رضوی

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क़ासिम इमाम हसन बिन अली (अ) के बेटे थे और आप की माता का नाम “नरगिस” था मक़तल की पुस्तकों ने लिखा है कि आप एक सुंदर और ख़ूबसरत चेहरे वाले नौजवान थे और आपका चेहरा चंद्रमा की भाति चमकता था। क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अपने चचा की तरफ़ से लड़ने वाले थे आपने 13 या 14 साल की आयु में यज़ीद की हज़ारों के सेना के साथ युद्ध किया और शहीद

हज़रते क़ासिम बिन इमाम हसन अ स

क़ासिम इमाम हसन बिन अली (अ) के बेटे थे और आप की माता का नाम “नरगिस” था मक़तल की पुस्तकों ने लिखा है कि आप एक सुंदर और ख़ूबसरत चेहरे वाले नौजवान थे और आपका चेहरा चंद्रमा की भाति चमकता था।

क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अपने चचा की तरफ़ से लड़ने वाले थे आपने 13 या 14 साल की आयु में यज़ीद की हज़ारों के सेना के साथ युद्ध किया और शहीद हुए।

अबू मख़नफ़ हमीद बिन मुसलिम के माध्यम से कहता है कि हमीद ने रिवायत कीः हुसैन के साथियों में से एक लड़का जो ऐसा लगता था कि जैसे चाँद का टुकड़ा हो बाहर आया उसके हाथ में तलवार थी एक कुर्ता पहन रखा था और उसने जूता पहन रखा था जिसकी एक डोरी काटी गई थी और मैं कभी भी यह नही भूल सकता कि वह उसके बाएं पैरा का जूता था।

हज़रत क़ासिम की शादी

क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अभी 15 साल के नहीं हुए थे, मक़तले अबी मख़नफ़ में आया हैः क़ासिम कर्बला में 14 साल के थे, अल्लामा मजलिसी का मानना है कि हज़रत क़ासिम की शादी के बारे में कोई ठोस दस्तावेज़ मौजूद नहीं है।

हज़रत क़ासिम की शादी को सबसे पहले इन दो किताबों मे बयान किया गया है, शेख़ फ़ख़्रुद्दीन तुरैही की पुस्तक “मुंतख़बुल मरासी”, और दूसरी मुल्ला हुसैन काशेफ़ी की पुस्तक “रौज़तुल शोहदा”। और यह दोनों पहली मक़तल की पुस्तकें है जो फ़ारसी भाषा में लिखी गई हैं।

इस बारे में रिवायत बयान की जाती है कि मदीने से कर्बला की यात्रा के बीच हसन बिन हसन ने अपने चचा से आपकी दो बेटियों में से एक से शादी का प्रस्ताव रखा।

इमाम हुसैन ने कहाः जो तुमको अधिक पसंद हो उसको चुन लो, हसन शर्मा गये और कोई उत्तर नहीं दिया।

 इमाम हुसैन ने फ़रमायाः मैंने तुम्हारे लिये फ़ातेमा का चुनाव किया है जो मेरी माँ और पैग़म्बर की बेटी के जैसी है।

इससे पता चलता है कि कर्बला में फ़ातेमा अवश्य मौजूद थी। अब अगर हम यह मान लें कि क़ासिम की शादी हुई है , तो हमको यह कहना होगा कि इमाम हुसैन की दो बेटिया थी जिनका नाम फ़ातेमा था जिनमें से एक की शादी हसन के साथ की गई और दूसरी की क़ासिम के साथ, या हम यह कहें कि वह बेटी जिसकी शादी क़ासिम के साथ हुई है उसका नाम फ़ातेमा नहीं था, और इतिहास की पुस्तकों ने उसका नाम लिखने में ग़ल्ती की है, और अगर हम क़ासिम की शादी को सही न मानें तो हम यह कह सकते हैं कि रावियों और मक़तल के लिखने वालों ने गल्ती से हसन के स्थान पर क़ासिम का नाम लिख दिया है और यहीं से क़ासिम की शादी की बात सामने आई है।

बहर हाल कारण कोई भी हो लेकिन आशूरा की घटनाओं के अधिकतर शोधकर्ताओं ने क़ासिम की शादी को ग़लत माना है, मोहद्दिस क़ुम्मी मुनतहल आमाल और नफ़सुल महमूल में क़ासिम की शादी का इन्कार करते हैं और लिखते हैं: इतिहास लिखने वालों ने हसन के स्थान पर ग़ल्ती से क़ासिम का नाम लिख दिया है।

शहीद मुतह्हरी भी क़ासिम की शादी को सही नहीं मानते हैं और कहते हैं कि किसी भी मोतबर पुस्तक में इस चीज़ के बारे में बयान नहीं किया गया है और हाजी नूरी का भी यह मानना है कि मुल्लाह हुसैन काशेफ़ी वह पहले इंसान है जिन्होंने अपनी पुस्तक रौज़तुश शोहदा में इस बात को लिखा है और यह ग़लत है।

शबे आशूर

आशूर की रात को क़ासिम की आयु 13 (1) या 16 साल थी। (2)

मक़तल की किताबों में है कि आशूर की रात इमाम हुसैन ने चिराग़ को बुझा दिया और फ़रमायाः जो भी जाना चाहता है चला जाए, लेकिन कोई न गया हर तरफ़ से रोने की आवाज़े बुलंद हो गई, उसके बाद इमाम हुसैन ने आशूर के दिन शहीद होने वालों के नाम बताने शुरू किये, कभी का अब्बास तुम्हारे शाने काटे जाएंगे, तो कभी कहा अकबर तुम्हारे सीने में बरछी लगेगी, कभी हबीब का नाम लिया को तभी जौन का, कभी औन व मोहम्मद को शहादत की सूचना दी तो कभी मुसलिम बिन औसजा को इस बीच क़ासिम हैं जो एक कोने में खड़े हुए हैं और अपने नाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन चूँकि क़ासिम की आयु अभी बहुत कम है इसलिये उनसे धैर्य नहीं रखा जाता है और इमाम हुसैन से कहते हैं, हे चचा क्या कल मैं भी शहीद होऊँगा?

हुसैन क़ासिम से पूछते हैं कि मौत तुम्हारी नज़र में कैसी है?

आपने कहाः शहद से अधिक मीठी

इमाम ने कहाः हां ऐ क़ासिम कल तुम भी शहीद होगे।

युद्ध की अनुमति मांगना

क़ासिम औन और मोहम्मद के बाद इमाम हुसैन के पास आते हैं और कहते हैं चचा जान अब मुझे में मरने की अनुमति दे दीजिये। लेकिन हुसैन ने आपको अनुमति नहीं दी आपने बहुत इसरार किया और आख़िरकार इमाम ने उनको अनुमति दे दी, एक रिवायत में है कि इमाम सज्जाद (अ) से एक हदीस में आया है कि क़ासिम अली अकबर के बाद मैदाने जंग में गये हैं। (3)

आप मैदान में आते हैं और परंपरा के अनुसार सिंहनाद पढ़ते हैं

إن تُنكِرونی فَأَنَا فَرعُ الحَسَن        سِبطُ النَّبِیِّ المُصطَفى وَالمُؤتَمَن

هذا حُسَینٌ كَالأَسیرِ المُرتَهَن (4)        بَینَ اُناسٍ لا سُقوا صَوبَ المُزَن

उसके बाद आपने युद्ध करना शुरू किया और 35 यज़ीदियों को मार गिराया। (5)

उमरो बिन सईद बिन नफ़ैल अज़्ज़ी ने जब आपको जंग करते हुए देखा तो क़सम खाईः अबी उस पर हमला करूँगा और उसको मार दूँगा।

उससे लोगों ने कहाः सुब्हान अल्लाह यह तुम क्या कार्य करोगे?

