رضوی

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जन्नतुल बक़ी तारीख़े इस्लाम के जुमला मुहिम आसार में से एक है, अफ़सोस! बीती हुई सदी में जिसे वहाबियों ने 8 शव्वाल 1345 मुताबिक़ २१ अप्रैल  1925 को शहीद करके दूसरी कर्बला की दास्तान को लिख कर अपने यज़ीदी किरदार और अक़ीदे का वाज़ेह तौर पर इज़हार किया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,जन्नतुल बक़ी तारीख़े इस्लाम के जुमला मुहिम आसार में से एक है, अफ़सोस! बीती हुई सदी में जिसे वहाबियों ने 8 शव्वाल 1345 मुताबिक़ २१ अप्रैल  1925 को शहीद करके दूसरी कर्बला की दास्तान को लिख कर अपने यज़ीदी किरदार और अक़ीदे का वाज़ेह तौर पर इज़हार किया है।

क़ब्रिस्ताने बक़ीअ (जन्नतुल बक़ीअ) के तारीख़ को पढ़ने से मालूम होता है कि यह मक़बरा सदरे इस्लाम से बहुत ही मोहतरम का मुक़ाम रखता था।

हज़रत रसूले ख़ुदा स.ल.व. ने जब मदीना मुनव्वरा हिजरत की तो क़ब्रिस्तान बक़ीअ मुसलमानों का इकलौता क़ब्रिस्तान था और हिजरत से पहले मदीना मुनव्वरा के मुसलमान ‘‘बनी हराम’’ और ‘‘बनी सालिम’’ के मक़बरों में अपने मुर्दों को दफ़नाते थे और कभी कभार तो अपने ही घरों में मुर्दों को दफ़नाते थे और हिजरत के बाद रसूले ख़ुदा हज़रत मुहम्मद स॰ के हुक्म से बक़ीअ जिसका नाम ‘‘बक़ीउल ग़रक़द’’ भी है मक़बरे के लिये मख़सूस हो गया।

इसमें सबसे पहले जो सहाबी दफन हुए उनका नाम था उस्मान इब्ने मधून जिनका इन्तेका ३ हिजरी की तीसरी शाबान हो हुआ था |

जन्नतुल बक़ीअ हर एतबार से तारीख़ी, मुहिम और मुक़द्दस है। हज़रत रसूले ख़ुदा स॰ ने जंगे ओहद के कुछ शहीदों को और अपने बेटे ‘‘इब्राहीम’’ अ॰ को भी जन्नतुल बक़ीअ में दफ़नाया था। इसके अलावा मुहम्मद और आले मुहम्मद सलावातुल्लाहे अलैइहिम अजमईन के मकतब यानी मकतबे एहले बैत अ॰ के पैरोकारों के लिये बक़ीअ के साथ इस्लाम और ईमान जुड़े हुऐ हैं क्योंकि यहां पर पांच  मासूमीन अलै0 पहली जनाब ऐ फातिमा ज़हरा बीनते हज़रात मुहम्मद (s.अ.व) ,दूसरे इमाम हज़रत हसन बिन अली अलैहिस्सलाम, तीसरे  इमाम हज़रत अली बिन हुसैन ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम, चौथे  इमाम हज़रत मुहम्मद बिन अली अलबाक़र अलैहिस्सलाम, और पांचवे  इमाम हज़रत जाफ़र बिन सादिक़ अलैहिस्सलाम के दफ़्न होने की जगह है।

       इसके अलावा अज़वाजे रसूले ख़ुदा स॰ हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स॰, और हज़रत अली अ॰ की ज़ौजा, उम्मुल बनीन फ़ात्मा बिन्ते असद वालिदा मुकर्रमा अलमदार कर्बला हज़रत अबुलफ़ज़्ल अलअब्बास अलै0, हज़रत के चचा ‘‘अब्बास’’ और कई बुज़ुर्ग सहाबी हज़रात दफ़्न हैं।

       तारीख़े इस्लाम का गहवारा ‘‘मक्का मुकर्रमा’’ और ‘‘मदीना मुनव्वरा’’ रहा है जहाँ तारीखे इस्लाम की हैसिय्यत का एक मरकज़ है लेकिन वहाबियत के आने से ‘‘शिर्क’’ के उन्वान से बेमन्तक़ व बुरहान क़ुरआनी इन तमाम तारीख़ी इस्लामी आसार को मिटाने का सिलसिला भी शुरू हुआ जिस पर आलमे इस्लाम में मकतबे अहले बैत अलैहिमुस्सलाम, को छोड़ कर सभी मुजरिमाना ख़ामोशी इखि़्तयार किये हुए हैं।

        तारीख़ को पढ़ने और सफर करने वालों और सफ़रनामों से तारीख़े इस्लाम के आसारे क़दीमा की हिफ़ाज़त और मौजूदगी का पता मिलता है अज़ जुमला जन्नतुल बक़ी कि जिसकी दौरे वहाबियत तक हिफ़ाज़त की जाती थी और क़ब्रों पर कतीबा लिखे पड़े थे जिसमें साहिबे क़ब्र के नाम व निशानी सब्त थे वहाबियों ने सब महू कर दिया है। यहाँ तक कि अइम्मा मासूमीन अलैइहिमुस्सलाम की क़ब्रों पर जो रौज़े तामीर थे उनको भी मुसमार कर दिया गया है।

       ऐसे फ़ज़ीलत वाले क़ब्रिस्तान में आलमे इस्लाम की ऐसी अज़ीमुशान शख़सियतें आराम कर रही है जिनकी अज़मत व मंजि़लत को तमाम मुसलमान, मुत्तफ़ेक़ा तौर पर क़ुबूल करते हैं। आइये देखें कि वे शख़सियतें कौन हैः

(1)    इमाम हसन मुजतबा (अ॰)

 

       आप पैग़म्बरे अकरम स॰ के नवासे और हज़रत अली व फ़ात्मा के बड़े साहबज़ादे हैं। मन्सबे इमामत के एतेबार से दूसरे इमाम और इसमत के लिहाज़ से चैथे मासूम हैं। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हुसैन ने आपको पैग़म्बरे इस्लाम स॰ के पहलू में दफ़न करना चाहा मगर जब एक सरकश गिरोह ने रास्ता रोका और तीर बरसाये तो इमाम हुसैन ने आपको बक़ीअ में दादी की क़ब्र के पास दफ़न किया। इस सिलसिले में इब्ने अब्दुल बर से रिवायत है कि जब ख़बर अबूहुरैरह को मिली तो कहाः ‘‘ख़ुदा की क़सम यह सरासर ज़ुल्म है कि हसन अ॰ को बाप के पहलू में दफ़न होने से रोका गया जबकि ख़ुदा की क़सम वह रिसालत मआब स॰ के फ़रजंद थे। आपके मज़ार के सिलसिले में सातवीं हिजरी क़मरी का सय्याह इब्ने बतूता अपने सफ़रनामे में लिखता है किः बक़ीअ में रसूले इस्लाम स॰ के चचा अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब और अबुतालिब के पोते हसन बिन अली अ॰ की क़ब्रें हैं जिनके ऊपर सोने का कु़ब्बा है जो बक़ीअ के बाहर ही से दिखाई देता है। दोनों की क़ब्रें ज़मीन से बुलंद हैं और नक़्शो निगार से सजे हैं। एक और सुन्नी सय्याह रफ़त पाशा भी नक़्ल करता है कि अब्बास और हसन अ॰ की क़ब्रें एक ही क़ुब्बे में हैं और यह बक़ीअ का सबसे बुलंद क़ुब्बा है। बतनूनी ने लिखा है किः इमाम हसन अ॰ की ज़रीह चांदी की है और उस पर फ़ारसी में नक़्श हैं। मगर आज आले सऊद अपनी नादानी के नतीजे में यह अज़ीम बारगाह और बुलंद व बाला क़ुब्बा मुन्हदिम कर दिया गया है और इस इमाम की क़ब्रे मुतहर ज़ेरे आसमान है।

(2)    हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन सज्जाद (अ॰)

       आपका नाम अली है और इमाम हुसैन अ॰ के बेटे हैं और शियों के चैथे इमाम हैं। आपकी विलादत 38 हिजरी में हुई। आपके ज़माने के मशहूर सुन्नी मुहद्दिस व फ़क़ीह मुहम्मद बिन मुस्लिम ज़हरी आपके बारे में कहते हैं किः मैंने क़ुरैश में से किसी को आपसे बढ़कर परहेज़गार और बुलंद मर्तबा नहीं देखा यही नहीं बल्कि कहते हैं किः दुनिया में सब से ज़्यादा मेरी गर्दन पर जिसका हक़ है वो अली बिन हुसैन अ॰ की ज़ात है। आपकी शहादत 94 हि0 में25 मुहर्रमुलहराम को हुई और बक़ीअ में चचा इमाम हसन अ॰ के पहलू में दफ़न किया गया। रफ़त पाशा ने अपने सफ़रनामे में जि़क्र किया है कि इमाम हसन अ॰ के पहलू में एक और क़ब्र है जो इमाम सज्जाद अ॰ की है जिसके ऊपर क़ुब्बा है मगर अफ़सोस 1344 में दुश्मनी की आंधी ने ग़ुरबा के इस आशयाने को भी न छोड़ा और आज इस अज़ीम इमाम और अख़लाक़ के नमुने की क़ब्र वीरान है।

(3)    हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र (अ॰)

       आप रिसालत मआब के पांचवे जानशीन व वसी और इमाम सज्जाद अ॰ के बेटे हैं नीज़ इमाम हसन अ॰ के नवासे और इमाम हुसैन अ॰ के पोते हैं। 56 हि0 में विलादत और शहादत हुई। वाक़-ए कर्बला में आपकी उमरे मुबारक चार साल की थी, इब्ने हजर हेसमी (अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा के मुसन्निफ़) का बयान है कि इमाम मुहम्मद बाक़र अलै0 से इल्म व मआरिफ़, हक़ाइक़े अहकाम, हिकमत और लताइफ़ के ऐसे चश्मे फूटे जिनका इनकार बे बसीरत या बदसीरत व बेबहरा इन्सान ही कर सकता है। इसी वजह से यह कहा गया है कि आप इल्म को शिगाफ़ता करके उसे जमा करने वाले हैं, यही नहीं बल्कि आप ही परचमे इल्म के आशकार व बुलंद करने वाले हैं। इसी तरह अब्दुल्लाह इब्ने अता का बयान है कि मैंने इल्मे वफ़क़ा के मशहूर आलिम हकम बिन उतबा (सुन्नी आलिमे दीन) को इमाम बाक़र के सामने इस तरह ज़ानुए अदब तय करके आपसे इल्मी इस्तेफ़ादा करते हुए देखा जैसे कोई बच्चा किसी बहुत अज़ीम उस्ताद के सामने बैठा हो।   

       आपकी अज़मत का अंदाज़ा इस वाकि़ये से बहुत अच्छी तरह लगाया जा सकता है कि हज़रत रूसले अकरम स॰ ने जनाब जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी जैसे जलीलुक़दर सहाबी से फ़रमाया था किः ऐ जाबिर अगर बाक़र अ॰ से मुलाक़ात हो तो मेरी तरफ़ से सलाम कहना। इसी वजस से जनाब जाबिर आपकी दस्तबोसी (हाथों को चूमना) में फ़ख्र (गर्व) महसूस करते थे और ज़्यादातर मस्जिदे नबवी में बैठ कर रिसालतपनाह की तरफ़ से सलाम पहुंचाने की फ़रमाइश का तज़करा करते थे।

       आलमे इस्लाम बताऐ कि ऐसी अज़ीम शख़सियत की क़ब्र को वीरान करके आले सऊद ने क्या किसी एक फि़रक़े का दिल तोड़ा है या तमाम मुसलमानों को तकलीफ़ पहुंचाई है।

(4)    हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰:

       आप इमाम मुहम्मद बाक़र अ॰ के फ़रज़न्दे अरजुमंद और शियों के छटे इमाम हैं।83 हिज0 में विलादत और 148 में शहादत हुई। आपके सिलसिले में हनफ़ी फि़रके़ के पेशवा इमाम अबुहनीफ़ा का बयान है कि मैंने किसी को नहीं देखा कि किसी के पास इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰ से ज़्यादा इल्म हो। इसी तरह मालिकी फि़रक़े के इमाम मालिक कहते हैं। किसी को इल्म व इबादत व तक़वे में इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰ से बढ़ कर न तो किसी आँख ने देखा है और न किसी कान ने सुना है और न किसी के ज़हन में यह बात आ सकती है। नीज़ आठवें क़र्न में लिखी जाने वाली किताब ‘‘अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा’’ के मुसन्निफ़ ने लिखा है किः इमाम सादिक़ से इस क़दर इलम सादिर (ज़ाहिर) हुए हैं कि लोगों की ज़बानों पर था यही नहीं बल्कि बकि़या फि़रक़ों के पेशवा जैसे याहया बिन सईद, मालिक, सुफि़यान सूरी, अबुहनीफ़ा वग़ैरा आपसे रिवायत नक्ल करते थे। महशहूर मोअर्रिख़ इब्ने ख़लकान रक़्मतराज़ हैं कि मशहूर ज़मानाए शख़सियत और इल्मुल जबरा के मूजिद जाबिर बिन हयान आपके शागिर्द थे

       मुसलमानों की इस अज़ीम हसती के मज़ार पर एक अज़ीमुश्शान रौज़ा व क़ुब्बा था मगर अफ़सोस एक बे अक़्ल गिरोह की सरकशी के नतीजे में इस वारिसे पैग़म्बर की लहद आज वीरान है।

 

(5)    जनाबे फ़ात्मा बिन्ते असद

       आप हज़रत अली की माँ हैं और आप ही ने जनाबे रसूले ख़ुदा स॰ की वालिदा के इन्तिक़ाल के बाद आँहज़रत स॰ की परवरिश फ़रमाई थी, जनाबे फ़ातिमा बिन्ते असद को आपसे बेहद उनसियत व मुहब्बत थी और आप भी अपनी औलाद से ज़्यादा रिसालत मआब का ख़याल रखती थीं। हिजरत के वक़्त हज़रत अली के साथ मक्का तशरीफ़ लाईं और उम्र के आखि़र तक वहीं रहीं। आपके इन्तिक़ाल पर रिसालत मआब को बहुत ज़्यादा दुख हुआ था और आपके कफ़न के लिये अपना कुर्ता इनायत फ़रमाया था नीज़ दफ़न से क़ब्ल कुछ देर के लिए क़ब्र में लेटे थे और क़ुरआन की तिलावत फ़रमाई थी, नमाज़े मय्यत पढ़ने के बाद आपने फ़रमाया थाः किसी भी इन्सान को फि़शारे क़ब्र से निजात नहीं है सिवाए फ़ात्मा बिन्त असद के, नीज़ आपने क़ब्र देख कर फ़रमाया थाः

