رضوی

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हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मांदेगारी ने कहा: अल-अक्सा तूफ़ान का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम ज़ायोनी अहंकार तोड़ना है, जिसे अल-अक्सा तूफ़ान के उत्पीड़ित शहीदों के खून और यमन, फ़िलिस्तीन, गाज़ा और लेबनान में प्रतिरोध मोर्चे के मुजाहिदीन प्रयासों की बरकत से तोड़ा गया।

हौज़ा और विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद महदी मांदेगारी ने टीवी कार्यक्रम 'सिमत ख़ुदा' में एक बातचीत के दौरान कहा: अल-अक्सा तूफ़ान जैसी कठोर कार्रवाई को दो साल बीत चुके हैं, लेकिन इसके सुखद परिणाम मिले हैं।

उन्होंने आगे कहा: अल-अक्सा तूफ़ान का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम अहंकार तोड़ना है। अमेरिका और इज़राइल, जिन्होंने खुद को अजेय साबित कर दिया था, अपनी आयरन डोम प्रणाली और अजेय सेना के साथ इस परीक्षण में पराजित हो गए। यह मूर्ति अल-अक्सा तूफ़ान के उत्पीड़ित शहीदों के खून और यमन, फ़िलिस्तीन, ग़ज़्ज़ा और लेबनान में प्रतिरोध मोर्चे के वीरतापूर्ण प्रयासों से टूट गई। इस जीत की कीमत बहुत ज़्यादा है, लेकिन मूर्ति को तोड़ने के लिए हमेशा बलिदान और कीमत चुकानी पड़ती है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मांदेगारी ने कहा: आज दुनिया में अमेरिका और इज़राइल के ख़िलाफ़ जो नफ़रत पैदा हुई है, वह अभूतपूर्व है। स्पेन, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, फ़्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में लाखों लोगों के मार्च देखे गए हैं, जो पहले कभी नहीं देखे गए।

उन्होंने कहा: सही-गलत की पहचान करने और उत्पीड़न व अत्याचार को समझने के लिए एक वैश्विक जागरूकता पैदा हुई है, और सभी ने यह समझ लिया है कि गाज़ा, यमन, लेबनान और फ़िलिस्तीन पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, विश्व शक्तियाँ अभी भी अपने रुख़ में अन्याय का समर्थन कर रही हैं।

 

मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने फरमाया,जिस तरह ज़ुल्म करना बुरा है उसी तरह ज़ालिम की मदद करना भी बुरा है बल्कि मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की हदीसों की रोशनी में ज़ालिम की मदद करने वाला और उनके ज़ुल्म पर खामोश रहने वाला, ज़ालिम का साथी है और उनके ज़ुल्म में शरीक है।

हज़रत इमाम ज़ैनुलआबिदीन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया,ख़बरदार! गुनहगारों की हमनशीनी और ज़ालिमों की मदद से बचो।(अल-वसाइल, किताबुत्तिजारह, अबवाब मा युक्तसब, बाब 42, हदीस 1)

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया,जो शख्स ज़ुल्म करता है, और जो उसकी मदद करता है, और जो उस ज़ुल्म पर राज़ी और खुश है — तीनों उस ज़ुल्म में बराबर के शरीक हैं।” (अल-वसाइल, बाब 42, मिन अबवाब मा युक्तसब बिहि, हदीस 2)

जनाब अबू बसीर से र'वायत है कि मैंने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से पूछा कि ज़ालिम हुक्मरानों (यानि बनी उमय्या या आम तौर पर ज़ालिमों) के लिए काम करने का क्या हुक्म है? तो आपने फ़रमाया: नहीं, ऐ अबू मुहम्मद!जो भी उनकी दुनिया (यानि हुकूमत या दौलत) से ज़रा सा भी फायदा उठाए, चाहे वह कलम की स्याही या नोक के बराबर ही क्यों न हो, तो वह अपने दीन में भी उतना ही नुक़सान उठाएगा और उसका दीन उसी क़द्र नाक़िस हो जाएगा।(अल-वसाइल, बाब 42, मिन अबवाब मा युक्तसब बिहि, हदीस 2)

इसी तरह मरहूम कुलैनी र०अ० ने मुत्तसिल सनद के साथ जहम बिन हुमैद से र'वायत नक़्ल की है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुझसे पूछा: “क्या तुम उन (ज़ालिम हुक्मरानों) के सरकारी या दफ़्तरी कामों में शरीक नहीं होते?” मैंने अर्ज़ किया,नहीं।तो इमाम ने पूछा: “क्यों?” मैंने अर्ज़ किया: “अपने दीन की हिफ़ाज़त के लिए।

इमाम ने फ़रमाया: “क्या तुमने इस फैसले पर पुख़्ता इरादा कर लिया है?” मैंने कहा: “जी हां।”तो आपने फ़रमाया: “अब तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए महफ़ूज़ और सलामत हो गया।”
(अल-वसाइल, किताबुत्तेजारह, बाब 42, मिन अबवाब मा युक्तसब बिहि, हदीस 7)

इसी तरह मरहूम कुलैनी र०अ० ने मुत्तसिल सनद के साथ सुलेमान बिन दाऊद मुनक़री से और वह फ़ुज़ैल बिन अय्याज़ से र'वायत करते हैं कि मैंने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से कुछ रोज़ी कमाने वाले पेशों के बारे में पूछा,तो इमाम ने मुझे उनसे मना किया और फ़रमाया: “ऐ फ़ुज़ैल! ख़ुदा की क़सम, इन लोगों (यानि बनी उमय्या या आम तौर पर ग़ासिब ख़ुलफ़ा या उनके साथ तआवुन करने वाले उलमा) का नुक़सान इस उम्मत के लिए तुर्क और दैलम (काफ़िरों और मुशरिकों) के नुक़सान से भी ज़्यादा सख़्त है।मैंने पूछा: “साहिबे-वरअ (परेज़गार व्यक्ति) कौन है?

इमाम ने फ़रमाया: “वह शख्स जो ख़ुदा की हराम की हुई चीज़ों से और उन लोगों (ज़ालिमों) से ताल्लुक़ रखने से परहेज़ करे।

और आखिर में फ़रमाया: “जो शख्स ज़ालिमों की बक़ा (यानी उनके ज़िंदा रहने या हुकूमत बाक़ी रहना) चाहे, तो वह दरअसल यह चाहता है कि ख़ुदा की नाफ़रमानी की जाए।”
(अल-वसाइल, बाब 37, मिन अबवाब अल-अम्र वन्नही, हदीस 6)

मरहूम शेख़ त़ूसी र०अ० ने “तहज़ीब” में मुत्तसिल सनद से याक़ूब बिन यज़ीद से, जो सब्त वलीद बिन सबीह काहिली से र'वायत करते हैं, नक़्ल किया है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: “जो शख्स अपना नाम बनी अब्बास के दीवान में दर्ज करवाए यानी उनके मुलाज़िमों या तनख़्वाह लेने वालों की फेहरिस्त में शामिल हो  क़यामत के दिन उसे सूअर की सूरत में उठाया जाएगा।(अल-वसाइल, किताबुत-तिजारह, बाब 42)

इसी तरह शेख़ त़ूसी र०अ० ने “तहज़ीब” में मोअस्सक़ सनद के साथ यूनुस बिन याक़ूब से र'वायत नक़्ल की है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुझ से फ़रमाया: “उन (यानि बनी अब्बास के हुक्मरानों) की किसी मस्जिद की तामीर या इमारत में मदद न करो।(अल-वसाइल, बाब 42, हदीस 8)

इसी तरह मरहूम कुलैनी र०अ० ने भरोसेमंद सनद के साथ वलीद बिन सबीह से र'वायत नक़्ल की है कि उन्होंने कहा: मैंने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िरी दी — और उस वक़्त ज़ुरारा को देखा जो आप के पास से वापस जा रहे थे।

फिर इमाम ने मुझसे फ़रमाया: “ऐ वलीद! क्या तुम ज़ुरारा पर हैरान नहीं होते? उन्होंने मुझसे पूछा कि मौजूदा हुकूमती कामों में शरीक होना कैसा है? क्या वह यह चाहते हैं कि मैं मनफी जवाब दूं (मना करूं) और फिर उसे दूसरों तक पहुँचाया जाए?

फिर इमाम ने फ़रमाया: “ऐ वलीद! कब और किस वक्त शियों ने उनके मामलों में शरीक होने के बारे में सवाल किया था?”  (यानी इसका हराम होना इतना ज़ाहिर था कि सवाल की ज़रूरत ही नहीं थी) और आप ने फ़रमाया कि पहले शिया लोग सिर्फ यह सवाल करते थे। क्या उनका खाना खाया जा सकता है? क्या उनका पानी पिया जा सकता है? और क्या उनके दरख़्तों के साए या इमारतों से फ़ायदा उठाया जा सकता है?
(अल-वसाइल, किताबुत्तेजारह, अबवाब मा युक्तसब बिहि, बाब 45, हदीस 1)

मरहूम शेख़ कशी र०अ० ने भी इस हदीस को अपनी किताब रिज़ाल कशी में नक़्ल किया है। (रिज़ाल कशी, पेज 152, हदीस 247)

इसी तरह मरहूम शेख़ त़ूसी र०अ० ने तहज़ीब में एक सनद के साथ जो ज़ाहिर तौर पर मोतबर (भरोसेमंद) और मोअस्सक़ है अम्मार साबाती से र'वायत नक़्ल की कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछा गया: “हुकूमती दफ़्तरों में शरीक होना या नौकरी करना कैसा है?”तो इमाम ने इजाज़त नहीं दी और फ़रमाया नहीं सिवाए इसके कि वह शख़्स बहुत सख़्त तंगी में हो, जिसके पास खाने, पीने और कपड़े के लिए कुछ न हो और कमाई का कोई ज़रिया न हो।
फिर फ़रमाया,अगर वह उनके दफ़्तरों में मुलाज़िम हो जाए और वहाँ से कोई माल हासिल करे, तो उसका ख़ुम्स अहलेबै़त अलैहिमुस्सलाम को दे।(अल-वसाइल, बाब 48, मिन अबवाब मा युक्तसब बिहि, हदीस 3)

इसी तरह जनाब अबुन्नज़र मुहम्मद बिन मसऊद अय्याशी ने अपनी तफ़्सीर में सुलेमान जाफ़री से र'वायत नक़्ल की है कि उन्होंने कहा: “मैंने इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया: ‘बादशाह के कामों (हुकूमती उमूर) के बारे में आपका क्या हुक्म है?

तो इमाम ने फ़रमाया:ऐ सुलेमान! उनके कामों में शरीक होना, उनकी मदद करना और उनकी ख़्वाहिशों की राह में कोशिश करना — कुफ्र के बराबर है, और जान-बूझकर उनकी तरफ देखना उन कबीरह (बड़े) गुनाहों में से है जो जहन्नम का मुस्तहक़ (हक़दार) बनाते हैं।(अल-वसाइल, बाब 45, मिन अबवाब मा युक्तसब बिहि, हदीस 12)

इसी तरह मरहूम शेख़ त़ूसी र०अ० ने आमाली में मुत्तसिल सनद के साथ अबू क़तादा क़ुम्मी से र'वायत नक़्ल की है कि उन्होंने कहा,मैं इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के पास था कि ज़ियाद क़ुंदी इमाम की ख़िदमत में हाज़िर हुए।
इमाम ने उनसे फ़रमाया: ‘ऐ ज़ियाद! क्या तुम हुकूमत के कारिंदे हो गए हो?

ज़ियाद ने अर्ज़ किया: ‘जी हां, फ़र्ज़ंदे रसूल! मेरे पास इज़्ज़त और मर्तबा तो है, मगर माल व दौलत नहीं। और मैं जो कुछ सरकारी कामों से हासिल करता हूं, उसे अपने भाइयों में बांट देता हूं।’
इमाम ने फ़रमाया: ‘ऐ ज़ियाद! अगर तुम ऐसा करते हो और तुम्हारा नफ़्स तुम्हें लोगों पर ज़ुल्म करने पर आमादा करे! कि जब तुम्हारे पास ताक़त हो — तो अल्लाह की ताक़त और उसके अज़ाब को याद रखो। और याद रखो कि जो कुछ तुमने लोगों से हासिल किया, वह तुमसे चला जाएगा, और जो बोझ तुम ने अपने ऊपर लिया है, वह तुम्हारे साथ रहेगा।(अमाली शेख़ त़ूसी र०अ०, मजलिस 11, हदीस 49, सफ़ा 303)

मरहूम कुलैनी र०अ० ने मुत्तसिल सनद के साथ ज़ियाद बिन अबी सलमा से र'वायत नक़्ल की कि उन्होंने कहा,मैं इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। हज़रत ने मुझसे फ़रमाया: ‘ऐ ज़ियाद! क्या तुम वाक़ई हुकूमत में मुलाज़िम हो गए हो?’
मैंने अर्ज़ किया: ‘जी हां।
इमाम ने पूछा: ‘क्यों?

मैंने कहा: ‘क्योंकि मेरे पास इज़्ज़त व रुतबा तो है, लेकिन कोई ज़रिया नहीं, कुछ लोगों का खर्च मेरे ज़िम्मे हैं और मैं माली तौर पर परेशान हूं।’
इमाम ने फ़रमाया: ‘ऐ ज़ियाद! मैं चाहूं तो ऊँचे पहाड़ से गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो जाऊं, लेकिन यह ज़्यादा पसंद करूंगा कि मैं उनके दरबार में नौकरी करूं, उनके यहाँ कोई ओहदा लूं या उनके किसी दफ़्तर में कदम रखूं सिवाए इसके कि उस नौकरी से किसी मोमिन के लिए आसानी पैदा हो, या उसे क़ैद से रिहा कराया जाए, या उसका क़र्ज़ अदा किया जाए।

फिर इमाम ने फ़रमाया: ‘ऐ ज़ियाद! सबसे हल्का अज़ाब जो अल्लाह किसी ज़ालिम हुकूमती मुलाज़िम पर डालेगा, वह यह है कि क़यामत के दिन उसके लिए आग के ख़ैमे क़ायम किए जाएंगे जब तक हिसाब-किताब पूरा न हो जाए।’
इमाम ने आगे फ़रमाया: ‘ऐ ज़ियाद! अगर तुमने कोई सरकारी काम क़ुबूल किया है, तो अपने दीनी भाइयों के साथ एहसान और नेकी करो ताकि यह नेक काम उस बुरे अमल के असर को कम कर दे।’

और आख़िर में फ़रमाया,ऐ ज़ियाद! जो शख़्स उनके काम में शरीक हो और फिर अपने (शिया) और ग़ैर को एक जैसा समझे, तो उससे कहो: तुमने अहलेबै़त अलैहिमुस्सलाम की विलायत को अपने ऊपर बंद कर लिया है और तुम बड़े झूठे हो।(अल-काफ़ी, जिल्द 5, किताबुल मईशा, बाब 31, हदीस 1)

मरहूम कुलैनी र०अ० ने काफ़ी में हसन बिन हुसैन अंबारी से र'वायत नक़्ल की कि उन्होंने कहा: “मैंने इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम से 14 साल तक सरकारी ज़िम्मेदारी स्वीकार करने के लिए इजाज़त मांगी — यहाँ तक कि आख़िरी ख़त में मैंने लिखा: ‘मुझे डर है कि मेरी जान को ख़तरा हो जाएगा और लोग कहते हैं कि मैंने सरकारी नौकरी से किनारा किया क्योंकि मैं राफ़ज़ी हूं।’” (यानी मुझे राफ़ज़ी और शिया कहकर निशाना बनाया जा रहा है और जान को ख़तरा है।)

तो इमाम ने जवाब में लिखा,मैंने तुम्हारे ख़त से समझ लिया कि तुम जान के डर में हो।
अगर तुम्हें यक़ीन है कि तुम जिस ओहदे पर मुक़र्रर किए जाओगे, वहाँ तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि के अहकाम के मुताबिक़ अमल करोगे, अपने क़रीब के मददगारों और कातिबों को अपनी क़ौम यानी शियों में से चुनोगे, और जो माल तुम्हें हासिल हो, उसे फक़ीरों और मोमिनीन में बांटोगे और अपने लिए सिर्फ़ उतना रखोगे जितना उन्हें देते हो — तो इस सूरत में वह ओहदा क़ुबूल करना जायेज़ है। और अगर यह शर्तें पूरी न हों तो तुम्हें वह ज़िम्मेदारी क़ुबूल करने की इजाज़त नहीं है।”
(अल-काफ़ी, किताबुल मआश, बाब 31, हदीस 4)

मरहूम कुलैनी र०अ० ने मोतबर सनद से मुहम्मद बिन मुस्लिम र०अ० से र'वायत नक़्ल की कि उन्होंने कहा: “मैं मदीना में इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के घर गया और दरवाज़े के पास बैठा था। आपकी नज़र लोगों पर पड़ी जो क़तार दर क़तार आपके घर के सामने से गुजर रहे थे।
आपने अपने ख़ादिम से पूछा: ‘क्या मदीना में कोई नया वाक़ेआ हुआ है?’ उसने अर्ज़ किया कि आप पर क़ुर्बान, शहर में नया गवर्नर आया है और लोग उसे मुबारकबाद देने जा रहे हैं।

तो इमाम ने फ़रमाया,वह शख़्स जिसे लोग मुबारकबाद दे रहे हैं — यक़ीनन वह आग के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है।(अल-काफ़ी, किताबुल मआश, बाब 30, हदीस 6)

इसी तरह मरहूम कुलैनी र०अ० ने यहया बिन इब्राहीम बिन मुहाजिर से मुत्तसिल सनद के साथ र'वायत की कि उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया: “फ़लां-फ़लां-फ़लां आपको सलाम कहते हैं।इमाम ने फ़रमाया: “व अलेहिमुस्सलाम।मैंने कहा: “वह आपसे दुआ की दरख़्वास्त करते हैं।

आपने फ़रमाया: “क्या हुआ, उन पर क्या मुसीबत आई?मैंने कहा: “अबू जाफ़र मनसूर (अब्बासी बादशाह) ने उन्हें क़ैद कर लिया है।” इमाम ने फ़रमाया: “किस वजह से? क्या मैंने उन्हें मना नहीं किया था? क्या मैंने उन्हें रोका नहीं था? वह आग हैं, वह आग हैं, वह आग हैं!”
(अल-काफ़ी, जिल्द 5, किताबुल मआश, बाब 30, हदीस 8)

मरहूम कुलैनी र०अ० ने मुत्तसिल सनद के साथ अबू बसीर से र'वायत नक़्ल की कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के सामने एक शख़्स का ज़िक्र हुआ जो शियों में से था और हुकूमत में मुलाज़िम हो गया था।

इमाम ने फ़रमाया: “उस शख़्स का अपने (दीनी) भाइयों से क्या रिश्ता है?
मैंने कहा: “उसमें कोई भलाई नहीं।” तो इमाम ने फ़रमाया: “उफ़! वह ऐसा काम कर रहा है जो उसके लिए मुनासिब नहीं और अपने भाइयों के साथ कोई एहसान या नेकी भी नहीं करता।”
(अल-काफ़ी, जिल्द 5, किताबुल मआश, बाब 31, हदीस 2)

मरहूम कुलैनी र०अ० ने मोतबर सनद से अली बिन अबी हमज़ह से र'वायत की: “मेरा एक दोस्त था जो बनी उमय्या के सरकारी कातिबों में से था। उसने मुझसे कहा: ‘इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से मेरे लिए इजाज़त लो।’ मैंने इजाज़त मांगी और हज़रत ने इजाज़त दे दी। जब वह हाज़िर हुआ तो कहा,मैं आप पर क़ुर्बान! मैं उनके दीवान में था, उनसे बहुत माल लिया और उनके कामों में बहुत मशगूल रहा।’

इमाम ने फ़रमाया,अगर यह न होता कि बनी उमय्या के पास लोग होते जो उनके लिए लिखते, टैक्स वसूल करते, उनके लिए लड़ते और उनकी जमाअत में शरीक होते, तो वह हमारा हक़ नहीं छीन सकते थे। अगर लोग उन्हें छोड़ देते, तो उनके पास कुछ भी न रहता।

फिर वह नौजवान बोला,मैं आप पर क़ुर्बान! अब मेरे लिए क्या रास्ता है?’ इमाम ने फ़रमाया: ‘अगर मैं हुक्म दूं तो तुम करोगे?
उसने कहा: ‘जी हां।’फिर इमाम ने उसे हिदायत दी और कहा: ‘अगर तुम इन बातों पर अमल करोगे, तो मैं तुम्हारे लिए जन्नत की ज़मानत लेता हूं।(अल-काफ़ी, जिल्द 5, किताबुल मआश, बाब 3, हदीस 4, सफ़ा 106)

मरहूम कुलैनी र०अ० ने काफ़ी में अली बिन यक़्तीन से र'वायत नक़्ल की कि उन्होंने कहा:“मैंने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया: आपका क्या हुक्म है उन लोगों के बारे में जो हुकूमत के कामों में शरीक होते हैं? आपने फ़रमाया,अगर शरीक होना मजबूरी हो, तो शियों के माल पर हाथ डालने से परहेज़ करो।
रावी (इब्राहीम बिन अबी महमूद) कहते हैं: अली बिन यक़्तीन ने मुझे बताया कि “मैंने शियों से टैक्स ज़ाहिरी तौर पर लिया, लेकिन छुप कर उन्हें वापस दे दिया।”
अल-काफ़ी, जिल्द 5, किताबुल मआश, बाब 31, हदीस 3)

 

हिज्बुल्लाह के प्रतिनिधि हुसैन जाशी ने कहा,अमेरिकी सिर्फ राष्ट्रों को अपना गुलाम बनाना चाहता हैं और बलपूर्वक अपनी इच्छा थोपना चाहता हैं उसके लिए बहुत सारे सबूत मौजूद हैं।

लेबनानी संसद में प्रतिरोध गुट के वरिष्ठ सदस्य और हिज्बुल्लाह के प्रतिनिधि हुसैन जाशी ने दक्षिणी लेबनान में एक स्मारक समारोह के दौरान लेबनान और क्षेत्र की समृद्धि और सुरक्षा के बारे में अमेरिका के सभी वादों को झूठा बताते हुए कहा,हमारे पास ज़ायोनियों का सामना करने के अलावा कोई चारा नहीं है और जो इज़राइल प्रतिरोध के खिलाफ मैदान-ए-जंग में हासिल नहीं कर सका वह अमेरिका भी राजनीति के जरिए हासिल नहीं कर सकेगा।

उन्होंने कहा,ज़ायोनी दुश्मन का सामना करना हम सभी की अनिवार्य नियति है और इमाम सय्यद मूसा सद्र ने इस दुश्मन को पूरी तरह से बुराई करार दिया है और इमाम खामेनेई इज़राइल को कैंसर का फोड़ा मानते हैं, जिसके साथ किसी भी तरह से सहअस्तित्व नहीं हो सकता।

हुसैन जाशी ने कहा,ज़ायोनी दुश्मन के साथ किसी भी तरह से समझौते तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है और इसका एकमात्र रास्ता इसका सामना करना है। ज़ायोनी कब्ज़ों के साथ मुकाबला हमारे लिए एक परीक्षा और आज़माइश है और साथ ही साथ अल्लाह तआला की रहमत और बरकत भी है।

उन्होंने लेबनान और पूरे क्षेत्र में अमेरिका की विध्वंसक और उकसाऊ नीतियों पर बात करते हुए कहा, वाशिंगटन बलपूर्वक तथाकथित "शांति" थोपने की नीति पर चल रहा है लेकिन खुद बार-बार इस बात पर जोर दे रहा है कि शांति के लिए युद्ध की तैयारी जरूरी है। इसका मतलब यह है कि अमेरिकियों के नजदीक शांति न्याय पर नहीं बल्कि दूसरे पक्ष के हथियार डालने पर आधारित है।

हिज्बुल्लाह के प्रतिनिधि ने कहा, अमेरिकी सिर्फ राष्ट्रों को अपना गुलाम बनाना चाहता हैं और बलपूर्वक अपनी इच्छा थोपना चाहता हैं और इसके कई सबूत मौजूद हैं। लेबनान हमेशा से अमेरिकी ज़ायोनी दुश्मन का निशाना रहा है और वह खुलकर कहते हैं कि वह हिज्बुल्लाह को निहत्था करना चाहते हैं और लेबनान को ताकत के तत्वों से खाली करना चाहते हैं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिकी राजदूत टॉम बाराक ने खुलकर कहा है कि अमेरिका हिज्बुल्लाह को निहत्था करना चाहता है, जिससे इज़राइल की सुरक्षा को खतरा है। अमेरिकियों ने लेबनानी सरकार पर भी बहुत दबाव डाला है और उससे कहा है कि आपको उनसे निपटना होगा। यहां तक कि अगर लेबनान में गृहयुद्ध अमेरिकियों और ज़ायोनियों के लक्ष्यों के अनुरूप है, तो वह इसे शुरू करने से नहीं हिचकिचाते।

हिज्बुल्लाह के प्रतिनिधि ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका के पास पूरे क्षेत्र को गुलाम बनाने और उसके संसाधनों और क्षमताओं को नियंत्रित करने की एक व्यापक योजना है और वह क्षेत्र के देशों के खिलाफ सैन्य, सुरक्षा, आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक दबाव चाहता है।

उन्होंने तथाकथित "ग्रेटर इज़राइल" परियोजना के बारे में ज़ायोनियों, खासकर प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बेशर्म बयानों का हवाला देते हुए, जिसमें लेबनान के पूरे इलाके सहित अन्य अरब देशों के इलाकों पर कब्जा भी शामिल है कहा, इज़राइल की राजनीतिक बातचीत क्षेत्र में अमेरिकी परियोजना की पूर्ति का संकेत है।

 

 

सीरिया की नई संसद में महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व में साफ़ कमी देखी गई है, जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

जुलानी के नियंत्रण वाले सीरिया की नई संसद में महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व में साफ़ कमी देखी गई है जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार, सीरिया में हुए संसदीय चुनावों के प्रारंभिक नतीजों से पता चला है कि नई संसद में अल्पसंख्यकों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम हो गया है अबू मुहम्मद जौलानी के तत्वावधान में कराए गए चुनाव में जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

सीरियन चुनाव आयोग के मुताबिक, प्रारंभिक नतीजों के अनुसार 119 प्रतिनिधि चुने गए हैं, जिनमें केवल 6 महिलाएँ और 4 अल्पसंख्यक प्रतिनिधि शामिल हैं। ये चुनाव सिर्फ जौलानी के नियंत्रण वाले इलाकों में कराए गए, जिसकी वजह से सभी वर्गों की निष्पक्ष भागीदारी की संभावनाएँ सीमित रह गईं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, ये चुनाव अरब दुनिया के कुछ देशों के चुनावी मॉडल की नकल हैं, जिनमें चुने गए प्रतिनिधि जनता के असली प्रतिनिधि नहीं हैं, बल्कि जौलानी की सत्ता को मजबूत करने के लिए विशेष नीतियों की पुष्टि करते हैं।

चुनाव के दौरान उम्मीदवारों पर सख्त पाबंदियाँ, सुरक्षा और सामाजिक दबाव के साथ-साथ विशेष समूहों की जीत सुनिश्चित की गई, जबकि सुधारों के तहत संसद के एक तिहाई सदस्य सीधे जौलानी द्वारा चुने जाएँगे।

अबू मुहम्मद जौलानी ने चुनावों को ऐतिहासिक पल बताते हुए दावा किया कि अब जनता देश के पुनर्निर्माण कर सकती है हालाँकि पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह चुनावी प्रक्रिया सिर्फ जौलानी की सत्ता को मजबूत करने के लिए है न कि सीरियाई जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए हैं।

 

नाइजीरिया में इस्लामिक आंदोलन के नेता शेख इब्राहिम याकूबी ज़कज़ाकी के समर्थकों और आम लोगों की एक बड़ी संख्या ने फिलिस्तीन के मजलूम लोगों के साथ एकजुटता और इजरायल के अपराधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

नाइजीरिया में इस्लामिक आंदोलन के नेता शेख इब्राहिम याकूबी ज़कज़ाकी के समर्थकों और आम लोगों की एक बड़ी संख्या ने फिलिस्तीन के मजलूम लोगों के साथ एकजुटता और इजरायल के अपराधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

प्रतिभागियों ने अपने नारों और बैनरों के माध्यम से स्पष्ट रूप से घोषणा की कि वे इजरायल को किसी भी सूरत में मान्यता नहीं देते और इस अतिक्रमणकारी और अभागी सरकार के अमानवीय कार्यों की जोरदार निंदा करते हैं।

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इजरायली सरकार अत्याचार, अन्याय और मासूमों के खून पर टिकी हुई है और इसकी नींव शैतानी विचारों पर रखी गई है। उनके अनुसार, ज़ायोनी नेता किसी ईश्वरीय मार्गदर्शन पर नहीं, बल्कि शैतान के आदेशों पर चलता हैं।

प्रतिभागियों ने फिलिस्तीनी लोगों, विशेष रूप से गाजा के मजलूम लोगों के साथ पूरी हमदर्दी जताते हुए कहा कि हम अपने फिलस्तीनी भाइयों और बहनों के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं और दुनिया भर के विवेकशील लोगों से अपील करते हैं कि वे गाजा के बेगुनाह लोगों के समर्थन में आवाज उठाएं।

 

 

 हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मरवी ने मुसलमानों के बीच एकता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा: आज, विद्वानों की ज़िम्मेदारी इस्लाम, पवित्र कुरान और पैगंबर मुहम्मद (स) के विरुद्ध दुश्मनों की योजनाओं पर प्रकाश डालना और इस्लाम के अस्तित्व की रक्षा करना है।

इमाम रज़ा (अ) की दरगाह के मुतावल्ली, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अहमद मरवी ने ईरानी शहर बिजनवर्द में उत्तरी खुरासान के सुन्नी विद्वानों और मौलवियों के एक समूह के साथ एक बैठक में एकता बनाने वाली शिक्षाओं को दोहराने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा: एकता के बारे में बात करना, हालाँकि इस पर बार-बार चर्चा की गई है, फिर भी आवश्यक है।

उन्होंने आगे कहा: इस्लाम और मुसलमानों का हित एकता और एकजुटता बनाए रखने में निहित है, और दुश्मनों ने मुसलमानों में फूट डालने के लिए भ्रामक संप्रदायों का आविष्कार करने जैसी रणनीतियाँ अपनाई हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने सुन्नियों में वहाबीवाद और शियाओं में बहाईवाद को बढ़ावा दिया है, क्योंकि वे इस्लाम की महानता और शक्ति से अवगत हैं।

पैगंबर मुहम्मद (स) के काल में इस्लामी सभ्यता के विस्तार का उल्लेख करते हुए, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मरवी ने कहा: पवित्र पैगंबर (स) ने अज्ञानी और असभ्य जनजातियों के बीच एक महान सभ्यता की नींव रखी, जिनकी सीमाएँ स्पेन तक फैली हुई थीं, और सदियों तक स्पेन में इस्लामी शासन कायम रहा। यदि उस समय के कुछ शासकों के विश्वासघात और लापरवाही के कारण ऐसा न होता, तो इस्लाम की पूरी क्षमता का और भी अधिक दोहन किया जा सकता था।

इमाम रज़ा (अ) की दरगाह के मुतावल्ली ने आगे कहा: दुश्मनों ने इस्लाम के इतिहास का अध्ययन किया है और उसकी शक्ति को पहचाना है और वे मतभेद पैदा करने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं ताकि यह क्षमता विकास के बजाय आंतरिक मतभेदों पर खर्च हो।

उन्होंने कहा: इज़राइल का निर्माण इस क्षेत्र में इस्लाम के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से किया गया था। अगर इस्लाम और कुरान के मार्ग में कोई बाधा न हो, तो इस्लाम की तर्कशक्ति और शक्ति पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती है। कुरान को जलाने जैसी हरकतें दुश्मनों की विनम्रता और क्रोध को दर्शाती हैं और मुसलमानों को इतिहास में हमेशा ऐसे दुश्मनों का सामना करना पड़ा है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन मरवी ने कहा: आज, दुश्मनों का लक्ष्य केवल इस्लामी लोकतंत्र या इस्लामी क्रांति नहीं है। मुख्य लक्ष्य मध्य पूर्व में इज़राइल का अस्तित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस्लाम की उन्नति के विरुद्ध खड़े होने के लिए इजरायल यूरोप और अमेरिका के हितों का प्रतिनिधित्व करता है, और इसी कारण से, देश को पश्चिम के सैन्य, वित्तीय और मीडिया समर्थन से लाभ मिलता है।

 

किसी भी सकारात्मक परिश्रम के गुज़र बसर के लिए परमेश्वर की बंदगी और आराधना होने मे कोई संदेह नही है; क्यो कि दयालु परमेश्वर ने पवित्र क़ुरआन के बहुत से आयात मे अपने बंदो को पृथ्वी को बसाने,हलाल रोज़ी कमाने,जीवन निर्वाह एवम व्यापार करने और सुरक्षित खरीदने और बेचने का हूक़्म देता है, अल्लाह की इताअत बंदगी एवम आराधना है और यह बंदगी व तौबा आराधना क़यामत मे इनाम रखती है।

किसी भी सकारात्मक परिश्रम के गुज़र बसर के लिए परमेश्वर की बंदगी और आराधना होने मे कोई संदेह नही है; क्यो कि दयालु परमेश्वर ने पवित्र क़ुरआन के बहुत से आयात मे अपने बंदो को पृथ्वी को बसाने,हलाल रोज़ी कमाने,जीवन निर्वाह एवम व्यापार करने और सुरक्षित खरीदने और बेचने का हूक़्म देता है, अल्लाह की इताअत बंदगी एवम आराधना है और यह बंदगी व तौबा आराधना क़यामत मे इनाम रखती है।

क्रय विक्रय, व्यापार, पट्ठा, वकालत(क़ानूनी), सिचाई, कृषि, मुज़ारबा, हिस्सा(मुशारेकत), उद्योग, पढाना, सुलेख(किताबत), सिलाई, कढ़ाई, चमड़े की रंगाई, पशुपालन यह सब कार्य इस्लामी और इंसानी शर्तो के साथ माद्दी नेमतो के हासिल करने के सकारात्मक तरीक़े है।

प्रत्येक मामले का कार्यकर्ता परमेश्वर के नज़दीक महबूब है, इसके अलावा प्रत्येक से अलग होना और मानवता, अख़लाक़ एवम इस्लामी तरीक़ के खिलाफ किसी और तरीक़े से रोज़ी रोटी कमाना परवेश्वर की घृणा का कारण है।

क़ुरआने करीम इस संबंध मे बयान करता है:

يَا أيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُم بَيْنَكُم بِالْبَاطِلِ إِلاَّ أَن تَكُونَ تِجَارَةً عَن تَرَاض مِنْكُمْ . . .(सूरा 4, आयत 29)   
ए इमान वालो आपस मे एक दूसरे की संपत्ति (माल) को नाहक़ तरीक़े से नही खा जाया करो, लेकिन यह कि आपसी सहमति से समझमलत हो 

                              يَا أَيُّهَا النَّاسُ كُلُوا مِمَّا فِي الْأَرْضِ حَلاَلاً طَيِّباً وَلاَ تَتَّبِعُوا خُطُواتِ الشَّيْطانِ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ(सूरा 2, आयत 168)               
ए मानाव! भूमि मे जो कुछ भी हलाल और तैयब है उसे प्रयोग करे और शैतानी क़दम का पालन न करो कि वह तुम्हारा खुला हुआ दुशमन है।

वैध व्यवसायो से बर्बाद किए बिना और अपशिष्ट इस्तेमाल के माध्यम से प्राप्त हुआ माल हर स्तिथि मे परमेश्वर द्वारा हलाल घोषित किया गया है,और अवैध माध्यम से प्राप्त किया हुआ माल अगरचे ज़ाती तौर पर हलाल हो, जैसे खाद्य और पेय पदार्थ एवम कपड़े उनका प्रयोग हराम, उसे बचाकर रखना निषिद्ध(मना)  है और उसको उसके मूल स्वामी (असली मालिक) को लौटाना अनिवार्य है।

 

 इज़राईली रक्षा मंत्रालय ने अपने मारे गए सैनिकों के नवीनतम आंकड़े जारी किए हैं।

इज़राईली रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि गाज़ा पट्टी पर अपनी आक्रामकता की शुरुआत यानी 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 1152 कब्ज़ी सैनिक मारे जा चुके हैं।

यह आंकड़े उन सैनिकों पुलिस कर्मियों और सेवा के कर्मियों को शामिल करते हैं जो गाज़ा पट्टी, कब्जे वाले क्षेत्रों के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों, लेबनान और वेस्ट बैंक में तैनात थे।

स्पष्ट रहे कि प्रतिरोध बलों की सफल कार्रवाइयाँ जारी हैं और ये कार्रवाइयाँ कब्ज़ सियोनी सैनिकों की मौतों का कारण बन रही हैं, हालांकि सियोनी सेना गाजा के खिलाफ अपना लंबा और थकाऊ युद्ध जारी रखे हुए है।

याद रहे कि 7 अक्टूबर को प्रतिरोध आंदोलन हमास ने इज़राइल पर एक साथ 5000 से अधिक मिसाइल दागकर दुनिया में इज़राइल की स्व-निर्मित ताकत को हास्यास्पद साबित किया था।

 

7 अक्टूबर 2023: को शुरू होने वाला फिलिस्तीनी प्रतिरोध का ऐतिहासिक ऑपरेशन "तूफान अल-अक्सा" जो 7 अक्टूबर 2023 को शुरू हुआ था, आज दो साल बाद भी क्षेत्र और दुनिया की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इसने न केवल इजरायली सेना की अजेय होने की दावेदारी को धूल में मिला दिया, बल्कि फिलिस्तीन के मुद्दे को एक बार फिर से वैश्विक विवेक के सामने जीवित कर दिया।

दो साल पहले 7 अक्टूबर 2023 की सुबह दुनिया ने एक ऐसा दृश्य देखा जिसने मध्य पूर्व की राजनीतिक और सैन्य वास्तविकताओं को हमेशा के लिए बदल दिया। ऑपरेशन तूफान ए अलअक्सा" के नाम से मशहूर इस कार्रवाई को फिलिस्तीनी प्रतिरोधी गुटों द्वारा गाजा से शुरू किया गया जिसने इजरायल की सुरक्षा प्रणाली को हिलाकर रख दिया और ज़ायोनी राज्य के अस्तित्वगत संकट को उजागर कर दिया।

शहीद सैयद हसन नसरल्लाह ने अपने ऐतिहासिक संबोधन में इस कार्रवाई को एक "बहादुर, रचनात्मक और असाधारण" कदम करार दिया था। उनके अनुसार, "यह घटना एक ऐसे भूकंप के बराबर थी जिसने इजरायली राजनीति, सेना और मनोविज्ञान की नींव हिला दी।सैयद नसरल्लाह ने कहा था कि दुश्मन चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, अल-अक्सा तूफान के रणनीतिक प्रभावों को कभी मिटा नहीं सकता।

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद सादिक ख़ुरसंद के मुताबिक, गाजा में मानवीय त्रासदी अपनी जगह एक बड़ी हकीकत है, लेकिन इस दुर्घटना के पीछे इजरायल की शक्तिशाली छवि पर जो करारी चोट लगी, उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।यह चोट इतनी गहरी और बहुआयामी थी कि इजरायल की सुरक्षा, खुफिया जानकारी और सैन्य श्रेष्ठता की बुनियाद हिल गई।

ख़ुरसंद के अनुसार, इजरायल जो खुद को दुनिया की सबसे मजबूत सुरक्षा प्रणाली वाला राज्य बताता था 7 अक्टूबर के हमले से पूरी तरह बेनकाब हो गया। "हमास के मुजाहिदों ने जमीन, समुद्र और हवा तीनों रास्तों से घुसकर इजरायल की रक्षात्मक घेराबंदी को तोड़ दिया। यह सिर्फ एक सैन्य हार नहीं बल्कि मोसाद और शबाक के लिए ऐतिहासिक अपमान था।

उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद हिज़्बुल्लाह लेबनान और अन्य प्रतिरोधी गुटों ने भी इजरायल पर दबाव बढ़ाया, जिसके नतीजे में तेल अवीव सरकार को उत्तरी सीमा के कई इलाके खाली करने पड़े और वह एक लंबी घिसावट वाली जंग में उलझ गई।

ख़ुरसंद के मुताबिक, इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के दो बड़े लक्ष्य हमास की पूरी तबाही और सभी बंदियों की रिहाई आज भी सिर्फ सपना बनकर रह गए हैं। "गाजा की तबाही के बावजूद हमास ने अपनी संगठनात्मक क्षमता बरकरार रखी है और युद्ध की रणनीति से दुश्मन को लगातार नुकसान पहुंचा रही है।

मशहूर पत्रकार और विश्लेषक अली मदर्रेसी के अनुसार, "तूफान ए अल-अक्सा " वास्तव में एक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक जरूरत थी। "पंद्रह साल की नाकाबंदी, आर्थिक बदहाली और अंतरराष्ट्रीय खामोशी ने गाजा को एक बड़ी जेल बना दिया था।

अमेरिका की पिठ्ठपन से चलने वाली 'अब्राहम समझौते' की प्रक्रिया फिलिस्तीन के मुद्दे को अरब एजेंडे से बाहर कर रही थी। ऐसे में अल-अक्सा तूफान ने न केवल उस साजिश को तोड़ा बल्कि फिलिस्तीन के मुद्दे को दोबारा दुनिया के केंद्र में ला खड़ा किया।

उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन के नतीजे में वैश्विक स्तर पर जन जागरण की नई लहर उठी। यूरोप और अमेरिका के बड़े शहरों में लाखों लोगों ने फिलिस्तीनियों के हक में मार्च निकाले। 'कारवान-ए-सुमूद' जैसी जन आंदोलनों ने साबित कर दिया कि फिलिस्तीन अब चुप नहीं रहेगा।

आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, गाज़ा युद्ध के वित्तीय प्रभाव भी इजरायल के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं। रक्षा खर्च के नतीजे में दर्जनों अरब डॉलर का घाटा, तीन लाख से ज्यादा रिजर्व सैनिकों की भर्ती और विदेशी निवेश की वापसी ने इजरायली अर्थव्यवस्था को संकट में डाल दिया है।

दो साल बाद,तूफान ए अलअक्सा तूफान" सिर्फ एक जंग नहीं बल्कि एक नई हकीकत बन चुका है एक ऐसा मोड़ जिसने फिलिस्तीनी दृढ़ संकल्प, इजरायली कमजोरी, और वैश्विक विवेक की जागृति को हमेशा के लिए इतिहास का हिस्सा बना दिया।

 

 

ईरान के राष्ट्रीय सोशल मीडिया केंद्र और सोशल मीडिया अनुसंधान केंद्र के सहयोग से पवित्र शहर की 12-दिवसीय रक्षा के विषय पर सक्रिय सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं की सेवाओं के सम्मान में एक सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।

ईरान के राष्ट्रीय सोशल मीडिया केंद्र और सोशल मीडिया अनुसंधान केंद्र के सहयोग से पवित्र शहर की 12-दिवसीय रक्षा के विषय पर सक्रिय सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं की सेवाओं के सम्मान में एक सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।

इस सम्मेलन का उद्देश्य उन सक्रिय व्यक्तियों को प्रोत्साहित करना है जो डिजिटल और सोशल मीडिया के क्षेत्र में पवित्र शहर की 12-दिवसीय रक्षा के तथ्यों और मूल्यों का प्रभावी ढंग से प्रचार कर रहे हैं।

इस कार्यक्रम को हौज़ा ए इल्मिया की सर्वोच्च परिषद के सदस्य आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद ग़रवी और राष्ट्रीय वर्चुअल स्पेस सेंटर की सर्वोच्च परिषद के प्रमुख सय्यद मोहम्मद अमीन अका-मीरी संबोधित करेंगे।

यह सम्मेलन गुरुवार,  9 अक्टूबर 2025 को सुबह 9 बजे से 11 बजे तक क़ुम के मोअल्लिम स्ट्रीट स्थित अंतर्राष्ट्रीय ग़दीर सम्मेलन हॉल में आयोजित किया जाएगा।

इस अवसर पर, सोशल मीडिया में सक्रिय प्रचारकों को उनके प्रभावी प्रदर्शन के लिए मानद प्रमाण पत्र और उपहार भी प्रदान किए जाएँगे।