इस्लाम में बाल अधिकार- 2

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इस्लाम में बाल अधिकार- 2

बचपन शुरु होने के बारे में देशों के दृष्टिकोण को दो या तीन गुटों में बांटा जा सकता है।

पहला गुट उन देशों का है जो बचपन का आरंभ गर्भाधारण के समय से मानते हैं। जैसे लैटिन अमरीकी देश, आयरलैंड और वेटिकन। जैसा कि इस बात की ओर इशारा हुआ कि बाल अधिकार कन्वेन्शन के मसौदे के संकलन के समय इस विषय पर मसौदा तय्यार करने वाले देशों के बीच गंभीर बहस हुयी थी। ये देश इस बिन्दु पर बल देते हैं कि बच्चा दुनिया में आने से पहले जीवन रखता है इसलिए ज़रूरी है कि क़ानूनी दृष्टि से उसका समर्थन हो। जैसे अर्जेन्टिना ने बाल अधिकार कन्वेन्शन के पहले अनुच्छेद में कहा हैः "बच्चा शब्द का अर्थ हर इंसान पर गर्भाधारण के क्षण से 18 साल की उम्र तक लागू होता है।"

यह दृष्टिकोण अर्जेन्टिना के नागरिक क़ानून से प्रेरित है जिसमें आया हैः "इंसान का वजूद गर्भाधारण से शुरु हो जाता है और हर व्यक्ति पैदाइश से पहले स्पष्ट व निर्धारित अधिकार का उसी तरह स्वामी हो सकता है जिस तरह वह पैदाइश के बाद होता है। अगर गर्भ में मौजूद भ्रूण जीवित पैदा हो तो उक्त अधिकार उसके लिए हमेशा रहेंगे चाहे पैदाइश के समय उसे उसकी मां से अलग कर दिया जाए।"

दूसरा दृष्टिकोण बाल अधिकार कन्वेन्शन के संकलन के समय अमरीका ने पेश किया। अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, बचपन उस समय शुरू होगा जब यह स्पष्ट हो जाए कि बच्चा पैदा होने के बाद ज़िन्दा बाक़ी रहेगा। उक्त दृष्टिकोण में न तो पैदाइश को बचपन का आरंभ माना गया है और न ही गर्भाधारण को बल्कि इस दृष्टिकोण के अनुसार, बचपन का अर्थ उस समय लागू होगा जब बच्चे का ज़िन्दा बाक़ी रहना स्पष्ट हो जाए, तब उसी क्षण से बच्चा अधिकार का स्वामी होगा। अमरीका के क़ानून में गर्भ के बाक़ी रहने की क्षमता उस समय व्यवहारिक मानी जाएगी जब यह कहा जा सके कि भ्रूण मां के पेट से निकल कर जीवित रह सकता है और डॉक्टरों का मानना है कि यह स्थिति उस समय पैदा होती है जब भ्रूण 7 महीने का हो जाता है।

इस बारे में एक और दृष्टिकोण है जो ज़्यादातर पश्चिमी देशों में प्रचलित है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, बचपन बच्चे के पैदा होते ही शुरू होता है। बाल अधिकार कन्वेन्शन के मसौदे के लिए पोलैंड द्वारा पेश योजना में स्पष्ट शब्दों में आया हैः "इंसान का बचपन पैदा होने के क्षण से शुरू होता है।"              

फ़्रांस में भी भ्रूण के अधिकार के लिए दो शर्त मद्देनज़र रखी गयी है। एक भ्रूण का जीवित पैदा होना और दूसरा उसमें ज़िन्दा बाक़ी रहने की क्षमता। लेकिन जर्मनी में नागरिक अधिकार के पहले अनुच्छेद और स्वीज़रलैंड में नागरिक अधिकार क़ानून के अनुच्छेद 31 में भ्रूण के ज़िन्दा बाक़ी रहने की शर्त नहीं है बल्कि ईरान में बाल अधिकार की तरह, बच्चा ज़िन्दा पैदा होते ही अधिकार का स्वामी बन जाता है चाहे वह विकलांग या समय पूर्व पैदा हुआ हो। इटली में बाल अधिकार में भ्रुण का जीवित दुनिया में आना अधिकार से संपन्न होने के लिए काफ़ी नहीं है बल्कि ज़िन्दा बाक़ी रहना ज़रूरी है। अगर भ्रुण जीवित दुनिया में आए लेकिन किसी कारण से जीवित न रह सके और थोड़े ही समय बाद मर जाए, तो वह किसी अधिकार का मालिक नहीं हो सकता।

स्पेन के नागरिक अधिकार क़ानून में भ्रूण के अधिकार से संपन्न होने के संबंध में अलग शर्त है। इस क़ानून के अनुसारः "बच्चा इंसानी शक्ल में हो और मां के पेट से निकलने के बाद 24 घंटे ज़िन्दा रहे।"

ये जो शर्तें हैं कि बच्चा ज़िन्दा पैदा हो या पैदा होने के बाद ज़िन्दा बाक़ी रहने के योग्य हो, इनसे यह बात समझ में आती है कि बच्चा भ्रूण का रूप धारण करने के समय से कुछ अधिकार का स्वामी होता है यह अलग बात है कि ये अधिकार अस्थायी हैं।

स्वीडन, डेनमार्क, ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया जैसे देशों के क़ानून में भ्रूण के जीवित रहने के अधिकार को माना गया है और किसी सीमा तक इसका समर्थन किया गया है। इसके साथ ही भ्रुण के जीवन के आरंभिक चरण में गर्भपात को भी क़ुबूल किया गया है। मिसाल के तौर पर फ़्रांस के 1974 के क़ानून के अनुच्छेद 40 में गर्भाधारण के 7 हफ़्ते और अमरीका में गर्भाधारण के समय से 6 महीने तक गर्भपात की इजाज़त दी गयी है।

गर्भ ठहरने के समय से भ्रुण के लिए जीवित रहने के अधिकार को मान्यता दिए जाने के मद्देनज़र उसके जीवन पर अतिक्रमण नहीं होना चाहिए क्योंकि यह उसका मूल अधिकार है। भ्रूण के जीवित रहने, मीरास पाने, वसीयत, वक़्फ़ और उसे पहुंचने वाले नुक़सान के बदले में हर्जाने के अधिकार से संपन्न होने के मद्देनज़र यह दावा किया जा सकता है कि भ्रूण का भी वास्तविक व्यक्तित्व होता और वह अधिकार से संपन्न होता है। बच्चे के पैदा होने से यह सच्चाई स्पष्ट होती है कि बच्चा आरंभ से अधिकार से संपन्न था।   

बचपन की समाप्ति भी बाल अधिकार की समीक्षा की नज़र से बहुत अहम है क्योंकि इससे बच्चे के अधिकार से संपन्न होने की सीमा भी स्पष्ट होती है। दुनिया के बहुत से देशों में बचपन की समाप्ति की उम्र 18 साल मानी गयी है अलबत्ता कुछ देशों में यह उम्र 19 और 21 भी मानी गयी है।

अमरीका के ज़्यादातर राज्यों में बचपन की समाप्ति की उम्र 18 साल मानी गयी है। कुछ राज्यों में वयस्कता की उम्र 19 और 21 मानी गयी है। फ्रांस में 13 साल से कम उम्र के बच्चे को दंडात्मक धारा से अपवाद रखा गया है और 13 से 18 साल तक की उम्र को भी बचपन कहा गया है लेकिन अपराध करने की स्थिति में उन्हें दंडित भी किया जाएगा लेकिन उन्हें दंडित किए जाने की शैली वयस्क लोगों से अलग है। जर्मनी में 21 साल को बचपन की समाप्ति की उम्र माना गया है। अलबत्ता अगर बच्चा 14 से 21 के बीच कोई जुर्म करता है तो उसे दंडित किया जाएगा  लेकिन वयस्क की तुलना में उसे दंडित करने की शैली अलग है। कुवैत, मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, लेबनान और सऊदी अरब में बपचन की समाप्ति की उम्र 18 साल है। इन देशों में 7 साल से कम उम्र के बच्चे हर तरह की ज़िम्मेदारी से दूर हैं जबकि 7 से 18 साल के बीच के बच्चे अपेक्षाकृत ज़िम्मेदारी रखते हैं। बहरैन के क़ानून में बच्चा उसे कहते हैं जिसकी उम्र जुर्म करते वक़्त 15 साल को पार न की हो। मोरक्को के क़ानून के अनुसार, 12 साल से कम उम्र के बच्चे के ख़िलाफ़ दंडात्मक धारा लागू नहीं होगी और बचपन की उम्र 18 साल मानी गयी है। कैनडा में बचपन की समाप्ति की उम्र 19 साल है।

दक्षिणी अम्रीका के क़ानूनी तंत्र में 7 साल से कम उम्र के बच्चों पर किसी तरह की ज़िम्मेदारी नहीं है जबकि 7 से 14 साल के बीच के बच्चे दंडात्मक धारा से मुक्त हैं मगर यह कि न्यायवादी यह साबित कर सके कि अमुक बच्चा अपराध के समय अच्छे और बुरे में अंतर करने की क्षमता रखता था और उसने जान बूझ कर कृत्य किया है। इस स्थिति में उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही हो सकती है। स्वीज़रलैंड में इस देश के संविधान की धारा 64 के अनुसार, प्रांतों को 7 से 18 साल की उम्र के बच्चों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही का अधिकार दिया गया है।

ब्रिटेन के क़ानूनी तंत्र में बच्चों को तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहला गुट उन बच्चों का है जिनकी उम्र 10 साल से कम है। 1933 में बच्चों और नौजवानों से संबंधित पारित क़ानून में आया है कि इस उम्र के बच्चों के ख़िलाफ़ दंडात्मक धारा लागू नहीं होगी। दूसरा गुट उन बच्चों का है जिनकी उम्र 10 से 14 के बीच है। इस उम्र के बच्चे 1988 तक इस स्थिति में क़ानूनी कार्यवाही के पात्र बनते अगर मुक़द्दमा चलाने वाला यह साबित कर पाता कि बच्चे ने भलाई और बुराई को समझने के बावजूद जान बूझकर अपराध किया है। लेकिन 1988 में पारित विशेष क़ानून में उक्त मान्यता रद्द हो गयी। तीसरा गुट उन बच्चों का है जिनकी उम्र 14 से 18 साल है। इस उम्र के बच्चों के ख़िलाफ़ बड़ों की तरह क़ानूनी धारा लागू होगी लेकिन उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही की शैली अलग है। इसमें उनके प्रशैक्षिक सुधार पर ख़ास तौर पर बल दिया गया है।        

बहरहाल इन सब बातों से यह बात स्पष्ट होती है कि बचपन की समाप्ति के लिए कोई उम्र निर्धारित होनी चाहिए।

 

 

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