हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 44 में चार अहम सिफ़ात को सआदत और कामयाबी की बुनियाद क़रार दिया है यह मुख़्तसर मगर बलीग़ जुमले किसी भी मोमिन की ज़ेहनी और अमली ज़िंदगी के लिए मुकम्मल रहनुमाई करते हैं।
हज़रत इमाम अली (अ.स.) ने नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 44 में चार ख़ास सिफ़तों (गुणों) को इंसान की खुशबख़्ती और कामयाबी की बुनियाद बताया है। ये मुख़्तसर लेकिन असरदार जुमले एक मोमिन की सोच और अमल दोनों के लिए मुकम्मल रहनुमाई करते हैं:
«طُوبَی لِمَنْ ذَکَرَ الْمَعَادَ، وَ عَمِلَ لِلْحِسَابِ، وَ قَنِعَ بِالْکَفَافِ، وَ رَضِیَ عَنِ اللَّهِ»
बशारत है उस इंसान के लिए जो आख़िरत को याद रखता है,हिसाब के लिए अमल करता है,कम में क़नाअत करता है,और अल्लाह के फैसले से राज़ी रहता है।
- याद-ए-मआद (आख़िरत की याद):
जो शख़्स हमेशा आख़िरत को याद रखता है और यह यक़ीन रखता है कि एक दिन उसके तमाम आमाल का हिसाब लिया जाएगा, वह गुनाहों से बचता है और नेकी की तरफ़ झुकता है।
आख़िरत का यक़ीन इंसान के दिल में अल्लाह का डर पैदा करता है और उसे किरदार वाला इंसान बनाता है।
- हिसाब के लिए अमल करना:
यानि इंसान अपने हर काम को इस नीयत से करे कि कल क़यामत के दिन इसका जवाब देना होगा।यह ईमान केवल ज़बानी इक़रार नहीं, बल्कि अमल पर आधारित होता है।इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:ईमान सिर्फ़ बोलने का नाम नहीं, बल्कि पूरा का पूरा अमल है।
- क़नाअत (संतोष):
खुशक़िस्मत इंसान वह है जो अपनी बुनियादी ज़रूरतों के मुताबिक़ जो कुछ मिल जाए, उसी में संतुष्ट रहे।क़नाअत दिल का सुकून है और इंसान को लालच और तामाअ से बचाती है।
रसूल-ए-अकरम स.अ. ने फ़रमाया:थोड़ा हो लेकिन काफ़ी हो, ये बेहतर है उस दौलत से जो ज़्यादा हो मगर इंसान को ग़ाफ़िल बना दे।
- रज़ा बिल क़ज़ा (अल्लाह के फैसले पर राज़ी रहना):
अल्लाह के हर फैसले पर दिल से राज़ी रहना, चाहे वो हमारे हक़ में हो या खिलाफ़।
इमाम सादिक़ (अ.स.) ने इसे फ़रमाया:अल्लाह की इताअत (आज्ञा पालन) की सबसे ऊँची मंज़िल, अल्लाह के फैसलों पर राज़ी रहना है।
नतीजा:यह चार बुनियादी उसूल,आख़िरत की याद,हिसाब के लिए अमल,क़नाअत,और रज़ा बिल क़ज़ा,एक इंसान को न केवल दुनिया में सुकून और तसल्ली देते हैं, बल्कि उसे आख़िरत में भी कामयाबी दिलाते हैं।
जो इंसान इन उसूलों पर अमल करता है, वही असली मायनों में "खुशबख़्त" है।