
رضوی
एक इंसान की हत्या समस्त इंसानों की हत्या के समान
पवित्र क़ुरआन कहता है कि अगर कोई इंसान किसी इंसान की हत्या करता है और जिस इंसान की हत्या की गयी है उसने किसी की न तो हत्या की है और न ही ज़मीन में फ़साद किया हो तो ऐसे इंसान की हत्या समस्त इंसानों की हत्या के समान है और जिसने एक इंसान को मुक्ति दिला दी यानी उसे नजात दिला दी तो मानो उसने समस्त इंसानों को ज़िन्दा कर दिया।
एक इंसान की हत्या बहुत बड़ा गुनाह व अपराध है और प्राचीन समय से समस्त मानव समाजों में इस पर ध्यान दिया गया है। एक इंसान की हत्या उस समय अपराध व गुनाह समझी जाती है जब जानबूझ कर इंसान की हत्या की जाये और इस्लाम में इसकी कड़ी भर्त्सना की गयी है और उसे माफ़ न किया जाने वाला गुनाह समझा जाता है।
पवित्र क़ुरआन और इस्लामी रिवायतों में बारमबार इसके हराम होने की ओर संकेत किया गया है। इसी प्रकार यह भी कहा गया है कि जो भी इंसान किसी निर्दोष इंसान की हत्या करेगा उसे कड़ा से कड़ा दंड दिया जायेगा।
इस्लाम में इंसान की हत्या हराम है
इस्लाम में किसी इंसान की हत्या की कड़ी भर्त्सना की गयी है और उसकी गणना बड़े गुनाहों में की जाती है। पवित्र क़ुरआन सूरे इस्रा की 33वीं आयत में कहता है कि उस नफ़्स व इंसान की हत्या न करो जिसे अल्लाह ने हराम क़रार दिया है मगर यह कि वह सच व वास्तव में क़त्ल किये जाने का हक़दार हो और अगर किसी की नाहक़ व मज़लूमी की हालत में हत्या कर दी जाये तो हमने उसके वली व अभिभावक को बदला लेने व क़ेसास करने का अधिकार क़रार दिया है तो रक्तपात न करो और मज़लूम की मदद की जायेगी।
यह आयत स्पष्ट शब्दों में किसी इंसान की हत्या को हराम बताती है और कहती है कि इंसान की जान सम्मानीय है और केवल विशेष परिस्थिति में और अल्लाह के क़ानून के अनुसार क़ेसास किया जा सकता है।
पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में भी गम्भीरता से इस विषय का उल्लेख किया गया है। मिसाल के तौर पर इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं" क़यामत के दिन एक आदमी को एक आदमी के पास लाया जायेगा। वह उस आदमी को उसी के ख़ून में लथपथ करेगा जबकि लोगों का हिसाब- किताब हो रहा होगा तो जो इंसान अपने ख़ून में लथपथ होगा वह कहेगाः हे अल्लाह के बंदे! मेरे साथ क्यों ऐसा व्यवहार कर रहे हो? तो वह कहेगा अमुक व फ़ला दिन मेरे ख़िलाफ़ काम किये थे और मैं मारा गया था"
यह रिवायत स्पष्ट रूप से इस बात की सूचक है कि जो किसी इंसान की हत्या करेगा परलोक में कड़ा दंड उसकी प्रतीक्षा में है और यह रिवायत इंसान की जान की सुरक्षा पर बल देती है।
फ़िलिस्तीनी मांओं के ख़िलाफ़ इज़राइल के ख़ूनी पंजे और पश्चिमी हथियार
अमेरिकी मैगज़ीन फॉरेन पॉलिसी ने मानवाधिकार के क्षेत्र में अमेरिका के दोहरे मानकों का ज़िक्र करते हुए और ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनियों के बर्बर अपराधों को उचित ठहराते हुए कहा कि मानवता के बारे में पश्चिम के दावे ग़ज़ा युद्ध में तबाह हो गए।
पश्चिमी लोकतंत्र की कहानी की मौत पर फॉरेनपॉलिसी का लेख इन शब्दों से शुरू होता है: एक मां की चीखें सुनकर जो अपनी बेटी को इज़राइली सेना द्वारा स्कूल पर बमबारी में जलते हुए देख रही है, हमें एहसास होता है कि इस बात की कोई गैरेंटी नहीं है कि हालिया महीनों में हमने जो क्रूर और अनैतिक दृश्य देखे हैं, वे इस दिन और काल में दोहराए नहीं जाएंगे और अंतरराष्ट्रीय कानून इसे रोक नहीं सकता है।
ग़ज़ा के लोगों के खिलाफ इज़राइल के नरसंहार ने, जो पश्चिमी हथियारों और डॉलर की मदद से 15 महीने से अधिक समय तक किया गया था, आधुनिक इतिहास में 20 लाख अधिक लोगों पर सबसे बड़ा मानवीय संकट पैदा कर दिया।
इज़राइल की नज़र में, फिलिस्तीनियों को या तो मर जाना चाहिए या भागने के लिए कोई भी विकल्प तलाश कर लेना चाहिए
इस लेख में कहा गया है कि इजराइली अधिकारियों ने हमास के खिलाफ अपनी रक्षा करने के अधिकार का दावा किया, लेकिन सच तो यह है कि वे पूरी ग़ज़ापट्टी को रहने लायक रहने देना नहीं और इस क्षेत्र के निवासियों को ऐसी स्थिति में डाल देना चाहते थे, जहां या तो वे मर जाएं या भागने का कोई विकल्प तलाश करें।
हम ग़ज़ा के लोगों के जबरन प्रवास की अनुमति नहीं देंगे: स्पेन के प्रधान मंत्री
ग़ज़ा के निवासियों को जबरन दूसरे देशों में स्थानांतरित करने की ट्रम्प की योजना पर प्रतिक्रिया देते हुए स्पेन के प्रधान मंत्री पेड्रो सांचेज़ ने इस योजना की आलोचना की और कहा: मैड्रिड ऐसी चीज़ की अनुमति नहीं देगा।
हाल ही में ज़ायोनी प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू से मुलाक़ात के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने ग़ज़ा से फिलिस्तीनियों के जबरन स्थानांतरण और इस क्षेत्र पर अमेरिकी सेनाओं द्वारा नियंत्रण की योजना की घोषणा की थी।
इन बयानों को मानवाधिकार संगठनों की कड़ी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा और इसे "जातीय सफाए" और "जेनेवा कन्वेंशन का स्पष्ट उल्लंघन" की मिसाल क़रार दिया गया।
ट्रम्प की फ़िलिस्तीनी विरोधी योजना के विरोध में ब्रिटिश जनता का विशाल प्रदर्शन
दूसरी ओर, ब्रिटिश नागरिकों ने फिलिस्तीनियों को ग़ज़ा से जबरन निकालने की डोनल्ड ट्रम्प की योजना की निंदा की और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय से अमेरिकी दूतावास तक एक बड़ा मार्च आयोजित करके फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध के लिए अपने समर्थन का एलान किया।
इस प्रदर्शन में भाग लेने वालों ने "ग़ज़ा नॉट फ़ॉर सेल" और "फिलिस्तीन बाक़ी रहेगा और प्रतिरोध करेगा" जैसे नारे लगाए और उन्होंने "फ़िलिस्तीन की आज़ादी", "इज़राइल के क़ब्ज़े का अंत" और "इज़राइल को हथियार भेजना बंद करें" जैसे स्लोगन लिखी तख्तियां उठा रखी थीं, उन्होंने ज़ायोनी शासन के अपराधों और अमेरिका की हस्तक्षेपपूर्ण नीतियों के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त किया।
हम ना आत्मसमर्पण करेंगे और ना ही पराजित होंगे
शहीद कमांडरों की वर्षगांठ के अवसर पर शेख नईम क़ासिम ने कहा कि हाजी एमाद मुग़्नीया एक सुरक्षा, सैन्य और नवोन्मेषी व्यक्ति थे, जो विश्वास की भावना के आधार पर मुजाहिदीन का नेतृत्व करते थे।
शहीद कमांडरों की वर्षगांठ के अवसर पर शेख नईम क़ासिम ने कहा कि हाजी एमाद मुग़्नीया एक सुरक्षा, सैन्य और नवोन्मेषी व्यक्ति थे, जो विश्वास की भावना के आधार पर मुजाहिदीन का नेतृत्व करते थे।
उन्होंने कहा, "हमें झूठ का सामना करने और उसे पराजित करने के लिए जिहाद छेड़ना होगा।" हम आत्मसमर्पण नहीं करेंगे, हम पराजित नहीं होंगे, और हम झूठे प्रभुत्व को स्वीकार नहीं करेंगे।
शेख नईम कासिम ने आगे कहा: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प नेतन्याहू के साथ मिलकर राजनीतिक नरसंहार करना चाहता हैं, जिसने ग़ज़्ज़ा पट्टी में मानव नरसंहार करने की कोशिश की थी लेकिन असफल रहा। फिलिस्तीनी मुद्दे पर ट्रम्प का रुख बहुत खतरनाक है। वह फिलिस्तीन और उसके लोगों को पूरी तरह से नष्ट करना चाहता है।
लेबनान में हिजबुल्लाह के महासचिव ने आगे कहा: "शेख राग़िब हर्ब की हत्या से लेकर शहीद सय्यद अब्बास मूसवी की हत्या तक प्रतिरोध ने बड़ी प्रगति की है।" शहीद कमांडर केवल शुद्ध मुहम्मदी इस्लाम के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। उनका मार्ग इस्लामी प्रतिरोध का मार्ग है। शहीद कमांडरों की प्राथमिकता इजरायल के खिलाफ जिहाद थी।
उन्होंने आगे कहा: "शहीद कमांडरों की विशेषता यह है कि वे आध्यात्मिक और आस्था के आयामों को सैन्य आयामों के साथ जोड़ते हैं।"
हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: "ट्रम्प की योजनाएं (फिलिस्तीन के संबंध में) एक सपना हैं और इन्हें लागू नहीं किया जा सकता। अमेरिकी योजना अरब और इस्लामी देशों के लिए खतरा है, हालिया युद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय चुप्पी अमेरिका के लिए प्रोत्साहन थी।"
उन्होंने कहा, "ट्रम्प न केवल फिलिस्तीनियों बल्कि पूरे क्षेत्र से टकराव चाहता हैं।" हम किसी भी स्थान पर फिलिस्तीनियों के किसी भी प्रकार के विस्थापन को दृढ़ता से अस्वीकार और निंदा करते हैं। हर किसी को फिलिस्तीनी लोगों का हर संभव तरीके से समर्थन करना चाहिए।
शेख कासिम ने कहा: 1982 के आक्रमण में ज़ायोनी शासन का लक्ष्य फिलिस्तीनी प्रतिरोध को खत्म करना था ताकि वह लेबनान और क्षेत्र में प्रतिरोध को समाप्त कर सके।
हिजबुल्लाह के महासचिव ने शहीद सय्यद अब्बास मूसवी को मुजाहिदीन के लिए एक आदर्श माना, जो हमेशा लड़ाई में सबसे आगे रहते थे, और कहा: "शहीद मूसवी हमेशा जीत में विश्वास करते थे और कहते थे, 'हमें मार दो, लेकिन हमारा राष्ट्र पहले से कहीं अधिक जागरूक हो जाएगा।'"
शेख नईम क़ासिम ने 1982 के हमले का लक्ष्य फिलिस्तीनी प्रतिरोध को खत्म करना और लेबनान और क्षेत्र में प्रतिरोध को समाप्त करना बताया।
तेहरान-बेरूत उड़ान रद्द होने पर लेबनानी विमान संगठन की सफाई।
लेबनान के नागरिक उड्डयन संगठन ने तेहरान-बेरूत उड़ानों के रद्द होने के बाद उठे विवाद और लेबनान में हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच एक स्पष्टीकरण जारी किया है।
संगठन के अनुसार, उड़ानों में यह बदलाव यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
यह कदम रफीक अल-हरीरी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और पूरे लेबनानी हवाई क्षेत्र की सुरक्षा के लिए उठाया गया है, जिसे एयरपोर्ट सुरक्षा बलों के साथ समन्वय में लागू किया गया।
संगठन ने दावा किया कि यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय उड्डयन कानूनों (ICAO) और लेबनानी राष्ट्रीय नियमों के अनुसार लिया गया है।
कुछ एयरलाइंस को इन नियमों को लागू करने के लिए अतिरिक्त समय की जरूरत थी, इसलिए कुछ उड़ानों को 18 फरवरी (30 बहमन) तक अस्थायी रूप से पुनर्निर्धारित किया गया है।
यह बदलाव गुरुवार को एयरलाइंस को सूचित कर दिया गया था ताकि यात्रियों को अग्रिम रूप से टिकट बदलने का समय मिल सके।
लेबनानी यात्रियों को वापस लाने के लिए शुक्रवार रात बेरूत से तेहरान के लिए एक विशेष उड़ान भेजने की योजना बनाई गई है।
इस बयान के बावजूद, लेबनान में इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी हैं, और इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित कदम बताया जा रहा है।
ट्रंप सरकार ने एक बार फिर अमानवीय व्यवहार किया
शनिवार को रात साढ़े 11 बजे के बाद अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरे अमेरिका के दूसरे सैन्य विमान सी-17 में लाए गए 116 प्रवासियों को भी ट्रंप प्रशासन ने जंजीरों में जकड़कर भेजा उन्हें विमान के भारत की धरती पर उतरने के बाद ही जंजीरों से मुक्त किया गया।
शनिवार को रात साढ़े 11 बजे के बाद अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरे अमेरिका के दूसरे सैन्य विमान सी-17 में लाए गए 116 प्रवासियों को भी ट्रंप प्रशासन ने जंजीरों में जकड़कर भेजा उन्हें विमान के भारत की धरती पर उतरने के बाद ही जंजीरों से मुक्त किया गया।
हालांकि पीएम मोदी ने साफ़ साफ़ शब्दों में कहा कि भारत उन अवैध भारतीय नागरिकों की वापसी के लिए पूरी तरह से तैयार है जिन्हें धोखा देकर और फंसा कर अमेरिका भेजा गया था।
शनिवार को रात साढ़े 11 बजे के बाद अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरे अमेरिका के दूसरे सैन्य विमान सी-17 में लाए गए 116 प्रवासियों को भी ट्रंप प्रशासन ने जंजीरों में जकड़कर भेजा। उन्हें विमान के भारत की धरती पर उतरने के बाद ही जंजीरों से मुक्त किया गया।
रविवार की रात विदेशी भारतीय प्रवासियों से भरा हुआ तीसरा अमेरिकी विमान अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरा जिसमें 156 लोगों के सवार होने की जानकारी है,
दिलजीत सिंह, जो शनिवार को भारत पहुंचाए गए प्रवासियों में शामिल हैं अमृतसर एयरपोर्ट पर ट्रंप प्रशासन के अत्याचार की कहानी सुनाते हुए बताया कि उन्हें पूरे सफर में जो औसतन 14 घंटे का होता है, हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीर डालकर रखा गया।
अमेरिका से देश निकाले गए लोगों में शामिल हरजीत सिंह ने बताया कि मैं सुबह 6 बजे घर पहुंचा हूं। हमें 27 जनवरी को अमेरिका की सीमा पार करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था और 18 दिन तक कैद में रखा गया। हमें हाथों में हथकड़ी और कमर से लेकर पैरों तक जंजीर से जकड़कर भारत भेजा गया।
विमान के अमृतसर पहुंचते ही प्रवासियों ने दुर्व्यवहार की शिकायत की और बताया कि भारत पहुंचने के बाद उनकी जंजीरें खोली गईं। इन आरोपों पर विदेश मंत्रालय पूरी तरह संज्ञान लिया है। इसके जिम्मेदार अधिकारियों ने यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि वे स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और स्थिति की गंभीरता से अमेरिकी प्रशासन को अवगत भी करा रहे हैं भारत में विपक्ष ने इसे मोदी सरकार की कूटनीति की विफलता से जोड़ा है।
जर्मनी को अमेरिकी प्रकाशन की चेतावनी
फॉरेन पॉलिसी" मैगज़ीन के अनुसार, यदि जर्मनी ने इज़राइली शासन के अपराधों के लिए अपना समर्थन बंद नहीं किया, तो उसे जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में इन अपराधों के भागीदार के रूप में पहचाना जाएगा।
"फॉरेन पॉलिसी" के नज़रिए के मुताबिक़, जर्मनी अपनी प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए अपराधी ज़ायोनी शासन की आलोचना न करने की कोशिश कर रहा है जो विश्व युद्ध और होलोकास्ट के दौरान क्षतिग्रस्त हो गई थी।
ज़ायोनी शासन को जर्मन सरकार के बिना शर्त समर्थन का ज़िक्र करते हुए कहा कि बर्लिन ज़ायोनियों के अपराधों से अवगत है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र में इसकी घोषणा नहीं करता है बल्कि इस चीज़ ने जर्मन सरकार को इन अपराधों में भागीदार बना दिया है।
"फॉरेन पॉलिसी" के अनुसार, ज़ायोनी शासन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के कुछ मामलों के तहत जर्मन हथियारों का इस्तेमाल किया गया है।
इस लेख में कहा गया है: हालांकि जर्मन अधिकारी अपने निजी हलक़ों में स्वीकार करते हैं कि ज़ायोनियों ने ग़ज़ा में अपराध किए हैं, जर्मन सरकार इस अतिग्रहणकारी शासन का समर्थन करने के लिए जवाबदेह होने से बचने के लिए जानबूझकर जनता की राय को नियंत्रित करती है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के अनुसार, 2019 और 2023 के बीच, जर्मनी ने ज़ायोनी शासन के आयातित भारी हथियारों का लगभग 30 प्रतिशत प्रदान किया जिसमें बख्तरबंद वाहनों के इंजन भी शामिल थे जिनका उपयोग गजा युद्ध के साथ लेबनान और सीरिया में इज़राइल के अवैध हमलों में किया गया था।
2023 में, इज़राइल को जर्मन हथियारों का निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 10 गुना बढ़ गया था। इनमें से अधिकांश हथियार 7 अक्टूबर, 2023 (गजा में युद्ध की शुरुआत) के बाद भेजे गए थे, जिनमें 3 हज़ार एंटी-टैंक मिसाइलें और 5 लाख राउंड गोला-बारूद शामिल थे।
सर्वेक्षणों के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत जर्मन, ज़ायोनी शासन को हथियारों के निरंतर निर्यात के खिलाफ हैं, हालांकि, जर्मनी के लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस्राईल को हथियारों के निर्यात को जारी रखने का समर्थन किया है।
आंतरिक नाराज़गी के अलावा, विदेश नीति ने ज़ायोनी शासन के लिए जर्मनी के बिना शर्त समर्थन के विनाशकारी परिणामों की ओर इशारा किया और कहा कि पश्चिम एशियाई देशों के साथ बर्लिन के संबंध, इज़राइल के अपराधों से गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे और जर्मनी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया था।
इस मीडिया के अनुसार, जर्मनी को ज़ायोनी शासन के साथ अपने संबंधों की गंभीरता से समीक्षा करनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति अपने दायित्वों और नागरिक जीवन की रक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा के अपने नैतिक कर्तव्य का उल्लंघन नहीं होने देना चाहिए, अन्यथा उसे जल्द ही अंतरराष्ट्रीय अदालतों में इज़राइल के अपराधों में भागीदार के रूप में पहचाना जाएगा।
ग़ज़्ज़ा में गहराता जल संकट।
ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनी जनता 15 महीनों से ज़ायोनी सैनिकों के हमलों की तबाही झेल रहे हैं, हर दिन पीने के साफ़ पानी तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। रफ़ह शहर में फ़िलिस्तीनी नागरिक घंटों तक कतार में खड़े रहते हैं ताकि एक टैंकर से साफ़ और सुरक्षित पेयजल प्राप्त कर सकें।
इमाम मेंहदी अ.ज.की हुकूमत अल्लाह का सच्चा वादा है जो पूरा होकर रहेगा
शेख़ इब्राहिम ज़कज़ाकी नाइजीरिया इस्लामी आंदोलन के नेता ने इमाम मेंहदी अ.ज. के जन्म दिवस के अवसर पर अपने भाषण में जोर देकर कहा कि उनकी वैश्विक सरकार एक ईश्वरीय वादा है जो निस्संदेह भविष्य में पूरा होकर रहेगा।
नाइजीरिया में इस्लामिक आंदोलन के नेता हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिम शेख इब्राहिम ज़कज़ाकी ने अपने आवास अबूजा में इमाम मेंहदी अ.ज. के जन्म दिवस के अवसर पर एक महफिल का आयोजन किया गया।
उन्होंने इमाम अस्र स.ल. के जन्म से पहले ज़ालिम ताकतों द्वारा उनके ज़हूर को रोकने के प्रयासों की ओर इशारा करते हुए कहा, ज़ालिमों ने इस ईश्वरीय वादे को नाकाम करने के लिए इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम की हत्या तक करवा दी।
शेख इब्राहिम ज़कज़ाकी ने कहा कि इमाम अस्र स.ल. की पहचान की शुरुआत अल्लाह और पैगंबर (स.ल.) की पहचान से होनी चाहिए क्योंकि इमाम ईश्वर द्वारा नियुक्त पैगंबर के उत्तराधिकारी हैं और उनकी ग़ैबत में भी ईश्वरीय इच्छा की अहम भूमिका है।
नाइजीरिया इस्लामी आंदोलन के नेता ने ज़ोर देकर कहा कि इमाम महदी स.ल. की सरकार निस्संदेह स्थापित होगी क्योंकि यह एक ईश्वरीय वादा है।
उन्होंने दौराने इंतज़ार को कठिन लेकिन वर्तमान युग की सबसे महत्वपूर्ण इबादत करार देते हुए इस्लामी उम्मत से ईमान और जागरूकता को मज़बूत कर इमाम के ज़हूर के लिए स्वयं को तैयार करने का आह्वान किया।
शेख़ ज़कज़ाकी ने यह भी बताया कि नाइजीरिया की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इस समारोह को रोकने के प्रयास के कारण कार्यक्रम स्थल को बदलकर उनके निवास स्थान पर करना पड़ा।
उन्होंने अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा: धार्मिक आयोजनों को रोकने का प्रयास 'एसोसिएशन की स्वतंत्रता' का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसे नाइजीरिया का संविधान सुनिश्चित करता है। यहां तक कि पिछली तानाशाही सरकार भी इस अधिकार का सम्मान करती थी।
इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीन के साथ विश्वासघात
ईरान और पूर्वी एशिया के बीच भाषाई, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों पर 45वें पूर्व-संगोष्ठी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीन के साथ विश्वासघात घोषित किया गया है।
ईरान और पूर्वी एशिया के बीच भाषाई सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों पर 45वीं पूर्व-संगोष्ठी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन क़ुम में आयोजित की गई।
यह संगोष्ठी संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया और इसकी विश्व व पूर्वी एशियाई देशों पर प्रभाव विषय पर आधारित थी इसे समाज-उलमुस्तफा आलमिया के उच्च विद्यालय सांस्कृतिक अध्ययन विभाग, अरबी भाषा व संस्कृति अध्ययन समूह तथा उच्च शिक्षा परिसर भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन विभाग के संयुक्त सहयोग से आयोजित किया गया।
इस बैठक में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन मदनी नेजाद जो इस्लामी विज्ञानों के तुलनात्मक अध्ययन अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष हैं मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे इसके अलावा, हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद जो अरबी भाषा व संस्कृति अध्ययन विभाग के प्रोफेसर हैं इस कार्यक्रम के सचिव थे यह कार्यक्रम छात्रों व शोधार्थियों की उपस्थिति में अरबी भाषा में प्रस्तुत किया गया।
मदनी नेजाद ने चर्चा की शुरुआत में फ़िलिस्तीनी जनता के मूलभूत अधिकारों की अनदेखी के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण किया उन्होंने कहा कि वर्षों से इन अधिकारों के दमन ने तूफान अलअक्सा अभियान को जन्म दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता के वापसी के अधिकार, यरुशलम की स्थिति और एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों की उपेक्षा ने तनाव बढ़ाया है और इस पवित्र भूमि में मानवता पर आपदाएँ लाई हैं।
बैठक में यह भी विश्लेषण किया गया कि दुनिया के विभिन्न देशों विशेषकर पूर्वी एशिया के देशों जैसे जापान चीन, इंडोनेशिया, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में इस्राइल के साथ संबंधों के सामान्यीकरण का क्या प्रभाव पड़ा है।मदनी नेजाद ने पूर्वी एशियाई देशों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन देशों ने इस मुद्दे पर अलग अलग नीतियाँ अपनाई हैं
इंडोनेशिया और उत्तर कोरिया अपने सिद्धांतवादी दृष्टिकोण के तहत आर्थिक लाभ की बजाय फ़िलिस्तीनी अधिकारों के समर्थन को प्राथमिकता देते हैं।चीन जापान और दक्षिण कोरिया फ़िलिस्तीन के अधिकारों का समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन साथ ही वे इस्राइल के साथ आर्थिक संबंध भी बनाए रखना चाहते हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि पूर्वी एशियाई देशों में आर्थिक हितों और मानवीय मूल्यों के समर्थन के बीच एक विरोधाभास मौजूद है।
मदनी नेजाद ने ज़ोर देते हुए कहा कि इस्राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीनी अधिकारों के कमजोर होने और उनके आदर्शों की अवहेलना का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया का विरोध करने वाले देश और समूह इसे फ़िलिस्तीनी अधिकारों के साथ विश्वासघात और एक अतिक्रमणकारी सरकार के साथ सहयोग मानते हैं उनका मानना है कि इस प्रकार का सामान्यीकरण तनाव को और अधिक बढ़ा सकता है।
हिज़्बुल्लाह समर्थकों का बेरूत एयरपोर्ट जाने वाले रास्ते पर धरना
हज़ारों की संख्या में प्रतिरोध समर्थकों ने हिज़्बुल्लाह लेबनान के आह्वान पर बीती शाम से लेकर रात देर तक रफीक हरीरी एयरपोर्ट के रास्ते पर शांतिपूर्ण धरना दिया।
गुरुवार को बेरूत के रफीक हरीरी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ईरान की महान एयरलाइन के दो विमानों की लैंडिंग रोकने के बाद लेबनान में विशेष रूप से हिज़्बुल्लाह और उसके समर्थकों की ओर से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखा गया।
ईरानी विमानों की लैंडिंग रोकने का यह कदम उस समय सामने आया जब इज़रायली सेना ने दावा किया कि ईरान यात्री विमानों के जरिए लेबनान के हिज़्बुल्लाह को नकद धनराशि भेज रहा है। हालांकि इस कदम के जवाब में तेहरान ने भी लेबनानी विमान की इमाम खुमैनी हवाई अड्डे पर लैंडिंग रोक दी लेकिन हिज़्बुल्लाह और प्रतिरोध के समर्थक इस बात से नाराज़ हैं कि लेबनान की नई सरकार तेल अवीव की मांगों के आगे झुक गई है।
इस घटना के बाद बेरूत में गुरुवार से ही लेबनानी युवाओं के विरोध प्रदर्शन जारी हैं बीती शाम भी सैकड़ों लोगों ने हिज़्बुल्लाह के आह्वान पर बेरूत हवाई अड्डे के रास्ते पर शांतिपूर्ण धरना दिया लेकिन इस धरने पर लेबनानी सेना और सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया देखने को मिली।
सुरक्षा बलों की दखलअंदाजी और आंसू गैस के गोले दागे जाने के कारण कई प्रदर्शनकारी दम घुटने की स्थिति में आ गए और अंततः हिज़्बुल्लाह लेबनान ने तनाव को और बढ़ने से रोकने के लिए अपने समर्थकों से धरना समाप्त करने की अपील की।
इस प्रदर्शन में भाग लेने वालों ने लेबनान का झंडा, हिज़्बुल्लाह का झंडा और शहीद सैयद हसन नसरल्लाह की तस्वीरें उठा रखी थीं और अमेरिका व इज़राइल के हस्तक्षेप के खिलाफ नारे लगा रहे थे।
हिज़्बुल्लाह की राजनीतिक परिषद के उपाध्यक्ष हाज महमूद क़माती ने धरने में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उनका धन्यवाद किया और इज़राइल व अमेरिका द्वारा थोपे गए फैसलों को अस्वीकार्य बताया।क़माती ने कहा,हमने शहीद दिए हैं ताकि हमारी इज्जत बनी रहे और इस देश की असली संप्रभुता कायम रहे।
उन्होंने जोर देते हुए कहा,हमारा रुख जिसका ऐतिहासिक नारा कर्बला से लेकर आज तक नहीं बदला यही है हैयहात मिन्ना ज़िल्लाह (हम कभी भी अपमान स्वीकार नहीं करेंगे)।