चूँकि पवित्र धर्म इस्लाम स्वयं सौंदर्य और सजावट के अनुरूप है, यह अपने अनुयाइयों को आदेश देता है कि वे सदैव कुरूपता और गंदगी के सभी स्वरूपों को स्वयं से और अपने जीवन-पर्यावरण से दूर रखें और जब दूसरों से मिलें तो सुसज्जित और सुंदर स्वरूप में दिखाई दें।
इस लेख में इस्लाम की दृष्टि से ज़ीनत और साज-सज्जा के महत्व पर चर्चा करता है।
ज़ीनत व सज्जा की परिभाषा
ज़ीनत का अर्थ है- सुसज्जित होना और अमल के आरास्ता होने का शाब्दिक अर्थ सजाना और श्रृंगार करना है लेकिन इसके दूसरे अर्थ भी बताए गए हैं जैसे क्रमबद्ध और व्यवस्थित होना, तालमेल और सामंजस्य होना, तथा तैयार और सक्षम होना।
क़ुरआन में आरास्ता और ज़ीनत का स्थान
क़ुरआन की दृष्टि में, सौंदर्य को समझने की क्षमता मनुष्य की प्रकृति में निहित ईश्वरीय वरदानों में से एक है। संसार में सुंदर वस्तुओं की उपस्थिति, मनुष्य की इसी स्वाभाविक इच्छा का उत्तर है और यह परम बुद्धिमान सृष्टिकर्ता की मूल्यवान नेमतों में से एक है।
अल्लाह पवित्र क़ुरआन में कहता है:
"إِنَّا زَیَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْیا بِزِینَةٍ الْکَوَاکِبِ"
हमने ज़मीन के आकाश को तारों की सजावट से सुसज्जित किया है
इस आयत के अनुसार, ईश्वर ने तारों को आकाश की ज़ीनत बनाया है और उसका वर्णन एक नेमत व वरदान के रूप में किया है।
मासूम इमामों (अ.स.) की दृष्टि में आरास्तगी व सजावट का महत्व
हमारे इमामों ने भी ज़ीनत और आरास्तगी के महत्व की ओर संकेत किया है और उन्होंने स्वयं सबसे पहले इस पर अमल किया है। वे फ़रमाते हैं कि यह अल्लाह के निकट एक प्रिय व अच्छी विशेषता है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स.अ.) इस सुंदर और नैतिक परंपरा के महत्व को स्पष्ट करते हुए फ़रमाते हैं:
"बेशक अल्लाह पाक है और पाक चीज़ों को पसंद करता है; वह स्वच्छ है और स्वच्छता को पसंद करता है।"
(إنَّ اللّه طَيِّبٌ يُحِبُّ الطَّيِّبَ، نَظيفٌ يُحِبُّ النَّظافَةَ)
हज़रत अली (अ.स.) ने जो अत्यंत परहेज़गार और सादगी से जीवन व्यतीत करने वाले थे, आरास्तगी और सलीके में लापरवाही को उचित नहीं समझा। उनसे एक रिवायत है जो यह दर्शाती है कि मित्रता, आत्मीयता और रिश्तेदारी के कारण भी सज्जा और आरास्तगी में कोताही से काम नहीं लिया जाना चाहिए।
उन्होंने फ़रमाया: तुममें से हर एक को चाहिए कि वह अपने मुसलमान के लिए भाई के लिए उसी तरह सुसज्जित होकर पेश आये जैसे वह किसी अजनबी के सामने अच्छी हालत में दिखना चाहता है। (لِیَتَزَیَّنَ اَحَدُکُم لأَخیهِ الْمُسْلِمِ کما یَتَزَیِّنَ لِلْغَریبِ الَّذی یُحِبُّ أَنْ یراه فی احسن الهَیئهْ
सौंदर्य या सजावट के प्रकार
सौंदर्य दो प्रकार का होता है:
(अ) आत्मिक सौंदर्य
(ब) बाह्य या दिखावटी सौंदर्य
आत्मिक सौंदर्य को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:
विचारों का सौंदर्य, जिसमें ज्ञान, बुद्धिमत्ता और शिष्टाचार शामिल हैं।
वाणी का सौंदर्य
आचरण का सौंदर्य
बाह्य सौंदर्य
बाह्य सौंदर्य और सजावट का व्यक्ति की व्यक्तिगत और सामाजिक सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मनुष्य की स्वाभाविक इच्छाओं में से एक है और उसकी प्रकृति में समाया हुआ है।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.) ने फ़रमाया है: "النظافة من الإيمان" पवित्रता,स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई ईमान का एक हिस्सा है।