رضوی
ज़ुल्म और मासीयत क़यामत की तारीकी हैं। आयतुल्लाह हाशिमी अलिया
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया संस्थापक मदरसा इल्मिया क़ायम अ.ज. शहर चीज़र ने अपने दर्स-ए-अख़लाक में कहा कि ज़ुल्म और गुनाह इंसान की ज़िंदगी को तबाह और क़यामत में उसके लिए अंधेरा का सबब बनता हैं।
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया संस्थापक मदरसा इल्मिया क़ाएम अ.ज. शहर चीज़र ने अपने दर्स-ए-अख़लाक में कहा कि ज़ुल्म और गुनाह इंसान की ज़िंदगी को तबाह और क़यामत में उसके लिए तारीकी का बाइस बनते हैं।
उन्होंने विलादत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की मुनासिबत से मुबारकबाद पेश करते हुए फ़रमाया कि ज़ुहूर इमाम ज़माना (अज) के लिए दुआ और विनती इंसान की अहम ज़िम्मेदारी है। उनका कहना था कि मौजूदा वैश्विक हालात ज़ुल्म से भरे हुए हैं और हमें दुआ करनी चाहिए कि ख़ुदावंद मुतआल इंसानियत को इस अंधेरे से निजात दे।
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया ने कहा कि जुर्म और गुनाह इंसान की सआदत (कल्याण) और आराम को छीन लेता हैं और सबसे ज़्यादा तबाह कुन चीज़ ज़ुल्म है जो न सिर्फ दुनिया बल्कि आख़िरत को भी अंधेरा कर देता है। रसूल-ए-अकरम (स.ल.) ने फ़रमाया,अगर क़यामत में नूर चाहते हो तो किसी पर ज़ुल्म न करो।
उन्होंने आगे कहा कि गुनाह दरअसल अपने आप पर ज़ुल्म है। क़यामत के दिन इंसान पशेमानी (पछतावे) से कहेगा काश मैंने अंबिया और आइम्मा (इमामों) की बात सुनी होती। ज़ुल्म की तीन क़िस्में हैं; शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराना) जो नाकाबिल-ए-बख़्शिश (माफ़ी के लायक नहीं) है, इंसान का अपने नफ़्स पर ज़ुल्म जो बख़्शिश के लायक है, और बंदों पर ज़ुल्म जिसकी सख़्त सज़ा मुक़र्रर है।
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया ने ज़ोर देकर कहा कि मज़लूम को भी सब्र व तहम्मुल (धैर्य और सहनशीलता) के साथ अपने हक़ का दीनी तरीके से दिफ़ा (बचाव) करना चाहिए और अगर वह ताक़त न रखता हो तो मामला ख़ुदा पर छोड़ देना चाहिए जो बेहतरीन इंतिक़ाम लेने वाला है।
उन्होंने वज़ाहत की कि तर्क-ए-वाजिबात और इरतिकाब-ए-मुहर्रमात (वर्जित कार्य करना) नफ़्स पर ज़ुल्म है और अस्ल कामयाबी इसी में है कि इंसान रोज़ाना तौबा (पश्चाताप) करे अपनी इस्लाह (सुधार) करे और तज़किया-ए-नफ़्स के ज़रिए शैतान के जाल से बचे।
इजरायल के साथ युद्ध की कोई संभावना नहीं, ईरानी सशस्त्र बल हर पल तैयार
ईरान की इस्लामिक क्रांति गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के कमांडर इन चीफ के सांस्कृतिक और मीडिया सलाहकार ने कहा,इजरायल के साथ युद्ध की कोई संभावना नहीं है अब इजरायल में ईरान पर हमला करने की हिम्मत नहीं होगी।
IRGC के कमांडर इन चीफ के सांस्कृतिक और मीडिया सलाहकार, हमीद रज़ा मक़दम फर ने कहा,सभी ईरानी सैन्य, सुरक्षा और रक्षा बल पूरी तरह से तैयार हैं, इसलिए तर्क यह कहता है कि इजरायल ईरान के साथ युद्ध मोल लेने की स्थिति में नहीं है।
उन्होंने आगे कहा,दुश्मन ईरान को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए नकारात्मक प्रचार कर रहा है।
IRGC के कमांडर इन चीफ के सांस्कृतिक और मीडिया सलाहकार ने कहा, इजरायल ईरान पर हमला करने की हिम्मत नहीं करेगा क्योंकि हमारे सशस्त्र बल किसी भी आक्रामक कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह से हर समय तैयार हैं।
अमेरिका से दोस्ती अतीत में भी पाकिस्तान को महंगी पड़ी है
जमीयत-उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के नेता ने इस्लामाबाद में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा महत्वपूर्ण है लेकिन हमें याद है कि किसी भी मुसीबत में अमेरिका ने हमारी मदद नहीं की जो चीन ने की। अमेरिका के साथ दोस्ती अतीत में भी हमें महंगी पड़ी है।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के केंद्रीय महासचिव और राष्ट्रीय असेंबली के सदस्य मौलाना अब्दुल ग़फूर हैदरी ने यह कहते हुए कि अमेरिका को हवाई अड्डे देने से क्षेत्र में शांति का विनाश होगा, कहा कि हमें याद है कि किसी भी मुसीबत में अमेरिका ने हमारी वह मदद नहीं की जो चीन ने की। अमेरिका के साथ दोस्ती अतीत में भी हमें महंगी पड़ी है।
इस्लामाबाद में मीडिया से बातचीत करते हुए मौलाना अब्दुल ग़फूर हैदरी ने कहा कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा महत्वपूर्ण है लेकिन हमें याद है कि किसी भी मुसीबत में अमेरिका ने हमारी वह मदद नहीं की जो चीन ने की। अमेरिका के साथ दोस्ती अतीत में भी हमें महंगी पड़ी है।
उन्होंने कहा कि अगर शासक अमेरिका के साथ चलना चाहते हैं तो धीरे-धीरे चलें, मीठी बातों में फिर से पाकिस्तान का इस्तेमाल न किया जाए। अगर अमेरिका और हमारे अन्य दुश्मनों की पृष्ठभूमि में हाथ न हों तो कई जगह हालात बेहतर होते। पाकिस्तान को चीन के साथ अपने संबंध और मजबूत करने होंगे।
जमीयत-उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के नेता ने आगे कहा कि चीन ने हर मुश्किल समय में पाकिस्तान का साथ दिया है। चीन के शिनजियांग प्रांत में 60% मुसलमान रहते हैं, चीन ने इस क्षेत्र के विकास के लिए 80 अरब डॉलर खर्च करने की घोषणा की है। अगर चीन इस प्रांत को विकास के लिए प्राथमिकता दे रहा है तो पाकिस्तान को भी ऐसा ही करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान की स्थिति में सुधार के लिए केंद्र सरकार की ओर से भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। तफ्तान तक की यात्रा एक सिंगल हाईवे से करनी पड़ती है, जिसके कारण कई दुर्घटनाएं भी होती हैं।
मौलाना अब्दुल ग़फूर हैदरी ने कहा कि जेयूआई-पी सऊदी अरब समझौते को सराहना की नज़र से देखती है। हमने अतीत में भी कहा था कि मुस्लिम उम्मा एकजुट होकर रक्षा और आधुनिक प्रौद्योगिकी के समझौते करें।
उन्होंने आगे कहा कि मौलाना फ़ज़ल उर-रहमान ने इस संदर्भ में अतीत में बहुत प्रयास किए थे। हमारा मानना है कि इस रक्षा समझौते का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा। हमारी इच्छा है कि दुनिया के अन्य मुस्लिम देश भी इसमें शामिल हों, ताकि किसी भी मुस्लिम देश पर हमला हो तो मिलकर मुकाबला किया जा सके।
उन्होंने आगे कहा कि इज़राइल एक छोटा सा देश है लेकिन उसने फिलिस्तीन में बर्बरता और हत्याकांड कर डाले हैं। अगर इज़राइल युद्धविराम के लिए तैयार हुआ है तो इसमें इस पाक-सऊदी समझौते का ही महत्व है। मेरा मानना है कि अगर ईरान सहित अन्य इस्लामिक देश भी इस समझौते में शामिल हों तो यह और मजबूत होगा।
इमाम हसन असकरी (अ) की 31 महत्वपूर्ण हदीसें
इमाम हसन अस्करी (अ) के शहादत दिवस के अवसर पर, अख़लाक़, ईमान और जीवन के तौर-तरीकों से संबंधित इमाम हम्माम की 31 हदीसें मुसलमानों के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शन के रूप में प्रकाशित की जा रही हैं।
ग्यारहवें इमाम, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) की हदीसें इस दुनिया और आख़िरत के लिए, हर मुसलमान और हर जगह आज़ाद इंसान के लिए मार्गदर्शन और जलती हुई मशाल हैं, जिसका दिल रहमते इलाही से लाभ उठाने के लिए तत्पर है, इस दुनिया और आख़िरत के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश और एक चमकती हुई मशाल हैं। इस अज़ीम इमाम की शहादत दिवस के अवसर पर उनकी कुछ प्रमाणित और विश्वसनीय हदीसों का दिल और जान से अध्ययन करेंगे:।
1- ईमान की निशानी
قالَ (علیه السلام) : عَلامَهُ الاْیمانِ خَمْسٌ: التَّخَتُّمُ بِالْیَمینِ، وَ صَلاهُ الإحْدی وَ خَمْسینَ، وَالْجَهْرُ بِبِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحیم، وَ تَعْفیرُ الْجَبین، وَ زِیارَهُ الاْرْبَعینَ क़ाला अलैहिस्सलामोः अलामतुल ईमाने ख़म्सुनः अत तख़त्तमो बिल यमीने, व सालतुल एहदा व खम्सीना, वल जहरो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम, व तअफ़ीरुल जबीन, व ज़ियारतुल अरबईना
इमाम (अ) ने फ़रमाया: ईमान की पाँच निशानियाँ: दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, इक्यावन रकअत नमाज़ (वाजिब और मुस्तहब) पढ़ना, (ज़ोहर और अस्र की नमाज़ मे) ज़ोर से "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम" पढ़ना, सजदा करते समय पेशानी को खाक पर रखना, और इमाम हुसैन (अ) ज़ियारत अरबईन अंजाम देना।
2- हक़ीक़ी इबादत
قالَ (علیه السلام) : لَیْسَتِ الْعِبادَهُ کَثْرَهُ الصّیامِ وَالصَّلاهِ، وَ إنَّمَا الْعِبادَهُ کَثْرَهُ التَّفَکُّرِ فی أمْرِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसतिल इबादतो कसरतुस सियामे वस सलाते, व इन्नमल इबादतो कसरतुत तफ़क्कुरे फ़ि अमरिल्लाहे
इमाम (अ) ने फ़रमाया: इबादत ज़्यादा नमाज़ और रोज़ा नहीं है, बल्कि विभिन्न मामलों में अल्लाह की असीम शक्ति में चिंतन और भय के साथ इबादत है।
3- सबसे अच्छी विशेषता
قالَ (علیه السلام) : خَصْلَتانِ لَیْسَ فَوْقَهُما شَیْءٌ: الاْیمانُ بِاللهِ، وَنَفْعُ الاْخْوانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः खस्लताने लैसा फ़ौक़होमा शैउनः अल ईमानो बिल्लाह, व नफ़्उल अख़्वान
इमाम (अ) ने फ़रमाया: गुण और स्थितियाँ जिनसे ऊपर कोई चीज़ भी महत्वपूर्ण नहीं हैं: अल्लाह पर ईमान और विश्वास, दोस्तों और परिचितों को लाभ पहुँचाना।
4- लोगों के साथ अच्छा व्यवहार
قالَ (علیه السلام) : قُولُوا لِلنّاسِ حُسْناً، مُؤْمِنُهُمْ وَ مُخالِفُهُمْ، أمَّا الْمُؤْمِنُونَ فَیَبْسِطُ لَهُمْ وَجْهَهُ، وَ أمَّا الْمُخالِفُونَ فَیُکَلِّمُهُمْ بِالْمُداراهِ لاِجْتِذابِهِمْ إلَی الاْیِمانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः क़ूलू लिन्नासे हुसना, मोमेनोहुम व मुख़ालेफ़ोहुम, अम्मल मोमेनूना फ़यब्सेतो लहुम वज्हहू, व अम्मल मुख़ालेफ़ूना फ़योकल्लोमोहुम बिल मुदाराते लेइज्तेज़ाबेहिम एलल ईमान
आपने फ़रमाया: दोस्तों और दुश्मनों के साथ दोस्ताना और मित्रवत व्यवहार करो, लेकिन ईमान वाले दोस्तों के साथ, एक कर्तव्य के रूप में, उन्हें हमेशा एक-दूसरे के साथ प्रसन्नतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए, लेकिन विरोधियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, ताकि सहिष्णुता और इस्लाम और उसके अहकाम की ओर आकर्षित रहे।
5- दोस्ती की निरंतरता
قالَ (علیه السلام) : اللِّحاقُ بِمَنْ تَرْجُو خَیْرٌ مِنَ المُقامِ مَعَ مَنْ لا تَأْمَّنُ شَرَّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः अल लेहाक़ो बेमन तरजू ख़ैरुम मिनल मुकामे मआ मन ला ताम्मनो शर्राहू
आपने फ़रमाया: किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दोस्ती और संगति जारी रखना बेहतर है जिसके साथ आपके रिश्ते अच्छे होने की संभावना हो, बजाय किसी ऐसे व्यक्ति के जिसके साथ व्यक्तिगत, वित्तीय, धार्मिक, आदि नुकसान की संभावना हो।
6- अफवाहें फैलाना और सत्ता की लालसा
قالَ (علیه السلام) : إیّاکَ وَ الاْذاعَهَ وَ طَلَبَ الرِّئاسَهِ، فَإنَّهُما یَدْعُوانِ إلَی الْهَلَکَهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इय्याका वल इज़ाअता व तलबर रियासते, फ़इन्नहोमा यदओवाने एलल हलकते
इमाम (अ) ने फ़रमाया: सावधान रहो कि तुम अफ़वाहें न फैलाओ, न ही बातें करो, न ही कोई पद और राज्य पाने की चाहत रखो और न ही उसके लिए प्यासे रहो, क्योंकि ये दोनों ही इंसान को बर्बाद कर देते हैं।
7- अक़्ल की खूबसूरती
قالَ (علیه السلام) : حُسْنُ الصُّورَهِ جَمالٌ ظاهِرٌ، وَ حُسْنُ الْعَقْلِ جَمالٌ باطِنٌ क़ाला अलैहिस्सलामोः हुस्नुस सूरते जमालुन ज़ाहेरुन, व हुस्नुल अक़्ले जमालुन बातेनुन
आप (अ) ने फ़रमाया: चेहरे की सुन्दरता और सौन्दर्य मनुष्य के बाहरी रूप में दिखाई देता है, और बुद्धि और ज्ञान की सुंदरता और सौन्दर्य मनुष्य के अंदर होती है।
8- गुप्त नसीहत
قالَ (علیه السلام) : مَنْ وَعَظَ أخاهُ سِرّاً فَقَدْ زانَهُ، وَمَنْ وَعَظَهُ عَلانِیَهً فَقَدْ شانَهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः मन वअज़ा अख़ाहो सिर्रन फ़क़द ज़ानहू, व मन वअज़ा अलानियतन फ़क़द शानहू
इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने दोस्त या भाई को गुप्त रूप से नसीहत करता है, उसने उसको सम्मानित किया; और अगर यह सार्वजनिक है, तो उसका अपमान किया।
9- इलाही तक़वा
قالَ (علیه السلام) : مَنْ لَمْ یَتَّقِ وُجُوهَ النّاسِ لَمْ یَتَّقِ اللهَ क़ाला अलैहिस्सलामोः मन लम यत्तक़े वजूहन नासे लम यत्तक़िल्लाह
आप (अ) ने फ़रमाया: जो लोगों के सामने निडर रहता है और लोगों के नैतिक मुद्दों और अधिकारों का सम्मान नहीं करता, वह इलाही तक़वा का भी सम्मान नहीं करता।
10- मोमिन का अपमान
قالَ (علیه السلام) : ما أقْبَحَ بِالْمُؤْمِنِ أنْ تَکُونَ لَهُ رَغْبَهٌ تُذِلُّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा अक़्बहा बिल मोमिने अय तकूना लहू रग़बतुन तोज़िल्लोहू
इमाम (अ) ने फ़रमाया: एक मोमिन के लिए सबसे बुरी स्थिति और चरित्र यह है कि वह ऐसी इच्छा रखता है जो उसे अपमानित और लज्जित करती है।
11- सबसे अच्छे दोस्त
قالَ (علیه السلام) : خَیْرُ إخْوانِکَ مَنْ نَسَبَ ذَنْبَکَ إلَیْهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः ख़ैरो इख़वानेका मन नसबा ज़म्बका इलैह
इमाम (अ) ने फ़रमाया: सबसे अच्छा दोस्त और भाई वह है जो तुम्हारी गलतियों की ज़िम्मेदारी लेता है और खुद को दोषी मानता है।
12- अधिकार का त्याग
قالَ (علیه السلام) : ما تَرَکَ الْحَقَّ عَزیزٌ إلاّ ذَلَّ، وَلا أخَذَ بِهِ ذَلیلٌ إلاّ عَزَّ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा तरकल हक़्क़ा अज़ीज़ुन इल्ला ज़ल्ला, वला अख़ज़ा बेहि ज़लीलुन इल्ला अज़्ज़ा
आप (अ) ने फ़रमाया: "किसी भी पद या प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति ने सत्य का परित्याग नहीं किया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे अपमानित किया गया हो, और कोई भी व्यक्ति सत्य को न्याय के कटघरे में नहीं लाया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे सम्मानित किया गया हो।"
13- शियो की विशेषता
قالَ (علیه السلام) لِشیعَتِهِ: أوُصیکُمْ بِتَقْوَی اللهِ وَالْوَرَعِ فی دینِکُمْ وَالاْجْتِهادِ لِلّهِ، وَ صِدْقِ الْحَدیثِ، وَأداءِ الاْمانَهِ إلی مَنِ ائْتَمَنَکِمْ مِنْ بِرٍّ أوْ فاجِر، وِطُولِ السُّجُودِ، وَحُسْنِ الْجَوارِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लेशीअतेहिः ऊसीकुम बे तक़वल्लाहे वल वरऐ फ़ी दीनेकुम वल इज्तेहादे लिल्लाहे, वस सिद्क़िल हदीसे, व अदाइल अमानते ऐला मनेतमेनकुम मिन बिर्रिन औ फ़ाजेरिन, व तूलिस सुजूदे, व हुस्नि जवारे
इमाम (अ) ने अपने शियो से कहा: अल्लाह का तक़वा इख़्तियार करो और दीन के मामलों में नेक बनो, अल्लाह के क़रीब रहने की कोशिश करो और अपनी संगति में ईमानदारी दिखाओ, जो भी तुम्हें सौंपा गया है उसे सकुशल लौटाओ, अल्लाह के सामने सजदे को तूलानी करो और अपने पड़ोसियों के साथ नेकी और भलाई करो।
14- विनम्रता
قالَ (علیه السلام) : مَنْ تَواضَعَ فِی الدُّنْیا لاِخْوانِهِ فَهُوَ عِنْدَ اللهِ مِنْ الصِدّیقینَ، وَمِنْ شیعَهِ علیِّ بْنِ أبی طالِب (علیه السلام)حَقّاً क़ाला अलैहिस्सलामोः मन तवाज़आ फ़िद दुनिया लेइख़्वानेहि फ़होवा इन्दल्लाहे मिनस सिद्दीक़ीना, व मिन शीअते अली इब्ने अबि तालिब (अलैहिस सलामो) हक़्क़न
इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई इस दुनिया में अपने दोस्तों और साथियों के सामने खुद को नम्र बनाएगा, वह अल्लाह के सामने नेक लोगों में और इमाम अली (अ) के शियो में से होगा।
15- बुखार की समाप्ति
قالَ (علیه السلام) : إنَّهُ یُکْتَبُ لِحُمَّی الرُّبْعِ عَلی وَرَقَه، وَ یُعَلِّقُها عَلَی الْمَحْمُومِ: «یا نارُکُونی بَرْداً»، فَإنَّهُ یَبْرَءُ بِإذْنِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नहू युकतबो लेहुम्मर रब्ऐ अला वरक़ते व योअल्लेक़ोहा अल महमूमेः या नारो कूनि बरदा, फ़इन्नहू यबरओ बेइज़्निल्लाह
इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी दर्द और बुखार से पीड़ित है, वह कुरान की "सूरह अंबिया, आयत 69" में इस आयत को एक कागज़ पर लिखकर उसकी गर्दन मे लटका दे, ताकि वह अल्लाह तआला की इजाज़त से ठीक हो जाए।
16- अल्लाह की याद
قالَ (علیه السلام) : أکْثِرُوا ذِکْرَ اللهِ وَ ذِکْرَ الْمَوْتِ، وَ تَلاوَهَ الْقُرْآنِ، وَالصَّلاهَ عَلی النَّبیِّ (صلی الله علیه وآله وسلم)، فَإنَّ الصَّلاهَ عَلی رَسُولِ اللهِ عَشْرُ حَسَنات क़ाला अलैहिस्सलामोः अक़्सेरु ज़िक्रिल्लाहे व ज़िक्रिल मौते, व तलावतिल क़ुरआने, वस सलाता अलन नबीय्ये (सललल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) फ़इन्नस सलाता अला रसूलिल्लाहे अश्रो हसनात
आपने फ़रमाया: अल्लाह तआला का ज़िक्र और मौत का ज़िक्र और उसके हालात, क़ुरआन की तिलावत और हज़रत रसूल और अहले बैत (अ) पर बार-बार सलाम भेजो, बेशक उन पर सलाम का सवाब दस नेकियाँ का सवाब है।
17- उम्र का उपयोग
قالَ (علیه السلام) : إنَّکُمْ فی آجالِ مَنْقُوصَه وَأیّام مَعْدُودَه، وَالْمَوْتُ یَأتی بَغْتَهً، مَنْ یَزْرَعُ شَرّاً یَحْصَدُ نِدامَهً क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नकुम फ़ी आजाले मंक़ूसते व अय्यामे मअदूदते, वल मौतो याती बग़्ततन, मन यज़्रओ शर्रन यहसदो निदामतन
आपने फ़रमाया: बेशक, तुम इंसानों की मौत एक छोटी सी अवधि में होगी, जो पहले से तय और निर्धारित है, और मौत अचानक और बिना किसी पूर्व सूचना के आती है और इंसान को मार देती है, इसलिए सावधान रहो कि जो कोई भी क़यामत के दिन इबादत, सेवा और नेक कामों में हर संभव कोशिश करेगा, उसे ईर्ष्या होगी क्योंकि उसने ज़्यादा नहीं किया, और जो कोई बुरा काम और पाप करेगा, उसे पछतावा और दुःख होगा।
18- नमाज़े शब
قالَ (علیه السلام) : إنّ الْوُصُولَ إلَی اللهِ عَزَّ وَ جَلَّ سَفَرٌ لا یُدْرَکُ إلاّ بِامْتِطاءِ اللَّیْلِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नल वुसूला एलल्लाहे अज़्ज़ा व जल्ला सफ़रुन ला युदरको इल्ला बे इम्तेताइल लैले
आपने फ़रमाया: बेशक, अल्लाह तआला और सर्वोच्च स्थानों तक पहुँचना एक ऐसी यात्रा है जो रात में जागकर इबादत और संतुष्टि और विभिन्न मामलों में तलाश करने के अलावा हासिल नहीं की जा सकती।
19- वाजेबात में सुस्ती
قالَ (علیه السلام) : لا یَشْغَلُکَ رِزْقٌ مَضْمُونٌ عَنْ عَمَل مَفْرُوض क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यशग़लोका रिज़्क़ुन मज़्मूमुन अन अमलि मफ़रूज़िन
आपने फ़रमाया: ध्यान रहे कि रोज़ी की तलाश - जिसकी गारंटी अल्लाह तआला ने दी है - आपको काम और वाजिब कामो से न रोके (अर्थात, ध्यान रहे कि आप अत्यधिक खोज और काम के कारण अपने वाजेबात के संबंध में आलसी और लापरवाह न हो जाएँ)।
20- आक़े वालेदैन
قالَ (علیه السلام) : جُرْأهُ الْوَلَدِ عَلی والِدِهِ فی صِغَرِهِ تَدْعُو إلَی الْعُقُوقِ فی کِبَرِهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः जुर्अतुल वलदे अला वालेदेहि फ़ि सिग़रेहि तदऊ एलल उक़ूक़े फ़ि केबरहि
आपने फ़रमाया: बचपन में पिता के सामने बच्चे का रोना और दुस्साहस करना, वयस्क होने पर पिता द्वारा उसके शाप और क्रोध का कारण बनेगा।
21- ज़ुहर और अस्र की नमाज़ों को मिलाना
قالَ (علیه السلام) : أجْمِعْ بَیْنَ الصَّلاتَیْنِ الظُّهْرِ وَالْعَصْرِ، تَری ما تُحِبُّ क़ाला अलैहिस्सलामोः अज्मेअ बैनस सलातैनिज़ ज़ोहरे वल अस्रे, तरा मा तोहिब्बो
आपने फ़रमाया: ज़ोहर और अस्र की नमाज़ें एक के बाद एक - जितनी जल्दी हो सके, अदा करो, जिससे गरीबी और कठिनाई दूर हो जाएगी और तुम अपने लक्ष्य तक पहुँच जाओगे।
22- सबसे नेक लोग
قالَ (علیه السلام) : أوْرَعُ النّاسِ مَنْ وَقَفَ عِنْدَ الشُّبْههِ، أعْبَدُ النّاسِ مَنْ أقامَ الْفَرائِضَ، أزْهَدُ النّاس مَنْ تَرَکَ الْحَرامَ، أشَدُّ النّاسِ اجْتِهاداً مَنْ تَرَکَ الذُّنُوبَ क़ाला अलैहिस्सलामोः औरउन नासे मन वक़फ़ा इंदश शुब्हते, आबदुन नासे मन अक़ामल फ़राएज़े, अज़हदुन नासे मन तरकल हरामे, अशद्दुन नासे इज्तेहादन मन तरकज़ ज़ोनूबे
आपने फ़रमाया: सबसे नेक इंसान वह है जो विभिन्न संदिग्ध मामलों से दूर रहता है; सबसे नेक इंसान वह है जो हर चीज़ से पहले इलाही वाजेबात का पालन करता है; सबसे तपस्वी वह व्यक्ति है जो हराम कान नहीं करता; सबसे शक्तिशाली व्यक्ति वह है जो हर परिस्थिति में हर पाप और त्रुटि का त्याग करता है।
23- पहचान नेमत है
قالَ (علیه السلام) : لا یَعْرِفُ النِّعْمَهَ إلاَّ الشّاکِرُ، وَلا یَشْکُرُ النِّعْمَهَ إلاَّ الْعارِفُ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यअरेफ़ुन्नेअमता इल्लश शाकेरो, वला यशकोरुन्नेअमता इल्लल आरेफ़ो
आपने फ़रमायाः कृतज्ञ के अलावा कोई भी नेमत का मूल्य नहीं जानता, और ज्ञानी के अलावा कोई भी नेमत के लिए कृतज्ञता व्यक्त नहीं कर सकता।
24- पाखंड की बुराई
قالَ (علیه السلام) : بِئْسَ الْعَبْدُ عَبْدٌ یَکُونُ ذا وَجْهَیْنِ وَ ذالِسانَیْنِ، یَطْری أخاهُ شاهِداً وَ یَأکُلُهُ غائِباً، إنْ أُعْطِیَ حَسَدَهُ، وَ إنْ ابْتُلِیَ خَذَلَهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः बेसल अब्दो अब्दुन यकूनो ज़ा वज्हैने व ज़ा लेसातैने, यतरा अख़ाहो शाहेदन व याकोलोहू ग़ाएबन, इन ओतेया हसदहू, व इब्तला ख़ज़लहू
आपने फ़रमाया: एक बुरा व्यक्ति वह है जिसके दो चेहरे और दो ज़बानें हों; वह अपने दोस्तों और भाइयों की उपस्थिति में प्रशंसा और महिमा करता है, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में और उनकी पीठ पीछे, निंदा करता है, जो शरीर का मांस खाने के समान है।
25- विनम्रता की निशानी
قالَ (علیه السلام) : مِنَ التَّواضُعِ السَّلامُ عَلی کُلِّ مَنْ تَمُرُّ بِهِ، وَ الْجُلُوسُ دُونَ شَرَفِ الْمَجْلِسِ क़ाला अलैहिस्सलामोः मिनत तवाज़ेइस सलामो अला कुल्ले मन तमोर्रो बेहि, वल जुलूसो दूना शरफ़िल मजलिसे
इमाम (अ) ने फ़रमाया: विनम्रता की एक निशानी यह है कि आप जिस किसी से भी मिलें, उसका अभिवादन करें और सभा में प्रवेश करते समय जहाँ भी हों, वहीं बैठ जाएँ - दूसरों को अपने लिए रास्ता खोलने के लिए मजबूर न करें।
26- जेदाल की बुराई
قالَ (علیه السلام) : لا تُمارِ فَیَذْهَبُ بَهاؤُکَ، وَ لا تُمازِحْ فَیُجْتَرَأُ عَلَیْکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला तोमारे फ़यज़्हबो बहाओका, वला तोमाज़ेहो फ़युज्तरओ अलैका
इमाम (अ) ने फ़रमाया: ऐसी किसी भी बहस या विवाद में न पड़ो जिससे तुम्हारी गरिमा कम हो जाए, अनुचित या अनावश्यक मज़ाक या हंसी-मज़ाक न करो, वरना लोग तुमसे नाराज़ हो जाएँगे।
27- औलिया ए इलाही की आज्ञाकारिता को प्राथमिकता देना
قالَ (علیه السلام) : مَنْ آثَرَ طاعَهَ أبَوَیْ دینِهِ مُحَمَّد وَ عَلیٍّ عَلَیْهِمَاالسَّلام عَلی طاعَهِ أبَوَیْ نَسَبِهِ، قالَ اللهُ عَزَّ وَ جَلَّ لِهُ: لاَُؤَ ثِرَنَّکَ کَما آثَرْتَنی، وَلاَُشَرِّفَنَّکَ بِحَضْرَهِ أبَوَیْ دینِکَ کَما شَرَّفْتَ نَفسَکَ بِإیثارِ حُبِّهِما عَلی حُبِّ أبَوَیْ نَسَبِکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः मन आसरा ताअता अबवय दीनेहि मुहम्मदिन व अलीयिन अलैहेमस्सलामो अला ताआते अबवय नसबेहि, क़ालल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला लहूः लेऊसेरन्नका कमा आसरतनी, वला ओशर्रेफ़न्नका बेहज़्रेहि अबवय दीनेका कमा शर्रफ़ता नफ़सका बेइसारे हुब्बेहेमा अला हुब्बे अबवय नसबेका
इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी अपने भौतिक माता-पिता का अनुसरण करने की अपेक्षा पैगम्बर मुहम्मद (स) और अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) की आज्ञाकारिता और अनुसरण को प्राथमिकता देता है, अल्लाह उसे आशीर्वाद दे और उसे शांति प्रदान करे, अल्लाह तआला उसे संबोधित करता हैं: जिस प्रकार तुमने मेरे आदेशों को हर चीज़ पर प्राथमिकता दी, उसी प्रकार मैं तुम्हें दान और आशीर्वाद में प्राथमिकता देता हूँ, और मैं तुम्हें धार्मिक माता-पिता, अर्थात् हज़रत रसूल और इमाम अली (अ) का साथी बनाता हूँ, उसी प्रकार जैसे कि रुचि और प्रेम - व्यावहारिक और धार्मिक। उन्होंने खुद को हर चीज़ से पहले रखा।
28- बे अदब की निशानी
قالَ (علیه السلام) : لَیْسَ مِنَ الاْدَبِ إظْهارُ الْفَرَحِ عِنْدَ الْمَحْزُونِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसा मिनल अदबे इज़्हारुल फ़रहे इंदल महज़ूने
आप (अ) ने फ़रमाया: किसी पीड़ित और दुखी व्यक्ति की उपस्थिति में ख़ुशी और आनंद व्यक्त करना शिष्टाचार और मानवीय तथा इस्लामी नैतिकता नही है।
29- दूसरों के हुक़ूक़ पहचानना
قالَ (علیه السلام) : أعْرَفُ النّاسِ بِحُقُوقِ إخْوانِهِ، وَأشَدُّهُمْ قَضاءً لَها، أعْظَمُهُمْ عِنْدَاللهِ شَأناً क़ाला अलैहिस्सलामोः आरफ़ुन्नासे बेहुक़ूक़े इख़वानेहि, व अशद्दोहुम क़ज़ाअन लहा, आज़मोहुम इंदल्लाहे शानन
इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने ही लोगों के अधिकारों को पहचानता और उनका सम्मान करता है और उनकी कठिनाइयों और ज़रूरतों को दूर करता है, उसे अल्लाह के यहाँ महानता और एक विशेष अवसर प्राप्त होगा।
30- इमाम का सम्मान
قالَ (علیه السلام) : اِتَّقُوا اللهُ وَ کُونُوا زَیْناً وَ لا تَکُونُوا شَیْناً، جُرُّوا إلَیْنا کُلَّ مَوَّدَه، وَ اَدْفَعُوا عَنّا کُلُّ قَبیح، فَإنَّهُ ما قیلَ فینا مِنْ حُسْن فَنَحْنُ أهْلُهُ، وَ ما قیلَ فینا مِنْ سُوء فَما نَحْنُ کَذلِکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः इत्तक़ुल्लाहो व कूनू जैनन वला तकूनू शयनन, जुर्रू इलैना कुल्ला मव्वदा, अदफ़ऊ अन्ना कुल्लो क़बीह, फ़इन्नहू मा क़ीला फ़ीना मिन हुस्ने फ़नहनो अहलोहू, व मा क़ीला फ़ीना मिन शूइन फ़मा नहनो कज़ालेका
आपने फ़रमाया: हर मामले में अल्लाह के तक़वा का सम्मान करो, और ज़ीनत बनो, और न ही शर्म का कारण बनो, लोगों को मेरे प्रेम और रुचि की ओर आकर्षित करने की कोशिश करो, और बुरी चीज़ों को मुझसे दूर रखो; वे हमारे गुणों के बारे में जो कुछ कहते हैं वह सही है और हम हर प्रकार के दोषों से मुक्त होंगे।
31- धर्मी विद्वान
قالَ (علیه السلام) : یَأتی عُلَماءُ شیعَتِنَاالْقَوّامُونَ لِضُعَفاءِ مُحِبّینا وَ أهْلِ وِلایَتِنا یَوْمَ الْقِیامَهِ، وَالاْنْوارُ تَسْطَعُ مِنْ تیجانِهِمْ عَلی رَأسِ کُلِّ واحِد مِنْهُمْ تاجُ بَهاء، قَدِ انْبَثَّتْ تِلْکَ الاْنْوارُ فی عَرَصاتِ الْقِیامَهِ وَ دُورِها مَسیرَهَ ثَلاثِمِائَهِ ألْفِ سَنَه क़ाला अलैहिस्सलामोः याती उलामाओ शीअतेनल कव्वामूना लेज़ोअफ़ाए मोहिब्बीना व अहले विलायतेना यौमल क़यामते, वल अनवारो तस्तओ मिन तीजानेहिम अला रासे कुल्ले वाहेदिन मिनहुम ताजो बहाए, क़दिन बस्सत तिलकल अनवारो फ़ी अरसातिल क़यामते व दूरेहा मसीरहा सलासेमेअते अलफ़े सनातिन
इमाम (अ) ने फ़रमाया: वे शिया विद्वान और विद्वान जिन्होंने मार्गदर्शन और कठिनाइयों के निवारण के लिए मेरे मित्रों और समर्थकों की तलाश की है, क़यामत के दिन महशर रेगिस्तान में ऐसी स्थिति में प्रवेश करेंगे कि उनके सिरों पर सम्मान का मुकुट रखा जाएगा और प्रकाश पूरे स्थान को प्रकाशित करेगा और महशर के सभी लोग उस प्रकाश से लाभान्वित होंगे।
स्रोत:
1-उसूले काफ़ी, भाग 1, पेज 519, हदीस 11
2- हदीक़ा तुश शिया, भाग 2, पेज 194, वाफ़, भाग 4, पेज 177, हदीस 42
3- मुस्तद्रिक अल-वसाइल, भाग 11, पेज 183, हदीस 12690
4- तोहफ़ उल उक़ूल, पेज 489, पेज 13, बिहार उल अनवार, भाग 75, पेज 374, हदीस 26, अग्तान तबरसी: भाग 2, पेज 517, हदीस 340
5- तफसीर इमाम हसन अस्करी (स), पेज 345, हदीस 226
इमाम हसन अस्करी (अ) ज्ञान, धैर्य और प्रतिरोध के एक उज्ज्वल प्रतीक हैं
ईरान के खंदाब स्थित महदिया मदरसा की निदेशक सुश्री सुसान गूदरज़ी ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने अब्बासी सरकार के कड़े दबाव और कड़ी निगरानी के बावजूद शैक्षणिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से इस्लाम की रक्षा और प्रचार में एक अद्वितीय भूमिका निभाई।
ईरान के खंदाब स्थित महदिया मदरसा की निदेशक सुश्री सुसान गूदरज़ी ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने अब्बासी सरकार के कड़े दबाव और कड़ी निगरानी के बावजूद शैक्षणिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से इस्लाम की रक्षा और प्रचार में एक अद्वितीय भूमिका निभाई। रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी शहर खुंदब स्थित महदिया सेमिनरी की निदेशक सुश्री सुज़ैन गोदरज़ी ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने अब्बासी सरकार के भारी दबाव और कड़ी निगरानी के बावजूद अपनी वैज्ञानिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से इस्लाम की रक्षा और प्रचार में अद्वितीय भूमिका निभाई।
अराक हौज़ा न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए, सुश्री गूदरज़ी ने इमाम हसन अस्करी (अ) को उनके पावन जन्म पर बधाई दी और कहा कि वे इमाम अली नक़ी (अ) के पुत्र और इमाम महदी (अ) के पिता हैं। बारहवें इमाम का जन्म 8 रबीअ उल-अव्वल 232 हिजरी को मदीना में हुआ था। उनका नाम हसन रखा गया और "अस्करी" उपाधि उनके लंबे प्रवास के कारण समारा शहर के नाम पर प्रसिद्ध हुई, जो उस समय अब्बासियों का सैन्य और सरकारी केंद्र था।
उन्होंने कहा कि उनकी माँ मजीदा एक नेक और सदाचारी महिला थीं जिन्हें "हदीस" के नाम से याद किया जाता है और कुछ रिवायतों में उन्हें "सुज़ान" कहा गया है।
महदिया मदरसा के प्रमुख ने आगे कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने न केवल शैक्षणिक और नैतिक क्षेत्र में अपना स्थान स्थापित किया, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अहले-बैत (अ) के शियो का मार्गदर्शन करने का अपना कर्तव्य भी निभाया। उन्होंने ऐसे छात्रों को प्रशिक्षित किया जिन्होंने शिया धर्म और इस्लामी शिक्षाओं की शैक्षणिक पूंजी को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने में एक मौलिक भूमिका निभाई।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने सबसे कठिन परिस्थितियों में भी अपने अनुयायियों के साथ एक व्यवस्थित और गुप्त संचार प्रणाली स्थापित की ताकि अब्बासियों के कड़े प्रतिबंधों के बावजूद शियाओं का सही मार्गदर्शन और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं की सुरक्षा जारी रहे।
सुश्री गूदरजी ने यह कहते हुए समापन किया कि इमाम हसन असकरी (अ) का नाम आज भी मुसलमानों के लिए ज्ञान, धैर्य और प्रतिरोध का एक उज्ज्वल प्रतीक है, और उनकी जीवनी सभी विश्वासियों के लिए मार्गदर्शन का एक प्रकाश स्तंभ है।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शियों से उम्मीदें
हज़रत इमाम हसन अस्करी अ.स. की कुछ अहादीस जिनमें आप ने शियों के सिफ़ात बयान फ़रमाए हैं, जिनके जानने और उन पर अमल करने का नतीजा दुनिया व आख़िरत में सआदत व कामयाबी है।
जिस तरह एक मेहरबान बाप अपनी तमाम शफ़क़तों और मोहब्बतों को अपनी औलाद पर निछावर कर देता है ताकि उसे मुस्तक़बिल (भविष्य) में किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। और उसकी इन मोहब्बतों और शफ़क़तों में किसी हालत, वक़्त और मौसम में न सिर्फ़ कमी नहीं आती बल्कि ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात तक उसे अपने बच्चों की फ़िक्र रहती है।
लेकिन औलाद पर अपनी हस्ती मिटा देने वाले बाप को भी औलाद से कुछ तवक्क़ुआत (उम्मीदें) होती हैं, अगरचे इन उम्मीदों में भी खुद औलाद का ही फ़ायदा होता है, जैसे वह अच्छी तालीम व तरबियत हासिल कर ले और नेक और सालेह बन जाए वग़ैरह। और जब औलाद अपने मां–बाप की उम्मीदों पर खरी उतरती है तो वह खुश होते हैं और अगर ख़ुदा न ख़ास्ता औलाद सही न निकली तो उन्हें रंज व ग़म और शर्मिंदगी होती है।
रहमान व रहीम परवरदिगार ने जिन ज़वात-ए-मुक़द्दसा को अपनी मख़लूक़ात पर हुज्जत और अपना वली व ख़लीफ़ा बना कर लोगों का इमाम बनाया है, उनको अपने चाहने वालों और शियाओं से वालिदैन से कहीं ज़्यादा मोहब्बत और मां–बाप से कहीं ज़्यादा उनकी फ़िक्र होती है। और उनको भी अपने शियों से कुछ उम्मीदें और तवक्क़ुआत होती हैं।
जिस तरह वालिदैन की उम्मीदें खुद औलाद के लिए मुफ़ीद होती हैं, वैसे ही इमाम मासूम की उम्मत से जो उम्मीदें हैं, वह खुद उम्मत के लिए फ़ायदेमंद हैं। और जब कोई इन उम्मीदों पर खरा उतरता है तो मासूमीन अ.स. खुश होते हैं और अगर खरा नहीं उतरता तो ग़मगीन होते हैं।
ज़ैल में हज़रत इमाम हसन अस्करी अ.स. की कुछ अहादीस शरीफ़ पेश की जा रही हैं जिनमें आप ने शियों के सिफ़ात बयान फ़रमाए हैं, जिनके जानने और उन पर अमल करने का नतीजा दुनिया व आख़िरत में सआदत व कामयाबी है।
- (अमीरुल मोमिनीन इमाम) अली (अलैहिस्सलाम) के शिया वही हैं जो अपने दीनी भाई को अपने ऊपर तरजीह देते हैं, चाहे खुद क्यों न मोहताज हों। अल्लाह ने जिन (कामों) से मना किया है उसे अंजाम नहीं देते और जिसका हुक्म दिया है उसे नहीं छोड़ते। और (अमीरुल मोमिनीन इमाम) अली (अलैहिस्सलाम) के शिया वही हैं जो अपने मोमिन भाई का इकराम व एहतराम करते हैं।
- मोमिन की पाँच अलामतें हैं:
(1) 51 रकअत नमाज़,
(2) ज़ियारत-ए-अरबईन,
(3) दाएँ हाथ में अंगूठी पहनना,
(4) ख़ाक पर सज्दा करना,
(5) "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम" ऊँची आवाज़ में पढ़ना। - तुम्हें चाहिए कि सोचो और फ़िक्र करो क्योंकि इसमें बा-बसीरत दिलों की हयात और हिकमत के दरवाजों की कुंजियाँ हैं।
- इबादत रोज़ा व नमाज़ की कसरत का नाम नहीं बल्कि अल्लाह के अम्र (हुक्म) में ज़्यादा सोचने और फ़िक्र करने का नाम है।
क़ुरआन करीम में भी तफ़क्कुर व तदब्बुर की दावत दी गई है और मासूमीन अ.स. ने भी इसी पर जोर दिया है।
हज़रत अली अ.स. ने फ़रमाया: “अमल से पहले उसकी तदबीर तुम्हें शर्मिंदगी से महफ़ूज़ रखेग!"
आपने एक और जगह फ़रमाया: “फ़िक्र साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ आईना है!"
हज़रत लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत की: “ए मेरे बेटे! जब पेट भर जाता है तो फ़िक्र सो जाती है, हिकमत की सरगर्मी रुक जाती है और बदन अल्लाह की इबादत में सुस्ती महसूस करते हैं।”
इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. ने फ़रमाया: “अल्लाह और उसकी क़ुदरत में फ़िक्र सबसे अफ़ज़ल इबादत है!"
आपने ही फ़रमाया: "एक घंटे की फ़िक्र हज़ार बरस की इबादत से अफ़ज़ल (बेहतर) है!"
आयतुल्लाहिल उज़मा ब्रोजर्दी र.ह. से पूछा गया कि यह फ़िक्र कैसी हो? आपने फ़रमाया:
“वैसी फ़िक्र जैसी शबे आशूर जनाब हुर अ.स. ने की थी।”
अगर फ़िक्र नेक हो तो एक गुनाहगार को लम्हों में नजात मिल जाती है और अगर फ़िक्र में बुराई हो तो हज़ारों बरस की इबादत भी किसी काम नहीं आती और इंसान शैतान की तरह मरदूद और मलऊन हो जाता है।
इमाम हसन अस्करी (अ) का जन्म / उनके जीवन और जीवनी पर एक नज़र
हुज्जतुल इस्लाम इस्माइली चाकी ने कहा: पवित्र इमामों (अ) ने, विशेष रूप से इमाम हसन अस्करी (अ) ने प्रतिनिधि व्यवस्था स्थापित की थी ताकि अहले-बैत (अ) के मित्र और अनुयायी अपने इमाम से कभी अलग न हों, बल्कि इस माध्यम से वे हमेशा अपने प्रश्नों, अनुरोधों और आवश्यकताओं को हज़रत मुहम्मद (स) तक पहुँचा सकें।
हज़रत हसन बिन अली बिन मुहम्मद (अ), जिन्हें इमाम हसन अस्करी (अ) के नाम से जाना जाता है, बारहवीं शियाओं के ग्यारहवें इमाम हैं। उन्होंने छह वर्षों तक इमामत का पद संभाला। वे इमाम हादी (अ) के पुत्र और इमाम महदी (अ) के पिता हैं।
इमाम हसन अस्करी (अ) के मुबारक जन्म के अवसर पर, हुज्जतुल इस्लाम मुहम्मद इस्माइली चाफ़ी (इल्मिया के हौज़ा के विशेषज्ञ और शोधकर्ता) के साथ एक बातचीत हुई।
जन्म और जीवनी
ग्यारहवें इमाम का नाम मुबारक हसन इब्न अली था और उनका उपनाम अबू मुहम्मद था। उनकी उपाधियों में समित, हादी, रफ़ीक़, ज़की और नक़ी शामिल हैं।
उनका जन्म 10 रबीउल-थानी 232 हिजरी को मदीना में हुआ था।
चूँकि इमाम रज़ा (अ) (आठवें इमाम) इमामत का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गए थे, इसलिए इमाम जवाद, इमाम हादी और इमाम हसन अस्करी (अ) को "इब्न अल-रिदा" भी कहा जाता था।
उनकी माँ मजीदा का नाम सलिल था, जो एक बहुत ही धर्मपरायण, धार्मिक और ज्ञानी महिला थीं। (सफीना अल-बिहार, खंड 2, पृष्ठ 200)
शेख तुसी लिखते हैं: इमाम हसन अस्करी (अ) सप्ताह में दो बार (सोमवार और गुरुवार) पाएतख्त आते थे। जब वे आते थे, तो इतनी बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो जाते थे कि सड़कें जाम हो जाती थीं और हर कोई उनके उज्ज्वल चेहरे को देखने के लिए कतारों में खड़ा हो जाता था। (अल-ग़ैबा, पृष्ठ 216)
इमाम हसन अस्करी (अ) और इमाम महदी (अ) का परिचय
इमाम हसन अस्करी (अ) ने अपने बेटे, इमाम महदी (अ) की इमामत को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया।
? कभी-कभी वह अपने बेटे को किसी खास साथी को दिखाते थे, जैसा कि उन्होंने अहमद इब्न इसहाक कुम्मी को दिखाया था। वह पूछता था: "तुम्हारे बाद इमाम कौन होगा?" इमाम ने पर्दे के पीछे से एक तीन साल के बच्चे को बाहर निकाला, जिसका चेहरा पूर्णिमा के चाँद की तरह चमक रहा था, और कहा: "अगर तुम्हारा दर्जा इतना ऊँचा न होता, तो मैं तुम्हें अपना यह बेटा न दिखाता।" (कमालुद्दीन, खंड 2, पृष्ठ 384)
? कभी-कभी वह अपने बेटे को शक दूर करने के लिए साथियों के सामने ले आते थे। (बिहार अल-अनवर, खंड 51, पृष्ठ 6)
? उन्होंने अपने बेटे के लिए कई बार अक़ीक़ा करवाया ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग जान सकें कि अल्लाह ने उन्हें एक बेटा दिया है। (कमालुद्दीन, खंड 2, पृष्ठ 431)
वकालत की व्यवस्था और उसकी भूमिका
इमाम हसन असकरी (अ) ने वकालत की व्यवस्था को मज़बूत किया ताकि शिया हमेशा इमाम के संपर्क में रह सकें। ये वकालत मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे और शिया इनके ज़रिए इमाम तक अपनी समस्याएँ और सवाल पहुँचाते थे।
उदाहरण के लिए, अली इब्न बाबवेह कुम्मी ने वकालात के माध्यम से उस समय के इमाम (अ) को संतान प्राप्ति की प्रार्थना की। इस प्रार्थना के परिणामस्वरूप, प्रसिद्ध विधिवेत्ता शेख सदुक (मुहम्मद इब्न अली इब्न बाबवेह) का जन्म हुआ। (कमालुद्दीन, खंड 2, पृष्ठ 503)
विशेष प्रतिनिधिमंडल (चार विशेष प्रतिनिधिमंडल) वास्तव में शियाओं को प्रमुख गुप्तकाल के लिए तैयार करने का एक साधन था ताकि वे प्रत्यक्ष इमाम से वंचित होने के बाद धीरे-धीरे सामान्य प्रतिनिधियों (अर्थात विधिवेत्ताओं और संदर्भों) की ओर रुख करें।
इमाम हसन असकरी (अ) की कुछ हदीसें
हदीस 1: इमाम के सेवक अबू हमज़ा नासिर ने बताया कि उन्होंने बार-बार इमाम को हर दास से उसकी भाषा (तुर्की, रोमन, अरबी) में बात करते देखा। मैं चकित रह गया। इमाम ने कहा: "ईश्वर अपनी गवाही सभी भाषाओं और राष्ट्रों को बताता है ताकि वह सभी के लिए एक स्पष्ट गवाही बन जाए। अगर यह विशेषता न होती, तो इमाम और दूसरों के बीच कोई अंतर न होता।" (अल-काफ़ी, खंड 1, पृष्ठ 509)
हदीस 2: "जो कोई अल्लाह का साझी ठहराता है, वह लोगों से डरता है।" (नुज़हत अल-नादिर, पृष्ठ 146, आयत 11)
हदीस 3: "जो कोई झूठ की पीठ पर सवार होगा, वह पछतावे के घर में गिरेगा।" (नुज़हा अल-नज़ीर, पृष्ठ 146, आयत 19)
हदीस 4: लालची व्यक्ति अपने उपकार में देरी नहीं करता और उसे इस बात का एहसास नहीं होता कि उसके लिए क्या नियत नहीं था। जो भलाई देता है, अल्लाह उसे देगा, और जो बुराई को रोकता है, अल्लाह उसे रोकेगा। "किसी की रोज़ी-रोटी नहीं छूटेगी, चाहे वह आलसी ही क्यों न हो। और किसी भी लालची को उसके भाग्य से ज़्यादा नहीं मिलता। जिसे भलाई मिलती है, उसे अल्लाह देता है और जो बुराई से बच जाता है, उसे भी अल्लाह की सुरक्षा प्राप्त होती है।"
(नुज़हत अल-नज़र, पृष्ठ 146, आयत 20)
हदीस 5: दो गुण जो किसी भी चीज़ से बढ़कर नहीं हैं: अल्लाह पर ईमान और अपने भाइयों का भला करना। "दो गुण हैं जो किसी भी चीज़ से बढ़कर नहीं हैं: अल्लाह पर ईमान और अपने भाइयों का भला करना।" (तहफ़ अल-उक़ोल, पृष्ठ 489)
सारांश
इमाम हसन अल-अस्करी (अ) का जीवन छोटा लेकिन प्रभावशाली रहा। उन्होंने अपने बेटे इमाम महदी (अ) की इमामत को स्पष्ट किया, प्रतिनिधि व्यवस्था को मज़बूत किया और शियाओं को गुप्तकाल के लिए तैयार किया। उनकी बातें और हदीसें आज भी मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक हैं।
हथियार जमा करना मुमकिन नहीं।हमास
हमास के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि संगठन द्वारा संभवत डोनाल्ड ट्रंप के गाज़ा शांति प्रस्ताव को खारिज कर दिया जाएगा क्योंकि यह इज़राइल के हितों की पूर्ति करता है और फिलिस्तीनी जनता के हितों की उपेक्षा करता है।
वैश्विक मीडिया के हवाले से बताया है कि हमास के लिए ट्रंप की प्रस्ताव की एक महत्वपूर्ण शर्त यानी निःशस्त्र होना और हथियार डालने की मांग को मानना संभव नहीं होगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार, हमास गाज़ा में एक अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल की तैनाती का भी विरोध कर रहा है, जिसे वह एक नए प्रकार का कब्जा मानता है।
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को व्हाइट हाउस में हुई बातचीत के दौरान ट्रंप के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था हालांकि, हमास ने अभी तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है।
हमास का ट्रंप की शांति योजना को खारिज करना एक निर्णायक कदम है यह योजना, जिसे "द सेंचुरी डील" भी कहा जाता है, को फिलिस्तीनी पक्ष द्वारा लगभग सार्वभौमिक रूप से खारिज कर दिया गया है क्योंकि यह इजरायल की मुख्य मांगों को पूरा करती प्रतीत होती है, जबकि फिलिस्तीनियों के मूल अधिकारों की अनदेखी करती है।
हमास का यह रुख दर्शाता है कि कोई भी शांति योजना जो फिलिस्तीनियों की मूलभूत मांगों एक स्वतंत्र और संप्रभु राज्य, यरुशलम की राजधानी, और शरणार्थियों के अधिकार को संबोधित नहीं करती, उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह फिलिस्तीनी इजरायल संघर्ष में एक बड़ी बाधा बनी हुई है, क्योंकि हमास गाजा में एक प्रमुख शक्ति है और उसकी सहमति के बिना कोई भी समझौता लागू करना मुश्किल होगा।
विद्वानों की बहसों में "परस्पर सम्मान" और "जेदाले अहसन" ज़रूरी हैं
हज़रत आयतुल्लाह सुब्हानी ने मरहूम अल्लामा मजलिसी (अ) का उदाहरण देते हुए, जिन्होंने चार सौ लोगों के सहयोग से अपनी एक रचना पूरी की थी, कहा: "परस्पर सम्मान" और "जिदाले अहसन" विद्वानों की बहसों में ज़रूरी हैं।
हज़रत आयतुल्लाह हाज शेख जाफ़र सुब्हानी ने क़ुम स्थित बाक़िर अल-उलूम (अ) शोध संस्थान में विद्वानों की पत्रिका "उम्माह और सभ्यता" के विमोचन के अवसर पर, जो इस्लामी उम्माह की धुरी है और शिया और सुन्नी विद्वानों की भागीदारी से प्रकाशित होती है, इस पहल की प्रशंसा की और कहा: विद्वानों की बहसों में "परस्पर सम्मान" और "जिदाले अहसन" का पालन किया जाना चाहिए।
उन्होंने पवित्र आयत *وَجَادِلْهُم بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ* का हवाला दिया और कहा: "नींव और स्रोतों को त्यागना "अच्छी बहस" है।
विद्वानों की बहसों में "परस्पर सम्मान" और "जेदाले अहसन" ज़रूरी हैं
मरजा ए तकलीद ने हमें मरहूम अयातुल्ला बुरुजर्दी (अ) के समय में दार अल-तकरीब के सफल अनुभव की याद दिला दी, जिसमें उन्होंने इस केंद्र की नींव को सुरक्षित रखते हुए आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से सहायता की थी।
हज़रत आयतुल्लाह सुब्हानी ने आगे कहा: सामूहिक कार्य में अधिक लाभ और कम हानि होती है और यह निश्चित रूप से व्यक्तिगत कार्य से बेहतर है। उन्होंने अल्लामा मजलिसी (अ) का उदाहरण दिया और कहा: उन्होंने अपना एक यह कार्य चार सौ लोगों की सहायता से किया जाता है, जो सामूहिक कार्य के आशीर्वाद का प्रकटीकरण है।
यूरोप के छात्र संगठनों ने चेतावनी दी अगर 'फ्लोटिला' को रोका गया तो वे कक्षाएं बंद कर देंगे
यूरोपीय संसद की फ़्रांसीसी फ़िलिस्तीनी सांसद रीमा हसन ने फ़्रांस के छात्रो का एक साझा बयान शेयर किया जिसमे फ़्लोटिला के समर्थन मे आलमी यकजहती का आहान किया गया है।
फ्लोटिला ग़ज़्ज़ा की नाकेबंदी तोड़ने के लिए रवाना हुई नौकाओं का बेड़ा है, जो पहले ही ग़ज़्ज़ा के करीब पहुंच चुका है। उन पर सवार कार्यकर्ताओं ने वहां धमाकों और ड्रोन की मौजूदगी की खबरें दी हैं। फ्रांस, इटली, जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड्स और अन्य देशों के छात्र संगठन 'ग्लोबल रेसिस्टेंस फ्लोटिला' का समर्थन कर एकजुट हो गए हैं।
फ्रांसीसी छात्रों ने अपने एक संयुक्त बयान में कहा, "हम अपनी सरकारों को बताना चाहते हैं: अगर फ्लोटिला रोकी गई, तो हम कक्षाएं बंद कर देंगे।" यूरोपीय संसद की फ़्रांसीसी-फ़िलिस्तीनी सदस्य रिमा हसन ने भी इस समर्थन में वैश्विक एकजुटता का अनुरोध किया और अन्य छात्र संगठनों से इसमें शामिल होने की अपील की।
छात्रों ने विश्वविद्यालयों और हथियार बनाने वाली कंपनियों के बीच संबंधों की सख्त निंदा की और इस्राइल के साथ सभी रिश्ते खत्म करने की मांग की। साथ ही, उन्होंने फ़िलिस्तीनी शरणार्थी छात्रों के बिना शर्त पंजीकरण और स्वागत की मांग की। बयान में कहा गया, "फिलिस्तीन का समर्थन कोई अपराध नहीं है!" छात्रों ने फिलिस्तीन के पक्षधर छात्रों और स्टाफ के खिलाफ कानूनी व प्रशासनिक कार्रवाई रद्द करने की भी मांग की।
इटली के नेपल्स और स्पेन के बार्सिलोना के छात्रों ने भी कक्षाएँ बंद करने की चेतावनी दी है। स्विट्जरलैंड के जेनेवा और बार्सिलोना के बंदरगाहों के कार्यकर्ताओं ने भी समर्थन जताते हुए चेतावनी दी है कि अगर फ्लोटिला रोकी गई तो वे पूरे यूरोप को बंद कर देंगे।
'ग्लोबल रेसिस्टेंस फ्लोटिला' अब गाजा से केवल 366 समुद्री मील दूर है। इस बेड़े में 40 से ज्यादा जहाज शामिल हैं। इसे यूनान, इटली, स्पेन और तुर्की जैसे कई देशों की नजर रखी हुई है। तुर्की के कोरजू एयरबेस से ड्रोन तीन दिनों से लगातार इसके ऊपर चक्कर लगा रहे हैं। आयोजकों ने कहा कि जैसे- जैसे फ्लोटिला अधिक खतरनाक इलाके में प्रवेश कर रहा है, वैश्विक निगरानी और एकजुटता की जरूरत बढ़ रही है। दूसरी ओर, इजराइल ने इसे रोकने का संकल्प लिया है और दावा करता है कि जहाज पर सवार लोग कानूनी नौसैनिक नाकेबंदी का उल्लंघन कर रहे हैं।













