हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस

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पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के चचेरे भाई, दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज्ञान के बारे में बात करना किसी ज़बान और क़लम के लिए संभव नहीं है।

वे वही हैं जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा हैः ईश्वर ने अली को इतना ज्ञान व बुद्धि प्रदान की है कि अगर उसे धरती के समस्त लोगों में बांटा जाए तो वह सभी अपने दामन में ले लेगी और सभी लोग बुद्धिमान और ज्ञानी हो जाएंगे।

रजब के महीने का दूसरा शुक्रवार था, हिरा पर्वत से चलने वाली ठंडी हवा के झोंके काबे तक पहुंच रहे थे जहां कुछ लोग इस पवित्र स्थल की परिक्रमा करने में व्यस्त थे। अबू तालिब की पत्नी फ़ातेमा, थके हुए चेहरे के साथ ईश्वर के घर की परिक्रमा कर रही थीं। आंखों से टपकने वाले आंसू उनके चेहरे को भिगा रहे थे, उन्होंने गिड़गिड़ा कर अपने ईश्वर को पुकाराः हे मेरे पालनहार, मैं तुझ पर ईमान रखती हूं, इसी तरह मैं अपने पूर्वज इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म पर, जो काबे की आधारशिला रखने वाले थे, पूरा ईमान रखती हूं। प्रभुवर! हे शक्तिशाली व सर्वसक्षम ईश्वर! मैं तुझे इस घर की आधारशिला रखने वाले और इस बच्चे की सौगंध देती हूं जो मेरी कोख में है कि इस प्रसव को मेरे लिए सरल बना दे।

सहसा ही लोगों की आंखें खुली की खुली रह गईं, काबे की दीवार फटी और उसमें दरवाज़ा बन गया, जैसे ही फ़ातेमा बिन्ते असद काबे में गईं, दीवार पहले की तरह जुड़ गई। लोग आश्चर्य से चीख़ पड़े और फिर हर तरफ़ एक अर्थपूर्ण सन्नाटा पसर गया, सभी के चेहरे आश्चर्य की मूर्ति बन गए, अंदर की सांस अंदर रह गई, किसी में भी उस मौन को तोड़ने और यह कहने की हिम्मत नहीं थी कि अभी क्षण भर पहले काबे की दीवार फटी और ईश्वर ने एक गर्भवती महिला को अंदर बुला लिया।

किस को विश्वास हो सकता था कि अत्यंत कठोर पत्थरों की दीवार फट कर एक गर्भवती महिला को अंदर आने का निमंत्रण दे सकती है? लोगों का आश्चर्य उस समय दुगना हो गया जब काबे की देख-भाल करने वालों ने, जिनके पास उसकी चाबी थी, काबे का ताला खोलने का प्रयास किया और विफल रहे। अब वहां लोगों की भीड़ बढ़ती चली जा रही थी और हर एक को जिज्ञासा थी कि आगे क्या होगा ?

काफ़ी समय बीत गया और फिर अचानक ही काबे की दीवार, दोबारा दरवाज़ा बन गई और उसमें से दमकते चेहरे और गोद में अपने लाल को लिए फ़ातेमा बिन्ते असद बाहर आईं। नवजात का प्रकाशमयी चेहरा सभी को मोहित कर रहा था, उसके पिता अबू तालिब ने चमकती आंखों और ख़ुशी भरे स्वर में चिल्ला कर कहाः हे लोगो! मेरे बेटे अली ने, ईश्वर के घर में जन्म लिया है। सृष्टि के इतिहास की यह अनुपम और अद्वीतीय घटना, आमुल फ़ील (जिस साल अबरहा ने हाथियों के साथ काबे पर हमला किया था) के तीसवें साल के रजब महीने की तेरहवीं तारीख़ को शुक्रवार के दिन घटी थी।

जिस दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने काबे में आंखें खोलीं, सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि तब तक किसी ने भी काबे में जन्म नहीं लिया था और उसके बाद से आज तक भी ऐसा नहीं हुआ है और यह उस बच्चे की महानता का एक चिन्ह था। आज हम एक ऐसे सपूर्ण मनुष्य का शुभ जन्म दिन मना रहे हैं जिसे उसके ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अलावा किसी ने भी सही तरीक़े से नहीं पहचाना। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा थाः हे अली! ईश्वर को मेरे और तुम्हारे अलावा किसी ने भी नहीं पहचाना, मुझे ईश्वर और तुम्हारे सिवा किसी ने नहीं पहचाना और तुम्हें ईश्वर और मेरे अलावा किसी ने भी नहीं पहचाना लेकिन इसके बावजूद अली, इतिहास के पन्नों में सूरज की तरह चमक रहे हैं।

सातवीं शताब्दी हिजरी में अहले सुन्नत के प्रख्यात विद्वान इब्ने अबील हदीद, जिन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा की व्याख्या लिखी है, हज़रत अली के गुणों का वर्णन करते हुए कहते हैं। “मैं उस व्यक्ति के बारे में क्या कहूं जिसके गुणों को उसके शत्रु भी मानते हैं और वे कभी भी उनकी प्रतिष्ठा और सद्गुणों का न तो इन्कार कर सके और न ही उन्हें छिपा सके।“ इसके बाद वे कहते हैं कि बनी उमय्या ने धरती के पूरब और पश्चिम में इस्लामी शासन हासिल कर लिया और हर प्रकार के हथकंडे और चाल के माध्यम से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रकाशमयी अस्तित्व की छवि बिगाड़ने की कोशिश की, उन पर तरह तरह के आरोप लगाए गए, उनकी सराहना और गुणगान करने वाले हर व्यक्ति को धमकाया गया, उनकी प्रशंसा में किसी भी प्रकार की हदीस को बयान करने से रोका गया, यहां तक कि उनके नाम पर बच्चों का नाम रखने पर प्रतिबंध लगाया गया लेकिन इन सब कुप्रयासों के बावजूद उनकी महानता और प्रतिष्ठा और अधिक निखर कर और उभर कर सामने आने के कुछ और परिणाम नहीं निकला। वास्तव में बनी उमय्या की ये सारी कोशिशें हथेली से सूरज को छिपाने जैसी थीं। मैं उस व्यक्ति के बारे में क्या कह सकता हूं जिस पर जा कर सारे सद्गुण समाप्त हो जाते हैं और हर मत व गुट अपने आपको उससे जोड़ने की कोशिश करता है, हां अली ही सारे सद्गुणों के स्वामी हैं।