       आपका रसूले मक़बूल सल0 ने इतना एहतेराम फ़रमाया मगर आंहज़रत सल0 की उम्मत ने आपकी तौहीन में कोई कसर उठा न रखी, यहां तक कि आपकी क़ब्र भी वीरान कर दी। जिस क़ब्र में रसूल सल0 ने लेट कर आपको फि़शारे क़ब्र से बचाया था और क़ुरआन की तिलावत फ़रमाई थी उस पर बिलडोज़र चलाया गया और निशाने क़ब्र को भी मिटा दिया गया।

(6)    जनाबे अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब

       आप रसूले इस्लाम स॰ के चचा और मक्के के शरीफ़ और बुजर्ग लोगों में से थे,आपका शुमार हज़रत पैग़म्बर स॰ के चाहने वालों और मद्द करने वालों, नीज़ आप स॰ के बाद हज़रत अमीरूल मोमेनीन के वफ़ादारों और जाँनिसारों में होता है।

       आमुलफ़ील से तीन साल पहले विलादत हुई और 33 हि0 में इन्तिक़ाल हुआ। आप आलमे इस्लाम की अज़ीम शख़सियत हैं। माज़ी के सय्याहों ने आपके रौज़ा और कु़ब्बा का तज़किरा किया है, मगर अफ़सोस आपके क़ुब्बे को मुन्हदिम कर दिया गया और क़ब्र वीरान हो गई।

(7)    जनाबे अक़ील इब्ने अबूतालिब अ॰

       आप हज़रत अली अ॰ के बड़े भाई थे और नबीए करीम स॰ आपको बहुत चाहते थे,अरब के मशहूर नस्साब थे और आप ही ने हज़रत अमीर का अक़्द जनाब उम्मुल बनीन से कराया था। इन्तिक़ाल के बाद आपके घर (दारूल अक़ील) में दफ़न किया गया, जन्नतुल बक़ी को गिराने से पहले आप की क़ब्र ज़मीन से ऊँची थी। मगर इन्हेदाम के बाद आपकी क़ब्र का निशान मिटा दिया गया है।

(8)    जनाब अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र

       आप जनाब जाफ़र तैयार ज़लजिनाहैन के बड़े साहबज़ादे और इमाम अली अ॰ के दामाद (जनाब ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के शौहर) थे। आपने दो बेटों मुहम्मद और औन को कर्बला इसलिये भेजा था कि इमाम हुसैन अ॰ पर अपनी जान निसार कर सकें। आपका इन्तिक़ाल 80 हि0 में हुआ और बक़ीअ में चचा अक़ील के पहलू में दफ़न किया गया। इब्ने बतूता के सफ़रनामे में आपकी क़ब्र का जि़क्र है। सुन्नी आलिम समहूदी ने लिखा हैः चूंकि आप बहुत सख़ी थे इस वजह से ख़ुदावंदे आलम ने आपकी क़ब्र को लोगों की दुआयें मक़बूल होने की जगह क़रार दिया है। मगर अफ़सोस! आज जनाब ज़ैनब के सुहाग के कब्र का निशान भी बाक़ी नहीं रहा।

(9)    जनाब उम्मुल बनीन अ॰

       आप हज़रत अली अ॰ की बीवी और हज़रत अबुल फ़ज़्ल अब्बास अ॰ की माँ हैं,साहिबे ‘‘मआलिकुम मक्का वलमदीना’’ के मुताबिक़ आपका नाम फ़ात्मा था मगर सिर्फ़ इस वजह से आपने अपना नाम बदल दिया कि मुबादा हज़रात हसन व हुसैन अ॰ को शहज़ादी कौनेन अ॰ न याद आ जायें और तकलीफ़ पहुंचे। आप उन दो शहज़ादों से बेपनाह मुहब्बत करती थीं। वाक़-ए कर्बला में आपके चार बेटों ने इमाम हुसैन अ॰ पर अपनी जान निसार की है इन्तिक़ाल के बाद आपको बक़ीअ में रिसालत मआब स॰ की फूपियों के बग़ल में दफ़न किया गया, यह क़ब्र मौजूदा क़ब्रिसतान की बाईं जानिब वाली दीवार से मिली हूई है और ज़ायरीन यहाँ ज़्यादा तादाद में आते हैं।

(10)   जनाब सफि़या बिन्त अब्दुल मुत्तलिब

       आप रसूले इस्लाम स॰ की फूफी और अवाम बिन ख़ोलद की बीवी थीं, आप एक बहादुर और शुजाअ ख़ातून थीं। एक जंग में जब बनी क़रेज़ा का एक यहूदी, मुसलमान औरतों के साथ ज़्यादती के लिए खे़मों में घुस आया तो आपने हसान बिन साबित से उसको क़त्ल करने के लिये कहा मगर जब उनकी हिम्मत न पड़ी तो आप ख़ुद बनफ़से नफ़ीस उन्हीं पर हमला करके उसे क़त्ल कर दिया। आपका इन्तिक़ाल 20 हि0 में हुआ। आपको बक़ीअ में मुग़य्यरा बिन शेबा के घर के पास दफ़न किया गया। पहले यह जगह ‘‘बक़ीउल उम्मात’’ के नाम से मशहूर थी। मोअर्रेख़ीन और सय्याहों के नक़्ल से मालूम होता है कि पहले क़ब्र की तखती ज़ाहिर थी मगर अब फ़क़त निशाने क़ब्र बाक़ी बचा है।

(11)   जनाब आतिका बिन्ते अब्दुलमुत्तलिब

       आप रूसलुल्लाह सल0 की फूफी थीं। आपका इन्तिक़ाल मदीना मुनव्वरा में हुआ और बहन सफि़या के पहलू में दफ़न किया गया। रफ़त पाशा ने अपने सफ़रनामे में आपकी क़ब्र का तजि़क्रा किया है मगर अब सिर्फ़ क़ब्र का निशान ही बाक़ी रह गया है।

(12)   जनाब हलीमा सादिया

 आप रसूले इस्लाम सल0 की रज़ाई माँ थीं यानी आप ने जनाबे हलीमा का दूध पिया था। आपका ताल्लुक़ क़बीला साद बिन बकर से था। इन्तिक़ाल मदीने में हुआ और बक़ीअ के शुमाल मशरिक़ी सिरे पर दफ़न हुईं। आपकी क़ब्र पर एक आलीशान कु़ब्बा था। रिसालत मआब स॰ अकसर व बेशतर यहाँ आकर आपकी ज़्यारत फ़रमाते थे। मगर अफ़सोस! साजि़श व तास्सुब के हाथों ने सय्यदुल मुरसलीन स॰ की इस महबूब ज़्यारतगाह को भी न छोड़ा और क़ुब्बा को ज़मीन बोस करके क़ब्र का निशान मिटा दिया गया।

(13)   जनाब इब्राहीम बिन रसूलुल्लाह स॰.

