رضوی

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एसएनएन चैनल ने एक ऑनलाइन अंतरधार्मिक "अज़मत-ए-मुस्तफा (स)" सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया और पवित्र पैगंबर (PBUH) के दया, शांति और मानवता के सार्वभौमिक संदेश को श्रद्धांजलि दी और वर्तमान युग में प्रेम, सहिष्णुता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

एसएनएन चैनल द्वारा ज़ूम के माध्यम से मौलाना असलम रिज़वी की अध्यक्षता में एक सर्वधर्म सम्मेलन "अज़मते मुस्तफ़ा" का आयोजन किया गया।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, पुणे शहर के मशहूर धर्मगुरु मौलाना असलम रिज़वी ने पैगंबरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही  वसल्लम) की महानता का वर्णन करते हुए कहा कि यदि हमारे पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) केवल दुनिया के लिए ही पैगंबर होते, तो आयत इस प्रकार होती: "ऐ मेरे हबीब, हमने आपको दुनिया के लिए रहमत बनाकर भेजा है।" बल्कि, दुनिया के स्थान पर "आलमीन" शब्द का प्रयोग किया गया है, जो इस बात का संकेत है कि उनकी नबूवत और मिशन को कहकशाओं, ग्रहों और तारों तक सीमित नहीं किया जा सकता। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि जहाँ भी अल्लाह की प्रभुता है, वहाँ पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम ) की नबूवत और रहमत है।

मौलाना असलम रिज़वी के बाद श्रीमती ज़ीनत शौकत अली ने पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम ) की खूबियों को बयान करते हुए कहा कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि व  आलेही वसल्लम ) ने पूरी मानवता को संबोधित करते हुए कहा था कि नफ़रत कभी जीत नहीं सकती। सभी को यह जानना चाहिए कि इस्लाम का आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है और जो लोग आतंकवादी हैं वे कभी मुसलमान नहीं हो सकते।

नेपाल के प्रसिद्ध हिंदू धर्मगुरु श्री स्वामी विश्वासानंद ने पैगम्बरे इस्लाम को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि मैं नेपाल से सभी भारतीयों से शांति की अपील करता हूँ। आज मुसलमानों के साथ जिस तरह का दुर्व्यवहार हो रहा है, उससे मैं बहुत दुखी हूँ। इस्लाम हमेशा शांति और अमन की बात करता है और पैग़म्बरे इस्लाम शांति के दूत हैं।

अहले सुन्नत वल जमात के महान विद्वान हज़रत मुफ़्ती अब्दुल बासित ने अपने अद्भुत भाषण में कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम ) से प्रेम ईमान का एक हिस्सा है और ब्रह्मांड में उनके जैसा कोई नहीं है। ब्रह्मांड में आपकी उत्कृष्टता ऐसी है कि हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य धर्मों के पेशवाओं ने आपकी शान में क़सीदे पढ़े हैं  और आपके सम्मान में विभिन्न पुस्तकें लिखी हैं। आज, हम इस पवित्र पैगंबर के संबंध में देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी निंदा करते हैं।

भिवंडी से इत्तेहाद बैनल मज़ाहिब व मसालिक के  संयोजक श्री बदीउज़-ज़माॅ ने अपने उपयोगी और सार्थक भाषण में कहा कि आज फिलिस्तीन में मानव इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार की निंदा हर धर्म के अनुयायियों द्वारा की जा रही है, जो दर्शाता है कि मानवता अभी भी जीवित है। श्री बदीउज़-ज़मॉ ने कहा कि हमारे पवित्र पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उन पर हो) ने अंधेरे में इस्लाम का दीपक इस तरह जलाया कि चौदह सौ साल बाद भी दुनिया के बुद्धिजीवी आपको  सम्मान की दृष्टि से देख रहे हैं।

सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त, प्रखर वक्ता एवं सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व मौलाना अली असग़र हैदरी ने अपने ओजस्वी भाषण में पवित्र पैगंबर (स.) के बेदाग़ व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर खू़बसूरती से प्रकाश डाला और मानवता की दुनिया को संबोधित करते हुए कहा कि आज कुछ लोग हमारे प्यारे वतन में नफ़रत की बारूदी सुरंगे बिछा रहे हैं, जो प्यारे वतन के लिए सही नहीं है, इसलिए जरूरी है कि अब मुहम्मद मुस्तफा (स.) के चाहने वाले इस संबंध में प्रेम का संदेश  दें और नफ़रत के सौदागरों की साजि़शों को नाकाम करें। दुनिया के सभी जागरूक लोगों को यह समझना चाहिए कि हमारे लिए आदर्श मुग़ल बादशाह नहीं बल्कि हजरत मुहम्मद मुस्तफा़ (स.) हैं।

श्री फ़िरोज़ मीठी बोरवाला ने अपने साहसिक भाषण में कहा कि यदि हमारे वतन के भाई आई लव मोहम्मद के मुकाबले में आई लव महादेव कहते हैं तो यह हमारे लिए बहुत खु़शी की बात है आज ज़रूरत है कि हिंदू और मुसलमान आपस में बातचीत करते रहें ताकि उनके बीच प्रेम और स्नेह बढ़े और नफ़रत फैलाने वाले तत्व अपनी घिनौनी साज़िश में नाकाम हो जाएँ।

श्रेष्ठ कवि और हुसैनी ब्राह्मण, श्री पंडित सागर त्रिपाठी ने सभी मुसलमानों से एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय अनुरोध किया कि  केवल "आई लव मुहम्मद" ना कहा जाए या लिखा जाए, बल्कि मुहम्मद के आगे "हज़रत" शब्द भी जोड़ा जाए क्योंकि सरकारे दोआलम वह महान हस्ती हैं जिन्हें उनकी उपाधि से याद किया जाना चाहिए।

इस महान कवि और लेखक नेअपने इन दो अशआर के माध्यम से पवित्र पैगंबर के दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और हमें बताया कि पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम ) न केवल मुसलमानों के नेता हैं, बल्कि हर इंसान उनके पवित्र दरबार के सामने विनम्र है।

पंडित त्रिपाठी के दो शेर इस प्रकार है

रोशनी के अमीन हैं आका़ । रुए माहे मोबीन हैं आक़ा ।  

सिर्फ़ एक कौ़म  के नहीं हैं वह । रहमते  आलमीन हैं आक़ा

प्रसिद्ध वक्ता और प्रख्यात धार्मिक विद्वान मौलाना अकी़ल तुराबी ने अपने गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन से इस यादगार सम्मेलन को सफ़ल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पैनल में उपस्थित सभी विद्वानों और बुद्धिजीवियों का आभार व्यक्त किया।

एस एन एन चैनल के प्रधान संपादक मौलाना अली अब्बास वफ़ा ने पूरी मेहनत और लगन से इस कार्यक्रम का आयोजन और संकलन किया और इस सम्मेलन को एस एन एन चैनल के माध्यम से यूट्यूब पर लाइव प्रस्तुत किया, जिसे भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में देखा गया।

 

 हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) की याद में भीखपुर, सिवान में एक धार्मिक और साहित्यिक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में धार्मिक विद्वानों, कवियों और आले मुहम्मद के प्रेमियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में धार्मिक पाठ, क़ुरआन की तिलावत, भाषण और दुआएं पेश की गईं, और युवाओं को इस्लामी ज्ञान की ओर प्रेरित किया गया।

भीखपुर, बिहार में इस सभा का आयोजन हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) की याद में किया गया। इसके साथ ही आयतुल्लाहिल उज़मा सिस्तानी (म ज़) की मरहूमा पत्नी के लिए ईसाल-ए-सवाब की एक मजलिस भी आयोजित की गई। इसके अलावा इस्लामी ज्ञान के लिए कक्षाएं भी चलाई गईं। तिलावत की ज़िम्मेदारी आक़िल मुस्तफ़ा ने निभाई। कार्यक्रम की अध्यक्षता सय्यद इंतज़ार हुसैन रज़वी ने की। कविता कार्यक्रम में करार हुसैन, नदीम नदीमी, गुलाम नज़फ़, वफ़ादार हुसैन रज़वी, परवेज़ हुसैन रज़वी और अनवर भीखपुरी ने भाग लिया।

भाषण और विश्लेषण के लिए मौलाना सय्यद अली रज़वी और मौलाना मुहम्मद रज़ा मारूफ़ी ने भाग लिया। इसके बाद मौलाना सय्यद शमा मुहम्मद रिज़वी ने दुआ की। उन्होंने इस्लामी ज्ञान की कक्षाओं के माध्यम से युवाओं को शिक्षा और अध्ययन की ओर प्रेरित किया।

इस सभा में जनाब आरिफ़ अब्बास ने "हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) का जीवन और चरित्र" विषय पर प्रकाश डाला। इसके बाद मौलाना मुहम्मद रज़ा मारूफ़ी ने "हज़रत फ़ातेमा मासूमा की यात्रा और शिक्षा के कार्य" विषय पर बात की। तीसरे वक्ता मौलाना सय्यद अली रज़वी थे, जिन्होंने "हज़रत फ़ातेमा मासूमा: दिव्य अनुग्रह का द्वार" विषय पर भाषण दिया। उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) का स्थान दिव्य आशीर्वाद का घर है, जहाँ से ज्ञान और आध्यात्मिकता की धारा निकलती है।

अंत में मौलाना सय्यद शमा मुहम्मद रिज़वी ने दुआ में कहा कि हज़रत फ़ातेमा मासूमा के श्रद्धालु जो उनकी ज़ियारत करते हैं, वे आल-ए-मुहम्मद के प्रेमी होते हैं। आठवें इमाम अली रज़ा (अ) ने कहा था कि जिसने हज़रत फ़ातेमा मासूमा की ज़ियारत की, उसने गोया मेरी ज़ियारत की। उन्होंने आगे कहा कि जो लोग आले मुहम्मद के प्रेमी होते हैं, वे अपनी जान और माल को कुछ नहीं समझते और अपने इमामों की ज़ियारत के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते हैं।

मौलाना ने आगे कहा कि छठे इमाम जफर सादिक (अ) ने फ़रमाया: "क़ुम हमारा हरम है, जहाँ बीबी करीमा का रौज़ा है, वहीं दीन का केंद्र है, जहाँ दुनिया के कोने-कोने में ज्ञान की मशाल जल रही है।" उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे आगे आने वाली कक्षाओं में भाग लें ताकि अहले-बैत (अ) के ज्ञान की रोशनी फैलती रहे।

 

आज हम एक नई पीढ़ी के सामने हैं जो किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी है, और उनकी परवरिश के तरीकों पर ध्यान देना समाज के भविष्य को आकार दे सकता है।

पिछले कुछ वर्षों में बार-बार कहा गया है कि तकनीकी युग के युवाओं और बच्चों के साथ बातचीत के लिए परवरिश के तरीकों में बदलाव जरूरी है। लेकिन आज हम एक और नई पीढ़ी के सामने हैं, जो अब किशोरावस्था में आ चुकी है। उनकी सही परवरिश पर ध्यान देने से भविष्य के समाज की दिशा तय हो सकती है।

यह पीढ़ी तेजी से बदलती तकनीक, इंटरनेट और लगातार बदलाव के दौर में पली-बढ़ी है। सोशल मीडिया और चैटबॉट्स के जरिए ये दुनिया के अलग-अलग मुद्दों से वाकिफ हैं। इसलिए इस पीढ़ी की परवरिश के लिए एक नया, लचीला और रचनात्मक नजरिया जरूरी है।

इसी पृष्ठभूमि में परिवार और संस्कृति के विशेषज्ञों से बातचीत की गई ताकि नई पीढ़ी की परवरिश में आए बदलाव और उनकी विशेषताओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके।

माता-पिता को नई कौशल की जरूरत है

ज़ैनब रहीमी तालारपुश्ती ने कहा: नई पीढ़ी के बच्चों के माता-पिता बनने के लिए न केवल एक अलग दृष्टिकोण की जरूरत है, बल्कि नए कौशल, जानकारी और संवाद के तरीके की भी जरूरत है। जो माता-पिता अलग-अलग पीढ़ियों के बच्चों को पालते हैं, वे इस अंतर को अच्छी तरह महसूस करते हैं।

उन्होंने इमाम अली (अ) की नहजुल बलाग़ाह, हिकमत 175 का हवाला देते हुए कहा:
لا تُكرهوا أَولادَكُمْ على آدابِكُمْ فإنَّهُمْ مَخلوقونَ لِزَمانٍ غَيرِ زَمانِكُ ला तकुरेहू औलादकुम अला आदाबेकुम फ़इन्नहुम मख़लूक़ूना लेज़मानिन ग़ैरे ज़मानेका
अपने बच्चों को अपने तरीकों पर मजबूर न करो, क्योंकि वे उस जमाने के लिए बने हैं जो तुम्हारे जमाने से अलग है।

यह उपदेश इस सच्चाई को दर्शाता है कि हर पीढ़ी का समय, माहौल और जरूरतें अलग होती हैं। इसलिए परवरिश का तरीका भी बदलना जरूरी है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि नई पीढ़ी में बुद्धिमत्ता की ऊंचाई, हिम्मत, जानकारी तक व्यापक पहुंच, अपनी राय पर अड़िग रहना, बोर करने वाली चीजों से बचना और औपचारिक परंपराओं से दूरी जैसी विशेषताएं साफ दिखाई देती हैं।

रहीमी के अनुसार, माता-पिता को भी इस पीढ़ी की जरूरतों के अनुसार खुद को बदलना होगा:

  • आधुनिक जानकारी से अवगत रहना
  • मीडिया साक्षरता (सोशल मीडिया को समझने की क्षमता)
  • इस पीढ़ी की भाषा, सोच, रुचियों और मानसिक दुनिया से परिचित होना
  • नरमी के साथ प्रभावी संबंध बनाने की क्षमता
  • इस्लामी और ईरानी जीवन शैली की रक्षा करना
  • सुनने की क्षमता और आलोचनात्मक न होने का रवैया

"चैटबॉट्स" के युग में परवरिश

ज़हरा महरजवाई ने कहा कि हाल की पीढ़ियां पिछली पीढ़ियों से बिल्कुल अलग हैं। सोशल मीडिया के विस्तार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में प्रगति ने जीवन शैली को पूरी तरह बदल दिया है।

उन्होंने कहा: "इस पीढ़ी के साथ प्रभावी संपर्क के लिए जरूरी है कि हम पहले खुद उनकी स्थिति और दुनिया को समझें, उनकी जगह खुद को रखें, और उनके व्यवहार को नष्टकारी न समझें। उनकी बातचीत का तरीका या बाहरी उदासीनता कोई संकट नहीं है, बल्कि उनके जमाने की विशेषता है।"

हुज़ूर व जामिया की एक शिक्षिका ने आगे कहा: "एक अच्छी मां बनने के लिए जरूरी है कि महिला खुद को सुधारे। अगर माता-पिता में धैर्य, क्षमा और सहनशीलता जैसे गुण नहीं हैं, तो वे अपने बच्चों में ये गुण नहीं उत्पन्न कर सकते।"

उन्होंने जोर देकर कहा: "आध्यात्मिक ध्यान और अल्लाह व अहल-ए-बैत (अलैहिमुस्सलाम) से मदद मांगना बेहद जरूरी है, क्योंकि केवल आधुनिक परवरिश के तरीके इंसान को सफल नहीं बना सकते। अल्लाह की मदद के बिना इंसान अकेले सभी पहलुओं को संभाल नहीं सकता।"

नई पीढ़ी में बेटियों की परवरिश

संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय एक महिला ने कहा: बेटियों के साथ लगातार और सार्थक संबंध बनाए रखना, उन्हें आत्मविश्वास, अपने आप पर भरोसा और अपनी पहचान को स्वीकार करने का एहसास दिलाना माता-पिता, खासकर पिता के लिए एक महत्वपूर्ण परवरिशी जरूरत है।

उन्होंने याद दिलाया: "बेटियां धरती पर फरिश्तों की तरह होती हैं, चाहे वे किसी भी दशक या पीढ़ी की हों। उनकी फितरत पाकीजा होती है, इसलिए माता-पिता को इस पाकीजगी को बचाने के लिए एक अच्छा माहौल देना चाहिए। जो बेटी अपनी कद्र जानती है, वह कभी भी खुद को सामान्य या कमजोर नहीं दिखाती। आत्मविश्वासी लड़की अपने गौरव पर समझौता नहीं करती।"

सारांश

आज की पीढ़ी न केवल तकनीक में, बल्कि सोचने और महसूस करने के तरीके में भी अलग है। इसलिए माता-पिता को बीते जमाने की पारंपरिक परवरिश से आगे बढ़कर प्यार, समझ, ज्ञान और आध्यात्मिकता के मिश्रण से काम लेना होगा, ताकि वे नई पीढ़ी को आधुनिक दुनिया में भी ईमान, नैतिकता और गरिमा के साथ बढ़ा सकें।

 

 भारत में अजमेर के तारागढ़ स्थित मदरसा जाफ़रिया में हर हफ्ते "महदीवाद की जानकारी" शीर्षक से एक कक्षा चल रही है, जिसे इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम मौलाना नक़ी महदी जैदी द्वारा संचालित किया जाता है। इन पाठों में मोमेनीन और छात्रों की बड़ी संख्या भाग लेती है।

हुज्जतुल इस्लाम मौलाना नक़ी महदी जैदी ने "इमाम हसन अस्करी (अ) और इमाम महदी (अ) की याद" विषय पर बात करते हुए कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) इमाम अली नक़ी (अ) के पुत्र और इमाम ज़माना हज़रत महदी (अ) के पिता हैं। आपका जन्म 8 या 10 रबीअ उस सानी 232 हिजरी को मदीना मुनव्वरा में हुआ था। आपका नाम हसन है और आप "अस्करी" उपनाम से अधिक प्रसिद्ध हुए, क्योंकि आप जिस मोहल्ले में रहते थे, उसका नाम "अस्कर" था। दूसरा कारण यह है कि एक बार खलीफा ने इमाम (अ) को उसी स्थान पर अपनी सेना का निरीक्षण कराया था और इमाम ने अपनी दो उंगलियों के बीच से उन्हें अपनी दैव्य सेना का दृश्य दिखाया था।

उन्होंने आगे कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) शियो के अंतिम इमाम के पिता हैं और वे शहर समर्रा में रहते थे। अपने समय की कठिनाइयों के कारण उन्होंने हज यात्रा भी नहीं की थी, क्योंकि आप (अ) ने पांच साल की उम्र से ही सामर्राह की ओर हिजरत कर ली थी और अपने जीवन के अंत तक उसी शहर में रहे।

तारागढ़ के इमाम जुमा ने कक्षा के दौरान इमाम हसन अस्करी (अ) और इमाम महदी (अ) का परिचय देते हुए कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने अपने पुत्र इमाम महदी (अ) की इमामत को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए:

  1. कभी अपने विशेष साथी को अपने पुत्र को दिखा देते थे, जैसे अहमद बिन इस्हाक़ क़ुम्मी को दिखाया। उन्होंने पूछा: "आपके बाद इमाम कौन होगा?" इमाम ने पर्दे के पीछे से एक तीन साल के बच्चे को बुलाया जिसका चेहरा बद्रे कामिल की तरह चमक रहा था, और फ़रमाया: "अगर तुम्हारा स्थान इतना ऊंचा न होता तो मैं तुम्हें अपने इस पुत्र को न दिखाता।" (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज384)
  2. कभी अपने पुत्र को साथियों के सामने लाते थे, ताकि संदेह खत्म हो जाए। (बिहारुल अनवार, भाग 51, पेज6)
  3. कई बार अपने पुत्र के नाम पर अकीका (नामकरण समारोह) किया, ताकि अधिक लोगों को पता चले कि अल्लाह ने आपको पुत्र प्रदान किया है। (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज431)

हुज्जतुल इस्लाम मौलाना नक़ी महदी जैदी ने वकालत प्रणाली का ज़िक्र करते हुए कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने वकालत प्रणाली को मजबूत किया, ताकि शिया हमेशा इमाम से संपर्क में रह सकें। ये वकील मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे और शिया अपनी समस्याओं और सवालों को उनके जरिए इमाम तक पहुंचाते थे। उदाहरण के लिए, अली बिन बाबवेह क़ुम्मी ने अपने पुत्र के लिए दुआ की गुहार वकीलों के जरिए इमाम ज़माना (अ) तक पहुंचाई। दुआ के परिणामस्वरूप उनके यहां प्रसिद्ध फकीह शेख़ सदूक़ (मुहम्मद बिन अली बिन बाबवेह) का जन्म हुआ। (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज 503)

उन्होंने चार विशेष नायबों (नियुक्त नायब) का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह वास्तव में शिया को ग़ैबते कुबरा के लिए तैयार करने का एक तरीका था, ताकि वे धीरे-धीरे सीधे इमाम से वंचित होने के बाद सामान्य नायबों (यानी फकीह और मराजेअ) की ओर रुख कर सकें।

उन्होंने कक्षा के अंत में इमाम हसन अस्करी (अ) की कुछ हदीसे सुनाईं:

हदीस 1: खादिम अबू हमज़ा नसीर बयान करते हैं कि मैंने बार-बार देखा कि इमाम हर गुलाम से उसकी भाषा (तुर्की, रूमी, अरबी) में बात करते थे। मैं हैरान रह गया। इमाम ने फरमाया: "अल्लाह अपने हुज्जत को सभी भाषाओं और जातियों से अवगत कराता है ताकि वह सभी के लिए हुज्जत ज़ाहिर हो। अगर यह विशेषता न होती तो इमाम और दूसरों में कोई अंतर नहीं रहता।" (अल-काफी, भाग 1, पेज 509)

हदीस 2: مَن أنِسَ باللّه ِ اسْتَوحَشَ مِن النّاسِ मन आनेसा बिल्लाहिस तौहशा मिनन नासे। "जो व्यक्ति अल्लाह के साथ प्रेम रखता है, वह लोगों से घृणा करता है।" (नुज़हतुन नाज़िर, पेज 146, हदीस 11)

हदीस 3: مَن رَکِبَ ظَهَر الباطِلِ نَزَلَ بِهِ دارَ النَّدامَةِ मन रक़ेबा ज़हरल बातेले नज़ला बेहि दारुन नदामते। "जो बातिल पर सवार होगा, वह पछतावे के घर में उतरेगा।" (नुज़हतुन नाज़िर, पेज 146, हदीस 19)

हदीस 4: لَا یُسْبَقُ بَطِی‏ءٌ بِحَظِّهِ وَ لَا یُدْرِکُ حَرِیصٌ مَا لَمْ یُقَدَّرْ لَهُ. مَنْ أُعْطِیَ خَیْراً فَاللَّهُ أَعْطَاهُ وَ مَنْ وُقِیَ شَرّاً فَاللَّهُ وَقَاهُ ला युस्बकु बताउन बेहज़्ज़ेहि वला युदरेको हरीसुन मा लम युक़द्दर लहु। मन ओतेया ख़ैरन फल्लाहो आअताहो व मन वोक़ेया शर्रन फल्लाहो वक़ाहो। "किसी का रिज़्क चूक नहीं सकता, चाहे वह धीमा हो। और कोई लालची व्यक्ति उससे ज्यादा नहीं पा सकता जो उसके लिए तय नहीं है। जिसे भलाई मिली वह अल्लाह ने दी और जिसे बुराई से बचाया गया वह भी अल्लाह की रक्षा से बचा।" (नुज़हतुन नाज़िर, पेज 146, हदीस 20)

हदीस 5: خَصْلَتانِ لَیْسَ فَوْقَهُما شَیءٌ: الإیمانُ بِاللهِ وَ نَفْعُ الإخْوانِ ख़स्लताने लैसा फ़ौक़ाहोमा शैउन: अल इमानो बिल्लाहे व नफ़्उल इख़्वाने। "दो आदतें ऐसी हैं जिनसे बढ़कर कोई चीज नहीं: अल्लाह पर ईमान और अपने धार्मिक भाइयों को फ़ायदा पहुंचाना।" (तोहफ़ुल उकूल, पेज 489)

 

इस्लाम ने घर के भीतर औरत के किरदार को जो इस क़द्र अहमियत दी है उसका कारण यही है कि औरत में अगर फ़ैमिली से लगाव हो, अपनी दिलचस्पी ज़ाहिर करे, बच्चों की तरबियत को अहमियत दे इस से समाज में तरक़्क़ी का सबब होगा।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,इस्लाम ने घर के भीतर औरत के किरदार को जो इस क़द्र अहमियत दी है उसका कारण यही है कि औरत में अगर फ़ैमिली से लगाव हो।

अपनी दिलचस्पी ज़ाहिर करे, बच्चों की तरबियत को अहमियत दे, उनकी देखभाल करे, उनको दूध पिलाए, अपनी आग़ोश में उनकी परवरिश करे और परवान चढ़ाए, उन्हें सांस्कृतिक सामग्री के तौर पर क़िस्से, शरीअत के हुक्म और क़ुरआन के क़िस्से और पाठ लेने योग्य वाक़ए बताए और जहाँ कहीं भी मौक़ा मिले खाद्य पदार्थ की तरह रूहानी पदार्थ चखाती रहे तो समाज की नस्लें बुद्धिमानव अक़्लमंद बनकर परवान चढ़ेंगी।

यह औरत का हुनर है और यह काम औरत के शिक्षा हासिल करने, शिक्षा देने, काम करने और राजनीति या इस तरह के दूसरे काम अंजाम देने से विरोधाभास भी नहीं रखता।

 

 

आयतुल्लाहिल उज़मा वहीद खुरासानी ने कहा कि एक समय ऐसा आता है जब उम्र की मोहलत खत्म हो जाती है और मलकुल मौत इंसान के सामने आ जाता है। उस समय न तो रिश्तेदार काम आते हैं, न ही संबंध; इंसान अकेला अपने अमल के साथ रह जाता है इसलिए उस पल के लिए अभी से सोचिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा वहीद खुरासानी ने अपने एक बयान में मौत के पल और उसके असली मायने पर बात करते हुए फरमाया कि इंसान को चाहिए कि वह अपनी जिंदगी के दौरान उस वक्त के लिए तैयार रहे जब उसे दुनिया से रुखसत होना है।

उन्होंने हज़रत इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम का क़ौल नक़्ल किया,ऐ जुनादा! आख़िरत के सफ़र के लिए तैयार हो जाओ और रख्त-ए-सफ़र इसी दुनिया में मुहैया कर लो इससे पहले कि वक्त-ए-अजल आ पहुंचे।

आयतुल्लाह वहीद खुरासानी ने फरमाया,इंसान दुनिया की तलब में लगा रहता है, जबकि मौत उसकी तलाश में रहती है। एक वक्त ऐसा आता है जब रिस्साम-ए-उमर टूट जाती है और मलकुल मौत आ जाता है। उस वक्त बीवी, बच्चे, बहन भाई और दुनिया के सारे रिश्ते पीछे रह जाते हैं। इंसान तन्हा रह जाता है  सिर्फ अपने अमल के साथ।

उन्होंने ताकीद की कि दुनिया की मसरूफियात  इंसान को गाफिल न कर दें, क्योंकि आख़िरकार सब खत्म हो जाता है।

आज ही से उस दिन के लिए फिक्र करें, जब कोई सहारा नहीं होगा, सिवाए उन अमल के जो इंसान अपने साथ ले जाएगा।

 

ईरान आर्मी के धार्मिक और राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली सईदी ने कहा कि 12 दिन के युद्ध में ईरानी जनता की पूर्ण भागीदारी ने दुश्मन की सभी योजनाओं को विफल कर दिया और एकता, दृढ़ता और वफादारी की महान उदाहरण स्थापित की।

ईरान आर्मी के धार्मिक और राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली सईदी ने कहा कि 12 दिन के युद्ध में ईरानी जनता की पूर्ण भागीदारी ने दुश्मन की सभी योजनाओं को विफल कर दिया और एकता, दृढ़ता और वफादारी की महान उदाहरण स्थापित की।

ईरान और इजरायल के बीच हुए 12 दिन के युद्ध की शुरुआत 13 जून 2025 को हुई, जब इजरायली सरकार ने ईरान के परमाणु केंद्रों, सैन्य अड्डों और आवासीय क्षेत्रों पर हवाई हमले किए। दुश्मन का उद्देश्य ईरान के परमाणु और रक्षा कार्यक्रम को नष्ट करना और इस्लामी व्यवस्था को कमजोर करना था, लेकिन ईरानी जनता, सेना और नेतृत्व की दृढ़ता ने उसे मजबूत जवाब दिया।

हुज्जतुल इस्लाम अली सईदी के अनुसार, इस युद्ध में जनता की भूमिका असामान्य रही। जनता ने अपनी जान, संपत्ति और ईमान के साथ दुश्मन की साजिशों को नाकाम कर दिया और वफादारी, एकता और दूरदृष्टि का अद्वितीय प्रदर्शन किया। जनता के समर्थन ने सशस्त्र सेना को ताकत दी, रक्षा मोर्चे को मजबूत किया, और दुश्मन के विश्लेषकों के सभी अनुमानों को गलत साबित कर दिया।

उन्होंने कहा कि जनता की एकता ने न केवल ईरान की रक्षा और राजनीतिक ताकत को वैश्विक स्तर पर मजबूत किया, बल्कि दुश्मन के प्रचार और मनोवैज्ञानिक युद्ध को भी विफल कर दिया। लोगों की मौजूदगी ने आजादी, स्वतंत्रता और भूमि की अखंडता की रक्षा की।

हुज्जतुल इस्लाम अली सईदी के अनुसार, 12 दिन के युद्ध के बाद कई महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए:

  • पहला: अमेरिका और इजरायल की सबसे बड़ी योजना, यानी ईरान की व्यवस्था को गिराने की साजिश, पूरी तरह विफल हो गई।
  • दूसरा: ईरान ने अपनी रक्षा शक्ति और तकनीक के जरिए दुनिया को हैरान कर दिया और दुश्मन के "अजेय" होने के मिथक को तोड़ दिया।
  • तीसरा: वली-ए-फ़क़ीह का नेतृत्व एक स्पष्ट वास्तविकता बनकर वैश्विक स्तर पर उभरा।
  • चौथा: प्रतिरोध मोर्चे, खासकर हिज़बुल्लाह, में आत्मविश्वास में वृद्धि हुई और क्षेत्र में ताकत का संतुलन ईरान के पक्ष में बदल गया।

उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान सुरक्षा बलों ने दुश्मन के आंतरिक एजेंटों और जासूसी नेटवर्क को भी बेनकाब करके उनकी योजनाओं को विफल कर दिया।

अंत में उन्होंने जोर देकर कहा कि ईरान की सफलता केवल एक सैन्य जीत नहीं, बल्कि एक विचारधारात्मक और आध्यात्मिक विजय है, जिसने साबित कर दिया कि जब नेतृत्व, जनता और सेना एकजुट होते हैं, तो कोई भी ताकत इस्लामी ईरान के सामने टिक नहीं सकती।

ईरानी संसद के अध्यक्ष ने कहा,गज़्जा युद्धविराम दुष्ट सियोनी प्रधानमंत्री की अशुद्ध योजनाओं की हार का फैसला था।

ईरानी संसद के अध्यक्ष डॉक्टर मोहम्मद बाकिर क़ालीबाफ़ ने कहा,इस्लामी गणतंत्र ईरान फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में युद्ध अपराधों और नरसंहार को रोकने के लिए हर कार्रवाई का समर्थन करता है।

उन्होंने कहा, गाजा के संबंध में नरसंहार का स्थायी रूप से अंत, गाजा पर आक्रमण और कब्जे का अंत, क्षेत्र से खाली करना, घेराबंदी का अंत और गाजा में भोजन, दवाएं और अन्य आवश्यक सामान की तत्काल और स्वतंत्र पहुंच हमारी मांगें हैं।

डॉक्टर क़ालीबाफ़ ने कहा,पिछले दो वर्षों में ईरानी संसद ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दुनिया के सभी देशों विशेष रूप से इस्लामी देशों की संसदों के सहयोग से गाजा युद्धविराम और गाजा में नरसंहार को रोकने की कोशिश की है।

उन्होंने कहा,गाज़ा का युद्धविराम वास्तव में इज़राईली प्रधानमंत्री की अशुभ योजनाओं की हार थी।

ईरानी संसद के अध्यक्ष ने वैश्विक समुदाय को संबोधित करते हुए कहा,अंतर्राष्ट्रीय सरकारें और अदालतें गाजा में नरसंहार के दोषियों के खिलाफ मुकदमे चलाएं।

पवित्र रक्षा की तरह, 12 दिन के युद्ध में भी ईरानी जनता दृढ़ता का प्रतीक बन गई। इजरायली और पश्चिमी ताकतों ने पूरी तरह से युद्ध और मीडिया शक्ति के बावजूद ईरानी जनता के संकल्प को कमजोर नहीं कर सकी। जनता ने सबसे कठिन आर्थिक परिस्थितियों में भी एकता, दूरदृष्टि और ईमान के साथ दुश्मन की सभी योजनाओं को विफल कर दिया।

दिफ़ाअ मुक़द्दस ईरान के इतिहास का एक उज्ज्वल अध्याय है, जहां पुरुष, महिला, बूढ़े और युवा सभी ने मिलकर दुश्मन के खिलाफ एक महान इतिहास रचा। ख़ुर्रम शहर का प्रतिरोध और जनता की भागीदारी ने साबित कर दिया कि ईमान और गरिमा के आगे कोई ताकत ज्यादा देर नहीं टिक सकती। इसी जज़्बे ने ईरान को इजरायल और ईरान के 12 दिन के युद्ध में फिर से जीत और सम्मान दिलाया।

इस युद्ध में अहंकारी ताकतों ने इजरायली सरकार के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर प्रचार और मनोवैज्ञानिक युद्ध शुरू किया। इजरायल के प्रधानमंत्री ने मीडिया के जरिए ईरानी जनता को संबोधित करते हुए उनके हौसले को गिराने की कोशिश की, लेकिन ईरानी जनता पवित्र रक्षा के मुजाहिदों की तरह सचेत रही और दुश्मन की चालों को नाकाम करती रही।

हालांकि ईरान आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था, लेकिन जनता ने अपने व्यवहार से दुश्मन को संदेश दिया कि वे हर हाल में अपने देश, इस्लामी सरकार और शीर्ष नेतृत्व के साथ हैं। लोगों ने संयमपूर्ण खरीदारी, शांति और व्यवस्था का ध्यान रखा, सरकार के साथ पूरा सहयोग किया और दुश्मन के घुसपैठिए तत्वों को बेनकाब किया।

ईरानी जनता ने कुरान पाक की आयत وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللّٰهِ جَمِیعًا وَ لَا تَفَرَّقُوا (और तुम सभी अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़ लो और बिखरो मत) के अनुसार एकता का ऐसा उदाहरण स्थापित किया जिसने दुश्मन की फूट डालो योजनाओं को नाकाम कर दिया। इस एकता की नींव वह आध्यात्मिक संबंध है जो इमाम खमेनेई के क्रांति से लेकर आज तक इस्लामी क्रांति के शीर्ष नेतृत्व के तहत कायम है।

यह 12 दिन का युद्ध वास्तव में एक आईना था जिसमें दुनिया ने देखा कि ईरानी जनता का प्रतिरोध और एकता केवल एक रक्षा रणनीति नहीं है, बल्कि उसकी धार्मिक और राष्ट्रीय पहचान है। ईरान की जनता ने फिर से यह संदेश दिया कि वह इस्लामी व्यवस्था और विलायत-ए-फकीह के झंडे तले तब तक दृढ़ रहेगी जब तक मनुष्यता के मुन्जिए, इमाम महदी (अज्जल अल्लाह उमरहु), जाहिर न होकर दिव्य न्याय की वैश्विक व्यवस्था स्थापित नहीं कर लेते।

 

आजकल ऐसे लोग कम नहीं हैं जो कुछ कारणों से उस इमाम ए ग़ायब  में विश्वास नहीं करते और उनकी याद को सामने नहीं रखते तथा इस रास्ते में हर तरह का काम करते हैं। चूँकि संकटों और मुसीबतों में धैर्य रखना दीन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है, इसलिए इस दौर में हमें इन संकटों और मुसीबतों के आगे अन्य किसी समय की तुलना में अधिक धैर्य रखना चाहिए।

"आर्दश समाज की ओर" शीर्षक से महदीवाद से संबंधित विषयों की श्रृंखला, इमाम ज़मान (अ) से जुड़ी शिक्षाओं और ज्ञान के प्रसार के उद्देश्य से, आप प्रिय पाठको के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।

विशेष कर्तव्य वे कर्तव्य हैं जो किसी तरह इमाम महदी (अ) की ग़ैबत से संबंधित हैं। इस तरह के कर्तव्य जैसे:

1- इमाम महदी (अ) के दोस्तों के साथ दोस्ती और उनके दुश्मनों के साथ दुश्मनी

पैग़म्बर अकरम (स) की बहुत सी हदीसो में अहले बैत (अ) के प्रति प्रेम और उनके दुश्मनों के प्रति दुश्मनी पर जोर दिया गया है और यह सभी समयों से संबंधित है; लेकिन कुछ हदीसो में विशेष रूप से इमाम महदी (अ) के दोस्तों के साथ दोस्ती और उनके दुश्मनों के साथ दुश्मनी की सिफारिश की गई है।

इमाम बाक़िर (अ) पैग़म्बर अकरम (स) से इस प्रकार रिवायत बयान करते हैं:

طُوبی لِمَنْ اَدْرَکَ قائِمَ اَهْلِ بَیتی وَهُوَ یأتَمُّ بِهِ فی غَیْبَتِهِ قَبْلَ قِیامِهِ وَیَتَوَلّی اَوْلِیاءَهُ وَیُعادِی اَعْداءَهُ، ذلِکَ مِنْ رُفَقایی وَ ذَوِی مَوَدَّتی وَاَکْرَمُ اُمَّتی عَلَی یَوْمَ القِیامَةِ तूबू लेमन अदरका क़ाएमा अहले बैती व होवा यातम्मो बेहि फ़ी ग़ैबतेहि क़ब्ला क़यामेहि व यतवल्ला ओलेयाअहू व योआदी आदाअहू, ज़ालेका मिन रोफ़क़ाई व ज़वी मवद्दती व अकरमो उम्मति अला यौमल क़यामते
खुशी है उसके लिए जो मेरे अहले-बैत के क़ाएम को पाए और उनकी ग़ैबत में और उनके क़याम से पहले उनके पीछे चले; उनके दोस्तों को दोस्त बनाए और उनके दुश्मनों का दुश्मन बने; वह मेरे साथियों और मेरे प्रियजनों में से होगा और क़यामत के दिन मेरी उम्मत में सबसे महान होगा। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 286)

2- ग़ैबत की कठिनाइयों पर धैर्य

 आजकल ऐसे लोग कम नहीं हैं जो कुछ कारणों से उस इमाम ए ग़ायब  में विश्वास नहीं करते और उनकी याद को सामने नहीं रखते तथा इस रास्ते में हर तरह का काम करते हैं। चूँकि संकटों और मुसीबतों में धैर्य रखना दीन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है, इसलिए इस दौर में हमें इन संकटों और मुसीबतों के आगे अन्य किसी समय की तुलना में अधिक धैर्य रखना चाहिए

अब्दुल्लाह बिन सिनान इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत बयान करते हैं कि उन्होंने फ़रमाया: पैग़म्बर अक़रम (स) ने फ़रमाया:

سَیَأْتِی قَوْمٌ مِنْ بَعْدِکُمْ الرَّجُلُ الْوَاحِدُ مِنْهُمْ لَهُ أَجْرُ خَمْسِینَ مِنْکُمْ. قَالُوا: یَا رَسُولَ اللَّهِ نَحْنُ کُنَّا مَعَکَ بِبَدْرٍ وَ أُحُدٍ وَ حُنَیْنٍ وَ نَزَلَ فِینَا الْقُرْآنُ. فَقَالَ: إِنَّکُمْ لَوْ تحملوا [تحملونَ] لِمَا حُمِّلُوا لَمْ تَصْبِرُوا صَبْرَهُمْ सयाती क़ौमुन मिन बादेकोमुर रज्लुल वाहेदो मिन्हुम लहू अज्रो खम्सीना मिन्कुम । क़ालूः या रसूलुल्लाहे नहनो कुन्ना मअका बेबद्रिन व ओहोदिन व हुनैनिन व नज़ला फ़ीनल क़ुरआनो। फ़क़ालाः इन्नकुम लो तहमलू [तहमलूना] लेमा हुम्मलू लम तस्बेरू सबरहुम
तुम्हारे बाद एक ऐसी पीढ़ी आएगी जिसमें से हर व्यक्ति को आप में से पचास व्यक्तियों के बराबर सवाब मिलेगा।" लोगों ने कहा: "ऐ पैगंबर ए खुदा! हम बद्र, ओहोद और हुनैन के युद्धों में आपके साथ लड़े हैं और हमारे बारे में कुरान की आयतें नाज़िल हुई हैं।" तो आपने फ़रमाया: "अगर आप उस बोझ को उठाते जो उन पर डाला जाएगा, तो उनके जैसा धैर्य नहीं रख पाते।" (शेख तूसी, किताब अल ग़ैबा, पेज 456)

इमाम हुसैन बिन अली (अ) ने भी फ़रमाया:

اِنَّ الصَّابِرَ فِی غَیبَتِهِ عَلَی الاَذی وَالتَّکْذِیبِ بِمَنزِلَةِ المُجاهِدِ بِالسَّیْفِ بَیْنَ یَدَی رَسُولِ اللَّهِ صلی‌الله‌علیه‌وآله‌وسلم इन्नस साबेरा फ़ी ग़ैबतेहि अलल अज़ा वत तक़ज़ीबे बेमंज़ेलतिल मुजाहेदे बिस सैफ़े बैना यदय रसूलिल्लाहे सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि वसल्लम
जो व्यक्ति उनकी ग़ैबत के दौरान आहत करने और अस्वीकार करने पर धैर्य रखता है, वह उस व्यक्ति के समान है जो पैग़म्बर ए ख़ुदा (स) की रिकाब मे तलवार के साथ दुशनो से जिहाद करता है।" (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 317)

3- इमाम महदी (अ) के फ़रज के लिए दुआ
इस्लामी संस्कृति में दुआ और प्रार्थना का उच्च स्थान है। दुआ का एक उदाहरण सभी मनुष्यों की परेशानियों को दूर करना हो सकता है। शिया दृष्टिकोण में, यह महत्वपूर्ण कार्य तभी संभव होगा जब अंतिम इलाही जख़ारी ग़ैबत के पर्दे से बाहर आएगा और अपने नूर से दुनिया को रोशन करेगा। इसलिए कुछ रिवायतो में फ़रज और राहत के लिए दुआ करने की सिफारिश की गई है।

हाँ, जो व्यक्ति अपने मालिक के आने की प्रतीक्षा में जी रहा है, वह अल्लाह से उनके मामले की जल्दी और फ़रज की मांग करेगा; विशेष रूप से तब जब वह जानता है कि उनके फ़रज और ज़ुहूर होने से मानव समाज के मार्गदर्शन, विकास और पूर्णता के लिए पूरी तरह से अनुकूल वातावरण तैयार होगा। एक रिवयत के अनुसार, खुद आनहज़रत ने अपनी तौक़ीअ में फ़रमाया:

وَاَکثِرُوا الدُّعاء بِتَعجیلِ الفَرَجِ व अकसेरुद दुआ ए बेतअजीलिल फ़रजे
फ़र्ज की जल्दी के लिए अधिक दुआ करो। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 2, पेज 483)

मरहूम आयतुल्लाह अली पहलवानी तेहरानी (1926-2004 ईस्वी), जिन्हें अली सआदतपुर के नाम से जाना जाता है, शिया आरिफ थे जिन्होंने आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई (तफ़्सीर अल-मीज़ान के लेखक) के पास सैर व सुलूक के चरणों को पूरा किया था। उन्होंने इस संबंध में कहा:

"निश्चित रूप से हर कोई जानता है कि इमाम की दुआ और अनुरोध के लिए सिफारिश का उद्देश्य केवल शब्दों को बोलना और जीभ को हिलाना नहीं है; हालांकि दुआ पढ़ने का भी एक विशेष सवाब है; बल्कि उद्देश्य इस दुआ के अर्थ और अवधारणा के प्रति निरंतर हृदय से ध्यान देना है और इस बात पर ध्यान देना है कि ग़ैबत की दौरान दीन का मामला, धार्मिकता और ग़ैबत तथा इमामत में सही विश्वास एक कठिन कार्य है जो केवल यकीन और दृढ़ता वाले व्यक्ति से ही संभव है।" (ज़ुहूर ए नूर, पेज 103)

4-हमेशा तत्परता
ग़ैबत के दौरान सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक निरंतर और वास्तविक तत्परता है। इस विषय में बुहत सी रिवायते हैं।

इमाम बाक़िर (अ) ने (اصْبِرُوا وَ صابِرُوا وَ رابِطُوا; इस्बेरू व साबेरू व राबेतू धैर्य रखो और दुश्मनों के खिलाफ भी दृढ़ रहो और अपनी सीमाओं की रखवाली करो।) आयत के अंतर्गत फ़रमाते हैं:

اصْبِرُوا عَلَی أَدَاءِ الْفَرَائِضِ وَ صَابِرُوا عَدُوَّکُمْ وَ رَابِطُوا إِمَامَکُمْ المنتظر इस्बेरू अला अदाइल फ़राइज़े व साबेरू अदुव्वेकुम व राबेतू इमामकुम अल मुंतज़र
वाजिब कार्यों के निर्वहन पर धैर्य रखो, अपने दुश्मन के खिलाफ धैर्य रखो और अपने प्रतीक्षित इमाम के लिए सहायता के लिए हमेशा तैयार रहो। (नौमानी, अल ग़ैबा, पेज 199)

कुछ लोगों की धारणा के विपरीत, जो «राबेतू» का अर्थ उस हुजूर से संपर्क स्थापित करना और मिलना मानते हैं, यह शब्द संघर्ष के लिए तैयार रहने का अर्थ है। (लेसानुल अरब, भाग 7, पेज 303, मजमउल बहरैन, भाग 4, पेज 248)

5- आन हज़रत के नाम और याद का सम्मान

इस दौर में शिया के लिए इमाम महदी (अ) के प्रति उनके नाम और याद का सम्मान करना उनके कर्तव्यों में से एक है। यह सम्मान कई रूप ले सकता है। दुआ और मुनाजात की बैठकों का आयोजन से लेकर सांस्कृतिक और प्रचारात्मक कार्यों तक, चर्चा और वार्तालाप के मंडलों के गठन से लेकर मौलिक और उपयोगी शोध तक, सभी उस हुजूर के नाम के सम्मान में योगदान दे सकते हैं।

6- विलायत के मक़ाम के साथ संबंध बनाए रखना
इमाम जमान (अ) के साथ हृदय के संबंध को बनाए रखना और मजबूत करना तथा निरंतर वचन और प्रतिज्ञा को नवीनीकृत करना, ग़ैबत के दौर में हर इंतेज़ार करने वाले शिया के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

इमाम बाक़िर (अ) विलायत के काम में दृढ़ रहने वालों के बारे में फ़रमाते हैं:

یَأْتِی عَلَی اَلنَّاسِ زَمَانٌ یَغِیبُ عَنْهُمْ إِمَامُهُمْ فَیَا طُوبَی لِلثَّابِتِینَ عَلَی أَمْرِنَا فِی ذَلِکَ اَلزَّمَانِ إِنَّ أَدْنَی مَا یَکُونُ لَهُمْ مِنَ اَلثَّوَابِ أَنْ یُنَادِیَهُمُ اَلْبَارِئُ جَلَّ جَلاَلُهُ فَیَقُولَ عِبَادِی وَ إِمَائِی آمَنْتُمْ بِسِرِّی وَ صَدَّقْتُمْ بِغَیْبِی فَأَبْشِرُوا بِحُسْنِ اَلثَّوَابِ مِنِّی فَأَنْتُمْ عِبَادِی وَ إِمَائِی حَقّاً مِنْکُمْ أَتَقَبَّلُ وَ عَنْکُمْ أَعْفُو وَ لَکُمْ أَغْفِرُ وَ بِکُمْ أَسْقِی عِبَادِیَ اَلْغَیْثَ وَ أَدْفَعُ عَنْهُمُ اَلْبَلاَءَ وَ لَوْلاَکُمْ لَأَنْزَلْتُ عَلَیْهِمْ عَذَابِی  याति अलन नासे ज़मानुन यग़ीबो अंहुम इमामोहुम फ़या तूबा लिस साबेतीना अला अम्रेना फ़ी ज़ालेकज़ ज़माने इन्ना अद्ना मा यकूनो लहुम मेनस सवाबे अय युनादेयहोमुल बारेओ जल्ला जलालोहू फ़यक़ूला ऐबादी व इमाई आमंतुम बेसिर्रे व सद्दक़तुम बेग़ैबी फ़अब्शेरू बेहुस्निस सवाबे मिन्नी फ़अंतुम एबादी व इमाई हक़्क़न मिंकुम अतक़ब्बलो व अंक़ुम आअफ़ू व लकुम अग़फ़ेरू व बेकुम अस्क़ी ऐबादयल ग़ैयसे व अदफ़ओ अंहोमुल बलाआ व लोलाकुम लअंज़लतो अलैहिम अज़ाबी
लोगों पर एक समय ऐसा आएगा जब उनका इमाम उनसे ग़ायब हो जाएगा। उन लोगों के लिए खुशी है जो उस समय हमारे आदेश पर दृढ़ रहेंगे! उनके लिए इनाम का न्यूनतम स्तर यह होगा कि निर्माता, जिसकी महिमा महान है, उन्हें पुकारेगा और कहेगा: 'मेरे बंदे और मेरी कनीज़ो! तुमने मेरे गुप्त तत्व में विश्वास किया और मेरे ग़ैब में सच्चाई मानी; तो मेरे पास से अच्छे इनाम की खुशखबरी सुन लो। तुम मेरे वास्तविक बंदे और कनीज़ हो। मैं तुम्हारे कार्य स्वीकार करता हूँ, तुम्हारे लिए क्षमा करता हूँ । तुम्हारे कारण मैं अपने बंदों पर वर्षा बरसाता हूँ और उनसे मुसीबत को दूर करता हूँ। और अगर तुम नहीं होते तो मैं उन पर अपना अज़ाब उतार देता। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 330)

और ...

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इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत"  नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया हैलेखकखुदामुराद सुलैमियान