हैफ़ा विश्वविद्यालय के एक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ का कहना है कि इज़राइल अमेरिकी समर्थन के बिना कुछ भी नहीं कर सकता।
जब हैफ़ा विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ बेंजामिन मिलर से पूछा गया कि क्या इज़राइल, अमेरिकी समर्थन के बिना कुछ कर सकता है, तो उन्होंने एक शब्द में कहा: "नहीं।"
दशकों से अमेरिका द्वारा इज़राइल को प्रदान की गई सैन्य श्रेष्ठता के बावजूद, अक्टूबर 2023 से इज़राइल द्वारा छेड़े गए युद्धों ने इसकी कमजोरी और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असमर्थता को उजागर कर दिया है।
अपनी स्थापना के बाद से, इज़राइल ने सैन्य श्रेष्ठता और अमेरिकी समर्थन पर भरोसा करते हुए इस क्षेत्र में प्रभाव हासिल किया है, लेकिन यह प्रभाव सुरक्षा मुद्दों तक ही सीमित रहा है।
तूफ़ान अल-अक्सा, गाजा युद्ध, हिजबुल्लाह के साथ टकराव और विशेष रूप से ईरान के साथ युद्ध ने यह ज़ाहिर कर दिया कि इज़राइल एक दिन भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकता है और इज़रायल के एक क्षेत्रीय शक्ति बनने के नेतन्याहू के दावे को ढांचागत, राजनीतिक और सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है जो इसकी सैन्य क्षमताओं से परे हैं।
ईरान के साथ युद्ध के बाद, नेतन्याहू ने दावा किया कि इज़राइल महाशक्तियों में से एक है। इस दावे के जवाब में, हमें सिर्फ़ ट्रम्प का वह बयान याद आता है जिसमें उन्होंने ईरान के साथ युद्ध रुकने के बाद कहा था कि हमने ईरान के साथ युद्ध में इज़राइल को "निजात" दिला दी।
इज़राइल और क्षेत्रीय गुंडागर्दी की चाहत
क्षेत्रीय आधिपत्य या गुंडागर्दी एक ऐसे देश का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त शब्द है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। क्षेत्रीय आधिपत्य की एक अन्य परिभाषा है, एक ऐसा देश जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से संबंधित हो और उस क्षेत्र पर आर्थिक और सैन्य रूप से प्रभुत्व रखता हो और वहां तथा वैश्विक स्तर पर क्षेत्रीय आधिपत्य स्थापित करने में सक्षम हो।
प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मामलों के टीकाकार स्टीफन वॉल्ट का कहना है कि क्षेत्रीय शक्तियां अपने पड़ोसियों की तुलना में इतनी शक्तिशाली हैं कि उन्हें किसी भी प्रकार की सुरक्षा संबंधी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता है और उन्हें किसी भी समय किसी वास्तविक प्रतिद्वंद्वी के उभरने की कोई चिंता नहीं होती।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इज़राइल के पास इनमें से कोई भी मानक नहीं है, और इस संबंध में, वे यमन और ग़ज़ा पट्टी में हमास आंदोलन की ओर इशारा करते हैं, जो लगभग दो साल के युद्ध और व्यापक विनाश के बावजूद इज़राइल को आसानी से चुनौती दे रहे हैं।
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इस बात के सबसे स्पष्ट प्रमाण हैं कि इज़राइल कभी भी क्षेत्रीय शक्ति नहीं बना सकेगा, बल्कि एक आश्रित शासन बना रहेगा, ये हैं:
सैन्य सीमित्ताएं
इज़राइल द्वारा छेड़े गए युद्धों के कारण 2024 में उसका सैन्य खर्च 65 प्रतिशत बढ़ गया और 46.5 अरब डॉलर हो गया, जो 1967 के छह-दिवसीय युद्ध के बाद से उसका सबसे अधिक सैन्य खर्च है।
इन बढ़ती लागतों के बावजूद, ग़ज़ा, लेबनान और ईरान पर इज़राइल के हमले हमास को कमज़ोर करने में भी कामयाब नहीं हुए हैं, और यह आंदोलन इज़राइल के ख़िलाफ संघर्ष जारी रखे हुए है।
पत्रिका "मॉडर्न डिप्लोमेसी" ने एक रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा है कि नेतन्याहू के तमाम दावों के बावजूद, इज़राइल के जून 2025 के हमले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने में नाकाम रहे।
"इज़राइल इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज़" के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 को, इज़राइल का "सैन्य सिद्धांत", जो डिफ़ेंस, चेतावनी और विजय की तीन मूलभूत परतों पर आधारित है, ढेर हो गया।
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अमेरिका पर निर्भरता
नेतन्याहू के दावों के बावजूद, इज़राइल अपनी सैन्य शक्ति के लिए पूरी तरह से अमेरिका और यूरोप पर निर्भर है। फ़ारेन पॉलिसी कहती है कि इज़राइल अपनी सभी प्रगति, खासकर सैन्य तकनीक के क्षेत्र में, अमेरिका की बदौलत हासिल करता है।
जब हैफ़ा विश्वविद्यालय के इन्टरनेश्नल रिलेशनशिप के विशेषज्ञ बेंजामिन मिलर से पूछा गया कि क्या इज़राइल अमेरिकी समर्थन के बिना कुछ कर सकता है, तो उन्होंने एक शब्द में कहा: "नहीं।"
इज़राइल को अमेरिका से सालाना 3.8 अरब डॉलर की सैन्य सहायता मिलती है और संयुक्त राष्ट्र संघ सहित अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उसे बिना शर्त समर्थन प्राप्त है।
मिलर ने कहा, अमेरिकी हथियार समर्थन बंद होने से इज़राइल के सामने बड़ी समस्याएं खड़ी हो जाएंगी।
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क्षेत्रीय वैधता की कमी
वॉल्ट का कहना है कि पश्चिमी तट और यरुशलम पर उसके क़ब्ज़े, ग़ज़ा युद्ध और फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार की वजह से इज़राइल को दुनिया के सामने एक क़ब्ज़ाधारी और दमनकारी शासन के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
मॉडर्न डिप्लोमेसी के अनुसार, इज़राइल के साथ राजनयिक संबंध रखने वाले देशों ने भी ये संबंध विशिष्ट कारणों से और पश्चिम के दबाव में स्थापित किए हैं, न कि इज़राइल के आधिपत्य की वजह से।