 आपकी विलादत सातवीं हिजरी क़मरी में मदीना मुनव्वरा में हुई मगर सोलह सत्तरह माह बाद ही आपका इन्तिक़ाल हो गया। इस मौक़े पर रसूल सल0 मक़बूल ने फ़रमाया थाः इसको बक़ीअ में दफ़न करो, बेशक इसकी दूध पिलाने वाली जन्नत में मौजूद है जो इसको दूध पिलायेगी। आपके दफ़न होने के बाद बक़ीअ के तमाम दरख़तों को काट दिया गया और उसके बाद हर क़बीले ने अपनी जगह मख़सूस कर दी जिससे यह बाग़ क़ब्रिस्तान बन गया। इब्ने बतूता के मुताबिक़ जनाब इब्राहीम अलै0 की क़ब्र पर सफ़ेद गुंबद था। इसी तरह रफ़त पाशा ने भी क़ब्र पर क़ुब्बे का जि़क्र किया है मगर अफ़सोस आले सऊद के जु़ल्म व सितम का नतीजा यह है कि आपकी फ़क़त क़ब्र का निशान ही बाक़ी रह गया है।

(14)   जनाब उसमान बिन मज़ऊन

आप रिसालते मआब स॰ के बावफ़ा व बाअज़मत सहाबी थे। आपने उस वक़्त इस्लाम कु़बूल किया था जब फ़क़त 13 आदमी मुसलमान थे। इस तरह आप कायनात के चैधवें मुसलमान थे। आपने पहली हिजरत में अपने साहबज़ादे के साथ शिर्कत फ़रमाई फिर उसके बाद मदीना मूनव्वरा भी हिजरत करके आये, जंगे बदर में भी शरीक थे, इबादत में भी बेनज़ीर थे। आपका इन्तिक़ाल 2 हिजरी में हुआ। इस तरह आप पहले महाजिर हैं जिनका इन्तिकलाल मदीना में हुआ। जनाब आयशा से मनक़ूल रिवायत के मुताबिक़ हज़रत रसले इस्लाम स॰ ने आपकी मय्यत का बोसा लिया, नीज़ आप स॰ शिद्दत से गिरया फ़रमा रहे थे। आंहज़रत स॰ ने जनाब उसमान की क़ब्र पर एक पत्थर लगाया गया था ताकि निशानी रहे मगर मरवान बिन हकम ने अपनी मदीने की हुकूमत के ज़माने में उसको उखाड़ कर फेक दिया था जिस पर बनी उमय्या ने उसकी बड़ी मज़म्मत की थी।

(15)   जनाब इस्माईल बिन सादिक़

 आप इमाम सादिक़ अ॰ के बडे़ साहबज़ादे थे और आँहज़रत स॰ की जि़न्दगी ही में आपका इन्तिक़ाल हो गया था। समहूदी ने लिखा है कि आपकी क़ब्र ज़मीन से काफ़ी ऊँची थी। इसी तरह मोअत्तरी ने जि़क्र किया है कि जनाबे इस्माईल की क़ब्र और उसके शुमाल का हिस्सा इमाम सज्जाद अ॰ का घर था जिसके कुछ हिस्से में मस्जिद बनाई गई थी जिसका नाम मस्जिदे जै़नुल आबेदीन अ॰ था। मरातुल हरमैन के मोअल्लिफ़ ने भी इस्माईल की क़ब्र पर क़ुब्बा का जि़क्र किया है। 1395 हि0 में जब सऊदी हुकूमत ने मदीने की शाही रास्तों को चैडा करना शुरू किया तो आपकी क़ब्र खोद डाली मगर जब अन्दर से सही बदन निकला तो उसे बक़ी में शोहदाए ओहद के शहीदों के क़रीब दफ़न किया गया।

(16)   जनाब अबु सईद ख़ुज़री

 रिसालत पनाह के जांनिसार और हज़रत अली अ॰ के आशिक़ व पैरू थे। मदीने में इन्तिक़ाल हुआ और वसीयत की बिना पर बक़ीअ में दफ़न हुए। रफ़त पाशा ने अपने सफ़रनामे में लिखा है कि आपकी क़ब्र की गिन्ती मारूफ़ क़ब्रों में होती है। इमाम रज़ा ने मामून रशीद को इस्लाम की हक़ीक़त से मुताल्लिक़ जो ख़त लिखा था उसमे जनाब अबुसईद ख़ुज़री को साबित क़दम और बाईमान क़रार देते हुए आपके लिये रजि़अल्लाहु अन्हो व रिज़वानुल्लाहु अलैह के लफ़्ज़ इस्तेमाल किये थे।

(17)   जनाब अब्दुल्लाह बिन मसऊद

आप बुज़ुर्ग सहाबी और क़ुरआन मजीद के मशहूर क़ारी थे। आप हज़रत अली अ॰ के मुख़लेसीन व जांनिसारों में से थे। आपको दूसरी खि़लाफ़त के ज़माने में नबीए अकरम स॰ से अहादीस नक़्ल करने के जुर्म में गिरफ़तार किया गया था जिसकी वजह से आपको अच्छा ख़ासा ज़माना जि़न्दान में गुज़ारना पड़ा। आपका इन्तिक़ाल 33 हि0 में हुआ था। आपने वसीयत फ़रमाई थी कि जनाब उसमान बिन मज़ऊन के पहलू में दफ़न किया जाये और कहा था कि: बेशक उसमान इब्ने मज़ऊन फ़क़ी थे। रफ़त पाशा के सफ़रनामें में आपकी क़ब्र का जि़क्र है।

पैग़म्बर (स॰) की बीवियों की क़ब्रें बक़ीअ में नीचे दी गई अज़वाज की क़बरें हैं

(18)   ज़ैनब बिन्ते ख़ज़ीमा     वफ़ात 4 हि0

(19)   रेहाना बिन्ते ज़ैद       वफ़ात 8 हि0

(20)   मारिया क़बतिया        वफ़ात 16 हि0

(21)   ज़ैनब बिन्ते जहश       वफ़ात 20 हि0

(22)   उम्मे हबीबा            वफ़ात 42 हि0 या 43 हि0

(23)   मारिया क़बतिया        वफ़ात 45 हि0

(24)   सौदा बिन्ते ज़मा        वफ़ात 50 हि0

(25)   सफि़या बिन्ते हई वफ़ात 50 हि0

(26)   जवेरिया बिन्ते हारिस     वफ़ात 50 हि0

(27)   उम्मे सलमा           वफ़ात 61 हि0

ये क़बरें जनाबे अक़ील अ॰ की क़ब्र के क़रीब हैं। इब्ने बतूता के सफ़रनामे में रौज़े का जि़क्र है। मगर अब रौज़ा कहाँ है?

 

(28.30) जनाब रूक़ईया, उम्मे कुलसूम, ज़ैनबः आप तीनों की परवरिश जनाब रिसालत मआब स॰ और हज़रत ख़दीजा ने फ़रमाई थी, इसी वजह से बाज़ मोअर्रेख़ीन ने आपकी क़ब्रों को ‘‘क़ुबूर बनाते रसूलुल्लाह’’ के नाम से याद किया है। रफ़त पाशा ने भी इसी ग़लती की वजह से उन सब को औलादे पैग़म्बर क़रार दिया है वह लिखते हैं। ‘‘अकसर लोगों की क़ब्रों को पहचानना मुश्किल है अलबत्ता कुछ बुज़ुर्गान की क़ब्रों पर क़ुब्बा बना हुआ है, इन कु़ब्बादार क़ब्रों में जनाब इब्राहीम, उम्मे कुलसूम, रूक़ईया, ज़ैनब वग़ैरा औलादे पैग़म्बर की क़बे्रं हैं।

(31)   शोहदाए ओहद

यूँ तो मैदाने ओहद में शहीद होने वाले फ़क़त सत्तर अफ़राद थे मगर कुछ ज़्यादा ज़ख़्मों की वजह से मदीने में आकर शहीद हुए। उन शहीदों को बक़ी में एक ही जगह दफ़न किया गया जो जनाबे इब्राहीम की क़ब्र से तक़रीबन 20 मीटर की दूरी पर है। अब फ़क़त इन शोहदा की क़ब्रों का निशान बाक़ी रह गया है।