तुम देख रहे हो कि उसको चारों तरफ़ से घेरा चा चुका है और यही लोग उसको मार देंगे।

उसने कहाः ईश्वर की सौगंध मैं स्वंय उसकी हत्या करूँगा, उसने यह कहा और क़ासिम पर हमला कर दिया, और क़ासिम के सर पर तलवार मारी, क़ासिम घोड़े से गिर गये।

आवाज़ दी चचा जान सहायता कीजिये, इमाम हुसैन ने नफ़ैल पर हमला किया और उसका हाथ काट दिया, घुड़सवार नफ़ैल को बचाने के लिये दौड़े लेकिन इस दौड़ में क़ासिम का नाज़ुक बदन घोड़ों की टापों के बीट माला हो गया, और क़ामिस इस दुनिया से चले गये। (6)

ज़ियारते नाहिया में हज़रत क़ासिम पर यूँ मरसिया पढ़ा गया हैः

السَّلامُ عَلَى القاسِمِ بنِ الحَسَنِ بنِ عَلِیٍّ، المَضروبِ عَلى هامَتِهِ، المَسلوبِ لامَتُهُ، حینَ نادَى الحُسَینَ عَمَّهُ، فَجَلا عَلَیهِ عَمُّهُ كَالصَّقرِ، وهُوَ یَفحَصُ بِرِجلَیهِ التُّرابَ وَ الحُسَینُ یَقولُ : «بُعداً لِقَومٍ قَتَلوكَ ! و مَن خَصمُهُم یَومَ القِیامَةِ جَدُّكَ و أبوكَ

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(1)     मक़तले ख़्वारज़मी

(2)     लेबाबुल अंसाब

(3)     अमाली शेख़ सदूक़, पेज 226

(4)     मक़तले ख़्वारज़मी

(5)     मक़तले ख़्वारज़मी

(6)     तरीख़े तबरी और प्रसिद्ध स्रोत

 

लेबनान के प्रमुख शिया विद्वानों में से एक, अल्लामा शेख हसन तराद ने इल्म, तक़वा और यक़ीन से भरी ज़िंदगी गुज़ारने के बाद 93 वर्ष की आयु में आखिरी साँस ली।

अल्लामा शेख हसन तराद ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ लेबनान में इस्लामी प्रतिरोध के महान समर्थकों में से एक थे और उन्होंने दक्षिणी लेबनान में ज़ायोनी दुश्मन के खिलाफ प्रतिरोधी बलों के बेमिसाल अभियानों का समर्थन किया था।

उन्होंने महान विद्वानों और स्कॉलरों, मराजेए तक़लीद और फ़क़ीहों के साथ अध्ययन किया और विभिन्न क्षेत्रों में शहीद सय्यद मुहम्मद बाकिर सद्र और इमाम मूसा सद्र के साथ साथ रहे। नजफे अशरफ और लेबनान में आपके शागिर्दों की एक बड़ी तादाद मौजूद है।

आयतुल्लाह मुहम्मद याकूबी ने कहा: महिलाएं महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के लिए भी सर्वश्रेष्ठ रोल मॉडल हो सकती हैं।

इराकी धर्मगुरु अयातुल्ला शेख मुहम्मद याकूबी ने नजफ अशरफ में अपने कार्यालय में महिला प्रचारकों के साथ आयोजित एक बैठक में बोलते हुए कहा: महिलाएं महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के लिए भी सबसे अच्छी रोल मॉडल हो सकती हैं।

उन्होंने आगे कहा: अल्लाह तआला ने विश्वासियों के लिए फिरौन की पत्नी और इमरान की बेटी मरियम का उदाहरण भी दिया है, और यह उदाहरण सामान्य है और इसमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं। और अल्लाह ने उन लोगों के लिए एक दृष्टांत बनाया जो फिरौन की पत्नियों पर विश्वास करते थे और इमरान की बेटी मरियम (अल-तहरीम: 11-12)। और अल्लाह ईमानवालों के लिए फिरऔन की पत्नी का उदाहरण प्रस्तुत करता है जब उसने कहा: हे मेरे पालनहार! मेरे लिए जन्नत में एक घर बनाओ और मुझे फिरऔन और उसके काफिर कामों से छुड़ाओ और ज़ालिम लोगों से मुझे छुड़ाओ। और दूसरा इमरान की बेटी मरियम  का उदाहरण बताता है।

आयतुल्लाह याकूबी ने एक और महान महिला के नाम का उल्लेख किया और कहा: हज़रत उम्मे सलमा, जो पवित्र पैगंबर की पत्नी हैं, उस समय इस्लाम का एक किला माना जाता था।

इस इराकी विद्वान ने आगे कहा: ईश्वर और उसके रसूल (स) पर विश्वास और उसके आदेशों के प्रति समर्पण, उच्च नैतिकता और सत्य में दृढ़ता और उसके मार्ग में बलिदान और अत्याचार और दंगाइयों, अपराधियों और खोजकर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्धा।

आयतुल्लाह याकूबी ने कहा: हज़रत उम्मे सलमा वे कभी भी सच्चाई से विचलित नहीं हुईं और न ही उन्होंने किसी भी प्रकार के लालच, लालच, पाखंड या पूर्वाग्रह को पास होने दिया। यही कारण है कि पवित्र पैगंबर (स) हज़रत ख़दीजा बिन्त ख़ुवेलिद के बाद उन्हें सबसे अधिक पसंद करते थे।

भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र संघ और विशेष रूप से सुरक्षा परिषद में बदलाव की मांग उठाई है। यूएनएससी में बदलाव की मांग को दोहराते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के प्रभारी राजदूत आर. रविंद्र ने कहा कि 'हाल ही में वैश्विक भू-राजनीतिक घटनाओं ने स्पष्ट रूप से दिखाया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की रक्षा करने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में असमर्थ है।

भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव की मांग कर रहा है। अब एक बार फिर भारत ने मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा काउंसिल (यूएनएससी) में बदलाव की मांग की है और कहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में जब दुनियाभर में संघर्ष बढ़ रहे हैं, उनमें यूएनएससी पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ साबित हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में एक उच्चस्तरीय परिचर्चा में जी4 देशों-ब्राजील, जर्मनी, जापान और भारत की ओर से बयान देते हुए भारतीय राजदूत ने ये बात कही।

 

 

ज़ायोनी सेना ने ग़ज़्ज़ा पट्टी के उत्तर में खान यूनिस शहर में हमद क्षेत्र को खाली करने की चेतवानी दी है जिसके बाद फ़िलिस्तीनी नागरिक इस क्षेत्र से निकल कर सुरक्षित स्थान की तलाश में भटक रहे हैं।

:قال الامام المجتبي عليه السلام

ما بَقِىَ فِى الدُّنْيا بَقِيَّةٌ غَيْرَ هَذَا القُرآنِ فَاتَّخـِذُوهُ إماما يَدُلُّكُمْ عـَلى هُداكُمْ، وَإنَّ أَحَقَ النّاسِ بِالقُرآنِ مَنْ عَمِلَ بِهِ وَإنْ لَمْ يَحْفَظْهُ وَأَبْعَدَهُمْ مِنْهُ مَنْ لَمْ يَعْمَلْ بِهِ وَإنْ كانَ يَقْرَأُهُ

ارشاد القلوب، ديلمى، ص۱۰۲

इमाम हसन मुज्तबा :

इस फानी दुनिया में जो चीज़ बाक़ी रह जाएगी वह क़ुरआने करीम है। अतः क़ुरआने मजीद को अपना इमाम, रहबर और पेशवा क़रार दो ताकि सिराते मुस्तक़ीम और सीधे रस्ते की तरफ हिदायत हो।

बेशक क़ुरआन के क़रीबी लोग वह हैं को उस पर अमल करते हैं चाहे उन्होंने उसकी ज़ाहिरी आयात को हिफ़्ज़ न किया हो और क़ुरआन से सबसे दूर वह लोग हैं जो उस पर अमल नहीं करते चाहे वह क़ारियाने क़ुरआन ही क्यों न हों।

 

मीडिया सूत्रों ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के पश्चिम में "दश्त बरची" के शिया इलाके में "सरकारी तेल टैंक" क्षेत्र में एक आतंकवादी बम विस्फोट की सूचना दी है।

काबुल के पश्चिम में एक सूत्र ने अबना रिपोर्टर को बताया कि रविवार शाम को काबुल शहर के दश्त बरची इलाके में एक विस्फोट के परिणामस्वरूप, एक नागरिक शहीद हो गया और चार महिलाओं सहित 12 अन्य नागरिक भी घायल हो गए।

इस सूत्र के अनुसार, घायलों को काबुल शहर के "अली जिनाह" और "आपातकालीन" अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया है।

 

तेहरान में शहीद इस्माइल हानिया पर ज़ायोनी शासन के हमले के बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई की घोषणा की है। ईरान के हमले के समय को लेकर विश्व मीडिया में तरह-तरह की टिप्पणियों और विश्लेषण का दौर जारी हैं।

ऐसे में बीते दिन मस्जिद जमकरान में ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई की मौजूदगी की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। क्षेत्रीय मुद्दों पर गहरी नजर रखने वाले इराकी विश्लेषक नजाह मोहम्मद अली ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए एक्स पर लिखा है कि  सुप्रीम लीडर ने कल रात जमकरान मस्जिद में हाज़िरी दर्ज कराई। आशा है जल्दी ही कुछ अच्छी खबर सुनने को मिलेगी।

इराकी पर्यवेक्षक ने ईरान के जोरदार जवाबी हमले के बारे में आगे लिखा है कि ज़ायोनी युद्ध मंत्री ने कहा है कि ईरान और प्रतिरोध संगठनों के हमलों को देखते हुए इस्राईल और उन्हें इन दिनों कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है।

 

इमाम हुसैन अ.स. के अरबईन के मौके पर होने वाला मार्च दुनिया के सबसे शानदार और भावुक धार्मिक समारोहों में से एक है जो हमेशा त्याग, सहानुभूति, ईमानदारी और यक़ीन के सबसे सुंदर उदाहरण पेश करता है।

भारत के एक पूर्व राजनयिक भद्र कुमार का ख़याल ​​है कि ईरान अपनी स्मार्ट शक्ति का इस्तेमाल करके, इजराइली शासन की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रभावी हमला करेगा और इस्राईल के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन कम कर देगा।

"ईरान के स्मार्ट पॉवर से इज़राइल को बड़ा झटका" शीर्षक के अंतर्गत एक लेख में भारत के पूर्व राजनयिक एम. के. भद्र कुमार पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रमों पर रोशनी डालते हुए इस क्षेत्र में ईरान की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।

उनका मानना ​​है कि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में हालिया बदलाव, ईरान की बढ़ती शक्ति और अमेरिका की ईरान विरोधी नीतियों के लिए क्षेत्रीय समर्थन में कमी के संकेत देते हैं।

लेखक यह इशारा करते हुए कि ईरान की नई सरकार, दुनिया के साथ रचनात्मक बातचीत की कोशिश में है,  इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ईरान की विदेश नीति में इन परिवर्तनों के इज़राइल और अमेरिका के के लिए महत्वपूर्ण परिणाम होंगे।

उनका कहना था कि श्री मसऊद पिज़िश्कियान की चुनाव में जीत, ईरान में एक धड़े की शक्ति को ज़ाहिर करती है, एक ऐसा धड़ा जो उन पुरानी नीतियों को अप्रभावी बना सकता है जिनका इस्तेमाल देश के दुश्मनों द्वारा ईरान में सामाजिक अस्थिरता भड़काने के लिए किया जाता रहा है।

श्री कुमार ने इन घटनाक्रमों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर भी रोशनी डाली और डॉक्टर पिज़िश्कियान से तत्काल बैठक के लिए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी के अनुरोध की तरफ़ इशारा किया।

श्री भद्र कुमार ग्रॉसी के इस क़दम को ईरान और आईएईए के बीच बातचीत के महत्व का संकेत मानते हैं जिससे परमाणु सहयोग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हो सकता है।

लेख के दूसरे हिस्से में भारत के पूर्व राजनयिक एम. के. भद्र कुमार ईरान के प्रति फ़ार्स की खाड़ी के देशों के दृष्टिकोण में बदलाव की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि ये देश, विशेष रूप से सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात, वाशिंगटन के ईरान विरोधी रुख से ख़ुद को दूर कर रहे हैं।

वह अरब लीग की आतंकवादी संगठनों की सूची से हिजबुल्लाह का नाम हटाने को, जिसे अमेरिकी दबाव के कारण शामिल किया गया था, दृष्टिकोण के इस बदलाव के इशारों में एक मानते हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इन बदलावों को ख़ासकर इस्राईल के लिए एक गंभीर ख़तरा माना जाता है।

वह कहते हैं:

