अल्लामा सय्यद मोहम्मद हुसैन तबातबाई

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अल्लामा सय्यद मोहम्मद हुसैन तबातबाईअल्लामा तबातबाई की एक विशेषता ज्ञान की विभिन्न शाखाओं से संपन्न होना भी है। ज्ञान की प्राप्ति का जुनून और इस दिशा में अथाह पर्यास ने उन्हें ज्ञान के उच्च स्थान पर पहुंचा कर उन्हें अद्वितीय हस्ती बना दिया। यह महान दार्शनिक इस्लामी विचारों व पश्चिमी दर्शनशास्त्र में दक्ष होने के इलावा दूसरे धर्मों व मतों का भी गहरा ज्ञान रखते थे। अल्लामा तबातबाई विश्व के विभिन्न धर्मों व मतों पर चर्चा के लिए सभाएं आयोजित करते थे। इतना ही नहीं बल्कि विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं की समीक्षा भी की है। अल्लामा के एक शिष्य डाक्टर शायगान विश्व के विभिन्न धर्मों के बारे में उनके तुलनात्मक अध्ययन व शोध के बारे में कहते हैः अल्लामा तबातबाई की इस्लामी संस्कृति के बारे में व्यापक ज्ञान होने के इलावा एक विशेषता जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया वह दूसरों के विचारों को तनमयता से सुनने की विशेषता थी। वह सबकी बात सुनते थे, जिज्ञासू थे, आध्यात्म के दूसरे मतों के प्रति बहुत संवेदनशील थे। हमने उनके साथ रहकर ऐसा अनुभव प्राप्त किया जो शायद इसल्मी जगत में अनुपम है। बाइबल, उपनिषदों, गौतम बौद्ध धर के सूत्र और ताउते चींग के अनुवादों की समीक्षा करते थे। उस्ताद अंतर्ज्ञान की ऐसी अवस्था में मूलग्रंथों की व्याख्या करते थे मानो इसके लिखने में वह भी सहभागी हैं।

 

पैग़म्बरे इस्लाम का एक स्वर्ग कथन हैः ज्ञान प्राप्त करो चाहे तुम्हें चीन ही क्यों न जाना पड़े। इस मूल्यवान कथन में चीन से तात्पर्य सुदूर क्षेत्र है और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम अपने इस कथन से मुलमानों को कठिनाइयां सहन करते हुए ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। अल्लाम ने इस्लाम के सच्चे अनुयायी के रूप में पैग़म्बरे इस्लाम के कथन को व्यवहार में उतारा और दिन प्रतिदिन दूसरे मतों के दृष्टिकोणों से अवगत होकर अपने ज्ञान में वृद्धि की। अल्लामा तबातबाई को इस्लामी शिक्षाओं, दूसरे धर्मों विशेष रूप से पूर्वी एशिया के धर्मों व मतों का ज्ञान था। अल्लामा तबातबाई का मानना था कि शुद्ध वास्तविकता पवित्र क़ुरआन में है किन्तु दूसरे धर्म भी वास्ततविकता के किसी न किसी भाग से संपन्न हैं इसलिए वह दूसरे धर्मों के विचारों का सम्मान करते थे। अल्लामा तबातबाई की पवित्र क़ुरआन में अथाह रूचि ने उन्हें पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या पर आधारित अल्मीज़ान जैसी अमर किताब लिखने के लिए प्रेरित किया जो पवित्र क़ुरआन की व्याख्या की दृष्टि से सबसे अच्छी किताबों में गिनी जाती है। उन्होंने अल्मीज़ान में क़ुरआन की एक आयत की दूसरी आयत से व्याख्या की है। अल्लामा तबातबाई के एक शिष्य हुज्जतुल इस्लाम फ़ाकिर मबीदी अल्मीज़ान की विशिष्टता का कारण इसमें व्याख्या की अपनाई गयी अनुपम शैली को मानते हैं और कहते हैः अल्मीज़ान तफ़सीर में पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या आयतों से की गयी है अर्थात ऐ शैली को अपनाया गया है जिसका संबंध पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से है कि अल्लामा ने अपनी शैली इसे अपने काल में पुनर्जीवित किया। स्वर्गीश अल्लामा तबातबाई ने क़ुरआन की आयतों की क़ुरआन की आयतों से व्याख्या करने की शैली अपनाई किन्तु इसके साथ ही उन्होंने पैग़म्बरे स्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों से भी आवश्यकता पड़ने पर लाभ उठाया है। अल्लामा तबातबाई पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की पवित्र क़ुरआन की व्याख्या करने की शैली के बारे में कहते हैः यद्यपि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन पवित्र क़ुरआन की आयतों के अनुसार क़ुरआन के व्याख्याकार हैं किन्तु उनके उपदेशों का आधार और शिक्षा देने व व्याख्या करने की शैली क़ुरआन की क़ुरआन द्वारा व्याख्या रही है जिसे क़ुरआन ने हमें सिखाया है और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण व परंपरा से भी पता चलता है कि उन्होंने पवित्र क़ुरआन की व्याख्या में क़ुरआन से हटकर किसी चीज़ की सहायता नहीं ली है।

 

अल्लामा तबातबाई ने अपनी किताब अल्मीज़ान में समकालीन विश्व की समस्याओं व मामलों तथा विभिन्न मतों व विचारों पर पर्याप्त चर्चा की है। पूर्वी और पश्चिमी मतों द्वारा इस्लाम के जिन बिन्दुओं पर आपत्ति जताई गयी है उनका संतोषजनक उत्तर दिया है। कुल मिलाकर यह कि क़ुरआन की व्याख्या की अल्मीज़ान नाम किताब में क़ुरआन को सत्या का आधार बनाया गया है और इसी की कसौटी पर विभिन्न विचारों व मतों को परखा गया है और अंत में दूसरे मतों व विचारों की त्रुटियों का उल्लेख किया गया है।

उस्ताद शहीद मुत्तहरी के शब्दों मेः अल्लामा तबातबाई क़ुरआन की व्याख्या में अलौकिक कृपा व ज्ञान से वचिंत नहीं रहे। इस संदर्भ में स्वंय अल्लामा का मानना हैः क़ुरआन का एक वास्तविक रूप है जिसका इंकार नहीं किया जा सकता और वह यह है कि जब मनुष्य ईश्वर को अपना अभिभावक बनाए और उसके निकट जो जाए तो उसके सामने ज़मीन व आसमान के रहस्यों का ऐसा द्वार खुल जाता है जिससे वह ईश्वर ऐसी बड़ी निशानियों को देखता है जिसे दूसरे नहीं देख पाते।

इस मूल्यवान तफ़्सीर में नैतिक व आत्मज्ञान संबंधी मामलों की व्यापक व विस्तृत रूप से चर्चा की गयी है और अल्लामा बहुत ही आकर्षक व छोटे वाक्यों में ईश्वर की ओर बुलाते हैं।

 

अल्मीज़ान अरबी साहित्य की दृष्टि से बहुत ही प्रभावी किताब है। इस किताब के लिखने में अरबी साहित्य व व्याकरण की बारीकियों को इस सीमा तक ध्यान में रखा गया है कि अरब धर्मगरुओं और शोधकर्ताओं के लिए इस बात का पता लगाना कठिन है कि इस किताब का लेखक एक ग़ैर अरब है।

अल्लामा के ज्ञन व आत्मज्ञान के विशाल दरिया से केवल अल्मीज़ान नामक रत्न नहीं निकला है बल्कि और भी बहुत सी मूल्यवान किताबें उनकी यादगार के रूप में बाक़ी हैं। बिदायतुल हिकमत नामक किताब दर्शन शास्त्र के विषय पर है जिसमें संक्षेप में बहस की गयी है और यह किताब तर्क पर आधारित ज्ञन के प्यासों के लिए मूल्यवान किताब है। यह किताब अल्लामा के अध्यापन के एक सत्र का निचोड़ है। यह किताब पहले क़ुम के धार्मिक केन्द्र में और फिर देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ायी गयी। इस किताब के बाद अल्लामा ने एक और किताब लिखी जिसका नाम निहायतुल हिकमत है। यह किताब भी दर्शनशास्त्र की शिक्षा पर आधारित है जिसमें दर्शनशास्त्र की विषयवस्तु की विस्तार से चर्चा की गयी है और यह बड़ी कक्षाओं के लिए लिखी गयी है। हाशिया बर किफ़ाया अल्लामा की एक और किताब है जो धर्मशास्त्र के सिद्धांत के बारे में किफ़ाया नामक किताब के हाशिए पर अल्लामा के नोट पर आधारित है।

शीया दर इस्लाम अर्थात इस्लाम में शीया नामक किताब अल्लामा तबातबाई की एक उत्कृष्ट रचना है जो विश्व की विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होकर छप चुकी है। ख़ुलासए तालीमे इस्लाम और रवाबिते इज्तेमाई दर इस्लाम भी अल्लामा की दूसरी मूल्यवान किताबे हैं। आमोज़िशे दीन भी अल्लामा की एक और किताब है जिसमें अल्लामा ने धर्म की आवश्यक व अनिवार्य विषयवस्तुओं की छात्रों के लिए व्याख्या की है। इसी प्रकार रिसालते इन्सान क़ब्ल अज़् दुनिया, क़ुव्वओ फ़ेल, ईश्वर की विशेषता, उसके काम इत्यादि विषयों पर अल्लाम के 26 लेख हैं जिसे अल्लामा ने समाज की आवश्यकता के दृष्टिगत लिखा है। क़ुव्वह का अर्थ होता है मनुष्य में किसी चीज़ को प्राप्त करने की वह क्षमता जो वह चाहे तो प्राप्त कर सकता है और फ़ेल का अर्थ होता है वह क्षमता जो उसमें वर्तमान में विद्यमान है।

 

फ़ारसी शाशी का दीवान अल्लामा के प्रसिद्ध शेरों का संकलन है। इसी प्रकार अल्लामा ने पैग़म्बरे इस्लाम के सामाजिक आचरण के बारे में भी एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक हैः सुननुन नबी। अल्लामा के क़ुम के धार्मिक केन्द्र के शिक्षकों के लिए नैतिक शिक्षा के क्लासों पर आधारित किताब का नाम लुब्बुल लुबाब है।

अल्लामा तबातबाई धर्मशास्त्र, धर्मशास्त्र के सिद्धांत, अल्जबरा, ज्योमितीय और अंकगणित में दक्ष थे। इसी प्रकार वह ज्योतिष शास्त्र में भी दक्ष थे। उन्होंने पवित्र नगर नजफ़ में धर्मगुरु सय्यद अबुल क़ासिम ख़ुन्सारी से गणित की शिक्षा प्राप्त की थी जो अपने समय के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। अल्लामा तबातबाई अरबी साहित्य, अलंकारिक भाषा के प्रयोग और वाक्पटुता में भी अद्वितीय थे।

अल्लामा के बारे में एक रोचक बात यह भी है कि उन्होंने इस्लामी वास्तुकला के क्षेत्र में एक इमारत भी यादगार छोड़ी है। जिस समय अल्लामा शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्र नगर क़ुम गए तो वहां के हुज्जतिया मदरसे की इमारत छोटी थी और इस मदरसे के प्राध्यापक इसका विस्तार करना चाहते थे। वह इस्लामी मदरसे की शैली में एक बड़ी इमारत का निर्माण करवाना चाहते थे जिसमें बहुत से कमरे, मस्जिद, पुस्तकालय, भूमिगत कक्ष व हाल तथा छात्रों की आवश्यकता की दूसरी चीज़े मौजूद हों।

तेहरान समेत दूसरे नगरों के वास्तुकारों ने जितने भी नक़्शे पेश किए वह मदरसे के प्राध्यापक को पसंद न आया यहां तक कि अल्लामा ने भी एक नक़्शा बनाकर प्राध्यापक को दिया जो उन्हें पसन्द आया। नक़्शा पास होने के बाद अल्लामा के निरीक्षण में मदरसे की इमारत का बड़े अच्छे ढंग से निर्माण हुआ।

अल्लामा तबातबाई के एक महान शिष्य हैं आयतुल्लाह जवादी आमुली। वह अल्लामा के बारे में कहते हैः अल्लामा तबातबाई का मन बहुत पवित्र व संवेदनशील था। जिस समय ईश्वर का नाम लिया जाता तो उनकी स्थिति ऐसी हो जाती थी कि लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे। अल्लामा में आध्यात्म में रूचि इतनी अधिक थी कि उनके सभी निकटवर्ती उनकी इस विशेषता से अवगत थे। वह इस्लामी आध्यात्म के बहुत उच्च स्थान पर पहुंचे थे और मुहयुद्दीन अरबी की किताब फ़ुतूहाते मक्किया पर उन्हें पूरा अधिकार था।

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता अल्लामा तबातबाई के बारे में कहते हैः अल्लामा तबातबाई की आध्यात्मिक छवि एक मज़बूत व्यक्ति की है जिसने व्यापक ज्ञान से दृढ़ ईमान व सच्चे आध्यात्म से स्वंय को सुसज्जित किया और अपने इस आश्चर्यचकित व्यक्तित्व से यह सिद्ध किया कि इस्लाम में आध्यात्म और दर्शनशास्त्र एक साथ इकट्ठा हो सकते हैं।

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