(32)   वाकि़या हुर्रा के शहीद

कर्बला में इमाम हुसैन अलै0 की शहादत के बाद मदीने में एक ऐसी बग़ावत की आँधी उठी जिससे यह महसूस हो रहा था कि बनी उमय्या के खि़लाफ़ पूरा आलमे इस्लाम उठ खड़ा होगा और खि़लाफ़त तबदील हो जायेगी मगर मदीने वालों को ख़ामोश करने के लिये यज़ीद ने मुस्लिम बिन उक़बा की सिपेह सालारी में एक ऐसा लश्कर भेजा जिसने मदीने में घुस कर वो ज़ुल्म ढाये जिनके बयान से ज़बान व क़लम मजबूर हैं। इस वाकि़ये में शहीद होने वालों को बक़ीअ में एक साथ दफ़न किया गया। इस जगह पहले एक चहार दीवारी और छत थी मगर अब छत को ख़त्म करके फ़क़त छोटी छोटी दीवारें छोड़ दी गई हैं।

(33)   जनाब मुहम्मद बिन हनफि़या

.आप हज़रत अमीर के बहादुर साहबज़ाते थे। आपको अपनी मां के नाम से याद किया जाता है। इमाम हुसैन अ॰ का वह मशहूर ख़त जिसमें आपने कर्बला की तरफ़ सफ़र की वजह बयान की है, आप ही के नाम लिखा गया था। आपका इन्तिक़ाल 83 हि0 में हुआ और बक़ी में दफ़न किया गया।

(34)   जनाब जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी

आप रिसालते पनाह स॰ और हज़रत अमीर के जलीलुलक़द्र सहाबी थे। आँहज़रत स॰ की हिजरत से 15 साल पहले मदीने में पैदा हुए और आप स॰ के मदीना तशरीफ़ लाने से पहले इस्लाम ला चुके थे। आँहज़रत स॰ ने इमाम बाक़र अ॰ तक सलाम पहुँचाने का जि़म्मा आप ही को दिया था। आपने हमेशा एहले बैत की मुहब्बत का दम भरा। इमाम हुसैन अ॰ की शहादत के बाद कर्बला का पहला ज़ाइर बनने का शर्फ आप ही को मिला मगर जनाब हुज्जाम बिन यूसुफ़ सक़फ़ी ने मुहम्मद व आले मुहम्मद की मुहब्बत के जुर्म में बदन को जलवा डाला था। आपका इन्तिक़ाल 77 हि0 में हुआ और बक़ीअ में दफ़न हुए।

(35)   जनाब मिक़दाद बिन असवद

हज़रत रसूले ख़ुदा स॰ और हज़रत अली के बहुत ही मोअतबर सहाबी थे। आख़री लम्हे तक हज़रत अमीर अ॰ की इमामत पर बाक़ी रहे और आपकी तरफ़ से दिफ़ा भी करते रहे। इमाम मुहम्मद बाक़र अ॰ की रिवायत के मुताबिक़ आपकी गिन्ती उन जली-लु-लक़द्र असहाब में होती है जो पैग़म्बरे अकरम स॰ की रेहलत के बाद साबित क़दम और बाईमान रहे।

 यह था बक़ीअ में दफ़न होने वाले बाज़ बुज़ुर्गान का जि़क्र जिनके जि़क्र से सऊदी हुकूमत बचती है और उनके आसार को मिटा कर उनका नाम भी मिटा देना चाहती है क्योंकि उनमें से ज़्यादातर लोग ऐसे हैं जो जि़ंदगी भर मुहम्मद व आले मुहम्मद अ॰ की मुहब्बत का दम भरते रहे और उस दुनिया की भलाई लेकर इस दुनिया से गये। इन बुज़ुर्गान और इस्लाम के रेहनुमा की तारीख़ और जि़न्दगी ख़ुद एक मुस्तकि़ल बहस है जिसकी गुन्जाइश यहाँ नहीं है।

आख़िर में हम रब्बे करीम से दुआ करते हैं। ख़ुदारा! मुहम्मद और आले मुहम्मद अ॰ का वास्ता हमें इन अफ़राद के नक़शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा जो तेरे नुमाइन्दों के बावफ़ा रहे नीज़ हमें उन लोगों में क़रार दे जो हक़ के ज़ाहिर करने में साबित क़दम रहे और जिनके इरादों को ज़ालिम हाकिमें भी हिला न सके।

 

काबुल में तालिबान की सुरक्षा कमान ने घोषणा की है कि इस शहर में एक विस्फोट के परिणामस्वरूप एक व्यक्ति की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, काबुल में तालिबान की सुरक्षा कमान ने घोषणा की है कि इस शहर में एक विस्फोट के परिणामस्वरूप एक व्यक्ति की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए।

अफ़ग़ानिस्तान की शफ़क़ना न्यूज़ एजेंसी के अनुसार; काबुल में तालिबान की सुरक्षा कमान के प्रवक्ता खालिद जादरान ने पुष्टि की है कि कल रात हुआ विस्फोट काबुल शहर के कोटा सांगी इलाके में एक कार में रखे बम के कारण हुआ था।

रिपोर्ट के मुताबिक इस कार के ड्राइवर की मौके पर ही मौत हो गई और तीन नागरिक घायल हो गए।

काबुल के पश्चिम में हुए विस्फोट की जिम्मेदारी आईएसआईएस ने ली है, कल रात काबुल शहर में हुए विस्फोट की जिम्मेदारी आईएसआईएस खुरासान ने ली है।

आईएसआईएस ने अपनी घोषणा में दावा किया कि उसने शियाओं को ले जा रहे एक वाहन को तालिबान चौकी से गुजरते समय चुंबकीय बम से निशाना बनाया, जिसमें 10 नागरिक और तालिबान सदस्य मारे गए या घायल हो गए।

अतीत में, काबुल के पश्चिमी क्षेत्र में यात्री ट्रेनों को कई बार निशाना बनाया गया है और इनमें से अधिकांश हमलों की जिम्मेदारी आतंकवादी समूह दाएश ने ली है।

आईएसआईएस के हमले जारी हैं जबकि तालिबान का दावा है कि अफगानिस्तान में आईएसआईएस का खात्मा हो चुका है।

इस्लामिक क्रांति के नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई ने रविवार दोपहर सशस्त्र बलों के कुछ शीर्ष कमांडरों के साथ बैठक में हाल की घटनाओं में सशस्त्र बलों के प्रयासों और उपलब्धियों की प्रशंसा की और कहा कि अल्लाह तआला की कृपा से, सशस्त्र बलों ने ऊर्जा और शक्ति की एक अच्छी छवि प्रस्तुत की है और इस प्रकार ईरानी राष्ट्र की एक योग्य छवि प्रस्तुत की है और ईरानी राष्ट्र के दृढ़ संकल्प की शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लाया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लामिक क्रांति के नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई ने रविवार दोपहर सशस्त्र बलों के कुछ शीर्ष कमांडरों के साथ बैठक में हाल की घटनाओं में सशस्त्र बलों के प्रयासों और उपलब्धियों की सराहना की और कहा कि अल्लाह तआली की कृपा से सशस्त्र बलों ने अपनी ऊर्जा और ताकत की एक अच्छी छवि के साथ-साथ ईरानी राष्ट्र की एक सराहनीय छवि भी प्रस्तुत की और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरानी राष्ट्र के दृढ़ संकल्प की ताकत का प्रदर्शन किया।

