
رضوی
माहे रमज़ान के इक्कीसवें दिन की दुआ (21)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللَّـهُمَّ اجْعَلْ لي فيهِ اِلي مَرْضاتِكَ دَليلاً، وَلا تَجْعَلْ لِلشَّيْطانِ فيهِ عَلَيَّ سَبيلاً، وَاجْعَلِ الْجَنَّةَ لي مَنْزِلاً وَمَقيلاً، يا قاضِيَ حَوآئِـجِ الطّالِبينَ.
अल्लाह हुम्मज-अल ली फ़ीहि इला मरज़ातिका दलीला, व ला तज-अल लिश्शैतानि फ़ीहि अलैय सबीला, वज-अलिल जन्नता ली मनज़िलन व मक़ीला, या क़ाज़िय हवाएजित तालिबीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने में मेरे लिए अपनी ख़ूशनूदी की तरफ़ राहनुमा निशान क़रार दे, और शैतान को मुझ पर (ग़लबा पाने) के लिए रास्ता न दे, और जन्नत को मेरी मंज़िल क़रार देना, ऐ तलबगारों की हाजतों को पूरा करने वाले.
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
अली इब्ने अबी तालिब एक महान वैज्ञानिक भी थे
अली इब्ने अबी तालिब पैगम्बर मुहम्मद (स.) के चचाजाद भाई और दामाद थे. आपका चर्चित नाम हज़रत अली (Hazrat Ali) है. दुनिया उन्हें महान योद्धा और मुसलमानों के खलीफा (Khalifa) के रूप में जानती है. इस्लाम के कुछ फिरके उन्हें अपना इमाम तो कुछ उन्हें वली के रूप में मानते हैं. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि अली एक महान वैज्ञानिक भी थे और एक तरीके से उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक (First Muslim Scientist) कहा जा सकता है.
Ali Ibne Abi Talib
17 मार्च 600 ( 13 Rajab 24 BH) को अली का जन्म मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबे के अन्दर हुआ. ऐतिहासिक दृष्टि से हज़रत अली एकमात्र व्यक्ति हैं जिनका जन्म काबे के अन्दर हुआ. जब पैगम्बर मुहम्मद (स.) ने इस्लाम का सन्देश दिया तो कुबूल करने वाले अली पहले व्यक्ति थे.
बात करते हैं हज़रत अली के वैज्ञानिक पहलुओं पर. हज़रत अली ने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया. एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी पूछी तो जवाब में बताया की एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है. उनके इस कथन के चौदह सौ सालों बाद वैज्ञानिकों ने जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई. अगर अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा ली जाए तो यही दूरी निकलती है. इसी तरह एक बार अंडे देने वाले और बच्चे देने वाले जानवरों में फर्क इस तरह बताया कि जिनके कान बाहर की तरफ होते हैं वे बच्चे देते हैं और जिनके कान अन्दर की तरफ होते हैं वे अंडे देते हैं.
अली ने इस्लामिक थियोलोजी (Islamic Theology-अध्यात्म) को तार्किक आधार दिया. कुरान को सबसे पहले कलमबद्ध करने वाले भी अली ही हैं. बहुत सी किताबों के लेखक हज़रत अली है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं
१. किताबे अली (Kitab E Ali)
२. जफ्रो जामा (Islamic Numerology पर आधारित)- इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें गणितीय फार्मूलों के द्वारा कुरान मजीद का असली मतलब बताया गया है. तथा क़यामत तक की समस्त घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. यह किताब अब अप्राप्य है.
३. किताब फी अब्वाबुल शिफा (Kitab Fi Abwab Al Shifa)
४. किताब फी ज़कातुल्नाम (Kitab Fi Zakatul Name)
हज़रत अली की सबसे मशहूर व उपलब्ध किताब नहजुल बलागा (Nahjul Balagha) है, जो उनके खुत्बों (भाषणों) का संग्रह है. इसमें भी बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन है.
माना जाता है की जीवों में कोशिका (Cells) की खोज 17 वीं शताब्दी में लीवेन हुक ने की. लेकिन नहजुल बलाग का निम्न कथन ज़ाहिर करता है कि अली को कोशिका की जानकारी थी. "जिस्म के हर हिस्से में बहुत से अंग होते हैं. जिनकी रचना उपयुक्त और उपयोगी है. सभी को ज़रूरतें पूरी करने वाले शरीर दिए गए हैं. सभी को काम सौंपे गए हैं और उनको एक छोटी सी उम्र दी गई है. ये अंग पैदा होते हैं और अपनी उम्र पूरी करने के बाद मर जाते हैं. (खुतबा-81) " स्पष्ट है कि 'अंग' से अली का मतलब कोशिका ही था.
हज़रत अली सितारों द्बारा भविष्य जानने के खिलाफ थे, लेकिन खगोलशास्त्र सीखने के हामी थे, उनके शब्दों में "ज्योतिष सीखने से परहेज़ करो, हाँ इतना ज़रूर सीखो कि ज़मीन और समुद्र में रास्ते मालूम कर सको." (77वाँ खुतबा - नहजुल बलागा)
इसी किताब में दूसरी जगह पर यह कथन काफी कुछ आइन्स्टीन के सापेक्षकता सिद्धांत से मेल खाता है, उसने मख्लूकों को बनाया और उन्हें उनके वक़्त के हवाले किया. (खुतबा - 01)
चिकित्सा का बुनियादी उसूल बताते हुए कहा, "बीमारी में जब तक हिम्मत साथ दे, चलते फिरते रहो."
ज्ञान प्राप्त करने के लिए अली ने अत्यधिक जोर दिया, उनके शब्दों में, "ज्ञान की तरफ बढो, इससे पहले कि उसका हरा भरा मैदान खुश्क हो जाए."
