رضوی

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ज़ायोनी सरकार यह दावा करती है कि वह दुनिया के यहूदियों के लिए सुरक्षा की आपूर्ति करती है।

इस दावे से वह यहूदियों को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की ओर पलायन करने के लिए आकर्षित करने का प्रयास करती है परंतु फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने "तूफ़ाने अक़्सा" ऑप्रेशन में ज़ायोनी सरकार को जो आघात पहुंचाया है उससे इस अतिग्रहणकारी सरकार में मौजूद शून्य स्पष्ट हो गया है और यहूदियों को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की ओर आकर्षित व पलायन करने के लिए ज़ायोनी सरकार के पास जो लोकलुभावन नारा व बहाना था उस पर पानी फ़िर गया है।

अज़्ज़ैतूने अध्ययन केन्द्र ने ज़ायोनी सरकार को "तूफ़ाने अक़्सा" ऑप्रेशन में मिलने वाली स्ट्रैटेजिक पराजय के संबंध में अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि  "तूफ़ाने अक़्सा" ऑप्रेशन में ज़ायोनी सरकार की पराजय इस धारणा के समाप्त होने का कारण बनी है कि ज़ायोनी सरकार युद्ध के परिणामों को अपने हित में कर लेगी।

इर्ना के हवाले से बताया है कि "तूफ़ाने अक़्सा" ऑप्रेशन ने इस धारणा को समाप्त कर दिया है कि "फ़िलिस्तीन यहूदियों की सुरक्षित शरण स्थली" है।

ज़ायोनियों की दृष्टि से सुरक्षा मौलिक व बुनियादी चीज़ है और ज़ायोनी सरकार यह दावा करती है कि वह दुनिया के यहूदियों की सुरक्षा की आपूर्ति करती है इस दावे से वह दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के यहूदियों को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन पलायन के लिए प्रोत्साहित करती है परंतु तूफ़ाने अक्सा ने इस अतिग्रहणकारी सरकार को जो आघात पहुंचाया है उससे यहूदियों को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की ओर आकर्षित व पलायन करने के लिए ज़ायोनी सरकार के पास जो लोकलुभावन नारा व बहाना था उस पर पानी फ़िर गया है। यही नहीं अवैध अधिकृत की ओर यहूदियों का पलायन तो बहुत दूर की बात बल्कि जो यहूदी व ज़ायोनी अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में रह रहे हैं वे भी वहां से जाने की सोच रहे हैं।

अज़्ज़ैतूने अध्ययन केन्द्र की रिपोर्ट में आया है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के मुक़ाबले में इस्राईल की पराजय क्षेत्र में अमेरिका और पश्चिम की योजना को लागू करने में ज़ायोनी सरकार की भूमिका के समाप्त होने का कारण बनी है और दूसरी ओर अरब देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की योजना पर भी पानी फ़िर गया है और ज़ायोनी सरकार का भयावह व वास्तविक चेहरा इस बात का कारण बना है कि ज़ायोनी सरकार से संबंधों को सामान्य बनाने वाले शासक अपने झुकाव को रोक लें।

 

 

तूफ़ाने अक़्सा कार्यवाही ने ज़ायोनी सरकार के अस्तित्व को असमंजस में डाल दिया है। इसी वजह से ज़ायोनी सरकार के पूर्व युद्धमंत्री Yoav Gallant सहित दूसरे यहूदियों ने इस जंग को इस्राईल के अस्तित्व की जंग का नाम दिया था परंतु दूसरी ओर तूफ़ाने अक़्सा की जो महान उपलब्धियां हैं वे फ़िलिस्तीन को आज़ाद कराने हेतु इस्लामी और अरब राष्ट्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी गयी हैं और बहुत से लोग ज़ायोनी सरकार के खोखलेपन से अवगत हो गये हैं।

अध्ययन केन्द्र अज़्ज़ैतूने ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि तूफ़ाने अक़्सा कार्यवाही ने फ़िलिस्तीनियों, अरबों और इस्लामी राष्ट्रों के जनमत में एक बार फ़िर इस धारणा को जीवित कर दिया कि प्राथमिकता किस बात की होनी चाहिये। इसी प्रकार तूफ़ाने अक़्सा ने इस धारणा को मज़बूत व प्रबल बना दिया कि अतिग्रहणकारियों के मुक़ाबले में सशस्त्र प्रतिरोध वैध व सही है और इस कार्यवाही ने यह साबित कर दिया कि वह फ़िलिस्तीनी जनता की आकांक्षों को पूरा करने का प्रभावी और कारगर हथियार व साधन है।

साथ ही ज़ायोनी सरकार ग़ज़ा पट्टी पर पाश्चिक हमलों और निर्दोष फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ अनगिनत जघन्य अपराधों के कारण पूरी दुनिया में एक घृणित सरकार बन गयी है और साथ ही दुनिया के राष्ट्रों विशेषकर पश्चिमी छात्रों व जवानों के मध्य फ़िलिस्तीनी जनता के प्रति समर्थन में ध्यानयोग्य वृद्धि हो गयी है।

न्यूयॉर्क की एक अदालत ने एक अमेरिकी लेबनानी नागरिक को दोषी करार देते हुए उसके खिलाफ फैसला सुनाया जिसने 2022 में नबी ए अक़रम की शान में गुस्ताख़ी करने वाले मुरतद लेखक सलमान रुश्दी पर चाकू से हमला किया था।

न्यूयॉर्क की एक अदालत ने एक अमेरिकी लेबनानी नागरिक को दोषी करार देते हुए उसके खिलाफ फैसला सुनाया जिसने 2022 में नबी-ए-अकरम स.ल.व.व.की शान में गुस्ताख़ी करने वाले मुरतद लेखक सलमान रुश्दी पर चाकू से हमला किया था।

अदालत ने 27 वर्षीय हादी मतर को सलमान रुश्दी को क़त्ल करने की कोशिश के आरोप में दोषी ठहराया है उसकी सजा 23 अप्रैल को सुनाई जाएगी जिसकी अधिकतम अवधि 25 साल कैद हो सकती है।

हादी मतर पर न्यूयॉर्क की अदालत में मुकदमा चला जिसने 12 अगस्त 2022 को सलमान रुश्दी पर चाकू से हमला किया था गुस्ताख़ रुश्दी, जो उस समय 77 वर्ष का था इस हमले में गंभीर रूप से घायल हुआ और एक आंख की रोशनी खो बैठा हमले के वक्त रुश्दी न्यूयॉर्क में एक भाषण दे रहा था।

अदालत में हादी मतर ने कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दी और बस मेज़ की तरफ देखते रहे। हालांकि जब वे अदालत से बाहर जा रहे थे तो उन्होंने फिलिस्तीन को आज़ाद करो का नारा लगाया। बताया जाता है कि वे हर बार अदालत में आते और जाते समय यही शब्द दोहराते थे।

गौरतलब है कि सलमान रुश्दी को 1988 में प्रकाशित अपनी विवादास्पद किताब शैतानी आयतें के कारण दुनियाभर के मुसलमानों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ा था।

इस किताब की प्रकाशन के बाद रुश्दी को जान से मारने की धमकियां मिलीं और उसे गुप्त जीवन जीने पर मजबूर होना पड़ा ब्रिटिश सरकार जिसने इस किताब के प्रकाशन की अनुमति दी थी रुश्दी की सुरक्षा पर भारी खर्च कर रही थी।

हमले से पहले रुश्दी अमेरिका में रह रहा था और वर्षों से सुरक्षा उपायों के तहत जीवन बिता रहा था। 2007 में ब्रिटेन ने रुश्दी को एक अवॉर्ड से सम्मानित किया था जिस पर दुनियाभर के मुसलमानों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था।

 

जर्मन विदेशमंत्री यूक्रेन में शांति वार्ता को लेकर अमेरिकी सरकार पर दबाव बनाना चाहती थीं।

जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक ने कहा: यूरोप को अमेरिका पर नैटो में अपने सहयोगियों के साथ रहने के लिए दबाव डालना चाहिए और यूक्रेन पर अनुचित शांति नहीं थोपनी चाहिए।

जर्मन विदेशमंत्री ने चेतावनी दी कि कीव की सहमति के बिना सुरक्षा गैरेंटी के बदले यूक्रेन के क्षेत्र रूस को देने वाला कोई भी समझौता नाकाम हो जाएगा।

उन्होंने आगे कहा: एक झूठी शांति, जो वास्तव में ब्लैकमेल और आत्मसमर्पण है, शांति नहीं है और अधिक हिंसा और युद्ध के लिए भूमि प्रशस्त करती है।

 यूरोप/ रूस एटम: हम ईरान से एक और परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के बारे में बातचीत कर रहे हैं

 रूस की सरकारी कंपनी रूस एटम के सीईओ एलेक्सी लिकचेव ने कहा कि ईरान में नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए जगह का चयन हो गया है। उनका कहना था: यह कंपनी इस देश में एक और परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए ईरान से बातचीत कर रही है।

लिकचेव ने ज़ोर देकर कहा: ईरान न केवल बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के क्षेत्र में, बल्कि छोटे परमाणु बिजली घरों के क्षेत्र में भी रूस एटम के साथ सहयोग का इरादा रखता है।

 अमेरिका/ ट्रम्प ने अमेरिकी सशस्त्र बलों के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ़ के प्रमुख को बर्खास्त कर दिया

 एक आश्चर्यजनक क़दम उठाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने देश के सशस्त्र बलों के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के प्रमुख सीक्यू ब्राउन जूनियर को बर्खास्त कर दिया। इस पद पर उनकी उपस्थिति 16 महीने तक रही जिसमें यूक्रेन में तीन साल के युद्ध और पश्चिम एशिया में संघर्षों में वृद्धि भी देखी गयी है।

ज़ायोनी शासन/ मक़बूज़ा वेस्ट बैंक पर लगातार हो रहे हमलों से संयुक्त राष्ट्र संघ चिंतित है

 संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा, "मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) वेस्ट बैंक में स्थिति की निगरानी करना जारी रखता है और उत्तर में इजरायली बलों द्वारा चल रहे ऑपरेशन के बारे में चिंतित है, जो 2000 के दशक के बाद से सबसे लंबा है।"

 फिलिस्तीन/ ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़ा में युद्धविराम समझौते का 350 बार उल्लंघन

 ग़ज़ा में फिलिस्तीनी सरकार के सूचना कार्यालय ने शुक्रवार रात को घोषणा की कि ज़ायोनी दुश्मन ने 350 बार समझौते का उल्लंघन किया, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण इंसानी प्रोटोकॉल के कामों में रुकावटें डालना और बाधाएं उत्पन्न करना है।

ईरान के निर्यात में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी

 ईरान के कस्टम विभाग के प्रमुख फ़ूरूद असगरी ने कहा: जारी हिजरी शम्सी वर्ष के 10 महीनों के दौरान, माल का निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 18 प्रतिशत बढ़ गया है

 

शुक्रवार, 21 फरवरी 2025 18:56

माहे रमज़ान की तैयारी करें

रमज़ान का महीना अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िंदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा।

जिस तरह कुछ जगहें होती हैं जहां इंसान के आने जाने के लिए कुछ आदाब होते हैं जिनका वह ख़याल रखता है जैसे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम के रौज़े, मस्जिदें, मस्जिदुल हराम, मस्जिदुन नबी और दूसरी जगहें, इसी तरह माहे रमज़ान के भी कुछ आदाब हैं जिनका ख़याल रखना बेहद ज़रूरी है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो रमज़ान की बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करना चाहते है।

माहे रमज़ान अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा। ध्यान रहे ग़फ़लत वह बीमारी है जो हमारे हर तरह के मानवी और रूहानी फ़ायदे को हम तक पहुंचने से रोक देती है या कम से कम पूरी तरह से फ़ायदा हासिल नहीं करने देती है। इसीलिए हमारे इमामों ने इस मुबारक महीने की तैयारी के सिलसिले में कुछ आदाब बयान किए हैं जिनको हम यहां पेश कर रहे हैं।

दुआ, तौबा, इस्तेग़फ़ार, क़ुरआन की तिलावत, अमानतों की वासपी, दिलों से नफ़रतों का दूर करना

अब्दुस-सलाम इब्ने सालेह हिरवी जो अबा सलत के नाम से मशहूर हैं उनका बयान है कि मैं माहे शाबान आख़िरी जुमे में इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, उन्होंने फ़रमाया: ऐ अबा सलत! माहे शाबान का महीना लगभग गुज़र चुका है और आज आख़िरी जुमा है इसलिए अब तक जो कमियां रह गई हैं उन्हें दूर करो ताकि बाक़ी बचे हुए दिनों में इस महीने की बरकत से फ़ायदा हासिल कर सको, बहुत ज़ियादा दुआ पढ़ो, इस्तेग़फ़ार करो, क़ुरआन पढ़ो, गुनाहों से तौबा करो ताकि जब अल्लाह का मुबारक महीना आए तो तुम उसकी बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार रहो और किसी भी तरह की कोई अमानत भी तुम्हारे ज़िम्मे न हो और ख़बरदार! किसी मोमिन के लिए तुम्हारे दिल में नफ़रत बाक़ी न रह जाए, ख़ुद को हर किए गए गुनाह से दूर कर लो, तक़वा अपनाओ और अकेले में हो या सबके सामने केवल अल्लाह पर भरोसा करो क्योंकि उसका फ़रमान है कि जिसने अल्लाह पर भरोसा किया अल्लाह उसके लिए काफ़ी है।

समाज जिस तेजी से बेतरतीबी और नैतिक पतन की ओर बढ़ रहा है, इसका मुख्य कारण धर्म से व्यावहारिक दूरी है। इस्लाम धर्म एक संपूर्ण जीवन का ढांचा है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस संदेश को फैलाने और समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन करने में मुख्य भूमिका विद्वानों की होती है।

समाज जिस तेजी से बेतरतीबी और नैतिक पतन की ओर बढ़ रहा है, इसका मुख्य कारण धर्म से व्यावहारिक दूरी है। इस्लाम धर्म एक संपूर्ण जीवन का ढांचा है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस संदेश को फैलाने और समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन करने में मुख्य भूमिका विद्वानों की होती है। यदि विद्वानों को मजबूत, स्थिर और आर्थिक तथा सामाजिक सुविधाओं से संपन्न किया जाए, तो एक बेहतरीन इस्लामी समाज की नींव रखी जा सकती है। इसलिए, विद्वानों की सेवा और उनके लिए सुविधाओं की उपलब्धता समय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

विद्वान किसी भी समाज के विचारात्मक, आध्यात्मिक और धार्मिक मार्गदर्शक होते हैं। नबी अक़रम (स) ने विद्वानों को नबियों का वारिस बताया, जो इस बात का प्रमाण है कि विद्वानों का स्थान केवल धार्मिक मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि वे एक अच्छे और आदर्श समाज के निर्माता भी हैं। हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं: "ज्ञान से अधिक मूल्यवान कोई चीज नहीं, क्योंकि ज्ञान ही अच्छे समाज की रचना करता है।" (नहजुल बलागा, हिकमत 113)

 विद्वान ही वह वर्ग हैं जो लोगों को क़ुरआन और हदीस की रोशनी में सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, शरीयत के आदेश स्पष्ट करते हैं और लोगों के नैतिकता और चरित्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि समाज में उनकी स्थिति मजबूत न हो, तो धर्म का सही प्रचार-प्रसार प्रभावित हो सकता है। अक्सर विद्वानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को नजरअंदाज किया जाता है, जिसके कारण उन्हें धार्मिक सेवाएं प्रदान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में जब अन्य क्षेत्रों में व्यक्तियों को हर संभव आर्थिक सुविधा दी जाती है, विद्वानों के लिए भी एक संगठित और समग्र योजना की आवश्यकता है।

इस संदर्भ में, राज्य की प्रमुख धार्मिक-सामाजिक शख्सियत मुफ्ती किफ़ायत हुसैन नक़वी का यह विचार प्रशंसनीय है कि विद्वानों की सेवाओं को बढ़ाने के लिए एक व्यावहारिक और प्रभावी योजना बनाई जाए, जिसे जल्द ही विद्वानों के फोरम पर प्रस्तुत किया जाएगा। इस योजना का मुख्य उद्देश्य यह होगा कि विद्वानों को सभी आवश्यक संसाधन प्रदान किए जाएं ताकि वे अपनी धार्मिक सेवाओं को बेहतर तरीके से अंजाम दे सकें।

मस्जिदें इस्लाम की मूल शिक्षण संस्थाएं हैं, जहां से धर्म की रोशनी फैलती है। दुर्भाग्यवश, अक्सर विद्वानों को मस्जिदों में उचित आर्थिक सहयोग नहीं मिलता, जिसके कारण उनके लिए धर्म की सेवा करना मुश्किल हो जाता है। यदि मस्जिदों को मजबूत आर्थिक संस्थाओं के रूप में संगठित किया जाए तो विद्वानों के लिए स्थायी आय के स्रोत उत्पन्न किए जा सकते हैं, जैसे:

वक्फ फंड: मस्जिदों के लिए ऐसे फंड निर्धारित किए जाएं जो केवल विद्वानों और खिदमतगारों के लिए हों।

ज़कात और सदकात का प्रबंधन: जरूरतमंद विद्वानों के लिए ज़कात और अन्य सहायता फंड स्थापित किए जाएं।

शैक्षिक और शोध छात्रवृत्तियाँ: विद्वानों को धार्मिक शोध और शिक्षा की अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए छात्रवृत्तियाँ दी जाएं।

बैतुल माल का गठन: एक स्थायी बैतुल माल स्थापित किया जाए जो विद्वानों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करे।

शाबान का महीना एक पवित्र महीना है, जिसे रमजान की तैयारी का महीना भी कहा जाता है। इस महीने में जहां जरूरतमंदों का हर तरह से ख्याल रखा जाता है, वहीं यह आवश्यक है कि विद्वानों को भी प्राथमिकता दी जाए।

ये वही विद्वान हैं जो रमजान में मस्जिदों को आबाद करते हैं, लोगों को नमाज़, रोज़ा, ज़कात और अन्य इबादतों के अहकाम सिखाते हैं, और पूरे समाज में धर्म के व्यावहारिक कार्यान्वयन के लिए मेहनत करते हैं। यदि विद्वानों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जाएं, तो वे अपनी ऊर्जा को बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसका लाभ पूरी मुस्लिम उम्मा को होगा।

यह एक अटल सत्य है कि एक मजबूत विद्वान ही एक मजबूत समाज की गारंटी है। यदि हम चाहते हैं कि हमारा समाज इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार विकसित हो और लोग धर्म पर कायम रहें, तो हमें विद्वानों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे। विद्वानों की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत करना समय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यदि हम विद्वानों की कदर करेंगे, तो वे बेहतर तरीके से धर्म का प्रचार करेंगे, जिससे समाज में सुधार आएगा, इस्लामी मूल्यों को मजबूती मिलेगी, और बेतरतीबी का अंत संभव हो सकेगा। इसलिए आवश्यक है कि मस्जिदों में विद्वानों के लिए स्थायी आर्थिक कार्यक्रम पेश किए जाएं, उनके लिए बैतुल माल स्थापित किया जाए, और ज़कात व सदकात के जरिए उनकी आर्थिक मदद की जाए। ये कदम केवल विद्वानों के लिए नहीं, बल्कि पूरे इस्लामी समाज की स्थिरता के लिए अनिवार्य हैं।

अल्लाह तआला हमें विद्वानों की कदर करने, उनकी सेवा को प्राथमिकता देने और धर्म की सच्ची तर्जुमानी में भाग लेने की तौफीक अता फरमाए। आमीन!

लेखकः मौलाना सय्यद अली ज़हीन नजफ़ी

हमारे मुल्क की बहुत सी आंतरिक मुश्किलें इस विशेषता से अभाव के नतीजे में हैं। वह यह है कि सच्चाई नहीं है, बातों में सच्चाई नहीं है। सच्चाई का क्या मतलब है? मतलब यह है कि जो बात आप कर रहे हैं वो हक़ीक़त के मुताबिक़ हो। अगर आप जानते हैं कि हक़ीक़त के मुताबिक़ है और आपने उसे बयान किया तो सच्चाई है और अगर नहीं, यानी आपको नहीं मालूम कि यह हक़ीक़त के मुताबिक़ है या नहीं लेकिन फिर भी आपने बयान किया तो यह सच्चाई नहीं है।  सोशल मीडिया को देखिए कि उसकी बातें, अफ़वाहें, झूठ, बेबुनियाद बातें, आपस में एक दूसरे पर आरोप, ग़ैर हक़ीक़ी बातों को एक दूसरे से जोड़ना, मुल्क में झूठा माहौल पैदा कर देता है। सब कोशिश करें कि ज़बान से सच्ची बात ही निकले।

हमास ने एक बयान जारी किया जिसमें उसने पश्चिमी तट पर इज़रायली आक्रमणकारियों द्वारा किए जा रहे अपराधों में वृद्धि को एक खतरनाक और हिंसक रवैया करार दिया और कहां,हम सबको मिलकर इज़रायली अपराधों का मुक़ाबला करना होगा।

पश्चिमी तट (वेस्ट बैंक) पर इज़रायली सेना द्वारा किए जा रहे विध्वंस, हत्या और अन्य अत्याचारों की बढ़ती घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि शत्रु का रवैया फासीवादी और रक्तपात से भरा हुआ है, जो सीधे तौर पर फिलिस्तीनियों और उनकी भूमि के खिलाफ है।

अलमयादीन समाचार नेटवर्क ने इस बयान को साझा करते हुए बताया कि अलफारिया शरणार्थी शिविर में हुए हत्या के हमले का संबंध उस सुरक्षा अभियान से था, जो फिलिस्तीनी स्वायत्त शासन की सुरक्षा सेवाओं द्वारा चलाया गया था। यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि सुरक्षा बलों के बीच सहयोग एक गंभीर अपराध है, जो फिलिस्तीनी जनता को और अधिक नुकसान पहुँचाने का कारण बन सकता है।

हमास ने अपने बयान में यह भी कहा कि फिलिस्तीनी लोगों को अब पहले से कहीं अधिक एकजुट हो कर अपनी ज़मीन और अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा होना चाहिए उन्होंने पश्चिमी तट (वेस्ट बैंक) के नागरिकों से अपील की कि वे उन सभी साजिशों के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों, जिनका उद्देश्य फिलिस्तीन के राष्ट्रीय संघर्ष को नष्ट करना है।

कुल मिलाकर, हमास ने इज़रायली शासन के खिलाफ प्रतिरोध जारी रखने की आवश्यकता को बल देते हुए, फिलिस्तीनियों से आह्वान किया कि वे एकजुट होकर किसी भी तरह की साजिश का सामना करें, जो उनके अधिकारों और संघर्ष को समाप्त करने के उद्देश्य से की जा रही हो।

लेबनान के लोकप्रिय जनांदोलन हिज़्बुल्लाह के पूर्व महासचिव शहीद सय्यद हसन नसरुल्लाह की अंतिम यात्रा पर दुनिया भर की निगाहें हैं।  मिडिल ईस्ट में इस अभूतपूर्व अवसर पर अजीब सा माहौल है और उसी के मद्देनज़र क्षेत्रीय देशों में भी ग़म और उदासी का माहौल है।  इराक की राजधानी बग़दाद में इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। 

बगदाद के गवर्नर अब्दुल मुत्तलिब अलवी ने अगले रविवार को प्रांत में सरकारी कार्यालयों को बंद करने का आदेश दिया है, जो लेबनान के हिज़्बुल्लाह के पूर्व महासचिव शहीद सय्यद हसन नसरुल्लाह के अंतिम संस्कार का दिन है।

गवर्नर हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह बंद सय्यद हसन नसरल्लाह के अंतिम संस्कार के दिन उनके प्रति सम्मान और प्रशंसा के प्रतीक के रूप में किया जा रहा है। 

 

दिल्ली के आरोप में लंबे समय से बिना किसी जमानत के जेल मे बंद JNU के पूर्व छात्र अध्यक्ष उमर खालिद को गुरुवार को दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट में एक बार फिर कोई राहत नहीं मिली।

उमर खालिद ने गुरुवार को दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट में दलील दी कि किसी व्हाट्सऐप ग्रुप में उनकी मौजूदगी मात्र से उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज करने की बुनियाद नहीं हो सकती है, न ही किसी तरह का विरोध-प्रदर्शन करने या बैठकों में हिस्सा लेने को आतंकवाद माना जा सकता है, लेकिन उनके मामले में पुलिस ऐसा ही मानती है।

खालिद के वकील ने अपने मुवक्किल के लिए जमानत की अपील करते हुए अभियोजन पक्ष के इस दावे की मुखालफत की कि खालिद ने स्टूडेंट्स को जमा करने और भड़काने और  'विघटनकारी' चक्का जाम की प्लानिंग करने के लिए व्हाट्सऐप पर 'सांप्रदायिक' ग्रुप बनाए थे.। वकील ने कहा कि उमर खालिद ऐसे किसी ग्रुप का एक्टिव मेंबर भी नहीं रहा। खालिद को जबरन ग्रुप में जोड़ा गया, उसने ग्रुप में एक भी संदेश पोस्ट नहीं किया ना कोई चैट की। वकील ने कहा, “मेरे मुवक्किल के खिलाफ यूएपीए के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। पुलिस विरोध-प्रदर्शन और बैठक में हिस्सा लेने को ही आतंकवाद के बराबर बता रही है। उमर खालिद के वकील ने कहा कि सह-आरोपी देवांगना कालिता और नताशा भी ऐसे सोशल ग्रुप का हिस्सा थे और उन पर हिंसा में “कहीं ज्यादा गंभीर इल्ज़ाम ” थे, लेकिन उन्हें मामले में जमानत दे दी गई।

उत्तर प्रदेश की भाजपा नीत सरकार में एक बार फिर मुस्लिमों और उनके पवित्र स्थलों को निशाना बनाने की मुहिम तेज़ हो गयी है। ताज़ा घटनाक्रम मे  कुशीनगर के बाद अब गोरखपुर में एक मस्जिद को गिराने के आदेश जारी किये गए हैं। विकास प्राधिकरण ने मस्जिद को गिराने के लिए 15 दिनों की डेडलाइन दी है। अथॉरिटी का कहना है कि मस्जिद को बिना नक्शा पास कराए बनाया गया था। 15 फरवरी को ही प्राधिकरण ने मस्जिद के दिवंगत मुतवल्ली के बेटे शुएब अहमद के नाम पर नोटिस जारी किया था।