संयम और प्रतिरोध की पर्याय हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा

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पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी और हज़रत अली व हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा अलैहिमुस्सलाम की पुत्री हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की बर्सी के अवसर पर हम हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और इसी उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं।

अच्छी मिट्टी हो तो वहां हरियाली उगती है और फूल महकते हैं, बंजर ज़मीन पर कंटीली झाड़ियां ही नज़र आती हैं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जन्म एसे परिवार में हुआ जो पवित्रता का स्रोत था और जिसने मानवीय मूल्यों और महानताओं को सींचा। उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम को क़ुरआन मजीद ने सारी सृष्टि के लिए ईश्वर की दया व कृपा की संज्ञा दी है।

जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के जन्म का समय निकट आया तो ईश्वर के फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल धरती पर उतरे और पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि आप इस बच्ची का नाम ज़ैनब रखिए। इसके बाद हज़रत जिबरईल रोने लगे। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे रोने की वजह पूछी तो बताया कि यह बच्ची अपने जीवन के आरंभ से अंत तक दुखों और पीड़ाओं का सामना करती रहेगी। कभी आपकी जुदाई का ग़म मनाएगी, कभी हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा की शहादत पर रोएगी और कभी अपने पिता हज़रत अली और भाई हसन का ग़म मनाएगी। सबसे बढ़कर इस बच्ची को कर्बला में दुखों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ेगा और यह मुसीबतें उसे बूढ़ कर देंगी। यह सुनकर सब रोने लगे। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने सवाल किया कि मेरी बेटी ज़ैनब पर रोने का क्या सवाब होगा तो पैग़म्बरे इस्लाम ने जवाब दिया कि उस पर रोने का सवाब हुसैन पर रोने के सवाब के बराबर होगा।

जब हज़रत ज़ैनब विवाह की आयु को पहुंची तो उनका विवाह चाचा के बेटे अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र से हुआ। अब्दुल्लाह को अरब जगत  के धनवान लोगों में गिना जाता था।  मगर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा न कभी भी भौतिकवाद से ख़ुद को क़रीब नहीं किया। उनके सामने तो बहुत बड़ा ध्येय कर्बला में पेश की जाने वाली क़ुरबानी थी। उन्होंने अपने जीवन में यह पाठ सीखा था कि कभी भी सच्चाई को अत्याचारियों के स्वार्थों पर न्योछावर नहीं होने देना चाहि। इसी लिए उन्होंने अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन की ज़िम्मेदारी संभाली और धर्म के शुद्धिकरण और समाज के सुधार के लिए क़दम आगे बढ़ाया। शादी के समय हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने पति हज़रत अब्दुल्लाह के सामने यह शर्त रखी थी कि वह सभी परिस्थितियों में अपने भाई इमाम हुसैन का साथ देंगी। अब्दुल्लाह ने यह शर्त मान ली। अतः जब इमाम हुसैन ने अपना एतिहासिक सफ़र शुरू किया और मदीना से कर्बला गए तो इस सफ़र में हज़रत ज़ैनब भी उनके साथ थीं और उन्होंने भ्रष्ट व अत्याचारी उमवी शासक यज़ीद के मुक़ाबले में कर्बला की महान शौर्यगाथा में एक नया रंग भरा।

यदि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के गुणों की बात की जाए तो उनका त्याग, उपासना, कठिन परिस्थितियों का साहस और दृढ़ता से मुक़ाबला आदि बहुत स्पष्ट विशेषताएं हैं। वह मात्र छह साल की थीं जब उनकी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने मस्जिदे नबी में फ़ेदक नामक बाग़ और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अधिकार के बचाव में अपना एतिहासिक ख़ुतबा दिया। हज़रत ज़ैनब को उसी समय यह ख़ुतबा याद हो गया। कूफ़े की प्रतिष्ठित हस्ती बशीर इब्ने ख़ुज़ैम असदी कहते हैं कि मैंने लज्जा की चादर ओढ़े रहने वाली किसी महिला को हज़रत ज़ैनब की तरह भाषण देते कभी नहीं सुना। वह जब भाषण देती थीं तो ऐसा लगता था कि हज़रत अली भाषण दे रहे हैं। उन्होंने भाषण की कला अपने पिता से सीखी थी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की सामाजिक स्थिति यह थी कि उनके पति अब्दुल्लाह भी उन्हें अली की बेटी और बनी हाशिम ख़ानदान की बुद्धिमान महिला कहकर पुकारते थे। कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के उस ख़ुतबे के बाद जिसमें उन्होंने सुनने वालों को हिलाकर रख दिया  था, हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने कहा कि आप गुरू के बग़ैर ही महान विचारक और ज्ञानी हैं।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्ति को समझने के लिए सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि कर्बला की घटना और इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार के लोगों को यज़ीद द्वारा क़ैदी बनाए जाने की घटना का जायज़ा लिया जाए। समय के अत्याचारियों से निपटने की शैली हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बेटी की महानता की गवाही देती है। वह अपने पति अब्दुल्लाह की अनुमति से जो बीमारी के कारण यात्रा में इमाम हुसैन के साथ न जा सके इमाम हुसैन के साथ कर्बला गईं। उन्होंने कर्बला की घटना में भी महान साहस का परिचय दिया और इसके बाद चौथे इमाम हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की रक्षा और देखभाल और साथ ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन के उद्देश्यों के प्रचार में अनुदाहरणीय भूमिका निभाई। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा वास्तव में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन की पूरक थीं। यदि ईश्वर ने हज़रत ईसा के साथ उनकी माता हज़रत मरियम को रखा, पैग़म्बरे इस्लाम के साथ उनकी बेटी हज़रत फ़ातेमा को रखा तो इमाम हुसैन के साथ उनकी बहन हज़रत ज़ैनब को रखा जिन्होंने ईश्वरीय मिशन में बड़ी केन्द्रीय भूमिका निभाई। यदि हज़रत ज़ैनब की भूमिका न होती तो इमाम हुसैन का कर्बला मिशन अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच पाता। वैसे इमाम हुसैन ने इस यात्रा में अपने घर वालों को साथ रखने का फ़ैसला इसी लक्ष्य के तहत किया था। कर्बला से दमिश्क़ की यात्रा में इमाम हुसैन और उनके साथियों के कटे हुए सिरों को भालों पर उठाया गया और पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान की महिलाओं और बच्चों को क़ैदी बनाया गया जो यज़ीद और उसके साथियों की दुष्टता को साबित करने के लिए काफ़ी है। इसी तरह हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अलग अलग अवसरों पर जो ख़ुतबे दिए वह सच्चाई को सामने लाने में बहुत प्रभावी साबित हुए।

सत्य की रक्षा और कठिनाइयों को सहन करने के संबंध में एक मुसलमान महिला की क्या  भूमिका होती है यह हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने आचरण से दिखाया। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि आज़ाद इंसान हर हाल में आज़ाद रहता है। यदि उस पर दुख पड़ता है तो संयम का परिचय देता है, यदि दुखों का सिलसिला जारी रहता है तो भी उसका संयम नहीं टूटता, यदि उसे क़ैदी बना लिया जाए, उसे परास्त कर दिया जाए और उसका आराम कठिनाइयों में बदल जाए तो हज़रत युसुफ़ की तरह उसकी स्वाधीनता पर क़ैद और दासता से भी कोई आंच नहीं आती।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हज़रत ज़ैनब एक संपूर्ण मुस्लिम महिला का प्रतीक थीं। अर्थात इस्लाम ने महिलाओं के प्रशिक्षण के लिए जो आदर्श रखा है उसे हज़रत ज़ैनब ने दुनिया वालों के सामने पेश किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्तित्व की कई पहलू हैं। वह ज्ञानी और बहुत महान हस्ती हैं, उनके सामने बड़े बड़े बुद्धिमान और ज्ञानी नत मस्तक हो जाता है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने भावना और भावुकता को एक मोमिन इंसान के हृदय में पायी जाने वाली दृढ़ता और महानता से जोड़ दिया। उन्होंने अपना हृदय और अस्तित्व ईश्वर के सिपुर्द कर दिया जिसके नतीजे में वह इतनी महानता पर पहुंच गईं कि बड़ी से बड़ी घटना भी उनकी नज़र में तुच्छ थी, कर्बला जैसी घटना भी उनके हौसले को नहीं तोड़ सकी।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की कर्बला में शहादत के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा डेढ़ साल से ज़्यादा जीवित नहीं रहीं। वर्ष 62 हिजरी क़मरी में रजब के महीने में 56 साल की आयु में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा इस दुनिया से चली गईं। बहरुल मसाएब पुस्तक के लेखक ने लिखा है कि कर्बला की घटना और इसके बाद के कठिन हालात ने हज़रत ज़ैनब को बूढ़ कर दिया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के लिए अपने भाई इमाम हुसैन के बग़ैर जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन था। वैसे तो कर्बला की घटना ही इतनी बड़ी घटना थी कि हज़रत ज़ैनब का इसके बाद एक पल के लिए भी जीवित रह पाना कठिन था लेकिन उन्होंने हालात को देखा, अपने ज़िम्मेदारी को समझा, अपने भाई के मिशन को पूरा करने के दायित्वों का आभास किया और एसे संयम का प्रदर्शन किया जिसका कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। अपने दायित्व पूरा कर लेने और अपने भाई इमाम हुसैन का संदेश लोगों तक पहुंचा देने के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने इस दुनिया से विदा ली।

 

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