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सीरिया पर इस्राईली हमले पूरे क्षेत्र में संकट खड़ा कर देंगेः हसन नसरुल्लाह
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव ने मध्यपूर्व के हालात को संवेदनशील बताते हुए कहा है कि सीरिया पर ज़ायोनी शासन के हमले न केवल इस देश के लिए गंभीर ख़तरा हैं बल्कि इससे पूरे क्षेत्र में संकट फैल सकता है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने सोमवार की रात बैरूत के ज़ाहिया क्षेत्र में एक चुनावी सभा में वीडियो काॅन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से भाषण करते हुए क्षेत्र के हालात पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हालात एेसे हैं कि दुश्मन, विशेष कर अमरीका व ज़ायोनी शासन विभिन्न हथकंडों और चालों से क्षेत्रीय देशों के बीच तनाव फैलाने और युद्ध की आग भड़काने की कोशिश में हैं। उन्होंने हालिया हफ़्तों में सीरिया पर ज़ायोनी शासन के हवाई हमले और तोपख़ाने की गोलाबारी जारी रहने की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी, अमरीका के समर्थन से सीरिया संकट को क्षेत्र के अन्य देशों तक फैलाना चाहते हैं और इन परिस्थितियों में क्षेत्रीय देशों के अधिकारियों की होशियारी बहुत ज़रूरी है।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव ने इराक़ व सीरिया में दाइश जैसे आतंकी गुटों की निरंतर पराजय को इन आतंकी गुटों के समर्थकों विशेष कर अमरीका व इस्राईल की बौखलाहट का कारण बताया और कहा कि इसी लिए दुश्मन भड़काऊ कार्यवाहियों के माध्यम से अन्य देशों को भी किसी तरह संकट और अशांति में ग्रस्त करना चाहते हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि अगर हिज़्बुल्लाह के जियाले और लेबनान की सेना के जवान अपने देश और सीरिया के सीमावर्ती इलाक़ों में दाइश से नहीं लड़ते तो इस समय लेबनान में संसदीय चुनावों के आयोजन की संभावना ही नहीं होती। ज्ञात रहे कि लेबनान में 6 मई को संसदीय चुनाव आयोजित होंगे।
सेना की शक्ति में वृद्धि की जाएः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के प्रभावी और मूल्यवान अनुभवों की सराहना की और ताज़ा दम जवानों के प्रकाशमयी भविष्य की आशा व्यक्त करते हुए सैन्य क्षमताओं में निरंतर वृद्धि किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान की सशस्त्र सेना के सुप्रिम कमान्डर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार को थल सेना के वरिष्ठ कमान्डरों और सैन्य अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि सैन्य विभाग में विकास और प्रगति का क्रम जारी रहना चाहिए ताकि हमारी कल की सेना, आज की सेना से अधिक बेहतर, मज़बूत और प्रभावी सिद्ध हो सके।
सशस्त्र सैन्य दिवस के अवसर पर होने वाली इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि मैं प्यारे जवानों से इस बात की इच्छा करता हूं कि वह सैन्य विभाग में विकास और प्रगति तथा सैन्य क्षमताओं को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए पूरी मानवीय क्षमताओं को प्रयोग करना चाहिए।
सशस्त्र सेना के सुप्रिम कमान्डर ने ईरान के आर्मी चीफ़ मेजर जनरल अब्दुर्रहमीम मूसवी के क्रांति और एकता पर आधारित दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा कि मेजर जनरल मूसवी ने कृपा और सैन्य विभाग से अपनी निर्भरता के साथ जिसकी रक्षा और जिस पर बल दिया जाना चाहिए, सशस्त्र सेना में एकता के बारे में बहुत अच्छी अच्छी बातें कीं और उनका यह बयान कि प्रशासनिक मामले में बुद्धिमत्ता और आंतरिक पवित्र का दर्पण है जो जनता में सेना को और अधिक लोकप्रिय बनाता है।
