رضوی

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नजफ अशरफ,ह़ज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने अज़ादारी और मजालिस के हवाले से ख़ातिबों और मुबल्लेग़ीन के नाम पैगाम दिया हैं।

नजफ अशरफ,ह़ज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने अज़ादारी और मजालिस के हवाले से ख़ातिबों और मुबल्लेग़ीन के नाम पैगाम दिया हैं।

  1. मेरे अज़ीज़ भाइयों ,मोहतरम ख़ातिबों, मिम्बरे हुसैनी के ख़िदमत गुज़ारो और मैदाने ख़िताबत के शहसवारों !

बेशक अल्लाह ने आपको ऐसी नेमत से नवाज़ा है के आप इमाम ज़माना (अज) के नाएबीन फ़क़ीहों के फ़रीज़े के बाद सबसे अहम्, अशरफ़ और अफ़ज़ल अमल और फ़रीज़े को अंजाम दे रहे हैं के जो लोगों को दीन की तरफ़ दावत देना नसीहत ,तब्लीग़ और हिदायत और रहनुमाई करना है। हमारे इमामों (अस) ने अपने क़ौल और अमल के ज़रिए पूरे साल के दौरान और ख़ास तौर पर मुहर्रम के दिनों में अज़ादारी और मजालीसे अज़ा बरपा करने की बहुत ताकीद की है

और इमामों की तरफ़ से मजालीसे अज़ा का इस क़द्र एहतेमाम और ताकीद इमाम हुसैन (अस) के ख़ूनी ,रूहानी और आतफ़ी (खूनी, आध्यात्मिक और भावनात्मक) रिश्ते की वजह से नहीं था बल्कि ये सब एहतेमाम सिर्फ़ इस वजह से था के हज़रत इमाम हुसैन (अस) के मुक़द्दस इन्किलाब और क़ुर्बानियों ने दीने इस्लाम को हयाते अबदी बख़्शी के जो शजरए मलऊना बनी उमय्या के ज़ुल्मो सितम, फ़साद और बे राहरवी तले अपने आसार खो रहा था ( जो उमय्यदों के शापित परिवार के उत्पीड़न, उत्पात और गुमराही के तहत अपने निशान खो रहा था।)

बनी उमय्या का उम्मते मुस्लिमा पर तसल्लुत और इस्लाम को मिटाने को कोशिश करना उम्मत के उस इंहिराफ़ का नतीजा था के  जिस की वजह से ज़ाहेरी हुकूमत उसके अस्ल हक़दारों से ग़स्ब होकर उम्मत के ना अहल अफ़राद के हाथों में आगई।

  1. जब हम कर्बला के वाक़ये से पहले और बाद के हालात का जायज़ा लेते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है के इस्लाम को बचाने के लिए इमाम हुसैन (अस) का क़याम और ऐसा हुसैनी इन्किलाब निहायत ज़रूरी और हतमी था और इसी जानिब रसूले ख़ुदा (स अ व आ व) के इरशादात भी इशारा करते हैं ,दीन के हक़ीक़ी क़ाएदीन रसूले ख़ुदा (स अ व आ व), हज़रत अली (अस) हज़रत इमाम हसन (अस) ये जानते थे के दीन को बचाने के लिए ये हुसैनी इन्किलाब बहुत ज़रूरी था यही वजह है के इमामों (अस) ने इस क़यामे हुसैनी और इसकी याद को ज़िंदा और बाक़ी रखने पर बहुत ज़ोर दिया है,

कियोंकि इस इन्किलाब की बक़ा दीन की बक़ा है जब तक इस इन्किलाब का शोला रौशन और मुसतमीर रहेगा लोगों को मोहम्मदी शरीयत की बक़ा ,दीन की मदद और नुसरत के लिए उभारता , उनके शौक़ और हिम्मत में इज़ाफ़ा करता और उनके नुफ़ूस पर तारीख़ी असरात रुनुमा करता रहेगा।

इस एतेबार से आप ख़ातिबों का अमल इसी सांचे में आता है के जिसकी कड़ी शहीदों और इस्लाम की ख़ातिर क़ुर्बानियां देने वालों के सिलसिले से जा मिलती है।

में आपको अज़ीम रुतबे और मन्ज़ेलत पर फ़ाएज़ होने पर  ख़िराजे तहसीन पेश करता हूँ।

  1. वाजिब है के हम लोगों को मजालीसे अज़ा और मातमी जुलूसों में शिरकत करने की ताकीद करें और इसके साथ उन्हें इन जुलूसों वग़ैरा में शरीयत के हुदूद से बाहर निकलने से रोकें और उन्हें ऐसे कामों की इजाज़त ने दें के जो इमाम हुसैन (अस) के मुक़द्दस इन्किलाब की तौहीन का जरिया बने।

इसी तरह ज़रूरी है के अज़ादारी को सियासी मक़ासिद से दूर रखा जाए और कोई शख़्स  इमाम हुसैन (अस) की अज़ादारी और वाक़ये कर्बला को अपने दुनयावी और सियासी मक़ासिद के लिए इस्तेमाल न करे।

  1. ख़तीब के लिए वाजिब है के बावुसूक़ (प्रामाणिक) रवायात को पढ़े और मोतबर किताबों से अहलेबैत (अस) के फ़ज़ाएल, मनाक़िब और मसाएब को हासिल करे , ख़तीब के लिए जाएज़ नहीं है के वो किसी ऐसी रवायत को बयान करे जिस में मज़हब या इमाम हुसैन अस की तौहीन का पहलु मौजूद हो और बेहतर ये है के रवायात के साथ किताब का हवाला दे ताके उस रवायत की ज़िम्मेदारी किताब वाले के ज़िम्मे हो जाए और आप नक़ल करने की ज़िम्मेदारी से आज़ाद हो जाएँ।

5 . ख़तीब के लिए ज़रूरी है के वो कर्बला के वाक़ये को बयान करे और कर्बला के वाक़ये और दीन के अहकाम जैसे नमाज़ रोज़ा  हज ज़कात ख़ुम्स जिहाद वग़ैरा के दरमियान मौजूद रब्त और ताल्लुक़ को लोगों के सामने इमाम हुसैन अस और उनके असहाब अस या इमामों अस से मरवी कलेमात के ज़रिये बयान करे जैसे इमाम हुसैन अस का ये फ़रमान के जिस में आप फ़रमाते हैं

’’ ألا ترون ان الحق لا یعمل بہ و ان الباطل لا یتناھی عنہ لیرغب المؤمن فی لقاء اﷲ محقا‘‘

अर्थात्: क्या तुम नहीं देख रहे कि हक़ पर अमल नहीं किया जा रहा है और किसी को बातिल से रोका नहीं जा रहा है ताकि मोमिन अल्लाह से हक़ीक़ी मुलाक़ात को दोस्त रखे।

इसी तरह इमाम हुसैन अस के इस फ़रमान को भी पढ़ा जा सकता है जो उन्होंने अपने नाना रसूल अल्लाह (स अ व आ व) की क़ब्र को अलविदा करते हुए इरशाद फ़रमाया

.... اللھم انی احب ان آمر بالمعروف و انھٰی عن المنکر

अर्थात्: मेरे अल्लाह में अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर को दोस्त रखता हूँ।

कर्बला में जिन नेक और अच्छे इंसानों ने सह़ी और कामयाब रास्ते को अपनाया और अपने ज़माने के इमाम के नेतृत्व में बुरे लोगों के मुक़ाबले, अपनी ख़ुशी के साथ जंग की और शहीद हुए उनमें से कुछ वीर ह़ज़रत अली (अ.स) के बेटे भी थे जो अमी

इमाम हुसैन अ. के कितने भाई कर्बला में शहीद हुए।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: कर्बला में जिन नेक और अच्छे इंसानों ने सह़ी और कामयाब रास्ते को अपनाया और अपने ज़माने के इमाम के नेतृत्व में बुरे लोगों के मुक़ाबले, अपनी ख़ुशी के साथ जंग की और शहीद हुए उनमें से कुछ वीर ह़ज़रत अली (अ.स) के बेटे भी थे जो अमीरूल मोमिनीन अ. की तरफ़ से इमाम ह़ुसैन अलैहिस्सलाम के भाई थे, इतिहास की किताबों में उनकी संख्या 18 बताई गई है।

1) हज़रत उम्मुल बनीन की संतानें

हज़रत उम्मुल बनीन की कोख से जन्म लेने वाले अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अ. के चार बेटे करबला में शहीद हुए हैं।

  1. अब्दुल्लाह इब्ने अली अ.

इतिहास में उन्हें अब्दुल्लाह अकबर के नाम से याद किया गया है और अबू मुहम्मद के नाम से मशहूर थे आपकी मां का नाम उम्मुल बनीन था।

आप हज़रत अब्बास अ. से से छोटे लेकिन अपने दूसरे भाइयों में सबसे बड़े थे आपकी करबला में शहादत निश्चित है और सभी इतिहासकारों ने आपका नाम बयान किया है।

  1. जाफ़र इब्ने अली अ.

कुछ इतिहासकारों ने अबू जाफ़र अकबर के नाम से आपको याद किया है और आपकि उपाधि अबू अब्दिल्लाह बयान की है, चूंकि अमीरूल मोमेनीन अ. अपने भाई जाफ़र इब्ने अबी तालिब से बहुत ज़्यादा मुहब्बत करते थे इसलिए आपने उनके नाम पर अपने बेटे का नाम जाफ़र रखा।

  1. उस्मान इब्ने अली अ.

कुछ लोगों ने आपका नाम उस्मान अकबर बयान किया है, अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अ. ने फ़रमाया मैंने अपने बेटे का नाम उस्मान, अपने भाई उस्मान इब्ने मज़नून के नाम पर रखा है (तीसरे ख़लीफ़ा के नाम पर नहीं जैसा के कुछ अहले सुन्नत उल्मा कहते हैं कि तीसरे ख़लीफ़ा के नाम पर आपने अपने बेटे का नाम रखा।)

  1. अब्बास इब्ने अली अ.

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जनाब फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के दस साल बाद जनाबे उम्मुलबनीन अ. से शादी की। हज़रत अली अलैहिस्सलाम और फ़ातिमा बिन्ते हेज़ाम के यहाँ चार बेटे पैदा हुए, अब्बास, औन, जाफ़र और उस्मान कि जिनमें सबसे बड़े हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम थे। यही कारण है कि उनकी मां को उम्मुल बनीन यानी बेटों की माँ कहा जाता है।

जब जनाबे अब्बास अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कानों में अज़ान और इक़ामत कही। आप जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम के हाथों को चूमा करते थे और रोया करते थे, एक दिन जनाब उम्मुल बनीन ने इसका कारण पूछा तो इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया यह हाथ हुसैन की मदद में काट दिये जाएंगे।

हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम कर्बला की ओर हरकत करने वाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवान के सेनापति थे। इमाम हुसैन अ. ने कर्बला के मैदान में धैर्य, बहादुरी और वफादारी के वह जौहर दिखाए कि इतिहास में जिसकी मिसाल नहीं मिलती।अब्बास अमदार ने अमवियों की पेशकश ठुकरा कर मानव इतिहास को वफ़ादारी का पाठ दिया। आशूर के दिन कर्बला के तपते रेगिस्तान में जब अब्बास अ. से बच्चों के सूखे होठों और नम आँखों को न देखा गया तो सूखी हुई मश्क को उठाया और इमामअ. से अनुमति लेकर अपने जीवन का सबसे बड़ा इम्तेहान दिया। दुश्मन की सेना को चीरते हुये घाट पर कब्जा किया और मश्क को पानी से भरा लेकिन खुद एक बूंद भी पानी नहीं पिया। इसलिए कि अब्बास अ. की निगाह में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और आपके साथियों के भूखे प्यासे बच्चों की तस्वीर थी।दुश्मन को पता था कि जब तक अब्बास के हाथ सलामत हैं कोई उनका रास्ता नहीं रोक सकता। यही वजह थी कि हज़रत अब्बास के हाथों को निशाना बनाया गया। मश्क की रक्षा में जब अब्बास अलमदार के हाथ अलग हो गए और दुश्मन ने पीछे से हमला किया तो हज़रत अब्बास अ. से घोड़े पर संभला नहीं गया और जमीन पर गिर गये। इमाम हुसैन अ. ने खुद को अपने भाई के पास पहुंचाया।

2) अमीरूल मोमिनीन अ. की दूसरी बीवियों की संतानें जो कर्बला में शहीद हुईं

  1. मुह़म्मद इब्ने अली

आप मुह़म्मद असग़र के नाम से मशहूर हैं

  1. आपकी मां के बारे में कि वह कनीज़ थीं या आज़ाद सह़ी मालूमात नहीं मिलती हैं। कलबी, इब्ने सअद, तबरी व शेख़े तूसी ने आपकी मां को कनीज़ बयान किया है। जबकि नाम बयान नहीं किया है।
  2. जबकि बलाज़री ने आपके कनीज़ होने के बयान के साथ साथ आपका नाम वरह़ा बयान किया है।
  3. दूसरी किताबों में आपको आज़ाद बताया गया है याक़ूबी ने आपका नाम अमामा बिन्ते अबिल आस बयान किया है।
  4. हालांकि कुछ लोगों ने आपके कर्बला में होने के बारे में कुछ नहीं लिखा है या शक किया है। लेकिन बहुत सी मोतबर व विश्वस्नीय किताबों नें आपको कर्बला के शहीदों में गिना है। इसी वजह से आपके नाम को अहले सुन्नत और शिया दोनों ने शहीदों में गिना है।
  5. जबकि इब्ने शहर आशूब अ. ने आपके कर्बला में मौजूद होने की तो ख़बर दी है लेकिन बीमारी की वजह से शहादत से इन्कार किया
  6. अबूबक्र इब्ने अली (अ.स)

आपके नाम के सिलसिले में मतभेद पाया जाता है कुछ ने अबदुल्लाह कुछ ने उबैदुल्लाह और कुछ ने मुह़म्मद असग़र जाना है। मशहूर कथन यह है कि आपकी मां का नाम लैला बिन्ते मसऊद नहली था। जबकि कुछ ने आपकी मां का नाम उम्मुल बनीन बिन्ते ह़िज़ाम कलबी बयान किया है। बहुत सी किताबों में आपको कर्बला के शहीदों में गिना गया है। जबकि कुछ लोग जैसेः तबरी,अबुलफ़ज्र, व इब्ने शहेर आशूब ने आपकी शहादत के सिलसिले में शक किया है शैख़े मुफ़ीद अलैहिर्रह़मा ने आपके नाम को कर्बला के शहीदों में बयान किया है। लेकिन जब ह़ज़रत अली (अ.स) के बेटों की गिनती की है तो अबूबक्र को मुह़म्मद असग़र के उपनाम से याद किया है।

  1. इब्राहीम इब्ने अली (अ.स)

इब्ने क़तीबा, इब्ने अब्दुर रब्बे और दूसरी में इब्राहीम की कर्बला में मौजूदगी और शहादत की ख़बर दी गई है जबकि अबुलफ़रज ने अपनी किताब अनसाब में आपका नाम बयान नहीं किया है। जबकि मुह़म्मद इब्ने अली इब्ने ह़मज़ा के हवाले से बयान किया है कि इब्राहीम “ तफ़” के दिन शहीद हुए। उसने और दूसरों ने आपकी मां को कनीज़ जाना है।

  1. उमर इब्ने अली (अ.स)

कुछ ने आपके नाम को उमरे अकबर और उपनाम अबुल क़ासिम या अबु ह़फ़्स बयान किया है। आपकी मां के संदर्भ में भी मतभेद हुआ है इब्ने सअद और याक़ूबी ने आपकी मां का नाम उम्मे ह़बीब बिन्ते रबीअ तग़लबी जाना है और बयान किया है कि आपको ख़ालिद इब्ने वलीद ने ऐनुत्तम्र में गिरफ़्तार करके मदीना लाया लेकिन उनसे कब ह़ज़रत अली (अ.स) ने शादी की उसका उल्लेख नहीं हुआ है। कुछ दूसरों ने आपकी मां का नाम लैला बिन्ते मसऊद दारमी जाना है। बलाज़री ने लिखा है कि उमर इब्ने ख़त्ताब ने अपने नाम पर उनका नाम रखा, फ़ख़रे राज़ी ने उमर को ह़ज़रत अली (अ.स) के सबसे छोटे बेटे के तौर पर बयान किया है आपके कर्बला में मौजूद होने के बारे में लेखकों में मतभेद पाया जाता है,ख़्वारज़मी, इब्ने शहरे आशूब, मामेक़ानी और दूसरों ने आपको कर्बला के शहीदों में गिना है।

3) वह शहीद जिनका सम्बंध ह़ज़रत इमाम अली (अ.स) से हैं।

  1. उबैदुल्लाह इब्ने अली (अ स)

तबरी ने आपकी मां का नाम लैला बिन्ते मसऊद नहली उल्लेख किया है और लिखा है हेशाम इब्ने मुह़म्मद के गुमान से आप तफ़ में शहीद हुए। (1) अबुलफ़रज ने भी अबुबक्र इब्ने उबैदुल्लाह तलह़ी से रिवायत की है कि वह कर्बला में शहीद हुए लेकिन ख़ुद इस कथन को नहीं माना है। वह और कुछ दूसरे इतिहासकार इस बात को मानते हैं कि मुख़तार के साथियों ने उबैदुल्लाह को मज़ार के दिन क़त्ल कर दिया था। (2) मशहूर नज़रिये में आपकी माँ का नाम लैला बिन्ते मसऊद नहली बयान हुआ है। (3) लेकिन ख़लीफ़ा ने आपकी मां का नाम रुबाब बिन्ते उमरुलक़ैस कलबी लिखा है । (4)

(1) अश्शजरूल मुबारका पेज 189 (2) मक़तलुल ह़ुसैन जिल्द 2 पेज 28 (3) तारीख़े तबरी जिल्द 5, पेज 154 (4) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द 5, पेज 88।

  1. अब्बास असग़र (अ स)

इब्ने ह़ेज़ाम और उमरी ने आपकी मां का नामः सहबा तग़लबी जबकि ख़लीफ़ा ने लुबाबा बिन्ते उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास जाना है (5) कुछ दूसरी किताबों में बयान हुआ है कि आप शबे आशूरा (9 मुहर्रम की रात) पानी लेने गये और फ़ुरात के किनारे शहीद हुए। (6)।

(5) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द 5, पेज 88 (6) तारीख़े ख़लीफ़ा पेज 145।

11, मुह़म्मद औसत इब्ने अली (अ.स)

मशहूर कथन में आपकी मां का नाम अमामा बिनते अबिल आस उल्लेख हुआ है। और यह बयान हुआ है कि ह़ज़रत अली (अ स) ने जनाब फ़ातेमा (स...) (7) की वसीयत की वजह से उनसे शादी की (8) अकसर किताबों में आपको कर्बला के शहीदों में गिना नहीं किया गया है लेकिन कुछ ने यह लिखा कि आप आशूर के दिन कर्बला में इमाम ह़ुसैन (अ.स) के साथ थे और आप (अ.स) की इजाज़त से जंग की और बहुत से दुश्मनों को मारने के बाद इब्ने ज़ेयाद के लश्कर के हाथों शहीद हुए। (9)

(7) तारीख़े ख़लीफ़ा पेज 145 (8) इत्तेआज़ुल ह़ुनफ़ा पेज 7 (9) वसीलहुद्दारैन पेज 262।

  1. औन इब्ने अली (अ.स)

आपकी माँ असमा बिनते उमैस ख़शअमी हैं और बहुत से इतिहासकारों ने आपको ह़ज़रत अली (अ.स) का बेटा जाना है। (10) अकसर किताबों ने आपकी कर्बला में मौजूदगी पर चुप्पी साध ली है उसके बावजूद कुछ ने आपको कर्बला के शहीदों में गिना गया है। और इस बात का ज़िक्र किया है कि वह इमाम ह़ुसैन (अ.स) के साथ मदीने से कर्बला आये थे।

(10) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द3, पेज 14।

  1. अतीक़ इब्ने अली (अ स)

आपकी माँ का नाम मालूम नहीं है, कुछ ने आपकी माँ का नाम कनीज़ जाना है (11) कुछ लोग जैसेः इब्ने एमादे ह़म्बली, दयार बकरी, ज़हबी और मुज़फ्फर ने आपकी शहादत को माना है।(12) जबकि पुरानी किताबों में आपका नाम शोहदा में बयान नहीं हुआ है।

(11) तनक़ीहुल मक़ाल जिल्द 3 पेज 83 (12) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द 3, पेज 514।

  1. जाफ़रुल असग़र (अ.स)

हालांकि आपकी शाहादत पर कोई दलील मौजूद नहीं है उसके बावजूद मुज़फ़्फ़र ने अनुमान के आधार पर आपको कर्बला के शहीदों में गिना है क्योंकि उनका विश्वास यह है कि ह़ज़रत अली (अ स) की जो संतानें कर्बला में नहीं थीं उनका ज़िक्र मिलता है जैसा कि जनाब मोह़सिन की शहादत और जनाब मुह़म्मद इब्ने ह़नफ़िया का मदीने में रुकना (13) जबकि यह साबित है कि ह़ज़रत अली (अ स) के एक बेटे का नाम जाफ़रुल असग़र था। (14)

(13) ज़ख़ीरतुद्दारैन पेज 166 (14) अलइमामा वस्सियासा जिल्द2, पेज 6।

15, अबदुर्रह़मान

कुछ लेखकों ने इस तर्क के आधार पर आपको भी कर्बला के शहीदों में गिना है (15) कहा गया है कि आपकी माँ भी कनीज़ थीं उससे ज़्यादा मालूमात आपके बारे में नहीं मिलती हैं।

(15) बतलुल अलक़मी जिल्द 3, पेज 530।

16, अबदुल्लाहिल असग़र

आपका नाम भी शहीदों की लिस्ट में कुछ पुरानी किताबों में आया है। आयानुश्शिया और दूसरी किताबों में भी आपका उल्लेख मिलता है। कि आप इमाम ह़सन (अ स) के बेटों के शहीद होने के बाद मैदाने कर्बला गये और ज़जर इब्ने क़ैस के हाथ शहीद हुए। (16) मनाक़िब जिल्द 4, पेज 122।

17, क़ासिम इब्ने अली (अ स)

इब्ने शहेर आशूब ने आपको कर्बला के शहीदों में जाना है।

  1. यहया इब्ने अली (अ.)

आपकी मां का नाम असमाँ बयान हुआ है जोउमैस की बेटी थीं, कुछ किताबों में कर्बला में आपकी शहादत की ख़बर दी गई है और कहा गया है कि उमैर इब्ने हज्जाज कंदी आपका सर उठाने वाला था।

हज़रत इमाम हुसैन (अस) ने सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध आंदोलन किया। उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह बयान किया है किः

  1. जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम स.अ.) की उम्मत में सुधार के लिये जा रहा हूँ। तथा मेरा मक़सद लोगों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर(स.) व अपने बाबा इमाम अली (अस) की सुन्नत पर चलूँगा।
  2. एक दूसरे अवसर पर आपने कहा कि ऐ अल्लाह तू जानता है कि हम ने जो कुछ किया वह हुकूमत से दुश्मनी या दुनियावी मोहमाया के लिये नहीं किया। बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि तेरे दीन की निशानियों को यथा स्थान पर पहुँचाए। तथा तेरे बंदों के बीच सुधार करें ताकि लोग अत्याचारियों से सुरक्षित रह कर तेरे दीन के सुन्नत व वाजिब आदेशों का पालन कर सके।
  3. जब आप की मुलाक़ात हुर इब्ने यज़ीदे रिहायी की सेना से हुई तो, आपने कहा कि ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखना चाहते हो तो यह काम अल्लाह को ख़ुश करने के लिए बहुत अच्छा है। ख़िलाफ़त पद के अन्य अत्याचारी दावेदारों के मुकाबले में हम अहलेबैत सबसे ज़्यादा अधिकार रखते हैं।
  4. एक अन्य स्थान पर कहा कि हम अहलेबैत हुकूमत के लिये उन लोगों से ज़्यादा हक़दार हैं जो हुकूमत पर क़ब्ज़ा जमाए हैं। इन चार कथनों में जिन उद्देश्यों की और इशारा किया गया है वह इस तरह हैं,
  5. इस्लामी समाज में सुधार।
  6. लोगों को अच्छे काम की नसीहत।
  7. लोगों को बुरे कामों के करने से रोकना।
  8. हज़रत पैगम्बर(स.) और हज़रत इमाम अली (अस) की सुन्नत को किर्यान्वित करना।
  9. समाज को शांति व सुरक्षा प्रदान करना।
  10. अल्लाह के आदेशो के पालन के लिये रास्ता समतल बनाना।

यह सारे उद्देश्य उसी समय हासिल हो सकते हैं जब हुकूमत की बाग़डोर ख़ुद इमाम के हाथो में हो, जो इसके वास्तविक अधिकारी भी हैं। इसलिये इमाम ने ख़ुद कहा भी है कि हुकूमत हम अहलेबैत का अधिकार है न कि हुकूमत कर रहे उन लोगों का जो अत्याचारी हैं।

अनवार अल नजफ़ीया फाउंडेशन के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय के सम्मेलन में शिरकत की और इस मौके पर उन्होंने लोगों को हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय की अहमियत पर संबोधित किया

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के बेटे और अनवार अल नजफ़ीया फाउंडेशन के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने मेहमानों को अपने संबोधन में कहा कि हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय को अहमियत दे।

ह़ज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के फ़रज़न्द और केंद्रीय कार्यालय के निदेशक, हुज्जतुल इस्लाम अली नजफ़ी साहब ने नजफ़ अशरफ ने आयोजित हौज़ा और विश्वविद्यालय सम्मेलन में भाग लिया और केंद्रीय कार्यालय का बयान पढ़ा।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा:

हौज़ा और विश्वविद्यालय इराक और विदेशों में सम्मानजनक जीवन की रीढ़ हैं भटकने से बचने के लिए हौज़ा इराकी विश्वविद्यालयों के साथ साथ  इसलिए दुनिया के अच्छे विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग कर रहा है।

हौज़ा के प्रणेता विश्वविद्यालय के स्नातकों के बिना नहीं हैं और विश्वविद्यालय भी अपने सभी कार्यकर्ताओं और अग्रदूतों के साथ-साथ जीवन के सभी चरणों में हौज़ा से सहायता और मार्गदर्शन चाहते हैं।

अल्लाह  ने हमें होज़ा इल्मिया के आशीर्वाद से सम्मानित किया है और इसे नजफ़ अशरफ़ में स्थिर किया है, उसी प्रकार उसने हमें व्यापक विश्वविद्यालयों का भी आशीर्वाद दिया है और ये दो आशीर्वाद मोमेनीन के सम्मान का प्राथमिक कारक है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ प्रोफेसर ऐसे समय में आधिकारिक तौर पर नास्तिकता और विचलित विचारों को फैलाने में भी भाग लेते हैं जब प्रोफेसरों को शिक्षक माना जाता है।

विश्वविद्यालय कैडरों को विश्वविद्यालयों में नैतिक भ्रष्टाचार के प्रसार को रोकना चाहिए, और उन्हें लड़कों और लड़कियों को धर्म का पालन करने और शैतानी रणनीति से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए।

मोहर्रम की पहली तारीख से हज़रत इमाम हुसैन अ.स.का शोक समारोह लंदन में रहने वाले बड़ी संख्या में शियाओं की उपस्थिति के साथ इस्लामिक सेंटर में आयोजित कि गई।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर के सूचना के आधार के अनुसार मुहर्रम के महीने के आगमन के साथ लंदन में रहने वाले विभिन्न राष्ट्रीयताओं के शियाओं ने इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर में इमाम हुसैन अ.स का शोक मनाया और एक बार फिर कर्बला के शहीदों के सरदार को सम्मान देने के लिए उन्होंने अपने इमामों की सीरत को दिखाया हैं।

हज़रत इमाम हुसैन अ.स के लिए एक शोक समारोह इस साल इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर में चार भाषाओं में अलग अलग आयोजित किया गया है और यह केंद्र एक बार फिर इस्लाम के पवित्र पैगंबर के परिवार के सम्मान के लिए इंग्लैंड में रहने वाले बहुत से शियाओं के लिए एक वादा स्थल बन गया है।

राष्ट्रीयताओं के विभिन्न वर्ग, विभिन्न भाषाएँ और रंग, लेकिन एकल और एकजुट प्रेम के साथ, फ़ारसी, अरबी, उर्दू और अंग्रेजी सहित अपनी संस्कृति और भाषा के साथ, इंग्लैंड के इस्लामी केंद्र में काले कपड़े पहनकर और कर्बला के शहीदों के सरदार और उत्पीड़ितों के लिए शोक मनाते हैं।

इस वर्ष मुहर्रम के शोक समारोह की पहली रात को इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर के इमाम हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद हाशिम मूसवी ने फ़ारसी वक्ताओं के लिए एक भाषण में आशूरा क़याम के दर्शन की व्याख्या करते हुए उत्तर दिया।

सवाल यह है कि शिया लोग आशूरा की घटना से पहले मुहर्रम के पहले दशक में शोक क्यों मनाते हैं। शिया इमाम मुहर्रम के महीने की पवित्रता का पालन करने के बारे में सख्त थे, और उनमें से कई खुद को और अपने परिवारों को सैय्यद अल-शुहदा के लिए शोक मनाने के लिए मुहर्रम महीने की शुरुआत से बाध्य मानते थे।

इसलिए, इमाम मासूमीन अ.स की परंपरा के अनुसार, आशूरा के दिन से 9 दिन पहले मुहर्रम के पहले दिन से शोक शुरू हो जाता है।

इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर के इमाम ने भी इमाम हुसैन अ.स के शोक के सामाजिक और व्यक्तिगत परिणामों की ओर इशारा किया और कहा: धर्म और इस्लामी मूल्यों का पुनरुद्धार, उत्पीड़न और बलिदान की याद, एकता और एकजुटता को मजबूत करना, नैतिकता को बढ़ावा देना और मानवता, और आशूरा संस्कृति की शिक्षा और प्रसारण, इमाम हुसैन (अ.स) के लिए शोक का झंडा उठाना सामाजिक है।

इन शोक सभाओं में अहलुल बैत अ.स. के प्रशंसक कर्बला के शहीदों के ज़ुल्म के शोक में विभिन्न भाषाओं में नारे भी लगाते हैं और नौहा और मताम करते हैं।

 

 

 

 

 

रूस के दो दिवसीय दौरे से ऑस्ट्रिया पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्टूबर महीने में एक बार फिर रूस जाएंगे।

 पीएम मोदी के अगले दौरे के लिए उन्हें खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विशेष तौर पर आमंत्रित किया है।

दरअसल, अक्टूबर के महीने में रूस के कजान शहर में ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाना है। पीएम मोदी इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए ही रूस पहुचेंगे।

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के हवाले से रूसी समाचार एजेंसी ने बताया,'नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन के निमंत्रण को स्वीकार करके खुश हैं और अक्टूबर में कजान में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।

 

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने का भी सर्वेक्षण आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से कराए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में मंगलवार को सुनवाई पूरी नहीं हो सकी।

हाईकोर्ट ने इस मामले में पोषणीयता के बिंदु पर सुनवाई करने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी से जवाब तलब कर लिया है।

अदालत ने मस्जिद कमेटी को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते की मोहलत दी है। इसके अलावा याचिकाकर्ता राखी सिंह के वकील सौरभ तिवारी को मस्जिद कमेटी के जवाब पर अपनी आपत्ति दाखिल करने के लिए अलग से एक हफ्ते का वक्त दिया है। हाईकोर्ट इस मामले में अब 14 अगस्त को सुनवाई करेगा। मामले की सुनवाई जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच में हुई।

अमेरिका में बेरिल तूफान जमकर तबाही मचा रहा है। यहां तूफान के कारण पेड़ गिरने और भारी बाढ़ आने से आठ लोगों की मौत हो गई। अधिकारियों ने कहा कि तूफान के घातक होने से टेक्सास में सात लोग और पड़ोसी लुइसियाना में एक और व्यक्ति की मौत हो गई।

दक्षिण-पूर्व टेक्सास में 20 लाख से ज्यादा घरों में पावर कट के कारण बिजली चली गई। वहीं, लुइसियाना में 14,000 घरों में भी बिजली नहीं थी। निवासियों के लिए वातानुकूलित आश्रय स्थल स्थापित किए गए हैं जबकि कर्मचारी सेवा बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं।

पिछले सप्ताह भी जमैका, ग्रेनेडा और सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस में तूफान बेरिल भारी तबाही मचाई थी, जहां कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई थी और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाया था।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अपने -अपने संदेशों में आशूरा की घटना के महत्व पर बल दिया और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन की ईश्वरीय, नैतिक और अख़लाक़ी आकांक्षा पर बल दिया।

पाकिस्तान के इस्लामी समाज में और इसी प्रकार इस देश के दूसरे धर्मों व संप्रदायों के मध्य मोहर्रम  महीने का बहुत सम्मान किया जाता है।

मोहर्रम के महीने में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के करोड़ों अनुयाई उनके नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाते हैं।

इस समय समूचे पाकिस्तान में पहली मोहर्रम से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया जा रहा है। धार्मिक नेता इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के रहस्यों, एकता और फ़ूट व मतभेद से मुक़ाबला करने और अत्याचार के ख़िलाफ़ संघर्ष करने पर बल देते हैं।

शिया समाज और मुसलमानों से हटकर दूसरे धर्मों के लोग भी विशेषकर पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक ईसाई और हिन्दू भी इस देश के विभिन्न क्षेत्रों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से अपनी श्रृद्धा व्यक्त और मोहर्रम महीने का सम्मान करते हैं और इस महीने में आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने नया हिजरी क़मरी साल और मोहर्रम का महीने आरंभ होने के उपलक्ष्य में अपने- अपने संदेशों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला में उनके वफ़ादार साथियों के प्रति अपनी श्रृद्धा व्यक्त की और आशूरा की घटना को अन्याय व अत्याचार के मुक़ाबले में न्याय की लड़ाई का प्रतीक बताया।

पाकिस्तानी नेताओं के संदेशों में बल देकर कहा गया है कि हज़रत सय्यदुश्शोहदा इमाम हुसैन अलै. और उनके पवित्र परिजनों ने इस्लामी मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी मूल्यवान जानों की क़ुर्बानी दे दी और इस अद्वितीय क़ुर्बानी को समस्त मुसलमानों को एकता, न्याय और अत्याचार से मुक़ाबले के लिए आदर्श क़रार देना चाहिये।

इसी प्रकार हालिया दिनों में पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में मोहर्रम के सम्मान और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के उद्दश्यों को बयान करने के लिए कांफ्रेन्सें और बैठकें हुई हैं। इन बैठकों व कांफ्रेन्सों में संयुक्त दुश्मनों के षडयंत्रों से होशियार रहने और उनके मुक़ाबले पर बल दिया गया।

उल्लेखनीय है कि दुःख के मोहर्रम महीने के आरंभ में पाकिस्तान के अज़ादार लोग ईरान और इराक़ में मौजूद पवित्र धार्मिक स्थलों का सम्मान करते हैं और पाकिस्तान से काफ़ी दूरी तय करने के बाद दसियों हज़ार श्रद्धालु स्वयं को ईरान के पवित्र नगरों क़ुम और मशहद पहुंचाते हैं और उसके बाद वे इराक़ के पवित्र नगर कर्बला रवाना हो जाते हैं।

 

 

लखनऊ के अकबरनगर को जमींदोज करने के बाद कुकरैल रिवर फ्रंट के रास्ते में आ रहे रहीमनगर, खुर्रमनगर, इंद्रप्रस्थ नगर, पंतनगर, अबरारनगर के अवैध निर्माण गिराने के लिए प्रशासन की संयुक्त टीम ने सोमवार से सर्वे शुरू कर दिया।

पहले दिन 20 मकानों में लाल निशान लगाया गया। यह देख इनमें रहने वाले परिवार बिलख उठे।

सुबह 11:30 बजे भारी पुलिस बल के साथ अपर जिला मजिस्ट्रेट राकेश कुमार एवं सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता मुकेश वैश्य के संयुक्त नेतृत्व में सिंचाई विभाग की टीम ने रहीमनगर बंधे के पास कुकरैल से 50 मीटर के दायरे की नापजोख शुरू की। टीम ने लगभग एक किमी तक सर्वे किया और कुकरैल रिवर फ्रंट के दायरे में आने वाली जमीन पर लाल निशान लगाया।

टीम जैसे ही रहीमनगर में दाखिल हुई, घरों से पुरुष, महिलाएं व बच्चे निकल आए। मकानों पर लाल निशान लगना शुरू हुए तो महिलाएं रोने लगीं। बिलखते हुए टीम से कहा, जब मकान बन रहे थे तो कोई रोकने क्यों नहीं आया? 40 साल से इन मकानों में रहकर हाउस टैक्स, वाटर टैक्स चुका रहे हैं। कुकरैल रिवर फ्रंट के नाम पर उन्हें उजाड़ने की कोशिश शुरू की गई है। पहले दिन टीम ने जिन 20 घरों में लाल निशान लगाए वे काफी बड़े हैं। दोपहर 2:30 बजे तक सर्वे कर टीम लौट गई। इसमें एलडीए की ओर से अपर सचिव ज्ञानेंद्र वर्मा व अधिशासी अभियंता राजकुमार आदि थे।

अफसरों ने बताया कि जिन मकानों पर लाल निशान लग रहा है, उनके मालिकों को एलडीए नोटिस देगा। उन्हें घर खाली करने का अल्टीमेटम दिया जाएगा। ऐसा न करने पर बुलडोजर चलेगा।

संकरी गलियों में सर्वे करने में परेशानी हुई तो सिंचाई विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों ने घरों की छतों पर चढ़कर जायजा लिया। आधा घंटे तक यहां से ही कुकरैल के बंधे के मिलान का आकलन हुआ। टीम को छतों पर चढ़ने के दौरान लोगों के गुस्से का भी सामना करना पड़ा।

दो खाली प्लॉट के सर्वे के दौरान सुनील नाम के व्यक्ति ने अपर जिला मजिस्ट्रेट राकेश कुमार को दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि यह मेरी है। बोले- महानगर की मेरी पुश्तैनी जमीन पर पीएसी मुख्यालय बना है। इसके बदले यह जमीन दी गई थी। वर्ष 1962 में तत्कालीन मंडलायुक्त ने रहीमनगर के इन दोनों प्लॉट की रजिस्ट्री उनके बाबा गिरजा शंकर के नाम कराई थी।