यह विडंबना ही है कि मौजूदा दौर में मुसलमान हज़रत अली की इस नसीहत से दूर हो गया और आतंकवाद जैसी अनेकों बुराइयां उसमें पनपने लगीं. अगर वह आज भी ज्ञान प्राप्ति की राह पर लग जाए तो उसकी हालत में सुधार हो सकता है.
इमाम अली अ.स.की ख़ामोशी
आज हम इस विषय पर चर्चा करेंगे कि जब खि़लाफ़त इमाम अ़ली का हक़ था तो क्यु आपने पैग़म्बर के स्वर्गवास के बाद अपने हक़ को अबूबकर, उस्मान या उमर से लेने की कोशिश नहीं की?
इस सवाल के जवाब में हम यहां पर यह कहना सही समझते हैं कि जहां तक बात है वापस लेने की तो इमाम अ़ली अ.स. तीनों के ज़माने से हमेशा ज़बानी तौर पर प्रदर्शन करते रहे हैं लेकिन आप ने इन लोगों से जंग क्यों नहीं लड़ी और वह जवाबात निम्नलिखित हैं।
- अगर इमाम ताक़त और हथियार बंद आन्दोलन के द्वारा हुकूमत और खि़लाफ़त को अपने हाथ में लेना चाहते तो आपको अपने बहुत सारे चाहने वालों को अपने हाथ से खोना पड़ता कि जो आप की रहबरी और खि़लाफ़त को दिल व जान से मानते थे, इसके अलावा बहुत सारे सहाबी जो कि किन्हीं कारणों से इमाम अ़ली की खि़लाफ़त और इमामत पर राज़ी नहीं थे परन्तु दूसरी बातों में आपसे मतभेद न रखते थे इन लोगों के मरने से कि जो मूर्ती पूजा, शिर्क, यहूदियत या ईसाईयत के सामने इस्लाम की ताक़त थे इनके मरने से इस्लाम की ताक़त कमज़ोरी में बदल जाती।
- बहुत से गिरोह और क़बीले के जो पैग़म्बर की आख़री उम्र में मुसलमान हुये थे उन्होंने अभी इस्लाम की ज़रूरी चीज़ों को भी नहीं सीखा था और इस्लाम अभी पूरी तरह से उनके दिलों में नहीं उतरा था जैसे ही उन्हे रसूले अकरम (स.अ.व.व) के देहान्त की ख़बर उन लोगों के बीच फैली , उनमें से कुछ गिरोह अपने पुराने धर्मों पर पलटने लगें और मूर्ती पूजा को अपनाने लगे और मदीने में इस्लामी हुकूमत का विरोध करने लगे थे अगर इमाम अ़ली ऐसे मौक़े पर अपना आंदोलन शुरू कर देते तो मुम्किन था कि मुसलमानों के इस आपसी झगड़े का फ़ायदा दुश्मन उठा लेता और वही के वही इस्लामी हुकूमत की बिस्तर बोरिया बंध जाती।
- मुरतदीन (वो लोग कि जो इस्लाम से पलट गये और क्रमांक 2 में जिनका ज़िक्र किया गया है) के ख़तरे के अलावा नबुवत का दावा करने वालों और दूसरे नबियों जैसे मुसैलेमा, तुलैहा जैसे लोग प्रतिदिन सामने आ रहे थे और उनमें से हर एक के पास कुछ न कुछ ताक़त और तरफ़दार थे और ये लोग मदीनें पर हमला करना चाहते थे, मुसलमानों के आपसी सहयोग द्वारा ही इन लोगों को पराजित किया गया। अगर इन हालात में इमाम अ़ली अ.स. हथियार उठाते तो शायद मुसलमान आपसी सहयोग न होने की बिना पर इन लोगों को पराजित न कर पाते।
- रोमियों के हमले का ख़तरा भी इमाम अ़ली अ.स. के लिये हथियार न उठाने का एक बड़ा कारण बन सकता था क्योंकि इमाम अ़ली अ.स. जानते थे कि अगर मुसलमानों में अन्दुरूनी विद्रोह हुआ तो उसका एक नतीजा रोम वालों को ख़ुद अपनी हुकूमत पर हमले के दावत देना है जो कि बहुत दिनों से मुसलमानों पर हमले की ताक़ में है और अगर ऐसे हालात में रोमी लोग हमला करते है तो इस्लाम तथा मुसलमानों को एक बड़ा नुक़्सान उठाना पड़ सकता है।
उपरोक्त कारणों को पढ़ कर कोई भी समझदार व्यक्ति इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि अगर इमाम अ़ली अ.स पैग़म्बर के स्वर्गवास के बाद अपने हक़्क़े खि़लाफ़त के लिये तलवार उठाते तो शायद आज इस्लाम का नाम भी बाक़ी न रहता।
(ये आरटीकल जनाब मेहदी पेशवाई की किताब सीमाये पीशवायान से लिया गया है।)
शबे क़द्र की तीन रातें क्यों हैं?
तेईसवीं रात को, अल्लाह जो चाहता है वह सब कुछ कर दिया जाता है। यह शबे क़द्र है, जिसके बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया: (यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है)।
हौज़ा न्यूज एजेंसी। सैयद इब्न ताऊस ने अपनी किताब (इकबाल अल-अमाल) में इमाम सादिक (अहैलिस्सलाम) से मुत्तसिल सनद के साथ एक रिवायत बयान की है कि: लोग अबू अब्दुल्ला इमाम जाफर सादिक (अहैलिस्सलाम) से पूछ रहे थे: क्या रमज़ान की 15 वीं रात को रिज़्क़ (जीविका) तकसीम होता है?
