आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने अपने एक लिखित बयान में इस्लामी समाजों पर तलाक़ के ख़तरनाक प्रभावों को रेखांकित किया है।
आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने अपने एक लिखित बयान में इस्लामी समाजों में तलाक़ के खतरनाक प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए फरमाया,तलाक़ से बढ़कर कोई मुसीबत और कोई जानलेवा बीमारी (नासूर) नहीं है।
आप तलाक़ से संबंधित रिवायतों का अध्ययन कीजिए, उनमें कहा गया है कि वह घर जो तलाक़ की वजह से बर्बाद हो जाए, वह आसानी से दोबारा आबाद नहीं होता।
(वसायल शिया जिल्द 18, पृष्ठ 30)
उन्होंने तलाक़ के बढ़ते रुझान का दोष बाहरी (गैर-इस्लामी) सांस्कृतिक प्रभावों को देते हुए कहा,इस पराई संस्कृति ने तलाक़ को आम बना दिया है! आइए, निकाह की ओर रुख कीजिए, परिवार बनाईए, बाप बनिए, माँ बनिए और औलाद की नेमत प्राप्त कीजिए।
क्या आप नहीं चाहते कि आप हमेशा बाक़ी रहें?! तो फिर एक नेक सुलूक औलाद, जो आपके लिए दुआ करेगा, वह आपको हमेशा ज़िंदा रखेगा।"
(अल-काफी, जिल्द 7, पृष्ठ 56)
आयतुल्लाह जवादी आमली ने ज़ोर देते हुए कहा,ख़ुदा की हिकमतभरी मर्ज़ी यही है कि वह समाज को पारिवारिक उसूलों की बुनियाद पर महफूज़ रखे।