सशस्त्र सेना दिवस और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के गठन दिवस की बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों की हालिया उपलब्धियों के कारण दुनिया और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की नजर में इस्लामिक के बारे में महिमा और महानता की छाप बनी है। उन्होंने कहा कि दागी गई मिसाइलों की संख्या या लक्ष्य पर मार करने वाली मिसाइलों की संख्या का मुद्दा, जिसे दूसरा पक्ष बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा है, एक गौण और द्वितीयक मुद्दा है, जबकि मुख्य मुद्दा ईरानी राष्ट्र का अंतर्राष्ट्रीय स्तर और उसकी शक्ति है। सशस्त्र बलों के दृढ़ संकल्प को उजागर और पुष्ट किया गया है और विपरीत पक्ष भी इसके बारे में चिंतित है।

इस्लामी क्रांति के नेता ने सशस्त्र बलों के कार्यों में रणनीति के उपयोग की सराहना करते हुए कहा कि विभिन्न घटनाओं के साथ लागत और सफलता भी आती है और महत्वपूर्ण बात यह है कि रणनीति के माध्यम से कीमत कम चुकानी चाहिए और सफलताएं अधिक हासिल करनी चाहिए यह एक ऐसा कार्य है जिसे सशस्त्र बलों ने हाल की घटनाओं में अच्छी तरह से किया है।

उन्होंने गार्ड, सेना और पुलिस बल के प्रयासों और प्रदर्शन की सराहना करते हुए सशस्त्र बलों को दुश्मन और शत्रुता का सामना करने के लिए नवीनता के साथ अपने प्रयास जारी रखने की सलाह दी और कहा कि उन्हें एक पल के लिए भी नहीं रुकना चाहिए क्योंकि रुकने का मतलब है पीछे हटना, इसलिए नवाचार हथियार, रणनीति और दुश्मन के व्यवहार की पहचान हमेशा एजेंडे में होनी चाहिए।

इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई ने इस बात पर जोर देते हुए कि ईरान का दर्जा दुनिया की नजरों में प्रमुख होना चाहिए, कहा कि प्रतिभाशाली, सक्षम और नवोन्मेषी लोगों की पहचान के साथ-साथ आपको ईश्वर सर्वशक्तिमान का आशीर्वाद मिलेगा। किसी को विश्वास रखना चाहिए, उस पर भरोसा करना चाहिए और विश्वास करना चाहिए कि विश्वासियों की रक्षा करने के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर का वादा निश्चित और अपरिवर्तनीय है।

इस बैठक में उन्होंने सेना, गार्ड्समैन और पुलिस बल के विभिन्न रैंकों के कमांडरों के परिवारों के प्रति भी विशेष धन्यवाद व्यक्त किया और कहा कि कठिनाइयों का बोझ सशस्त्र बलों की पत्नियों और बच्चों पर है जो कठिनाइयों को सहन करते हैं।

इस बैठक में, सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के प्रमुख, मेजर जनरल बकेरी ने पिछले हिजरी सौर वर्ष और नए हिजरी सौर वर्ष के शुरुआती हफ्तों के प्रमुख परिवर्तनों की ओर इशारा किया, जिनमें "तुफान अल-अक्सा" और " वाडा सादिक" ऑपरेशन जिसने इस्राईली सरकार को सबक सिखाया। इंगित करते हुए, उन्होंने सशस्त्र बलों की तैयारियों और क्षमताओं पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट दी।

 

 

 

 

 

अल्लामा मुहम्मद इकबाल की 86वीं जयंती आज पाकिस्तान में बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जा रही है।अल्लामा इक़बाल को दुनिया छोड़े 86 साल बीत चुके हैं, लेकिन उनकी कविताएं और विचार आज भी दुनिया भर में उनके प्रशंसकों के लिए रोशनी की किरण हैं

पूर्व के कवि का जन्म 9 नवंबर 1877 को सियालकोट में हुआ था, सियालकोट में अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने मिशन हाई स्कूल से मैट्रिक किया और मुर्रे कॉलेज, सियालकोट से एफए की परीक्षा उत्तीर्ण की।

अल्लामा इकबाल ने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से दर्शनशास्त्र में एमए किया, जिसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए और कानून की डिग्री प्राप्त की।

बाद में वे जर्मनी चले गये जहाँ से उन्होंने दर्शनशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

अल्लामा इक़बाल को 1922 में ब्रिटिश सरकार ने 'सर' की उपाधि से सम्मानित किया था।

 वे देश की आज़ादी के ध्वजवाहक थे, इसलिए कविता के माध्यम से वकालत की और देश के राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया।

अल्लामा इक़बाल ने अपनी शायरी से उपमहाद्वीप के मुसलमानों में जागरूकता की नई भावना फूंकी और 1930 में एक अलग मातृभूमि का सपना देखा।

पाकिस्तान की स्थापना से पहले, 21 अप्रैल 1938 को अल्लामा इकबाल की मृत्यु हो गई और उन्हें लाहौर में दफनाया गया।

अल्लामा इक़बाल की प्रसिद्ध पुस्तकों में बंग-ए-दारा, ज़र्ब-ए-कलीम, अरमग़ान-ए-हिजाज़ और बाल-ए-जबरील शामिल हैं।

इनके अलावा फ़ारसी कविता के 7 संग्रह और अंग्रेजी में लिखी ये किताबें दुनिया भर की ज्ञान पिपासा की तृप्ति का स्रोत हैं।

इराक के तहरीक-ए-इस्लामी अल-तस्सात ने बताया कि उसने सीरिया के कब्जे वाले गोलान में ज़ायोनी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है।

IRNA की रिपोर्ट के मुताबिक इराक के तहरीक-ए-इस्लामी अल-इस्ताक ने कहा है कि सीरिया के कब्जे वाले गोलान में ज़ायोनी सैन्य ठिकानों पर ड्रोन हमला किया गया है. इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इराक़ के निश्चय के अनुसार इलियट में ज़ायोनी सरकार के एक महत्वपूर्ण ठिकाने पर ड्रोन हमला भी किया गया है।

इराक के तहरीक-ए-इस्लामी अल-इस्तकाम ने कहा है कि ये हमले ज़ायोनी आक्रमण के विरोध में फिलिस्तीनी समर्थन के जवाब में और विशेष रूप से इराकी पीपुल्स वालंटियर फोर्स अल-हश्द के मुख्यालय पर हाल ही में ज़ायोनी हमले के जवाब में किए गए थे। अल-शाबी. इराकी पीपुल्स वालंटियर फोर्स अल-हशद अल-शाबी ने भी बाबिल प्रांत के कलसो सैन्य मुख्यालय में विस्फोट की खबर की पुष्टि की है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान और ओमान सल्तनत के विदेश मंत्रियों ने ज़ायोनी शासन के अत्याचारों को समाप्त करने, तत्काल युद्धविराम और गाजा के लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने का आह्वान किया है।

आईआरएनए की रिपोर्ट के मुताबिक, ओमान सल्तनत के विदेश मंत्री सैय्यद बद्र बिन हमद अल-बुसैदी ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन के साथ क्षेत्र की नवीनतम स्थिति पर चर्चा की। इस टेलीफोन बातचीत में ओमान साम्राज्य के विदेश मंत्री ने क्षेत्र में ज़ायोनी शासन की अस्थिर करने वाली कार्रवाइयों की निंदा की और इस बात पर ज़ोर दिया कि क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बहाल करने का एकमात्र तरीका गाजा में ज़ायोनी शासन के युद्ध अपराधों को रोकना है। .

विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियां ने भी क्षेत्र में हालिया बदलावों के संबंध में ओमान सल्तनत के मजबूत और दृढ़ रुख को धन्यवाद दिया और सराहना की। इस्लामी गणतंत्र ईरान और ओमान के विदेश मंत्रियों ने गाजा में नवीनतम स्थिति की समीक्षा की और ज़ायोनी शासन के अपराधों को समाप्त करने, तत्काल युद्धविराम और गाजा के लोगों को मानवीय सहायता भेजने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया।

हौज़ा इलमिया के संचार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के अधिकारी ने ईरानोफोबिया के प्रसार और मीडिया आदि पर क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खतरे पैदा करने को वैश्विक अहंकार की सबसे प्रमुख रणनीति बताया और कहा: के दुश्मनों की साजिशों का मुकाबला करने के लिए इस्लाम के लिए अत्यधिक परिशुद्धता की आवश्यकता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हौज़ा इलमिया के संचार और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रमुख हुजतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैनी कोहसारी ने ऑपरेशन "वादा सादिक" के बारे में बात करते हुए कहा: यह ऑपरेशन एक जटिल हाइब्रिड युद्ध के संदर्भ में तैयार किया गया था। इस्लाम के सिपाहियों ने कठिन मोर्चे पर यह ऑपरेशन करके गौरवपूर्ण राष्ट्रीय इतिहास रचा।

उन्होंने कहा: दुनिया भर के प्रमुख विश्लेषकों और मीडिया कर्मियों के विश्लेषण के अनुसार, ईरान अपनी वैज्ञानिक और सैन्य शक्ति को पूरे इस्लामी दुनिया की ताकत मानता है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैनी कोहसारी ने कहा: इस्लामिक दुनिया में ऑपरेशन "वादा सादिक" के बाद, हमने संयुक्त राष्ट्र, प्रमुख विश्लेषकों और राजनेताओं की सार्वजनिक राय की स्वीकृति देखी, जिन्होंने इस बात का समर्थन किया कि इस्लामिक दुनिया में किसी को भी ऐसा नहीं करना चाहिए था इस वैश्विक अहंकार की गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ खड़े हुए।

उन्होंने कहा: फ़िलिस्तीन के समर्थन में गैर-इस्लामिक देशों में 700 सभाएँ, प्रदर्शन और जुलूस आयोजित किए गए। आज हम मुस्लिम उम्माह और दुनिया के स्वतंत्र लोगों के बीच एक उल्लेखनीय एकजुटता देख रहे हैं। "वादा सादिक" ऑपरेशन ने सभी स्वतंत्रता सेनानियों, दुनिया के उत्पीड़ितों, प्रतिरोध मोर्चे, इस्लामी दुनिया और ईरान के लोगों के बीच आशा की लहर पैदा की है।

अलीश वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में ईरानी महिला खिलाड़ियों के चैंपियन बनने की ख़बरें जब वर्ल्ड मीडिया में प्रसारित हुई, तो खेल के शौक़ीन लोगों के दिमाग़ में शायद पहला सवाल यह आया होगा कि क्या ईरान में महिलाएं भी कुश्ती लड़ सकती हैं?

अलीश वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में ईरानी महिला खिलाड़ियों की चैंपियनशिप से पता चलता है कि ईरानी महिलाओं की कुश्ती का स्तर उस दर्जे पर पहुंच चुका है कि एक 20 साल की खिलाड़ी ने दुनिया में अपना लोहा मनवाया। अलीश वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप का आयोजन क़ज़ाख़िस्तान के नूर सुल्तान शहर में हुआ। इस मुक़ाबले के दूसरे ही दिन 57 किलोग्राम की कैटेगरी में हानिया आशूरी ने गोल्ड मेडल जीत लिया, 60 किलोग्राम की कैटेगरी में फ़ातिमा फ़त्ताही सिल्वर मेडल जीतने में सफल रहीं। इसी तरह से 55 किलोग्राम की कैटगरी में ज़हरा यज़दानी ने ब्रोंज़ मेडल हासिल किया। अंततः ईरान की नेशनल टीम ने 93 अंकों के साथ चैंपियनशिप जीत ली। क़िर्ग़िस्तान और क़ज़ाख़िस्तान क्रमशः 89 और 69 अंकों के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।

ईरान में महिला कुश्ती के इतिहास में पहली गोल्ड मेडलिस्ट हानिया आशूरी ने सिर्फ़ एक साल पहले ही इस खेल में प्रवेश किया था। किरमानशाह की रहने वाली आशूरी ने अपनी पहली ही वर्ल्ड चैंपियनशिप में जॉर्जिया, क़िर्गिस्तान और मंगोलिया की अपनी प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले में बढ़त बनाते हुए फ़ाइनल में बेलारूस की अपनी प्रतिद्वंद्वी को हरा दिया और वर्ल्ड चैंपियन बन गईं।

गोल्ड मेडल जीतने वाली ईरान की पहली महिला पहलवान के तौर पर उनका कहना थाः मुझे वाक़ई बहुत अच्छा लग रहा है। प्रतिद्वंद्वी मुझे ज़्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे थे, क्योंकि ईरान इससे पहले तक चैंपियनशिप जीतने के दावेदारों में शामिल नहीं था, लेकिन इन मुक़ाबलों में मैंने गोल्ड मेडल जीता, और एक सिल्वर और एक ब्रोंज़ के साथ हमारी टीम चैंपियनशिप जीतने में सफल रही। बेहतरीन टीम का चयन किया गया था और सभी खिलाड़ियों ने कड़ी मेहनत की। इस टीम का अगर समर्थन किया जाता है, तो निश्चित रूप से यह अगले मुक़ाबलों में भी इस चैंपियनशिप को दोहरा सकती है और बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकती है।

इस युवा ईरानी महिला का जीवन, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके प्रयासों और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। उनका कहना हैः मैं पश्चिमी इस्लामाबाद में पैदा हुई थी और वहीं रहती हूं। अभ्यास के लिए मुझे अकसर किरमानशाह जाना पड़ता था। पिछले साल जब भूकंप आया था, मैं वहीं थीं, लेकिन ख़ुदा का शुक्र कि मेरे परिवार और मुझे कोई नुक़सान नहीं हुआ। हमारे आसपास कई घर तबाह हो गए। भूकंप के बाद परिस्थितियां बहुत कठिन थीं, लेकिन मैंने इसी कम उम्र में संघर्ष का फ़ैसला किया। ख़ुदा का शुक्र है कि मैं सफल हुई और साबित कर दिया कि भूकंप भी मुझे अपने लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकता।

हानिया अशूरी इससे पहले फ़ुटसाल खेलती थीं और कुछ समय तक उन्होंने स्वदेशी और स्थानीय खेल प्रबंधन की देखरेख में लकड़ी खींचने के खेल में भी हाथ आज़माया और इसमें विश्व कांस्य पदक जीता। यह स्वदेशी और स्थानीय खेलों में से एक है।

अलीश मध्य एशियाई देशों में लड़ी जाने वाली एक परंपरागत कुश्ती है, जो आम तौर पर क़िर्गिस्तान, क़ज़ाख़िस्तान और उज़्बेकिस्तान में लड़ी जाती है और वहां के लोग इसमे काफ़ी माहिर होते हैं। हालांकि, 1990 के दशक की शुरुआत से इस कुश्ती का भौगोलिक रूप से विस्तार हुआ है और आज कुछ पूर्वी यूरोपीय देशों जैसे कि लिथुआनिया और बेलारूस में अलीश लड़ने वाले पहलवान मुख्य रूप से मिल जायेंगे।

हानिया आशूरी का मुक़ाबला फ़ाइनल में एक बेलारूसी प्रतिद्वंद्वी के साथ हुआ था। पूर्वी यूरोपीय देशों में बुल्ग़ारिया 54 अंकों के साथ महिला अलीश कुश्ती प्रतियोगिताओं में पांचवें स्थान पर रहा। इस साल की विश्व चैंपियनशिप में 15 देशों ने भाग लिया। इन देशों के बीच मुक़ाबलों में कि जहां फ्रीस्टाइल और पश्चिमी शैली की कुश्ती के भी मुक़ाबले हुए, ईरानी महिला चैंपियनशिप का अपना महत्व है।

