رضوی
सीरिया की नई संसद में अल्पसंख्यकों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम हुआ
सीरिया की नई संसद में महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व में साफ़ कमी देखी गई है, जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
जुलानी के नियंत्रण वाले सीरिया की नई संसद में महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व में साफ़ कमी देखी गई है जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, सीरिया में हुए संसदीय चुनावों के प्रारंभिक नतीजों से पता चला है कि नई संसद में अल्पसंख्यकों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम हो गया है अबू मुहम्मद जौलानी के तत्वावधान में कराए गए चुनाव में जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
सीरियन चुनाव आयोग के मुताबिक, प्रारंभिक नतीजों के अनुसार 119 प्रतिनिधि चुने गए हैं, जिनमें केवल 6 महिलाएँ और 4 अल्पसंख्यक प्रतिनिधि शामिल हैं। ये चुनाव सिर्फ जौलानी के नियंत्रण वाले इलाकों में कराए गए, जिसकी वजह से सभी वर्गों की निष्पक्ष भागीदारी की संभावनाएँ सीमित रह गईं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, ये चुनाव अरब दुनिया के कुछ देशों के चुनावी मॉडल की नकल हैं, जिनमें चुने गए प्रतिनिधि जनता के असली प्रतिनिधि नहीं हैं, बल्कि जौलानी की सत्ता को मजबूत करने के लिए विशेष नीतियों की पुष्टि करते हैं।
चुनाव के दौरान उम्मीदवारों पर सख्त पाबंदियाँ, सुरक्षा और सामाजिक दबाव के साथ-साथ विशेष समूहों की जीत सुनिश्चित की गई, जबकि सुधारों के तहत संसद के एक तिहाई सदस्य सीधे जौलानी द्वारा चुने जाएँगे।
अबू मुहम्मद जौलानी ने चुनावों को ऐतिहासिक पल बताते हुए दावा किया कि अब जनता देश के पुनर्निर्माण कर सकती है हालाँकि पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह चुनावी प्रक्रिया सिर्फ जौलानी की सत्ता को मजबूत करने के लिए है न कि सीरियाई जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए हैं।
नाइजीरिया: इजरायल के अत्याचारों के खिलाफ किया जोरदार प्रदर्शन
नाइजीरिया में इस्लामिक आंदोलन के नेता शेख इब्राहिम याकूबी ज़कज़ाकी के समर्थकों और आम लोगों की एक बड़ी संख्या ने फिलिस्तीन के मजलूम लोगों के साथ एकजुटता और इजरायल के अपराधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
नाइजीरिया में इस्लामिक आंदोलन के नेता शेख इब्राहिम याकूबी ज़कज़ाकी के समर्थकों और आम लोगों की एक बड़ी संख्या ने फिलिस्तीन के मजलूम लोगों के साथ एकजुटता और इजरायल के अपराधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
प्रतिभागियों ने अपने नारों और बैनरों के माध्यम से स्पष्ट रूप से घोषणा की कि वे इजरायल को किसी भी सूरत में मान्यता नहीं देते और इस अतिक्रमणकारी और अभागी सरकार के अमानवीय कार्यों की जोरदार निंदा करते हैं।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इजरायली सरकार अत्याचार, अन्याय और मासूमों के खून पर टिकी हुई है और इसकी नींव शैतानी विचारों पर रखी गई है। उनके अनुसार, ज़ायोनी नेता किसी ईश्वरीय मार्गदर्शन पर नहीं, बल्कि शैतान के आदेशों पर चलता हैं।
प्रतिभागियों ने फिलिस्तीनी लोगों, विशेष रूप से गाजा के मजलूम लोगों के साथ पूरी हमदर्दी जताते हुए कहा कि हम अपने फिलस्तीनी भाइयों और बहनों के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं और दुनिया भर के विवेकशील लोगों से अपील करते हैं कि वे गाजा के बेगुनाह लोगों के समर्थन में आवाज उठाएं।
धार्मिक विद्वानों को दुश्मनों के घृणित इरादों का पर्दाफ़ाश करना चाहिए
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मरवी ने मुसलमानों के बीच एकता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा: आज, विद्वानों की ज़िम्मेदारी इस्लाम, पवित्र कुरान और पैगंबर मुहम्मद (स) के विरुद्ध दुश्मनों की योजनाओं पर प्रकाश डालना और इस्लाम के अस्तित्व की रक्षा करना है।
इमाम रज़ा (अ) की दरगाह के मुतावल्ली, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अहमद मरवी ने ईरानी शहर बिजनवर्द में उत्तरी खुरासान के सुन्नी विद्वानों और मौलवियों के एक समूह के साथ एक बैठक में एकता बनाने वाली शिक्षाओं को दोहराने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा: एकता के बारे में बात करना, हालाँकि इस पर बार-बार चर्चा की गई है, फिर भी आवश्यक है।
उन्होंने आगे कहा: इस्लाम और मुसलमानों का हित एकता और एकजुटता बनाए रखने में निहित है, और दुश्मनों ने मुसलमानों में फूट डालने के लिए भ्रामक संप्रदायों का आविष्कार करने जैसी रणनीतियाँ अपनाई हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने सुन्नियों में वहाबीवाद और शियाओं में बहाईवाद को बढ़ावा दिया है, क्योंकि वे इस्लाम की महानता और शक्ति से अवगत हैं।
पैगंबर मुहम्मद (स) के काल में इस्लामी सभ्यता के विस्तार का उल्लेख करते हुए, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मरवी ने कहा: पवित्र पैगंबर (स) ने अज्ञानी और असभ्य जनजातियों के बीच एक महान सभ्यता की नींव रखी, जिनकी सीमाएँ स्पेन तक फैली हुई थीं, और सदियों तक स्पेन में इस्लामी शासन कायम रहा। यदि उस समय के कुछ शासकों के विश्वासघात और लापरवाही के कारण ऐसा न होता, तो इस्लाम की पूरी क्षमता का और भी अधिक दोहन किया जा सकता था।
इमाम रज़ा (अ) की दरगाह के मुतावल्ली ने आगे कहा: दुश्मनों ने इस्लाम के इतिहास का अध्ययन किया है और उसकी शक्ति को पहचाना है और वे मतभेद पैदा करने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं ताकि यह क्षमता विकास के बजाय आंतरिक मतभेदों पर खर्च हो।
उन्होंने कहा: इज़राइल का निर्माण इस क्षेत्र में इस्लाम के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से किया गया था। अगर इस्लाम और कुरान के मार्ग में कोई बाधा न हो, तो इस्लाम की तर्कशक्ति और शक्ति पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती है। कुरान को जलाने जैसी हरकतें दुश्मनों की विनम्रता और क्रोध को दर्शाती हैं और मुसलमानों को इतिहास में हमेशा ऐसे दुश्मनों का सामना करना पड़ा है।
हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन मरवी ने कहा: आज, दुश्मनों का लक्ष्य केवल इस्लामी लोकतंत्र या इस्लामी क्रांति नहीं है। मुख्य लक्ष्य मध्य पूर्व में इज़राइल का अस्तित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस्लाम की उन्नति के विरुद्ध खड़े होने के लिए इजरायल यूरोप और अमेरिका के हितों का प्रतिनिधित्व करता है, और इसी कारण से, देश को पश्चिम के सैन्य, वित्तीय और मीडिया समर्थन से लाभ मिलता है।
तौबा आग़ोशे रहमत है।आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किसी भी सकारात्मक परिश्रम के गुज़र बसर के लिए परमेश्वर की बंदगी और आराधना होने मे कोई संदेह नही है; क्यो कि दयालु परमेश्वर ने पवित्र क़ुरआन के बहुत से आयात मे अपने बंदो को पृथ्वी को बसाने,हलाल रोज़ी कमाने,जीवन निर्वाह एवम व्यापार करने और सुरक्षित खरीदने और बेचने का हूक़्म देता है, अल्लाह की इताअत बंदगी एवम आराधना है और यह बंदगी व तौबा आराधना क़यामत मे इनाम रखती है।
किसी भी सकारात्मक परिश्रम के गुज़र बसर के लिए परमेश्वर की बंदगी और आराधना होने मे कोई संदेह नही है; क्यो कि दयालु परमेश्वर ने पवित्र क़ुरआन के बहुत से आयात मे अपने बंदो को पृथ्वी को बसाने,हलाल रोज़ी कमाने,जीवन निर्वाह एवम व्यापार करने और सुरक्षित खरीदने और बेचने का हूक़्म देता है, अल्लाह की इताअत बंदगी एवम आराधना है और यह बंदगी व तौबा आराधना क़यामत मे इनाम रखती है।
क्रय विक्रय, व्यापार, पट्ठा, वकालत(क़ानूनी), सिचाई, कृषि, मुज़ारबा, हिस्सा(मुशारेकत), उद्योग, पढाना, सुलेख(किताबत), सिलाई, कढ़ाई, चमड़े की रंगाई, पशुपालन यह सब कार्य इस्लामी और इंसानी शर्तो के साथ माद्दी नेमतो के हासिल करने के सकारात्मक तरीक़े है।
प्रत्येक मामले का कार्यकर्ता परमेश्वर के नज़दीक महबूब है, इसके अलावा प्रत्येक से अलग होना और मानवता, अख़लाक़ एवम इस्लामी तरीक़ के खिलाफ किसी और तरीक़े से रोज़ी रोटी कमाना परवेश्वर की घृणा का कारण है।
क़ुरआने करीम इस संबंध मे बयान करता है:
يَا أيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُم بَيْنَكُم بِالْبَاطِلِ إِلاَّ أَن تَكُونَ تِجَارَةً عَن تَرَاض مِنْكُمْ . . .(सूरा 4, आयत 29)
ए इमान वालो आपस मे एक दूसरे की संपत्ति (माल) को नाहक़ तरीक़े से नही खा जाया करो, लेकिन यह कि आपसी सहमति से समझमलत हो
يَا أَيُّهَا النَّاسُ كُلُوا مِمَّا فِي الْأَرْضِ حَلاَلاً طَيِّباً وَلاَ تَتَّبِعُوا خُطُواتِ الشَّيْطانِ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ(सूरा 2, आयत 168)
ए मानाव! भूमि मे जो कुछ भी हलाल और तैयब है उसे प्रयोग करे और शैतानी क़दम का पालन न करो कि वह तुम्हारा खुला हुआ दुशमन है।
वैध व्यवसायो से बर्बाद किए बिना और अपशिष्ट इस्तेमाल के माध्यम से प्राप्त हुआ माल हर स्तिथि मे परमेश्वर द्वारा हलाल घोषित किया गया है,और अवैध माध्यम से प्राप्त किया हुआ माल अगरचे ज़ाती तौर पर हलाल हो, जैसे खाद्य और पेय पदार्थ एवम कपड़े उनका प्रयोग हराम, उसे बचाकर रखना निषिद्ध(मना) है और उसको उसके मूल स्वामी (असली मालिक) को लौटाना अनिवार्य है।
तूफान ए अलअक्सा;को दो साल पूरे 1000 से अधिक इज़राईली सैनिक मारे गए
इज़राईली रक्षा मंत्रालय ने अपने मारे गए सैनिकों के नवीनतम आंकड़े जारी किए हैं।
इज़राईली रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि गाज़ा पट्टी पर अपनी आक्रामकता की शुरुआत यानी 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 1152 कब्ज़ी सैनिक मारे जा चुके हैं।
यह आंकड़े उन सैनिकों पुलिस कर्मियों और सेवा के कर्मियों को शामिल करते हैं जो गाज़ा पट्टी, कब्जे वाले क्षेत्रों के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों, लेबनान और वेस्ट बैंक में तैनात थे।
स्पष्ट रहे कि प्रतिरोध बलों की सफल कार्रवाइयाँ जारी हैं और ये कार्रवाइयाँ कब्ज़ सियोनी सैनिकों की मौतों का कारण बन रही हैं, हालांकि सियोनी सेना गाजा के खिलाफ अपना लंबा और थकाऊ युद्ध जारी रखे हुए है।
याद रहे कि 7 अक्टूबर को प्रतिरोध आंदोलन हमास ने इज़राइल पर एक साथ 5000 से अधिक मिसाइल दागकर दुनिया में इज़राइल की स्व-निर्मित ताकत को हास्यास्पद साबित किया था।
तूफान ए अल-अक्सा;दो साल बाद भी इज़रायल के पतन का प्रतीक है
7 अक्टूबर 2023: को शुरू होने वाला फिलिस्तीनी प्रतिरोध का ऐतिहासिक ऑपरेशन "तूफान अल-अक्सा" जो 7 अक्टूबर 2023 को शुरू हुआ था, आज दो साल बाद भी क्षेत्र और दुनिया की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इसने न केवल इजरायली सेना की अजेय होने की दावेदारी को धूल में मिला दिया, बल्कि फिलिस्तीन के मुद्दे को एक बार फिर से वैश्विक विवेक के सामने जीवित कर दिया।
दो साल पहले 7 अक्टूबर 2023 की सुबह दुनिया ने एक ऐसा दृश्य देखा जिसने मध्य पूर्व की राजनीतिक और सैन्य वास्तविकताओं को हमेशा के लिए बदल दिया। ऑपरेशन तूफान ए अलअक्सा" के नाम से मशहूर इस कार्रवाई को फिलिस्तीनी प्रतिरोधी गुटों द्वारा गाजा से शुरू किया गया जिसने इजरायल की सुरक्षा प्रणाली को हिलाकर रख दिया और ज़ायोनी राज्य के अस्तित्वगत संकट को उजागर कर दिया।
शहीद सैयद हसन नसरल्लाह ने अपने ऐतिहासिक संबोधन में इस कार्रवाई को एक "बहादुर, रचनात्मक और असाधारण" कदम करार दिया था। उनके अनुसार, "यह घटना एक ऐसे भूकंप के बराबर थी जिसने इजरायली राजनीति, सेना और मनोविज्ञान की नींव हिला दी।सैयद नसरल्लाह ने कहा था कि दुश्मन चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, अल-अक्सा तूफान के रणनीतिक प्रभावों को कभी मिटा नहीं सकता।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद सादिक ख़ुरसंद के मुताबिक, गाजा में मानवीय त्रासदी अपनी जगह एक बड़ी हकीकत है, लेकिन इस दुर्घटना के पीछे इजरायल की शक्तिशाली छवि पर जो करारी चोट लगी, उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।यह चोट इतनी गहरी और बहुआयामी थी कि इजरायल की सुरक्षा, खुफिया जानकारी और सैन्य श्रेष्ठता की बुनियाद हिल गई।
ख़ुरसंद के अनुसार, इजरायल जो खुद को दुनिया की सबसे मजबूत सुरक्षा प्रणाली वाला राज्य बताता था 7 अक्टूबर के हमले से पूरी तरह बेनकाब हो गया। "हमास के मुजाहिदों ने जमीन, समुद्र और हवा तीनों रास्तों से घुसकर इजरायल की रक्षात्मक घेराबंदी को तोड़ दिया। यह सिर्फ एक सैन्य हार नहीं बल्कि मोसाद और शबाक के लिए ऐतिहासिक अपमान था।
उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद हिज़्बुल्लाह लेबनान और अन्य प्रतिरोधी गुटों ने भी इजरायल पर दबाव बढ़ाया, जिसके नतीजे में तेल अवीव सरकार को उत्तरी सीमा के कई इलाके खाली करने पड़े और वह एक लंबी घिसावट वाली जंग में उलझ गई।
ख़ुरसंद के मुताबिक, इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के दो बड़े लक्ष्य हमास की पूरी तबाही और सभी बंदियों की रिहाई आज भी सिर्फ सपना बनकर रह गए हैं। "गाजा की तबाही के बावजूद हमास ने अपनी संगठनात्मक क्षमता बरकरार रखी है और युद्ध की रणनीति से दुश्मन को लगातार नुकसान पहुंचा रही है।
मशहूर पत्रकार और विश्लेषक अली मदर्रेसी के अनुसार, "तूफान ए अल-अक्सा " वास्तव में एक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक जरूरत थी। "पंद्रह साल की नाकाबंदी, आर्थिक बदहाली और अंतरराष्ट्रीय खामोशी ने गाजा को एक बड़ी जेल बना दिया था।
अमेरिका की पिठ्ठपन से चलने वाली 'अब्राहम समझौते' की प्रक्रिया फिलिस्तीन के मुद्दे को अरब एजेंडे से बाहर कर रही थी। ऐसे में अल-अक्सा तूफान ने न केवल उस साजिश को तोड़ा बल्कि फिलिस्तीन के मुद्दे को दोबारा दुनिया के केंद्र में ला खड़ा किया।
उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन के नतीजे में वैश्विक स्तर पर जन जागरण की नई लहर उठी। यूरोप और अमेरिका के बड़े शहरों में लाखों लोगों ने फिलिस्तीनियों के हक में मार्च निकाले। 'कारवान-ए-सुमूद' जैसी जन आंदोलनों ने साबित कर दिया कि फिलिस्तीन अब चुप नहीं रहेगा।
आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, गाज़ा युद्ध के वित्तीय प्रभाव भी इजरायल के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं। रक्षा खर्च के नतीजे में दर्जनों अरब डॉलर का घाटा, तीन लाख से ज्यादा रिजर्व सैनिकों की भर्ती और विदेशी निवेश की वापसी ने इजरायली अर्थव्यवस्था को संकट में डाल दिया है।
दो साल बाद,तूफान ए अलअक्सा तूफान" सिर्फ एक जंग नहीं बल्कि एक नई हकीकत बन चुका है एक ऐसा मोड़ जिसने फिलिस्तीनी दृढ़ संकल्प, इजरायली कमजोरी, और वैश्विक विवेक की जागृति को हमेशा के लिए इतिहास का हिस्सा बना दिया।
क़ुम में 12-दिवसीय युद्ध के दौरान मीडिया कार्यकर्ताओं के सम्मान में सम्मेलन का आयोजन
ईरान के राष्ट्रीय सोशल मीडिया केंद्र और सोशल मीडिया अनुसंधान केंद्र के सहयोग से पवित्र शहर की 12-दिवसीय रक्षा के विषय पर सक्रिय सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं की सेवाओं के सम्मान में एक सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
ईरान के राष्ट्रीय सोशल मीडिया केंद्र और सोशल मीडिया अनुसंधान केंद्र के सहयोग से पवित्र शहर की 12-दिवसीय रक्षा के विषय पर सक्रिय सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं की सेवाओं के सम्मान में एक सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
इस सम्मेलन का उद्देश्य उन सक्रिय व्यक्तियों को प्रोत्साहित करना है जो डिजिटल और सोशल मीडिया के क्षेत्र में पवित्र शहर की 12-दिवसीय रक्षा के तथ्यों और मूल्यों का प्रभावी ढंग से प्रचार कर रहे हैं।
इस कार्यक्रम को हौज़ा ए इल्मिया की सर्वोच्च परिषद के सदस्य आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद ग़रवी और राष्ट्रीय वर्चुअल स्पेस सेंटर की सर्वोच्च परिषद के प्रमुख सय्यद मोहम्मद अमीन अका-मीरी संबोधित करेंगे।
यह सम्मेलन गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025 को सुबह 9 बजे से 11 बजे तक क़ुम के मोअल्लिम स्ट्रीट स्थित अंतर्राष्ट्रीय ग़दीर सम्मेलन हॉल में आयोजित किया जाएगा।
इस अवसर पर, सोशल मीडिया में सक्रिय प्रचारकों को उनके प्रभावी प्रदर्शन के लिए मानद प्रमाण पत्र और उपहार भी प्रदान किए जाएँगे।
इल्म के हुसूल के साथ-साथ तज़्किया ए नफ़्स और खुद साज़ी भी आवश्यक है
हुज्जत-उल-इस्लाम मिर्ज़ा बेगी ने कहा: इल्म के हुसूल के साथ-साथ, व्यक्ति को तज़्किया ए नफ़्स और खुद साज़ी भी करना चाहिए ताकि वह समाज में प्रभावी साबित हो सके।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन, मदरसा फ़ातिमा ज़हरा (स) के संस्थापक महमूद मिर्ज़ा बेगी ने शैक्षणिक वर्ष के उद्घाटन समारोह में कहा: इल्मे इलाही को समझने के लिए, यह आवश्यक है कि हम सबसे पहले अपने अस्तित्व की क्षमता को सभी प्रकार के प्रदूषण, पाप के अभिशाप और गुणों के दोषों से शुद्ध और निर्मल करें ताकि अल्लाह तआला हमें योग्य समझे और हमें ज्ञान प्रदान करे।
मदरसे की छात्राओं को संबोधित करते हुए, उन्होंने कहा: एक छात्र की पहली ज़िम्मेदारी यह है कि वह इल्म के हुसूल के साथ-साथ तज़्किया ए नफ़्स और खुद साज़ी भी करे। जो व्यक्ति ज्ञानवान, नैतिक और धार्मिक बन गए हैं, वे समाज में प्रभावशाली साबित हुए हैं और अल्लाह उनके कर्मों को स्वीकार करता हैं और उनकी उन्नति होती है।
हुज्जतुल इस्लाम मिर्ज़ा बेगी ने कहा: मदरसा तज़्किया ए नफ़्स का स्थान है। जिस प्रकार एक किसान पहले ज़मीन तैयार करता है और फिर बीज बोता है, उसी प्रकार हमें भी इल्मे इलाही, पैगंबर, इमामों और कुरान की समझ को ग्रहण करने के लिए पहले हृदय की मिट्टी तैयार करनी चाहिए। पहले स्वयं को शुद्ध करें और फिर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें।
उन्होंने उलूम दीन के छात्रों की दूसरी ज़िम्मेदारी तबलीग, शिक्षा और मार्गदर्शन को बताते हुए कहा: पवित्र पैगंबर (स) द्वारा इमाम अली (अ) से कहे गए शब्दों के अनुसार, "यदि एक व्यक्ति आपके हाथ से मार्गदर्शन पाता है, तो वह उन सभी चीज़ों से बेहतर और श्रेष्ठ है जिन पर सूर्य उदय होता है", और यह इस कर्तव्य की महानता को दर्शाता है क्योंकि यदि एक व्यक्ति मार्गदर्शन पाता है, तो वह सैकड़ों लोगों का मार्गदर्शन करेगा और उसे कितना सवाब और आशीर्वाद प्राप्त होगा।
उन्होंने कहा: हमारे लिए जो शेष है, वह है धर्म को समझना और उसका प्रचार करना। यदि हम उपदेश में सफल होना चाहते हैं, तो पहले अपने भीतर उन चीज़ों का निर्माण करें जो समाज में आवश्यक हैं ताकि हमारे शब्दों का प्रभाव हो। क्योंकि यदि हम किसी चीज़ पर अमल नहीं करते हैं, तो उसे हज़ार बार कहने पर भी उसका ज़रा भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। विज्ञान सीखना अच्छी बात है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि ज्ञान हमें प्रभावित करे और हम उस पर अमल करने वाले बनें, तभी हम समाज में प्रभावी साबित होंगे।
अमेरिका अपने ही घर में युद्ध की आग भड़काना चाहता है। वाशिंगटन
अमेरिकी समाचार एजेंसी ने ट्रम्प द्वारा विभिन्न देशों के खिलाफ युद्ध और अवैध कार्रवाइयों को स्वीकार किया हैं।
वाशिंगटन एक्ज़ामिनर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राष्ट्रपति ट्रम्प अवैध तरीकों का इस्तेमाल करते हुए लैटिन अमेरिका में ड्रग तस्करों के खिलाफ युद्ध चला रहा हैं। अपने दूसरे कार्यकाल के नौ महीने बाद, ट्रम्प ने मध्य पूर्व में यमन और ईरान के खिलाफ दो सैन्य कार्रवाइयाँ की हैं।
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि यमन के लोग अभी भी लाल सागर में नौवहन पर नियंत्रण रखते हैं और ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखे हुए है। ट्रम्प ने युद्धपोत कैरिबियन सागर में तैनात किए हैं और उनकी सरकार वेनेजुएला में संभावित सैन्य कार्रवाई पर विचार कर रही है।
अखबार ने इशारा किया कि ट्रम्प की सैन्य नीति अतीत के विफल प्रयोगों को दोहरा रही है और कांग्रेस की मंजूरी के बिना संविधान का उल्लंघन कर रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका इस समय अपने ही घर में एक स्थायी युद्ध के कगार पर खड़ा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रवैया अमेरिकी विदेश नीति में एक खतरनाक बदलाव का संकेत देता है। कांग्रेस के कई सदस्यों ने राष्ट्रपति की इन कार्रवाइयों की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि यह अमेरिकी लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी चिंता जताई है कि अमेरिका की ये कार्रवाइयां वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र ने सभी पक्षों से संयम बरतने और शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने का आग्रह किया है।
लहू लहान ग़ज़्ज़ा
ग़ज़्ज़ा की धरती लगभग दो वर्षों से ऐसी भयावह क्रूरता और बर्बरता का सामना कर रही है, जिसकी कहानी मानवता के इतिहास में खून से लिखी जाएगी; शहादत का यह खून एक ऐसा दीपक है जो जुल्म की हवाओं से नहीं बुझता, यह एक ऐसा उजाला है जो अंधकार को रोशन करता है। उत्पीड़ितों का खून गौरव के आकाश का एक ऐसा चमकीला तारा है, जिसकी चमक गौरव और शान के आकाश को सुशोभित करती है।
ग़ज़्ज़ा की धरती लगभग दो वर्षों से ऐसी भयावह क्रूरता और बर्बरता का सामना कर रही है, जिसकी कहानी मानवता के इतिहास में खून से लिखी जाएगी। शहादत का यह खून एक ऐसा दीपक है जो जुल्म की हवाओं से नहीं बुझता। यह एक ऐसा उजाला है जो अंधकार को रोशन करता है। उत्पीड़ितों का खून गौरव के आकाश का एक ऐसा चमकीला तारा है, जिसकी चमक गौरव और शान के आकाश को सुशोभित करती है।
उज्ज्वल सूर्य इस रक्त से अपना माथा लाल कर लेता है। पुण्य की नदी भी इसी रक्त से अपनी अशांत वासना को झंकृत कर रही है। यह रक्त हिमालय से भी ऊँचा है। शहादत की सुगंध इसी रक्त से ब्रह्मांड में अपनी उत्साह की घाटी में गतिशीलता का आधार प्रदान कर रही है।
सुख का सागर ज्ञान के चमकते मोतियों को मानवता की स्वतंत्रता का हार पहनाने के लिए आमंत्रित कर रहा है। इस रक्त के रात्रि मंदिर के दीप अंधकार से लड़ने लगे हैं। इस रक्त की लालिमा से सूर्य अपने अहंकार पर लज्जित हो रहा है। इस रक्तपात की कीर्ति कर्बला की धरती पर छा रही है।
आज का यज़ीद अत्याचार के हर हथकंडे अपना रहा है। कल जो दुनिया खामोश थी, आज भी तमाशबीन बनी हुई है। मुस्लिम देश अंधे, बहरे और गूंगे हो गए हैं। केवल एक देश बोल रहा है और युद्ध करके दिखा रहा है कि उत्पीड़ितों का साथ कैसे दिया जाए।
इस सरकार के पास तौहीद का झंडा है। यह हर नरसंहार का डटकर सामना करती है। वह हैदर-ए-करार का अनुयायी और चरित्र के दुश्मन का ज़ुल्फ़िकार है। वह पूरे दिल से मज़लूमों का रक्षक है। उसकी रगों में शहादत का खून दौड़ रहा है। उसने शहादत को प्रकाश की किरण बना दिया है।
वह ग़ज़्ज़ा के खून को व्यर्थ नहीं जाने देगा। ग़ज़्ज़ा का बदला उसकी हर मिसाइल पर दिखाई दे रहा था। बारह दिनों के युद्ध ने दुश्मन के ठिकानों को उड़ा दिया। ईरान ने ऐसी मिसाइलें दागीं जिनसे इज़राइल की नींद उड़ गई।
शहादत का प्याला पी चुका ईरान, जब ग़ज़्ज़ा लहूलहान हो रहा था, अपने कदमों में कोई ढिलाई, अपनी भाषा में खामोशी, अपने इरादों में कमज़ोरी या अपने कर्तव्य को पूरा करने की अपनी प्रगति में कोई बाधा नहीं आने दे रहा था। वह अपने महान लक्ष्य और पवित्र उद्देश्य के लिए हर विपत्ति का मुस्कुराते हुए स्वागत कर रहा था।
वह सत्य की आवाज़ बुलंद कर रहा था और ग़ज़्ज़ा की स्थिति पर नज़र रख रहा था। दमन और अत्याचार की आँधियाँ उसकी स्थिरता को हिला नहीं पाईं। दुनिया के खून के प्यासे, हड़पने वाले, इसराइल ने सोचा था कि ईरान पर हमला करके वह उत्पीड़न और अत्याचार की दुनिया का अग्रणी बन जाएगा।
उसने अमेरिका की कीमत पर निर्दोषों का खून बहाकर अपनी हेकड़ी दिखाई। लेकिन जब ईरान ने फिर हमला किया और उसकी मिसाइलों ने ग़ज़्ज़ा का भरोसा छीनकर विभिन्न शहरों पर हमला किया, तो उसके अहंकार की पूरी इमारत ढह गई। वह अधमरी हालत में अमेरिका के सामने हाथ फैलाकर युद्धविराम की भीख माँगने लगा।
बारह दिन बाद इसराइल से जो तस्वीरें सामने आईं, उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि अल्लाह के बंदों का हमला बहुत गहरा है। ग़ज़्ज़ा के लोगों ने जुमे की नमाज़ पढ़ी, उनके होठों पर मुस्कान थी। ग़ज़्ज़ा अब भी हर पल जीवन दे रहा था। खून की लालिमा ग़ज़्ज़ा की धरती पर आज़ादी की आवाज़ बुलंद कर रही है।
निरंतर क्रूरता अपने नए अत्याचार के पंजों से हमला कर रही है। उसकी चीखें कोई नहीं सुनता। मुस्लिम देश हाथों में चूड़ियाँ पहने तमाशबीन बने हुए हैं। लेकिन ऐसी दुनिया में, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से गाज़ा के पक्ष में आवाज़ें उठने लगी हैं।
नावों का काफिला ग़ज़्ज़ा को सहायता और भरोसा पहुँचाने के लिए निकल पड़ा। वे जानते थे कि यह काम मौत को गले लगाने के बराबर है, फिर भी उन्होंने अपनी मानवता की भावना को उत्पीड़न के विरुद्ध हथियार बनाया।
ग्लोबल सुमुद फ्लोटिला नामक नावों का यह काफिला, जिसमें पचास से ज़्यादा देशों की पचास से ज़्यादा नावें और मानवतावादी शामिल थे, एक महीने पहले बार्सिलोना से रवाना हुआ था। इस पर इज़राइल ने हमला किया, कब्ज़ा कर लिया और क्रूरता की।
ख़बरों में तो यहाँ तक बताया गया है कि उन्हें शौचालय का पानी पिलाया गया, प्रताड़ित किया गया और मानसिक दबाव में रखा गया। यह सिर्फ़ ग़ज़्ज़ा का समर्थन करने के लिए बर्बरता थी। अब सोचिए, जो इज़राइल चंद घंटों में ग़ैर-मुसलमानों के साथ इतना कुछ कर सकता है, वह फ़िलिस्तीन के उत्पीड़ित कैदियों के साथ कैसा व्यवहार करता होगा!
यह अभी भी अज्ञात है कि उत्पीड़ितों का यह खून कब तक बहता रहेगा। पहली और आखिरी दुआ यही है: उत्पीड़ितों की रक्षा के लिए: हे अल्लाह! ऐ अल्लाह, अपनी अंतिम हुज्जत के ज़ुहूर होने में शीघ्रता कर! आमीन, ऐ सारे संसार के रब!
लेखक: डॉ. जुल्फिकार हुसैन













