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शनिवार, 02 मार्च 2024 17:32

ईरान भ्रमण- 1 ( किरमानशाह )

इस कार्यक्रम में हम ईरान के पर्यटन क्षेत्रों से आपको अवगत कराएंगे और ईरान के सुन्दर दृश्यों की आपको सैर कराएंगे।

इस नई कार्यक्रम श्रंखला को किरमानशाह प्रांत और किरमानशाह शहर से शुरु करते हैं। आपने निश्चित रूप से सुना होगा कि नवम्बर 2017 में किरमानशाह में भीषण भूकंप आया था और इस प्रांत के कुछ शहरों को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचा था किन्तु आपको जानकार यह हैरानी होगी कि यह ईरान के प्राचीन और सुन्दर शहरों में से एक है।

किरमानशाह इतना अधिक प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध है कि दुनिया भर के लोग यहां की ऐतिहासिक धरोहरों को देखने और यहां के मनोरम दृश्य से आनंदित होने के लिए आते हैं। किरमानशाह में बहुत अधिक प्राकृतिक और मनोरम दृश्य हैं। जो पर्यटक किरमानशाह आता है वह प्रफुल्लित हो जाता है।

जब भी किरमानशाह का नाम आता है तो हमारे मन में क्या चीज़ उभर कर सामने आती है? यहां के प्रसिद्ध चावल के आंटे के बिस्कुट, ताक़े बुस्तान और बीस्तून का नाम ही मन में आते हैं? किरमान शाह जाते ही पहली नज़र बीस्तून नामक शिलालेख पर पड़ती है। यह शिलालेख फ़रहाद तराश का है। यह शिलालेख बहुत प्रसिद्ध है और पत्थर का सबसे बड़ा शिलालेख है। जब इस शिलालेख को देखते हैं तो पर्यटक इसके वैभव से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

किरनमानशाह का बीस्तून इलाक़ा ही दुनिया की प्रसिद्ध धरोहरों में पंजीकृत है। इसमें ज़बरदस्त और अनेक प्रकार की डिज़ाइनें मौजूद हैं। बीस्तून की पहाड़ी पर एक ख़ुदायाने नामक स्थान है। कहा जाता है कि यह स्थान दारयूश हख़ामनेशी के आदेश पर पत्थर पर लिखा गया गया है। बताया जाता है कि यह शिलालेख अकीदी कीलाक्षरी, एलामी और प्राचीन पारसी लिपी में लिखे हुए हैं। यह शिलालेख महान दारयूश की वैभवता का गीत गाता है।

हरकूल की मूर्ति की भी अनदेखी नहीं की जा सकती जो इस क्षेत्र की अद्भुत कलाकृतिया में से एक है। यह बहुत ही सुन्दर मूर्ति है जिसे बड़ी फ़ुर्सत से बनाया गया है । इस मूर्ति के हाथ में एक जाम है जो उसकी सुन्दरता को चार चांद लगा देता है।

बीस्तून की पहाड़ी, शीरीन और फ़रहाद की प्रेम कथा की कहानी सुनती है। शीरीन अरमनी शहज़ादी थी। दुनिया का कोई भी इंसान होगा जिसने फ़रहाद और शीरीन की प्रेम कथा न सुनी हो। बीस्तून क्षेत्र में प्रविष्ट होने से पहले आपको बीस्तून की पहाड़ियों का सामना करना पड़ता है। यह इतना सुन्दर पहाड़ है कि दूर से ही लोग उसको देखते रह जाते हैं। 

यह पहाड़ स्थानीय लोगों विशेषकर पर्यटकों के निकट अपना विशेष महत्व रखता है। इस सुन्दर कांम्लेक्स की तरह एक अन्य सुन्दर चीज़ शाह अब्बासिया कारवांसराए है। इस कारवां सराए को चार ऐवान की शैली पर बनाया गया है। अलबत्ता यह कहा जा सकता है कि इस कारवांसरा में कुछ वर्ष पहले मरम्मत हुई और अब इस पुनर्निमार्ण की वजह से यह बीस्तून लाले नामक एक भव्य होटल में परिवर्तित हो गया है।

बीस्तून के बाद, किरमानशाह से कुछ किलोमीटर की दूरी पर जब हम किरमानशाह में प्रविष्ट होते हैं जो किरमानशाह में प्रविष्ट होने से पहले जो चीज़ हमें सबसे पहले नज़र आती है वह प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र ताक़े बुस्ताने है। ताक़े बुस्ताने, पत्थरों पर बनी डिज़ाइनों और शिलालेखों का एक समूह है। इस समूह में पत्थर की सुन्दर डिज़ाइनों से शिकार, संगीत यंत्र बजाते हुए लोग, राजा के सिर पर मुकुट लगाने जैसे सुन्दर दृश्य देखने को मिलते हैं।

ताक़े बुस्तान में वास्तव में अर्धचंद्र की तरह तो ताक़ शामिल है जिनमें से एक दूसरे से छोटा है। इन दोनों छोटे ताक़ों के सामने एक छोटी सी झील बहती हुई नज़र आती है जो पहाड़ से निकलने वाले सोते से उत्पन्न हुई है। वहां पर बड़ी संख्या में वृक्ष भी देखे जा सकते हैं जिन्होंने इस स्थान की सुन्दरता को चार चांद लगा दिया है। बताया जाता है कि यह मनोरंजन स्थल महान ख़ुसरू परवेज़ का शिकार स्थल था।

आप कल्पना करें कि जब आप पैदल चल रहे हैं या किसी स्थान से आपका गुज़र हो रहा हो तो आपकी को भुने हुए कबाब की सुगंध आए। दंदे कबाब, हमेशा से किरमानशाह की यात्रा पर आने वाले पर्यटकों की सेवा के लिए तत्पर रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में बने पार्क जो पर्वातांचल में स्थित हैं, ताक़े बुस्तान के उत्तरी भाग में जबकि दूसरा हिस्सा क्षेत्र के मनोरंजन स्थल से मिला हुआ है। किरमानशाह में बहुत सी सुन्दर इमारतें भी हैं जिनका संबंध प्राचीन कालों से रहा है। यह इमारातें क़ाजारी और पहला शासन श्रंखला के काल से संबंधित हैं। इन्हीं सुन्दर इमारतों में से एक मस्जिदे शाफ़ई है जो बहुत ही सुन्दर और देखने योग्य है। यह ईरान की सुन्दर मस्जिदों में से एक है।