आम तौर पर, फ़ार्स की खाड़ी के रजवाड़े, जो ईरान के घटनाक्रमों पर क़रीब से नज़र रखते हैं, पैराडाइम में बदलाव महसूस कर रहे हैं। अहम बात यह है कि श्री पिज़िश्कियान, कट्टरपंथ के परिणामों से निपटने के लिए एक क्षेत्रीय गठबंधन पर ज़ोर देते हैं।

श्री कुमार डॉक्टर पिज़िश्कियान के शब्दों का भी हवाला देते हैं कि: कट्टरपंथियों की आवाज़ से लगभग दो अरब शांतिप्रिय मुसलमानों की आवाज़ दबनी नहीं चाहिए, इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है।

लेखक लिखते हैं कि 1979 की इस्लामी क्रांति के पैंतालीस साल बाद, इस्लामी गणतंत्र को संयम और तर्कसंगतता की आवाज़ के रूप में पेश किया गया! वह कहते हैं:

अलबत्ता, इसका मतलब यह नहीं है कि ईरान और प्रतिरोध के मोर्चे के अन्य सदस्य, इज़राइल की हालिया कार्रवाइयों पर अपने जवाबी हमले को नरम कर देंगे। हनिया की हत्या का ईरान का प्रतिशोध, निश्चित रूप से उससे भी अधिक गंभीर और दर्दनाक होगा जिसका तेल अवीव ने अब तक अनुभव किया है।

भारत के पूर्व राजनयिक श्री कुमार का मानना ​​है कि ईरान के साथ युद्ध, अरब देशों के साथ इजराइली शासन के पिछले युद्धों से बहुत अलग होगा। उनके अनुसार, यह युद्ध तब तक अंतहीन रहेगा जब तक इज़राइल फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना की अनुमति नहीं दे देता।

वह लिखते हैं: इजराइल की जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाएगी, जैसा कि हिज़्बुल्लाह के साथ हुआ था। ईरान के मध्यावधि और दीर्घकालिक फ़ायदे, इज़राइल की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं और इसके साथ ही, युद्ध कई मोर्चों पर और ग़ैर-सरकारी खिलाड़ियों के साथ होगा।

आर्टिकल में आगे आया है:

अमेरिका की ओर से किसी प्रकार की हरी झंडी के बिना, इस बात पर विश्वास करना कठिन है कि इज़राइल ने अपने दम पर ईरान की संप्रभुता पर हमला किया होगा जो कि युद्ध के समान होता है। यह "ज्ञात अज्ञात" वजह स्थिति को बहुत ही खतरनाक बना देती है।

ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला ख़ामेनेई पहले ही इजराइली क्षेत्र पर सीधे हमले का आदेश दे चुके हैं। श्री कुमार ने क्षेत्र में अमेरिकी नौसैनिक बलों की तैनाती की ओर भी इशारा किया और इसे स्थिति के बिगड़ने और ईरान और इजराइल के बीच तनाव बढ़ने की संभावना का संकेत क़रार दिया है।

इस संबंध में वह पेंटागन द्वारा जारी रिपोर्टों का हवाला देते हैं जो फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र और पूर्वी भूमध्य सागर में 12 अमेरिकी युद्धपोतों की तैनाती के बारे में जानकारी देती हैं।

भारत के पूर्व राजनयिक श्री कुमार के अनुसार, इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू, पश्चिम एशिया में एक नई वास्तविकता बनाने की कोशिश कर रहे हैं और इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका के समर्थन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

कुमार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि नेतन्याहू इन प्रयासों में न केवल निर्देशक बल्कि स्क्रिप्ट राइटर की भूमिका भी निभाते हैं और अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को उनके साथ समन्वय करने पर मजबूर करना चाहते हैं।

आख़िर में, भद्र कुमार ने यह नतीजा दिया कि पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रम, क्षेत्र में शक्ति संतुलन में बड़े बदलाव का संकेत देते हैं जिसका क्षेत्र की भविष्य की नीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

उनके अनुसार, ईरान एक अहम खिलाड़ी के रूप में, इजराइल की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रभावी हमला करने और इस शासन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को कम करने के लिए अपनी स्मार्ट शक्ति का इस्तेमाल करने में कामयाब रहा है।

 

सोत्र:

M.K. Bhadrakumar. 2024. Iran To Hit Israel Hard With Smart Power. Eurasiareview