तो मैंने इमाम सादिक अलैहिस्सलाम को इन लोगों के जवाब में यह कहते हुए सुना: नहीं, खुदा की कसम, यह रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेईसवीं रातों को होता है, क्योंकि:
19 वीं "يلتقي الجَمْعان यलतक़ी अल-जमआन" की रात।
और इक्कीसवीं की रात को अल्लाह हर हिकमत वाले मामले को अलग कर देता है।
और तेईसवीं रात को वह सब कुछ हो जाता है जो अल्लाह चाहता था। यह शबे क़द्र है, जिसके बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया: (यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है)।
मैंने कहा: आपके कथन का क्या अर्थ है: ("यलतक़ी अल-जमआन")?
उन्होंने कहा: अल्लाह तकदीम और ताखीर के बारे मे जो चाहता हैं या जो कुछ भी उसका इरादा और फैसला हैं, उन्हें इकट्ठा करता है।
मैंने कहा: इसका क्या मतलब है कि अल्लाह इक्कीसवीं रात को हर हिकमत के मामले को अलग करता है?
इमाम (अ.स.) ने कहा: इक्कीसवीं रात में इसमें बदा होती है, और जबकि काम तेईसवीं रात को पूरा हो जाता है, यह उन अंतिम मामलों में से एक है जिसमें अल्लाह तबरक वा ताला की ओर से कोई बदा नहीं होती।
ईश्वरीय आतिथ्य- 20
पवित्र रमज़ान, ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है, यह महीना क़ुरआन की बहार और आत्मा की शुद्धि का महीना है। इस महीने में ईश्वर ने अपने बंदों को रोज़ा रखने की शक्ति प्रदान की और सभी लोग उस महिने में ईश्वर के दरबार में क्षमा याचना करते हैं। पवित्र क़ुरआन ने रमज़ान के महीने को लोगों के मार्गदर्शन का महीना क़रार दिया है। यह वह महीना है जिसके आरंभिक दस दिन कृपा, दूसरे दस दिन क्षमा याचना और तीसरे दस दिन नरक की आग से मुक्ति है। इस महीने में रोज़ेदारों के लिए विशेष पुण्यों का उल्लेख किया गया है और निश्चित रूप से यह पुण्य उन लोगों से संबंधित है जिन्होंने इस महीने की वास्तविकता को समझ लिया और इसकी बातों को अपने कर्मों और व्यवहारों में ढाल लिया हो। इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान को उन महीनों में बताते हैं जिनमें मनुष्य के लिए बहुत सारी विभूतियां होती हैं। उनका मानना है कि यह विभूतियां उन्हीं लोगों के भाग्य में लिखी जाती हैं जो इस महीने में उससे लाभ उठाने के पात्र होते हैं।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान के महीने पर विशेष ध्यान देते थे और उनका मानना था कि इस महीने में जाने से पहले हमें सुधार, आत्मशुद्धि और आंतरिक इच्छा को छोड़ की आवश्यकता होती है और अतीत की तुलना में अपने विदित और आंतरिक रूप को परिवर्तित करे, प्रायश्चित करें और अल्लाह से बात करने के लिए स्वयं को तैयार करें ।
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह पवित्र रमज़ान के महीने में रोज़ेदारों को सलाह देते हुए कहते हैं कि स्वयं का सुधार करें और ईश्वर के अधिकारों पर ध्यान देना शुरु करें, अपने अच्छे और शालीन बर्ताव से प्रायश्चित करें, यदि ख़ुदा न करें पाप हो जाए, तो पवित्र रमज़ान के महीने में दाख़िल होने से पहले तौबा करें और ईश्वर से मन की बात करने के लिए ज़बान को आदी बनाएं।
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह रोज़ेदारों और बंदों के सुधार की शर्त, दूसरों की बुराई और दूसरों पर आरोप लगाने से बचना है। उनका यह कहना है कि अपने शरीर के अंगों पर नियंत्रण, ईश्वर के दरबार में मनुष्य के रोज़े के स्वीकार होने का कारण बन सकता है और मनुष्य को ईश्वरीय कृपा का पात्र बना देता है और व्यक्ति का रोज़ा, शैतानी बहकावे के मुक़ाबले में मजब़ूत ढाल सिद्ध होता है। इमाम ख़ुमैनी बल देते हैं कि इस काम के लिए ईश्वर को वचन देना होगा और अपने लिए ऐतिहासिक फ़ैसला करना होगा। वह कहते हैं कि अपने ईश्वर से प्रतिबद्धता करे कि पवित्र रमज़ान के महीने में दूसरों की बुराई, दूसरों पर आरोप लगाने और दूसरों को बुरा भला कहने से बचेंगे। ज़बान, आंख, हाथ, कान और दूसरे अंगों को अपने नियंत्रण में रखे। अपनी करनी और कथनी पर नज़र रखें, शायद इसी शालीन काम के कारण ईश्वर आप पर ध्यान दे और अपनी कृपा का पात्र बना ले और रमज़ान का महीना ख़त्म होने के बाद जिसमें शैतान आज़ाद हो जाता है, आप पूरी तरह सुधरा होना चाहिए, अब शैतान के धोखे में न आएं और सभ्य रहें।
पवित्र रमज़ान में इमाम ख़ुमैनी के विशेष कार्यक्रमों में उपासना और रात में पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज़ थी। इमाम ख़ुमैनी उपासना को ईश्वरीय प्रेम तक पहुंचने का साधन मानते हैं और स्पष्ट रूप से कहते हैं कि प्रेम की वादी में उपासन को स्वर्ग में पहुंचने के साधन के रूप में देखना नहीं चाहिए। इस बारे में इमाम खुमैनी के एक साथी कहते हैं कि इस महीने में इमाम ख़ुमैनी के जीवन में दूसरे महीनों की तुलना में विशेष परिवर्तन हो जाता है, इस प्रकार से कि इस पूरे महीने में पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते, दुआ करते और रमज़ान के बारे में ईश्वर से निकट होने वाली अन्य काम अर्थात मुस्तह्हब काम भी करते थे।
पवित्र रमज़ान के विशेष कामों और उपासनाओं में एक पवित्र क़ुरआन की तिलावत करना और उसकी व्याख्या और उसके अर्थ को गहराई से समझना है। इस बात के दृष्टिगत कि पवित्र क़ुरआन रमज़ानुल मुबारक में उतरा और इस महीने में पवित्र कुरआन की तिलावत का बहुत अधिक पुण्य है, इस्लामी रिवायतों में रमज़ान के महीने को क़ुरआन की बसंत बताया गया है। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह पवित्र रमज़ान के महीने में क़ुरआने मजीद की तिलावत पर विशेष ध्यान देते थे। उनको जब भी मौक़ा मिलता, चाहे थोड़ा ही क्यों न हो, क़ुरआन की तिलावत करते थे। कई बार देखा गया है कि इमाम ख़ुमैनी दस्तरख़ान पर खाने लगने से पहले के समय में जो सामान्य रूप से बेकार गुज़र जाता है, पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते हैं।
रात की नमाज़ के बाद से सुबह ही नमाज़ तक वह पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते थे। इमाम ख़ुमैनी के साथ पवित्र नगर नजफ़ में रहने वाले उनके एक साथी कहते हैं कि पवित्र रमज़ान के महीने में हर दिन वह पवित्र क़ुरआन के दस पारों की तिलावत करते थे। अर्थात हर तीन दिन में एक क़ुरआन ख़त्म करते थे, इसके अतिरिक्त हर वर्ष पवित्र रमज़ान से पहले, वह आदेश देते थे कि उनके निकट साथी पवित्र क़ुरआन को ख़त्म करने की कुछ बैठकें आयोजित करें।
पवित्र क़ुरआन का उतरना, शबे क़द्र, फ़रिश्तों और रूह का उतरना, भाग्य निर्धारण और दूसरी चीज़ें, हर एक अध्यात्मिक खाद्य और आसमानी दस्तरख़ान का हिस्सा हैं और यही वह चीज़ें हैं जिसकी वजह से कहा जाता है कि रमज़ान का महीना ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है। इमाम ख़ुमैनी की नज़र में पवित्र रमज़ान का महीना, ईश्वरीय महीना है जिसमें सभी को ईश्वर ने अपनी मेहमान नवाज़ी के लिए बुलाया है। इमाम ख़ुमैनी इस आतिथ्य के महत्व के बारे में कहते हैं कि भौतिक जीवन में अल्लाह की मेहमान नवाज़ी का अर्थ यह है कि हम अपनी समस्त संसारिक इच्छाओं से परहेज़ करें। इमाम खुमैनी की नज़र में इस मेहमान नवाज़ी को न समझ पाना, मनुष्य के क्रियाकलाप से संबंधित है विशेषकर इस काल में जब मनुष्यों पर बहुत अधिक अत्याचार हो रहे हैं और उन पर युद्ध थोपे जा रहे हैं, पवित्र रमज़ान में ईश्वरीय आतिथ्य को न समझ पाने का कारण है। इमाम ख़ुमैनी इस बारे में इस प्रकार कहते हैं, आप सभी को अल्लाह की मेहमान नवाज़ी का निमंत्रण दिया गया है, आप सभी अल्लाह के मेहान हैं, बुरी आदतें छोड़ने की मेहमानी, यदि मनुष्य के भीतर तनिक भी आंतरिक इच्छा हो, तो वह इस आतिथ्य में शामिल नहीं हो सकता या अगर उसमें शामिल हो भी गया है तो उससे लाभ नहीं उठा सकता। यह समस्त झंझठें जो दुनिया में हम देखते हैं, इसीलिए है कि हमने इस मेहमान नवाज़ी से लाभ ही नहीं उठाया, अल्लाह के निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया, प्रयास करे कि इस दावत को स्वीकार करें।
