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गाज़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों पर इज़राइल द्वारा कल रात किए गए हमलों में कई फ़िलिस्तीनी शहीद और घायल हो गए

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , गुरुवार की सुबह फ़िलिस्तीनी मीडिया ने गाज़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सेना के लगातार हमलों और बमबारी की सूचना दी हैं।

अलजज़ीरा नेटवर्क ने बताया कि गाजा शहर के अलरेमाल और तल अलहावी क्षेत्रों पर ज़ायोनी सेना द्वारा तीव्र हमले किए गए हैं साथ ही गाजा शहर के पश्चिम में अंसार पर कब्ज़ा कर लिया गया है।

दूसरी ओर अलमयादीन नेटवर्क ने यह भी बताया हैं कि अलमगाज़ी शिविर दक्षिण में खान यूनिस शहर के पूर्वी क्षेत्र में और अलमगाज़ी शिविर मध्य में स्थित है गाजा पट्टी को भी ज़ायोनीवादियों ने निशाना बनाया हैं।

गौरतलब है कि 7 अक्टूबर, 2023 से गाजा पट्टी पर आपराधिक हमले शुरू होने के बाद से ज़ायोनी सरकार ने 38,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को मार डाला है और कम से कम 88,000 लोग घायल हुए हैं जिन्हें इन परिस्थितियों में निकालना मुश्किल है और हजारों लापता हैं जिनका अभी भी पता नहीं चल पाया है।

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के महासचिव ने कहा है कि फ़िलिस्तीनियों पर होने वाले ज़ुल्म और इस्राईली अपराधों ने पूरी दुनिया के लोगों को झकझोर कर रख दिया है। यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के महासचिव अब्दुल मलिक बद्रुद्दीन अल-हौसी ने गुरुवार को अपने भाषण में कहाः ग़ज़ा युद्ध मानवता के लिए एक वास्तविक परीक्षा है। फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा और ज़ायोनियों के अपराध ने मानव समाज को जागरुक किया है, जिसमें सदियों से ज़ायोनीवाद का महिमामंडन किया जा रहा था।

उन्होंने पश्चिमी देशों द्वारा ज़ायोनी शासन के व्यापक और अंधे समर्थन की आलोचना करते हुए कहा कि इस्राईल के अपराधों पर चुप्पी का मतलब, मानव के अस्तित्व, मानवीय गरिमा और जीवन के अधिकार को बर्बाद करना है।

अमरीकी स्मार्ट बमों से फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को शहीद किया जा रहा है

यमन के नेता ने ज़ायोनी सेना के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार की निंदा करते हुए कहाः इस्राईली सेना उन क्षेत्रों में शरणार्थियों को निशाना बनाती है, जिन्हें वह सुरक्षित घोषित करती है। दर असल, इस तरह से वह निर्दोष और बेसहारा लोगों के लिए जाल बिछाते हैं।

यमनी क्रांति के नेता ने अपने भाषण में कहा कि पीड़ित अमरीका को यह हरगिज़ पसंद नहीं है कि क्षेत्रीय इस्लामी प्रतिरोध फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का समर्थन करे।

उन्होंने यमन, इराक़ और लेबनान में प्रतिरोधी समूहों द्वारा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन की सराहना करते हुए कहाः यमन, इराक़ और लेबनान के मोर्चों ने दुश्मन के ख़िलाफ़ युद्ध में नए मानक स्थापित किए हैं और समीकरणों को बदलकर रख दिया है।

अमरीकी युद्धपोत के भागने पर यमनी क्रांति के नेता का कटाक्ष

अल-हौसी ने यमनी दुश्मनों विशेष रूप से अमरीका को संबोधित करते हुए कहाः तुम्हारा हाथी चूहे से नहीं, बल्कि दहाड़ते हुए शेर से डरकर भाग खड़ा हुआ। यमनी सेना एक दहाड़ता हुआ शेर है, जो तम्हारा सामना करने के लिए तैयार है।

7 अक्टूबर, 2023 से, पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से, ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीन के असहाय और पीड़ित लोगों के ख़िलाफ़ गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में एक व्यापक युद्ध छेड़ रखा है। दूसरी ओर फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में लेबनान, इराक़, यमन और सीरिया के प्रतिरोधी समूह मैदान में हैं और वे ज़ायोनी शासन से उसके अपराधों का हिसाब मांग रहे हैं।

 

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता 28 जुलाई 2024 को नए ईरानी राष्ट्रपति डॉ. मसूद पिज़िशकियान को एक आधिकारिक आदेश जारी करेंगें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,नवनिर्वाचित ईरानी राष्ट्रपति डॉ. मसूद पिज़िशकियान के नियमित राष्ट्रपति बनने का आधिकारिक आदेश 28 जुलाई, 2024 को जारी किया जाएगा इस संबंध में तेहरान में इमाम खुमैनी र.ह. के हुसैनिया में एक उच्च स्तरीय समारोह होगा जिसमें शीर्ष सरकारी अधिकारी भाग लेंगे।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, 28 जुलाई 2024 को सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद  अली खामेनेई द्वारा जारी आधिकारिक फरमान जारी होगा उसके बाद डॉ. मसूद पिज़िशकियान को नए ईरानी राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह होगा मंगलवार, 30 जुलाई 2024 को आयोजित किया जाएगा जिसमें ईरानी संरक्षक परिषद, न्यायपालिका, सैन्य और नागरिक संस्थानों के अधिकारी भाग लेंगे।

गौरतलब है कि नवनिर्वाचित ईरानी राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 121 के अनुसार शपथ लेंगे और अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाने की शपथ लेंगे और अंत में शपथ पत्र पर हस्ताक्षर भी करेंगे।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि अमरीका और ब्रिटेन आतंकवाद के जननी हैं।

गुरुवार की रात इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की कर्बला में शहादत की याद में आयोजित शोक सभा को संबोधित करते हुए हसन नसरुल्लाह ने कहाः अमरीकी और ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसियां आतकंवादी गुटों को जन्म देती हैं।

उन्होंने कहा कि आतकंवादी गुटों के गठन का मक़सद, जिहाद, शहादत और प्रतिरोध का अपमान करना और उन्हें बदनाम करना है।

हिज़्बुल्लाह प्रमुख का कहना था कि सन् 2,000 के बाद, पश्चिम में बड़े पैमाने पर एक कैंपेन शुरू की गई, जिसमें इस्लामी प्रतिरोध को बदमान किया गया और जिहाद शब्द को ही एक नकारात्मक शब्द में बदल दिया गया।

हालांकि अमरीका और ब्रिटेन विश्व आतंकवाद को जन्म देने वाले और उसका भरण-पोषण करने वाले हैं।

दाइश के तत्वों को अमरीकी जेलों और कैम्पों में प्रशिक्षण दिया गया। सीरिया के हसका प्रांत में अल-हुलूल कैम्प एक ऐसा ही कैम्प है, जहां आतकंवादियों को रखा जाता है। अब तक कई ऐसी रिपोर्टें सामने आ चुकी हैं, जिनमें उल्लेख किया गया है कि अमरीकी सेना जेलों से सैन्य अड्डों में आतंकवादियों को स्थानांतरित करती है और वहां उन्हें आतंकवादी हमलों के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।

आतंकवादी क्षेत्रीय देशों में आतंकवादी हमले करते हैं, और इस तरह से वाशिंगटन एक तीर से दो शिकार करता है। आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के बहाने वह क्षेत्रीय देशों में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखता है।

दर असल, आजकल अमरीका पर क्षेत्रीय देशों से अपने सैनिक बाहर निकालने के लिए भारी दबाव है और इस इलाक़े के लोग मानते हैं कि इराक़ और सीरिया में अमरीका के हित, दाइश के अपराधों से जुड़े हुए हैं।

चीन ने उत्तरी अटलांटिक संधि यानी नाटो पर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अशांति फैलाने और वहां डर का माहौल पैदा करने की कोशिश का आरोप लगाया है।

चीन के विदेश मंत्रालय ने नाटो पर एशिया-पेसिफ़िक क्षेत्र में डर का माहौल पैदा करने का आरोप लगाते हुए उसे चेतावनी दी कि इस क्षेत्र को अशांत करने का प्रयास न करे।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने गुरुवार को एशिया प्रशांत क्षेत्र के बारे में वाशिंगटन में नाटो शिखर सम्मेलन के बयान की निंदा करते हुए कहा कि यह बयान शीत युद्ध की मानसिकता की पैदावार है और इससे नफ़रत और दुश्मनी की बू आती है।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने नाटो से शीत युद्ध की मानसिकता और तनावपूर्ण दृष्टिकोण को त्याग दे और चीन की सही छवि दिमाग़ में रखे। इसके अलावा, चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप, उसके ख़िलाफ़ निराधार आरोप लगाना और चीन और यूरोप के बीच संबंधों को बाधित करना बंद करे।

लिन जियान ने नाटो पर यूरोप में अस्थिरता पैदा करने का आरोप लगाते हुए कहाः चीन दृढ़ता से अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास का आनंद लेने के अधिकार का बचाव करता है।

अंत में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहाः

अफ़ग़ानिस्तान और लीबिया की त्रासदियों से पता चलता है कि जहां भी नाटो मौजूद रहेगा, वहां अराजकता और हिंसा का राज होगा।

चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भी अपने देश के ख़िलाफ़ नाटो नेताओं के आरोपों को निराधार और बेबुनियाद बताते हुए कहा कि इस सैन्य संगठन को चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।

वाशिंगटन में आयोजित शिखर सम्मेलन में नाटो नेताओं ने चीन को यूक्रेन युद्ध में एक निर्णायक कारक और अटलांटिक महासागर के दोनों किनारों के बीच संबंधों के लिए एक गंभीर चुनौती बताया था। नाटो के इस रुख़ पर बीजिंग ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी।

चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग में संयुक्त स्टाफ़ के उप प्रमुख ने हाल ही में कहा था कि अमरीका क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, और वाशिंगटन एशिया में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन की एक कॉपी बनाना चाहता है। ताकि वह इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमा सके।

हज़रत हबीब इब्ने मज़ाहिर अलअसदी आपके अलकाब में फाज़िल कारी, हाफ़िज़ और फकीह बहुत ज़्यादा मशहूर है इनका सिलसिला-ऐ-नसब यह है की हबीब इब्ने मज़ाहिर इब्ने रियाब इब्ने अशतर इब्ने इब्ने जुनवान इब्ने फकअस इब्ने तरीफ इब्ने उम्र इब्ने कैस इब्ने हरस इब्ने सअलबता इब्ने दवान इब्ने असद अबुल कासिम असदी फ़कअसी हबीब के पद्रे बुजुर्गवार जनाबे मज़ाहिर हजरते रसूले करीम स० की निगाह में बड़ी इज्ज़त रखते थे रसूले करीम स० इनकी दावत कभी रद्द नहीं फरमाते थे।

हज़रत हबीब इब्ने मज़ाहिर अलअसदीआपके अलकाब में फाज़िल कारी, हाफ़िज़ और फकीह बहुत ज़्यादा मशहूर है इनका सिलसिला-ऐ-नसब यह है की हबीब इब्ने मज़ाहिर इब्ने रियाब इब्ने अशतर इब्ने इब्ने जुनवान इब्ने फकअस इब्ने तरीफ इब्ने उम्र इब्ने कैस इब्ने हरस इब्ने सअलबता इब्ने दवान इब्ने असद अबुल कासिम असदी फ़कअसी हबीब के पद्रे बुजुर्गवार जनाबे मज़ाहिर हजरते रसूले करीम स० की निगाह में बड़ी इज्ज़त रखते थे रसूले करीम स० इनकी दावत कभी रद्द नहीं फरमाते थे।

शहीदे सालिस अल्लमा नूर-उल्लाह-शुस्तरी मजलिस-अल-मोमिनीन में लिखते है की हबीब इब्ने मज़ाहिर को सरकारे दो आलम की सोहबत में रहने का भी शरफ हासिल हुआ था उन्होंने उनसे हदीसे सुनी थी। वो अली इब्ने अबू तालिब अल० की खिदमत में रहे और तमाम लड़ाइयों (जलम,सिफ्फिन,नहरवान) में उन के शरीक रहे शेख तूसी ने इमाम अली इब्ने अबू तालिब और इमाम हसन अलै० और इमाम हुसैन अलै० सब के असहाब में उन का जिक्र किया है।

शबे आशूर एक शब् की मोहलत के लिए जब हजरत अब्बास उमरे सअद की तरफ गए तो हबीब इब्ने मज़ाहिर आप के हमराह थे। नमाज़े जोहर आशुरा के मौके पर हसीन ल० इब्ने न्मीर की बद-कलामी का जवाब आप ही ने दे दिया था और इसके कहने पर की ‘हुसैन की नमाज़ क़ुबूल न होगी “आप ने बढ़ कर घोड़े के मुंह पर तलवार लगाईं थी और ब-रिवायत नासेख एक जरब से हसीन की नाक उड़ा दी थी।

आप ने मौका-ऐ-जंग में कारे-नुमाया किये थे। आप इज्ने जिहाद लेकर मैदान में निकले और नबर्द आजमाई में मशगूल हो गए यहाँ  तक की बासठ (62) दुश्मनों को कत्ल करके शहीद हो गए ।

 

 

 

 

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, एक एसी घटना है जिसमें प्रेरणादायक और प्रभावशाली तत्वों की भरमार है। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली है जो हर युग में लोगों को संघर्ष और प्रयास पर प्रोत्साहित कर सकता है। निश्चित रूप से यह विशेषताएं उन ठोस विचारों के कारण हैं जिन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन आधारित है।

इस आंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मूल उद्देश्य ईश्वरीय कर्तव्यों का पालन था। ईश्वर की ओर से जो कुछ कर्तव्य के रूप में मनुष्य के लिए अनिवार्य किया गया है वह वास्तव में हितों की रक्षा और बुराईयों से दूरी के लिए है। जो मनुष्य उपासक के महान पद पर आसीन होता है और जिसके लिए ईश्वर की उपासना गर्व का कारण होता है, वह ईश्वरीय कर्तव्यों के पालन और ईश्वर को प्रसन्न करने के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ के बारे में नहीं सोचता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों और उनके कामों में जो चीज़ सब से अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह अपने ईश्वरीय कर्तव्य का पालन और इतिहास के उस संवेदनशील काल में उचित क़दम उठाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बुराईयों से रोकने की इमाम हुसैन की कार्यवाही, उनके विभिन्न प्रयासों का ध्रुव रही है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य, ऐसी प्रक्रिया से लोहा लेना था जो धर्म और इस्लामी राष्ट्र की जड़ों को खोखली कर रहे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे मोर्चे से टकराने का निर्णय लिया जो समाज को धर्म की सही विचारधारा और उच्च मान्यताओं से दूर करने का प्रयास कर रही थी। यह भ्रष्ट प्रक्रिया, यद्यपि धर्म और सही इस्लामी शिक्षाओं से दूर थी किंतु स्वंय को धर्म की आड़ में छिपा कर वार करती थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भलीभांति ज्ञान था कि शासन व्यवस्था में व्याप्त यह बुराई और भ्रष्टाचार इसी प्रकार जारी रहा तो धर्म की शिक्षाओं के बड़े भाग को भुला दिया जाएगा और धर्म के नाम पर केवल उसका नाम ही बाक़ी बचेगा। इसी लिए यज़ीद की भ्रष्ट व मिथ्याचारी सरकार से मुक़ाबले के लिए विशेष प्रकार की चेतना व बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के आरंभ में मदीना नगर से निकलते समय कहा थाः मैं भलाईयों की ओर बुलाने और बुराईयों से रोकने के लिए मदीना छोड़ रहा हूं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचार धारा में अत्याचारी शासन के विरुद्ध आंदोलन, समाज के राजनीतिक ढांचे में सुधार और न्याय के आधार पर एक सरकार के गठन के लिए प्रयास भलाईयों का आदेश देने और बुराईयों से रोकने के ईश्वरीय कर्तव्य के पालन के उदाहरण हैं। ईरान के प्रसिद्ध विचारक शहीद मुतह्हरी इस विचारधारा के महत्व के बारे में कहते हैं

भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने के विचार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अत्याधिक महत्वपूर्ण बना दिया। अली के पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने अर्थात इस्लामी समाज के अस्तित्व को निश्चित बनाने वाले सब से अधिक महत्वपूर्ण कार्यवाही की राह में शहीद हुए और यह एसा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि यह न होता तो समाज टुकड़ों में बंट जाता।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक चेतनापूर्ण सुधारक के रूप में स्वंय का यह दायित्व समझते थे कि अत्याचार, अन्याय व भ्रष्टाचार के सामने चुप न बैठें। बनी उमैया ने प्रचारों द्वारा अपनी एसी छवि बनायी थी कि शाम क्षेत्र के लोग, उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के सब से निकटवर्ती समझते थे और यह सोचते थे कि भविष्य में भी उमैया का वंश ही पैग़म्बरे इस्लाम का सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी होगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस गलत विचारधारा पर अंकुश लगाना था और इस्लामी मामलों की देख रेख के संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की योग्यता और अधिकार को सब के सामने सिद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने बसरा नगर वासियों के नाम अपने पत्र में, अपने आंदोलन के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए लिखा थाः

हम अहलेबैत, पैग़म्बरे इस्लाम के सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी थे किंतु हमारा यह अधिकार हम से छीन लिया गया और अपनी योग्यता की जानकारी के बावजूद हमने समाज की भलाई और हर प्रकार की अराजकता व हंगामे को रोकने के लिए, समाज की शांति को दृष्टि में रखा किंतु अब मैं तुम लोगों को कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शैली की ओर बुलाता हूं क्योंकि अब परिस्थितियां एसी हो गयी हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की शैली नष्ट हो चुकी है और इसके स्थान पर धर्म से दूर विषयों को धर्म में शामिल कर लिया गया है। यदि तुम लोग मेरे निमंत्रण को स्वीकार करते हो तो मैं कल्याण व सफलता का मार्ग तुम लोगों को दिखाउंगा।

कर्बला के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा इस वास्तविकता का चिन्ह है कि इस्लाम एक एसा धर्म है जो आध्यात्मिक आयामों के साथ राजनीतिक व समाजिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक संभावनाओं का स्वामी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में धर्म और राजनीति का जुड़ाव इस पूरे आंदोलन में जगह जगह नज़र आता है। वास्तव में यह आंदोलन, अत्याचारी शासकों के राजनीतिक व धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष था। सत्ता, नेतृत्व और अपने समाजिक भविष्य में जनता की भागीदारी, इस्लाम में अत्याधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है।

इसी लिए जब सत्ता किसी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में चली जाए और वह धर्म की शिक्षाओं और नियमों पर ध्यान न दे तो इस स्थिति में ईश्वरीय आदेशों के कार्यान्वयन को निश्चित नहीं समझा जा सकता और फेर बदल तथा नये नये विषय, धर्म की मूल शिक्षाओं में मिल जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन परिस्थितियों को सुधारने के विचार के साथ संघर्ष व आंदोलन का मार्ग अपनाया। क्योंकि वे देख रहे थे कि ईश्वरीय दूत की करनी व कथनी को भुला दिया गया है और धर्म से अलग विषयों को धर्म का रूप देकर समाज के सामने परोसा जा रहा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मानवीय व ईश्वरीय आधारों पर, समाज-सुधार का सबसे अधिक प्रभावी साधन सत्ता है। इस स्थिति में पवित्र ईश्वरीय विचारधारा समाज में विस्तृत होती है और समाजिक न्याय जैसी मानवीय आंकाक्षाएं व्यवहारिक हो जाती हैं।

आशूर के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा का एक आधार, न्यायप्रेम और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। न्याय, धर्म के स्पष्ट आदेशों में से है कि जिसका प्रभाव मानव जीवन के प्रत्येक आयाम पर व्याप्त है। उमवी शासन श्रंखला की सब से बड़ी बुराई, जनता पर अत्याचार और उनके अधिकारों की अनेदेखी थी। स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती इस संदर्भ में मौन धारण नहीं कर सकती थी। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विचार में चुप्पी और लापरवाही, एक प्रकार से अत्याचारियों के साथ सहयोग था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में हुर नामक सेनापति के सिपाहियों के सामने अपने भाषण में कहते हैं।

हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई किसी एसे अत्याचारी शासक को देखे जो ईश्वर द्वारा वैध की गयी चीज़ों को अवैध करता हो, ईश्वरीय प्रतिज्ञा व वचनों को तोड़ता हो, ईश्वरीय दूत की शैली का विरोध करता हो और अन्याय करता हो, और वह व्यक्ति एसे शासक के विरुद्ध अपनी करनी व कथनी द्वारा खड़ा न हो तो ईश्वर के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस व्यक्ति को भी उसी अत्याचारी का साथी समझे। हे लोगो! उमैया के वंश ने भ्रष्टाचार और विनाश को स्पष्ट कर दिया है, ईश्वरीय आदेशों को निरस्त कर दिया है और जन संपत्तियों को स्वंय से विशेष कर रखा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तर्क में अत्याचारी शासक के सामने मौन धारण करना बहुत बड़ा पाप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में स्वतंत्रता प्रेम, उदारता और आत्मसम्मान का सागर ठांठे मार रहा था। यह विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अन्य लोगों से भिन्न बना देती हैं। उनमें प्रतिष्ठा व सम्मान इस सीमा तक था कि जिसके कारण वे यजीद जैसे भ्रष्ट व पापी शासक के आदेशों के पालन की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में ऐसे शासक की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का परिणाम जो ईश्वर और जनता के अधिकारों का रक्षक न हो, अपमान और तुच्छता के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। इसी लिए वे, अभूतपूर्व साहस व वीरता के साथ अत्याचार व अन्याय के प्रतीक यजीद की आज्ञापालन के विरुद्ध मज़बूत संकल्प के साथ खड़े हो जाते हैं और अन्ततः मृत्यु को गले लगा लेते हैं। वे मृत्यु को इस अपमान की तुलना में वरीयता देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में मानवीय सम्मान का इतना महत्व है कि यदि आवश्यक हो तो मनुष्य को इसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राण की भी आहूति दे देनी चाहिए।

इस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में एसे जीवंत और आकर्षक विचार नज़र आते हैं जो इस आंदोलन को इस प्रकार के सभी आंदोलनों से भिन्न बना देते हैं। यही कारण है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन, सभी युगों में प्रेरणादायक और प्रभावशाली रहा है और आज भी है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, एक एसी घटना है जिसमें प्रेरणादायक और प्रभावशाली तत्वों की भरमार है। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली है जो हर युग में लोगों को संघर्ष और प्रयास पर प्रोत्साहित कर सकता है। निश्चित रूप से यह विशेषताएं उन ठोस विचारों के कारण हैं जिन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन आधारित है।

इस आंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मूल उद्देश्य ईश्वरीय कर्तव्यों का पालन था। ईश्वर की ओर से जो कुछ कर्तव्य के रूप में मनुष्य के लिए अनिवार्य किया गया है वह वास्तव में हितों की रक्षा और बुराईयों से दूरी के लिए है। जो मनुष्य उपासक के महान पद पर आसीन होता है और जिसके लिए ईश्वर की उपासना गर्व का कारण होता है, वह ईश्वरीय कर्तव्यों के पालन और ईश्वर को प्रसन्न करने के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ के बारे में नहीं सोचता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों और उनके कामों में जो चीज़ सब से अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह अपने ईश्वरीय कर्तव्य का पालन और इतिहास के उस संवेदनशील काल में उचित क़दम उठाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बुराईयों से रोकने की इमाम हुसैन की कार्यवाही, उनके विभिन्न प्रयासों का ध्रुव रही है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य, ऐसी प्रक्रिया से लोहा लेना था जो धर्म और इस्लामी राष्ट्र की जड़ों को खोखली कर रहे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे मोर्चे से टकराने का निर्णय लिया जो समाज को धर्म की सही विचारधारा और उच्च मान्यताओं से दूर करने का प्रयास कर रही थी। यह भ्रष्ट प्रक्रिया, यद्यपि धर्म और सही इस्लामी शिक्षाओं से दूर थी किंतु स्वंय को धर्म की आड़ में छिपा कर वार करती थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भलीभांति ज्ञान था कि शासन व्यवस्था में व्याप्त यह बुराई और भ्रष्टाचार इसी प्रकार जारी रहा तो धर्म की शिक्षाओं के बड़े भाग को भुला दिया जाएगा और धर्म के नाम पर केवल उसका नाम ही बाक़ी बचेगा। इसी लिए यज़ीद की भ्रष्ट व मिथ्याचारी सरकार से मुक़ाबले के लिए विशेष प्रकार की चेतना व बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के आरंभ में मदीना नगर से निकलते समय कहा थाः मैं भलाईयों की ओर बुलाने और बुराईयों से रोकने के लिए मदीना छोड़ रहा हूं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचार धारा में अत्याचारी शासन के विरुद्ध आंदोलन, समाज के राजनीतिक ढांचे में सुधार और न्याय के आधार पर एक सरकार के गठन के लिए प्रयास भलाईयों का आदेश देने और बुराईयों से रोकने के ईश्वरीय कर्तव्य के पालन के उदाहरण हैं। ईरान के प्रसिद्ध विचारक शहीद मुतह्हरी इस विचारधारा के महत्व के बारे में कहते हैं

भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने के विचार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अत्याधिक महत्वपूर्ण बना दिया। अली के पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने अर्थात इस्लामी समाज के अस्तित्व को निश्चित बनाने वाले सब से अधिक महत्वपूर्ण कार्यवाही की राह में शहीद हुए और यह एसा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि यह न होता तो समाज टुकड़ों में बंट जाता।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक चेतनापूर्ण सुधारक के रूप में स्वंय का यह दायित्व समझते थे कि अत्याचार, अन्याय व भ्रष्टाचार के सामने चुप न बैठें। बनी उमैया ने प्रचारों द्वारा अपनी एसी छवि बनायी थी कि शाम क्षेत्र के लोग, उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के सब से निकटवर्ती समझते थे और यह सोचते थे कि भविष्य में भी उमैया का वंश ही पैग़म्बरे इस्लाम का सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी होगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस गलत विचारधारा पर अंकुश लगाना था और इस्लामी मामलों की देख रेख के संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की योग्यता और अधिकार को सब के सामने सिद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने बसरा नगर वासियों के नाम अपने पत्र में, अपने आंदोलन के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए लिखा थाः

हम अहलेबैत, पैग़म्बरे इस्लाम के सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी थे किंतु हमारा यह अधिकार हम से छीन लिया गया और अपनी योग्यता की जानकारी के बावजूद हमने समाज की भलाई और हर प्रकार की अराजकता व हंगामे को रोकने के लिए, समाज की शांति को दृष्टि में रखा किंतु अब मैं तुम लोगों को कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शैली की ओर बुलाता हूं क्योंकि अब परिस्थितियां एसी हो गयी हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की शैली नष्ट हो चुकी है और इसके स्थान पर धर्म से दूर विषयों को धर्म में शामिल कर लिया गया है। यदि तुम लोग मेरे निमंत्रण को स्वीकार करते हो तो मैं कल्याण व सफलता का मार्ग तुम लोगों को दिखाउंगा।

कर्बला के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा इस वास्तविकता का चिन्ह है कि इस्लाम एक एसा धर्म है जो आध्यात्मिक आयामों के साथ राजनीतिक व समाजिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक संभावनाओं का स्वामी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में धर्म और राजनीति का जुड़ाव इस पूरे आंदोलन में जगह जगह नज़र आता है। वास्तव में यह आंदोलन, अत्याचारी शासकों के राजनीतिक व धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष था। सत्ता, नेतृत्व और अपने समाजिक भविष्य में जनता की भागीदारी, इस्लाम में अत्याधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है।

इसी लिए जब सत्ता किसी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में चली जाए और वह धर्म की शिक्षाओं और नियमों पर ध्यान न दे तो इस स्थिति में ईश्वरीय आदेशों के कार्यान्वयन को निश्चित नहीं समझा जा सकता और फेर बदल तथा नये नये विषय, धर्म की मूल शिक्षाओं में मिल जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन परिस्थितियों को सुधारने के विचार के साथ संघर्ष व आंदोलन का मार्ग अपनाया। क्योंकि वे देख रहे थे कि ईश्वरीय दूत की करनी व कथनी को भुला दिया गया है और धर्म से अलग विषयों को धर्म का रूप देकर समाज के सामने परोसा जा रहा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मानवीय व ईश्वरीय आधारों पर, समाज-सुधार का सबसे अधिक प्रभावी साधन सत्ता है। इस स्थिति में पवित्र ईश्वरीय विचारधारा समाज में विस्तृत होती है और समाजिक न्याय जैसी मानवीय आंकाक्षाएं व्यवहारिक हो जाती हैं।

 आशूर के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा का एक आधार, न्यायप्रेम और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। न्याय, धर्म के स्पष्ट आदेशों में से है कि जिसका प्रभाव मानव जीवन के प्रत्येक आयाम पर व्याप्त है। उमवी शासन श्रंखला की सब से बड़ी बुराई, जनता पर अत्याचार और उनके अधिकारों की अनेदेखी थी। स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती इस संदर्भ में मौन धारण नहीं कर सकती थी। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विचार में चुप्पी और लापरवाही, एक प्रकार से अत्याचारियों के साथ सहयोग था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में हुर नामक सेनापति के सिपाहियों के सामने अपने भाषण में कहते हैं।

हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई किसी एसे अत्याचारी शासक को देखे जो ईश्वर द्वारा वैध की गयी चीज़ों को अवैध करता हो, ईश्वरीय प्रतिज्ञा व वचनों को तोड़ता हो, ईश्वरीय दूत की शैली का विरोध करता हो और अन्याय करता हो, और वह व्यक्ति एसे शासक के विरुद्ध अपनी करनी व कथनी द्वारा खड़ा न हो तो ईश्वर के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस व्यक्ति को भी उसी अत्याचारी का साथी समझे। हे लोगो! उमैया के वंश ने भ्रष्टाचार और विनाश को स्पष्ट कर दिया है, ईश्वरीय आदेशों को निरस्त कर दिया है और जन संपत्तियों को स्वंय से विशेष कर रखा है।

 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तर्क में अत्याचारी शासक के सामने मौन धारण करना बहुत बड़ा पाप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में स्वतंत्रता प्रेम, उदारता और आत्मसम्मान का सागर ठांठे मार रहा था। यह विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अन्य लोगों से भिन्न बना देती हैं। उनमें प्रतिष्ठा व सम्मान इस सीमा तक था कि जिसके कारण वे यजीद जैसे भ्रष्ट व पापी शासक के आदेशों के पालन की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में ऐसे शासक की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का परिणाम जो ईश्वर और जनता के अधिकारों का रक्षक न हो, अपमान और तुच्छता के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। इसी लिए वे, अभूतपूर्व साहस व वीरता के साथ अत्याचार व अन्याय के प्रतीक यजीद की आज्ञापालन के विरुद्ध मज़बूत संकल्प के साथ खड़े हो जाते हैं और अन्ततः मृत्यु को गले लगा लेते हैं। वे मृत्यु को इस अपमान की तुलना में वरीयता देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में मानवीय सम्मान का इतना महत्व है कि यदि आवश्यक हो तो मनुष्य को इसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राण की भी आहूति दे देनी चाहिए।

इस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में एसे जीवंत और आकर्षक विचार नज़र आते हैं जो इस आंदोलन को इस प्रकार के सभी आंदोलनों से भिन्न बना देते हैं। यही कारण है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन, सभी युगों में प्रेरणादायक और प्रभावशाली रहा है और आज भी है।

 

ग़ज़ा में युद्ध की वजह से राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य और सामाजिक ख़र्चों के अलावा ज़ायोनी शासन के लिए भारी और अपूरणीय आर्थिक ख़र्चे बढ़ गये हैं।

 ग़ज़ापट्टी पर ज़ायोनी सेना के हमले से पहले इस्राईल की अर्थव्यवस्था भयंकर, मंदी, महंगाई और गिरावट से जूझ रही थी और अब इस युद्ध के 9 महीने से अधिक समय के बाद इस संकट का दायरा और भी गंभीर हो गया है। पार्सटुडे के इस लेख में, हमने ग़ज़ा युद्ध के बाद इस्राईली शासन के आर्थिक संकट पर एक नज़र डाली है:

 युद्ध के आर्थिक प्रभावों की वजह से इस्राईल की क्रेडिट रेटिंग कम हो गई

 ग़ज़ा पर अपने हमलों की शुरुआत के बाद, ज़ायोनी शासन को कई आर्थिक ख़र्चों का सामना करना पड़ा जिनमें हाल ही में मूडीज़ क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने क्रेडिट रेटिंग के क्षेत्र में बताया कि पिछले 30 साल में पहली बार इस्राईल के ताज़ा ख़र्चे डाउनग्रेड हुए हैं।

 मूडीज़ एक अमेरिकी वित्तीय और व्यावसायिक सेवा कंपनी है जो बांड बाज़ार की समीक्षाएं और विश्लेषण, क्रेडिट बाज़ार का जाएज़ा, बांड प्रबंधन और निवेश प्रबंधन सेवाएं प्रदान करती है।

 मूडीज़ क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने इस्राईल के उसकी रेटिंग योजना में शामिल होने के बाद पहली बार इस्राईल की क्रेडिट रेटिंग को घटाकर A2 कर दी है।

 इस कंपनी ने अपने बयान में, घोषणा की कि यह काम उच्च स्तर के भू-राजनीतिक ख़तरों, विशेष रूप से इस्राईल के लिए मध्यम और दीर्घकालिक सुरक्षा ख़तरों की वजह है।

 ग़ज़ा युद्ध के नतीजे में ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल के कर्ज़ों में वृद्धि

 युद्ध की वजह से ज़ायोनी शासन की कैबिनेट का कर्ज़ भी बढ़ गया और 2023 की तीसरी तिमाही के अंत में यह लगभग 1.08 ट्रिलियन शेकेल (294.2 बिलियन डॉलर) तक पहुंच गया और ऐसा लगता है कि तब से जंग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज़ और वित्तीय मदद हासिल करने के विषय में तेज़ी आई है।

 इस्राईल के लिए लाल सागर का सुरक्षा ख़तरा, परिवहन ख़र्चों में वृद्धि

 ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के अपराधों और इस इलाक़े की नाकाबंदी के बाद, यमनी सशस्त्र बलों ने एलान किया कि वे मक़बूज़ा क्षेत्रों की ओर जाने वाले जहाजों का रास्ता रोकेंगे और उन्हें निशाना बनाएंगे।

 हालिया हफ़्तों में ये हमले और तेज़ हो गए हैं और ज़ायोनी शासन का 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार समुद्र पर निर्भर होने की वजह से तेल अवीव पर भारी आर्थिक लागत आ गई है।

 पर्यटन आय में कमी

 मक़बूज़ा क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या के सर्वेक्षण से पता चलता है कि 1995 और 2023 के बीच, सालाना औसतन 2.5 मिलियन लोगों ने मक़बूज़ा क्षेत्रों का दौरा किया जो 2019 में अपने चरम पर पहुंच गया था जब 4.5 मिलियन पर्यटकों ने इस्राईल की यात्रा की थी।

 इस शासन ने 2022 में पर्यटन से 5.5 बिलियन डॉलर की कमाई की है लेकिन तूफ़ान अल-अक्सा ऑपरेशन के बाद इस शासन के पर्यटन को भारी नुकसान हुआ और अक्टूबर और नवम्बर 2023 में पर्यटकों की संख्या क्रमशः 89 हजार और 38 हजार थी जबकि दिसंबर में यह संख्या शून्य तक पहुंच गई।

 युद्ध का नौकरियों पर असर

 युद्ध की शुरुआत के बाद से, किसी भी कंपनी ने मक़बूज़ा क्षेत्रों में काम करना शुरू नहीं किया है और लगभग 57 हजार कंपनियां, जिनमें से अधिकांश छोटी कंपनियां हैं, 2023 में बंद हो गई हैं, जो कि पिछले साल बंद कंपनियों की तुलना में 35  प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।

 ज़ायोनी शासन की 70 प्रतिशत से अधिक आरक्षित सेनाओं को वापस बुलाने के बाद, इस शासन को श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और इसकी भरपाई के लिए भारतीय श्रमिकों को काम पर रखना शुरू कर दिया गया है।

 शरणार्थियों को बसाने का ख़र्चा

 युद्ध की शुरुआत के बाद, ग़ज़ा पट्टी के आसपास और मक़बूज़ा क्षेत्रों और लेबनानी सीमा के उत्तर में रहने वाले कई परिवारों ने उन क्षेत्रों में प्रवास करने की कोशिश की जहां सुरक्षा ज़्यादा है। इसीलिए शुरुआती दिनों में होटल, मोटल और किराये के अपार्टमेंट, अपनी क्षमताओं से ज़्यादा भरे हुए थे।

 ज़ायोनी शासन के होटल एसोसिएशन के प्रमुख ने कहा है कि होटल के आधे कमरे ग़ज़ा के आसपास से विस्थापित लोगों के लिए रिज़र्व कर दिए गए हैं।

 परिणामस्वरूप, ज़ायोनी शासन की कैबिनेट ने इन लोगों को एक स्थान पर एकत्रित रखने के लिए शिविर बनाने के बारे में सोचा और मिसाल पेश करने क लिए शिविर निर्माण के लिए 150 हजार वर्ग मीटर ज़मीन भी विशेष कर दी।

 इन घटनाओं का नतीजा यह निकला कि मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन से ज़ायोनीवादियों के रिवर्स प्रवासन तेज़ हो गया जो पिछले वर्षों की तुलना में कई गुना है।

 इससे ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल पर भारी वित्तीय बोझ भी पड़ता है और मक़बूज़ा क्षेत्रों में होटल उद्योग को भी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

 ज़ायोनी शासन पर युद्ध के आर्थिक प्रभाव के बारे में व्यक्त किये गये बिंदु इस शासन को हुए नुकसान का मात्र एक हिस्सा मात्र थे जिसके नतीजे उसके लिए भारी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सुरक्षा के रूप में सामने आएंगे।

 दुनिया के सभी हिस्सों में लोगों के बहिष्कार और बॉयकॉट के कारण ज़ायोनी शासन की कुछ संबद्ध या समर्थित कंपनियों को अन्य आर्थिक नुकसान भी हुआ है जिसे सटीक रूप से आंका नहीं जा सका है।

 

 

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ़ में हज़रत आयतुल्लाह सैयद अलवी बुरुजर्दी का स्वागत किया इस मौके पर हौज़ा ए इल्मिया और दीन की तबलीग़ के बारे में बात की।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने  केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ़ में हज़रत आयतुल्लाह सैयद अलवी बुरुजर्दी का स्वागत किया इस मौके पर हौज़ा ए इल्मिया और दीन की तबलीग़ के बारे में बात की।

हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अलवी बुरुजर्दी ने मरज ए आली क़द्र की अयादत फ़रमाई और उनकी सेहत व आफ़ियत के लिए बारगाहे ख़ुदावन्दी में दुआ फ़रमाई उक्त इजतिमा में हवज़ाते इल्मिया और मुस्लिम उम्मह की वर्तमान स्थिति पर चर्चा की गई और मोमेनीन के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए दुआ की गई।

मजलिस वहदत मुस्लिमीन पाकिस्तान के सेंट्रल शोक विंग द्वारा आयोजित, दूसरा वार्षिक भव्य "क़ुमी हुसैन (एएस) मिनी सम्मेलन" नेशनल लाइब्रेरी ऑडिटोरियम, इस्लामाबाद में आयोजित किया गया था, जिसमें शिया सुन्नी विद्वानों और विचार के अन्य स्कूलों ने भाग लिया और संबोधित किया ।

मजलिस वहदत मुस्लिमीन पाकिस्तान की केंद्रीय शोक शाखा द्वारा आयोजित दूसरा वार्षिक "कौमी हुसैन मिनी सम्मेलन" इस्लामाबाद के नेशनल लाइब्रेरी ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया था, जिसमें अन्य विचारधाराओं से संबंधित शिया सुन्नी विद्वान शामिल हुए। उन्होंने भाग लिया और संबोधित किया।

एमडब्ल्यूएम के अध्यक्ष सीनेटर अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफरी, जमात अहल हरम के प्रमुख मुफ्ती गुलजार अहमद नईमी, डॉ. सैयद ओसामा बुखारी, अंजुमन ताजरान के अध्यक्ष काशिफ अब्बासी, शायर अहमद फरहाद सैयद अहमद इकबाल रिजवी, सैयद नासिर अब्बास शिराज़ी, अजादारी विंग के अध्यक्ष मलिक इकरार अल्वी, सदस्य नेशनल असेंबली इंजीनियर हमीद हुसैन, सैयद असद अब्बास नकवी, जाने-माने पत्रकार और स्तंभकार मजहर बरलास, अल्लामा मुहम्मद असगर अस्करी सहित सभी धर्मों और विचारधारा के विद्वानों और राजनीतिक और सामाजिक हस्तियों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने बात की। जीवन. बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।

कर्बला आंदोलन का घोषणापत्र;  यह उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना था

सम्मेलन में भाग लेने वालों को संबोधित करते हुए, अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफ़री ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने अल्लाह के दूत की भाषा में एक सिद्धांत दिया है कि किसी को अपनी स्वतंत्रता से कभी समझौता नहीं करना चाहिए, न केवल स्वतंत्र होने के लिए इंसानियत की आज़ादी के लिए कोशिश करो, कहते हैं जो ज़िंदा है वही ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ता है, आज़ादी के लिए मरना ख़ुशी की बात है आज के फिरौन और यज़ीद हैं गाज़ा में मासूम बच्चे शहीद हो रहे हैं , मजलूमों के साथ खड़ा होना ही असली जिंदगी है।

उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान में हर जगह क्रूरता और क्रूरता चल रही है, पंजाब में एक प्रतिशोधी व्यक्ति को थोपा गया है, लोगों की राय बदल दी गई है और उन पर अत्याचार किया गया है, मातृभूमि को नुकसान पहुंचाने वाला हर समझौता एमएफ बजट पेश करके निषिद्ध और अमान्य है सरकार के प्रति हमारी धार्मिक जिम्मेदारी है कि वह हमारे पोते रसूल स.अ.व. के महान बलिदान को याद रखे और कर्बला के सार्वभौमिक और क्रांतिकारी संदेश को पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रसारित करे।

अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफ़री ने कहा कि इमाम अल-मक़म ने कर्बला के मैदान में झूठ को हराकर इस्लाम को जीवन और शक्ति दी, मुहर्रम अल-हरम हमें धैर्य और दृढ़ता सिखाता है, आज भी सही और गलत की लड़ाई जारी है, कर्बला अभी भी एक है। स्वतंत्रता सेनानियों के लिए मशाल, जिसका गाजा के उत्पीड़ित लोग अनुसरण करते हैं।

कर्बला आंदोलन का घोषणापत्र;  यह उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना था

सैयद अहमद इकबाल रिज़वी ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का धन्य व्यक्तित्व मुस्लिम उम्मा के लिए एकता का बिंदु है। इस्लाम धर्म के अस्तित्व के लिए वफादार साथियों ने एक महान बलिदान दिया, यह शाश्वत कहानी आज के समय में हमारे लिए एक उदाहरण है।

मुफ्ती गुलजार अहमद नईमी ने कहा कि कर्बला का संदेश मानवता के लिए है, कर्बला का सबक निस्वार्थता, साहस, धैर्य और एकता है, कर्बला का सबक जुल्म के खिलाफ खड़ा होना है, फिलिस्तीनी लोगों ने इजरायली क्रूरता का पूरी तरह से विरोध किया है ताकत के साथ खड़े होकर विचार को व्यवहार में लाएं।

इस्लामाबाद बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष आजाद स्टेट ने कहा कि कर्बला आंदोलन का घोषणापत्र उत्पीड़न, ज्यादती और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना था, उपनिवेशवाद इस्लाम धर्म के खिलाफ साजिशों में लगा हुआ है, जिसे रोकना और विफल करना हमारी प्राथमिकताओं में होना चाहिए।

केंद्रीय महासचिव सैयद नासिर अब्बास शिराज़ी ने कहा कि सत्य और धर्म के वाहक, मानवीय गरिमा के संरक्षक और विचार की स्वतंत्रता के निडर मुजाहिदीन, इतिहास के महान नायक, हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की यह महान उपलब्धि और अतुलनीय बलिदान है। इस्लाम हमें यह शिक्षा देता है कि एक मोमिन के जीवन का लक्ष्य अल्लाह ताला की प्रसन्नता और प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपने जीवन, धन, सम्मान और प्रतिष्ठा, अपने परिवार और बच्चों को सच्चाई की राह पर बलिदान करना है। पवित्र पैगंबर ने कहा: हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं।