ज़माने मे ज़ुहूर नहीं होगा, बल्कि बहुत दूर भविष्य में ही इमाम महदी का ज़ुहूर होगा, तो वे किस उम्मीद के साथ अपने समय की मुश्किलों का सामना करते और ग़ैबात के कठिन रास्तों को सुरक्षित पार कर पाते?

तैयारी

बिना किसी शक के, सार्थक इंतजार जो सक्रियता और जीवन में ऊर्जा का एक बहुत महत्वपूर्ण कारण है, केवल तब ही संभव होगा जब इमाम महदी के ज़ुहूर का समय छुपा रहेगा। क्योंकि अगर समय निश्चित हो और पता हो कि उनका ज़ुहूर उस समय तक नही होगा, तो क्योकि लोग जानते हैं कि उस वक्त तक ज़ुहूर नहीं होगा, जिस से उनके अंदर सक्रियता और तैयारी करने की प्रेरणा खत्म हो जाएगी और वे सुस्त और निष्क्रिय हो जाएंगे।

लेकिन जब समय छुपा होता है, तो हर युग और हर दौर के लोग यह उम्मीद लेकर मेहनत करते हैं कि वे अपने समय में इमाम महदी को देखें, इसलिए वे ज़ुहूर की तैयारी करते हैं और अपने समाज को एक सालेह और सक्रिय समाज बनाने की कोशिश करते हैं।

इसके अलावा, अगर ज़ुहूर का समय निश्चित होता और किसी वजह से वह समय पूरा नहीं होता, तो कई लोग इमाम महदी पर अपने विश्वास में शक करने लगते। जैसा कि इमाम बाक़िर (अ) ने इस सवाल के जवाब में कहा है कि क्या ज़ुहूर का कोई निश्चित समय है, इसका जवाब यह है कि--

کَذَبَ اَلْوَقَّاتُونَ کَذَبَ اَلْوَقَّاتُونَ کَذَبَ اَلْوَقَّاتُونَ إِنَّ مُوسَی عَلَیْهِ اَلسَّلاَمُ لَمَّا خَرَجَ وَافِداً إِلَی رَبِّهِ وَاعَدَهُمْ ثَلاَثِینَ یَوْماً فَلَمَّا زَادَهُ اَللَّهُ عَلَی اَلثَّلاَثِینَ عَشْراً قَالَ قَوْمُهُ قَدْ أَخْلَفَنَا مُوسَی فَصَنَعُوا مَا صَنَعُوا कज़बल वक़्क़ातूना कज़बल वक़्क़ातूना कज़बल वक़्क़ातूना इन्ना मूसा अलैहिस्सलामो लम्मा ख़रजा वाफ़ेदन ऐला रब्बेहि वाआदहुम सलासीना यौमन फ़लम्मा ज़ादहुल्लाहो अलस सलासीना अश्रन क़ाला कौमोहू क़द अख़लफ़ना मूसा फ़सनऊ मा सनऊ

जो लोग समय तय करते हैं, वे झूठ बोलते हैं। (यह बात तीन बार दोहराई गई है।) जब मूसा (अ) अपने क़ौम के लोगों से अपने रब की तरफ बुलावे पर तीस दिन के लिए चले गए, और फिर अल्लाह ने उन तीस दिनों में दस दिन और जोड़ दिए, तो उनकी क़ौम के लोग कहने लगे कि मूसा ने अपना वादा पूरा नहीं किया। इसके बाद उन्होंने वह किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था —उन्होने अपने धर्म से मुंह मोड़ लिया और बछड़े की पूजा करने लगे। (उसूले काफ़ी, भाग 1, पेज 368)

इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)

Read 3 times