दूसरी ओर इमाम ख़ुमैनी का कहना था कि रोज़ेदार न अत्याचार करता है और न ही न अत्याचार सहन करता है, अत्याचारग्रस्त होता है, इमाम ख़ुमैनी इस बारे में कहते हैं कि इस पवित्र रमज़ान के महीने में मुसलमानों को सामूहिक रूप से ईश्वरीय आतिथ्य में शामिल हो जाना चाहिए , आत्मशुद्धि और आत्मनिर्माण करना चाहिए, स्वयं को अत्याचार सहन करने वाला न बनाएं क्योंकि अत्याचार सहन करने वाला, अत्याचार करने वालों के समान है, दोनों ही आत्मशुद्धि न होने का परिणाम है, यदि हम इस तक पहुंच गये, तो हम न अत्याचार स्वीकार करेंगे और न ही अत्याचारी होंगे, यह सभी इसीलिए कि हमने आत्म निर्माण नहीं किया।
इमाम ख़ुमैनी बल देकर कहते हैं कि यदि पवित्र रमज़ान की समाप्ति पर आपके कर्मों और व्यवहार में कोई परिवर्तन न पैदा हो और पवित्र रमज़ान से पहले की आपकी जीवन शैली में कोई अंतर न हो, तो यह पता चलता है कि रोज़े से जो आप से चाहा गया था व्यवहारिक नहीं हो सका। इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान से निकल जाने को, ईश्वरीय होने पर निर्भर मानते हैं और यह विश्वास रखते हैं कि मोमिन की ईद, महीने की समाप्ति में निहित है। वह कहते हैं कि आप यह सोचिए कि यदि इस मेहमान नवाज़ी से सही ढंग से बाहर निकल आएगा, उसी समय ईद होगी। ईद उन लोगों के लिए है जो इस मेहमान नवाज़ी में शामिल हो गये और इस आथित्य से लाभ उठाया हो। जैसा कि इच्छाओं को छोड़ा हो और आंतरिक इच्छा जो मनुष्य की राह की सबसे बड़ी रुकावट है, उन से दूर रहे। पवित्र रमज़ान का महीना, मनुष्य को बहुत से कामों में सफल बना देता है। रमज़ान का महीना, मनुष्य को ऐसा बना देता है ताकि दूसरे रमज़ान तक वह नियंत्रण में रहे और ईश्वरीय आदेशों का उल्लंघन न करे।
बंदगी की बहार- 20
रमज़ान का पवित्र महीना तेज़ी से गुज़र रहा है।
रमज़ान के पवित्र महीने का जब तीसरा पखवाड़ा आरंभ हो जाता है तो मोमिनों के दिलों में महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की उपासना और उससे प्रार्थना के लिए अधिक उत्सुकता उत्पन्न हो जाती है। पवित्र रमज़ान महीने की विशेष रातें ”शबे क़द्र” ज़मीन से आसमान की ओर जाने का रास्ता खोलती हैं। यह रातें मोमिन व रोज़ा रखने वाले को पापों से प्रायश्चित करने और परिपूर्णता का मार्ग तय करने का आह्वान करती हैं। पवित्र रमज़ान महीने के विशेष दिनों व रातों में हमें महान ईश्वर की अधिक उपासना करते हुए प्रायश्चित करना चाहिये। इस महीने के समाप्त होने से पहले हमें चाहिये कि हम स्वयं को पापों से प्रायश्ति करने वालों के काफिले तक पहुंचाएं। कितने भाग्यशाली वे लोग जिन्होंने इस महीने में स्वयं को पापों से पाक किया, ईश्वरीय दया का पात्र बनाया और पवित्र रमज़ान महीने के निर्मल जल के बहते सोते से अपनी आत्मा को शुद्ध किया।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनई इस महीने में प्रायश्चित करने की सुन्दरता के बारे में कहते हैं” रमज़ान का पवित्र महीना हमें यह अवसर प्रदान करता है कि हम स्वयं को शुद्ध कर लें। यह शुद्धि बहुत महत्व रखती है। रमज़ान के पवित्र महीने में बहने वाले आंसू हमारे दिलों को होकर शुद्ध करते हैं किन्तु उसकी रक्षा करना चाहिये। अहंकार, ईर्ष्या, अत्याचार और विश्वासघात जैसी बड़ी और खतरनाक बीमारियों के इस महीने में उपचार का अवसर प्राप्त होता है। महान ईश्वर ध्यान देता है और निश्चित रूप से उसने ध्यान दिया है।
रमज़ान का पवित्र महीना प्रायश्चित करने और महान ईश्वर की ओर लौटने का बेहतर अवसर है। इस महीने की विशेष रातें यानी शबे क़द्र पापों से क्षमा मांगने की बेहतरीन रातें हैं। एसा न हो कि यह रातें गुज़र जायें और हम निश्चेतना की नींद सोये रहें और पापों से क्षमा मांगने वालों से पीछे रह जायें कि निः संदेह महान ईश्वर बहुत अधिक प्रायश्चित व तौबा को स्वीकार करने वाला है।
कहते हैं कि बनी इस्राईल में एक जवान था। उसने 20 वर्षों तक महान ईश्वर की उपासना की थी और उसके बाद 20 वर्षों का समय उसने उसकी अवज्ञा में बिताया। एक दिन उसने अपने सफेद बालों को आइने में देखा तो वह अपने आप में आया और कहा हाय! बुढ़ापा आ गया, जवानी का समय बीत गया। हे मेरे ईश्वर! वर्षों मैं तेरी याद में था और कुछ वर्षों से मैं तुझ से विमुख हो गया हूं अब अगर मैं तेरी ओर आऊं तो क्या तू मुझे स्वीकार करेगा?
उस समय ईश्वरीय वाणी आई कि हे व्यक्ति! तूने कुछ समय मेरी उपासना की तो मैं तेरे साथ था और जब तूने मुझे भुला दिया तो मैंने भी तूझे तेरी हाल पर छोड़ दिया किन्तु तूझे अवसर दिया। अब अगर तुम मेरी तरफ लौटना चाहता हो तो मैं तुम्हें स्वीकार करूंगा।
प्रायश्चित की प्रशंसा में बस इतना ही काफी है कि महान ईश्वर कहता है कि मैं प्रायश्चित करने वालों को दोस्त रखता हूं। पैग़म्बरे इस्लाम भी फरमाते हैं” पापों से प्रायश्चित करने वाला, पाप न करने वाले की भांति है।
प्रायश्चित का अर्थ बुराइ से भलाई की ओर लौटना है। प्रायश्चित यानी मौजूदा समय में गुनाह छोड़ना और भविष्य में न करने का इरादा। जब इंसान अपने बुरे कार्यों से शर्मिन्दा होता है और उसकी भरपाई की दिशा में कदम बढ़ाता है तो वह प्रायश्चित की स्थिति होती है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर भी प्रायश्चित करने वाले व्यक्ति को अपनी असीम कृपा की छत्रछाया में शरण देता है विशेषकर अगर प्रायश्चित करने वाला जवान हो। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” ईश्वर के निकट प्रायश्चित करने वाले युवा से अधिक कोई चीज़ प्रिय नहीं है”
इंसान आम तौर पर झूठ बोलने, दूसरों को कष्ट पहुंचाने, दूसरों पर आरोप लगाने और दूसरों की बुराई करने जैसे पाप करते- रहते हैं। इंसान का उद्दंडी मन उसे ईश्वरीय दूतों द्वारा बताये गये मार्गों के विरोध के लिए उकसाती है। यह उसे ईश्वरीय शिक्षाओं की अवज्ञा करने और क्रोध एवं अपनी गलत इच्छाओं के अनुपालन के लिए कहती है। इंसान का मन इंसान की नज़र में इस नश्वर संसार को एसा बनाकर पेश करता है कि मानो वह सदैव बाकी रहने वाला है और दुनिया की खत्म हो जाने वाली मिठास को इंसान के सामने सबसे मीठी चीज़ी के रूप में पेश करता है इस प्रकार वह इंसान को मुक्ति व कल्याण से दूर करता है। कभी कभी एसा भी होता है कि इंसान पापों के दलदल में धंस जाता है। अचानक जब वह उस दलदल से निकल आता है तो उसकी समझ में आता है कि कितना बुरा रास्ता उसने तय किया है। वह शर्मीन्दा होता है और उसकी यह शर्मीन्दगी महान ईश्वर के निकट बहुत महत्व रखती है। वह महान ईश्वर की ओर लौटने और अपनी सुधार का इरादा करता है। इस कार्य के लिए रमज़ान के पवित्र महीने से बेहतर और क्या अवसर हो सकता है।
रहस्यवादियों व परिज्ञानियों की दृष्टि में प्रायश्चितक का अर्थ है अत्याचार का वस्त्र उतारना, पापों को छोड़ना और वफा का परिधान धारण करना।
समस्त इंसानों को पापों से प्रायश्चित करने की ज़रूरत होती है किन्तु इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि जो इंसान दिल से प्रायश्चित करता है दिल से पापों को त्याग देने का संकल्प करता है उसे उपहार में ईश्वरीय प्रेम मिलता है। जब इंसान को महान व सर्व समर्थ ईश्वर का सच्चा व वास्तविक प्रेम प्राप्त हो जाता है तो वह दूसरों के कहने पर भी पाप नहीं करता। क्योंकि उसे ईश्वरीय प्रेम की मिठास का आभास हो जाता होता है। प्रायश्चित व सच्ची तौबा वास्तव में सदैव बाकी रहने वाले स्वर्ग का रास्ता है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की दृष्टि में सच्चा तौबा यह है कि इंसान के उपर जो दायित्व रह गये हैं उन्हें वह पूरा करने का प्रयास करे और अगर उससे किसी को पीड़ा पहुंची है तो वह उससे क्षमा मांगे, जो नमाज़- रोज़े छूट गये हैं उन्हें अदा करने का प्रयास करे। तौबा करने वाले व्यक्ति को चाहिये कि वह अपनी इच्छा को नियंत्रित करे, अच्छे व भले लोगों के पद चिन्हों पर अमल करने का प्रयास करे ताकि महान व दयालु ईश्वर की नज़र में प्रिय बन सके।
जो चीज़ें इंसान को तौबा के लिए प्रोत्साहित करती हैं उनमें से एक यह है कि इंसान यह जाने कि जो मुसीबतें हैं वे उसके अनुचित व गलत कार्यों का परिणाम हैं। इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरे मार्गदर्शक विभिन्न मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए तौबा करने की सिफारिश करते हैं। यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम, उनके पवित्र परिजन और दूसरे समस्त ईश्वरीय दूत हर प्रकार के पाप से पवित्र हैं। उनसे किसी भी प्रकार के पाप नहीं हुए हैं फिर भी वे प्रायश्चित करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं" बेशक हमारे दिल पर मैल बैठता है। उसे हटाने के लिए मैं हर दिन -रात 70 बार ईश्वर से तौबा करता हूं।
बहुत बड़े शीया परिज्ञानी व रहस्यवादी दिवंगत आयतुल्लाह बहजत बल देकर कहते हैं कि जीवन में जो अप्रिय घटनाएं होती है वे हमारे कार्यों का परिणाम होती हैं। जैसाकि महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे शूरा की 30वीं आयत में कहता है" तुम पर जो भी मुसीबत आती है वह तुम्हारे कार्यों का परिणाम है।
वास्तविकता यह है कि बहुत से लोग पापों की दलदल में डूब जाते हैं और वे अपना रास्ता नहीं बदलते हैं तो पापों के भारी बोझ को परलोक में ले जाते हैं और उससे उनको बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ता है पंरतु तौबा वह स्वर्णिम अवसर है जिससे माध्यम से इंसान अच्छे व सही मार्ग और महान ईश्वर की ओर लौट आता है। इस प्रकार वह हमेशा बाकी रहने वाले स्वर्ग में प्रवेश कर जाता है।
जिन लोगों ने महान ईश्वर के मार्ग में आगे बढ़ने और कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए आयतुल्लाह बहजत से नसीहत करने का आग्रह किया उन लोगों के जवाब में उन्होंने बारमबार तौबा करने की सिफारिश की। वे पैग़म्बरे इस्लाम की वह रवायत याद दिलाते थे जिसमें आपने फरमाया है कि क्या मैं तुम्हें तुम्हारी बीमारियों और उसकी दवाओं से अवगत न करूं? तुम्हारी पीड़ा व बीमारी पाप हैं और उसका उपचार तौबा है। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं" जितना हो सके अस्तग़फिरुल्लाह शब्द को पूर्ण विश्वास के साथ दोहराओ।"
इस समय रमज़ान के रोज़ों, उपासनाओं, पवित्र कुरआन की तिलावत और दूसरे भले कार्यों से दिल प्रकाशित हो गये हैं। मानो मोमिन का रमज़ान के पवित्र महीने विशेषकर शबे क़द्र में दोबारा जन्म हुआ है और उसने नये जीवन का आरंभ कर दिया है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनई इस बारे में कहते हैं" रमज़ान महीने की बड़ी उपलब्धि तौबा और ईश्वर की ओर वापसी है। दुआए अबू हमज़ा सोमाली में हम पढ़ते हैं" हमें तौबा के दर्जे पर पहुंचा दे कि हम पापों से पलट आयें उस जवान की भांति जो अज्ञानता के कारण अपने माता पिता के घर से भाग जाता है और बाद में वह अपने माता- पिता के पास लौट आता है और उसके माता- पिता प्रेम से उसे स्वीकार कर लेते हैं। यही तौबा है। जब हम ईश्वर की दया व कृपा के घर की ओर वापसी करेंगे तो ईश्वर हमें स्वीकार कर लेगा। रमज़ान के महीने में मोमिन इंसान के लिए स्वाभाविक रूप से वापसी का जो अवसर सामने आता है उसे हमें मूल्यवान समझना चाहिये।
माहे रमज़ान के बीसवें दिन की दुआ (20)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
أللّهُمَّ افْتَحْ لي فيہ أبوابَ الجِنان وَأغلِقْ عَنَّي فيہ أبوابَ النِّيرانِ وَوَفِّقْني فيہ لِتِلاوَة القُرانِ يامُنْزِلَ السَّكينَة في قُلُوبِ المؤمنين.
अल्लाह हुम्मा इफ़तह ली फ़ीहि अबवाबल जिनान, व अग़लिक़ अन्नी फ़ीहि अबवाबल नीरान, व वफ़्फ़िक़नी फ़ीहि ले तिलावतिल क़ुरआन, या मुन-ज़िलस सकीनति फ़ी क़ुलूबिल मोमिनीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने में मुझ पर जन्नत के दरवाज़े खोल दे, और जहन्नम की भड़कती आग के दरवाज़े मुझ पर बंद कर दे, और मुझे इस महीने में तिलावते क़ुरआन की तौफ़ीक़ अता फ़रमा, ऐ मोमिनीन के दिलों में सुकून नाज़िल करने वाले...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
सारी दक़यानूसी ज़ंजीरें टूट गयीं, बास्केटबॉल खिलाड़ियों का सिर बोलता जुनून
जाना ईसा और डियाबा केनिट नामक दो महिला बास्केटबॉल खिलाड़ियों के अमेरिका में हिजाब पहनकर खेलने की वजह से उन लोगों के मुंह पर ताले लगे गये हैं जो हिजाब को एक बाधा या रुकावट समझते थे जबकि उनके प्रशंसकों में उम्मीद की किरण पैदा हो गयी है।
यहां पर इस बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि ये महिला खिलाड़ी, अमेरिकी बास्केटबॉल प्लेऑफ़ (एनसीएए) में हिजाब पहनकर खेलने वाली पहली महिला खिलाड़ी नहीं हैं लेकिन खेल के मैदान में ढेरों रिकॉर्ड बनाने और दर्शकों तथा समर्थकों के दिलों पर राज करने का इनका अपना अलग ही इतिहास है।
महिलाओं और बच्चों के सशक्तिकरण के लिए ग़ैर-लाभकारी संगठन के संस्थापक कामरा ने बास्केटबॉल मैचों में हिजाब पहने इस महिला खिलाड़ियों की उपस्थिति के बारे में कहा कि यह उपस्थिति दुनिया भर की लड़कियों और खेल में रुचि रखने वालों को एक शक्तिशाली संदेश देती है, चाहे वे किसी भी आर्थिक और सांस्कृतिक वर्ग से जुड़ी हों।
डियाबा कोनेट (Diaba Konate) ने प्रतियोगिता में हिजाब पहनकर अपनी उपस्थिति के बारे में कहा कि प्रतिनिधित्व एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। हिजाब और महिलाओं की निजता में रुचि रखने वाली लड़कियां, बास्केटबॉल के मैदान पर मौजूद नहीं हैं, मेरे पास उनका प्रतिनिधित्व है और मेरी सफलता पर उनकी नज़रें हैं।
केनेट ने वर्ष 2020 से हिजाब पहनना शुरु किया है और वह अपने पैतृक देश फ्रांस में खेलने के लिए एक चांस तलाश कर रही हैं।
फ्रेंच बास्केटबॉल फेडरेशन ने हिजाब पहनने वाली महिला खिलाड़ियों को देश की टीमों में भाग लेने से रोक दिया है।
हालांकि अमेरिकी बास्केटबॉल के ये दोनों हिजाब पहनने वाली खिलाड़ियों का अभी तक आपस में कोई मुक़ाबला नहीं हुआ है लेकिन उन्हें एक दूसरे की उपस्थिति का भरपूर एहसास है।
जाना ईसा (jannah eissa) ने प्रतियोगिताओं में केनेट की हिजाब के साथ उपस्थिति के बारे में कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि दूसरे लोग भी हिजाब के साथ खेलों में भाग ले रहे हैं।
इस अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी ने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक व्यक्ति इतना ज़्यादा प्रभाव डालेगा, छोटी लड़कियां मेरी ओर देखती हैं, यह चीज़ मेरी लिए ख़ुशी का कारण है।
ईसा ने अमेरिका के खिलाड़ियों के समुदाय में अपने काम की प्रेरणा के बारे में कहा कि मैं हिजाब पहनने वाली खिलाड़ियों की उपस्थिति और महिलाओं की प्राइवेसी को व्यवहारिक बनाने और उनमें उम्मीद पैदा करने के लिए यथासंभव प्रयास जारी रखूंगी।
यह ख़बर महिलाओं में हिजाब पहनने की इच्छा बढ़ने को दर्शाती है। कुछ महिलाओं के लिए हिजाब का महत्व, एक स्त्री की प्राइवेसी है जो उन्हें अपने यौन आकर्षण और शारीरिक सुंदरता पर समाज के ध्यान की परवाह किए बिना सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति देता है।
इन आंकड़ों के अलावा, कई आंकड़े इस बात को ज़ाहिर करते हैं कि हिजाब वाली महिलाओं को कामुक, हिंसक और अतिक्रमणकारी लोग कम पसंद करते हैं।
गाजा में ज़ायोनीवादियों द्वारा फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार जारी
दक्षिणी गाजा शहर खान यूनिस में एक आवासीय इमारत पर ज़ायोनी हमले में उन्नीस फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए।
आईआरएनए की रिपोर्ट के मुताबिक, खान यूनिस में एक आवासीय इमारत पर कब्जे वाली ज़ायोनी सरकार के क्रूर हमले में दसियों फ़िलिस्तीनी भी घायल हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गाजा में बेहद खराब स्वास्थ्य स्थिति की ओर इशारा करते हुए घोषणा की है कि गाजा में केवल दस अस्पतालों की अल्प गतिविधियों के कारण हजारों बीमार लोग चिकित्सा सेवाओं से वंचित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की घोषणा के अनुसार, गाजा में लगभग 9,000 बीमार लोगों को इलाज के लिए गाजा से बाहर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, और अब तक 3,400 से अधिक बीमार लोगों को स्थानांतरित किया जा चुका है, जिनमें 280 घायल भी शामिल हैं। गाजा में कब्जाधारी ज़ायोनी सरकार द्वारा फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार जारी है, जबकि क्रूर ज़ायोनी आक्रमण के परिणामस्वरूप, यहाँ के नागरिकों को भी अकाल और भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। गाजा में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि ज़ायोनी आक्रमण की शुरुआत के बाद से, 32,750 फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं और 75,190 अन्य घायल हो गए हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।
ग़ज़ा में अब तक क्या हुआ, एक सरसरी नज़र
ग़ज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी सरकार के सूचना कार्यालय ने एक रिपोर्ट में ग़ज़ा में युद्ध के 175वें दिन तक होने वाले जानी और माली नुक़सान के आंकड़े पेश किए हैं।
युद्ध में होने वाले जानी और माली नुक़सान का सारांश इस प्रकार है:
ज़ायोनी सेना ने ग़ज़ा पट्टी में 2888 अपराध और हत्याएं की हैं।
39623 लोग शहीद हुए और लापता हुए।
32623 शहीदों को अस्पतालों में भर्जी कराया गया।
7000 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं और मलबे में दबे हुए हैं।
शहीदों में 14350 बच्चे शामिल हैं।
28 बच्चे भुखमरी का शिकार होकर जान गंवा बैठे।
शहीदों में 9460 महिलाएं भी हैं।
364 मेडिकल स्टाफ़ के लोग और चिकित्सा कर्मी शहीद हुए।
बचाव दल के 48 लोग शहीद हो गये।
136 पत्रकार शहीद हुए।
75092 लोग घायल हुए।
इस युद्ध के कुल पीड़ितों में से 73 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं।
17000 बच्चों ने माता-पिता में से किसी एक को या दोनों को ही खो दिया है।
11000 घायलों को इलाज जारी रखने और उनकी जान बचाने के लिए विदेश भेजा जाना है।
10000 कैंसर रोगी ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं और उन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता है।
विस्थापन के परिणामस्वरूप 700000 लोग संक्रामक रोगों की चपेट में आ चुके हैं।
विस्थापन के कारण 8000 लोगों को वायरल हेपेटाइटिस हो गया।
चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण 60000 गर्भवती महिलाओं को ख़तरा है।
दवा का आयात न होने के कारण 350000 लोगों को पुरानी बीमारियों में ग्रस्त हो चुके हैं।
274 चिकित्साकर्मियों और मेडिकल स्टाफ़ को गिरफ्तार किया गया।
12 पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है जिनके नाम पता हैं।
ग़ज़ा पट्टी के 20 लाख निवासी विस्थापित हुए।
168 सरकारी केंद्र नष्ट कर दिये गये हैं।
100 स्कूल और विश्वविद्यालय पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं।
305 स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मामूली क्षति हुई है।
227 मस्जिदें पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं।
294 अन्य मस्जिदों को मामूली क्षति हुई है
3 चर्चों को बमबारी कर नष्ट कर दिया गया है।
70000 आवासीय इकाइयां पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं।
290000 आवास बमबारी का शिकार होकर तबाह ग्रस्त हो चुके हैं और रहने योग्य नहीं हैं।
ग़ज़ा के लोगों पर 70000 टन विस्फोटक गिराए गए हैं।
32 अस्पताल पूरी तरह से ठप्प हो गये हैं।
53 चिकित्सा केंद्र पूरी तरह से बंद हो गये हैं।
अन्य 159 चिकित्सा केंद्रों को निशाना बनाया गया है।
12 एम्बुलेंसों पर बमबारी की गई और उन्हें नष्ट कर दिया गया।
200 ऐतिहासिक एवं प्राचीन स्थानों पर बमबारी कर उन्हें नष्ट कर दिया गया है।