मस्जिदे शाफ़ई को तुर्की की मस्जिदों की वास्तुकला शैली पर बनाया गया है जिसकी ऊंची मीनारों से शहर की सुन्दरता में चार चांद लग गए हैं। इस सुन्दर मस्जिद का दूसरा छोर जिसमें सुन्नी समुदाय के लोग नमाज़ पढ़ते हैं, किरमानशाह के बाज़ार से मिलता है।

किरमानशाह का बाज़ार 150 साल से अधिक साल पुराना है। विभिन्न प्रकार के कारवांसराए, मस्जिदें, व्यायाम स्थल और पारंपरिक स्नानगृह, प्राचीन काल से ही किरमानशाह की एतिहासिक और सांस्कृतिक प्राचीनता की गाथा सुनाते हैं। किरमानशाह का बाज़ार जो अपने समय में मध्यपूर्व का सबसे बड़ा बाज़ार था, मनमोहक गतिविधियों, उत्पादन तथा सांस्कृतिक व सामाजिक कामों का केन्द्र समझा जाता था। इस प्रसिद्ध बाज़ार में मुख्य रूस से ज़रगरों के बाज़ार, इस्लामी बाज़ार और तोपख़ाना बाज़ार की ओर संकेत किया जा सकता है।

इस बाज़ार में आधुनिक वास्तुकला और प्राचीन वास्तुकला के मिश्रण को भलि भांति देखा जा सकता है और यह इतना सुन्दर है कि पर्यटक पहली ही नज़र में खिंचा चला आता है। वर्तमान समय में भी इस बाज़ार में विभिन्न प्रकार के वस्त्रों की बुनाई, हस्तउद्योग, दरी की बुनाई इत्यादि देखा जा सकता है और यह सब किरमानशाह की स्थानीय कला का जीता जागता नमूना पेश करती हैं।

इसी प्रकार यह बाज़ार पर्यटकों के लिए अपने सगे संबंधियों के लिए उपहार ले जाने का मुख्य केन्द्र है। पर्यटक यहां से, काक नामक बिस्कुट, खजूर वाला बिस्कुट, विभिन्न प्रकार की स्थानीय मिठाइयां और इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की , दरियां, वस्त्र और अनेक प्रकार की वस्तुएं अपने सगे संबंधियों के लिए उपहार स्वरूप ले जा सकते हैं।

इसी प्रकार किरमानशाह के मुआवेनुल मुल्क नामक इमामबाड़े की इसारत को देखे बिना आपका क्षेमण अधूरा है। यह इमामबाड़े क़ाजारी शासन काल में बना है। अर्थात इमामबाड़े की इमारत क़ाजारी शासन काल से संबंधित है।  तकियागाह या इमामबाड़े में टाइल का काम इस कला अद्वितीय नमूना पेश करता है। इस इमामबाड़े का प्रांगण बहुत बड़ा है जिसके मध्य में एक सुन्दर सा हौज़ बना हुआ है। इस प्रांगड़ के पश्चिमी छोर में एक हाल है जिसमें आईनाकारी का बेहतरीन नमूना पेश किया गया है। यह हाल हुसैनिया या इमामबाड़े के नाम से प्रसिद्ध है। यह हाल सुन्दर शिलालेखों और डिज़ाइनों से सुसज्जित हैं जिनका संबंध मुज़फ़्फ़रुद्दीन शाह के काल से है। इस तकीयेगाह या इमामबाड़े का लिपी और किताबत संग्राहलय देखने योग्य और अद्वितीय है।

यह कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति किरमानशाह आए और यहां के नीले और स्वच्छ पानी को न देखे तो उसने कुछ भी नहीं देखा। किरमानशाह में कई छोटी ब़ड़ी नदियां बहती हैं जिसके स्वच्छ और नीले पानी पर्यटकों को अपनी ओर सम्मोहित करते हैं। किरमानशाह की नीलूफ़र नामक झलि देखने में बहुत ही सुन्दर लगती हैं क्योंकि इन झलियों में सुन्दर नील कमल के फूल मार्गी के मौसम में झील के सतह का बहुत बड़ा भाग इन फूलों की कलियों और पत्तियों से ठक जाता है।

 

 

ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने ग़ज़्ज़ा के आवासीय क्षेत्र पर हमला करके कई फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया।

मेहर समाचार एजेन्सी के अनुसार ज़ायोनी युद्धक विमानों ने शनिवार की सुबह ग़ज़्ज़ा पट्टी के दैरुलबलह नामक आवासीय क्षेत्र पर बमबारी की।  इस बमबारी में 6 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए जबकि कई अन्य घायल हो गए। इससे पहले भी ज़ायोनियों की ओर से दैरुलबलह पर बमबारी की जा चुकी है।  कुछ अन्य सूत्रों ने ग़ज़्ज़ा में अलग-अलग क्षेत्रों में ज़ायोनी सैनिकों और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं के बीच गंभीर झड़पों की सूचना दी है।  क़िलक़ीलिए में दोनो पक्षों के बीच झड़पें जारी हैं।

इससे पहले ज़ायोनी सैनिकों ने उन फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार किया था जो मानवीय सहायता की प्रतीक्षा में खड़े थे।  इस हमले में लगभग 112 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए जबकि 750 से अधिक घायल बताए जा रहे हैं।

ज़ायोनियों के हमलों में शहीद और घायल होने वाले हज़ारों फ़िलिस्तीनियों के अतिरिक्त कई ग़ैर सरकारी संगठन और संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेषज्ञ इस बात की आशंका कई बार जता चुके हैं कि पिछले पांच महीने से जारी जंग की वजह से ग़ज़्ज़ा में हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को भुखमरी का सामना है।  हालांकि राष्ट्रसंघ की रिपोर्ट तो इनकी संख्या लाखों में बता रही है।

अवैध ज़ायोनी शासन जहां एक ओर फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार कर रहा है वहीं पर वह दूसरी ओर राहत सामग्री में बाधा बनकर वह फ़िलिस्तीनियों को भूखों मारना चाहता है।

ग़ज़ा युद्ध के दैरान, जवाबी कार्यवाही करते हुए हिज़बुल्लाह ने 1948 के ज़ायोनी शासन के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में ज़ायोनी सैन्य ठिकानों पर कई बड़े हमले किए हैं।

लेबनान के अल-मयादीन टेलीविज़न ने हिज़बुल्लाह के एक संक्षिप्त बयान के हवाला से कहा है कि इस्लामी प्रतिरोधी संगठन ने शुक्रवार देर रात ख़िरबित मार बेस पर सतह से सतह पर मार करने वाले दो फ़लक मिसाइल दाग़े जो सटीक रूप से निर्धारित लक्ष्यों पर जाकर लगे।

हिज़बुल्लाह लड़ाकों ने कफ़र हिल्स में रुवैसत अल-आलम सैन्य ठिकाने में इस्राईली सैनिकों की एक सभा को भी निशाना बनाया, जिसमें कई सैनिकों के हताहत होने के समाचार हैं।

इसके अलावा, लेबनानी प्रतिरोधी समूह ने अल-मेनारा सैन्य स्थल के पास तैनात ज़ायोनी बलों को निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप कई सैनिक घायल हो गए।

हिज़्बुल्लाह ने अन्य सैन्य ठिकानों पर भी रॉकेट बरसाए और ज़ायोनी सैनिकों में दहशत बैठा दी।

ग्लोबल फाएरपावर ने ईरान ने विश्व की 14वीं सैन्य शक्ति बताया है।

सैन्य शक्ति की दृष्टि से इस्लामी गणतंत्र ईरान इस समय संसार में 14वें पायदान पर पहुंच गया है।

विश्व के देशों की सैन्य शक्ति की रैंकिंग करने वाली विशेष सैन्य वेबसाइट ग्लोबल फाएरपावर ने सैन्य शक्ति की दृष्टि से ईरान को दुनिया में 14वां देश माना है।

145 देशों की सैन्य रैंकिंग करने वाली इस वेबसाइट ने 60 से अधिक मानकों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि वर्तमान समय में ईरान, विश्व में सैन्य शक्ति की दृष्टि से बहुत आगे पहुंच चुका है।

ग़्लोबल फाएर पावर की लिस्ट में विश्व में सैन्य शक्ति के हिसाब से दस बड़े देश इस प्रकार हैं।  अमरीका, रूस, चीन, भारत, दक्षिणी कोरिया, ब्रिटेन, जापान, तुर्किये, पाकिस्तान और इटली।  इस सूचि में ईरान का 14वां नंबर है।

यहां पर इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि रक्षा एवं प्रतिरक्षा के क्षेत्र में इस्लामी गणतंत्र ईरान ने हालिया वर्षों के दौरान उल्लेखनीय प्रगति की है।  यह एसी प्रगति है जिसको पूरी दुनिया में स्वीकारा जा रहा है।इस समय ड्रोन का निर्माण करने में ईरान, विश्व में पांचवें स्थान पर पहुंच चुका है।  इसी प्रकार से सबमैरीन या परडुब्बी बनाने में भी ईरान का विश्व में दसवां स्थान है।  

ईरान में पहली मार्च को 12वीं संसद और विशेषज्ञ एसेंबली के 6वें कार्यकाल के चुनाव बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित हुए और कहीं से भी किसी अप्रिय घटना की ख़बर प्राप्त नहीं हुई।

मतदान केन्द्रों के दरवाज़े सुबह 8 बजे खुल गये लेकिन उससे पहले ही मतदान केन्द्रों पर लंबी लंबी क़तारे दिखाई देने लगी थीं। बर्फ़बारी और कड़ाके की ठंडक के बावजूद बूढ़े और जवान हर एक अपनी ज़िम्मेदारियों को अदा करने के लिए मतदान केन्द्रों पर हाज़िर हुआ।

मतदान सुबह 8 बजे से 5 बजे तक होना था लेकिन जनता की भरपूर भागीदारी की वजह से चुनाव आयोग ने 8 बजे रात तक समय बढ़ा दिया ताकि सभी लोग अपने अपने मताधिकारों का प्रयोग कर सकें लेकिन उसके बावजूद भी लोग क़तारों में खड़े नज़र आए और उसके बावजूद गृहमंत्रालय की ओर से एक बयान जारी करके मतदान प्रक्रिया को 10 बजे रात तक बढ़ा दिया गया लेकिन यह भी अपर्याप्त था जिसके बाद रात 12 बजे तक के लिए मतदान का समय बढ़ाया गया।

मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद मतगणना शुरु हुई और कुछ क्षेत्रों के परिणाम पूरी तरह से आ गये और जीते हुए प्रत्याशियों के नामों का एलान भी हो गया जबकि कुछ प्रत्याशियों में कांटे की टक्कर हुई हमेशा की तरह इस बार का चुनाव भी अहम था क्योंकि जनता सबसे बेहतरीन और सबसे योग्य प्रत्याशी को चुनने की कोशिश कर रही थी। जिसके बाद चुनाव दूसरे चरण में चला गया।

मौजूदा संसद का कार्यकाल मई में समाप्त हो रहा है। संसद की 290 सीटों के लिए 15200 उम्मीवारों के नामों को निरीक्षण संस्था की ओर से मंज़ूरी मिली थी। यह वर्ष 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से उम्मीवारों की सबसे बड़ी संख्या है।

उम्मीदवारों में 1713 महिलाएं थीं जो वर्ष 2020 के संसदीय चुनाव में भाग लेने वाली 819 महिला उम्मीदवारों की तुलना में दो गुना थी।

संसद के चुनाव के साथ ही विशेषज्ञ असेंबली की 88 सीटों के लिए 144 धर्मगुरुओं के बीच मुक़ाबला हुआ। यह संस्था देश के सुप्रीम लीडर के कामकाज पर नज़र रखती है और अगला सुप्रीम लीडर चुनने का अधिकार उसे होता है।

ईरान की जनता सांसदों, राष्ट्रपति और शहर और गांव परिषद के सदस्यों और इस्लामी परिषदों के सदस्यों की नियुक्ति करती है इसीलिए ईरान की राजनीतिक व्यवस्था में लोगों की प्रमुख भूमिका और स्थान है। इस्लामी व्यवस्था ने हमेशा जनता की अधिकतम भागीदारी पर ज़ोर दिया है और यह न केवल व्यवस्था के अधिकार के स्तर को बढ़ाने के लिए है बल्कि ईरानी जनता की मानवीय गरिमा का सम्मान और रक्षा करने के लिए भी है।

जहां एक ओर मतदान केन्द्रों पर जनता भव्य रूप से हाज़िर हुई और उसने अपनी ज़िम्मेदारियों पर अमल करते हुए अपने अधिकारों का प्रयोग किया वहीं दुश्नमों की साज़िशें भी शुरु हुईं और उनके प्रोपेगैंडे जो मतदान के पहले से शुरु हुए अब तक जारी हैं।

 

 

 

राष्ट्रपति रईसी कहते हैं कि ईरान की विदेश नीति में अफ्रीका महाद्वीप को विशेष महत्व हासिल है।

अल्जीरिया की यात्रा पर निकलने से पहले राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने बताया कि अल्जीरिया के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर गैस निर्यात करने वाले देशों के संगठन की सातवी शिखर बैठक में भाग लेने के उद्देश्य से वे अल्जीरिया जा रहे हें।

उन्होंने कहा कि अल्जीरिया वह देश है जिसने वर्चस्ववादियों का मुक़ाबला किया।  यही कारण है कि ईरान की जनता उनके इस प्रतिरोध का सम्मान करती है।  ईरान के राष्ट्रपति का कहना था कि अल्जीरिया, इस्लामी संस्कृति का हिस्सा रहा है।  उन्होंने कहा कि तेल और गैस निर्यात करने वाले देशों के संगठन जीईसीएफ ने ईरान और अल्जीरिया को अधिक निकट ला दिया है।

राष्ट्रपति रईसी कहते हैं कि इस्लामी गणतंत्र ईरान और अल्जीरिया में एक समानता यह है कि दोनो देश यह मानते हैं कि एकपक्षवाद का मुक़ाबला किया जाना चाहिए।  उन्होंने कहा कि ईरान के व्यापारियों के लिए अल्जीरिया एक बहुत उचित बाज़ार है और दूसरी ओर ईरान भी फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती देशों तथा केन्द्रीय एशिया के देशों के साथ अपने संबन्धों के कारण अल्जीरिया के व्यापारियों के लिए बहुत अच्छी संपर्क की भूमिका निभा सकता है।

ईरानी राष्ट्रपति कहते हैं कि गैस के निर्यातक देश होने के नाते हम क्षेत्र में इसके केन्द्र की भूमिका निभा सकते हैं।  उन्होंने कहा कि इस बैठक के इतर वे बैठक में भाग लेने वाले नेताओं से भेंटवार्ता करेंगे।

शुक्रवार, 01 मार्च 2024 16:12

इस्लाम में बाल अधिकार- 1

इस कार्यक्रम श्रंख्ला में इस्लाम की दृष्टि से बच्चों के अधिकारों की समीक्षा करेंगे।

साथ ही इस विषय की बाल अधिकार कन्वेन्शन सहित अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों से तुलना, दोनों के बीच समानताएं, इस्लाम की अधिकार से संबंधित व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अंतर की समीक्षा करेंगे।

बच्चे समाज का वह समूह है जिसे सबसे ज़्यादा ख़तरा रहता है और सबसे पहले नाना प्रकार की मुसीबतों, दबावों और बड़ों के जीवन से पैदा हुयी मुश्किलों के निशाने पर होते और उसे झेलते हैं। पूरी दुनिया में दसियों लाख बच्चे अनाथ होने, जंग की वजह से विस्थापन की समस्या, प्राकृतिक आपदाएं, अनुचित आहार, प्रदूषण और उससे पैदा होने वाली बीमारियों, मां बाप के नशेड़ी होने, मां बाप के बीच तलाक़ से पैदा मुश्किलों की वजह से बहुत मुसीबतें सहन करते हैं या फिर बुरे लोगों के चंगुल में फंस जाते हैं जो उनका दुरुपयोग करते हुए उनसे मादक पदार्थ का वितरण या मजबूरी वाले काम करवाते या उनका यौन शोषण करते हैं। विकासशील देशों में बच्चों को कुपोषण, स्वास्थ्य सेवा, उपचार और शिक्षा सुविधा के अभाव का ज़्यादा सामना होता है लेकिन विकसित देशों में बच्चों को पारिवारिक बंधन के कमज़ोर होने और नैतिक बुराइयों का सामना है।

मनुष्य की परवरिश और विकास में बचपन का बहुत अहम रोल होता है। वास्तव में बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास की बुनियाद बचपन के वर्षों में पड़ती है। इसलिए इस दौर पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। इस काम के लिए बच्चों के लिए ऐसे क़ानून बनाए जाएं जो उनके लिए उचित हों और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोशिश की जाए। बच्चे अपनी कम उम्र की वजह से कमज़ोर होते हैं इसलिए उन्हें बड़ों के समर्थन व देखभाल की ज़रूरत होती है। बच्चों के कमज़ोर होने की वजह से यह ज़रूरी है कि उनके समर्थन में क़ानून बनाकर और उन्हें ज़रूरी संरक्षण देकर उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का मार्ग प्रशस्त किया जाए। वास्तव में बच्चों के लिए विशेष क़ानून के गठन का आधार मनोविज्ञान का यह सिद्धांत है कि बच्चे न सिर्फ़ शारिरिक बल्कि मानसिक व भावनात्मक दृष्टि से बड़ों से अलग होते हैं और उनकी अपनी विशेष इच्छाएं व ज़रूरतें होती हैं, इसलिए अधिकार की दृष्टि से उन्हें विशेष क़ानून की ज़रूरत होती है जो बड़ों से अलग हो। इस्लाम ने इस विषय की अहमियत के मद्देनज़र बाल अधिकार के संबंध में बहुत ही मूल्यवान शिक्षाएं दी हैं जिनका हम इस कार्यक्रम श्रंख्ला में वर्णन और उनकी समीक्षा करेंगे। पहले हम बाल अधिकार का अर्थ, इसके इतिहास और इसके आधार पर चर्चा करेंगे।

बच्चा और नौजवान ऐसे शब्द हैं जिनकी व्याख्या की ज़रूरत है। बच्चे और नौजवान की परिभाषा इस तरह हो कि दोनों के बीच सीमा स्पष्ट रहे। इस संबंध में वयस्कता और उठान शब्दों की समीक्षा करेंगे। अलबत्ता आपको यह भी बताएंगे कि अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में बच्चा शब्द का क्या अर्थ लिया गया है। बाल अधिकार के संबंध में सबसे अहम अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में 1989 में पारित हुए बाल अधिकार कन्वेन्शन भी है जिसमें बच्चा शब्द को परिभाषित किया गया है। बाल अधिकार कन्वेन्शन के अनुच्छेद 1 में आया हैः"इस कन्वेन्शन की नज़र में 18 साल से कम उम्र वाला बच्चा है। बच्चों के बारे में लागू क़ानून के अनुसार, व्यस्कता की उम्र और कम निर्धारित होनी चाहिए।"

बाल अधिकार कन्वेन्शन के अनुच्छेद-1 के बारे में कुछ अहम बिन्दु हैः पहला बिन्दु यह है कि उक्त अनुच्छेद में बाल काल की समाप्ति का उल्लेख है जबकि इसके शुरु होने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इस ख़ामोशी के दो अर्थ हो सकते हैं। एक यह कह सकते हैं कि चूंकि बचपन उस समय शुरु होता है जब बच्चा पैदा होता है, इसलिए इसके वर्णन की ज़रूरत नहीं है। दूसरे अर्थ के लिए पहले इस विषय का उल्लेख ज़रूरी है कि बाल अधिकार कन्वेन्शन के संकलन के समय बचपन शुरु होने के बारे में बहस मौजूद थी। पोलैंड की ओर से प्रस्तावित प्रारूप में आया थाः "इंसान के बच्चे का बचपन, उसके पैदा होने के क्षण से शुरु होता है।" कुछ लोग यह कह सकते हैं कि इस दृष्टिकोण को पेश करने के पीछे, पूर्वी योरोप में गर्भपात को सही ठहराने की भावना रही हो और इस वाक्य के ज़रिए वे नहीं चाहते थे कि बच्चे की पैदाइश से पहले बचपन के दौर के निर्धारण के ज़रिए गर्भपात की अनुमति के विषय पर प्रश्न चिन्ह लगे।

इसके मुक़ाबले में आयरलैंड, वेटिकन और लैटिन अमरीकी देशों का यह मानना था कि बचपन का दौर मां के गर्भाधारण होते ही शुरु हो जाता है। इस विषय की इस्लाम की दृष्टि से भी समीक्षा की जा सकती है। ऐसा लगता है कि बचपन की शुरुआत गर्भाधारण से शुरु हो जाती है। अमरीका में जिस समय यह स्पष्ट हो जाता है कि भ्रूण पैदा होने और बाक़ी रहने के योग्य है, उसी समय से बचपन का दौर शुरु हो जाता है।                

दृष्टिकोणों में अंतर इस बात का कारण कि बना संयुक्त राष्ट्र महासभा में बाल अधिकार कन्वेन्शन का पहला अनुच्छेद बचपन की शुरुआत के बारे ख़ामोश रहे। ऐसा लगता है कि बपचन की शुरुआत को देशों के अपने अपने आंतरिक क़ानून के अनुसार माना जाए। अलबत्ता यह बात कोई कह सकता है कि जब तक बच्चा पैदा नहीं हुआ, उस समय तक उस पर बच्चे का शब्द चरितार्थ नहीं हो सकता बल्कि जब बच्चे शब्द का इस्तेमाल होता है तो उससे मन में एक ऐसे इंसान की तस्वीर आती है जो मौजूद है न वह भ्रूण जिसके बारे में पता नहीं कि वह ज़िन्दा पैदा होगा या नहीं।

ऐसा लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का विगत की तुलना में इस बारे में दृष्टिकोण कुछ बदल गया है क्योंकि 1959 में बाल अधिकार के घोषणापत्र की प्रस्तावना में आया हैः " बच्चे को शारीरिक व बौद्धिक दृष्टि से समर्थन, विशेष ध्यान और ख़ास तौर पर उसे पैदा होने से पहले और उसके बाद क़ानूनी समर्थन की ज़रूरत है..." लेकिन बाल अधिकार कन्वेन्शन में इस विषय की ओर कोई संकेत नहीं किया गया है।              

बाल अधिकार कन्वेन्शन के पहले अनुच्छेद में एक अहम बिन्दु यह हैः "सिवाए  यह कि बच्चे के बारे में व्यस्कता की उम्र कम निर्धारित हो।" इस वाक का अर्थ यह है कि कन्वेन्शन में बच्चे के बचपन के समय का निर्धारण हुआ है, इस बिन्दु की ओर भी ध्यान दिया गया है कि मुमकिन है कुछ देशों के आंतरिक क़ानून में बचपन के दौर के ख़त्म होने की अवधि अलग और 18 साल से कम हो। वास्तव में इस कन्वेन्शन में 18 साल से कम उम्र को एक तरह से आधिकारिक मान्यता दी गयी है।

दूसरी बात यह है कि इस कन्वेन्शन ने वयस्क ता और विकास को एक दूसरे से अलग नहीं किया है मानो वयस्क ता और उठान को एक माना है। अर्थात बच्चे के 18 साल होने पर उसे उसके सभी अधिकार को लागू करने के योग्य मानता और उसे स्वतंत्रता के साथ काम करने की इजाज़त देता है। अलबत्ता यह भी कहा जा सकता है कि कुछ देशों में ख़ास तौर पर ग़ैर इस्लामी देशों में बाल अधिकार और बाल अधिकार कन्वेन्शन की विषयवस्तु "उठान" को मद्देनज़र रख का निर्धारित की गयी है और उनके पास बचपन के दौर के ख़त्म होने के लिए वयस्कता जैसा कोई अर्थ नहीं है।

दूसरे दस्तावेज़ों में भी बच्चों की परिभाषा मिलती है। जैसा कि 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित अंतर्राष्ट्रीय नागरिक व सामाजिक अधिकार प्रतिज्ञापत्र के अनुच्छेद 5 और 6 में मौत की सज़ा के बारे में आया हैः "18 साल से कम उम्र व्यक्ति के संबंध में मौत की सज़ा का हुक्म लागू नहीं होगा और गर्भवती औरत के बारे में भी लागू नहीं होगा।"    

कुछ दूसरे अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ भी हैं जिनमें बचपन के दौर के ख़त्म होने की उम्र का वर्णन मिलता है। जैसा कि 1962 में जनेवा में ग़ुलामी और ग़ुलाम बेचने पर रोक लगाने वाले पूरक समझौते की धारा 1 की चौथी उपधारा, बाल अधिकार कन्वेन्शन की धारा 2 और विश्व स्वास्थ्य संगठन के दृष्टिकोण के अनुसार बच्चा शब्द उसके लिए इस्तेमाल होगा जिसकी उम्र 18 साल से कम हो। बहरहाल अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों से यह अर्थ निकलता है कि बचपन का दौर गुज़रने और वयस्कता शुरु होने के लिए कि जिसके नतीजे में व्यक्तिगत व सामाजिक ज़िम्मेदारी मिलती है, 18 साल की उम्र को मद्देनज़र रखा गया है और 18 साल को ही विकास की उम्र माना गया है।

 

तहरीके दीनदारी, यानी बीसवीं सदी में इमामिया स्कूलों की स्थापना, एक दिव्य और आध्यात्मिक योजना थी जिसमें खतीब-ए-आज़म मौलाना सैयद गुलाम अस्करी ताबा सारा अल्लाह तआला की मदद से सफल हुए। वह घड़ी कितनी शुभ रही होगी जब मृतक के ज़हन मे यह विचार आया होगा, जैसे जा बा लब को, बे आबो गियाह सहरा मे पानी मिल जाए और वह हलाक होने से बच जाए। और प्रभावी प्रबंधन असंभव चीजों में से एक है, लेकिन ईमानदारी और मेहनत का नतीजा कुछ और ही होता है।

आज, उपमहाद्वीप (भारत और पाकिस्तान) के कई छात्र, जो इमामिया स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, इमामिया स्कूल से स्नातक होने के बाद, क़ुम और नजफ़ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, अहले-बैत के स्कूल का प्रचार और प्रसार करने में सक्रिय हैं।

वर्तमान आवश्यकताएँ:

लेकिन आज की जरूरतें कुछ और हैं। बेशक, अगर खतीब आजम मौलाना गुलाम अस्करी आज जीवित होते, तो देश के युवाओं की चिंता करते और उन्हें धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ समसामयिक ज्ञान भी प्रदान करते। अच्छी, उपयोगी और सस्ती योजना शिक्षा उनके दिमाग में रही होगी, क्योंकि वह एक आंदोलनी विद्वान और मर्दे मुजाहिद थे, इज्तिहाद के बारे में सोचते थे और ऊर्जा खर्च करते थे और फिर उदारतापूर्वक उन लोगों को लेते थे जो लक्ष्य की ओर बढ़ने में सक्षम थे। बेशक, कोई भी शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्य असंभव है बिना टीम वर्क के जहां हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए जी-जान से जुट जाता है और हर छोटी-बड़ी संख्या अपनी-अपनी भूमिका निभाती है, वही लक्ष्य है। जहां ऐसे नेताओं की उच्चस्तरीय दूरदर्शिता राष्ट्रहित के तहत रणनीतिक आंदोलन में चार चांद लगा देती है। व्यक्तिगत हित, चाहे वह ईरान की इस्लामी क्रांति की नींव हो या सर सैयद अहमद खान आंदोलन या हर जगह धार्मिक आंदोलन, राष्ट्रीय हित हर चीज से ऊपर हैं। उपरोक्त स्पष्ट है, पुनरुत्थान और नवीनीकरण की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।

राष्ट्रीय संस्थाएँ:

अफ़सोस, हमारी राष्ट्रीय संस्थाएँ, धार्मिक विद्यालय और धार्मिक स्कूल अब राष्ट्रीय भावना से ख़ाली हो गए हैं। प्रशिक्षण की प्रक्रिया रुकी हुई है, बल्कि यह सांसारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक साधन बनती जा रही है। इस अराजकता में राष्ट्र को एक गुलाम अस्करी की आवश्यकता है।

18 शाबान सन 145 हिजरी 9 मई 1985 ई. तहरीके दीनदारी मौलाना सैयद गुलाम अस्करी ताबा सारा की वफात की तारीख है और यह लिखावट एक श्रद्धांजलि भी है और देश व कौम के दानवीरों के लिए एक याद भी।

ईश्वर दिवंगत मौलाना और उनके सभी साथियों तथा देश के उन सभी लोगों को क्षमा करें जिन्होंने इस आंदोलन में कदम से कदम मिलाकर भाग लिया है और यदि वे जीवित हैं तो उन्हें और अधिक सफलता प्रदान कर। हज़रत महदी (अ) के ज़हूर की उम्मीद के साथ।

 

 

 

 

 

ईरानी राष्ट्र का इतिहास कई हज़ार साल पुराना है।

इस दौरान उसने ऐसे बहुत सारे महापुरुषों को जन्म दिया है जो पूरी दुनिया में ईरान और ईरानियों के गर्व का कारण बने हैं और उनमें से एक विश्व विख्यात शायर हकीम अबूल क़ासिम फिरदौसी हैं जिन्हें ईरानी इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है।

जब हम दुनिया से जा चुकी महान हस्तियों की जीवनी और उन चीज़ों पर नज़र डालते हैं जो वे छोड़कर गये होते हैं और उन चीज़ों की तुलना महान हस्तियों से करते हैं तो हम यह पाते हैं कि विभिन्न दौर और शताब्दियों के दौरान फिरदौसी ईरान के सबसे प्रभावी विचारक और शायर हैं।

शाहनामा कहे हुए शताब्दियों का समय गुज़र रहा है परंतु आज भी उसकी सुन्दर व रोचक कहानियां लोगों में प्रचलित हैं। मानो रुस्तम ने ईरान की समस्त गलियों का भ्रमण किया है और हर जगह  यादगार छोड़ी है और दूसरी जगह की यात्रा पर हैं। ईरान के जो पारंपरिक चायखाने हैं आज भी उनकी दीवारों पर फ़िरदौसी के शाहनामे की मनोहर कहानियों के चित्र अंकित हैं और नगाड़ा बजाने वाला रुस्तम की बहादुरी की कुछ कहानियों को पढ़कर और सियावश की कहानियों या सोहराब के शोकपत्र को पढ़कर सुनने वाले को पौराणिक यात्रा पर ले जाता है।

शाहनामे को कहे हुए शताब्दियों का समय बीत चुका है परंतु आज भी बहुत से ग्रामीण और किसान फ़िरदौसी के शाहनामे की कहानियों को बयान करते हैं और कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि वे फिरदौसी के शाहनामे की कहानियों को स्थानीय भाषा में रूपांतरित कर देते हैं। रुस्तम की याद ग्रामीणों और किसानों के दिल में आशा का दीप जलाती है और सियावश, इस्फंदयार और सोहराब पर पड़ने वाले दुःखों से दिल दुःखी हो जाते हैं।

फ़िरदौसी का शाहनामा ईरानी वंशवृक्ष है। फ़िरदौसी का शाहनामा ईरान और ईरानियों का कई हज़ार वर्षीय पुराना इतिहास है। इसमें इंसान की सृष्टि, मानव सभ्यता की परिपूर्णता, निरंतर समस्त शैतानी प्रतीकों से युद्ध, सरकारों के गठन के काल और अंतिम प्राचीन सरकार की समाप्ति आदि विषयों का वर्णन किया गया है। फ़िरदौसी का शाहनामा ईरानी राष्ट्र और ईरान की कई हज़ार वर्षीय पुरानी संस्कृति का खज़ाना है। इसी प्रकार यह शाहनामा बुद्धि और ईरानी विचार का इंसाइक्लोपीडिया है और इसी कारण सुरक्षा की जानी चाहिये।

शाहनामा फ़िरदौसी का विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है जबकि जो वैचारिक सूक्ष्मता है उसका दूसरी भाषाओं में अनुवाद नहीं किया जा सकता। यही नहीं, फ़िरदौसी का शाहनामा उस राष्ट्र का सांस्कृतिक आइना है जिसकी सभ्यता, संस्कृति और परम्परा व शिष्टाचार दूसरे राष्ट्रों से बुनियादी अंतर रखता है और फ़िरदौसी के शाहनामे की महानता व वैचारिक शक्ति ने दूसरे राष्ट्रों को भी प्रभावित किया है। यूरोपीय साहित्यकारों ने फ़िरदौसी के मानवीय संदेशों व विचारों को समझा है और उसे मानव सभ्यता की मूल्यवान धरोहर समझते हैं जबकि कुछ उसे दुनिया का सबसे बड़ा साहित्यिक व वैचारिक शाहकार मानते हैं। उनमें जो साहित्यकार, विचारक और विद्वान पक्षपाती नहीं थे उन्होंने फ़िरदौसी के शाहनामे को सबसे बेहतर बताया है। यूरोपीय साहित्यकार “यान रिपका” ने फ़िरदौसी के शाहनामे के बारे में कहा है कि यह एक निश्चित वास्तविकता है कि दुनिया में किसी राष्ट्र के पास इस प्रकार का महान इतिहास व शाहनामा नहीं है जिसमें पौराणिक काल से लेकर सातवीं शताब्दी तक की समस्त एतिहासिक परम्परायें मौजूद हों।

वर्ष 2009 में फ़िरदौसी फ़ाउंडेशन ने राष्ट्रसंघ की सांस्कृतिक संस्था यूनिस्को को प्रस्ताव दिया था कि फ़िरदौसी के शाहनामे के एक हज़ार साल पूरा हो जाने के उपलक्ष्य में 2009 का नाम फिरदौसी, राष्ट्रीय इतिहास और शाहनामा वर्ष दिया जाये।

इसी आधार पर हमने उचित समझा कि विश्व विख्यात महान शायर फिरदौसी और उनके शाहनामे से दुनिया को परिचित करायें।

 जब ईरान में सामानी सरकार का अंत हो रहा था और इसी प्रकार समरक़न्द में फारसी शायरी के जनक रूदकी का जब निधन हुआ तो उसके साथ ही ईरान के एक गांव में विश्व प्रसिद्ध शायर अबूल कासिम फिरदौसी का जन्म हुआ।

फ़िरदौसी के जन्म के बारे में हमारे पास जो प्रमाण हैं वे इस बात के सूचक हैं कि फ़िरदौसी का जन्म लगभग 329 या 330 हिजरी कमरी यानी 940 से 941 ईसवी में तूस के एक गांव “पाज” में हुआ है। एतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार उस समय तूस नगर को भी बोखारा की भांति ईरान का सांस्कृतिक ध्रुव समझा जाता था। बोखारा मात्र वह नगर था जो ज्ञान अर्जित करने का आधिकारिक केन्द्र था और उसे अब्बासी खलीफा का समर्थन प्राप्त था और तूस नगर को ईरान का सांस्कृतिक केन्द्र समझा जाता था।

बहुत से इतिहासकारों और अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि  अबू मंसूरी ने अपना शाहनामा तूस नगर में ही पूरा किया और उसके बाद दक़ीक़ी, फ़िरदौसी और असदी तूसी ने भी अपनी रचनाओं को इसी नगर में पूरा किया जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस नगर में ईरान दोस्ती की भावना प्रचलित थी। इसी प्रकार सांस्कृतिक मामलों का रुझान इस बात का परिचायक है कि तूस नगर प्राचीन यादों का केन्द्र भी था।

विश्व विख्यात महान शायर फ़िरदौसी के बचपने के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। फिरदौसी के लगभग डेढ़ शताब्दी बाद के लेखक नेज़ामी अरुज़ी कहते हैं कि फिरदौसी का संबंध तूस के गणमान्य, प्रतिष्ठित और धनाढ्य परिवार से था। फ़िरदौसी ने स्वयं इस बात की ओर संकेत किया है कि जवानी में उन्होंने बड़े आराम का जीवन व्यतीत किया है।

फ़िरदौसी के काल में गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों की जो स्थिति थी उससे अवगत होने के बाद किसी सीमा तक फ़िरदौसी के जीवन के बारे में कह सकते हैं। फ़िरदौसी का संबंध तूस नगर के देहकानान अर्थात गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों से था। ईरान में इस्लामी काल में देहकानान गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों को कहा जाता था। इसी प्रकार देहक़ानान शिष्टाचार, परम्पराओं और पुरानी यादों को सुरक्षित रखने वाले लोगों को कहा जाता था। देहक़ानान के बच्चे अपेक्षाकृत आराम से रहते थे और वे नैतिकता, इतिहास, संस्कृति और ईरानी परम्पराओं की शिक्षा ग्रहण करते थे और विश्व विख्यात शायर फ़िरदौसी की ज़बान की जो पवित्रता है वह पारिवारिक प्रशिक्षा का ही परिणाम है।

फ़िरदौसी के समय जो दूसरे शायर थे उनकी रचनाओं की तुलना जब फिरदौसी की रचनाओं से करते हैं तो उनमें अंतर को अच्छी तरह समझ सकते हैं। फ़िरदौसी एक प्रतिष्ठित परिवार में पले- बढ़े थे और अपने नगर में उन्होंने मान- सम्मान का जीवन व्यतीत किया। इसी कारण उन्होंने किसी भी शासक के सामने सिर नहीं झुकाया और शाहनामे के नायकों की भांति उनके अंदर भी प्रशंसनीय विशेषताएं थीं।

फ़िरदौसी ने बाल्याकाल से ही अपने समय के ज्ञानों को अर्जित कर आरंभ किया और उस समय जो चीज़ें प्रचलित थीं उनका ज्ञान हासिल कर लिया। उन्होंने फारसी भाषा के अलावा पहलवी भाषा भी सीखी। उस समय पहलवी भाषा प्राचीन संस्कृति, इतिहास व दूसरे ज्ञानों को हासिल करने का मूल्यवान स्रोत थी। इसी प्रकार फिरदौसी अरबी भाषा से भी अवगत थे। बाद में फिरदौसी ने यूनानी तर्क और दर्शनशास्त्र आदि की शिक्षा भी प्राप्त कर ली। यूनानी दर्शनशास्त्र के बारे में उन्होंने जो शिक्षा प्राप्त की थी उसे उनके पूरे शाहनामे विशेषकर उसकी प्रस्तावना में देखा जा सकता है। शाहनामे को लिखने में 30 वर्ष का समय लगा। इस बात के दृष्टिगत फ़िरदौसी पर अध्ययन करने वाले कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि फिरदौसी ने शायरी लगभग 58 वर्ष की आयु में आरंभ की जबकि कुछ अन्य शाहनामे और उसमें मौजूद कहानियों को प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं और उनका मानना है कि फिरदौसी ने शायरी को जवानी में ही आरंभ कर दिया था। जैसे बीजन और मनीजे की कहानी है और इस कहानी का संबंध उनकी जवानी के काल से है। क्योंकि इन शोधकर्ताओं का मानना है कि बीजन और मनीजे की पूरी कहानी से फिरदौसी के युवाकाल की महक आती है।

फिरदौसी के शाहनामे पर दृष्टि डालने से शेरों में उनकी परिपक्वता को समझा जा सकता है और यह खुद शेर कहने में फिरदौसी के लंबे अतीत का परिचायक हो सकता है।

फिरदौसी ने कुछ उन प्राचीन कहानियों को भी शेर का रूप दे दिया जो मौखिक रूप से लोगों के मध्य प्रचलित हैं। इसी प्रकार उन्होंने उन कहानियों को भी शेर का रूप दे दिया जो लिखित रूप में मौजूद थीं। शायद इस प्रकार की कहानियों की प्रतियां हुआ करती थीं जो एक दूसरे के हाथों में जाया करती थीं।

बाइसंग़री का जो शाहनामा है उसकी प्रस्तावना में उसने इस संबंध में लिखा है कि जब फिरदौसी शाहनामा लिखने में व्यस्त थे तो वह हर कहानी को शेर का रूप देने में मशहूर थे और उसकी प्रतियों को आस- पास ले जाते थे। जैसाकि जब कोई रुस्तम और इस्फन्दयार की लड़ाई की प्रति रुस्तम बिन फख्रुद्दौला दैलमी के पास ले जाता था वह ले जाने वाले को 500 दीनार देते और फिरदौसी के लिए 1000 दीनार में भेजते थे।

 

 

 

 

ग़ज़्ज़ा पट्टी के मज़लूम लोग ग़ज्जा के अर्रशीद सड़क के अन्नाबलेसी चौराहे पर मानवताप्रेमी सहायता लेने की प्रतीक्षा में कतार में खड़े थे कि जायोनी सरकार ने उन पर हमला कर दिया।

इस्राईल के इस पाश्विक हमले में अब तक कम से कम 109 फिलिस्तीनी शहीद और 760 घायल हुए हैं।

गज्जा के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ अलक़ुद्रा ने बताया है कि इस्राईल के इस हमले में शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या 109 हो गयी है।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया है कि अतिग्रहणकारी जायोनी सरकार ने टैंकों से उन सैकड़ों निर्दोष व निहत्थे लोगों पर हमला कर दिया जो मानवता प्रेमी सहायता लेने के लिए पंक्तियों में खड़े हुए थे। इसी प्रकार प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया है कि टैंकों के गोले मानवता प्रेमी सहायतों से लदे ट्रकों पर गिरे।

गज्जा में अश्शेफ़ा अस्पताल के एक ज़िम्मेदार ने भी बताया है कि सैकड़ों घायलों को इस अस्पताल में पहुंचाया गया है और चिकित्सा संभावना बहुत सीमित होने की वजह से उपचार करने वाला स्टाफ भारी दबाव में है। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि आज जो चीज़ हमने देखा है उसे देखकर अलमाअमदानी अस्पताल में होने वाले अपराधों की याद आ जाती है, हमारे पास आप्रेशन के केवल तीन छोटे कमरे हैं, सैकड़ों घायलों का उपचार नहीं किया जा सकता।

ज्ञात रहे कि जायोनी सरकार के जारी आतंकी हमलों में शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या 30 हज़ार से अधिक हो चुकी है।