पूरा इस्राईल मिज़ाइलों के निशाने परः सैयद नसरुल्लाह
हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि इस्लामी प्रतिरोध आंदोलनों के पास ऐसे मिज़ाइल मौजूद हैं जो इस्राईल के भीतर हर स्थान को लक्ष्य बनाने में सक्षम हैं।
प्राप्त रिपोर्ट अनुसार हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने लेबनान की राजधानी बेरूत के दक्षिण में एक चुनावी जनसभा को अपने वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा संबोधित करते हुए कहा कि हिज़्बुल्लाह किसी भी रूप में प्रतिरोध के रास्ते से पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने कहा कि प्रतिरोध और दृढ़ता पर कोई समझौता नहीं हो सकता इसलिए कि बड़े संघर्ष और बलिदान के बाद हमने उसे प्राप्त किया है और यह हमारे सम्मान और गरिमा का कारण हैं।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने लेबनान के सूर शहर को प्रतिरोध का शहर बताते हुए कहा कि सूर शहर के नागरिकों ने वर्ष 1980 में अतिक्रमणकारी ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध आरंभ किया था और शहादत प्रेमी कार्यवाहियों द्वारा इस्राईल की शक्ति के भ्रम को तोड़ दिया था।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने लेबनानी जनता से आग्रह किया कि वह 6 मई 2018 को लेबनान के संसदीय चुनाव में भरपूर भाग लें और लेबनान को सुरक्षा प्रदान करने वाले, आशा और वफ़ादारी के गठबंधन के प्रतिनिधियों को वोट दें।
इमाम ज़ैनुल आबगदीन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्म पांच शाबान सन 38 हिजरी में हुआ था।
उन्होंने पवित्र नगर मदीना में आंखें खोली थीं। उन्के पिता का नाम इमाम हुसैन और माता का नाम शहरबानो था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन या इमाम सज्जाद का नाम अली था किंतु अधिक उपासना और तपस्या के कारण उन्हें ज़ैनुल आबेदीन के नाम से ख्याति मिली जिसका अर्थ होता है उपासना की शोभा। उनके बारे में कहा जाता था कि जब वे ईश्वर की उपासना में लीन हो जाते थे तो उनका सारा ध्यान ईश्वर की ही ओर होता था। कहते हैं कि जिस समय नमाज़ पढ़ने के उद्देश्य से इमाम सज्जाद वुज़ू के लिए जाते थे तो उनके चेहरे का रंग पीला पड़ जाता था। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि क्या तुमको नहीं पता है कि वुज़ू करके इन्सान, किसकी सेवा में उपस्थित होने जाता है।
अपने पिता इमाम सज्जाद के बारे में इमाम मुहम्मद बाक़र कहते हैं कि मेरे पिता जब भी ईश्वर की किसी विभूति का उल्लेख करते थे तो पहले ईश्वर के सामने नतमस्तक होते थे। आपके तेजस्वी मुख पर सजदे का निशान साफ दिखाई देता था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि उनके काल में आसमान के नीचे उन जैसा कोई था ही नहीं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी हराम नहीं खाया। इमाम सज्जाद ने हराम की तरफ़ कोई क़दम नहीं उठाया। उन्होंने जो कुछ भी किया वह ईश्वर की प्रशंसा के लिए किया।
बचपन में ही इमाम ज़ैनुल आबेदीन की माता का स्वर्गवास हो गया था। उन्होंने अपने जीवन के दो वर्षा अपने दादा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सत्ताकाल का समय देखा था। वे अपने चाचा इमाम हसन से बहुत प्यार करते थे। वे अपने चाचा इमाम हसन की सेवा में उपस्थित होकर आध्यात्म की शिक्षा लेते थे। जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन की आयु 12 वर्ष की थी उस समय उनके पिता इमाम हुसैन की इमामत का काल आरंभ हुआ था। सन 61 हिजरी क़मरी से इमाम सज्जाद की इमामत या ईश्वरीय मार्गदर्शन का काल आरंभ हुआ।
कहते हैं कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन, अपने दादा हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बहुत मिलते-जुलते थे। वे अपने दादा की ही भांति रात के समय अधिक से अधिक उपासना करते और क़ुरआन पढ़ा करते थे। उनके घर पर निर्धनों को खाना खिलाने के लिए दस्तरख़ान बिछता था जिसपर भूखे आकर खाना खाया करते थे। इसके अतिरिक्त वे छिपकर भी लोगों की सहायता करते थे। उनके समय में 300 से अधिक एसे ग़रीब परिवार थे जिनकी सहायता इमाम सज्जाद छिपकर किया करते थे और उन लोगों को यह पता नहीं था कि उन्हें खाने का सामान कौन देता है। वे मश्क में पानी भरकर रात के अंधरे में लोगों के घर पानी पहुंचाते थे। स्वयं वे बहुत ही सादा खाना खाते थे।
ईश्वरीय संदेश को लोगों तक पहुंचाने का दायित्व, प्रत्येक ईश्वरीय दूत का है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के कांधे पर वही दायित्व था जिसका निर्वाह हज़रत अली ने किया था। यह एक वास्तविकता है कि ईश्वरीय दूतों या ईश्वरीय प्रतिनिधियों की ज़िम्मेदारियां एक ही हैं किंतु काल के हिसाब से इनमें परिवर्तन होता रहता है। यही वजह है कि परिस्थितियों के कारण मूल सिद्धात में परिवर्तन नहीं किया जा सकता हां, शैलियों या तरीक़ों को बदला जा सकता है। सभी ईश्वरीय दूतों का यह दायित्व रहा है कि वे अत्याचार और पथभ्रष्टता के विरुद्ध आवाज़ उठाएं। इसी दायित्व का निर्वाह इमाम हसन और इमाम हुसैन ने भी किया। इतिहास बताता है कि इमाम हसन और इमाम हुसैन ने शैलियां अलग अलग अपनाई थीं किंतु दोनों का लक्ष्य एक ही था।
इतिहास बताता है कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के काल में इस बात का मौक़ा नहीं था कि लोगों को एकत्रित करके कुछ किया जाए। उमवी शासकों ने घुटन का ऐसा वातावरण बना दिया था जिसके कारण लोगों में भय व्याप्त हो चुका था। यह ऐसा ज़माना था कि जब न तो इमाम मुहम्मद बाक़र और इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल जैसा वातावरण था जहां लोगों को सरलता से ज्ञान दिया जा सके और न ही इमाम अली अलैहिस्सलाम के ज़माने जैसा काल था जब दुश्मन के विरुद्ध सेना बनाकर उसका मुक़ाबला किया जा सकता था। यही कारण है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने एक तीसरा रास्ता निकाला। वे जानते थे कि समाज में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। अनैतिक बातों को प्रचलित किया जा रहा है। शासन के विरुद्ध राजनीतिक दृष्टि से किसी भी प्रकार का काम करने का अवसर नहीं था।
इन सभी बातों के दृष्टिगत इमाम ने दुआओं के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन आरंभ किया। उन्होंने दुआओं के माध्यम से लोगों को संदेश देने का काम आरंभ किया। संघर्ष और प्रचार की इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की एक शैली दुआ थी। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने दुआ के परिप्रेक्ष्य में बहुत से इस्लामी ज्ञानों व विषयों को बयान किया और उन सबको सहीफये सज्जादिया नाम की किताब में एकत्रित किया गया है। इस किताब को अहले बैत की इंजील और आले मोहम्मद की तौरात कहा जाता है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम अपनी दुआओं के माध्यम से लोगों के मन में इस्लामी जीवन शैली के कारणों को उत्पन्न करते हैं। इमाम ने दुआ को महान व सर्वसमर्थ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का सबसे उत्तम साधन बताया वह भी उस काल में जब लोग दुनिया के पीछे भाग रहे थे। रोचक बात यह है कि इमाम जगह-जगह पर इमामत और अहलेबैत की सत्यता को बयान करते थे।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन की दुआएं उनके काल की घटनाओं की व्याख्या करती हैं। सहीफ़ए सज्जादिया की दुआओं ने बड़े-बड़े धर्मगुरूओं और साहित्यकारों को बहुत प्रभावित किया है। इमाम की दुआएं आने वाले समय में लोगों के लिए पाठ हैं। वास्तव में इमाम सज्जाद ने दुआओं के माध्यम से लोगों का प्रशिक्षण किया है। एक अमरीकी विद्धान और सहीफ़ए सज्जादिया के अंग्रेज़ी भाषा के अनुवादक "विलयम चिटिक" कहते हैं कि यह किताब विभिन्न चरणों में लोगों को ईश्वर के बारे में बताती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम या इमाम सज्जाद ने दुआओं का चयन करके न केवल अपने काल के लोगों को इस्लाम की शिक्षा दी बल्कि अपने बाद के लोगों के लिए भी ऐसा ख़ज़ाना छोड़ा जो हमेशा मानवता का मार्गदर्शन करता रहेगा।
चौथे शुक्रवार प्रदर्शन मुक़ाबले के लिए इज़राइल तैयार है
अंतर्राष्ट्रीय कुरआन समाचार एजेंसी ने 48 न्यूज साइट के मुताबिक बताया कि लीस्तीनी आज शुक्रवार को लगातार चौथे सप्ताह "शोहदा और असीर" नामी रैली आयोजित करेंग़े।
जबकि इजरायल के अधिकारी संघर्ष कर रहे हैं कि डर और खौफ पैदा कर के शुक्रवार के प्रदर्शनों में फिलीस्तीनियों को भाग़ लेने से रोका जाए हेलीकॉप्टर के माध्यम से शिविरों और उन इलाकों में आरोप फैल रहे हैं और इसमें भाग लेने वाले को चेतावनी दे रहे हैं।
दूसरी तरफ नेशनल एसोसिएशन ऑफ मिलिटरी फोर्स फॉर द रिटर्न एंड द ब्रेकिंग ऑफ द घेराबंदी ने पूरे फिलीस्तीनी लोगों से आज के प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए आग्रह किया है।
उल्लेखनीय है कि आज तक 35 फिलिस्तीनी इस विरोध में शहीद हो चुके हैं और 4,000 से अधिक लोग घायल है, यह अनुमान लगाया जाता है कि शहीदों और घायल लोगों की संख्या आज भी बढ़ेगी।
हमारे सामने युद्ध का बड़ा मैदान हैः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामनेई ने इस्लामी व्यवस्था के विरोधी मोर्चे के एक जटिल और व्यापक युद्ध की ओर से सचेत किया है।
बुधवार को तेहरान में ईरान के गुप्तचर मंत्रालय के कर्मियों और गुप्तचर मंत्री ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।
वरिष्ठ नेता ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि हमको इस समय एक एेसे युद्ध का सामना है जिसमें एक ओर इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था है और दूसरी ओर दुश्मनों का बड़ा और शक्तिशाली मोर्चा है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारे प्रतिद्वंदियों की जासूसी संस्थाएं, इस युद्ध में मूल भूमिका अदा कर रही हैं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारे दुश्मन मोर्चे की जासूसी संस्थाएं अपने समस्त संसाधनों से काम लेने के बावजूद अब तक हमारे विरुद्ध कोई महत्वपूर्ण कार्यवाही नहीं कर सकी हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि इस युद्ध में हमने निश्चेतना से काम लिया तो हम हार जाएंगे और यदि इसको सामान्य समझा तो हम को नुक़सान होगा। उन्होंने गुप्तचर संस्था के जटिल युद्ध के आयामों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस युद्ध में घुसपैठ, गुप्तच सूचनाओं की चोरी, फ़ैसला करने वालों के अंदाज़ों को बदलने, जनता की आस्थाओं को बदलने, आर्थिक और वित्तीय संकट पैदा करने और सुरक्षा मुद्दे खड़े करने सहित विभिन्न प्रकार के मार्गों और शैलियों से काम लिया जाता है।
वरिष्ठ नेता ने ईरान के विदेशी मुद्रा के बाज़ार में पैदा होने वाली हालिया समस्या का उल्लेख करते हुए कहा कि इन मामलों का गहन अध्ययन करने पर इसमें विदेशी शक्तियों और उनकी गुप्तचर संसथाओं के लिप्त होने का पता चलता है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस युद्ध में प्रतिरोध और दुश्मन के मोर्चे की साज़िशों का डटकर मुक़ाबला करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दुश्मन पर जीत पाने के लिए रक्षा के साथ हमला करने की भी आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि इस युद्ध में हमारी गुप्तचर संस्था को निर्णायक भूमिका अदा करनी चाहिए।
सीरिया पर हमले से अमरीकी पाश्विकता स्पष्ट हुई हैः काज़िम सिद्दीक़ी
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा है कि सीरिया पर अमरीका के हालिया हमले से उसकी पाश्विकता का पता चलता है।
उन्होंने जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बे में कहा कि अमरीका की ओर से सीरिया पर हमला, समस्त अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध है। काज़िम सिद्दीक़ी का कहना था कि इस हमले से विश्ववासियों को अमरीका की पाश्विकता का पता चला। उन्होंने कहा कि प्रतिरोधक गुटों के हाथों क्षेत्र में दाइश की पराजय से अमरीका बौखलाया हुआ है।
तेहरान के अस्थाई इमामे जुमा ने इसी प्रकार अमरीका की ओर से अपने दूतावास को तेलअवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने के फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इस फ़ैसले के बाद सभी फ़िलिस्तीनी एक जुट होकर इसका विरोध कर रहे हैं। हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने फ़िलिस्तीनियों के प्रदर्शन पर इस्राईली सैनिकों के हमले की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस अवैध शासन का अंत अब निकट आ चुका है।
फ़िलिस्तीनी बंदियों के समर्थन में फ़िलिस्तीनी महिलाओं का प्रदर्शन
ग़ज़़्ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनी महिलाओं और लड़कियों ने बंदी दिवस के अवसर पर फ़िलिस्तीन की महिला बंदियों के चित्रों के साथ प्रदर्शन किए और विश्व समुदाय से इस विषय पर हस्तक्षेप करने और बंदियों की रिहाई में मदद की मांग की है।
17 अप्रैल वर्ष 1971 में ज़ायोनी शासन की जेल से पहला फ़िलिस्तीनी स्वतंत्र हुआ था और तब से लेकर आज तक इस दिन को पूरी दुनिया में फ़िलिस्तीनी बंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार फ़िलिस्तीन की जेहादे इस्लामी आंदोलन की महिला विंग की सदस्य आमेना हमीद ने कहा है कि प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने कफ़न पहन रखा था ताकि वह फ़िलिस्तीनी बंदियों की दयनीय स्थिति और ज़ायोनी जेलरों की कठोरता का चित्र पेश कर सकें। महिलाओं ने प्रदर्शन करके दुनिया को यह संदेश देने का प्रयास किया कि वह महिला फ़िलिस्तीनी बंदियों का समर्थन करें। इसी मध्य फ़िलिस्तीनियो के विक्लांग संघ ने भी ग़ज़्ज़ा में रेड क्रिसेंट संस्था की इमारत के सामने फ़िलिस्तीनी बंदियों के समर्थन में प्रदर्शन किए।
ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी में इंतेफ़ाज़ा फ़िलिस्तीन समिति ने एक बयान जारी करके कहा कि फ़िलिस्तीनी बंदियों के विरुद्ध अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन की कार्यवाहियां, युद्ध अपराध और फ़िलिस्तीनियों के साथ भेदभावपूर्ण कार्यवाहियों के समान है।
ज्ञात रहे कि इस समय भी लगभग सात हज़ार फ़िलिस्तीन ज़ायोनी शासन की जेलों में कठिन परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी बंदियों को दी जाने वाली भयावह यातनाएं!!!
17 अप्रैल को फ़िलिस्तीन में बंदी दिवस मनाया जाता है और ज़ायोनी शासन की जेलों में बंद फ़िलिस्तीनी बंदियों के साथ समरसता जताई जाती है।
इस्राईल की जेलों में फ़िलिस्तीनी बंदी अत्यंत दयनीय जीवन बिताते हैं और उन्हें बड़ी अमानवीय स्थिति में क़ैद रखा जाता है। फ़िलिस्तीनी बंदियों को इस्राईल की जेलों में जो अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं उनमें से कुछ का हम उल्लेख कर रहे हैंः
- क़ैदियों का यौन शोषण और बलात्कार की धमकी
- घूंसे मारना और राइफल के बट से कूटना
- बंदियों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करना
- कै़दियों को जानवरों की आवाज़ निकालने पर मजबूर करना
- सर्दी और गर्मी में घंटों क़ैदियों को खुले में रखना
- क़ैद करने के बाद लोगों को लातों से मारना
- बंदियों को गंदी गंदी गालियां देना
- बुरी तरह से झिंझोड़ना
- क़ैदियों को घंटों घंटों उंगलियों के बल खड़ा रखना
- बंदियों की ज़ंजीरों को ज़ोर से घसीटना
- लम्बे समय तक क़ैदियों को सोने न देना
- बदबूदार थैली से क़ैदियों का सिर बांधना
- ऊंची आवाज़ में संगीत सुनने पर विवश करना
- क़ैदी के शरीर पर सिगरेट बुझाना
- महीनों तक बंदी को नहाने न देना
- बेहोश होने तक इलेक्ट्राॅनिक शाॅक लगाते रहना
- परिजनों से मिलने से पहले निर्वस्त्र करके तलाशी लेना
- महिला बंदियों को अपने बच्चों से न मिलने देना
इस्राईल की जेलों में बंद फ़िलिस्तीन की महिला बंदियों की एक सबसे बड़ी समस्या, गर्भवती क़ैदियों की हैं जिन्हें जेल के अंदर बच्चे को जन्म देना होता है। इसी संबंध में एक दूसरी समस्या यह है कि बच्चे के दो साल पूरे हो जाने पर उसे जेल से निकाल दिया जाता है और फिर महिला बंदी अपने बच्चे से बहुत मुश्किल से मिल पाती है।
पैग़म्बरे इस्लाम, धरती का सबसे प्राणदायक बसंत
27 रजब की तारीख़ सृष्टि के पटल पर ईश्वर की महाशक्ति के जगमगा उठने का दिन है।
इस दिन पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा की गई। यह वह दिन है जब पैग़म्बरी की कली फूल बन गई और अध्यात्म के उपवन महक उठे। इसी दिन पैग़म्बरे इस्लाम का हृदय और मस्तिष्क ईश्वर के धर्म इस्लाम के नियमों का दर्पण बन गया। क़ुरआने मजीद इस घटना को पूरी मानवता पर ईश्वर के उपकार की संज्ञा देता है। क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या 164 कहती है कि ईमान वालों पर ईश्वर ने उस समय उपकार किया जब उनके बीच से पैग़म्बर का चयन किया जो निशानियों का उच्चारण करे और उन्हें हर प्रकार की त्रुटि और प्रदूषण से पवित्र बनाए और उन्हें किताब तथा अंतरज्ञान की शिक्षा दी। हालांकि वह लोग इससे पहले तक भ्रांति में थे। हम ईश्वर के इस महा उपकार पर उसका आभार व्यक्त करते हैं और ज्ञान व ज्योति के वातावरण में इंसान के प्रवेश के इस दिन के प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं।
जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम की आयु 40 साल हो गई ईश्वर ने उनके हृदय को सबसे अच्छा, सबसे बड़ा आज्ञापालक और विनम्र हृदय देखा तो उन्हें मानवता के मार्गदर्शन के लिए चुन लिया। इस अवसर पर ईश्वरीय कृपा उतरी। पैग़म्बरे इस्लाम ने दिव्य ज्योति में डूबे हुए ईश्वर के फ़रिश्ते जिबरईल को देखा कि वह विशालकाय आकाश से ज़मीन पर उतरे। जिबरईल नीचे उतरे और उन्होंने हज़रत मुहम्मद के कंधों को पकड़ा और दबाते हुए कहा कि हे मुहम्मद! पढ़ो! हज़रत मुहम्मद ने पूछा कि क्या पढूं? जिबरईल ने कहा पढ़ो अपने पालनहार के नाम से जिसने पैदा किया। जिबरईल को ईश्वर से जो संदेश मिला था वह उन्होंने हज़रत मुहम्मद को पहुंचा दिया और आसमान की ओर लौट गए। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इस घटना को विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद हिरा नामक गुफा से नीचे आए तो ईश्वर का वैभव देखकर उनकी यह हालत थी कि अपने ऊपर क़ाबू नहीं था। जिबरईल और ईश्वरीय वैभव को देखना इतनी बड़ी घटना थी कि वह इस तरह कांप रहे थे जैसे तेज़ बुख़ार में इंसान का शरीर कांपने लगता है। हज़रत मुहम्मद को यह आशंका थी कि उन्हें झुठलाया जाएगा या उन्हें पागल कह दिया जाएगा हालांकि उनके बड़ा विवेकपूर्ण इंसान कोई नहीं था। इस स्थिति में ईश्वर ने उनसे सीने को चौड़ा और को शांत कर दिया। यही कारण था कि जब वह नीचे आ रहे थे तो रास्ते के सारे पत्थर और कंकरियां उन्हें सलाम कर रही थीं। वह सब कह रही थीं सलाम हो आप पर हे ईश्वर के रसूल। मुबारक हो कि ईश्वर ने आपको महानता और आकर्षण दिया और पिछले तथा अगले सभी इंसानों से आपको श्रेष्ठ बनाया।
इस्लाम के इतिहास का बहुत महान अध्याय जिसने इंसानों की क़िसमत संवारने में निर्णायक भूमिका निभाई हज़रत मुहम्मद की पैग़म्बरी की घोषणा थी। इस घटना में यह हुआ कि ईश्वर ने अपनी ओर से इंसानों के मार्गदर्शन के लिए अपने विशेष दूत को भेजा। पैग़म्बर इस्लाम की पैग़म्बरी को किसी जाति या क़बीले तक सीमित नहीं किया जा सकता। इसलिए कि वह समूची मानवता के लिए और सभी युगों के लिए पैग़म्बर बनाए गए। अपने पैग़म्बरे को भेज कर ईश्वर ने अपनी कृपा से पूरी मानवता को जाग जाने का संदेश दिया। ईश्वर का यह संदेश जिबरईल के मुबारक परों पर नीचे आया और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र गले व ज़बान के माध्यम से पूरी धरती पर फैल गया।
जिस समय हज़रत मुहम्मद को पैगम़्बर बनाया गया उस समय दुनिया पतन और संकट का शिकार थी। अज्ञानता, लूट खसोट, अत्याचार, भ्रष्टाचार, निरंकुशता, भेदभाव, मानवता और नैतिकता से दूरी पूरे मानव समाज में फैली हुई थी। इन हालात में अरब प्रायद्वीप विशेष रूप से हेजाज़ की धरती पर सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से हालात और भी दयनीय थे। वहां महिलाओं को कोई अधिकार नहीं था बल्कि महिलाएं तो सामान की तरह ख़रीदी और बेची जाती थीं। लड़कियों को ज़िंदा दफ़ना दिया जाता था। सूरए नह्ल की आयत संख्या 58 और 59 में कहा गया है कि वह हालत थी कि जब किसी को बताया जाता था कि उसके यहां बेटी का जन्म हुआ है तो पीड़ा से उसका चेहरा काला हो जाता था और वह आक्रोश में आ जाता था। यह बुरी सूचना पाकर वह अपनी जाति और क़बीले के लोगों से छिपने लगता था। उसकी समझ में नहीं आता थ कि इस शर्मिंदगी को इसी तरह सहन करे या मिट्टी में दफ़ना दे। वह लोग कितना बुरा सोचते थे।
क़ुरआने मजीद ने कई आयतों में पैग़म्बर इस्लाम को भेजे जाने का उद्देश्य बयान किया है। सबसे मूल उद्देश्य एकेश्वरवाद की दावत देना और अनेकेश्वरवाद को ख़ारिज करना था। क़ुरआन कहता है कि हमने हर जाति में रसूल भेजा है कि केवल अनन्य ईश्वर की उपासना करो और दुष्ट ताक़तों से परहेज़ करो। वास्तव में पैग़म्बरों का सबसे महत्वपूर्ण काम अज्ञानता के मापदंडों और झूठे व ग़लत मानकों को ख़त्म करके उनके स्थान पर ईश्वरीय मानकों और मूल्यों को स्थापित करना था। पैग़म्बरों को भेजने का एक और महत्वपूर्ण लक्ष्य समाज में न्याय की स्थापना करना था। पैग़म्बरों को इसलिए भेजा गया कि वह ईश्वरीय नियमों को लागू करें, न्याय के प्यासों की प्यास बुझाएं और इंसानी ज़िदंगी को ईश्वरीय रंग में रंग दें। क़ुरआने मजीद के सूरए हदीद की आयत संख्या 25 में कहा गया है कि हमने अपने रूसलों को खुली हुई निशनियों के साथ भेजा और उनके साथ आसमानी किताब तथा सत्य व असत्य का अंतर करने वाली तुला भेजी ताकि लोग न्याय की स्थापना कर सकें।
पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि उन्हें भेजने का प्रमुख उद्देश्य विवेक को परिपूर्ण बनाना था। क्योंकि समाज में एकेश्वरवाद की स्थापना विवेक का स्तर ऊंचा करने से ही संभव है। जो इंसान अपने भीतर छिपे हुए रत्न को नहीं पहचानता वही पत्थर या मिट्टी के सामने सिर झुकाता है लेकिन जो इंसान महान हैं और बुद्धि से काम लेते हैं वह इन तमाम चीज़ों के रचयिता की उपासना और उसका आभार व्यक्त करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने एक कथन में कहा कि ईश्वर ने किसी भी पैग़म्बरे या रसूल को केवल इसलिए ही भेजा कि विवेक को सपूर्ण बनाए। अक़्ल को संपूर्णता के चरण पर पहुंचाए। इसलिए यह ज़रूरी है कि उसका विवेक और उसकी अक़्ल समाज के अन्य लोगों से अधिक हो।
इस तरह देखा जाए तो पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा महान एकजुट इस्लामी समाज की स्थापना की शुरूआत साबित हुई। वास्तव में इस घटना ने समाजों में एसा बदलाव शुरू किया जो असंभव प्रतीत होता था और यह साबित कर दिया कि उस समाज को भी महानता और ईश्वरीय मूल्यों की ऊंचाई पर ले जाया जा सकता है जो नैतिकता और विवेक से बिल्कुल दूर हो। पैग़म्बरे इस्लाम की 23 साल की मेहनत और संघर्ष का यह नतीजा मिला कि देखते ही देखते मुसलमान वैभव और गरिमा के शिखर पर पहुंच गए और उन्होंने दुनिया में वैभवशाली सभ्यता की नींव रखी। ईश्वर के अंतिम दूत की हैसियत से पैग़म्बरे इस्लाम अपने साथ मानवता के लिए सबसे संपूर्ण और समावेशी सौभाग्य पथ लेकर आए। अतः जो शिक्षाएं पैग़म्बरे इस्लाम से मिली हैं इंसान को चाहिए कि उसे प्राणदायक निर्मल जल की तरह पीते रहें ताकि मानव समाज से बुराइयां और त्रुटियां दूर होती जाएं और सबको एक आकर्षक समाज देखने का मौक़ा मिले।
पैग़म्बरे इस्लाम ने इस्लाम के संदेश वाहक की हैसियत से बहुत कम समय में उस रूढ़िवादी और हिसंक समाज को पूरी तरह बदल दिया। 13 साल के बाद ज्ञान, न्याय, एकेश्वरवाद, अध्यात्म और नैतिकता के आधारों पर एक शासन की स्थापना कर दी।
जैसे ही इस्लामी शासन की स्थापना के लिए हालात अनुकूल हुए पैग़म्बरे इस्लाम ने मक्के से मदीने की ओर पलायन किया और सबसे पहला काम यह किया कि मुसलमानों के बीच बंधुत्व के रिश्ते को मज़बूत करते हुए पुरानी दुशमनी, भेदभाव और बिखराव को ख़त्म कर दिया। उन्हें ज्ञान से सुसज्जित किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया के सामने वह धर्म पेश किया जो हर दौर में मानवता के सौभाग्य और अच्छे अंजाम को सुनिश्चित करने वाला है। उन्होंने ईश्वर की उपासना की मानवीय प्रवृत्ति को संचालित किया और इंसानों को झूठे ख़ुदाओं के सामने सिर झुकाने से रोका। पैग़म्बरे इस्लाम ने मानव समाज के भीतर मूल्यों और मापदंडों के स्तर पर क्रान्ति पैदा कर दी तथा दुनिया वालों को ईश्वर की श्रद्धा, मानवता, प्रेम और इंसाफ़ के प्रकाश से परिचित कराया।
मशहूर लेखक वेल डोरेंट लिखते हैं कि यदि लोगों पर इस महान हस्ती के प्रभाव के स्तर को हम नापें तो यह कहना पड़ेगा कि मानव इतिहास के सबसे महान पुरुष पैग़म्बरे इस्लाम हैं। वह उस समाज के विवेक और नैतिकता के स्तर को ऊंचा करने के लिए संघर्षरत थे जो मरुस्थल के तपते हुए वातावरण में दरिंदगी के अंधकार में डूब गया था। उन्हें अपने संघर्ष में जो कामयाबी मिली उसकी तुलना दुनिया के किसी भी समाज सुधारक से नहीं की जा सकती। उनके अलावा शायद ही कोई एसा मिलेगा जिसने धर्म की राह में अपनी समस्त कामनाओं को अंजाम दिया हो। मरुस्थल में बिखरे हुए क़बीलों को जो मूर्तियों की पूजा करते थे उन्होंने एकत्रि करके एकजुट समाज बना दिया।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया को भौतिक व आध्यात्मिक जीवन, सांस्कृतिक व आर्थिक जीवन, राजनैतिक व नैतिक जीवन प्रदान किया। सौभाग्यशाली वही है जो इस प्रकार के जीवन को अपनाए और उसके अनुसार व्यवहार करे। क़ुरआन भी कहता है कि हे ईमान लाने वालो ईश्वर और उसके पैग़म्बर की दावत उस समय को स्वीकार कर लो जब वह तुम्हें उस चीज़ की दावत दें जो तुम्हें जीवन प्रदान करने वाली है।