सच्चाई तो यह है कि ख़ुद हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बेहतर कोई भी उनका परिचय नहीं करा सकता। नहजुल बलाग़ा के 175वें भाषण में उन्हें ईश्वर द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान के एक भाग की ओर संकेत किया गया है। वे कहते हैं। ईश्वर की सौगंध! अगर मैं चाहूं तो तुममें से हर एक को उसके जीवन के आरंभ और अंत और ज़िंदगी के सभी मामलों के बारे में अवगत करा सकता हूं लेकिन इस बात से डरता हूं कि इस तरह की बातों के कारण तुम लोग पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का इन्कार न कर बैठो। जान लो कि मैं इन मूल्यवान राज़ों को अपने विश्वस्त दोस्तों के हवाले करूंगा। उस ईश्वर की सौगंध! जिसने मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) को सत्य के साथ पैग़म्बर बना कर भेजा, मैं सत्य के अलावा कुछ नहीं कहता।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की यह बात इस बात को स्पष्ट करती है कि उनके ज्ञान का जो भाग हम तक पहुंचा है वह उनके ज्ञान के अनंत सागर की केवल एक बूंद है क्योंकि अगर उनका सारा ज्ञान हम तक पहुंच जाता तो कुछ लोग इस प्रकार के ज्ञान को संभालने की क्षमता न रखने के कारण, सच्चे मार्ग से दूर हो जाते और वैचारिक व आस्था की दृष्टि से उनमें गहरा मतभेद पैदा हो जाता।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम इस संबंध में कहते हैं। हे अली! तुम (दुनिया के त्याग और ईश्वर की उपासना की दृष्टि से) मरयम के पुत्र ईसा जैसे हो अगर मुझे इस बात का भय न होता कि मेरी जाति का एक गुट तुम्हारे बारे में अतिशयोक्ति से काम लेगा और वही कहेगा जो ईसा के बारे में कहा गया, तो मैं तुम्हारे बारे में ऐसी बात कहता कि तुम जब भी लोगों के पास से गुज़रते तो वे तुम्हारे पैरों के नीचे की मिट्टी को उठा कर चूमते।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का ज्ञान इतना व्यापक था कि वे विभिन्न ज्ञानों के सभी रहस्यों और छोटी-बड़ी बातों को पूरी दक्षता से जानते थे। वे कभी भी किसी भी सवाल या मामले पर परेशान नहीं होते थे और अविलम्ब उसका उत्तर देते थे या उसे हल कर देते थे। सुन्नी मुसलमानों के एक वरिष्ठ धर्मगुरू इब्ने ख़ारज़मी अपनी किताब मनाक़िब में लिखते हैं कि एक दिन दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पूछा कि किस प्रकार आप किसी भी सवाल या समस्या का बिना सोचे तुरंत उत्तर दे देते हैं। उन्होंने जवाब में पहले अपनी हथेली उनके सामने की और पूछा कि इसमें कितनी उंगलियां हैं? उन्हों ने तुरंत जवाब दियाः पांच। हज़रत अली ने पूछा कि तुमने सोचा क्यों नहीं? उमर ने कहा कि इसमें सोचने की क्या बात है, पांचों उंगलियां मेरे सामने हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहाः सभी बातें, धार्मिक आदेश और ज्ञान मेरे लिए इसी हथेली की तरह स्पष्ट हैं अतः मैं सवालों का अविलम्ब जवाब देता हूं।

इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस महान गुरू की ओर जिसने उन्हें ये ज्ञान सिखाएं हैं, संकेत किया और कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) ने सभी सूचनाएं और ज्ञान मुझे प्रदान किए हैं और मुझे बताया है कि कौन कहां मरेगा? किसे कहां मुक्ति मिलेगी? किसके शासन का अंत किस प्रकार होगा, उन्होंने हर घटना की मूझे सूचना दे दी है। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रलय तक के हर हलाल या हराम, अच्छी या बुरी बात और ईश्वर की अवज्ञा या आज्ञापालन की सूचना मुझे दे दी है और मैंने उन्हें याद कर लिया है, मैं इन बातों का एक शब्द भी भूला नहीं हूं। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा और ईश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरे हृदय को ज्ञान, बुद्धि, तत्वदर्शिता और प्रकाश से भर दे और मुझे इस प्रकार ज्ञान प्रदान करे कि उसमें अज्ञानता घुस न पाए और मैं इस तरह बातों को याद रखूं कि कभी न भूलूं। यही कारण है कि दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर जब भी किसी समस्या में ग्रस्त होते और कोई उसे हल नहीं कर पाता तो वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास जाते। उन्होंने अनेक अवसरों पर कहा है कि अगर अली न होते तो उमर तबाह हो जाता।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से ज्ञान अर्जित करने के हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रयास, अथक व निरंतर थे और पैग़म्बर के जीवन के अंतिम क्षण तक जारी रहे और हज़रत अली उनके ज्ञान के अथाह सागर से तृप्त होते रहे। अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस का कहना है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने जीवन के अंतिम दिनों में थे तो उन्होंने हज़रत अली को बुलाया और जब वे आ गए तो उन्हें अपना कपड़ा ओढ़ाया और उनकी ओर झुक कर कुछ कहा। जब हज़रत अली बाहर निकले तो किसी ने उनसे पूछा कि पैग़म्बर ने आपसे क्या कहा? उन्होंने जवाब दियाः पैग़म्बर ने मुझे ज्ञान के एक हज़ार दरवाज़े सिखाए जिनमें से हर दरवाज़े से हज़ार दरवाज़े खुलते हैं।

 

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