कहा जा सकता है कि ईरानी महिलाओं द्वारा अलीश रेसलिंग के स्वागत का एक कारण यह है कि अलीश कुश्ती खिलाड़ियों की ड्रेस, वर्ल्ड और ओलपिंक रेसलिंग चैंपियनशिप्स महिला खिलाड़ियों की तुलना में ज़्यादा होती है। वास्तव में अलीश रेसलिंग खिलाड़ियों की ड्रेस, ईरान के आधिकारिक मानदंडों के क़रीब होती है, और इससे कुश्ती में रुचि रखने वाली ईरानी महिलाएं ख़ुश होती हैं, जो अपने हिजाब के साथ कुश्ती में अपनी प्रतिभा दर्शा सकती हैं। अगर ईरानी महिला पहलावन, विश्व महिला और ओलंपिक रेसलिंग चैंपियनशिप में हिजाब के साथ भाग ले सकतीं तो ईरानी महिला पहलवान इन महत्वपूर्ण मंचों पर भी अपनी क़िस्मत आज़माने में सफल रहतीं। दूसरे शब्दों में, अलीश रेसलिंग एक ऐसा मंच है, जहां ईरानी महिला पहलवान, अपनी प्रतिभा दर्शा सकती हैं घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमताओं का लोहा मनवा सकती हैं।

55 किलोग्राम वज़न की कैटेगरी में ब्रोंज़ मेडल जीतने वाली ज़हरा यज़दानी इस प्रतियोगिता की पूर्व प्रतियोगिताओं से तुलना करते हुए कहती हैः यह साल एक ऐसा साल था, जब विश्व प्रतियोगिता सिर्फ़ एक भाग में आयोजित हुई। इससे पूर्व यह प्रतियोगिता 2 भागों, क्लासिक और अलीश में आयोजित होती थी, जिससे मेडल जीतने की संभावना बढ़ जाती थी, लेकिन इस साल हमारे पास मेडल जीतने के लिए सिर्फ़ एक चांस था, जिससे मुक़ाबला कठिन हो गया था, ख़ुदा का शुक्र है कि हम चैंपियनशिप जीतकर भरे हाथों से घर लौटे हैं।

जुइबार उत्तरी ईरान का एक शहर है, जो कुश्ती के लिए मशहूर है। हालांकि यहां महिलाओं की  कुश्ती की शुरूआत कुछ वर्ष पहले ही हुई है, लेकिन अब यह किसी के लिए नई बात नहीं रह गई है। वर्तमान में महिलाओं के बीच कुश्ती काफ़ी लोकप्रिय हुई है और कई महिलाओं ने इसे अपनाया है। कह सकते हैं कि कुश्ती यहां के नागरिकों के डीएनए में है और इस खेल में पुरुष या महिला का कोई अंतर नहीं है। मेरी तमन्ना ओलंपिक में खेलने की है, लेकिन ओलंपिक में यह शैली शामिल नहीं है, इसलिए अलीश का ओलपिंक में शामिल होने की आशा नहीं की जा सकती। हालांकि मैं ओलपिंक में खेलना चाहती हूं।

सिल्वर मेडल जीतने वाली फ़ातिमा फ़त्ताही का मानना है कि अगर महिलाओं की कुश्ती का ज़्यादा मदद की जाएगी, तो ईरान की महिला पहलावन ज़्यादा से ज़्यादा अपनी प्रतिभाओं को दर्शा सकती हैं। जुइबार के लोग जिस तरह से पुरुषों की कुश्ती का समर्थन करते हैं, उसी तरह से वे महिला कुश्ती का भी समर्थन करते हैं।

निःसंदेह यह दावा नहीं किया जा सकता कि हमारे समाज में महिलाओं के उच्च व्यक्तित्व का वैसा ही चित्रण किया गया है, जिस तरह से किया जाना चाहिए था। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के मुताबिक़, प्रगति के पथ पर ईरानी महिलाओं की अभी शुरूआत है। मानवता के पहलू से मर्दों और औरतों में कोई अंतर नहीं है, महत्व की दृष्टि से इंसानियत की तुलना में लिंग का दर्जा बाद में आता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के 40 साल के अनुभव से पता चलता है कि इस्लामी समाज में इस्लामी और इंसानी मूल्यों और एक इंसान की आम ज़िम्मेदारियों के मुताबिक़, पुरुष और महिलाएं एक समान और एक स्तर के हैं। सिर्फ़ सृष्टि में अंतर के आधार पर उनकी कुछ विशेष ज़िम्मेदारियां हैं। इसलिए पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के साथ ही महिलाओं की सामाजिक ज़िम्मेदारियां अर्थपूर्ण होती हैं, लेकिन यह पारिवारिक ज़िम्मेदारियां, महिलाओं की सामाजिक गतिविधियों में बाधा नहीं बन सकती हैं।

गाजा में फिलिस्तीनी राहत और बचाव दल ने रविवार सुबह दक्षिणी गाजा में ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए नवीनतम अपराधों का खुलासा किया, यह घोषणा करते हुए कि उसने क्षेत्र के एक अस्पताल में एक सामूहिक कब्र की खोज की है।

क़तर के अल जज़ीरा चैनल के अनुसार, फ़िलिस्तीन की राहत और बचाव टीम ने घोषणा की है कि उसने पचास शहीदों के शव बरामद किए हैं जिन्हें ज़ायोनी सेना ने खान यूनिस के नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स में सामूहिक रूप से दफनाया था। समूह ने इस सामूहिक कब्र की खोज के समय का उल्लेख नहीं किया। सामूहिक कब्र मिलने की खबर मीडिया में इस तरह छाई कि पिछले दो दिनों के दौरान ज़ायोनी सरकार ने वेस्ट बैंक के नॉरशम्स कैंप पर हमला कर चौदह फ़िलिस्तीनी युवाओं को मार डाला है।

दूसरी ओर, फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कल दोपहर घोषणा की कि इजरायली सेना ने पिछले चौबीस घंटों में चार आक्रामक हमले किए, जिसमें सैंतीस फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए और अड़सठ अन्य घायल हो गए।

गाजा में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि कब्जे वाली ज़ायोनी सरकार गाजा में चिकित्सा केंद्रों और बुनियादी और नागरिक सुविधाओं के खिलाफ अपनी क्रूर आक्रामकता जारी रखे हुए है।

ईरान प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, गाजा में फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ अल-क़दरा ने गाजा में चिकित्सा केंद्रों के खिलाफ चल रही ज़ायोनी आक्रामकता की ओर इशारा करते हुए कहा कि सभी अस्पतालों और उत्तरी गाजा में चिकित्सा केंद्रों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए यहां तक ​​कि फिलिस्तीनी निर्दोष बच्चों को भी ज़ायोनी सरकार द्वारा निशाना बनाया जा रहा है।

गाजा में फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ अल-क़दरा ने कहा कि कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार द्वारा फ़िलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों का नरसंहार जारी है और प्रत्यक्ष ज़ायोनी आक्रमण में अब तक तेरह हज़ार आठ सौ फ़िलिस्तीनी बच्चे शहीद हो चुके हैं। इस प्रवक्ता ने कहा कि गाजा के उत्तर में स्थित चिकित्सा केंद्र, विशेष रूप से अल-शफा अस्पताल, पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं।