ज्ञान आंदोलन

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ज्ञान आंदोलन

विभिन्न विषयों पर इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई के विचार ।

इस चर्चा का विषय है ज्ञान आंदोलन। ईरान में यह आंदोलन बारह साल से जारी है और इसके परिणाम स्वरूप ईरान ने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में तीव्र गति से प्रगति की है और यदि यह गति इसी प्रकार जारी रही तो ईरान का नाम वैज्ञानिक उपलब्धियों और नई खोज के क्षेत्र में विश्व स्तर पर चौथे नंबर पर पहुंच जाएगा। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ज्ञान आंदोलन आरंभ करवाने और इसे तेज़ी से आगे बढ़ाने में बहुत प्रभावी भूमिका निभाई है और उन्होंने लगातार इस विषय को उठाकर तथा संबंधित अधिकारियों का ध्यान इस दिशा में आकृष्ट करवाकर ज्ञान आंदोलन में मूलभूत योगदान किया है। आज के कार्यक्रम में हम इसी आंदोलन के बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के विचार पेश कर रहे हैं। यह कार्यक्रम वरिष्ठ नेता के भाषण के कुछ खंडों पर आधारित है।

 

एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि लगभग दस बारह साल पहले देश में ज्ञान आंदोलन आरंभ हुआ और निरंतर बढ़ता यह आंदोलन जारी रहा तथा इसका दायरा भी बढ़ता रहा। मेरा यह विचार है कि देश में ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज और नई उपलब्धियां अर्जित करने की प्रक्रिया, ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में संघर्षपूर्ण कार्यशैली आरंभ होने के बाद न केवल यह कि कभी रुकी नहीं बल्कि इसमें निरंतर तेज़ी आई है और यह कहना ग़लत नहीं है कि ज्ञान विज्ञान के हर क्षेत्र में यह आंदोलन जारी है। कुछ क्षेत्रों में इसकी गति कम थी तो कुछ में अधिक थी, लेकिन यह आंदोलन सभी क्षेत्रों में नज़र आया। यह वही स्थिति है जिसके लिए हम प्रयासरत थे। बारह साल के दौरान जो विकास हुआ है उसकी तुलना इससे पहले के बारह वर्षों में होने वाले विकास से की जाए तो पता चलेगा कि यह विकास सोलह गुना अधिक है। यह विश्व के मान्यता प्राम्त केन्द्रों की ओर से जारी किए गए आंकड़े हैं। यही ज्ञान आंदोलन इस बात का कारण बना कि विश्व के मान्य केन्द्र और संस्थाएं ईरान के बारे में अपना विचार और अपने आंकड़े पेश करें। इन संस्थाओं का कहना है कि ईरान में विज्ञान के क्षेत्र में होने वाले विकास की गति विश्व की औसत गति से १३ गुना अधिक है। हमें इन तथ्यों को दृष्टिगत रखना चाहिए, यह बहुत महत्वपूर्ण तथ्य हैं। चूंकि हम यह बातें और आंकड़े अकसर सुनते रहते हैं अतः हमें इसकी आदत हो गई है और हमें यह सामान्य बात लगने लगी है। यह आंकड़े ईरान के भीतर की स्थानीय संस्थाओं के आंकड़े नहीं हैं। एसा नहीं है कि कोई व्यक्ति कुछ आंकड़े दे और कोई दूसरा कुछ और आंकड़े दे। यह विश्व के औपचारिक संस्थाएं हैं जो यह विचार व्यक्त कर रही हें और यह आंकड़े जारी कर रही हैं। यह एसी संस्थाएं हैं कि ईरान से जिनके संबंध बहुत मधुर नहीं हैं। मैं यह बात स्वीकार नहीं कर सकता कि विश्व की वर्चस्ववादी और विस्तारवादी सरकारें इन संस्थाओं को पूरी स्वतंत्रता से काम करने और आंकड़े जारी करने की अनुमति देती होंगी किंतु इसके बावजूद यह संस्थाएं ईरान के बारे में यह मानने और स्वीकार करने पर विवश हैं। अगर इन संस्थाओं का बस चले तो वे इस प्रगति का इंकार कर दें, जैसाकि वह हमारी बहुत से उन्नतियों का इंकार करती हैं। यही संस्थाएं अपने आंकड़ों में और अपनी रिपोर्टों में कह रही हैं कि यदि ईरान की वैज्ञानिक प्रगति यदि इसी गति से जारी रही तो पांच साल के भीतर अर्थात वर्ष २०१८ तक ईरान का नाम अमरीका, चीन और ब्रिटेन के बाद चौथे स्थान पर होगा। यह बहुत बड़ी बात है। अल्बत्ता मैं यह नहीं कहता कि यह आंकड़े सत प्रतिशत सही हैं। किंतु बहरहाल इससे यह अनुमान लगाया जा सकता कि देश के विश्वविद्यालयों की कार्यशैली और उपलब्धियां इस प्रकार की हैं। एक सर्वव्यापी आंदोलन आगे बढ़ रहा है।

यदि हम आज देश की युनिवर्सिटियों की स्थिति की तुलना इस्लामी क्रान्ति से पहले देश के विश्वविद्यालयों की स्थिति से करें तो और भी आश्चर्यजनक आंकड़े सामने आएंगे। जिस दिन क्रान्ति सफल हुई, देश में एक लाख सत्तर हज़ार युनिवर्सिटी छात्र थे आज देश में युनिवर्सिटी छात्रों की संख्या ४४ लाख है। अर्थात लगभग २५ गुना की वृद्धि हुई है। उस समय शिक्षकों की संख्या लगभग ५ हज़ार थी और आज यह संख्या बढ़कर ६० हज़ार तक पहुंच गई है। यह बहुत बड़ी बात है। यह बड़ी मूल्यवान प्रगति है।

 

यहां एक सवाल यह पैदा होता है कि अब जब हम विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक प्रगति देख रहे हैं तो क्या हम चैन की सांस लेकर बैठ जाना चाहिए? ज़ाहिर है कि नहीं। हम ज्ञान विज्ञान की अंग्रिम पंक्ति से अभी पीछे हैं। जीवन के लिए आवश्वक बहुत से विज्ञानों और तकनीकों के क्षेत्र में अभी हम पीछे हैं। हमें काम करना होगा। विज्ञान और तकनीक का कारवां ठहरने वाला नहीं है कि हम बैठकर कुछ विश्राम करें। हमें अपनी वर्तमान स्थिति को सुरक्षित रखने ही नहीं बल्कि और तेज़ी से आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए संघर्ष की आवश्यकता है। अतः विश्वविद्यालयों और बुद्धिजीवियों के लिए हमारी अनुशंसा यह है कि ज्ञान आंदोलन की इस गति को किसी भी स्थिति में कम न होने दें। इसमें कभी भी कोई रुकावट न आने दें। हम ज्ञान विज्ञान पर इतना अधिक बल केवल इसलिए नहीं देते कि ज्ञान बहुत सम्मानजनक चीज़ है, ज्ञान का सम्मान तो एसी चीज़ है जिससे किसी को इंकार नहीं है और इस्लाम धर्म ने भी इस पर बहुत अधिक बल दिया है, सम्मान के अलावा यह भी एक सच्चाई हे कि ज्ञान विज्ञान से शक्ति उत्पन्न होती है। यदि कोई राष्ट्र चाहता है कि प्रतिष्ठापूर्वक जीवन व्यतीत करे, सम्मानजनक जीवन बिताए तो उसे शक्ति की आवश्यकता है और किसी भी राष्ट्र को असली शक्ति ज्ञान और विज्ञान से मिलती है। ज्ञान है तो वह आर्थिक शक्ति भी उत्पन्न कर सकता है और राजनैतिक शक्ति भी उत्पन्न कर सकता है और विश्व में सम्मान और प्रतिष्ठा भी दिला सकता है। एक ज्ञानी राष्ट्र, विज्ञान के क्षेत्र में भारी उपलब्धियों वाला राष्ट्र विश्व जनमत की दृष्टि में सम्मानजनक राष्ट्र होता है, उसका आदर किया जाता है। अतः ज्ञान का अपना जो सम्मान है वह तो अपनी जगह है, इससे शक्ति भी मिलती है।

 

विश्व में एक अड़ियल शत्रु मोर्चा है। क्या यह मोर्चा विश्व के अधिकांश देशों पर आधारित है? नहीं, क्या इस मोर्चे में पश्चिम के अधिकतर देश शामिल हैं? नहीं। यह केवल मुट्ठी भर देशों पर आधारित मोर्चा है जो कुछ विशेष कारणों से इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था और उसके विकास के विरोधी हैं और इस विकास को रोकने के लिए वह बार बार नियमों और क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में भी यह उल्लंघन जारी है।

 

मेरा यह आग्रह है कि विज्ञान, वैज्ञानिक प्रगति के साथ ही देश की आम प्रगति का विषय भी विश्वविद्यालयों के भीतर चर्चा में रहना चाहिए। अर्थात देश के विकास में साझीदारी और योगदान की भावना विश्वविद्यालयों में आम होनी चाहिए। यह भावना विश्वविद्यालयों में मौजूद है किंतु इसे और भी प्रबल बनाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में कोई रुकावट नहीं आने देना चाहिए। विश्वविद्यालयो में हमेंशा इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में नई उपलब्धियां अर्जित की जाएं, नई खोज की जाए। इस बात पर आग्रह होना चाहिए कि वैज्ञानिक प्रगति से देश की आवश्यकताओं की पूर्ति हो।

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