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क्यों ईरानी यहूदी पलायन नहीं कर रहे हैं?
इस्राईल के ख़ुफ़िया विभाग का एक पूर्व अफ़सर और ईरानी मामलों का विश्लेषक व विशेषज्ञ ने स्वीकार किया है कि ईरान का यहूदी समाज अपने सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान पर गर्व करता है।
यद्यपि पश्चिमी संचार माध्यमों ने विस्तृत व बड़े पैमाने पर इस्लामी गणतंत्र ईरान पर प्रचारिक हमला कर रखा है और वे इस प्रकार की ख़बरें प्रकाशित करते हैं कि ईरानी यहूदियों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है परंतु वास्तविकता कुछ और है और ईरानी यहूदी दूसरे ईरानियों के साथ घुलकर शांतिपूर्ण ढंग से ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं और वे अपनी धरोहरों पर गर्व करते हैं।
यहूदियों के संचार माध्यम JNS ने यहूदियों और इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ उनके संबंधों के बारे में लिखा है कि पश्चिमी संचार माध्यम ईरान में रहने वाले यहूदी समाज के बारे में नकारात्मक ख़बरें प्रकाशित करते- रहते हैं परंतु ईरान में रहने वाले यहूदी समाज में किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं है।
पार्सटुडे ने ऑनलाइन न्यूज़ एजेन्सी के हवाले से बताया है कि एक यहूदी विश्लेषक और इस्राईली खुफ़िया सेवा का एक पूर्व अफ़सर डेविड नीसान कहता है कि इस विषय को समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि ईरानी यहूदियों की पहचान ईरान से जुड़ी हुई है।
ज्ञात रहे कि डेविड नीसान नामक यहूदी का जन्म तेहरान में हुआ है और वह तेहरान ही में पला-बढ़ा है और उसने गत 16 महीनों के दौरान ईरान में रहने वाले यहूदी समाज के हालात पर नज़र डाली है।
वह ईरान में रहने वाले यहूदी समाज के बारे में लिखता है कि वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफ़लता से लेकर अब तक काफ़ी यहूदी ईरान से जा चुके हैं परंतु उसके बावजूद ईरान में रहने वाला यहूदी समाज पूरी तरह यहूदी शैली को सुरक्षित किये हुए है और सरकार की ओर से उनके ख़िलाफ़ किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाती है।
ईरान में यहूदियों के 30 उपासना स्थल और स्कूल व शिक्षाकेन्द्र हैं और उन्हें किसी प्रकार से कष्ट का सामना नहीं है और उन्हें किसी प्रकार के हस्तक्षेप के बिना अपनी शैली में ज़िन्दगी करने का पूरा अधिकार है। ईरानी संविधान में उनके मौलिक व बुनियादी अधिकार सुरक्षित हैं और ईरानी संसद में उनका प्रतिनिधि भी है।
लंबा व पुराना इतिहासः ईरान का यहूदी समाज दुनिया का एक प्राचीनतम समाज है और उसके इतिहास का संबंध 2500 साल से अधिक है। ईरान में रहने वाले यहूदी विभिन्न ईरानी सरकारों में ईरानी समाज के महत्वपूर्ण भाग व हिस्सा रहे हैं और उनमें से बहुत से यहूदियों का सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष स्थान था।
2- धार्मिक आज़ादीः लगभग समस्त कालों और सरकारों में ईरान के यहूदियों को धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में पहचाना जाता था परंतु उनकी धार्मिक आज़ादी पूरी तरह सुरक्षित थी।
3- सांस्कृतिक और आर्थिक विकासः ईरानी यहूदी दूसरी संस्कृतियों और समाजों के साथ लेनदेन के कारण आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों सहित विभिन्न भागों व क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं और आज भी वे ईरानी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
4- धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षाः ईरानी यहूदी अब भी अपने धार्मिक मूल्यों व परम्पराओं के प्रति कटिबद्ध हैं और ईरान के बहुत से शहरों और गांवों में यहूदी समाज मौजूद है और यहूदियों ने अपनी परम्पराओं को सुरक्षित कर रखा है।
5- सामाजिक और राजनीतिक स्थितिः बहुत से यहूदी ईरान की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के उचित व अच्छी होने की वजह से ईरान से पलायन के इच्छुक नहीं हैं।
सारांश यह कि ईरानी यहूदी समाज किसी प्रकार की चुनौती के बिना देश में शांतिपूर्ण ढंग से रह रहा है और उसे ईरानी इतिहास और संस्कृति का एक भाग समझा जाता है
कौन ज़िन्दगी से सबसे कम आनंद उठाता है?
हसद व जलन एक बुरी नैतिक बुराई है। हसद का अर्थ यह है कि इंसान उस इंसान से नेअमत के ख़त्म होने की तमन्ना करे जिसे अल्लाह ने कोई नेअमत दे रखी है।
जो इंसान जलता या ईर्ष्या करता है वह दूसरों को खुश नहीं देख सकता है। वह उस चीज़ के ख़त्म होने की आकांक्षा करता है जिसकी वजह से सामने वाला ख़ुश होता है। इसी तरह हसद करने वाला व्यक्ति नेअमत के ही ख़त्म होने की तमन्ना करता है ताकि कोई भी उससे लाभ न उठा सके।
हसद ऐसी बीमारी है जो इंसान की पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है और इंसान से आराम व सुकून छीन लेती है। यहां पर हम हसद के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कुछ कथनों का वर्णन कर रहे हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं
हसद करने वाला इंसान सबसे कम आनंद उठाता है।
पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं
हसद शैताना का सबसे बड़ा जाल है।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
हसद करने वाला इंसान जिससे हसद करता है उसे नुक़सान पहुंचाने से पहले ख़ुद को नुक़सान पहुंचाता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
हसद करने वाला इंसान हमेशा बीमार रहता है यद्यपि वह शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ ही क्यों न हो।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
हसद करने वाले इंसान की तीन अलामते हैं" जिससे जलता है उसके पीठ पीछे उसकी ग़ीबत करता है और जब वह सामने होता है तो उसकी चापलूसी करता है और मुसीबत के वक़्त उसकी आलोचना व निंदा करता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
जो व्यक्ति हसद करना छोड़ दे तो लोग उससे मोहब्बत करने लगेंगे।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं"
हसद करने से परहेज़ करो और यह जान लो कि हसद करने का असर ख़ुद तुम्हारे अंदर ज़ाहिर होगा और तुम्हारे दुश्मन के अंदर उसका कुछ असर नहीं हो
शायरे अहलेबैत डाक्टर शऊर आज़मी साहब का निधन
शायरे अहलेबैत डाक्टर शऊर आज़मी साहब का मुम्बई में हार्ट अटैक से इन्तेकाल हो गया है।
हिंदुस्तान के मशहूर शायरे अहलेबैत डाक्टर शऊर आज़मी साहब का मुम्बई में हार्ट अटैक से इन्तेकाल हो गया है।
रमजान अलमुबारक में सफाई, प्रकाश व पानी की हो व्यवस्था
आम आदमी पार्टी ने नगरायुक्त को पत्र लिखकर रमजान के महीने में मस्जिदों और मुस्लिम बस्तियों में सफाई, प्रकाश और जलापूर्ति सुनिश्चित करने की मांग की है।
आम आदमी पार्टी (AAP) ने रमजान के पवित्र महीने के दौरान मस्जिदों और मुस्लिम बस्तियों में सफाई, प्रकाश और जलापूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए नगरायुक्त को पत्र लिखा है।
पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, शानू करैशी, ने बताया कि रमजान मुस्लिम समुदाय के लिए इबादत का महत्वपूर्ण महीना है और इस दौरान नगर निगम को मुस्लिम बस्तियों और गली मोहल्लों में आवश्यक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना चाहिए।
इस मांग के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि रमजान के दौरान मुस्लिम समुदाय को किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े, और वे अपनी धार्मिक गतिविधियों को सुचारू रूप से संपन्न कर सकें।
आम आदमी पार्टी ने नगर निगम से विशेष ध्यान देने की अपील की है ताकि मस्जिदों और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में साफ-सफाई, पर्याप्त रोशनी और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
मौलाना सैयद नईम आबदी के निधन पर शिया उलेमा बोर्ड महाराष्ट्र का शोक संदेश
भारत के प्रसिद्ध खतीब के निधन पर मौलाना मोहम्मद असलम रिजवी पुणे भारत ने गहरे दु:ख और अफसोस का इज़हार करते हुए ताज़ियत पेश की है।
भारत के प्रसिद्ध खतीब के निधन पर शिया उलेमा बोर्ड महाराष्ट्र के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद असलम रिजवी ने गहरे दुख और अफसोस का इज़हार करते हुए ताज़ियत पेश की है।
उन्होंने कहा कि आलम ए जलील,खतीब ए आले मुहम्मद मौलाना सैयद नईम अब्बास आबदी ने दुनिया ए इल्म और खिताबत को मघमूम और सूगवार कर दिया।
उन्होंने आगे कहा कि मौलाना मरहूम की बेबाक शख्सियत पर जिस तरह कुछ नादान लोगों ने तन्क़ीद की उसी तरह साहीब-ए-फ़िक़्र ओ शऊर ने उनकी शख्सियत को हमेशा सराहा हैं।
मौलाना मोहम्मद असलम रिजवी ने कहा कि मरहूम विलायत-ए-फक़ीह के हिमायती थे इसलिए रहबर-ए-इन्कलाब के दुश्मनों के ख़ार-ए-चश्म बन चुके थे।
उन्होंने कहा कि हम इस सानहे पर इमाम ए ज़माना रहबर-ए-इन्कलाब-ए-इस्लामी आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली हुसैनी खामनेई और तमाम आशिक़ान-ए-मोहम्मद व आल-ए-मोहम्मद की खिदमत में ताज़ियत पेश करते हैं।
मुक़ावमत ने खबीस यहूदी शासन को बातचीत करने पर मजबूर कर दिया
ईरान के शहर दीवंदरह के अहले सुन्नत इमाम ए जुमआ ने कहा,शोहद ए मुक़ावमत की शहादत के बाद मुक़ावमत का महवर और भी ताकतवर होकर सामने आया और खबीस यहूदी राज्य को बातचीत पर मजबूर कर दिया।
शहर दीवंदरह के अहले सुन्नत इमामे जुमा मौलवी जलाल मुरादी ने शहदा ए मुक़ावमत (प्रतिरोध के शहीदों) की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए शहीद सैयद हसन नसरल्लाह और शहीद सैयद हाशिम सफीउद्दीन के भव्य जनाज़े का ज़िक्र किया और कहा,शहीद सैयद नसरल्लाह, हनिया, सनवार, और सरदार मुक़ावमत हाजी क़ासिम सुलेमानी क़ुद्स के शहीद हैं जिन्होंने अपनी जानों का नज़्राना बैतुल मुक़द्दस (यरुशलम) की आज़ादी के लिए पेश किया।
उन्होंने और कहा,दुश्मन यह समझ रहा था कि इन महान शख्सियतों और नेताओं की शहादत से यह तहरीक (आंदोलन) कमजोर या खत्म हो जाएगी लेकिन दुनिया ने देखा कि ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।
इमाम ए जुमा दीवंदरह ने कहा,शहदा ए मुक़ावमत की शहादत के बाद, मुक़ावमत का महवर और भी ताकतवर होकर सामने आया और खबीस ज़ायोनी राज्य को बातचीत पर मजबूर कर दिया।
मौलवी जलाल मुरादी ने कहा,ज़ायोनी राज्य ने मुक़ावमत की सभी शर्तों को स्वीकार कर लिया और यह इस मुक़ावमत की सबसे बड़ी कामयाबी है।
पूरा फ़िलिस्तीन जब तक आज़ाद नहीं हो जाता प्रतिरोध जारी रहेगा:हमास
हमास ने कहां, जब तक पूरा फ़िलिस्तीनी इलाक़ा आज़ाद नहीं हो जाता तब तक प्रतिरोध जारी रहेगा जिसमें सशस्त्र प्रतिरोध भी शामिल है प्रतिरोध का हथियार हमारे लोगों है और इसका मकसद हमारे लोगों और हमारे पवित्र स्थलों की सुरक्षा है।
हमास ने एक बयान में कहा है कि न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित डॉ. मूसा अबू मरज़ूक़ के बयान सही नहीं हैं यह बयान कल रात ‘क़ुद्स प्रेस’ में प्रकाशित हुआ। बयान के अनुसार, “यह इंटरव्यू कुछ दिन पहले लिया गया था, लेकिन प्रकाशित किए गए अंश हमारे जवाबों को सही तरह से पेश नहीं करते हैं। उन्हें उनके संदर्भ से बाहर निकालकर इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वे इंटरव्यू की असली भावना को नहीं दर्शाता हैं।
हमास के बयान में कहा गया कि डॉ. अबू मरज़ूक़ ने इस बात पर जोर दिया कि 7 अक्टूबर का ऑपरेशन हमारे लोगों के प्रतिरोध, नाकाबंदी, क़ब्ज़े और बस्तियों के खिलाफ उनके अधिकार का प्रतीक है। बयान में यह भी कहा गया कि इस इंटरव्यू में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इज़रायली क़ब्ज़ाधारी युद्ध-अपराध और नरसंहार के ज़िम्मेदार हैं जो ग़ाज़ा पट्टी में हमारे लोगों के खिलाफ हो रहे हैं। ये अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हैं और पूरी दुनिया के लिए झटका हैं।
हमास के अनुसार, अबू मरज़ूक़ ने इस इंटरव्यू में यह भी दोहराया कि हमास अपने स्थायी रुख पर अडिग है और जब तक पूरा फ़िलिस्तीनी इलाक़ा आज़ाद नहीं हो जाता तब तक प्रतिरोध जारी रहेगा जिसमें सशस्त्र प्रतिरोध भी शामिल है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रतिरोध का हथियार हमारे लोगों का है और इसका मकसद हमारे लोगों और हमारे पवित्र स्थलों की सुरक्षा है। जब तक हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा है तब तक इसे त्यागना संभव नहीं है।
नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है। इज़रायली विदेश मंत्री
इज़रायली शासन के विदेश मंत्री गिदोन सार ने दावा किया है कि सीरिया की नई सरकार इदलिब के एक इस्लामी चरमपंथी समूह से बनी है, जिसने जबरन दमिश्क़ पर क़ब्ज़ा कर लिया है नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है।
इज़रायली शासन के विदेश मंत्री गिदोन सार ने दावा किया है कि सीरिया की नई सरकार इदलिब के एक इस्लामी चरमपंथी समूह से बनी है, जिसने जबरन दमिश्क़ पर क़ब्ज़ा कर लिया है। नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है।उन्होंने कहा कि बशर अलअसद के सत्ता से हटने पर इज़रायल को खुशी है लेकिन कुर्दों को नुकसान पहुंचा रही है।
गिदोन सार ने चेतावनी देते हुए कहा कि इज़रायल अपनी सीमाओं की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा उन्होंने दावा किया कि सीरिया में हमास और इस्लामिक जिहाद इज़रायल के खिलाफ नया मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इससे पहले इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इज़रायली सेना के एक कार्यक्रम में कहा था कि उनकी सेना गोलान हाइट्स और बफर ज़ोन में बनी रहेगी।
उन्होंने यह भी कहा कि हयात तहरीर अलशाम और सीरिया की नई सेना को दमिश्क़ के दक्षिण में घुसने नहीं दिया जाएगा। नेतन्याहू ने धमकी दी थी कि, इज़रायल दक्षिणी सीरिया में द्रूज़ समुदाय के खिलाफ किसी भी खतरे को बर्दाश्त नहीं करेगा।
इज़रायली हस्तक्षेप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन इज़रायली नेताओं के इन बयानों के बाद, सीरिया के दारा और सुवैदा प्रांतों में इज़रायली हस्तक्षेप के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुए।
स्थानीय नागरिकों और समुदायों ने मांग की कि इज़रायल सीरिया के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे। कुछ प्रदर्शनकारियों ने इज़रायल पर आरोप लगाया कि वह सीरिया में अस्थिरता फैलाने और विभाजन की राजनीति करने की कोशिश कर रहा है।
ज़ायोनी शासन, मानसिक संकट से लेकर मीडिया संकट तक
ज़ायोनी मीडिया येदीयेत अहारनोत ने इज़राइल की सेना में मनोवैज्ञानिक संकट के बारे में रिपोर्ट दी है।
ज़ायोनी समाचार पत्र येदीयेत अहारनोत ने रिपोर्ट दी है कि हालिया युद्ध के मैदान से लौटे 1 लाख 70 हज़ार इज़राइली सैनिकों ने मनोवैज्ञानिक सहायता प्राप्त करने के लिए इज़राइल के युद्ध मंत्रालय के उपचार कार्यक्रम में रजिस्ट्रेशन कराया है।
कई इज़राइली रिज़र्विस्ट सैनिक जो महीनों से युद्ध के मैदान में हैं, मनोवैज्ञानिक उपचार की तलाश में हैं, लेकिन उन्हें मनोचिकित्सकों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। यह पूरी कहानी नहीं है और मानसिक संकट केवल उन समस्याओं में से एक है जिसने इन दिनों इज़राइल को जकड़ रखा है।
राजनीति विज्ञान विशेषज्ञ सैयद अला मूसवी का मानना है कि इज़राइल को आंतरिक संकट, सैन्य नाकामियों और घटती शक्ति का सामना करना पड़ा है।
इज़राइली सैन्य विश्लेषक अमीर बू हबूत ने भी 7 अक्टूबर के हमले की जांच रिपोर्ट के जारी होने की की पूर्व संध्या पर ज़ायोनी शासन की सेना के वरिष्ठ कमांडरों के बीच पाए जाने वाले तेज़ तनाव की सूचना दी है।
अमीर बू हबूत का कहना है: सैन्य सूत्रों से पता चला कि जांच के शुरुआती नतीजों से सेना के जनरल स्टाफ में गंभीर मतभेद पैदा हो गए और नए चीफ ऑफ स्टाफ और इज़राइली जनरलों के बीच अविश्वास बढ़ गया है।
"अस्तित्वगत संकट" फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन (हमास) की बढ़ती शक्ति के बारे में अपनी राय में एक इज़राइली सैन्य विशेषज्ञ द्वारा इस्तेमाल किया गया एक और शब्द है।
पूर्व इज़राइली जनरल और इज़राइली सेना के पूर्व डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ यायर गोलान ने कहा कि हमास अभी भी ग़ज़ापट्टी के नियंत्रण में है। उनका कहना था: इज़राइल न केवल बाहरी खतरों के कारण बल्कि आंतरिक विभाजन और बिखराव के कारण भी अपने इतिहास में सबसे गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहा है।
इज़रायल का मीडिया विफलता संकट भी इन दिनों एक मुद्दा है जिसे इज़रायली विशेषज्ञ भी स्वीकार करते हैं।
इस संबंध में ज़ायोनी शासन के पूर्व प्रवक्ता एलोन लेवी ने एक विश्लेषण में कहा: ज़ायोनी शासन ने हमेशा अपने विस्तारवादी लक्ष्यों और मीडिया प्रचार के माध्यम से अपने कार्यों को वैध बनाने के लिए जनता की राय को अपने साथ करने का प्रयास किया है लेकिन तूफ़ान अल-अक्सा ऑपरेशन ने इस लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ पैदा कर दिया है।
इज़राइल के पूर्व प्रवक्ता के अनुसार, यह शासन, ग़ज़ा युद्ध में विश्व जनमत को प्रभावित करने के अपने महान प्रयासों के बावजूद और इस क्षेत्र में मीडिया नेटवर्क की सारी शक्ति का उपयोग करने के बावजूद, सैन्य युद्ध में नाकाम होने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं करने के अलावा, मीडिया युद्ध में भी बुरी तरह से नाकाम रहा और ग़ज़ा में अपने अपराधों और हत्याओं को छुपा नहीं सका।
क्या अमेरिकी राष्ट्रपति मूर्ख या दुष्ट हैं?
एक अमेरिकी विश्लेषक ने अमेरिका के राष्ट्रपति "डोनल्ड ट्रम्प" को पूरी तरह से बेवक़ूकफ़ क़रार दिया है।
अमेरिकी राजनीतिक विशेषज्ञ "डेविड ब्रूक्स" ने कहा: "ट्रम्प और उनके व्यवहार के बारे में एक प्रकार की दोहरी "दुष्टता" या "मूर्खता" है, हालांकि, वह निश्चित रूप से एक मूर्ख व्यक्ति हैं!
"न्यूयॉर्क टाइम्स" पत्रिका के टीकाकार "डेविड ब्रूक्स" ने लिखा: अपनी दुष्टता के बावजूद, दुष्ट लोग अपने हितों को अच्छी तरह से जानते व समझते हैं, लेकिन बेवकूफ लोगों की अपनी मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती और यहां तक कि अपने और अपने देश के हितों के ख़िलाफ़ भी क़दम उठा देते हैं, निश्चित रूप से ट्रम्प का संबंध भी इसी ग्रुप से है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर "मानुशे शफ़ीक" भी अमेरिकी राष्ट्रपति को बेवकूफ क़रार देते हैं जिन्होंने इस देश को विमर्श और बौद्धिक दृष्टिकोण से पूरी तरह से ख़ाली कर दिया है। शफीक ने कहा: ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अमेरिका और दुनिया में शैतानों के युग की शुरुआत कर दी है!
एक प्रमुख अमेरिकी विश्लेषक और टीकाकार "थॉमस फ्रीडमैन" ने भी कहा कि ट्रम्प अपने राष्ट्रपति पद को आजीवन कार्यकाल बनाने का इरादा रखते हैं।
वह कहते हैं कि ट्रम्प दुनिया को वास्तव में ट्रम्प टॉवर में एक खुदरा स्टोर की तरह देखते हैं, मिसाल के तौर पर, वह फ्रांस से कहते हैं, आप अपनी इस बेकरी के लिए पर्याप्त किराया नहीं दे रहे हैं! वह यूरोप को एक व्यापारिक ग्रुप के रूप में देखते हैं जो अमेरिका पर बहुत अधिक दबाव डाल सकता है, इसलिए वह इसे तोड़ना और फिर इनमें से हर देश के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत करना पसंद करते हैं लेकिन उन्हें इसके परिणामों का अंदाज़ा नहीं है।
इसी सन्दर्भ में, अमेरिकी मुद्दों के विशेषज्ञ अमीर अली अबुलफ़त्ह" ने भी एक्स पर लिखा: ट्रम्प हमेशा बाक़ी रहने वाली सत्ता के प्यासे हैं, चाहे वह आजीवन राष्ट्रपति हों या राजा।
लेकिन ये चाहत सैन्य तख्तापलट या अमेरिकी संविधान में बदलाव के बिना संभव नहीं है, पहले को यानी सैन्य तख़्तापलट को सेना के समर्थन की आवश्यकता होती है, जिसका सेना समर्थन नहीं करती है, और दूसरे को अर्थात संविधान में परिवर्तन को कांग्रेस और राज्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है, जिसका वे भी समर्थन नहीं करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ अब्दुल रज़ा फ़र्जीराद भी मानते हैं कि ट्रम्प साम्राज्यवादी नीतियों का पालन करते हैं। उनका कहना है: अमेरिकी राष्ट्रपति का मुख्य लक्ष्य घरेलू जनमत और अपने मतदाताओं के आधार को बनाए रखना है। उनके मुताबिक ट्रम्प ने अस्थायी तौर पर तानाशाही और ज़बरदस्ती की नीति अपनाई है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल के विश्लेषक "जेरार्ड बेकर" भी विभिन्न देशों के खिलाफ ट्रम्प के टैरिफ़ वॉर की शुरुआत का उल्लेख करते हैं और इस युद्ध को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा उठाया गया सबसे मूर्खतापूर्ण क़दम क़रार देते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया के जारी रहने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचेगा।